Emotional Agility

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Emotional Agility

Susan David
अपनी भावनाओं को काबू करना सीखें।

दो लफ्जों में 
ईमोशनल एजीलिटि ( Emotional Agility ) में हम देखेंगे कि किस तरह से हम अपनी भावनाओं को अच्छे से समझ कर उन्हें काबू कर सकते हैं। हम देखेंगे कि कैसे आप खुद को तनाव से निकाल सकते हैं और किस तरह आप अपनी बोरिंग जिन्दगी को मज़ेदार बना सकते हैं। यह किताब हमें बताती है कि भावनाओं को दबा कर रखना अच्छी बात क्यों नहीं है।

यह किसके लिए है
-वे जो नेगेटिव भावनाओं को काबू करने की नाकाम कोशिश में लगे हैं
-वे जो तनाव भरी जिंदगी से छुटकारा पाने की कोशिश कर रहे हैं।
-वे जो अपने रिश्तों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं।

लेखक के बारे में
सूसैन डेविड ( Susan David ) हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के मैक्लीन हॉस्पिटल की फाउंडर और डाइरेक्टर हैं। वे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में साइकोलॅाजी की इंस्ट्रक्टर हैं। उनकी रीसर्च का फोकस ज्यादातर कर्मचारियों के कौशल पर, ईमोशनल इंटेलिजेंस पर और लीडरशिप पर रहता है।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
भावना ही वो चीज है जो हमें इंसान बनाती है। अगर भावनाएं नहीं होती तो हम कभी अकेले में बैठकर उन पुरानी बातों को याद कर के नहीं मुस्कुराते। लेकिन क्या हो अगर ये भावनाए आपके कंट्रोल से बाहर चली जाएँ? क्या हो अगर आप नेगेटिव भावनाओं को काबू न कर पाएँ? अगर आपके साथ ऐसा हो रहा है या आपको डर लग रहा है कि कहीं आपके साथ ऐसा न हो जाए तो हमारे साथ बने रहिए।

इस किताब में हम यह देखेंगे कि आप किस तरह से इन भावनाओं को काबू कर सकते हैं। हम देखेंगे कि किस तरह से आप अपने रिश्तों को सुधार कर, अपने फैसले खुद लेकर और खुद को बार बार चुनौती देकर वो जिन्दगी हासिल कर सकते हैं जिसकी आपने ख्वाहिश की थी।

 

-किस तरह आप खुद को सहानुभूति देकर अपनी भावनाओं को समझ सकते हैं।

-माइंफुलनेस क्या है और इससे आपका क्या फायदा हो सकता है।

-रिस्क लेना और कुछ नया करना क्यों अच्छा है।



हमारा दिमाग हमारे हर अनुभव का एक मतलब निकाल कर उससे एक कहानी बुनता रहता है।
अक्सर हम जिन्दगी में कुछ ऐसा देखते या महसूस करते हैं जो हमारी जिन्दगी को पूरी तरह से बदल कर रख देता है। अक्सर आप ने फिल्मों में देखा होगा कि मेन कैरेक्टर गरीबों को परेशानी में देखता है और फिर वो उनके लिए कुछ करने के बारे में सोचता है। हमारी जिन्दगी में भी हमारे साथ कुछ ऐसा ही है।

हमारे साथ जो भी घटनाएँ होती हैं, हमारे दिमाग पर उसका असर पड़ता है। हम उस घटना से संबंधित कहानियाँ बनाने लगते हैं और उसे अपने हिसाब से समझने लगते हैं। लेकिन अक्सर ये कहानियाँ सिर्फ कहानियाँ होती हैं। इनका असलियत से कुछ खास नाता नहीं होता है। अगर इन कहानियों में अच्छी बातें हैं तो इससे कोई नुकसान नहीं है, लेकिन अगर ये कहानियाँ नेगेटिव हैं तो ये चिंता करने वाली बात है।

अब आप सोच रहे होंगे कि कहानियों से कैसे हमारा नुकसान हो सकता है। जब उनका असलियत से कुछ खास नाता नहीं है तो उनका असर भी हमारे ऊपर असल में नहीं होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। हम जैसा सोचते हैं , हमारी मानसिकता वैसी ही बन जाती है। 

अक्सर ऐसा होता है कि हम से कोई गलती हो जाती है और हम उसके लिए खुद को कोसते रहते है। समय के साथ हमें ऐसा लगने लगता है कि हम काबिल नहीं हैं और हम खुद के बारे में गलत सोचने लगते हैं। ऐसा करने से हमारा आत्मविश्वास कम हो जाता है और हम कोई नया काम करने से कतराने लगते हैं क्योंकि हमें अंदर ही अंदर यह लगने लगता है कि हम सब गलत कर देंगे।

इस तरह से खुद के बारे में गलत अंदाज़ा लगाना और खुद को कम समझना हमारी आदत बन जाती है। हमारे दिमाग की बनाई हुई कहानी का असर हम पर असलीयत में होने लगता है।

गलतियाँ करना एक बहुत ही आम बात है और अगर आप गलती नहीं कर रहे हैं तो आप गलत कर रहे हैं। क्योंकि गलती हम से वहीं पर होती है जब हम कुछ नया करने जाते हैं। अगर आप गलती नहीं कर रहे हैं तो आप कुछ नया करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। ईमोशनल एजीलिटि की मदद से हम अपने इस तरह के नेगेटिव विचारों को काबू करना सीख सकते हैं और जिन्दगी को उस नजर से देख सकते हैं जैसी वो असल में है।

अपनी भावनाओं को दबा कर रखना अच्छी बात नहीं है।
हमारे साथ बहुत बार ऐसा होता है जब हम उदास होते हैं लेकिन फिर भी खुश रहने की कोशिश करते हैं। कुछ लोग मानते हैं कि चाहे जो हो,वे खुद को हँसता हुआ रख सकते हैं। लेकिन क्या अपनी भावनाओं को दबाना अच्छी बात है। क्या नेगेटिव भावनाओं को बाहर न आने देने से कोई फायदा है?

हमें इनके फायदे के बारे में नहीं पता, लेकिन इसका नुकसान बहुत है। सबसे पहली तो यह कि मुश्किल वक्त में उदास होना बिल्कुल नेचुरल है और किसी भी प्राकृतिक चीज को खत्म करने की कोशिश करने से लम्बे समय तक का नुकसान हो सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि आप अपनी भावनाओं को दबा कर रखने की बजाए उन्हें समझ कर उन पर काबू पाना सीखिए।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के एक रीसर्च में यह बात सामने आई कि जो लोग असल में खुश रहते हैं उन्हें आगे चलकर एक अच्छा परिवार मिलता है और वे जिन्दगी में कामयाब होते हैं। दूसरी तरफ जो लोग खुश होने का दिखावा कर रहे होते हैं वे समय के साथ और दिखावा करने लगते हैं। दूसरे शब्दों में, उनकी परेशानी बढ़ जाती है और वे उन बड़ी परेशानियों को छुपाने लगते हैं।

नेगेटिव भावनाओं को समझ कर हम उनके साथ खुशी से रहना सीख सकते हैं। सबसे पहले आप यह देखिए कि किस वजह से आपको गुस्सा आता है या कौन सी चीज़ आपको परेशान कर रही है। इसके बाद आप यह देखिए कि उस वजह से आप कैसे छुटकारा पा सकते हैं या किस तरह उससे समझौता कर सकते हैं। इस तरह से जब आप अपने नेगेटिव ईमोशन के सोर्स को मार देंगे तो वे खुद ही खत्म हो जाएंगी।

भावनाओं को काबू करने का एक अच्छा तरीका है खुद को सहानुभूति देना।
बहुत बार ऐसा होता है कि हम चाहे कितनी भी कोशिश कर लें या फिर कितने भी तरीके आज़मा लें, हमारे अन्दर की नेगेटिव भावनाएं कहीं नहीं जाती। कभी कभी जब हमारा मूड खराब होता है तो लाख कोशिश करने के बाद भी हम उस चीज के बारे में सोचना बंद नहीं कर पाते जिसकी वजह से हमारा मूड खराब हुआ है। 

इसका एक आसान सा हल है - खुद को सहानुभूति देना। खुद को सहानुभूति देने का मतलब है अपनी भावनाओं को ध्यान से सुनकर उन्हें समझने की कोशिश करना। इसका मतलब है खुद को और अपनी कमज़ोरियों को समझना। अगर आप मुश्किल वक्त से गुजर रहे हैं तो खुद को सहानुभूति देने से आप खुद का दुख खुद से बाँट कर, उन्हें समझ कर खुद को राहत पहुंचा सकते हैं। आप यह सोचिए कि आप एक छोटे से बच्चे हैं और फिर आप उस बच्चे के बगल में बैठ कर उसकी परेशानी सुनिए और उससे बात कीजिए।

जो लोग खुद को सहानुभूति देते हैं,वे खुद को पूरी तरह से अपना लेते हैं। वे अपनी गलतियों को और अपनी कमियों को मान लेते हैं और उसे छिपाने की कोशिश नहीं करते। 

2007 में साइकोलॅाजिस्ट डॉक्टर क्रिस्टिन नेफ ( Dr. Kristin Neff ) ने कुछ लोगों को एक झूठे इंटरव्यू में बैठाया। उन्होंने देखा कि जो लोग खुद को सहानुभूति दिखाते थे वे अपनी कमियों के बारे में खुल कर बात कर रहे थे जबकि जो खुद को सहानुभूति नहीं दिखाते थे वे उसे छिपाने की कोशिश कर रहे थे जिससे उनका आत्मविश्वास कम हो रहा था।

खुद से सहानुभूति दिखाना अपनी भावनाओं को काबू करने का एक अच्छा तरीका है।

माइंडफुलनेस की मदद से आप अपनी नेगेटिव भावनाओं से छुटकारा पा सकते हैं।
माइंडफुल होने का मतलब है अपने आस पास की सभी चीजों को और अपने अंदर की हर भावना को बिना अच्छे बुरे का दर्जा दिए अपना लेना। जब आप किसी चीज़ पर अच्छे या बुरे का लेबल नहीं लगाते और वो जैसा है उसे उसी रूप में अपना लेते हैं तो आप खुद को खुद रखने का एक बहुत अच्छा तरीका सीख जाते हैं।

हार्वर्ड की एक स्टडी में कुछ लोगों को माइंडफुलनेस की ट्रेनिंग दी गई और इसके बाद जब उनके दिमाग की जाँच की गई तो उनके दिमाग के तनाव कम करने वाले हिस्से में, मेमोरी के हिस्से में और दूसरे जरूरी हिस्सों में पॅाजिटिव बदलाव आए । इस स्टडी से यह बात साफ हो गई कि माइंडफुलनेस की मदद से आप अपने दिमाग में अच्छे बदलाव कर सकते हैं।

तो अब जब आपने अपने आस पास की चीज़ों को अपना लिया है तब यह देखिए कि वो कौन सी बात है जो आपको परेशान कर रही है। एक बार जब आपको यह बात पता लग जाए तब आप एक कुर्सी के सामने यह एक तकिए को अपने सामने रखकर उसपर अपनी सारी भड़ास निकाल लीजिए। ऐसा के आप अपना मन हल्का कर सकते हैं। ऐसा करने में कभी कभी बहुत मजा आता है और इससे आपका तनाव भी कम हो जाता है।

इस तरह से आप माइंडफुलनेस का इस्तेमाल कर के अपने ध्यान को भटकने से रोक सकते हैं और अपनी भावनाओं को काबू करना सीख सकते हैं। इसकी मदद से आपको यह पता लगेगा कि आखिर किस वजह से वो भावनाएं आपके अंदर आती हैं और किस तरह से आप इन्हें काबू कर सकते हैं।

अपनी जिन्दगी के फैसलों को खुद से लेना सीखिए।
क्या आपके घर वालों ने या आपके आस पास के लोगों ने आप कभी इंजीनियरिंग करने के लिए कहा है? या क्या उन लोगों ने कभी आप से यह कहा है कि आप एक सरकारी नौकरी कर लीजिए ताकि आप अपनी जिन्दगी सुकून से बिता सकें? दूसरे शब्दों में आपने अपनी जिन्दगी के साथ जो कुछ भी किया,क्या वो आपका खुद का फैसला था या फिर आप बस अपने आस पास के लोगों को देखकर वही कर रहे थे जो वे कर रहे थे।

कभी कभी हमारे साथ ऐसा होता है कि हम किसी चीज़ के पीछे भागते हैं और जब वो चीज हमें मिल जाती है तो हम उससे खुश नहीं रहते। इंसानों में दूसरों की नकल करने की आदत होती है। हमारे आस पास के लोग जो भी करते हैं, हम उसकी नकल करने लगते हैं। मान लीजिए आप रास्ते से कहीं जा रहे हों आप देखते हैं कि आपके आस पास के सभी लोग आसमान की तरफ देख रहे हैं। आप भी तुरंत आसमान की तरफ देखने लगेंगे।

इसलिए आप भीड़ को साइड में रखकर खुद अपने फैसले लीजिए। आप तय कीजिए कि आपको क्या करना है और कैसा बनना है। कामयाबी का कोई स्टैंडर्ड नहीं होता। अलग अलग लोग इसे अलग अलग तरह से जानते हैं। 

इसके लिए आप अपने भविष्य में रहने वाले "आप"को एक चिठ्ठी लिखिए। आप लिखिए कि आप कितने खुश हैं कि भविष्य में रहने वाले "आप"ने हमेशा अपने दिल की सुनी जिसकी वजह से उसने वो हासिल किया जिसकी उसे ख्वाहिश थी। आप लिखिए कि आप कितने खुश हैं कि भविष्य में रहने वाले "आप"ने भीड़ के साथ ना चलकर खुद के रास्ते बनाए।

अपने पार्टनर से ईमोशनल बाँडिंग कर के आप अपने रिश्ते को मजबूत बना सकते हैं।
ईमोशनल बाँडिंग का मतलब है भावनाओं के तार जोड़ना। इसका मतलब एक दूसरे की भावनाओं को समझना और उनकी भावनाओं के हिसाब से काम करना। जब आप ऐसा करते हैं तो आप अपने पार्टनर के साथ अपने रिश्ते को मजबूत बनाते हैं।

2004 ड्राइवर और गोथमैन नाम के दो साइकोलॅाजिस्ट ने एक लैब बनाया जहाँ पर उन्होंने बहुत सारे पति-पत्नी के जोड़े को रहने के लिए बुलाया। उन्होंने उन लोगों से कहा कि वे लैब में हमेशा जिस तरह से अपने घर पर रहते हैं उसी तरह से रहें। उन लोगों की सभी हरकतों को कैमरे में रिकार्ड किया जा रहा था।

इस स्टडी में तीन तरह के जोड़े देखने को मिले-:

- वे जो अपने पार्टनर के पसंद-नापसंद की परवाह करते थे और उसके हिसाब से काम करते थे।

-वे जिन्हें अपने पार्टनर के पसंद-नापसंद की कोई परवाह नहीं थी।

- वे जो अपने पार्टनर की पसंद को नापसंद और उसकी नापसंद को पसंद करते थे और कभी समझौता नहीं करते थे।

जब इन तीनों तरह के जोड़ों को 6 साल के बाद देखा गया तो यह पाया गया कि पहले किस्म के पति-पत्नी के रिश्ते समय के साथ और मजबूत हो गए, दूसरे किस्म के पति-पत्नी के रिश्तों में कड़वाहट आ गई और तीसरे किस्म के पति-पत्नी का तलाक हो चुका था।

अपने आप को समय समय पर चुनौती देते रहिए।
जब हम कोई नया गेम डाउनलोड करते हैं तो हम उसे सारा दिन खेलते ही रहते हैं। हम खुद अपना रिकार्ड बनाते हैं और अगले लेवेल में खुद उसे तोड़ने की कोशिश करते हैं। लेकिन एक समय ऐसा आता है जब हम उसे सारे लेवेल पार कर लेते हैं और फिर हम उससे ऊब जाते हैं। इसके बाद, हम उसे डिलीट कर के दूसरा गेम डाउनलोड करते हैं।

इसका मतलब यह हुआ कि अगर आप एक ही काम बार बार काफी वक्त तक करते रहेंगे तो आप उससे ऊब जाएंगे। अगर आप किसी काम के लिए खुद को चैलेंज नहीं करेंगे या फिर कोई काम आपको चैलेंज नहीं करेगा तो आप जल्दी ही अपनी जिन्दगी से भी ऊब जाएंगे। इसलिए यह जरूरी है कि समय समय पर आप कुछ नया करते रहें।

आप कुछ नया करने का, कुछ नया सीखने का या फिर कुछ नया काम शुरू करने का फैसला कीजिए। इससे आपकी जिन्दगी रोमांच से भरी रहेगी और आपको लगेगा कि आप असल में अपनी जिन्दगी जी रहे हैं।

आप किसी काम को ज्यादा देर तक या बार बार मत कीजिए। ना ही आप लगातार नए काम करने के बारे में सोचिए। आप अपने आप को नए हालात में डालिए लेकिन साथ ही कुछ ऐसे भी काम करते रहिए जिसमें आप माहिर हैं। अपनी क्षमता से थोड़ा ज्यादा करने की कोशिश कीजिए लेकिन अपनी क्षमता की सीमाओं से ज्यादा आगे मत जाइए।

आप कोई इंस्ट्रुमेंट बजाना सीख सकते हैं या फिर कोई नई भाषा सीख सकते हैं। या फिर आप अपने काम पर जाते वक्त अपनी आस पास की चीज़ों पर या अपनी हरकतों पर ध्यान देने की आदत डाल सकते हैं।

जब हम अपनी भावनाओं को अच्छे से नहीं समझ पाते तो हम उनके जाल में फँस जाते हैं।
इस सबक की शुरुआत लेखिका की दोस्त एरिक से करते हैं। एरिक तीन बच्चों की मां थी और वो हफ्ते में चार दिन काम करती थी और तीन दिन अपने परिवार को देती थी। उसे दोनों काम संभालना भारी पड़ रहा था लेकिन वो अपने हालात को सुधारने के लिए कुछ नहीं कर रही थी। 

एक दिन उसे बॅास से उससे कहा कि वो अपनी छुट्टी के दिन भी फोन पर अपना काम करे। एरिक जानती थी कि आज उसे घर पर अपने बच्चों को देखना है और अगर वो फोन पर काम करती है तो बच्चों के शोर करने की वजह से वो अच्छे से काम नहीं कर पाएगी। दूसरी तरफ वो अपने बॅास को ना भी नहीं कह पा रही थी।

इसलिए वो टेलीफोन लेकर अलमारी में चली गई ताकि वो शांति से अपना काम कर सके। अलमारी में होने पर उसे एहसास हुआ कि वो अपनी भावनाओं को सही से नहीं समझ पा रही है और ना ही अपने बॅास को उसे सही से समझा पा रही है। इसकी वजह से ही वो अब फँस गई है।

इसलिए उसने हिम्मत जुटा कर अपने बॅास से सारी बात बताई। उसके बॅास ने उसकी समस्या को सुना और समझा। अंत में एरिक फोन रख कर अपने बच्चों के पास चली गई।

इस तरह से आप अपनी भावनाओं को समझ कर उन्हें लोगों सामने जाहिर करने की कोशिश कीजिए जिससे वे आपके साथ उस तरह से रह सकें जैसे उन्हें रहना चाहिए। अगर आप अपनी भावनाओं को छुपा रहे हैं तो आप भी मानसिक परेशानी के शिकार हो सकते हैं।

कुल मिलाकर
भावनाएं का हमारी जिन्दगी में बहुत महत्व होता है। लेकिन कभी कभी जब ये हमारे कंट्रोल में नहीं होती हैं तो हम मुश्किल में फँस जाते हैं या वो कर बैठते हैं जो हमें नहीं करना चाहिए। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि आप अपनी भावनाओं को समझ कर उन्हें काबू कीजिए। भावनाओं को अच्छे से समझ कर आप अपने पार्टनर के साथ अपने रिश्ते को मजबूत बना सकते हैं, रिस्क लेना सीख कर अपनी बोरिंग जिन्दगी को मजेदार बना सकते हैं और साथ ही खुद को पहले से ज्यादा समझ सकते हैं।

 

छोटी बातों को छोड़कर अच्छी बातें कीजिए।

जब अगली बार आप अपने परिवार के साथ बैठकर बातें कर रहे हों तो खुद से सवाल कीजिए कि क्या आप वाकई उनसे घुल-मिलकर बात कर रहे हैं या अपने समय को किसी तरह से बिताने की कोशिश कर रहे हैं। अपने परिवार से बात करते वक्त आप अंदर तक जाइए और हमेशा उनसे घुल-मिलकर बातें कीजिए। आप वो बातें कीजिए जिससे आपको खुशी मिलती हो।


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