Chris Voss and Tahl Raz
ऐसे नेगोशिएट करें, जैसे आपकी जिंदगी इस पर डिपेंड करती हो
दो लफ्जों में
नेवर स्प्लिट द डिफरेंस (2016), मोलभाव के लिए एक गाइड है. क्रिस वॉस के एफबीआई एक्सपीरियंस के आधार पर, लेखक सलाह देते हैं कि किसी भी चीज़ में कामयाबी हासिल करने के लिए कैसे बातचीत की जाए. चाहे वह घर हो, ऑफिस हो या फिर कोई झगड़ा हो.
किनके लिए है
- लीडर्स और मैनेजर्स के लिए
- कोई भी जो मार्केट में जॉब कर रहा हो या अपनी सैलरी बढ़वाना चाहता हो
- हर शख्स के लिए जिसके पास पार्टनर और फ्रेंड्स हों
लेखक के बारे में
क्रिस वॉस एक पूर्व एफबीआई वर्कर हैं, जो अपने काम के दौरान किडनैपर्स से नेगोशिएट करते थे. हर तरह के क्रिमिनल्स से नेगोशिएट करने का, उनका सालों का एक्सपीरियंस उन्हें इस फील्ड में एक्सपोर्ट बनाता है. वह नेगोशिएशन कंसलटेंसी 'द ब्लैक स्वान ग्रुप' के फाउंडर और एक प्रोफेसर हैं, जिसने यूनिवर्सिटी ऑफ हावर्ड से लेकर एमआईटी के मैनेजमेंट स्कूलों तक नेगोशिएशन के कोर्सेस पढ़ाए हैं.
तह्ल(tahl) रज़ एक जर्नलिस्ट है और उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स की बेस्ट सेलिंग किताब 'नेवर ईट अलोन' को-लेखक की है.
नेगोशिएशन जिंदगी के हर पहलू का हिस्सा है, तर्क और अकलमंदी के अलावा भी बहुत सारी कारगर चीजें हैं.
क्या आप कभी अपने पार्टनर को नए रेस्टोरेंट चलने के लिए मनाने, कार सेल्समैन को बेहतर डील दिखाने के लिए मनाने और अपने क्लाइंट से बिजनेस एग्रीमेंट साइन करवाने में नाकाम हुए हैं? आमतौर पर हममें से ज्यादातर लोग सामने वाले को कन्वेंस नहीं कर पाते. चाहे हम कितनी कोशिश कर ले, हम नजरअंदाज कर दिये जाते हैं.
ऐसा इसलिए है क्योंकि हम सही से नेगोशिएट नहीं करते.समरी इसी के बारे में हैं. आप एफबीआई के इंटरनेशनल किडनैपिंग नेगोशिएटर, क्रिस वॉस से नेगोशिएशन के सीक्रेटस जानेंगे. इसमे आप जानेंगे कि कौन सा इमोशन आपके लिए सबसे मजबूत हथियार है? नेगोशिएट करते वक्त किस तरह की आवाज का इस्तेमाल करना चाहिए, औरकैसे लेबलिंग जिंदगियां बचा सकता है?
तो चलिए शुरू करते हैं!
लोग सोचते हैं कि नेगोशिएशन लॉयर और कॉर्पोरेशन बोर्ड जैसे लोगों का काम है, लेकिन हकीकत यह है, कि हम अपनी जिंदगी के हर पहलू में नेगोशिएट करते हैं. दूसरी तरह कहा जाए तो हॉस्टेज सिचुएशन में, जैसे कि किसी की किडनैपिंग वगैरह हो जाए, डील करते हुए पुलिस नेगोशिएट करती है, हम ऑफिस में, घर पर अपने पार्टनर्स और बच्चों के साथ नेगोशिएट करते हैं.
आसान शब्दों में नेगोशिएशन का मतलब है, किसी भी काम को अपनी शर्तों पर करना या कराना है, कोई खास नतीजा हासिल करने के मकसद से किए जा रहे इंटरेक्शन और कन्वर्सेशन को नेगोशिएशन कहते हैं. जब दो या उससे ज्यादा लोग एक दूसरे से कुछ चाहते हैं, तो नेगोशिएशन किया जाता है.
नेगोशिएशन बहुत सारे लोगों की सोच से भी ज्यादा कॉमन है, लेकिन कामयाब नेगोशिएशन कैसे किया जाए?
यह मैथमेटिकल लॉजिक्स और इंटेलेक्ट से कहीं ज्यादा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इंसान हर वक्त अकलमंदि से काम नहीं करता वह अक्सर लॉजिक और रीजन के बिना पर काम करने में नाकामयाब हो जाता है. इससे भी ज्यादा यह कि इंसान हमेशा प्रिडिक्टेबल नहीं होता. लोग अक्सर अड़ियल बिहेव करते हैं, जोकि नासमझी भरा, अचानक और थोड़ा वाइल्ड होता है.साइकोलॉजिस्ट डेनियल और इकोनॉमिस्ट एमॉस ने सालों की स्टडी के बाद कुछ यही पाया. उनके रिसर्च ने नेगोशिएशन के बारे में बर्सों से चली आ रही धारणा यानि सोच को बदल दिया. कुछ ऐसे.
जब 1970 में नेगोशिएशन को एक फील्ड के तौर पर डिफाइन किया गया, तब यह इस असम्पशन पर बेस्ड था कि हर शख्स अपने एडवांटेज के लिए अकलमंदी से पेश आएगा. टवर्सकी और कान्हमेन ने अपनी रिसर्च में पाया कि इंसान कॉग्नेटिव बायस होता है, जो उसे अनकॉन्शियसली नासमझ बनाता है.
उन्होंने फ्रेमिंग इफेक्ट सहित 150 तरह के बायस के बारे में पता लगाया, मतलब जब एक जैसे ऑप्शंस में से हिना होता है, तो लोग अलग तरह के ऑप्शन चुनते हैं, इस आधार पर कि किस तरीके से ऑप्शंस फ्रेम किए गए हैं.दूसरी तरह कहा जाए तो सक्सेसफुल नेगोशिएटर बनने के लिए आपको इंसान के कांपलेक्स नेचर को समझना होगा.
सक्सेसफुल नेगोशिएशन का मतलब यकीन जीतना और इंफॉर्मेशन हासिल करना है.
अच्छा नेगोशिएटर मोलभाव करते वक्त जानकारी हासिल करने पर फोकस करता है चाहे वह सिचुएशनशन के बारे में हो या जिससे नेगोशिएट किया जा रहा उसके बारे में के बारे में. इस दौरान बहुत सारी जानकारियां बाहर आती हैं. इसमें नाकामी का मतलब सामने वाले की शर्तों के सामने झुक जाना है.
मिसाल के तौर पर आप नहीं जान पाएंगे कि बंदी बनाने वाला टेररिस्ट क्या चाहता है और वह कैसे विहेव करेगा, हालांकि आपको बताया गया है कि उसके पास हथियार नहीं है लेकिन उसके पास हथियार हो सकते हैं. वह आप को गुमराह करने के लिए गलत जानकारियां भी दे सकता है.
ऐसा ही एक हादसा 1993 में हुआ जब लेखक को मैनहैटन बैंक में रोबरी के बाद नेगोशिएट करना पड़ा, जहां 3 लोगों को बंदी बना लिया गया था, दो बैंक टेलर और एक सिक्योरिटी गार्ड. रॉबरी करने वाले ने एफबीआई एजेंट को बताया कि वह 4 लोग हैं जबकि वह अकेला था और उसके पार्टनर्स ने अभी-अभी एटीएम लूटा था और वो लोगों को बंदी बनाकर पूरा बैंक लूटने आया था. इस हादसे को याद करके लेखक को एहसास हुआ कि चोर उन्हें और उनके साथियों को गुमराह कर रहा था ताकि उसे भागने का प्लान बनाने के लिए वक्त मिल जाए.
जानकारी सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट है इसके लिए आपको सामने वाले के साथ एक फ्रेंडली रिलेशन बनाना होगा. इसलिए नेगोशिएशन का एक मकसद सामने वाली पार्टी से खूब बातें कराना होता है. ऐसे में आप समझ पाएंगे कि सामने वाला क्या चाहता है या उसे किस चीज की जरूरत है.कोई भी आपको जानकारी तब तक नहीं देने वाला जब तक वह आप पर भरोसा नहीं करता इसलिए एक फ्रेंडली रिलेशन जरूरी है. अगर आप ऐसा कर लेते हैं, तो यकीन दिला कर आप सामने वाले से इंपॉर्टेंट जानकारियां उगलवा सकते हैं.
लेकिन फ्रेंडली रिलेशन कैसे बनाएंगे?ध्यान से सुनना और सामने वाले की बात को दोहराना, यकीन जीतने में मददगार साबित हो सकता है। जैसा कि आप जानते हैं यकीन सबसे ज्यादा इंपोर्टेंट है, लेकिन इसे कैसे हासिल किया जाए?
सबसे बेहतरीन तरीका ध्यान से सुनना है मतलब सिंपैथी देना और दिखाना कि आप सामने वाले की तकलीफ समझ सकते हैं. बहुत सारी टेक्निक्स हेल्पफुल हैं.पहले तरीके को मिररिंग कहते हैं, मतलब सामने वाला जो भी कहे उसकी बात को दोहराना मगर थोड़ा क्यूरियस टोन में. मैनहैटन बैंक रॉबरी को ले लीजिए. फोन कॉल पर चोर बार-बार गाड़ी की मांग कर रहा था, उसने बताया कि उसके ड्राइवर के भाग जाने की वजह से उसकी अपनी गाड़ी भी नहीं है.
यह सुनकर लेखक ने उसकी बात को दोहराया और कहा, "क्या तुम्हारे ड्राइवर का पीछा किया गया था"? जिसके जवाब में उसने बताया नहीं मौका ए वारदात पर पुलिस के आते ही वह भाग गया था. लेखक ने यह जानकारी पकड़ ली, साथ ही मिररिंग के जरिए और भी बहुत सारी जानकारियां उगलवा ली जिसने ड्राइवर को पकड़ने में एफबीआई और एनवाईपीडी की मदद की.लेकिन मिररिंग इतना कारगर क्यों है?
क्योंकि इससे सामने वाले को एहसास होता है कि आप उसके जैसे ही हैं. आखिरकार आपके सामने वाला इंसान हैं और एक जैसे होने के झांसे में आ ही जाएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि जानवरों की तरह इंसान भी अपने जैसी खासियत रखने वाले लोगों के साथ रहना पसंद करता है. ऐसा करने से यकीन पैदा होता है. नेगोशिएशन में यह बहुत पावरफुल है, जब सामने वाला आप पर यकीन करने लगता है, तो वह ज़्यादा से ज़्यादा बात करके हल निकालना चाहता है.
इस तरीके को साइंटिफिकली टेस्ट करने के लिए साइकोलॉजिस्ट, रिचर्ड वाइसमैन ने एक एक्सपेरिमेंट किया, जिसमें वेटर्स को कस्टमर का ऑर्डर लेना था. वेटर के एक ग्रुप को मिररिंग का इस्तेमाल करने के लिए कहा गया जबकि दूसरे ग्रुप को "नो प्रॉब्लम", "ग्रेट" जैसे पॉजिटिव सेंटेंस. नतीजतन मिररिंग का तरीका अपनाने वाले वेटर्स को दूसरे वेटर्स के कंपैरिजन में 70% ज्यादा टिप मिली.
नेगोशिएशन में आपके आवाज की टोन कमाल कर सकती है.
क्या आप कभी किसी से उसके कुछ कहने पर नहीं बल्कि कहने के तरीके पर नाराज हुए हैं?
इसके पीछे वजह है इंसान की आवाज का पावरफुल होना, इंसान की आवाज इतनी पावरफुल है कि यह किसी भी नेगोशिएशन को कामयाब कर सकती है. मिसाल के तौर पर, अगर सामने वाला अपसेट या नर्वस हो जाता है, तो उससे गहरी और सॉफ्ट आवाज़ में बात करें जिसे और लेखक लेट नाइट एफएम डीजे वॉइस कहते हैं. धीमे बोलने और रिअश्योर करने से सामने वाले पर गहरा असर पड़ता है.
यह सारी चीजें उसे कंफर्टेबल करती है, ऐसे में उसके द्वारा इंफॉर्मेशन शेयर किए जाने के चांसेस बढ़ जाते हैं. बैंक डकैती के नेगोशिएशन के दौरान एक वक्त के बाद लेखक को अपने कलीग, जो और रॉबर के बीच में हो रही कम्युनिकेशन को टेकओवर करना पड़ा. लेखक ने रॉबर को डिस्टर्ब ना करने के लिए, उसे गहरी और शांत आवाज ने बताया कि अब जो नहीं, मैं बात करूंगा. इस बात को इतनी शांत लहजे में आगे रखा कि रॉबर हिला भी नहीं.
कहा जा सकता है कि बहुत सारी सिचुएशन में अलग-अलग टोन की ज़रूरत पड़ती है जैसे कि पॉजिटिव या प्लेफुल आवाज. इन आवाजों से समझा जाता है कि आप सिंपैथेटिक और बात को समझने वाले हैं, आवाज सिचुएशन को पॉजिटिविटी की तरफ ले जाती और कन्वर्सेशन को आगे बढ़ाती है.अगर आप बात करते वक्त स्माइल करते हैं, तो अपने आप सॉफ्ट आवाज निकलेगी. चाहे आपके सामने वाला आपकी इस्माइल ना देख पाए लेकिन यह आपकी आवाज से पता चल जाता है.
इस्तांबुल में छुट्टियां बिताने के दौरान लेखक का एक कलीग मसाला मार्केट में अपनी गर्लफ्रेंड द्वारा किए जा रहे मोल भाव और ज्यादा से ज्यादा कीमत कम करा लेने की काबिलियत देख शॉक्ड रह गया. उसने एहसास किया कि उसकी गर्लफ्रेंड हमेशा बेहतर कीमत के लिए नेगोशिएट करती है लेकिन यह काम वह प्लेफुल और पॉजिटिव आवाज में करती है. व्यापारी, बेहतरीन बारगेनर्स होने के बावजूद, बेहतर डील देने की रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर लेते. जब आप मार्केट या किसी स्टोर में हो तो खुद भी इसे ट्राई कीजिए.
नेगोशिएशन के दौरान अपने आप को असरदार बनाने के लिए सामने वाले के इमोशंस को समझिए. साइकोथेरेपी में पेशेंट के इमोशन को समझकर ही प्रोग्रेस की जाती है. नेगोशिएशन में भी ऐसा ही है.
इमोशंस को इग्नोर करने के बजाए, अपने फायदे के लिए उन्हें सिंपैथी से जोड़ना होगा. हालांकि सहानुभूति रखने का यह मतलब नहीं है कि आप सामने वाले के हर बात में हामी भरें. इसका सीधा सा मतलब सामने वाले के नजरिए को समझना है. प्रैक्टिकल एंपैथी इसी के बारे में है, इसका मतलब सामने वाले के नज़रिया को समझने की अपनी कोशिश का इस्तेमाल अपने आपको नेगोशिएशन में असरदार बनाने के लिए करना है.
ऐसा करने की टेक्निक को लेबलिंग कहते हैं. इसमें आप सामने वाले को बताते हैं कि आप उसके हालात और जज्बात समझ रहे हैं.
सिंपल तरीके से आप सामने वाले को शांत करते हैं ताकि वह समझदारी से काम ले सके. 2007 में साइकोलॉजिस्ट मैथिव लिबरमैन द्वारा यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में की गई स्टडी को लीजिए. लिबरमैन ने पार्टिसिपेंट्स को, स्ट्रांग इमोशन एक्सप्रेस करने वाले लोगों की तस्वीरें दिखाई, जिसकी वजह से उनका अमिगडाला एक्टिवेट हो गया, दिमाग का वह हिस्सा जो डर के लिए जिम्मेदार होता है. हालांकि, जब उन्हीं पार्टिसिपेंट से पूछा गया कि उन्होंने किस तरह के इमोशंस देखें, तो उनके दिमाग में रेशनल थिंकिंग यानि सोचने समझने की शक्ति वाला एरिया एक्टिवेट हो गया.
या 1998 में हुई एक घटना का एग्जामपल ले लीजिए जब जेल से भागे चार कैदी, जिनके पास ऑटोमेटिक हथियार होने का शक था, हार्लेम अपार्टमेंट में छुप गए. लेखक ने पता लगाया कि वह कैसा एहसास कर रहे हैं और फिर उनके जज्बातों को लेबल किया, लेखक ने कैदियों को बताया कि उन्हें पता है वह लोग अपार्टमेंट नहीं छोड़ना चाहते क्योंकि वह डर में है अगर उन्होंने दरवाजा खोल दिया, तो उन्हें गोली मार दी जायेगी और वह दोबारा जेल जाने से डर रहे हैं.
6 घंटे की चुप्पी के बाद उन्होंने सरेंडर कर दिया था और बाद में लेखक को बताया कि उठोर ने उन्हें शांत कर दिया था. दूसरी तरह कहे तो उनकी लेबलिंग कामयाब हुई. उन्होंने बस उनके इमोशंस को समझा और एक्सेप्ट करके इस पूरे प्रोसेस को बेहतर अंजाम तक पहुंचाया.
सामने वाले की डिमांड एक्सेप्ट मत कीजिए, कॉम्प्रोमाइज और जल्दबाजी भी नहीं करनी है.
क्या आप कभी किसी विवाद को खत्म करने की इतनी जल्दबाजी में थे, कि आपने अपने खिलाफ आये नतीजे को एक्सेप्ट कर लिया? कोई भी ऐसा नहीं चाहता, और यह याद रखना जरूरी है की बुरी डील एक्सेप्ट करना या फिर कॉम्प्रोमाइज करना गलती है. इसे स्प्लिटिंग का डिफरेंस कहते हैं और आपको हर हाल में इससे बचना ही होगा.
आखिरकार, आपके सामने वाले शख्स सहित हर किसी की कुछ जरूरतें और खयाल होते हैं जो वह शेयर नहीं करना चाहेगा या फिर उसके बारे में उन्हें जानकारी ही नहीं है. अगर सामने वाला कोई चीज मांगता है, जरूरी नहीं है कि उसे उस चीज की जरूरत हो, ऐसे में यह भी ज़रूरी नहीं है कि उसकी मांगी हुई चीज दे देने से प्रॉब्लम सॉल्व हो जाए.
मान लीजिए किसी ने किसी पॉलिटिशियन को बंदी बना रखा है और मांग की है कि अगर उसे एक मिलियन डॉलर नहीं मिले तो वह पॉलीटिशियन का सर काट देगा. हालांकि बंदी बनाने वाला कह रहा है कि उसे पैसे चाहिए, लेकिन हो सकता है वह कोई राजनीतिक दांव खेल रहा हो. और अगर ऐसा है, तो आप उसे पैसे दे भी देते हैं तो जरूरी नहीं है कि वह बंदी को छोड़ दे.
इसी वजह से, वक्त लेना जरूरी है तब भी जब आपके सामने वाले ने डेडलाइन सेट कर रखी हो. याद रहे आपका काम सामने वाले के बारे में जानना है, और अगर आप पर वक्त के लिए दबाव डाला जा रहा है तो हो सकता है आपका फैसला धूमिल हो जाए. इससे बचिये. यह याद रखने में मदद कर सकता है कि ज्यादातर डेडलाइन फ्लैक्सिबल और उस हिसाब से रैंडम ही होती हैं.
हेटियन पुलिस ऑफिसर की वाइफ की किडनैपिंग का एग्जांपल लीजिए. किडनैपर्स ने डेढ़ लाख डॉलर्ज़ की मांग की, हफ्ता बीतने के बाद लेखक ने एक पैटर्न नोटिस किया, हफ्ते के आखिर में वह पैसों के लिए ज्यादा प्रेशर डाल रहे थे. लेखक को एहसास हुआ कि वह पार्टी करना चाहते हैं, जिसके लिए उन्हें पैसा चाहिए.
जिसके बाद लेखक को समझ आ गया की डेडलाइन बहुत सीरियस नहीं थी, और वो फिरौती के पैसे कम करा सकते थे क्योंकि हेटी में पार्टी करने या अच्छा वक्त गुजारने के लिए इतने पैसों की जरूरत नहीं थी.कामयाब नतीजे के लिए बाकी नेगोशिएशंस की तरह पेशेंस, टाइम और इंफॉर्मेशन इंपॉर्टेंट थे.
कुल मिलाकर
कुछ टेक्निक का इस्तेमाल करके और सामने वाला कहां से आ रहा है इस बात को समझ कर आप किसी भी सिचुएशन में नेगोशिएट कर सकते हैं, चाहे वह बॉस के साथ हो, घर पर अपने पार्टनर के साथ या लोकल कार डीलर. शांत रहना और सामने वाले का यकीन जीत लेना ही टेक्निक है.
नेगोशिएशन एक तरह से जंग की तरह है, अपने दुश्मन के बारे में जानना जरूरी है. इसीलिए सामने वाले को पहले ऑफर कर लेने देना चाहिए. कहने का मतलब है, आपको इनिशियल ऑफर के एक्सट्रीम होने के लिए तैयार रहना चाहिए. असल में, पहले ऑफर का आपकी उम्मीद से बहुत दूर होना नॉर्मल बात है. दिमाग में एक बात रखिए कि सामने वाले के द्वारा दिया गया ऑफर उसकी लिमिट को बताता है, आप इस ऑफर को बेहतर डील में बदल सकते हैं.
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