Bo Seo
डिबेट के नियम
दो लफ्जों में
साल 2022 में आई इस किताब का एक हिस्सा तो memoir है और दूसरा आपको सिखाता है कि किसी बात को रखने का सही तरीका क्या है यानि आर्ट ऑफ स्पीकिंग। डिबेट हमेशा से समाज और बातचीत का एक बड़ा और जरूरी हिस्सा रहा है। लेकिन क्या ये बस इतना ही है कि दो लोग किसी टॉपिक पर बोलें जहां एक सपोर्ट कर रहा हो और दूसरा उसकी बात काटे? असल में गहरार्ई में उतरा जाए तो ये इतना सीधा सादा काम भी नहीं है। भले ही आज आपको सोशल मीडिया और खास तौर पर न्यूज चैनलों में डिबेट करते हुए लोगों की भरमार दिखे पर ये कोई आज की तारीख में शुरु हुआ रवैया भी नहीं है। खास तौर से जब डेमोक्रेसी की बात की जाए तो ये शब्द और भी वजनदार हो जाता है क्योंकि बिना हेल्दी डिबेट के डेमोक्रेसी की परिभाषा अधूरी रह जाएगी। ये किताब समझाती है कि आप किस तरह एक हेल्दी डिबेट का हिस्सा बन सकते हैं और अपना कम्युनिकेशन बेहतर बना सकते हैं। अगर हम बस किसी बात को नकारने का बेहतर तरीका भी सीख लें तो न सिर्फ हमारे रिश्ते सुधर सकते हैं बल्कि समाज भी और ज्यादा खुले दिमाग वाला बन सकता है।
ये किताब किनको पढ़नी चाहिए?
• ऐसे कपल्स जो अपने पार्टनर के सामने अच्छी तरह अपनी बात रखना चाहते हैं
• ऐसे लोग जो जल्दी किसी से घुल मिल नहीं पाते
• हर वो इंसान जो अपनी बातचीत में वजन डालना चाहता है
लेखक के बारे में
इस किताब के लेखक बो सो ने दो बार डिबेट की वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती है। वो ऑस्ट्रेलियन नेशनल टीम के लिए डिबेटिंग कोच भी रह चुके हैं। वो डिबेटिंग कम्यूनिटी का एक जाना पहचाना चेहरा हैं। उन्होंने अटलांटिक और न्यूयार्क टाइम्स जैसे बड़े पब्लिकेशन के लिए लिखा है। उनको ऑस्ट्रेलिया के टीवी डिबेट प्रोग्रामों में अक्सर देखा जाता है।
बो का सफर
वेस्टर्न समाज हमेशा दावा करता है कि वो दुनिया के बाकी हिस्सों से ज्यादा डेमोक्रेटिक रहा है। लेकिन आज की तारीख में ये डेमोक्रेसी खतरे में नजर आती है। एक वक्त था जब सामने वाले के असहमत यानि disagree होने को भी खुलकर माना और समझा जाता था पर आज लोग ये बात भूलने लगे हैं। यानि अब रवैया ऐसा होता जा रहा है कि या तो आप हां में हां मिलाइए या चुप रहिए। अगर इसकी वजह समझने की कोशिश करें तो एक बहुत बड़ी सच्चाई सामने आती है। अब लोगों में mutual trust और सम्मान जैसी भावनाएं खत्म होने लगी हैं। इसमें बदलता पॉलिटिकल बर्ताव, आइडियोलॉजी का फर्क और तेजी से फैलाई जा रही झूठी जानकारी और खबरों का बड़ा हाथ है। पहले जब लोग इकट्ठे होते थे तो एक दूसरे का सुख दुख और हाल चाल बांटते थे। उनको देश, दुनिया और समाज की परवाह रहती थी। पर अब तो लोग सोशल मीडिया पर फैली उल्टी सीधी खबरों या कहा जाए सुर्खियों या फिर किसी वायरल कंटेंट पर फोकस करने लगे हैं। और तो और अगर किसी अजनबी ने भी सोशल मीडिया पर आपके फेवरेट खिलाड़ी या मूवी स्टार की बुराई कर दी तो भी आप घंटों उसके साथ बहस में भी उलझ जाते हैं फिर चाहे उस बात से किसी को फर्क भी न पड़ता हो। डिनर टेबल पर कोई बात शुरू हो तो उसे बहस में बदलते देर नहीं लगती। तब जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल होता है और आवाज जितनी तेज होती जाती है उससे ये बातचीत कम और चीखने का कॉम्पिटिशन ज्यादा लगने लगता है।
बहुत से लोग ये सोचकर गलत बात पर भी चुप रह जाते हैं कि अगर वो कुछ कह दें तो सामने वाला उनके साथ बदतमीजी पर उतर आएगा। पर इस तरह चुप रहने से ये बंटता हुआ समाज सही तो नहीं हो जाएगा। हमें ये सीखना है कि अपनी बात किस तरीके से रखी जाए। बो यहां competitive debate का नाम लेते हैं। उनका कहना है जिस तरह डिबेट के किसी कॉम्पिटिशन में लोग बोलते हैं उसी तरह हम भी अपनी बात कहें तो सुनने वाले पर असर पड़ेगा और कहीं न कहीं ये समाज के बीच बढ़ती खाई को भरने के काम भी आएगा। आपको इस किताब में कुछ ऐसे उदाहरण भी पढ़ने को मिलेंगे जिनसे आपका नजरिया बदलेगा और आप डिबेट का सही तरीका सीखेंगे। आपको डिबेट के कुछ बेसिक रूल समझ आएंगे। आपको ये भी पता चलेगा कि जो लोग प्रोफेशनल तौर पर डिबेट करते हैं उनका सोचने समझने और बोलने का नजरिया क्या रहता है।
सबसे पहले आप पढ़िए कि बो कौन हैं और उनका सफर कैसे शुरू हुआ। बो का जन्म साउथ कोरिया में हुआ। लेकिन जब वो आठ साल के थे तो उनका परिवार अच्छे भविष्य की तलाश में australia आ गया। बो के लिए बहुत मुश्किल हो गई। उनको अंग्रेजी बोलनी नहीं आती थी। न तो स्कूल में बाकी बच्चों से कुछ बोल पाते न उनको होमवर्क समझ आता। बो ने धीरे-धीरे सबसे दूरी बनाकर खुद को एक खोल में बंद कर लिया। उनको ये लगा कि शांति से जीने का बस एक ही तरीका है कि चुप रहो और जितना कहा जाए उतना काम कर दो। कुछ समय तक यही चलता रहा। बो चुप रहते, पढ़ाई करते और अंग्रेजी पर पकड़ बनाने की कोशिश करते रहते। लेकिन जब वो क्लास 5 में थे तब कुछ खास बात हुई। उनके टीचर ने उनको डिबेट कॉम्पिटिशन में भाग लेने को कहा।
डिबेट का कॉम्पिटिशन किसी गेम की तरह ही होता है। बस यहां शरीर की जगह जबान से काम लिया जाता है। यहां मकसद ये होता है कि आप जो बोल रहे हैं उसे लॉजिक और डेटा की मदद से सही साबित कर दें। दुनियाभर के स्कूल और कॉलेजों में ऐसे डिबेट कॉम्पिटिशन होते हैं। किसी डेमोक्रेटिक देश की असेंबली या पार्लियामेंट भी आम तौर पर इसी तरह चलती है।
डिबेट के नियम बहुत सीधे हैं। दो टीमें बनाई जाती हैं। डिबेट शुरू होने के 15 मिनट से एक घंटा पहले तक उनको टॉपिक दे दिया जाता है ताकि वो तैयारी कर सकें। इसके बाद डिबेट शुरू होती है। हर टीम को बोलने का तय समय दिया जाता है। आम तौर पर 5-5 मिनट। आखिर में जिस टीम ने बेहतर ढंग से अपनी बात रखी और जजों को convince कर पाई वो जीत जाती है। बो की शुरुआत भी इसी तरह हुई। उनकी पहली डिबेट का टॉपिक था कि क्या zoo बंद कर दिए जाने चाहिए? बो को इसके सपोर्ट में बोलना था। स्टेज पर चढ़ते हुए उनके दिल में घबराहट थी पर डिबेट खत्म होने पर तालियों की गड़गड़ाहट ने जैसे बो की जिंदगी बदल दी। बो को उनकी आवाज मिल गई थी।
आगे के दस सालों तक बो एक के बाद एक कॉम्पिटिशन में भाग लेते चले गए। इसके साथ उनकी स्किल भी निखरती गई। डिबेट से सीखी गई बातें जैसे लॉजिक लगाना, सही शब्द चुनना और लोगों के सामने बोलना इन सबने बो की सोशल लाइफ और स्टडी में भी बहुत मदद की। इस ताकत ने उनको ऐसी जगहों पर पहुंचा दिया जहां जाने का उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था। उन्होंने World High School Championship जीती। फिर वो हार्वर्ड पढ़ने गए। यहां उन्होंने World University Championship जीत ली। ये कहने की जरूरत भी नहीं है कि competitive debate ने किस तरह बो की जिंदगी बदल दी। उनको साइंस, हिस्ट्री, पॉलिटिक्स जैसी दुनियाभर की जानकारी तो मिली ही लेकिन उनके मन में कुछ सीखने और नॉलेज गेन करने की चाहत भी बढ़ती गई। उनके लिए डिबेट पढ़ाई जारी रखने का एक रास्ता भी था। यही राह आप भी चुन सकते हैं। चलिए इसके लिए सबसे पहले सीखते हैं कि किसी अच्छी डिबेट के नियम क्या होते हैं।
सबसे पहले सामने वाले की बातों से disagreement ढूंढिए
अगर आप डिबेट की स्किल में माहिर होना चाहते हैं तो सबसे पहले वो बात ढूंढिए जिससे आप सहमत न हों। जब तक आपको किसी बात का पता ही नहीं होगा आप उसके सवाल या जवाब कैसे ढूंढेंगे? आपको ये जानकर हैरानी होगी कि बहुत से लोग बिना ये जाने ही किसी बहस में कूद पड़ते हैं कि आखिर बात क्या है। जाहिर है ऐसे में कोई नतीजा नहीं आएगा। खुद सोचकर देखिए कि आपने पिछली बार जब कोई argument किया था तब क्या नतीजा रहा? बस इतना याद करिए कि उस वक्त आपने और सामने वाले ने क्या बोला। वो क्या बात थी जिसने बहस की दिशा ही बदल दी? अब इस सवाल का जवाब ढूंढिए कि disagreement क्या था। ध्यान दीजिए कि हम ये नहीं पूछ रहे कि टॉपिक क्या था। हम ये पूछ रहे हैं कि दोनों का नजरिया किस चीज पर अलग था। अगर आपको कोई ऐसा disagreement यानि असहमति मिले ही ना तो ये भी हो सकता है कि कोई disagreement था ही नहीं। जैसे हम सुबह उठकर सपने भूल जाते हैं वैसे ही ये बातें भी जितनी जल्दी दिमाग में आती हैं उतनी जल्दी भुला दी जाती हैं। डिबेट करने वाले अपने पास कागज और पेन जरूर रखते हैं ताकि disagreement साथ के साथ नोट करते जाएं और वो तब तक argue नहीं करते जब तक उसकी ठोस वजह न मिले। मोटे तौर पर disagreement तीन चीजों का बनता है। पहला फैक्ट, दूसरा जजमेंट और तीसरा prescriptions तो अब इनको एक एक करके समझते हैं।
फैक्ट का मतलब किसी चीज को बताना। यानि आपके हाथ में अभी मोबाइल है ये फैक्ट है। इस समय दिन के इतने बज रहे हैं ये फैक्ट है। दिल्ली राजधानी है ये फैक्ट है। सुनकर तो ये लगेगा कि इसमें counter करने जैसी बात नहीं है। लेकिन हम इंसान हैं और जरूरी नहीं कि हमें हर बात सच या सही पता हो। ये भी तो हो सकता है सामने वाले के लिए भारत की राजधानी मुंबई हो। ये फैक्ट के हिसाब से गलत है पर उसके लिए तब तक यही सही है जब तक उसे सच पता न लगे। दो लोग अलग टाइम जोन में भी तो हो सकते हैं जहां एक के लिए दिन हो और दूसरे के लिए रात। जजमेंट और फैक्ट में थोड़ा फर्क होता है क्योंकि जहां फैक्ट objective होते हैं वहीं जजमेंट subjective होते हैं। जैसे अफ्रीका गर्म जगह है और पहाड़ों पर चढ़ना खतरनाक है ये जजमेंट हैं। हो सकता है सामने वाले के लिए अफ्रीका से ज्यादा गर्म जगह कोई और हो और उसे पहाड़ों पर चढ़ने में महारत हासिल हो। जजमेंट पर dispute करने का मतलब है कि आपको जजमेंट के पीछे छिपे फैक्ट को काटना है। डेटा दे दीजिए कि अफ्रीका का तापमान कितना है और हर साल पहाड़ चढ़कर इतने लोग चोट खा बैठते हैं। अब नंबर आता है prescriptions का। ये भी judgments ही हैं कि हमें कैसे act करना है। जैसे कि वो बातें जहां हम “should” का इस्तेमाल करते हैं। आपको जिम जाना चाहिए। मीडिया को आजादी दी जानी चाहिए। ऐसे prescriptions से disagree होना ही असल काम है।
तो ये हैं तीन तरह के disagreements. लेकिन ये बात आप भी समझते हैं कि लाइफ में सब कुछ black and white ही नहीं होता। जब हम हकीकत में किसी बात या बहस का हिस्सा होते हैं तो हर चीज पर सामने वाले की बात काटते हैं फिर वो चाहे फैक्ट ही क्यों न हो। ऊपर से मेरी ही बात सही है ये एटीट्यूड सिचुएशन को और उलझा देता है। इसे थोड़ा आसान बनाने के लिए हम topic analysis का सहारा ले सकते हैं जो competitive debate की ही एक तकनीक है। डिबेट करने वाले लोग इसका सहारा लेकर disagreement को गहराई से समझ पाते हैं। जैसे डिबेट चल रही है कि क्या बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजा जाना चाहिए? आप सबसे पहले टॉपिक लिखेंगे। उसके बाद वो शब्द और बातें जो इस टॉपिक के आसपास घूमते हों। पहले तो disagreement बड़ा सीधा सादा नजर आएगा। कि या तो भेजना चाहिए या नहीं। पर बात ऐसे तो खत्म नहीं होगी। ये तो साफ तौर पर prescriptive disagreement हुआ ना। अब यहां सबसे पहला शब्द होगा "भेजना।" लेकिन इस बात में और भी जगहों पर आप disagree हो सकते हैं। थोड़ा रुकिए और सोचिए। आप प्राइवेट स्कूल शब्द को भी मार्क कर सकते हैं। क्योंकि यहां फैक्ट पर बात हो सकती है। जैसे प्राइवेट स्कूल महंगे होते हैं, वहां एजुकेशन की क्या क्वालिटी होती है या ये भी कि आप प्राइवेट स्कूल की गिनती में क्या रखेंगे। आप "चाहिए" शब्द पर भी ध्यान दे सकते हैं। क्योंकि माता पिता को क्या करना है ये फैसला उन पर लादा नहीं जा सकता। आप "बच्चों" शब्द को ले सकते हैं क्योंकि उनको कहां पढ़ना है ये उनकी मर्जी भी तो होगी। अब पहले तो ये समझ आ रहा था कि ये prescriptive statement है पर यहां तो फैक्ट और जजमेंट से जुड़े लूप होल भी दिख गए। इसलिए अगर आप ये नहीं चाहते कि डिबेट खत्म होने पर आपको याद आए कि ये कहना था या वो तो कहा ही नहीं तो तैयारी पूरी रखिए। आप अपनी जिंदगी या प्रोफेशन में भी इस तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तरह आप जड़ तक पहुंचकर ज्यादा फोकस्ड होकर अपनी बात रख पाएंगे।
Argument तैयार करने का तरीका
जब आपको disagreement समझ आ जाता है तो अगला कदम होता है अपनी बात को रखने का। Competitive debate में argument सबसे ज्यादा वजन रखता है। आप इसके बिना जीत नहीं सकते। किसी आम डिबेट को खास बनाने का काम यही argument करता है। हालांकि जिंदगी के बाकी पहलुओं में arguments अक्सर बात बिगड़ने की वजह बनते हैं। असल में हमारा समाज या हमारा कल्चर, इमेज से ज्यादा प्रभावित होता है। इस बात का ज्यादा ध्यान रखता है कि लोगों तक हमारी इमेज सही और अच्छी बनी रहे इसलिए आम जिंदगी में लोग arguments से बचकर रहना चाहते हैं। शायद आप इस बात से सहमत न हों। तो एक उदाहरण देखते हैं। कोई एड है जिसमें फिट बॉडी वाला आदमी या औरत दिखाए गए हैं। इनको देखकर हम भी जिम जाने को तैयार हो जाते हैं। लेकिन अगर कोई argument करे तो क्या आप उतने ही मन से जिम के मेंबर बनेंगे? पॉलिटिक्स में भी यही होता है। नेता ज्यादातर इस बात की कोशिश करते हैं कि सोशल वर्क करते हुए उनकी ढेरों तस्वीरें लोगों तक पहुंचे। वो भी किसी argument से बचकर चलते हैं जबकि पॉलिटिक्स तो डिबेट के बिना हो ही नहीं सकती।
अब ये सोचकर देखिए। ऑफिस में हम बस वही करते हैं जो instructions हमको दिए जाते हैं। हम कभी argue नहीं करते। और तो और शायद ही कभी पलटकर कोई सवाल करते होंगे। इसलिए ज्यादातर लोग argue करना सीख भी नहीं पाते या जितना सीखा है वो भी भूलने लगते हैं। चलिए बजाए ये समझने के कि argument क्या होता है, ये समझ लेते हैं कि argument क्या नहीं होता। Argument कोई नारा या स्लोगन नहीं है और न ही कोई प्यार भरी, चिकनी चुपड़ी बात। ये कोई फैक्ट भी नहीं है और न ही आपकी भावनाएं। Argument किसी बात को describe या explain करना भी नहीं होता। और तो और argument का मतलब अपनी आवाज ऊंची करना तो कतई नहीं है। तो फिर ये है क्या? किसी सबूत या फैक्ट को आधार बनाकर और उसमें लॉजिक लगाकर जब आप किसी नतीजे पर पहुंचते हैं तो उसे argument कहा जाता है। इसे और अच्छे से समझने के लिए देखिए कि किसी argument में दो ही बातें साबित करने की कोशिश रहती है। पहला तो जो दावे किए जा रहे हैं वो सही हैं और दूसरा कि ये दावे, conclusion पर खरे उतरते हैं। जैसे आप किसी नॉन वेजिटेरियन को ये समझा रहे हैं कि मीट खाना छोड़ दो। ये आपका conclusion है। यहां argument जुड़ेगा "क्योंकि" नाम के शब्द से। देखिए - "तुम मीट खाना छोड़ दो क्योंकि..." और इसके बाद उसके सामने वजह रखिए जैसे क्योंकि ये सेहत के लिए या प्लानेट के लिए अच्छा नहीं होता। आपको इसी क्योंकि वाले दावे को साबित करना है। यहां आपको फैक्ट देने होंगे। डेटा देना होगा। यानि अपनी बात के सपोर्ट में सबूत पेश करने होंगे। जैसे आप बताएंगे कि फार्म हाउस के जानवरों को कितने बुरे हालात और गंदगी में रखा जाता है। आप ये बताएंगे कि इससे जानवरों को कितनी तकलीफ पहुंचती है।
लेकिन सारे सबूत रख देने के बाद क्या आपका काम खत्म हो जाता है? जी नहीं। हो सकता है आपको अपनी बात साबित करने के लिए और भी सबूत देने की जरूरत पड़े। Arguments का अगला हिस्सा आमतौर पर भुला दिया जाता है। लोग खुद को सही साबित करने की जल्दबाजी में अक्सर ये भूल जाते हैं कि आपकी बातों की वेल्यू क्या है। हो सकता है मीट खाने वाला सारी बातें मान ले कि हां उसका खानपान सही नहीं है। पर फिर भी बेफिक्र होकर बोल दे कि मैं तो फिर भी मीट नहीं छोड़ सकता। आप ये नियम बना दीजिए ना कि फार्म में जानवरों की सही तरह देखभाल हो। हम अपनी आदत क्यों बदलें? या वो ऐसा कह दे कि चलो हम मीट कम खाएंगे या फिर बस वहीं से मीट लेंगे जहां जानवरों को अच्छी तरह पाला जाता हो। अब आपको पिछली बातों को आगे बढ़ाना है। जैसे आप उनको ये कह सकते हैं कि अगर लोग मीट खाना बंद कर दें तो मीट इंडस्ट्री को नुकसान से बचने के लिए बदलाव करने ही पड़ेंगे। आप आगे कुछ और सबूत रख दीजिए। जैसे फलाने शहर या देश में ऐसा हो चुका है। Argument बस यही है और कुछ नहीं। हालांकि ये थोड़ा मुश्किल काम तो है। लेकिन अभ्यास करके आप इसमें महारत हासिल कर सकते हैं। आप लिखकर कोशिश कीजिए। जितना ज्यादा आप लिखेंगे, बोलते समय आपको उतनी आसानी रहेगी।
किसी दावे को काटना
अगर argument खुद के साथ हैं तो कोई बात नहीं पर debate में सामने वाली टीम या दूसरी साइड के लोग आपकी बात काटने को तैयार बैठे होंगे जहां उनके अपने भी कुछ दावे होंगे। यानि अब आपको जो स्किल सीखनी है वो है rebuttal. जैसा कि हमने देखा कि argument में दो ही बातें साबित करनी होती हैं। लेकिन rebuttal में आपको इसका उल्टा करना है बस। यानि आपको ये बताना है कि सामने वाले के दावे गलत हैं या सही होते हुए भी वो नतीजों पर खरे नहीं उतरते। जैसे मान लीजिए आपका पार्टनर आपसे ये कह रहा है कि आप एक नई कार खरीद लें। पुरानी कार ओल्ड फैशन हो गई है। लेकिन ये कार आपके दिल को भाती है। इसलिए आपको नई कार खरीदकर पैसे बर्बाद करने का कोई शौक नहीं है। आपको उनकी बात को rebute करना है। आप ये कह सकते हैं कि अब तो लोग पहले से ज्यादा ऐसी कारें खरीद रहे हैं और मैं ये बात साबित भी कर सकता हूं। आप ये भी कह सकते हैं कि आखिर मुझे नई कार खरीदने की कोई मजबूत वजह तो दो। मैं कैसे मान लूं कि ये ओल्ड फैशन हो गई है। और अगर उनकी तरफ से सबूत मिल भी जाए जैसे सड़कों पर अब ये कार कम दिखने लगी हो तो बोल दीजिए कि ठीक है आसपास ऐसी कारें भले ही कम नजर आती हों पर देशभर में अभी भी बहुत लोगों के पास यही कार मिलेगी।
अब दूसरा रास्ता ये है कि अपने पार्टनर की बात मान लीजिए कि ये कार फैशन से बाहर है। पर ये नई कार खरीदने की वजह तो नहीं हो सकती। कार हम जरूरत के लिए चलाते हैं न कि दिखावे के लिए। यानि मुझे दूसरों की सोच से कोई फर्क नहीं पड़ता। या बोल दीजिए कि मुझे भी फैशनेबल कार चलाने का मन है पर मुझे अपना बजट भी देखना है। उम्मीद है कि इस उदाहरण से आपने काफी कुछ सीखा होगा। किसी भी argument में ये तरीका अपनाया जा सकता है। लेकिन बात ये भी है कि हर argument इतनी आसानी से हैंडल नहीं किया जा सकता। अगर आप पहले से तैयारी कर लें तो लड़खड़ाने से बच सकते हैं। लेकिन हकीकत में हर बार इतना समय नहीं रहता। लेकिन जब कभी आपको कोई argument आता दिखे तो एक तकनीक इस्तेमाल कर लीजिए जिसे Side Switch कहा जाता है। इसका मतलब है ये भांप लेना कि सामने वाला क्या बोल सकता है। आप अपनी सोच से दूर हटकर ये देखिए कि सामने वाले के दिमाग में क्या चल रहा है। आपको बस उनकी बात के सपोर्ट में ज्यादा से ज्यादा arguments रखने हैं। जब आपका काम हो जाए तो इनको काटने की बात सोच लीजिए। अब अगर जिंदगी में कभी ऐसी सिचुएशन बनी तो आप तैयार रहेंगे। असल में ये तकनीक हमको पहले से ही तैयार कर देती है। लेकिन इसका पूरा फायदा तभी मिल सकता है जब हम सामने वाले की सोच तक पहुंच पाएं। जब तक हमारी सोच या belief हावी रहेंगे तब तक ये काम मुश्किल ही रहेगा।
खुद को convincing कैसे बनाएं
अब तक हमने ये देख लिया कि किसी argument में क्या कहना है। लेकिन सिर्फ इतना ही काफी नहीं होता कि क्या बोलना है बल्कि कैसे बोलना है ये भी मायने रखता है। यहां oratory या art of speaking भी काम आती है। एक शब्द है rhetoric जिसका मतलब है लैंग्वेज के इस्तेमाल की स्टडी। यहां आप शब्दों से लेकर intonation और बॉडी लैंग्वेज तक सब कुछ सीखते हैं। कुछ बोलते हुए ये सब बातें आपके काम आती हैं कि सामने वाले पर आपका कैसा असर पड़ रहा है। खुद ही बताइए कि आप किसकी बात मानेंगे जो इंसान पूरे कॉन्फिडेंस के साथ बिना रुके अपनी बात कह देता है या वो जो कि बोलते हुए नर्वस होने लगता है और बीच बीच में अटक जाता है। हालांकि इस दौर में rhetoric की बुराई ज्यादा हो रही है। असल में नेता किसी स्पीच में इसका सहारा लेकर बेकार या झूठी बातें भी लोगों के दिमाग में भर देते हैं और उन पर मनचाहा असर डाल देते हैं। लेकिन rhetoric की इस नेगेटिव साइड के दूसरी तरफ एक पॉजिटिव साइड भी है। अगर सही मकसद से इस्तेमाल किया जाए तो rhetoric सच को साबित करने का सबसे बड़ा सबूत हो सकता है जिसे सुनकर अनगिनत लोग उसे सपोर्ट करने लगें। इस तरह वो सही रास्ता चुनकर सही फैसला भी कर पाएंगे।
इस समय लोगों को एक्शन लेने में बहुत वक्त लगता है। यानि जब तक पानी सर पर न आ जाए उन पर असर ही नहीं पड़ता। इसका मतलब सिर्फ फैक्ट दिखा देने से तो कोई हिलने वाला भी नहीं है। इसलिए rhetoric की ताकत को कम भी नहीं समझना चाहिए। बो आपको कुछ नियम बताते हैं जिनकी मदद से आप भी खुद को persuasive बना सकते हैं। चलिए एक नजर डालते हैं। पहला नियम बहुत सीधा है। अपनी बात में clarity रखिए। जब तक आप किसी को अपनी बात नहीं समझा पाएंगे तो वो उसे मानेगा भी नहीं। इसलिए उल्टी सीधी या मुश्किल कहावतों और मुहावरों से बचकर चलिए। बिल्कुल specific रहकर और सटीक उदाहरण देकर अपनी बात रखिए। दूसरा नियम बस उतना बोलें जो जरूरी है। अगर आपको किसी को ये समझाना है कि मॉर्निंग वॉक के क्या फायदे हैं तो उसमें मोबाइल चलाने के नुकसान जोड़ने का कोई मतलब नहीं है। एक ही बात बार-बार कहने का भी कोई मतलब नहीं होगा। बल्कि सुनने वाला बोर होकर काम की बात से भी ध्यान हटा देगा। तीसरा नियम कहता है कि सामने वाले की नब्ज पकड़ लीजिए। वो कहिए जो उसे अपनी बात लगे। अगर आप किसी के साथ इमोशनल बांड बना लें तो वो बहुत असरदार होता है। इस तरह लोग आपकी बात को ज्यादा खुले दिमाग से सुनते हैं और आसानी से मान भी लेते हैं।
उनकी जरूरत पर बात कीजिए। अपनी जिंदगी से जुड़ी कहानियां सुनाइए। अपनी बात ऐसे कहिए कि लोगों को लगे कि आप तो उनकी ही बात कर रहे हैं। अगर आप बिना रुके या अटके अपनी बात करते रहें तो आपकी बात का वजन खुद ब खुद बढ़ जाता है। Fluidity काफी मुश्किल काम है लेकिन धीरे-धीरे आप इसकी आदत डाल सकते हैं। Competitive डिबेट में भाग लेने वाले इसकी प्रेक्टिस करते रहते हैं। आप एक दोस्त के साथ बैठ जाइए और एक मिनट की स्पीच दीजिए। जब कभी बीच में अटकने लगें या "um" जैसे शब्द जबान पर आ जाएं तो कहिए वो आपके ऊपर कागज की बॉल बनाकर फेंक दे। ये स्पीच तब तक दुहराते रहिए जब तक आप बिना अटके न बोलने लगें। यानि जब आपको बॉल पड़नी बंद हो जाए। एक और मजेदार तरीका भी है। कोई argument करते समय हर शब्द के बाद किसी फल का नाम लें। जैसे टैक्स बैन हो जाने चाहिए को बोलें "टैक्स बनाना बैन बनाना होने बनाना चाहिए बनाना।" लगातार स्पीकिंग ड्रिल करना बोरिंग भी है और थकाने वाला भी लेकिन इसका असर बहुत फायदेमंद है। आपकी बात में वजन भी आएगा और लोग आपको ध्यान लगाकर सुनेंगे भी।
कुल मिलाकर
आपने अब डिबेट के नियम सीख लिए हैं। क्या कहना है, कैसे कहना है और क्या नहीं कहना है। आपने कुछ एक्सरसाइज भी सीख लीं जिनकी मदद से आप ये स्किल बेहतर बना सकते हैं। जैसे तैरना सिखने के लिए पानी में उतरना पड़ता है वैसे ही डिबेट सीखने के लिए डिबेट करनी होगी। अगर आप दो टीम बनाकर और कोई जज बिठाकर डिबेट नहीं भी कर सकते तो कोई बात नहीं। आप दोस्तों या परिवार के साथ बैठकर भी प्रेक्टिस कर सकते हैं। बस ये ध्यान रखिए कि सामने वाले भी इसे इतना ही सीरियसली लें। एक दूसरे की सोच को रिस्पेक्ट करें और इसे बस एक प्रेक्टिस समझकर शुरू करें। कोई बात दिल पर न लगाएं।
जब बड़े पैमाने पर समाज की बात आती है तो बहुत से नेता इस बात को समझने लगे हैं कि कुछ सीखने और परेशानियों को हल करने के लिए बहस ताकत रखती है। स्कूल के और ऑफिसों में डिबेट को शामिल करने के लिए दुनिया भर में पहले से ही कोशिश हो रही है। उदाहरण के लिए, वारेन बफेट ने हाल ही में दो लोग अपाइंट किए थे। एक को किसी भी बड़े इन्वेस्टमेंट के सपोर्ट में कहना होता था और दूसरे को उसके खिलाफ। इस तरह के कदम बहुत अच्छे है। डिबेट किसी नतीजे पर पहुंचने के जरिए से कहीं ज्यादा मायने रखती है।
डिबेट आज की तारीख की सबसे बड़ी परेशानियों में से कुछ को हल करने की चाबी है। अगर डेमोक्रेटिक सरकारें डेमोक्रेसी को मजबूत करने के लिए सच में तैयार हैं तो उनको इस बात की ज्यादा से ज्यादा कोशिश करनी चाहिए कि नागरिक, डिबेट करना सीखें और अच्छी तरह सीखें। इसके लिए फोरम और संस्थाएं भी बनाई जा सकती हैं। इनकी मदद से बढ़ता हुआ सोशल डिवीजन भी कम होने लगेगा। एक नागरिक के तौर पर हमारी भी जिम्मेदारी है कि हम अच्छी तरह से डिबेट करना सीखें। अपने पड़ोसियों के साथ उन मामलों पर बात करें जो सब पर असर डालते हैं। किसी परेशानी को हिंसा या लड़ाई झगड़े की जगह लॉजिक और रीजनिंग से सुलझाना, एक दूसरे की परेशानियों को सुनना बेहतर है। डिबेट तो सोसाइटी की आत्मा है। इसे छोड़ने का मतलब है समाज के ढांचे को कमजोर करना।
येबुक एप पर आप सुन रहे थे Good Arguments By Bo Seo.
ये समरी आप को कैसी लगी हमें yebook.in@gmail.com पर ईमेल करके ज़रूर बताइये.
आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे.
अगर आप का कोई सवाल, सुझाव या समस्या हो तो वो भी हमें ईमेल करके ज़रूर बताएं.
और गूगल प्ले स्टोर पर ५ स्टार रेटिंग दे कर अपना प्यार बनाएं रखें.
Keep reading, keep learning, keep growing.
