Real Love

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Real Love

Sharon Salzberg
अच्छे संबंध बनाने की कला

दो लफ़्ज़ों में
2017 में आई रियल लव नाम की ये किताब हमारा ध्यान उन आदतों और धारणाओं की ओर आकर्षित करती हैं, जो हमारे संबंधों को मधुर और गहरा होने से रोकती है. इस किताब के जरिये लेखिका शेरोन साल्ज़बर्ग प्यार के बारे में हमारी सोच के दायरे को बढ़ा कर प्यार के प्रति हमारे नज़रिए को बदलना चाहतीं हैं. लेखिका के द्वारा बताये गए नुस्खों को अपना कर हम अपने रिश्तों को और मजबूत बनाते हुए अपनी खुशियों में इजाफा कर सकते हैं.

ये किताब किसके लिए है?
- ऐसे कपल्स जो अपने मतभेदों को सकारात्मक रूप देना चाहते हैं.
- आत्मविश्वास की कमी से जुझ रहे व्यक्ति, जो खुद से प्यार करना सीखना चाहते हैं.
- जो लोग दूसरों से अपने संबंधों में मजबूती लाना चाहते हैं.

लेखक के बारे में
शेरोन साल्ज़बर्ग मैडिटेशन के क्षेत्र में एक विश्व-प्रसिद्ध शिक्षिका हैं. न्यूयॉर्क टाइम्स की बेस्ट सेलर ‘रियल हैप्पीनेस’ की लेखिका शेरोन साल्ज़बर्ग (Sharon Salzberg) माइंडफुलनेस को हमारी संस्कृति की मुख्यधारा का हिस्सा बनाने की सपोर्टर हैं. अपने कई अन्य किताबों जैसे ऑन बीइंग और हफिंगटन पोस्ट और अपने नियमित कॉलम और खुद के पॉडकास्ट - द मेट्टा ऑवर के माध्यम से उन्होंने बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को पश्चिमी देशों के लोगों तक पहुँचाया है.

हमारी ज़िन्दगी के बारे में कही गई कहानियों का खुद के प्रति हमारे नज़रिए पर गहरा प्रभाव पड़ता है.
प्यार शब्द को सुनते ही आपके दिमाग में क्या आता है? शायद अपने साथी के साथ एक रोमांटिक शाम बिताना या अपने दोस्तों के साथ बैठ कर ठहाके लगाना या फिर अपने नन्हे मुन्हे को गोद में लेकर सुलाना. हम में से ज्यादातर लोग प्यार को एक गर्म, मखमली एहसास के रूप में देखते हैं जो हमारे मन में खास लोगों के लिए होता है, जैसे हमारा साथी, परिवार और दोस्त.

लेकिन ये प्यार के बारे में हमारी एक लिमिटेड सोच है, जो हमारी लाइफ में ख़ुशी और आनंद के एक्सपीरियंस को भी लिमिटेड कर देती है. असल में प्यार हमारे आस पास के लोगों से रिश्तों को बनाने, उन्हें मजबूत करने और उनका आनंद उठाने के बारे में है. और चूँकि हम किसी न किसी तरीके से हर इंसान और हर चीज़ से जुड़े हुए हैं तो हम अपनी लाइफ के हर कार्नर में इस प्यार का एक्सपीरियंस कर सकते हैं.

कल्पना कीजिये कि आपकी हर सुबह प्यार से शुरू हो और हर रात प्यार के एहसास के साथ ख़त्म हो. यकीनन ये आपको किसी परिकल्पना जैसा लग रहा हो लेकिन अपने जीवन में कुछ पुरानी आदतों को बदल कर और कुछ नयी आदतों को अपना कर, आप प्यार को अपने हर पल में महसूस कर सकते हैं. लेखिका के दोस्तों और उनके छात्रों की लाइफ से लिए गए उदाहरणों से ये किताब आपको अपने संबंधों में मजबूती लाने का तरीका खोजने में मदद करेगी.

हमारी लाइफ के बारे में हमसे अच्छा कौन जानता है, आप भी यही सोचते हैं ना? इसका मतलब ये होना चाहिए कि अपने एक्सपीरियंस के बारे में कहानियाँ सुनाते समय हम पूरी इमानदारी बरतें. लेकिन ज्यादातर ऐसा होता नहीं हैं. बात चाहे दूसरों की लाइफ से जुडी किसी कहानी की हो या खुद की लाइफ की, हम में से कोई भी एक भरोसेमंद स्टोरीटेलर नहीं है.

हमारा दिमाग लगातार हमारी लाइफ में हो रही चीज़ों का मीनिंग निकलता रहता है, और जहाँ भी गुंजाईश होती है अपने हिसाब से तारों को जोडकर एक नयी कहानी बना लेता है. लेकिन कई बार इन कहानियों का असलियत से कोई वास्ता नहीं होता. जैसे किसी बच्चे को अगर किसी कुत्ते नें एक बार काट लिया, तो उसकी ये मानसिकता बन जाएगी कि सारे कुत्ते खतरनाक होते हैं. और इसी बात के कारण उसे जीवन भर कुत्तों से डर लगता रहेगा.

हमारे दिमाग के  द्वारा बनायीं गयी ये कहानियाँ ना केवल दूसरों के प्रति हमारे नज़रिए को बनाती हैं बल्कि खुद के लिए भी हम क्या सोचते हैं ये बात भी इन्हीं कहानियों पर निर्भर करती हैं. उदाहरण के रूप में जब लेखिका की दोस्त डायने के मंगेतर ने उनकी सगाई तोड़ दी तो उसने रिश्तों के बारे में अपनी सारी समझ को नकारते हुए ये मान लिया कि उसमें ही कोई कमी है, वो प्यार के लायक हीं नहीं है. असल में डायने ने बचपन से अपनी हर नाकामी के लिए  खुद को ऐसी कहानियाँ सुनाई है, इसलिए उसे इस बार भी लगा कि इस रिश्ते के टूटने का कारण भी वो खुद ही है.

हमारे मस्तिष्क के साथ साथ हमारे आस पास के लोगों द्वारा बताई, हमारे जीवन से जुडी कहानियों भी हमारे ऊपर बहुत प्रभाव डालती हैं . हमारे दोस्त, रिश्तेदार और जान पहचान वाले अपने शब्दों और हरकतों से अक्सर हमारे आत्म-विश्वास पर असर डालते हैं.

लेखिका के छात्र गस ने भी अपने बचपन में कुछ ऐसा हीं अनुभव किया था. गस के चार हट्टे-कट्टे शैतान भाई थे. कला और किताबों के प्रति उसकी रूचि उसे अपने परिवार से अलग बनती थी. उसे बाकियों जैसे एडवेंचर, कैम्पिंग और फिशिंग नहीं पसंद थी, और शायद इसी वजह से परिवार के बाकि लोग उसे नीचा दिखाते रहते थे.

गस की खुशकिस्मती थी कि उसे इन कहानियों का सकारात्मक पहलु भी देखने को मिला. जब गस के अंकल नें उसकी कला और संवेदनशीलता को देखा तो उन्होंने उसे इश्वर का तोहफा कहा. कुछ समय बाद उसके परिवार को भी उसकी खासियतों का अंदाजा होने लगा और वो सब उसे सराहने लगे, जिसके कारण गस खुद की इज्ज़त करना सीख गया.

जब हमें इस बात का एहसास हो जाता कि चाहे कहानी हमारे बारे में हो या किसी और के बारे में, दोनों ही सूरतों में हम एक अच्छे स्टोरीटेलर नहीं हैं, तो हम अपने मस्तिष्क द्वारा कही गयी हर कहानी को अलग एंगल से देखने लगते हैं. जैसे आपको डायने की ‘मैं प्यार के लायक हीं नहीं हूँ’ वाली कहानी याद है? कुछ दिनों बाद डायने को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने माइंडफुलनेस के जरिये खुद से प्यार करना सीखा और अपनी नयी कहानी लिखी. आगे के अध्यायों में हम सब भी यही कला सीखेंगे.

लम्बे समय तक खुश रहने के लिए अपने मुश्किल इमोशंस से जुड़ना बहुत जरुरी हैं.
हम सबने इस परिस्थिति का सामना किया है, अपने गुस्से, झुंझलाहट और दर्द को अपने अन्दर तब तक समेट कर रखा है जब तक कि हमारे अन्दर का ज्वालामुखी ना फूट जाए. हम सब अपने मुश्किल इमोशंस को अक्सर दबा कर रखते हैं जिसके कारण हमारी स्थिति और बत्तर हो जाती है.

आप शायद इस बात से थोडा असहज महसूस करें, लेकिन सच यही है कि अपने मुश्किल और दर्द भरे इमोशंस से ना जुड़ कर आप अपने दर्द को कम करने की बजाये और बढ़ा लेते हैं. लेखिका को भी इस बात का एहसास तब हुआ जब उनकी एक खास दोस्त नें खुदखुशी कर ली. वो इस बात को मानने को तैयार नहीं थीं कि उनकी दोस्त इस दुनिया में नहीं रही, उनका मन एक अजीब सी उदासी में कैद होकर रह गया था. एक दिन ध्यान शिविर के दौरान, उनके ध्यानगुरु ने उनसे उदासी का कारण पूछा लेकिन लेखिका बताने से हिचकिचा रही थी. ये देख वे बहुत हैरान हुए, फिर भी उन्होंने लेखिका को अपने दुःख को स्वीकार कर दिल खोल के रोने के लिए प्रेरित किया ताकि उनकी उदासी आंसुओं के ज़रिये बाहर आ जाये. लेखिका हैरान थीं कि ऐसा करने के बाद से वो बहुत हल्का महसूस करने लगी थीं.

दरसल, लेखिका अपने गुरु के सामने अपने दुःख को बताने में शर्म महसूस कर रही थी. लेकिन, साल्ज़बर्ग अकेली नहीं हैं जिनकी हिचकिचाहट नें उन्हें अपने दुःख को औरों से साँझा करने से रोक दिया. इसी तरह हम सब जब अपने जीवन में शर्मिंदगी जैसे मुश्किल इमोशंस को महसूस करते हैं तो खुद को अकेला कर लेते हैं. दूसरों के सामने अपने मुश्किल इमोशंस व्यक्त करने में हम असुरक्षित महसूस करते हैं क्यूंकि हमें लगता है, कोई हमारी बात नहीं समझेगा. हमारे मन से निकली आवाज़ बार-बार हमें ये बताती है कि हम किसी लायक नहीं. इन इमोशंस पर हमारा कोई कंट्रोल नहीं होता, लेकिन ये इमोशंस हमारी लाइफ को कंट्रोल करते चले जाते हैं.

लेखिका की स्टूडेंट पैटी का बचपन भी इस बात का उदाहरण है. पैटी में बचपन से ही आत्म-विश्वास की बहुत कमी थी, ऐसा इसलिए हुआ क्यूंकि उसके माँ-बाप को नशे की आदत थी और पैटी को हमेशा इस बात का डर सताता था कि अगर उसके दोस्तों को ये बात पता चल गयी तो वो लोग उसे परेशान करेंगे और कोई उससे बात नहीं करेगा. इस बात को छुपाते-छुपाते उसका खुद पर से विश्वास ही उठ गया था, जबकि वो एक होनहार स्टूडेंट होने के साथ-साथ अपने दोस्तों के प्रति बफादार भी थी.

ये बातें सुनने में जितनी आसान लगती हैं करने में उतनी हीं मुश्किल हैं. अपनी दर्दभरे इमोशंस से पीछा छुड़ाने के लिए, उन्हें भूलने और माफ़ करने की जल्दबाजी कि बजाये, पहले हमें उन इमोशंस को एक्सेप्ट करना चाहिए. माइंडफुलनेस और मैडिटेशन को अपने जीवन का हिस्सा बना कर हम अपने इमोशनल जख्मों के साथ जुड़ सकते हैं. माफ़ी की मंजिल तक पहुँचने से पहले इस मील के पत्थर को पार करना बहुत जरुरी है. एक बार हमने इस मंजिल को पा लिया तो हम अपने दर्द को भुला कर फिर से सुख, शांति और आनंद का अनुभव करने लगेंगे.

उदाहरण के तौर पर लेखिका को ही ले लीजिये, उन्होंने नें भी अपने जीवन में बहुत से दुखों का सामना किया है. जैसे, 9 साल की छोटी सी उम्र में एक्सीडेंट में उनके माता पिता चल बसे. इस घटना के बाद से वो खुद को अनाथ महसूस करने लगीं. एक दिन ध्यान के दौरान उनके बचपन का यही घाव ताज़ा हो गया, लेकिन लेखिका नें उससे अपना ध्यान हटाने की बजाये उसे महसूस किया. ऐसा करने से वो ये जान पाईं कि ये तो बस उनके जीवन का एक पहलु था, उनके अन्दर अभी प्यार की बहुत सी संभावनाएं बाकी हैं. इस सोच नें उन्हें इश्वर और अपने माता-पिता के प्रति उनके मन में बसी शिकायतों को मिटाने में उनकी मदद की.

मुश्किल इमोशंस हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा हैं और उन्हें अपनाकर ही हम खुद के और दूसरों के प्रति अपने प्यार को बढ़ा सकते हैं.

आगे बात करेंगे हम दया और विश्वास की.  दया और विश्वास की जमीन पर ही प्यार का रिश्ता पनप सकता है. कल्पना कीजिये कि आप अपने साथी के कॉफ़ी पी रहे हैं और उसका ध्यान कहीं और है. अचानक आपके मन से आवाज़ आती है कि आपके साथी की आपमें अब उतनी रुची नहीं रही जितनी शुरुवाती दिनों में हुआ करती थी. और आप बिना सोचे इस आवाज़ पर विश्वास करने लगते हैं.

रिश्तों में कई बार हम अपनी बात अपने साथी तक नहीं पहुंचा पाते और उसका नतीजा ये होता है कि सामने वाले के मन में उसके दिमाग द्वारा बनायीं गयी कहानियाँ घर करने लगती हैं. और अगर हमारे साथी ने ज्यादा सोचना-समझना जरुरी नहीं समझा तो ये कहानियाँ ग़लतफ़हमियों का रूप ले लेती हैं.

अगर हम इस दरार को भरना चाहते तो हमें खुद के प्रति और दूसरों के प्रति दया की भावना रखनी होगी. ये दया की भावना हमें ये याद दिलाएगी कि हम एक काबिल इंसान हैं, तो सामने वाला हमारे साथ ऐसा नहीं कर सकता जरुर कोई और वजह होगी. जैसे कि हो सकता है आपका साथी अपने काम की वजह से परेशान हो या फिर कोई और वजह हो जिसका आपसे कोई लेना देना न हो. तो उसपे शक करने की बजाये आप सीधा उससे उसकी परेशानी का कारण पूछ लें. ये बातें, आपके अन्दर की नेगेटिव सोच को भी हटा देगी और आपके साथी को भी आपका सहारा मिल जायेगा. इन बातों से आपके रिश्ते में और मजबूती आ जाएगी.

आईये गॉटमैन इंस्टीट्यूट द्वारा की गई रिसर्च पर नज़र डालते हैं. यहाँ के रिसर्चर्स के अनुसार किसी भी शादी की सफलता को आंकने का सबसे अच्छा तरीका दोनों साथिओं के बीच दया के भाव को देखना है. इस आर्ग्नाइज़ेशन की को-फाउंडर जूली गॉटमैन का कहना है कि दया के भाव की जरुरत खासतौर पर हमें मतभेद के समय पड़ती है, ताकि हम बेवजह अपने साथी को सजा देने से बच सकें. लेकिन साथ ही साथ अपने गुस्से को ज़ाहिर करना भी जरुरी है, तो इसलिए हमें इसे सकारात्मक तरीके से ज़ाहिर करना होगा जैसे कहासुनी के दौरान अपने साथी के ऊपर सीधा भड़कने के बजाये अपने साथी को ये बात समझाना कि आपको दुःख क्यूँ पहुंचा. 

पर मतभेद के क्षणों में खुद पर काबू रखना बहुत मुश्किल है, खसतौर पर अगर हमें अपना बचाव करने की आदत हो. ज्यादातर हमें लगता है कि हमें सब पता है कि क्या सही है और क्या गलत इसलिए हमें अपने बचाव में तर्क करने की आदत पद जाती है.

लम्बे समय तक चलने वाले रिश्तों के लिए हमें सही और गलत के प्रति हमारे नज़रिए को थोडा बदलने की जरुरत है, जिसे लेखिका नें ‘एक नयी शुरुयात की चाह का नाम दिया है’. इस स्तिथि को प्राप्त करने के लिए हमें और हमारे साथी को ये समझना बहुत जरुरी है कि किसी भी मतभेद को सुलझाने के एक से ज्यादा तरीके हो सकते हैं. ये समझते हुए की हम दोनों एक दुसरे का सहारा हैं हम और हमारा साथी अपने रिश्ते को नयी ऊंचाईयों पर ले जाकर जीवन को और अधिक सुखमय बना सकते हैं. और ऐसी सोच से हमें हमेशा इस बात का एहसास रहेगा कि ये रिश्ता हम दोनों की जिम्मेदारी है न कि कोई कम्पटीशन.

रिश्तों में आई दूरियों को मिटाने के हमारे तरीकों पर हमारी खुशियाँ निर्भर करतीं हैं.
कल्पना कीजिये की आप कार में बैठे, पसीने से तरबतर हो रहे हैं क्यूंकि आपके साथी ने कार का तापमान बढ़ा दिया है. ऐसे में आप ये सोच भी सकते हैं कि आपके साथी की सहूलियत आपके आराम से ज्यादा जरुरी है. लेकिन, ज्यादातर ऐसी परिस्थितियों में हम अपने आराम के बारे में सोचकर नाराज़गी व्यक्त करने लगते हैं.

ऐसी परिस्थितियाँ आगे चलकर हमारा सामना रिश्तों की सबसे बड़ी कसौटी से करवाती है जो है आपसी मतभेद के कारण रिश्तों में आई दूरियाँ. ये दूरियाँ शारीरिक भी हो सकती हैं और भावनात्मक भी. चाहे जैसी भी दुरीयाँ हो, वो व्यक्ति की जरूरतों और उसके संवेदनशीलता पर निर्भर करती हैं.

इन दूरियों को अक्सर हम उन चीज़ों से भरने की कोशिश करते हैं, जो हमें लगता है कि हमारा साथी चाहता है. जैसे लेखिका के दोस्त बिल का उदाहरण ले लें, अपने और अपनी बीवी के बीच की दूरियों को मिटाने के लिए बिल नें अपने बीवी के हर काम में हिस्सा लेना शुरू कर दिया. यहाँ तक कि जब उसकी बीवी अपनी बहन के साथ 3 महीने के लिए घूमने जाना चाहती थी वहाँ भी वो उसके साथ जाना चाहता था, लेकिन बाद में उसे एहसास हुआ कि यूँ हर जगह अपनी बीवी का पीछा कर वो उसे असहज महसूस करवा रहा है. उसने अपनी बीवी को बताया कि वो उसकी ट्रिप से खुश तो नहीं है लेकिन वो उसके निर्णय का सम्मान करता है. उसकी इसी ईमानदारी और आभार के भाव नें उनके रिश्ते को एक नयी मजबूती दी.

बिल की ही तरह अपने रिश्तों में आई दूरियों को सकारत्मक विचारों और इमानदारी से भर कर हम बेहतर रिश्तों की शुरुवात कर सकते हैं. पर दुर्भाग्य की बात ये है कि ये दूरियां अक्सर लड़ाईयों में तब्दील हो जाती हैं.

गोटमैन इंस्टीट्यूट के संस्थापक और मनोवैज्ञानिक जॉन और जूली गॉटमैन नें 40 सालों तक कपल्स पर अध्ययन  किया. उन्होंने पाया कि जो कपल अपनी दूरियों के बीच सामने वाले कि आलोचना या बात-बात में अपना बचाव जैसे नकारात्मक बर्ताब को आने देते हैं, वो दुखी होने के साथ-साथ अस्वस्थ भी होते हैं क्यूंकि रिश्तों में आई कडवाहट के कारण वो अधिक शारीरिक तनाव का सामना कर रहे होते हैं.

इसका ये मतलब नहीं कि जो लोग खुश हैं वो कभी झगड़ते ही नहीं बल्कि वो लोग अपने झगड़ों को सकारात्मक ढंग से सुलझाते हैं. चाहे उनकी राय कितनी भी अलग हो वो इस बात को समझते हैं कि उनके साथी के इरादे नेक हैं. इसका मतलब है ऐसे कपल बिना आलोचना या एक दुसरे पर हमला किये अपने मतभेदों का सामना कर सकते हैं.  इसे गॉटमैन नें इमोशनल सेफ्टी का नाम दिया है. इसी इमोशनल सेफ्टी के ज़रिये गॉटमैन नें लोगों के रिश्तों की सफलता की भविष्यवानियाँ की है, जिनमें से 90% सच निकली हैं.

चूँकि हम सभी की अपनी ज़रूरतें और नजरिया होता है, इसलिए इस बात की पूरी संभावना होती है कि हमारे बीच मतभेद हो. पर इन मतभेदों के कारण आई दूरियों को करुणा और ईमानदारी के माध्यम से मिटा कर हम प्यार के साथ साथ अपने आत्म सम्मान को भी बनाये रख सकते हैं.

अक्सर हम खुद को एक सुपर हीरो समझ कर अपने प्रियजनों के जीवन में घुस जाते हैं कभी उनके टूटे दिल पर मरहम लगाने, कभी उनके थके दिमाग या शरीर को अपने नुस्खों के जरिये आराम पहुँचाने. पर क्या हमने कभी सोचा है कि ये सब सच में उनके लिए अच्छा है या हम बेकार में ही उनकी समस्याओं में घुस रहे हैं?

यहाँ तक कि जब हम बेहद नेक इरादों के साथ तहे दिल से किसी की मदद करना चाहते हैं, तब भी हमारा किसी के जीवन में यूँ हस्तक्षेप करने का असर उलट भी पड़ सकता है. क्यूंकि, जब हम किसी के लिए जरुरत से कुछ ज्यादा ही करते हैं, तो उनके मन में इस बात का तनाव आ जाता है कि अब उन्हें भी आपकी उम्मीदों पर खरा उतरना होगा. इसके अलावा समस्या के वक़्त इतने सारे लोग अपनी सलाहों के साथ सामने आते हैं कि उन सभी की बातें अपने आप में एक तनाव का कारण बन जाती है, और तनाव से कोई भी समस्या हल नहीं की जा सकती.

पर इसका ये मतलब नहीं कि अपने प्रियजनों को समस्या में छोड़कर हमें गायब हो जाना चाहिए. जैसे लेखिका की दोस्त जब बीमार पड़ी तो उनकी शिक्षिका नें उन्हें सलाह दी कि वो बस अपने दोस्त के साथ रहे, उन्हें उतना ही काफी है. सलाह बाँटने और सुझाव देने की आदत को छोड़कर केवल अपने प्रियजनों का साथ दें. क्यूंकि, आपका साथ ही वो चीज़ है जिसकी मुसीबत के वक़्त आपके प्रियजनों को सबसे ज्यादा जरुरत होती है.

कभी कभी हम खुद से भी कुछ ज्यादा ही उम्मीदें रख लेते हैं. हमारा ये सोचना की हम सबकुछ अकेले ही संभाल सकते हैं, हमें कई बार तनाव से भर देता है. इस तनाव के कारण हम दूसरों से आने वाले प्यार और सहायता को रोक देते हैं और आखिरकार खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं.

जैसे जब लेखिका की दोस्त सेबेने (sebene) को ये पता चला कि मात्र 30 साल की  उम्र में उसे कैंसर हो गया है, तब लोगों से अपने दुःख को छुपाते हुए उसने ऐसा दिखाया कि वो अपनी बीमारी से लड़ने में सक्षम हैं. लेकिन जब उनकी तबियत ज्यादा खराब रहने लगी तब उन्हें एहसास हुआ कि वो कोई सुपर हीरो नहीं हैं. ऐसे समय में उनके परिवार और दोस्तों से मिले प्यार और देखभाल ने उनके बीच के भावनात्मक संबंधों को और गहरा कर दिया.

सेबेने (sebene) की तरह हम सब अपने आप से कुछ ज्यादा ही उम्मीद कर बैठते हैं. ये उमीदें हम केवल खुद से ही नहीं, बल्कि, दूसरों से भी करने लग जाते हैं, जो कि आगे चलकर हमारे और उनके संबधों के बीच की दूरियों का कारण बन जाती है. खासतौर पर ये उम्मीदें हम उनसे रखते हैं जिन्हें मनोवैज्ञानिक जेम्स होलीस नें ‘मैजिकल अदर’ यानी जादुई साथी का नाम दिया है. हमें लगता है कि कोई व्यक्ति आएगा जो हमारे सारे जख्मों को भर कर हमें पूरा कर देगा. मगर ये सब केवल फिल्मों और कहानियों की बातें है. अगर हम इस बात को समझ लें कि कोई और हमें पूरा करने नहीं आएगा तो ना केवल हम अपने जख्मों पर खुद ही मरहम लगा सकते हैं बल्कि दूसरों के जख्मों को भी और बेहतर तरीके से समझ सकते हैं. यही बात दूसरों के साथ हमारे रिश्ते को गहरा बना कर सेटिस्फेक्शन का एक्सपीरियंस लाती है.

जिस तरह सूखे के बाद बारिश किसी बंज़र ज़मीन को भी उपजाऊ बना देती है, उसी तरह रिश्तों की दरारों को प्यार से भर कर हम एक सच्चे रिश्ते कि शुरुवात कर सकते हैं.

अगर हम जलन के कारण को हटा दें, तो हम जलन को भी आनंद में बदल सकते हैं.
जलन के डंक से हम समय-समय पर प्रभावित होते आये हैं. अगर हमारे दोस्त को कोई सुंदर और शुशील जीवन साथी मिल गया जिसकी हम आशा भी नहीं कर सकते, या किसी दोस्त को वो पब्लिशर मिल गया जिसकी हमें कबसे चाहत थी या फिर योगा के दौरान हमारे पास वाला व्यक्ति सभी आसनों को हमसे बेहतर तरीके से कर रहा है, ऐसी सभी परिस्थितियाँ हमें ये सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि हमारे अंदर कोई सम्भावना नहीं हैं.

लेकिन एक तरीका है जिससे हम दूसरों की खुशियों से भी फायेदा उठा सकते हैं लेखिका नें इसे सिमपेथेटिक जॉय यानी सहानुभूति से भरे आनंद का नाम दिया है. 

इसे महसूस करने का सबसे पहला कदम है उस वजह को समझना जो हमें दूसरों की ख़ुशी का जशन मानाने से रोक रही है. अगर हम इस बात की तह तक जायेंगे तो देखेंगे कि हमारी खुद की असुरक्षा और संवेदनशीलता ही इसका कारण है. जैसे अगर किसी लेखक के दोस्त की किताब को अच्छी रेटिंग मिल गए तो उसे जलन होगी. लेकिन क्यूँ? क्यूंकि कहीं न कहीं वो अपनी किताब को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहा होता है. यही असुरक्षा का भाव जलन का कारण बनता है.

एक बार हमने अपनी जलन के कारण को जान लिया तो हम अगले कदम की ओर बढ़ सकते हैं जो है अपने आप के प्रति उदार होना. अपने दोस्त की सफलता से दुखी होकर खुद को सजा देने कि बजाये हम धैर्य और करुणा से काम ले सकते हैं. जलन के प्रति मजाकिया रुख अपनाने से भी आपकी मुश्किल हल हो सकती है, जैसा लेखिका का एक दोस्त किया करता था. उसका कहना था कि वो अपने मुश्किल इमोशंस को स्वीकार करने के लिए अपनी अच्छाईयों के साथ साथ अपनी बुराईयों को भी गले लगाता है.

जब खुद पर दया करते-करते हमें खुद से प्यार हो जायेगा तो हम सिमपेथेटिक जॉय को महसूस करने के रास्ते पर चल सकते हैं. इस आखरी पड़ाव को पार करने के लिए हमें अपनी पुरानी धारणाओं को चुनौती देते हुए ये सोचना शुरू करना होगा कि दुनिया में आनंद के असीमित स्त्रोत्र हैं. जैसे एक अच्छा जीवनसाथी बनने की क्षमता एक से ज्यादा लोगों में हो सकती है या फिर सफलता के भी एक से ज्यादा पयमाने हो सकते हैं.

अगर हम खुद को ऐसी स्थिति में ला पाए जहाँ हम इस बात को समझेंगे कि दुनिया में आनंद के स्त्रोत्र असीमित हैं और हम कहीं से भी खुशियाँ प्राप्त सकते है यहाँ तक कि दूसरों की सफलता से भी, तो हम सिमपेथेटिक जॉय  को अपने जीवन का हिस्सा बना पाएंगे. ये आनंद का इमोशन हमारी खुशियों को बढाने के साथ-साथ दूसरों के साथ हमारे संबंधों को भी मजबूत बनाएगा.

उदाहरण के लिए, कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, सांता बारबरा में मनोविज्ञान की प्रोफेसर, शेलि गेबल के 2006 में किये गए अध्ययन को ले लेते, जिसमें उन्होंने कपल्स के बीच सिमपेथेटिक जॉय के इमोशन पर रिसर्च की. उन्होंने पाया कि आपका जीवनसाथी अच्छी खबर पर कैसे पेश आता है ये बात आपके रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए उसके बुरी खबर सुन कर के किये गए बर्ताव के मुकाबले ज्यादा जरुरी है.

तो अपने साथी के प्रमोशन को बस खुशकिस्मती का नाम दे देने कि बजाये उसका जशन मनाएं ताकि आपके और आपके साथी दोनों के सिमपेथेटिक जॉय में इजाफा हो जाए.

अपने आस पास की दुनिया और लोगों के साथ एक्टिव रूप से शामिल होना ही सफल रिश्तों की कुंजी है. सोचिये आप किसी राशन की दूकान के कैश –काउंटर पर खड़े होकर अपनी लिस्ट से सामान का मिलान करने में व्यस्त हैं, और फिर बस फटाफट पैसे देकर आप निकल जाते हैं. लेकिन, इस जल्दबाजी के चक्कर में आप वो मुस्कान देखना भूल गए जो काश-काउंटर पर खड़े व्यक्ति नें आपकी ओर भेजी. ऐसी ही छोटी छोटी बातें संबंध बनाने के काम आती हैं.

आधुनिक ज़िन्दगी की भागदौड़ में हम खुद में ही इतना व्यस्त होते हैं कि ज्यादातर हम उस क्षण में मौजूद न होकर अपने ही ख्यालों में खोये रहते हैं. इसका मतलब है हम खुद को प्यार, दया और मधुर संबंधों से वंचित रख कर खुद को धोखा दे रहे हैं.

दूसरों के प्रति दया की भावना को सीमाओं में बांध कर न रखें. दया करने से आत्म-संतोष और आनंद का एहसास होता है. जैसे लेखिका की छात्रा का जब ब्रेकअप हुआ तब वो मेनहट्टन की खचाखच भरी ट्रेन में बैठी थीं. समाज के नियमों के अनुसार लोगों के बीच रोना उसे शोभा नहीं देता, लेकिन वो अपने आंसू रोक नहीं पायी और रो पड़ी. उसे रोता देख एक अजनबी नें उसे अपना रुमाल और प्यारी सी मुस्कान देकर उसके मूड को बदल दिया. वो बेहतर महसूस करने लगी. ऐसे ही दूसरों को मुस्कान बांटते हुए हम भी खुशियों के समंदर में गोते लगा सकते हैं.

जिनसे हम प्यार करते हैं या जिन्हें हम जानते हैं उनके प्रति दया का भाव रखना तो बहुत आसान है. लेकिन उनका क्या जिन्हें हम पसंद ही नहीं करते?

जिन लोगों को हम पसंद नहीं करते उन्हें हम बहुत उपरी नज़र से देखते हैं. हम कभी उनकी गहराईयों में झांक कर नही देखते कि कैसे उनकी और हमारी जिंदगियाँ जुडी हैं और उनमें और हममे क्या समानता है, ऐसा करते हुए हम खुद को भी दुखी करते हैं और दूसरों को भी.

उदाहरण के तौर पर, साल्ज़बर्ग के एक लेखक मित्र जब मिडवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के इंग्लिश डिपार्टमेंट की ओर से आयोजित डिनर पार्टी में गए तो उन्हें लोगों के बारे में पूर्वानुमान लगाने और धारणाएं बनाने की अपनी आदत के कारण अपनी गलती का सामना करना पड़ा. वहाँ उन्हें एक आम सी दिखने वाली साधारण कपडे पहने एक महिला मिली, उसकी वेशभूषा देख उन्होंने ये अनुमान लगाया कि वो एक अनपढ़-ग्वार औरत है. लेकिन उस महिला ने मूल फ्रेंच में प्राउस्ट नामक किताब पढ़ने में अपनी दिलचस्पी साझा करके उसे आश्चर्यचकित कर दिया. इसलिए, लोगों को आंकने की जल्दबाजी में उनके मित्र नें एक ज्ञानी महिला से जान-पहचान बनाने का अवसर खो दिया.

इसी तरह जिस व्यक्ति से हम डरते हैं उनके बारे में भी बस ऊपर-ऊपर से जान कर उसे गलत समझने लगते हैं. लेकिन, जिन लोगों को हम पसंद नहीं करते या जिनसे हम डरते हैं उनके पास जाकर आप महसूस करेंगे कि उनमें और हममे काफी समानताएं हैं. जैसे रॉबी डामेलिन एक इजरायली मां, जिसका बेटा एक फिलिस्तीनी स्नाइपर द्वारा मारा गया था, ने हेरेत्ज़ में प्रकाशित एक लेख में कहा कि इजरायली और फिलिस्तीनी माताओं के बेजुबान आँसू एक ही रंग और पदार्थ के हैं.

ऐसी ही  असमानताओं कि जगह समानताओं पर ध्यान देने से हम दया के भाव को बढ़ावा देते हैं, जिससे आगे चलकर प्यार और खुशहाली पनपती है.

थोडा ठहर कर, हर गुजरते हुए पल को गले लगाकर हम कभी ना ख़त्म होने वाली खुशियों को प्राप्त कर सकते हैं.
हम सब ऐसा सोचते हैं कि अगर हमारे जीवन में ये हो जाए या वो हो जाए तो हम खुश हो जायेंगे. अपनी खुशियों के लिए हम कई मिल के पत्थरों का चुनाव कर के रखते हैं, जैसे सपनों की जॉब, शादी, बच्चे, बच्चों कि शादी और भी कई बातें. लेकिन असल में जीवन को बदल कर रख देने वाली ख़ुशी हमें कहीं से भी प्राप्त हो सकती है, यहाँ तक कि हमारे मुश्किलों से भरे क्षण भी कई बार हमें खुश होने की वजह दे जाते हैं.

खुश रहने की कोशिश में कई बार हम अपने इमोशंस को रोक लेते हैं, जैसे बहस के डर से गुस्से को रोक लेना. लेकिन ये तरीका सही नहीं है, क्यूंकि जब तक हम अपने गुस्से को महसूस नहीं करेंगे तब तक उसे मिटायेंगे कैसे, और वो हमारे दिल में दबा रहेगा और हमें खुश होने से रोकता रहेगा. जैसे अगर हमारा रूममेट बिलकुल सफाई नहीं रखता तो हमें उसे ये बात जल्द से जल्द समझानी होगी क्यूंकि आपको उसका कचरा बार साफ़ करना पड़ेगा और हर बार आप झुंझलाहट का सामना करेंगे. इसलिए अपने गुस्से को सकारात्मक रूप देने के लिए आप उससे इस टॉपिक पर डिस्कशन करें, इससे कोई न कोई हल जरुर निकलेगा.

मुश्किल इमोशंस का सामना हमें केवल दूसरों की वजह से ही नहीं करना पड़ता बल्कि कई बार हमें खुद लगने लगता है कि ज़िन्दगी हमारी उमीदों पर खरी नहीं उतरी है. इस परिस्थिति से लड़ने के लिए हमें दिल खोल कर जीवन के हर जोखिम का सामना करना चाहिए और ज़िन्दगी जैसी भी है, उसका सवागत करना सीखना चाहिए.

उदाहरण के लिए, अपनी सांता फ़े की यात्रा के दौरान, साल्ज़बर्ग ने एक आश्चर्यजनक इंद्रधनुष देखा जिसकी वह तस्वीरें लेना चाहती थी. लेकिन जब तक उनका पुराना फोन चालू हुआ, इंद्रधनुष गायब हो गया था. निराश होकर, साल्ज़बर्ग ने खुद को नया फोन नहीं खरीदने के लिए बहुत कोसा. लेकिन तभी उन्होंने दो महिलाओं की बातें सुनी जो आसमान में बिखरे गुलाबी रंग की तारीफ कर रहीं थी. उस वक़्त लेखिका को ये समझ आया कि जो नहीं मिला उसके लिए निराश होने की बजाये जो उनके सामने है वो उसका लुत्फ़ उठा सकती है.

इसी तरह के आश्चर्य से भरे दृश्यों को देख कर हम खुद को न केवल प्रकृति से बल्कि दूसरों से भी जुड़ा हुआ महसूस करने लगते हैं. मनोविज्ञान के प्रोफेसर पॉल पिफ़ और डचर केल्टनर ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में एक प्रयोग किया. उन्होंने पाया कि जिन छात्रों ने मनमोहक और लंबे नीलगिरी के पेड़ों को देखने में समय बिताया है, वे सड़क के दूसरी ओर बनी इमारतों को देखने वाले छात्रों की तुलना में अजनबी राहगीरों की तीन गुना ज्यादा मदद करते हैं. यानी प्रकृति को दिया हुआ मात्र एक मिनट आपके मन में दया के भाव को इतना बढ़ा देता है.

अपने आस पास के लोगों और प्रकृति के प्रति जिज्ञासु रह कर हम इस बात को समझ सकते हैं कि कहीं न कहीं से हम सब एक दुसरे से जुड़े हुए हैं. अगर हम ज़िन्दगी की कभी ना खतम होने वाली संभावनाओं का एहसास कर लेंगे तो निश्चित रूप से हर परिस्थति में मुस्कुराना भी सीख जायेंगे. यही असीम सुख को प्राप्त करने की कुंजी है.

कुल मिलाकर
प्यार बस एक भाव नहीं है , ये तो एक ऐसी कला है जिसे हम रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा बना सकते हैं. प्यार को पाने के बहुत से तरीके हैं जिसपर ध्यान देकर हम अपने जीवन में प्यार को महसूस कर सकते हैं- जैसे हम खुद के बारे में क्या सोचते हैं और दुसरे हमारे बारे में क्या कहते है इसपर विश्वास करने से पहले उसे परखना, अपनी सभी मुश्किल भावनाओं का सामना करना, मतभेद के समय अपने व्यव्हार को नियंत्रित रखना, दूसरों से और खुद से उमीदें न लगाना, और अपने आस पास की दुनिया और लोगों के प्रति उदार रहना. एक बार हमने  अपनी मुश्किल भावनाओं का सामना संवेदना और दया के साथ करना सीख लिया तो हम स्वस्थ और खुशहाल रिश्तों का आनंद हर रोज़ ले सकते हैं.

क्या करें?

RAIN पद्धति को अपना कर आप अपनी मुश्किल भावनाओं पर काबू पा सकते हैं.

RAIN का अर्थ है,

R- Recognizing your feelings by naming them, यानी आप अपनी भावनाओं को कोई नाम देकर उन्हें पहचानें. 

A- Acknowledging your feelings and giving yourself permission to feel them, यानी भावनाओं को कबूल  करें और खुद को उन्हें महसूस करने की इजाज़त दें.

I- Investigating your feelings with a spirit of curiosity, यानि अपनी भावनाओं का कारण जिज्ञासा के साथ जानने की कोशिश करें.

N- Non-identifying with your feelings by recognizing you don’t need to be defined by them, यानी अपनी भावनाओं से ये सोचकर पीछा छुड़ाईये कि आप वो व्यक्ति नहीं हैं जो ये भावनाएं आपको बना रही हैं.

इस तरीके के इस्तेमाल से आप मुश्किल घड़ी में खुद को संभाल कर अपने रिश्तों को बचा सकते हैं.

 

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