Nail It then Scale It

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Nail It then Scale It

Nathan Furr and Paul Ahlstrom
कुछ नया इनोवेट और मैनेज करने के लिए एंटरप्रेन्योर्स की गाइड

दो लफ्ज़ों में
नेल इट देन स्केल इट (2011) बिजनेस को बेहतर बनाने और आगे बढ़ाने के लिए एक गाइड है. इस समरी में आप प्रॉब्लम सॉल्व करने वाले इनोवेटिव प्रोडक्ट बनाने, सही मार्केट को टारगेट करने और बिजनेस को आगे बढ़ाने से पहले अपनी स्ट्रैटेजी को इंप्रूव करने के बारे में जानेंगे.

किनके लिये है
- बिजनेस चलाने वाले जो ट्रेडिशनल इकनोमिक मॉडल से थक चुके हैं
- एंटरप्रेन्योर्स और बिजनेस शुरू करने की ख्वाहिश रखने वालों के लिए

लेखक के बारे में
Nathan furr एंटरप्रेन्योरशिप के प्रोफेसर और रिसर्चर हैं. उन्होंने कई कंपनियों को लॉन्च करवाया साथ ही कंपनियों को सलाह देने का काम किया है.
Paul Ahlstrom ने कई कामयाब कंपनियों को स्टैबलिश्ड किया है. उन्होंने अपनी नॉलेज का इस्तेमाल कर स्टार्टअप्स में कई million-dollar इन्वेस्ट किए हैं.

कामयाब बिजनेस की बुनियाद सिर्फ पैसा और बेहतरीन आईडिया ही नहीं होता
मान लीजिए कि आपके पास एक बेहतरीन प्रोडक्ट का आईडिया है. जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी आप इसे लांच कर देना और फिर अपने कस्टमर के एक्सपीरियंस के हिसाब से अपने प्रोडक्ट को बेहतर करना चाहते हैं. आप इसमें इन्वेस्ट करते हैं और अपने बिजनेस को तेजी से आगे बढ़ाना चाहते हैं. लेकिन अचानक से कुछ होता है और आपका बिजनेस नाकाम हो जाता है, आपका कस्टमर बेस आपकी उम्मीद के हिसाब से नहीं बढ़ता.

नये बिजनेस का इस तरह नाकाम हो जाना, यहां तक की बेहतरीन आइडियाज के दम पर खड़े किए गए बिजनेस का भी नाकाम हो जाना, कोई नयी बात नहीं है. एंटरप्रेन्योर अक्सर यह पता करना भूल जाते हैं कि आखिर उनके कस्टमर को क्या चाहिए, बेहतरीन अपॉर्चुनिटी को पहचान नहीं पाते और बिजनेस को किसी और के हाथ में देने के बजाय अपने कंट्रोल में रखते हैं.लेकिन अगर एंटरप्रेन्योरशिप में कामयाबी पानी है तो क्या तरीका अपनाया जाए?

इस समरी में हम किसी भी बिजनेस को लॉन्च करने और इसे आगे बढ़ाने के अलग-अलग स्टेप्स के बारे में जानेंगे, जैसे कि प्रोडक्ट को इनोवेट करना, सही मार्केट को टारगेट करना, अपने कस्टमर का एक्सपीरियंस जानना और बिजनेस को आगे बढ़ाने से पहले अपनी स्ट्रैटेजी पर एक बार दुबारा गौर करना.

तो चलिए शुरू करते हैं!

कामयाब बिजनेस की बुनियाद सिर्फ पैसा और बेहतरीन आईडिया ही नहीं होता

अगर आज आपको कोई करोड़ों रुपए दे देता है तो क्या आपको लगता है कि आप एक कामयाब कंपनी खड़ी कर पाएंगे?बहुत सारे लोग श्योर नहीं होंगे, इसी से पता चलता है कि कोई एक सक्सेसफुल प्रोडक्ट बनाने के लिए सिर्फ पैसों की जरूरत नहीं होती. आपको सेटिस्फाइड करके ज्यादा पैसा आप की कोशिशों को नाकाम भी कर सकता है. क्योंकि अंग्रेजी में एक कहावत है नेसेसिटी इस द मदर ऑफ इनोवेशन जरूरत पड़ने पर ही हम कुछ नया बनाते या इनोवेट करते हैं.1996 में वीडियो गेम कंपनी 3D रिआम (3D realm) को बेहद कामयाब गेम, ड्यूक न्यूकेन (Deke nuken) 3D बनाने में बहुत कम पैसा और सिर्फ 18 महीने का वक्त लगा था. उसके बाद इस गेम के जरिए कमाए गए पैसों से उन्होंने इस गेम का सीक्वल ड्यूक न्यूकेन फॉरएवर बनाने पर काम शुरू कर दिया. लेकिन कंपनी के पास इतना पैसा आ गया था कि उनके पास फैसला लेने के लिए काफी वक्त था, और कंपनी ने इसमें 12 साल बर्बाद कर दिए, लेकिन आखिर में वह गेम रिलीज भी नहीं किया जा सका.इससे पता चलता है कि कोई भी इनोवेशन करने के लिए पैसा सब कुछ नहीं है और ऐसा ही बेहतरीन आईडियाज़ के साथ भी है. ऐसे आईडियाज़ जिनके फ्यूचर में कामयाब होने की उम्मीद हो वह हमें इंस्पायर करने के साथ ही कभी-कभी हमारे आंखों पर पट्टी भी बांध देते हैं, लेकिन ऐसे आईडिया को हकीकत में तब्दील करना काफी रिस्की हो सकता है.

अक्सर जब एंटरप्रेन्योर्स को इस बात पर यकीन हो जाता है कि उनका आईडिया बहुत कमाल का है, तो वह हवा की रफ्तार से काम करने की कोशिश करते हैं. वह जल्दी से जल्दी बहुत सारा पैसा लगाकर अपना प्रोडक्ट बना करके लांच कर देते हैं, क्योंकि उन्हें यकीन होता है कि वक्त के साथ वह अपने इस बेहतरीन प्रोडक्ट को कस्टमर की जरूरत के हिसाब से भी ढाल लेंगे.इस नाकामी के पीछे की वजह जानना कोई मुश्किल काम नहीं है, ऐसे प्रोडक्ट्स अक्सर कस्टमर्स को अट्रैक्ट नहीं कर पाते, जैसे कि मैनहट्टन का लॉन मूवर रेंटल सर्विस. इसकी नाकामी की वजह से ऐसा मॉडल फॉलो करने वाले एंटरप्रेन्योर्स जल्द ही कर्ज में डूब जाते हैं.लेकिन अगर पैसा और बेहतरीन आइडिया एक कामयाब बिज़नेस खड़ा करने के लिए जरूरी नहीं है, तो फिर क्या है? इस बारे में हम आगे जानेंगे.

अच्छे बिजनेसमेन अपनी प्रॉब्लम को ढूंढ कर उन्हें सॉल्व करते हैं
ख़राब टी बैग से लेकर के गैर जरूरी अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर तक, हर रोज हमें छोटे-छोटे और कभी-कभी कोई बड़ा परेशान करने वाला एक्सपीरियंस होता है.हालांकि यह चीज़ें गुस्सा दिलाने वाली होती हैं, लेकिन इनमें से हर एक चीज हमारे लिए अपॉर्चुनिटी भी है. इनमें से हर कमी किसी भी कामयाब बिजनेस का रास्ता बन सकती है. आप इस प्रॉब्लम के ज़रिए एक कामयाब कंपनी तक पहुंच सकते हैं, आपको बस समझना होगा कि यह कस्टमर्स पर कैसे असर डालता है, आप इसका क्या सल्यूशन ला सकते हैं.एप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स को ही ले लीजिए, उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि लोगों को अपने MP3 प्लेयर पर म्यूजिक लोड करने में परेशानी हो रही है, उन्होंने इसके सल्यूशन के तौर पर आईट्यून सॉफ्टवेयर वाला, एक यूजर फ्रेंडली आईपैड बना दिया, इसके जरिए यूजर्स बड़ी आसानी से म्यूजिक अपनी डिवाइस से सिंक कर सकते थे.या फिर अमेरिकन कंपनी इनट्यूटिव को ही ले लीजिए, इस कंपनी ने रियलाइज़  किया कि छोटे बिजनेस के लिए स्टैंडर्ड अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर सेट अप करने के लिये, 125 स्क्रीन का इस्तेमाल बहुत मुश्किलो वाला काम है. बहुत सारे एंटरप्रेन्योर्स के पास आईटी मैटर्स के लिए वक्त नहीं होता और फिर बहुत सारे लोग टेक्निकल जीनियस भी नहीं होते.इस प्रॉब्लम को देखते हुए कंपनी ने 'क्विकेन' नाम का एक अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर बनाया, जो स्मॉल बिजनेस ओनर्स के लिए था और जिसने अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर सेटअप को 125 स्क्रीन से सिर्फ 3 स्क्रीन तक समेट दिया था. इस सिंपल से इंप्रूवमेंट के चलते कंपनी को अपने सालाना रिवेन्यू में 20% की बढ़ोतरी मिली.तो साफ होता है कि आपका प्रोडक्ट कस्टमर की परेशानी को दूर करने वाला होना चाहिए.

मिसाल के तौर पर न्यूयॉर्क बेस्ड कंपनी रिसाइकल बैंक के फाउंडर patrick fitzgerald, ने नोटिस किया कि अमेरिका के कुछ शहर कूड़े को डम्प करने के लिए बहुत पैसा खर्च कर रहे हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि रिसाइकल की फैसिलिटी की कमी है और अगर रिसाइकिल की फैसिलिटी होती तो वह शहर के लिए पैसे भी बना कर देती.

इस प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए पैट्रिक की कंपनी ने 2014 में एक स्कीम अपनाई, उन्होंने अनाउंस किया कि रेसिडेंट्स के रिसाइकल करने के हिसाब से उन्हें रिसाइकल बैंक के ऑनलाइन स्टोर, वनट्विन पर डिस्काउंट मिलेगा. उनके इस सल्यूशन के चलते रीसाइक्लिंग रेट 7 से 90 परसेंट तक बढ़ गया. अब उनकी कंपनी पूरे देश में काम कर रही है.अब तो आप जान गए होंगे कि किसी भी कामयाब बिजनेस के सेंटर में कस्टमर के प्रॉब्लम का सल्यूशन होता है. लेकिन अगर आपके कंपटीटर्स उसी प्रॉब्लम को सॉल्व करने में बहुत मेहनत कर रहे हैं तो?

इनोवेशन का मतलब इन्वेंशन नहीं होता आप अपने प्रेज़ेंट प्रोडक्ट में कुछ इंप्रूवमेंट करके, प्रॉब्लम सॉल्व कर सकते हैं. 

एप्पल ने कंप्यूटर, स्मार्टफोन और MP3 प्लेयर इनमें से कुछ भी नहीं बनाया था लेकिन वह इन तीनों फील्ड में बहुत कामयाब है, ऐसा क्यों?क्योंकि उन्होंने मार्केट में मौजूदा प्रोडक्ट को एक नए नजरिए और खूबियों से जोड़कर इनोवेट किया है. और इसी प्रोसेस के जरिए ही एंटरप्रेन्योरशिप अपने प्रोडक्ट्स और कंपनी को आगे बढ़ा पाते हैं.

सिंपली कहा जाए, तो इनोवेशन का मतलब पहले से मौजूद प्रोडक्ट में कुछ इंप्रूवमेंट करके उसकी कीमत और फायदे को बढ़ा देना है. सोलर पैनल को ही ले लीजिए इन्हें दशकों से बेचा जा रहा है और सोलर पावर्ड कारें 1962 से ही बिकनी शुरू हो गई थीं.लेकिन तब तक इस प्रोडक्ट ने कमर्शियल मार्केट में कोई खास परफॉर्मेस नहीं दी, जब तक इंजीनियर ने इसे घरेलू इस्तेमाल के लायक नहीं बना दिया. हाल ही में होम सोलर बहुत पॉपुलर और कामयाब हुआ जिससे सोलर इंडस्ट्री मल्टी मिलेनियर हो गई. अगर आप और एग्जांपल चाहते हैं, तो एक वक्त की लीडिंग स्काईजेट मैन्युफैक्चरिंग कंपनी रही कावासाकी को ही ले लीजिए. इस कंपनी के स्काइजेट के साथ प्रॉब्लम यह थी कि उनके जेट में बैठने के लिए सीट नहीं थी जिसकी वजह से इसे चलाना बहुत अनकंफरटेबल था. इसकी कॉम्प्टीटर कंपनी 'सी-डू' ने सीटों वाली स्काईजेड बनायी  और कस्टमर्स ने इस कंपनी को तर्जीह देना शुरू कर दिया, जिसके चलते कावासाकी पूरी तरह से बर्बाद और मार्केट से गायब हो गई.अब तक तो यह बात क्लियर हो गई है, कि आप जानकारियां इकट्ठा करके इनोवेशन कर सकते हैं, इसके लिए आपको अपनी टारगेटेड ऑडियंस की आदतों और उनकी ज़रूरतों को जानना होगा. इसका बेहतरीन एग्जांपल 1962 में वॉलमार्ट स्टैबलिश करने वाले, sam walton हैं. उन्होंने सेल्फ सर्विस शॉपिंग  इन्वेंट नहीं किया था लेकिन उन्हें इसमें फ्यूचर जरूर नजर आया.उन्हें एहसास हुआ कि हर जगह क्लर्क रखने के बजाय सिर्फ चेकआउट्स पर ही क्लर्क रखकर पैसे बचाए जा सकते हैं.अपने कॉम्प्टीटर के स्टोर पर कस्टमर को ऑब्जर्व और उनको इंटरव्यू करके, वॉल्टन को समझ आ गया कि वह अपने कस्टमर का एक्सपीरियंस कैसे बेहतर कर सकते हैं, और वह इस चीज में कामयाब भी रहे. एंटर करते वक्त कस्टमर के रिएक्शन से लेकर दरवाजे और चेकआउट के बीच की दूरी तक, ऑब्ज़र्वेशन के इस प्रोसेस के दौरान स्टोर और कस्टमर एक्सपीरियंस का हर एस्पेक्ट गहराई से मॉनिटर किया गया.

आप जिस भी मार्केट में काम कर रहे हैं उस मार्केट पर स्टडी कीजिए और अपने टारगेट ऑडियंस के हिसाब से मार्केट स्ट्रैटेजी बनाइए
जब किसी बड़ी ख़रीद की बात आती है तो लोग खर्च करने से पहले उस पर्टिकुलर प्रोडक्ट के बारे में जानकारियां इकट्ठा करते हैं, चाहे वह किसी फ्रेंड के ज़रिए हो या फिर ऑनलाइन रिव्यु के ज़रिए. यह जानना कि आप या आपका कस्टमर आपके प्रोडक्ट के बारे में कैसे जानकारी इकट्ठा कर सकते हैं, कस्टमर प्रिफ्रेंसेस समझने का कारगर रास्ता है.एक कामयाब बिजनेस के लिए आपको अपने मार्केट के हर पहलू की जानकारी होना बहुत जरूरी है, खास तौर पर कस्टमर के बारे में.

मिसाल के तौर पर आपके कस्टमर आपके प्रोडक्ट के बारे में कहां से जानेंगे? और वह जानकारियां क्या होगी? मार्केटिंग स्ट्रेटजी बनाने के लिए इस तरह के सवाल बहुत ज्यादा अहमियत रखते हैं.सुपर मैक के एग्जांपल से समझिए, एक ऐसी कंपनी जो खासतौर पर मैसिंटोश कंप्यूटर्स के साथ काम करने वाले ऑग्ज़ीलियरी डिवाइसेज बनाती है. 1989 में जब यह कंपनी बैंक करप्ट होने के कगार पर आ गई थी, तो दो वेंचर फर्म्स ने इस कंपनी को रिवाइव करने के लिए 8 million-dollar लगाये.  मार्केटिंग के नए वाइस प्रेसिडेंट स्टीव ब्लैक ने कस्टमर्स के बिहेवियर को जानने के लिए उन्हें कॉल करने का फैसला किया.इस कॉल प्रोसेस के दौरान कंपनी को पता चला कि कस्टमर्स वैसा नहीं सोच रहे हैं जैसा कंपनी को लगता है, कस्टमरर्स के लिए प्रोडक्ट की कीमत उतनी इंपॉर्टेंट नहीं है, और ना ही टेक्निकल ख़ूबियां. इन सब के बजाय कस्टमर्स कोई भी प्रोडक्ट खरीदने का फैसला मैगजीन रिव्यू पर ही कर रहे थे.एक बार आपको पता चल गया की कौन सी चीज़ें आपके कस्टमर के डिसीजन को इफेक्ट करती हैं आप अपना कम्युनिकेशन स्ट्रेटजी उसी के तहत बना सकते हैं, चाहे वह मामूली सा रिकमेंडेशन हो या फिर मीडिया कवरेज.

जब सुपरमैक को पता चला कि कस्टमर्स रिव्यु में शेयर की गई जानकारियों पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं, तो कंपनी ने अपनी स्ट्रैटेजी बदल कर अपने आप को दिवालियापन से बाहर निकाल लिया.अपनी कम्युनिकेशन स्ट्रेटजी के तहत, अपने प्रोडक्ट को इंडस्ट्री के लिए आइडियल बताने से पहले, कंपनी 1 स्टैंडर्ड बेंचमार्क के तहत अपने हार्डवेयर की परफॉर्मेंस मेजर करने लगी.और जल्द ही पोटेरो बेंचमार्क का इस्तेमाल टेक्नोलॉजी मैग्ज़ींस भी करने लगीं. क्योंकि इस बेंचमार्क के क्रिएटर सुपरमैक ने मार्केट पर कंट्रोल कर लिया था.

अपने कस्टमर के हिसाब से स्ट्रैटेजी बनाइये और फिर अपने प्रोडक्ट को बेहतर करने के लिए इस स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल कीजिए. 

आप चेस मास्टर को उसके ही गेम में कैसे हरा सकते हैं? जाहिर सी बात है काउंटर स्ट्रैटेजी बना करके, अपने कॉम्पटीटर बिजनेस को हराने के लिए भी ऐसा ही करना पड़ता है.कामयाब होने के लिए आपकी स्ट्रैटजी कस्टमर के डिमांड पर बेस्ड होनी चाहिए. ऑनलाइन ग्रॉसरी सर्विस वेबवैन ने लॉन्चिंग से पहले जरूरत भर रिसर्च नहीं किया था. नतीजतन कंपनी को लगा कि कस्टमर्स ऑनलाइन ग्रॉसरी ख़रीदने में दिल्चस्पी दिखाएंगे.

इंफ्रास्ट्रक्चर, वेयरहाउस और ट्रक्स वगैरह पर बहुत ज्यादा खर्च करने के बाद कंपनी को अहसास हुआ कि उन्होंने जो अंदाजा लगाया था कस्टमर्स उसका सिर्फ 40 परसेंट ही ऑर्डर कर रहे हैं. जिसकी वजह से 2001 में 1 billion-dollar के नुकसान के साथ कंपनी को बैंक-करप्टसी का सामना करना पड़ा.

इस तरह की सिचुएशन से बचने के लिए, अपने कस्टमर की परचेसिंग हैबिट को जानना और अपनी स्ट्रैटेजी को उनकी जरूरतों के हिसाब से ढालना बहुत जरूरी है. एक बार जब आप इस नॉलेज का इस्तेमाल स्ट्रैटजी बनाने में कर लें तो इसी का इस्तेमाल कर अपनी कंपनी को रीप्रोड्युसिबल बनाने के लिए अपने बिज़नेस मॉडल में कुछ चेंज भी कर सकते हैं.

यह फैक्टर इसलिए इंपॉर्टेंट है, क्योंकि कारगर बिजनेस मॉडल को रिपीटेबल होना चाहिए. शुरुआत में अपने बिजनेस में कुछ बड़े चेंज करने पड़ सकते हैं लेकिन वक्त के साथ आप एक स्टेडियस स्ट्रेटजी बनाने में कामयाब हो जाएंगे,  जिसमें थोड़ी बहुत इंप्रूवमेंट कर आगे बढ़ा जा सकेगा.मिसाल के तौर पर, एप्पल के सभी शुरुआती प्रोडक्ट्स, कंप्यूटर को असेंबल करने की किट्स ही थे. आज भी वह वक्त वक्त पर नए प्रोडक्ट रिलीज करते रहते हैं लेकिन ज्यादातर प्रोडक्ट उनके मौजूदा प्रोडक्ट्स में थोड़ी सी इम्प्रूवमेंट का नतीजा होते हैं, और वह इस प्रोसेस को लगातार रिपीट कर रहे हैं क्योंकि वक्त के साथ हार्डवेयर की कैपेबिलिटी बेहतर हो जाती है.आखिर में अपने बिजनेस मॉडल को बेहतर करने के लिए,  ऐसी अपॉर्चुनिटीज़ की तलाश करिए जो मार्केट में दबदबा बनाने और अपने कॉम्टीटर्स को हराने में कारगर साबित हो सके. इस बारे में आप याहू से कुछ सीख सकते हैं, एक ऐसी कंपनी जिसने एक वक्त पर गूगल को खरीदने का ऑफर ठुकरा दिया था.

याहू ऑनलाइन मीडिया, स्पोर्ट्स और फाइनेंस के लिए मार्केट बनाने में इतना ज्यादा बिजी हो गई थी कि इसने गूगल को खरीदने जैसी बेहतरीन अपॉर्चुनिटी गवां दी. यह बात छिपी हुई नहीं है कि आज सर्च इंजन के तौर पर गूगल मार्केट को डॉमिनेट कर रहा है, ईज़िली रिपीटेड बिजनेस मॉडल बनने के लिए, कंपनी लगातार अपने प्रोडक्ट्स को बेहतर करती रहती है.

बाहरी टैलेंट को अपनी कंपनी में जगह देकर और पहले से कारगर साबित हो चुके बिजनेस मॉडल पर काम करके अपने बिजनेस को आगे बढ़ाइए
एक बार जब आपका बिजनेस चल पड़ता तो यह एक्सपीरियंस बिजनेस के शुरूआती दौर से एकदम अलग हो सकता है. यह चीज बहुत नार्मल है लेकिन इसके लिए आपको आउटसाइड मैनेजर की जरूरत पड़ सकती है, जिनके हाथ में बिजनेस स्केल करने के लिए कंट्रोल और अथॉरिटी देनी होगी.ज्यातर स्टार्टअप के सीईओ के लिए अपना स्टार्टअप बहुत अजीज़ होता है, ऐसे में उसे किसी और के हाथ थमा देना थोड़ा मुश्किल हो सकता है. आपको यह याद रखना होगा की एंटरप्रेन्योर्स के मुकाबले बिजनेस मैनेजर को बिजनेस मैनेज करने का खासा एक्सपीरियंस है उन्होंने बड़ी कंपनियों के लिए काम किया है.क्रेगलिस्ट को ही देखिए, एक ऐसी वेबसाइट जहां पर आपको फर्नीचर से लेकर जॉब तक सब अवेलेबल मिलेगा. इस साइट के फाउंडर craig newmark को लगा कि वह एक बड़ी कंपनी मैनेज करने के लिए एक्सपीरियंस्ड नहीं हैं. इसलिए 2000 में उन्होंने वर्जीनिया से टेक ग्रेजुएट और क्रेगलिस्ट के एंप्लॉय Jim buckmaster को मैनेजमेंट का काम सौंप दिया. buckmaster मैनेजमेंट का काम सौंप  कर newmark ने उस काम पर फोकस करना शुरू किया जिसमें वह बेहतर कर सकते थे - वह कस्टमर सर्विस को अपना नीश समझते थे. 

तभी से buckmaster ने मैनेजमेंट का काम संभाल रखा है, और newmark का फैसला कंपनी को आज के दौर में मिलियन डॉलर बिजनेस बनाने में कामयाब रहा.लेकिन बिजनेस की ग्रोथ के लिए सिर्फ कंट्रोल किसी और के हाथ में दे देना काफी नहीं है. आपको एक ऐसे बिजनेस मॉडल की भी जरूरत होगी जो पहले कामयाब हो चुका है. बिना कस्टमर बेस क्रिएट किए अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने की सोचना सिर्फ बेवकूफी है, इससे पहले कि आप अपने बिजनेस को आगे बढ़ाना शुरू करें आपके बिजनेस का self-sustainable होना बहुत जरूरी है. यानी नुकसान होने की हालत में कम से कम आप सस्टेन तो कर ही सकें.मिसाल के तौर पर 1990 में डॉट कॉम  का जमाना आने के बाद ज्यादातर कंपनियां जल्दी से जल्दी अपने बिजनेस को आगे बढ़ाना चाहती थी. उनके इस जल्दबाजी में प्रॉब्लम यह थी कि वह एक नए बिजनेस मॉडल पर भरोसा करने की गलती कर रहे थे और उनके वैल्यूएशन के पीछे कोई सॉलिड रीजन नहीं था.  नतीजतन बहुत सारी कंपनियों ने मार्केट में पैठ बनाने से पहले ही बिजनेस को आगे बढ़ाने की जल्दबाजी में अपना सब कुछ लगा दिया.वहीं दूसरी तरफ इबे नाम की ई कॉमर्स साइट ने अपने आपको वक्त दिया और धीरे-धीरे ग्रोथ की तरफ आगे बढ़ी. इसने इंटरनेट पर तभी भरोसा करना शुरू किया जब तक कि प्रोवाइडर्स ने साइट पर आने वाले ट्रैफिक के हिसाब से चार्ज करना नहीं शुरू कर दिया. इस फैसले के चलते इबे 8 बिलियन डॉलर ऐनुअल रिवेन्यु के साथ दुनिया की नंबर वन इकॉमर्स प्लेटफॉर्म बन गया.

कुल मिलाकर
सक्सेसफुल एंटरप्रेन्योर्स को पता होता है कि उनके प्रोडक्ट कस्टमर की जरूरतों के हिसाब से ही होने चाहिए. इसलिए अच्छे लगने वाले किसी भी आइडिया पर पूरा पैसा खर्च कर देने के बजाय अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए कस्टमर और मार्केट की स्टडी के साथ ही अपने बिजनेस मॉडल को भी टेस्ट कीजिए.

 

क्या करें

A/B टेस्टिंग का इस्तेमाल करके जानिए कि आपका कस्टमर क्या चाहता है

जब आप रिसर्च या स्टडी में क्वांटिटेटिव मैथड का इस्तेमाल करते हैं तो यह आपको इक्ज़ैक्ट न्यूमेरिकल में बता देता है कि आपका कस्टमर आख़िर चाहता क्या है. इनमें से एक तरीका A/B टेस्टिंग के नाम से जाना जाता है.

इस तरीके का इस्तेमाल करने के लिए आपको कस्टमर के एक ग्रुप को एक प्रोडक्ट और दूसरे ग्रुप को दूसरा प्रोडक्ट देना है. फिर दोनों ही ग्रुप्स से पूछिए कि उन्हें वह प्रोडक्ट कैसे लगे. दोनों ही ग्रुप के जवाबों को कंपेयर करके आप जान जाएंगे कि कौन सा प्रोडक्ट पॉपुलर है.

 

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