Dale Partridge
सिस्टम को तोड़िए, पर्पस के साथ ज़िन्दगी जीने की कोशिश करिए और सक्सेसफुल बन जाइए
दो लफ्ज़ों में
साल 2015 में रिलीज़ हुई किताब ‘People Over Profit’ पास्ट, प्रेजेंट और फ्यूचर को लेकर किसी गाइड से कम नहीं है. इस किताब के चैप्टर्स में बताया गया है कि कोई भी कंपनी एविल कंपनी कैसे बन जाती है? इसी के साथ-साथ आपको इस किताब की समरी को सुनने के बाद सक्सेसफुल बनने का मंत्र भी मिलने वाला है. अगर आप भी अपने बिजनेस या आईडिया को सफलता की उचाईयों में लेकर जाना चाहते हैं. तो फिर इस किताब को आपके लिए ही लिखा गया है.
ये किताब किसके लिए है?
- ऐसा कोई भी जिसे सोशल रेस्पोंस्बिलिटी में इंटरेस्ट हो
- बिजनेस स्टूडेंट्स
- ऐसे बिजनेस मैन जो अपने बिजनेस को एथिकल पाथ में ले जाना चाहते हों
लेखक के बारे में
इस किताब के लेखक ‘Dale Partridge’ हैं. ये ब्रांडिंग, कंजयूमर साइकोलॉजी और बिजनेस ट्रेंड्स के एक्सपर्ट माने जाते हैं. ‘Sevenly.org’और ‘StartupCamp.com’ जैसी कम्पनियों के ये फाउंडर भी हैं.कोई भी कारपोरेशन शुरू से अच्छा या बुरा नहीं होता है,वो बस अलग-अलग फेज़ से गुज़रता है
अपनी लाइफ के कुछ सेकंड्स निकालकर सोचिये कि ऐसी कौन सी कम्पनियां हैं? जिन्हें आप पसंद नहीं करते हैं. उन कम्पनियों को देखकर आपको लगता होगा कि ये कम्पनियां समाज के लिए सही नहीं हैं. लेकिन इसके कई कारण हो सकते हैं कि कोई भी कंपनी किसी को क्यों पसंद नहीं आ रही है? इस समरी में इसी पहलू के ऊपर रौशनी डाली गई है कि कैसे कोई भी कंपनी खराब हो जाती है? इसी के साथ ये भी बताया गया है कि हम कैसे अपनी कंपनी को खराब होने से बचा सकते हैं. ये भी सच है कि कोई भी कंपनी कंजयूमर की नजर में खराब नहीं बनना चाहती है.
तो चलिए शुरू करते हैं!
कोई भी कारपोरेशन शुरू से अच्छा या बुरा नहीं होता है,वो बस अलग-अलग फेज़ से गुज़रता है।
आप भले ही फ़ूड से फैशन इंडस्ट्री की तरफ देखिए, या फिर टेक्सटाइल से मीडिया इंडस्ट्री की तरफ, हर तरफ आपको लालच नजर आएगा. आपको फिर एहसास होगा कि कैपिटलिज्म कितना लालची हो चुका है. हम लोगों में से कई लोगों ने इस सीनेरियो को एक्सेप्ट कर लिया है. लेकिन क्या कभी आपके मन में ख्याल आया है कि कम्पनियां ऐसी क्यों हो गई हैं?
हाँ, ये भी सच है कि कारपोरेशन प्रॉफिट कमाने के लिए अपनी इंटेग्रिटी को बेच दी हैं. जैसे-जैसे पूंजीवाद में बढ़त देखने को मिल रही है. वैसे-वैसे ही कारपोरेशन की इंटेग्रिटी भी कम होती जा रही है. ऐसी बहुत कम कारपोरेशन बची हुई हैं. जिन्होंने अपनी ईमानदारी को बचाकर रखा हुआ है. ये कहना भी गलत नहीं होगा कि आप उन कारपोरेशन को उँगलियों में गिन सकते हैं. लेकिन इस सच्चाई से भी कोई भी मुहं नहीं फेर सकता है कि कोई भी कंपनी का जन्म उसे अच्छा या बुरा नहीं बनाता है. सभी कारपोरेशन एक सर्कल में फंसकर अच्छे और बुरे का रास्ता ढूंढ़ते हैं.
ऐसा देखा गया है कि कई सारी बुरी कम्पनियां अपने शुरूआती दिनों में इंडस्ट्री की लीडर्स रहती हैं. लेकिन फिर धीरे-धीरे सीनेरियो बदलने लगते हैं. कई कम्पनियों का ध्यान भटक जाता है. इसके लिए आप मैक डोनल्ड जैसी कंपनी का एग्जाम्पल ले सकते हैं. ये कंपनी सर्विस में साल 1950 से है. कंपनी का मोटो हुआ करता था “बिलीव इट ऑर नॉट” क्वालिटी, सर्विस, क्लीनलिनेस और वैल्यू.
ये सच भी है कि कंपनी ने क्वालिटी को अपने साथ रखा है. शायद यही वजह भी है. जिससे इस ब्रांड को इतनी ज्यादा सफलता मिली है. लेकिन आज का समय बदल चुका है. पिछले कुछ सालों से इस कंपनी में कई सारे स्कैंडल हो चुके हैं. कई कस्टमर ने कम्पनी के प्रोडक्ट और सर्विस के ऊपर सवाल भी उठाया है. कई लोगों ने तो खुद के वजन बढ़ने के पीछे कंपनी के बर्गर को ज़िम्मेदार ठहराया है.
आखिर ऐसा क्या हुआ है? अगर आप भी इस कंपनी की केस स्टडी करेंगे तो पता चलेगा कि ये भी उसी साइकिल का शिकार हुई है. जिस सर्कल की बात हमने स चैप्टर के मिडिल में की है. ऐसा कई केस में देखा गया है कि कम्पनियां अपने शुरूआती दौर में बहुत अच्छा कर रही होती हैं. लेकिन कुछ सालों के बाद उनकी परफॉरमेंस में फर्क पड़ने लगता है. ऐसा इसलिए ही होता है कि कंपनी को लगने लगता है कि अब तो उन्हें सफलता मिल गई है.
इसलिए कहा भी गया है कि विश्वास को अतिआत्मविश्वास में बदलने नहीं देना चाहिए. खुद के ऊपर विश्वास रखिए लेकिन ओवर कांफिडेंस से बचने की कोशिश करिए.
मैक डोनल्ड के केस को हम इस तरह भी देख सकते हैं. हमें समझना चाहिए कि मैक डोनल्ड अभी खत्म नहीं हुई है. उनके पास अभी भी काफी ज्यादा कस्टमर बेस है. वो अपनी पुरानी प्रतिष्ठा को वापस भी पा सकते हैं. लेकिन उसके लिए कंपनी को अपने ऊपर काफी ज्यादा काम करना पड़ेगा. कंपनी को अपने प्रोडक्ट की क्वालिटी के ऊपर काम करना पड़ेगा. कंपनी जनता का विश्वास अपनी सर्विस को बेहतर करके भी जीत सकती है.
ऐसा अक्सर देखा गया है कि-“कंपनियां अपने चक्र की शुरुआत ईमानदार और कुशल होकर करती हैं”
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि कम्पनियां सर्कल से होकर गुज़रती हैं. इसलिए कहा गया है कि कोई भी कंपनी शुरूआती दौर से ना ही अच्छी होती है और ना ही बुरी होती है. आप आज के समय में जिस कारपोरेशन से सबसे ज्यादा नफरत करते होंगे. वो भी शुरूआती दौर में इतनी बुरी नहीं थी. बल्कि ऐसा हो सकता है कि कंपनी की जब शुरुआत हुई हो. तब वो काफी ईमानदार रही हो. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि अधिकाँश कंपनी का फर्स्ट स्टेज ऑनेस्ट स्टेज कहलाता है. इस बात को इस तरह से भी समझ सकते हैं. आप नई कंपनी को एक छोटे से नवजात बच्चे की तरह भी देख सकते हैं. नई कंपनी भी बच्चे की ही तरह होती है. मासूम सी दिखने वाली कंपनी कब बुरी बन जाती है. किसी को भी पता नहीं चलता है.
अधिकत्तर कम्पनियां अपने पहले साल में बुरी नहीं बनती हैं. इसके पीछे एक बड़ा रीजन ये भी रहता है कि तब उनके पास बुरा बनने का स्कोप भी नहीं रहता है. अपने फर्स्ट ईयर में कस्टमर की नज़रों में अच्छा बनना रहता है. उनके सामने टारगेट रहता है कि वो किसी भी तरह मार्केट में अपनी जगह बनाएं.
1903 में लॉन्च हुई फोर्ड मोटर कंपनी का एग्जाम्पल लेते हैं. जब ये कंपनी आई थी तो इसने कर्मचारियों को कई सुविधा दी थी. इसने सभी के लिए इंश्योरेन्स भी करवाया था. कम्पनियों के लिए दिक्कत ये आ जाती है कि जैसे-जैसे बिजनेस बड़ा होता जाता है. ईमानदारी पर टिके रहना मुश्किल होता जाता है. फोर्ड के एग्जाम्पल पर लौटते हैं. कंपनी को 50 सालों से ज्यादा का समय हो गया है. लेकिन आज भी कंपनी अपने कर्मचारियों का ध्यान रखती है. अब कंपनी अपने प्रोडक्शन पर भी ध्यान देने लगी है. क्योंकि बिना बिजनेस में आगे रहे हुए आप अपनी कंपनी को चला नहीं सकते हैं.
फ़ूड इंडस्ट्री में भी काफी तकनीकी इनोवेशन देखने को मिल रहे हैं. जैसे कि जेनेटिकिल मॉडिफिकेशन, एंटी बायोटिक का इस्तेमाल करना. लेकिन इस तरह की प्रैक्टिस से कई बार फ़ूड नुकसान दायक भी साबित हो रहे हैं. इसलिए हमें याद रखना चाहिए कि फ़ूड को एफ़ीसिएंट बनाने के लिए हम ओरिजिनल गोल से भटक नहीं सकते हैं. आगे की कहानी को हम अगले चैप्टर में समझने की कोशिश करेंगे.
कंपनियां अंततः धोखेबाज बन जाती हैं, फिर इसके लिए माफी मांगने की कोशिश करती हैं।
शुरूआती दौर में कम्पनियां सही से चलती रहती हैं. लेकिन धीरे-धीरे समय में बदलाव आता जाता है. एक दूसरा ईरा आता है. इसे डिसेपटिव ईरा कहते हैं. इस ईरा में कंपनी का डार्क साइड देखने को मिलता है.
ये अधिकत्तर तब देखने को मिलता है. जब कम्पनियां अपने प्रोडक्शन को रिलोकेट करने के बारे में सोचती हैं. ऐसा तब भी देखने को मिलता है जब वो डेवलपिंग कंट्री में बिजनेस करने के बारे में सोचती हैं.
इसके बाद वो भ्रामक एड्स का सहारा लेने लगती हैं. गलत एडवरटाईज़मेंट करवाने लगती हैं.
उदाहरण के लिए हम फिर से फोर्ड मोटर के पास चलते हैं. 1970 के दौर तक कंपनी अपने वैल्यूज के साथ चल रही थी. सभी कुछ बेहतर तरीके से चल रहा था. लेकिन फिर कंपनी ने Ford Pinto नाम की गाड़ी लॉन्च की थी. गाड़ी में शुरू से ही कुछ तकनीकी खामियां थीं. जिसे ज़िन्दगी के लिए भी खतरनाक माना जा सकता था. लेकिन कंपनी ने गोल्बल फैसला लेते हुए कार को वापस नहीं माँगा. बल्कि उन्होंने एक सस्ता रास्ता अपनाया, कंपनी ने कोर्ट केस लड़ना सही समझा.
इस तरह के फैसले से कंपनी को फाइनेंशियल दिक्कत तो हुई ही थी. कंपनी के ऊपर से कस्टमर का विश्वास भी बहुत ज्यादा कम हो गया था.
इसके बाद माफ़ी के दौर की शुरुआत होती है. कंपनी को एहसास होता है कि उसने लालच में बहुत गलत कर दिया है. इसलिए इसे समझने के लिए आप एक बार फिर से इस चैप्टर की हेड लाइन को ध्यान से पढ़ने की कोशिश करिए.
ऑनेस्ट बिजनेस में कस्टमर या फिर सच्चाई के विरोध में नहीं खड़ा हुआ जाता है
अच्छी खबर भी है, वो क्या है? वो ये है कि आप ईमानदारी से भी बिजनेस कर सकते हैं. ऐसा कई कम्पनियां और कारपोरेशन करते भी हैं.
इसके लिए 7 बिलीफ सिस्टम है, जिसको आपको फॉलो करना चाहिए.
फर्स्ट बिलीफ है- लोगों की इज्ज़त करिए- इसके लिए आपको याद रखना चाहिए कि कंपनी लोगों से बनती है. कोई भी कंपनी तभी तक टिकी रह सकती है. जब तक लोगों का विश्वास उसके ऊपर है.
इसकी शुरुआत आप टीम मेम्बर्स से कर सकते हैं. आपकी टीम में जितने भी लोग हैं. सबको ऐसा लगना चाहिए कि इस कंपनी को उनकी ज़रूरत है. किसी को भी ऐसा नहीं लगना चाहिए कि कंपनी में उसकी इज्जत नहीं है. इसलिए कहा गया है कि अपने कर्मचारियों का ध्यान कंपनी को सबसे पहले रखना चाहिए.
अगला नम्बर कस्टमर का आता है. याद रखिए कि आपके बिजनेस के लिए कस्टमर ही भगवान है. इसलिए उनकी वैल्यू आपको खुद से भी ज्यादा करना है. कस्टमर सर्विस किसी भी बिजनेस को जीरो से हीरो बना सकता है.
फाइनली वेंडर्स का ख्याल रखना भी आपकी ही ज़िम्मेदारी है.
सेकंड कोर बिलीफ क्या है? वो है- “ट्रुथ मैटर्स”
अपने बिजनेस को सच्चाई के साथ आगे लेकर जाने की कोशिश करिए. कभी भी झूठा विज्ञापन नहीं लगवाइएगा. आप कस्टमर से उसी चीज़ का वादा कर सकते हैं. जिसे आप उनके लिए उपलब्ध करवा सकें.
याद रखियेगा कि झूठे वादों से विश्वास टूट जाता है. एक बार का टूटा हुआ विश्वास फिर दोबारा नहीं जन्म ले सकता है.
अपने बिजनेस को ईमानदारी से आगे लेकर जाने के लिए आपको पारदर्शी यानी ट्रांसपैरेंट बनना ही होगा. शुरूआती दौर में ये आपके लिए काफी ज्यादा कठिन हो सकता है. लेकिन धीरे-धीरे आपको इसकी अहमियत का एहसास होने लगेगा.
फुल ट्रांसपैरेंसी को अपनाने का मतलब होता है कि आपने खुद को फ्री कर दिया है. ऐसा करने से आपके अंदर कई खूबियों का भी जन्म होता है. उसी में से एक है कि आपको नए-नए नज़रिए भी मिलने लगते हैं.
ऐसा करने से आपके कस्टमर का भी भरोसा आपकी कंपनी के ऊपर बढ़ जाता है.
फुल ट्रांसपैरेंसी लाने के बाद आपको क्या करना है?
इसके बाद आपको अथेंटिक होना है. अथेंटिक होने से क्या मतलब है? इससे मतलब बस इतना सा है कि आपकी कंपनी जो वादा कर रही है. क्या वही पूरा भी कर रही है? इसका ध्यान आपको ही रखना है. इसके लिए आप खुद को ईमानदारी से रेटिंग भी दे सकते हैं.
इसके लिए आप खुद को कस्टमर की जगह में रखकर सोच सकते हैं. अगर आप कस्टमर होते तो क्या आप इस सर्विस और प्रोडक्ट की क्वालिटी से खुश होते?
अथेंटीसिटी के बाद अब नम्बर आता है उदारता का-
बहुत से लोग ऐसा मानते हैं कि-‘आज के समय में बिजनेस करते समय उदारता नहीं दिखाई जा सकती है.’
लेकिन एक बात ये भी सच है कि आप सिर्फ और सिर्फ प्रॉफिट के लिए भूखे नहीं हो सकते हैं. अगर आप ऐसा करेंगे तो फिर आप कस्टमर को निराश कर देंगे. इसलिए बहुत ज़रूरी है कि आप बिजनेस करते समय थोड़ी सी उदारता भी अपने पास रखने की कोशिश करियेगा.
आज के समय में लोग बस ब्रांड खरीदना नहीं चाहते हैं. वो ब्रांड वैल्यू की खरीददारी करना चाहते हैं.
क्वालिटी और सर्विस ग्राहकों के साथ संबंध बनाएगी, और साहस आपको आगे बढ़ाएगा
दो ऐसी कोर वैल्यूज होती हैं. जिनकी ज़रूरत हर एक कंपनी को होती है. कौन सी होती हैं वो कोर वैल्यूज?
पहली- हाई क्वालिटी के प्रति कमिटमेंट, अगर आपकी कंपनी इसे पा लेती है. तो फिर आपको एक एज मिल जाता है. जिसकी मदद से आप अपने सेक्टर के लीडिंग खिलाड़ी बन सकते हैं. जब आप हाई क्वालिटी प्रोडक्ट बनाते हैं. तो इसका मतलब साफ़ होता है कि आपकी कंपनी कस्टमर की भावनाओं की कद्र करती है. हाई क्वालिटी से ही क्रेडिबिलिटी का भी जन्म होता है. इसलिए किसी भी बिजनेस में क्वालिटी का महत्त्व काफी ज्यादा होता है.
एग्जाम्पल के लिए खुद के बारे में सोचिये, जब भी आप किसी भी रेस्तरां में खाना खाने जाते हैं. तो फिर आपको किसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है? वो है क्वालिटी ऑफ़ फ़ूड, आपको बाद में यही याद रहता है कि उस रेस्त्रां का खाना कैसा था? खाने के टेस्ट के आधार पर ही आप अपना ऑनलाइन रिव्यु भी देते हैं.
क्वालिटी सर्व करते समय हो सकता है कि आपको प्राइज़ बढ़ाने पड़ें या फिर ऐसा भी हो सकता है कि आपको कम प्रॉफिट मिले. जो कुछ भी हो लेकिन मैटर तो कस्टमर की नजर में क्वालिटी ही करती है. इसलिए बिजनेस करते समय क्वालिटी के ऊपर ध्यान देना बंद नहीं करना चाहिए. इसलिए अब ये सवाल आपको खुद से पूछना है कि आप कस्टमर को सस्ती और गंदी चीज़ देना चाहते हैं. या फिर आप कस्टमर के दिल में राज़ करना चाहते हैं. दिल में राज़ करने का एक ही तरीका है. वो ये है कि आप उन्हें बेहतर से बेहतर क्वालिटी सर्व करने की कोशिश करियेगा. जितनी अच्छी क्वालिटी आपके प्रोडक्ट की होगी. उतना ही बेहतर आपके बिजनेस का भविष्य होगा.
ऑनेस्ट कम्पनियों को फीयर्स का सामना करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए. उन्हें अपनी जर्नी में कई तरह के फीयर्स का सामना करना पड़ेगा. ये फियर ऑफ़ चेंज भी हो सकता है. ये फियर ऑफ़ फेलयोर भी हो सकता है. ये अपनी पॉलिसीस को बदलने का डर भी हो सकता है. लेकिन आपको एक सफल बिजनेस को चलाने के लिए इन सब डरों का सामना तो करना ही पड़ेगा. याद रखिएगा कि डर का मजबूती से सामना करने के बाद ही असली पर्सनालिटी का पता चलता है. इसके बाद ही आपकी कंपनी का असली करैक्टर डेवलप होगा.
कई इनोवेशन करते समय आपको फेल होने का डर होगा, लेकिन उस समय इनोवेशन करने से पीछे मत हटियेगा. याद रखिएगा कि एप्पल जैसी कंपनी भी अपने इनोवेशन में फेल हो चुकी है. इसलिए फेल होने को ही अपनी शक्ति के रूप में देखने की शुरुआत कर दीजिए.
बदलाव की शुरुआत हो चुकी है, खुद को उस बदलाव के लिए तैयार करने का समय आ गया है. अब तक हमें समझ में आ गया है कि आखिर करना क्या है? ये भी पता चल गया है कि कैसे करना है? हमें बस गुड से बैड बनने के क्रम को तोड़ना है. अब तक हम जान चुके हैं कि कस्टमर की उपयोगिता क्या होती है? इसका मतलब साफ़ है कि अब हमें खुद की वैल्यू के बारे में भी पता चल चुका है. रिसर्च में सामने आया है कि हर अमेरीकी मार्केट में साल भर में 50 हज़ार डॉलर से भी ज्यादा खर्च करता है. इससे आप कस्टमर के स्वभाव का अंदाजा लगा सकते हैं. इससे आपको उसकी ताकत के बारे में भी पता चल गया होगा.
अगर ये पैसा ऑनेस्ट ईरा में ही कम्पनियों को मिलने लगे, तो फिर उन्हें चीट करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी.
इसलिए लेखक कहते हैं कि वो समय आ गया है कि आप जिस तरह का बदलाव देखना चाहते हैं. उस तरह के बदलाव को करने की कोशिश शुरू कर दीजिए. खुद की कंपनी के अंदर बदलाव लेकर आइए, आपको देखकर काफी सारी कम्पनियां बदल जाएँगी.
सोशल रेस्पोंस्बिलिटी को समझने की कोशिश करिए. आपकी कंपनी का सामाज के प्रति ईमानदार होना बहुत ज़रूरी है.
कुल मिलाकर
कैपिटलिज्म की कहानी बस गुड और बुरे की नहीं है. ये कहानी उससे भी आगे की है. आपको सोचना चाहिए कि कोई भी कंपनी शुरू होने के बाद अचानक बेईमान कैसे हो जाती है?
क्या करें?
क्वालिटी प्रोवाइड करने के लिए अपने कानों को खुले रखने की कोशिश करिए. अपने प्रोडक्ट के बारे में कस्टमर से रिव्यु लेना मत भूलिएगा. याद रखिएगा कि-“जनता ही आपकी जनार्दन है.”
येबुक एप पर आप सुन रहे थे People Over Profitby Dale Partridge
ये समरी आप को कैसी लगी हमें yebook.in@gmail.comपर ईमेल करके ज़रूर बताइये.
आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे.
अगर आप का कोई सवाल, सुझाव या समस्या हो तो वो भी हमें ईमेल करके ज़रूर बताएं.
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