David Burkus
इनोवेटिव कंपनियाँ और क्रिएटिव लोग आखिर इतने शानदार आइडियाज लाते कहाँ से हैं?
दो लफ़्ज़ों में
अगर आपको लगता है कि आप क्रिएटिविटी और इनोवेशन के बारे में सबकुछ जानते हैं तो ये किताब आपकी सारी ग़लतफ़हमियाँ दूर कर देगी. एक छोटे से आईडिया से लेकर उसके इनोवेशन बनने तक के सफ़र पर ये किताब आपको लेकर जाएगी. इसे पढ़ कर आप उन सभी के सीक्रेट्स जान पाएंगे जिन्होंने अपनी असल ज़िन्दगी में क्रिएटिविटी के जरिये नए मुकाम हासिल किये हैं.
ये किताब किसके लिए?
- वो लोग जो अपनी क्रिएटिव स्किल्स को बढ़ाना चाहते हैं.
- वो लोग जो किसी आर्गेनाइजेशन या बिज़नस को चलाते हैं.
लेखक के बारे में
डेविड बर्कस तुलसा, ओकलाहोमा में ओरल रॉबर्ट्स यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ बिजनेस में मैनेजमेंट के असिस्टेंट प्रोफ्फेसर हैं. वो क्रिएटिविटी, आर्गेनाइजेशनल बिहेवियर और इंटरप्रेन्योरशिप के फील्ड में स्पेशलिस्ट हैं. उन्होंने फास्ट कंपनी और ब्लूमबर्ग बिजनेस वीक जैसी कंपनीयों के लिए लिखा है और माइक्रोसॉफ्ट और स्ट्राइकर के लिए की नोट्स दिए हैं.
अपने क्रिएटिव पोटेंशियल को बढ़ाना है, तो क्रिएटिविटी को लेकर अपने नज़रिए को बदलिए.
क्या आपको भी ऐसा लगता है कि क्रिएटिविटी आपके बस की नहीं, और ये बस उन आर्टिस्ट टाइप लोगों का काम है? अगर आप ऐसा सोचते हैं तो अपनी इस ग़लतफहमी को दूर कर लीजिये. दरसल, सच तो ये है कि हम सबमें क्रिएटिव पोटेंशियल है. अगर हम चाहें तो हम भी बहुत कुछ क्रिएटिव कर सकते हैं.
क्रिएटिविटी को लेकर हम सबके मन में ऐसी ही कई और ग़लतफ़हमियाँ भरी हुयी है जैसे एक क्रिएटिव आईडिया के लिए आपका अकेला रहना जरुरी है, दुनिया से दूर होकर आप ज्यादा अच्छा सोच सकते हैं या फिर ये कि अपने आइडियाज को सच करने के लिए आपको बहुत से रिसोर्सेज की जरुरत पड़ेगी. जरा सोचिये कि इनमें से कितनी बातों पर आप भी भरोसा करते हैं?
तो आईये अपनी आँखों पर से ग़लतफहमी की पट्टी हटा कर क्रिएटिविटी को एक नए नज़रिए से देखने की कोशिश करते हैं.
एक दिन पेड़ के नीचे आराम करते हुए न्यूटन के सर पर एक सेब गिरा और उसे ख्याल आया कि सबकुछ आखिर नीचे ही क्यूँ गिरता है. और इस तरह न्यूटन नें ग्रेविटी की खोज की.
बचपन से सुनी इस कहानी नें हमारे मन में क्रिएटिविटी को लेकर ये ग़लतफहमी पैदा कर दी है कि शायद क्रिएटिविटी अचानक किसी चमत्कार के जैसे हमारे सामने आती है. ये एक आम धारणा है और हममें से ज्यादातर लोग इसपर यकीन भी करते हैं. लेकिन ये कहानी और ये धारणा दोनों ही गलत है.
असल में न्यूटन और उनके दोस्त जब पेड़ के नीचे खड़े थे तब उन्होंने इस बात पर गौर किया कि सब ऊपर से नीचे ही गिरता है और फिर दोनों नें सोच विचार किया और इस पर काम शुरू किया. बरसों की मेहनत और दो शानदार दिमागों की उपज ‘थ्योरी ऑफ़ ग्रेविटी’ कोई चमत्कार नहीं है.
हम अक्सर कहानियों और किस्सों की बातों को ज्यादा पसंद करते लेकिन सच यही है कि किसी भी काम को करने के लिए समय और मेहनत दोनों लगती है. इनसाइट या इन्स्पिरेशन तो उन बहुत से स्टेप्स का सेंट्रल स्टेप है जो क्रिएटिव लोग अपने लक्ष्य तक पहुँचने से पहले उठाते हैं.
अच्छे आइडियाज तभी पनप सकते हैं जब नीव मजबूत हो और उन्हें पूरा समय दिया जाए.
इसलिए दा विन्ची और एडिसन जैसे जीनियस लोग एक साथ अपने सभी आइडियाज पर काम किया करते थे ताकि सबको ज्यादा से ज्यादा समय मिल पाए.
जैसे-जैसे आप आगे बढ़ेंगे आपको समझ आएगा कि क्रिएटिविटी केवल इन फेमस जीनियस लोगों तक ही सीमित नहीं है.
क्रिएटिविटी केवल कुछ चुनिंदा लोगों तक सीमित नहीं है
पता नहीं क्यूँ हमें ऐसा लगता है कि कुछ लोग पैदाइशी जीनियस होते हैं या तो उन्हें क्रिएटिविटी भगवान से तोहफे में मिलती है या उनके जीन में होती है. इसलिए कुछ लोग बाकी लोगों से ज्यादा क्रिएटिव होते हैं. लेकिन ये थ्योरी बिलकुल गलत है.
अब तो साइंस भी इस बात को मानती है कि क्रिएटिविटी का जीन से कुछ लेना देना नहीं है. काफी लम्बे समय से साइंटिस्ट आइंस्टीन के दिमाग पर रिसर्च कर रहे हैं पर उन्हें अभी तक कोई ऐसा सबूत नहीं मिला कि उनका दिमाग बाकियों से कुछ अलग था, उल्टा उनका दिमाग एक एवरेज साइज़ से थोडा छोटा था.
इस बात को और अच्छे से समझने के लिए हम साइकोलॉजीस्ट मार्विन रेज़निकॉफ़ के एक्सपेरिमेंट को देखते हैं. उन्होंने क्रिएटिविटी और जीन के कनेक्शन को देखने के लिए एक स्टडी की. उन्होंने एक जैसे जेनेटिक कोड वाले आईडेंटिकल ट्विन्स और अलग जेनेटिक कोड वाले फ्रेटरनल ट्विन्स के दो ग्रुपों को कुछ क्रिएटिव करने को कहा.
अगर क्रिएटिविटी और जेनेटिक कोड में कोई कनेक्शन होता तो आईडेंटिकल ट्विन्स लगभग एक जैसी क्रिएटिविटी दिखाते लेकिन ऐसा हुआ नहीं. मार्विन रेज़निकॉफ़ नें पाया कि दोनों ही टाइप के ट्विन्स में क्रिएटिविटी को लेकर कोई खास समानता नहीं थी जो ये बात साफ़ करती है कि क्रिएटिविटी का जीन से कोई लेना देना नहीं है.
इतने रिसर्च के बाद भी कई कंपनियाँ और हमारा समाज आज भी यही मानता है कि कुछ लोग क्रिएटिव होते हैं और कुछ नहीं. इसी कारण से कंपनियों में क्रिएटिव कामों के लिए अलग से क्रिएटिव टीम बनायी जाती हैं और केवल वही लोग इनोवेशन से जुड़े कामों में हिस्सा लेते हैं. ऐसा करके कंपनीयाँ अपना ही नुक्सान करती हैं क्यूंकि जिन्हें नॉन-क्रिएटिव कहकर ऐसे कामों से दूर रखा जाता है कई बार उनके दिमाग में भी कोई बड़ा आईडिया होता है लेकिन उन्हें शेयर करने का मौका नहीं मिलता.
कुछ कंपनीयाँ ऐसी भी हैं जिन्होनें इस बात को समझ लिया है कि हर इंसान क्रिएटिव हो सकता है, जैसे गो-टेक्स फैब्रिक की खोज करने वाली गोर कंपनी. यहाँ कोई भी एम्प्लोयी अपने आइडियाज शेयर कर सकता है और इनोवेशन का हिस्सा बन सकता है. गोर कंपनी के ढेरों नए प्रोडक्ट्स इसी का नतीजा हैं.
यानी आप भी क्रिएटिव हैं तो आईये आगे देखते हैं कि आप अपने क्रिएटिव पोटेंशियल को कैसे एक्सप्लोर कर सकते हैं.
समय लेकर काम करें और अपनी पसंद का काम करें, क्रिएटिविटी का यही सही तरीका है. जब भी किसी कंपनी को नए प्रोडक्ट की जरुरत महसूस होती है, तो पहले मैनेजमेंट उसके क्राइटेरिया पर विचार करता है फिर वो जाकर क्रिएटिव टीम को अपनी जरुरत बताता है और उम्मीद करता है कि वो जल्द से जल्द एक नए और बड़े आईडिया को लेकर आयें जो उनके हर एक क्राइटेरिया पर खरा उतरे.
अगर आपने भी ऑफिस में मैनेजमेंट का ऐसा प्रेशर झेला है तो आपको ये जान कर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि ये इनोवेशन और आइडियाज पाने का सही तरीका बिलकुल नहीं है. तो आखिर क्रिएटिविटी का सही तरीका क्या है? इसका जवाब है डेमोक्रेटिक आर्गेनाइजेशनल स्ट्रक्चर. अगर कोई कंपनी अपने एम्प्लाइज की क्रिएटिविटी बढ़ा कर कुछ नया करना चाहती है तो उसे डेमोक्रेटिक आर्गेनाइजेशनल स्ट्रक्चर अपनाना चाहिए.
इस आर्गेनाइजेशनल स्ट्रक्चर के मुताबिक कंपनी में ना कोई फिक्स टीम होती है, ना किसी का फिक्स काम होता है और ना ही कोई टॉप-डाउन मैनेजमेंट सिस्टम. यहाँ, हर व्यक्ति अपने हिसाब से काम कर सकता है नए आइडियाज लाकर इनोवेशन का हिस्सा बन सकता है. यानी अगर आप मार्केटिंग के बंदे हैं और आपके मन में प्रोडक्ट से जुड़ा कोई आईडिया है तो भी आप उसपर काम कर सकते हैं.
रिकार्डो सेमलर नें जब अपने पिता की कंपनी सेमको (Semco) को टेक ओवर किया था तब वो दिवालिया होने की कगार पर थी. उन्होंने पुराने आर्गेनाइजेशनल सेट उप को हटा कर कंपनी में डेमोक्रेटिक आर्गेनाइजेशनल स्ट्रक्चर को अपनाया. साल 2003 तक मात्र 10 साल में उन्होंने उसी सेमको को 200 मिलियन डॉलर के टर्न ओवर वाली कंपनी में बदल दिया.
यानी केवल मुट्ठी भर लोगों को क्रिएटिविटी का काम सौंप कर उनसे तुरंत कुछ बड़ा सोचने की उम्मीद रखना बेवकूफी है. क्रिएटिविटी के लिए समय देना पड़ता है और अपने दिमाग को थोडा इधर-उधर भटकने का मौका देना पड़ता है.
कुछ वैज्ञानिकों नें स्टूडेंट्स के तीन ग्रुपों पर एक स्टडी की. सभी को 4 मिनट दिए गए और इस दौरान उन्हें एक कागज़ के टुकड़े के क्या-क्या क्रिएटिव उपयोग हो सकते हैं ये बताना था. उसमें से दो ग्रुपों को इसी टाइम में एक और काम करने को कहा गया. एक ग्रुप को कागज़ से ही मिलता जुलता काम दिया गया और दुसरे बिलकुल अलग.
इस स्टडी के रिजल्ट से एक हैरान कर देने वाली बात हमारे सामने आती है, जिस ग्रुप नें पुरे चार मिनट एक ही काम किया उसका परफॉरमेंस सबसे ख़राब रहा जिसनें पहले काम से मिलता जुलता काम किया था उसका थोडा बेहतर था लेकिन सबसे बेहतरीन परफॉरमेंस उस ग्रुप का था जिसनें पहले एक बिलकुल अलग काम ख़तम किया फिर कागज़ के बारे में सोचा.
यानी इस स्टडी से हम ये अंदाज़ा लगा सकते हैं कि काम को लेकर थोडा टालमटोल करने से क्रिएटिविटी बढती है. तो अगली बार जब आपका दिमाग यहाँ-वहाँ भटक रहा काम को टालने में लगा तो हो सकता है कि आपके दिमाग में कोई बेहतरीन आईडिया पक रहा हो.
हमारे आस-पास के माहौल का भी क्रिएटिविटी पर गहरा असर पड़ता है
हमारे आस-पास की हर चीज़ हमारे दिमाग पर असर डालती है, इसलिए हम कैसे सोशल नेटवर्क में हैं इस बात का असर हमारी क्रिएटिविटी पर भी पड़ता है. हम सोचते हैं कि इनोवेशन यानी अपने आईडिया पर अकेले बैठ कर सोचते रहना और उसका मास्टर प्लान तैयार करना. लेकिन, इनोवेशन का ये मॉडल बहुत कम ही सक्सेस होता है. क्यूंकि, जब तक आप लोगों से नहीं मिलेंगे और अपने आस-पास की चीज़ों पर गौर नहीं करेंगे तब तक आप ये नहीं समझ पाएंगे कि दुनिया में चल क्या रहा है? ऐसे में आपकी सोच एक ही डायरेक्शन में भटकती रहेगी. इसलिए अपने क्रिएटिव आईडिया को इनोवेशन में बदलने के लिए अपने आस-पास के लोगों से मिलें और देखें कौन क्या कर रहा है? क्या पता आपको किसकी बात से क्या इंस्पिरेशन मिल जाए.
ये बात सब जानते हैं कि बिल गेट्स और स्टीव जॉब्स कितने बड़े इनोवेशन का हिस्सा हैं लेकिन एक बात जो बहुत कम लोग जानते हैं वो ये है कि दोनों नें एक दुसरे को कितना और कैसे इंस्पायर किया है. जब स्टीव जॉब्स नें PARC कंपनी में अपनी विजिट के दौरान आल्टो कंप्यूटर को देखा तो उन्हें भी अपनी कंपनी में ऐसा ही कुछ बनाने का आईडिया आया जो आगे चलकर एप्पल कंप्यूटर बना. वहीं बिल गेट्स नें स्टीव जॉब्स के लिए काम करते हुए जब शुरुवाती एप्पल कंप्यूटर देखा तो उन्हें माइक्रोसॉफ्ट का आईडिया आया.
तो अब तो आप समझ ही गए होंगे कि कैसे एक बड़ा इनोवेशन दुसरे इनोवेशन की इन्स्पीरेशन बन सकता है. इसलिए अगर आप चाहते हैं कि आपकी कंपनी कुछ बड़ा और बेहतर कर के दिखाए तो आपको बड़ी सोच वाली टीम की जरुरत पड़ेगी जो आपके साथ मिलकर आपके इंस्पिरेशन को इनोवेशन में बदल दे.
हिस्ट्री में जितने भी महान अविष्कारक थे उन सबके पास एक बेहतरीन टीम थी. जैसे थॉमस एल्वा एडिसन को ही ले लीजिये. आपको क्या लगता है इलेक्ट्रिक बल्ब और उनके द्वारा बनाई गयी बाकी चीज़ें अकेले एडिसन नें बना ली थी, नहीं, बल्कि उनके साथ पूरी टीम थी जिसका नाम उन्होंने ‘द मकर्स’ रखा था जिसमें फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैकेनिक्स जैसी फ़ील्ड्स के साइंटिस्ट थे.
तो अगर अभी भी आप किसी चार-दीवारी में अकेले बैठ कर कुछ करने की सोच रहे हैं तो जरा बाहर निकल कर देखिये शायद किसी की सलाह में आपको वो आईडिया मिल जाए जिसकी आपको कबसे तलाश थी.
अगर आपका दिमाग अलग-अलग टाइप के नॉलेज को कनेक्ट कर सकता है तो इसका मतलब है आप क्रिएटिव हैं. अब तक आपने ये समझा कि कैसे हम अपने सोशल नेटवर्क को बढ़ा कर दूसरों से जुड़ सकते हैं और नए आइडियाज ढूँढ सकते हैं. लेकिन सिर्फ आइडियाज ढूँढने और चीज़ें सीखने से कुछ नया नहीं बनता बल्कि जब आप इतनी सारी इनफार्मेशन अपने दिमाग में इक्कठा करते हैं तो आपको उन्हें कनेक्ट करना भी आना चाहिए. अगर आप किसी इनफार्मेशन को अपने आईडिया से कनेक्ट नहीं कर पाए तो वो आपके किसी काम की नहीं.
जैसे चलिए, एडिसन का ही उदाहरण ले लेते हैं, अगर आप उस ज़माने में उनकी वर्कशॉप में जाते तो आपको वहाँ दुनिया भर की खुली हुयी मशीनों का ढेर मिलता. आप ये जानकर हैरान हो जायेंगे कि एडिसन की टीम पहले से बनी मशीनों को खोल कर एक दुसरे से जोड़कर कितना कुछ नया बना लिया करती थी.
हम कह सकते हैं कि ज्यादातर नयी टेक्नोलॉजी पुरानी टेक्नोलॉजीयों को जोड़ कर या उसमें फेर-बदल कर के ही बनती है.
अब ये तो हुयी बाहरी दुनिया की बात, अब जरा अपने दिमाग के अन्दर झाँक कर देखते हैं कि वहाँ ऐसा क्या है जो सारी इनफार्मेशन को एक दुसरे से कनेक्ट कर के कुछ नया सोचता है. इसे जाननें के लिए हम फिर से आइंस्टीन के दिमाग की तरफ चलते हैं. आपने पहले देखा था कि कैसे आइंस्टीन का दिमाग भी एक आम इंसानी दिमाग के जैसा ही था. यूँ तो जेनेटिक लेवल पर उसमें कुछ अलग नहीं था लेकिन एक चीज़ थी जो आइंस्टीन के दिमाग में ज्यादा थी वो है ‘वाइट मैटर’.
हमारे दिमाग के दो हिस्से हैं ग्रे मैटर जो इनफार्मेशन स्टोर करता है और वाइट मैटर जो ग्रे मैटर के अलग-अलग हिस्से में पड़ी इनफार्मेशन को इलेक्ट्रिक इम्पल्स के जरिये कनेक्ट करता है. न्यूरोसाइंटिस्टों का मानना है कि महान क्रिएटिव लोगों में वाइट मैटर जयादा होता है और वो लोग चीज़ों को बेहतर तरीके से कनेक्ट कर पाते हैं. लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि आप क्रिएटिव नहीं बन सकते क्यूंकि दिमाग का ये हिस्सा यूज़ एंड डिसयूज़ थ्योरी पर काम करता है, यानी आप इसका जितना ज्यादा इस्तेमाल करेंगे ये उतना ही बढेगा.
तो जरा अपने दिमाग को ट्रेन करें और अपना वाइट माटर बढाएं हो सकता है आप भी आइंस्टीन या एडिसन जैसा कोई नया इनोवेशन कर दें.
रिसोर्सेज की कमी कई बार किसी बड़ी क्रिएटिविटी को जन्म देती है
अभी तक हम यही सुनते आये हैं कि अपने विचारों को खुले असमान में उड़ने के लिए आज़ाद कर दें तभी कोई क्रिएटिव आईडिया आपके दिमाग में आयेगा. लेकिन, ये तरीका हमेशा सफल नहीं होता क्यूंकि ऐसे में कई बार हमारे मन में ऐसे आईडिया आते हैं जिन्हें पूरा करना प्रैक्टिकली पॉसिबल नहीं होता.
कंपनियों में आजकल ब्रेनस्टोर्मिंग का बड़ा फैशन है, सबको एक बड़े कमरे में बंद कर के उन्हें आइडियाज देने को कहा जाता है लेकिन ऐसे में आने वाले ज्यादातर आइडियाज किसी काम के नहीं होते. तो अगर आप समय बचाना चाहते हैं तो अपने ब्रेनस्टोर्मिंग सेशन के रूल्स में थोड़े बदलाव करें जैसे, आईडिया बताने से पहले सब थोडा होमवर्क कर के आयें यानी उससे रिलेटेड थोड़ी इनफार्मेशन इक्कठा कर के आयें. क्यूंकि, आखिर में वही आईडिया काम का है जिसे पूरा करने के रिसोर्सेजआपकी कंपनी के पास हों.
हम में से ज्यादातर के मन में ये बात आती है कि अगर हमारे पास रिसोर्सेज, फंडिंग और टाइम हो तो हम भी कुछ नया कर सकते हैं. लेकिन, मजे की बात ये है कि जितने शानदार आइडियाज हमें रिसोर्सेज कि कमी में आते हैं उतने शायद सबकुछ होते हुए भी नहीं आते. कहा जाता है कि, ‘नेसेसिटी इस द मदर ऑफ़ इन्वेंशन’ यानी जब जरुरत सामने आती है तभी कोई बड़ी खोज होती है. अगर एडिसन को रौशनी की कमी महसूस नहीं होती तो शायद उन्होंने बल्ब का इन्वेंशन भी नही किया होता. असल में होता ये है कि जब हमारे पास चीज़ों की कमी होती है तब हम कुछ आउट ऑफ़ द बॉक्स सोचना शुरू करते है, जिसे हम आम भाषा में जुगाड़ भी कह सकते हैं. यही जुगाड़ आगे चलाकर किसी बेहतरीन इनोवेशन में बदल जाता है.
तो जब आपको अपने आईडिया पर काम करते हुए चीज़ों की कमी महसूस हो तो समझ जाईये कि आपके दिमाग में अब कुछ बड़ा आने वाला है.
कुल मिलाकर
आज तक आपने क्रिएटिविटी के बारे में जो भी सुना है उसे भूल जाईये और बहाने बनान बंद कीजिये. याद रखिये हर कोई क्रिएटिव है. बस, अपना समय लीजिये, रास्ते में आने वाली रेस्ट्रिक्शन को अपौरच्युनिटी की तरह इस्तेमाल कीजिये दूसरों से सीखिए और फिर देखिये कैसे आपका क्रिएटिव पोटेंशियल बढ़ता है. कौन जाने आप भी कुछ ऐसा कर जायें जो आपने भी नहीं सोचा हो.
टाइम को लेकर घबराना छोड़ दें.
अगर आप भी टाइम बर्बाद करने से डरते हैं और आपको लगता है कि हर समय अपने प्रोजेक्ट पर काम करना जरुरी है तो रिलैक्स करें क्यूंकि आप टाइम बर्बाद नहीं कर रहे बल्कि अपने आईडिया को पकने का समय दें रहे है ताकि उसका फल और भी मीठा हो.
क्रिएटिव और नॉन-क्रिएटिव लोगों में फर्क करना बंद कर दें.
अगर आप किसी कंपनी के मालिक हैं तो क्रिएटिव और नॉन-क्रिएटिव जैसी बंदिशों से अपने एम्प्लाइज को आजाद कर दें. सबको सोचने का मौका दें क्या पता कौन किसी बड़े आईडिया को लेकर आये.
अपने आइडियाज को शेयर, रिवाइज और कंबाइन करें.
अगर आप एक टीम लीडर हैं तो अपने काम को ऐसे आर्गेनाइज करें की लोग आसानी से अपने आइडियाज को शेयर कर सकें उन्हें रिवाइज कर सकें और फिर सबके सुझावों को मिलाकर कुछ नया बना सकें.