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Andy Puddicombe
बस 10 मिनट से सब बदल सकता है

दो लफ्जों में
2011 में लिखी गयी गेट सम हेडस्पेस  मेडिटेशन को समझने और किन किन तरीकों से हमारे लिए बैनिफीशियल हो सकता है इसपर बेस्ड है. Andy एक बुद्धिस्ट मॉक हैं. वह अपने एक्सपीरियंस से स्ट्रांग केस प्रेज़ेंट करते हैं कि दुनिया के बिज़ी से बिज़ी रहने वाले लोग अपने लिए दस मिनट निकाल ही सकते हैं और यह दस मिनट क्लियर माइंड के साथ बेटर लाइफ़ जीने में आपके लिए बहुत ज़्यादा हेल्पफुल होगा.

किनके लिए है?
- आपके लिए, अगर आप मेडिटेशन की शुरूआत करना चाहते हैं
- स्ट्रेस और एग्ज़ाइटी का सामना कर रहे लोगों के लिए
- ऐसे लोग जिनकी ज़िंदगी में काम नहीं है बल्कि काम ही ज़िंदगी बन चुका है. 

लेखक के बारे में
ऑथर राइटर, पब्लिक स्पीकर और मेडिटेशन और माइंडफुलनेस के टीचर भी हैं. एंडी बुद्धिस्ट मॉंक भी रह चुके हैं. 2004 उन्होंने हेडस्पेस की शुरूआत इस मक़सद से की थी कि वह मेडिटेशन को लेकर लोगों के मिथ को डिबक कर सकें.

अपनी आम ज़िंदगी पीस और फुलफिल्मेंट के साथ जीने को ही हेडस्पेस कहते हैं
हम सबका दिमाग़ यहाँ वहाँ घूमता है, हम बेचैन, स्ट्रेस भी होते हैं ऐसा किसी एक साथ नहीं सबके साथ होता है जिस तरह की हम ज़िन्दगी जीते हैं या जैसी मॉडर्न लाइफ़ है उसमें हम अपनी रोज़मर्रा को काम को लेकर और जगह को लेकर बेचैन हो जाते हैं. ऐसे में वह तरीक़े क्या है जिनकी हेल्प से हम थोड़ा सा पीस ऑफ माइंड ढूँढ सकें. ज़िंदगी में ज़्यादा कर लेने से हमें पीस नहीं मिलेगा, बल्कि जो कुछ ज़िंदगी में चल रहा है उसे एप्रिशिएट करके और कुछ चीज़ों को इग्नोर करके हम अपना मेंटल पीस हासिल कर सकते हैं.

मेडिटेशन को लेकर तो वैसे आप बहुत सारी नॉलेज हासिल कर सकते हैं लेकिन इसकी सिम्पल से डिफेनीशन आप जो कर रहे हैं उसे अवेयर और माइंडफुल रहना है. आप जो भी कर रहे हैं उसमें पीस और ख़ुशी डेवलप करना ही मेडिटेशन का मक़सद है. और हाँ मेडिटेशन करने में घण्टों नहीं लगते और एक घण्टा निकालने की ज़रूरत नहीं है दस मिनट काफ़ी हैं. इस सारी में हम मेडिटेशन के बेनेफिट के साथ यह भी जानेंगे कि इसे आज के दौर की लाइफ़स्टाइल में जोड़ा कैसे जाए.

 

इस समरी में आप जानेंगे कि

क्योंकि फ़ोकस्ड मेडिटेशन का एक नतीजा यह भी है कि आप दूसरों की ज़्यादा कदर करने लगते हैं, कैसे बेहतर पीस और फुलफिलमेंट ने दस में से नौ लोगों की स्लीप क्वालिटी इम्प्रूव की है और अपने कामों को लेकर माइंडफुल रहने की क्या पॉसिबिलिटीज़ हैं यहाँ तक कि आप वॉक भी माइंडफुल होकर कर सकते हैं

 

तो चलिए शुरू करते हैं

क्या आपके लिए ऐसी लाइफ़ इमैजिन करना मुश्किल है जिसमें आप सिर्फ़ प्रेज़ेंट में जिएँ, फुज़ूल के ख़्याल, टेंशन और डिस्ट्रैक्शंस न हों. इमैजिन करके देखिए. उस पर्टिकुलर सिचुएशन में आपके ज़ेहन में और आपकी लाइफ़ में जो क्लिएरिटी है उसी को हेडस्पेस कहते हैं. सोच कर ही कितना अच्छा लगता है मतलब कोई टेंशन नहीं, कोई ओवरथिंकिंग नहीं. लेकिन ऐसी लाइफ़ हासिल कैसे की जा सकती है? जवाब है मेडिटेशन. मेडिटेशन के रेगुलर प्रैक्टिस से आप अपने माइंड को इसके नैचुरल स्टेट में रेलैक्स करा सकते हैं.

मेडिटेशन अपने दिमाग़ को साफ़ करने मतलब अपने दिमाग़ को फ़ालतू के ख्यालातों से बचाने के लिए एक जेटल प्रैक्टिस है. ताकि आप अपने मौजूदा वक़्त को ज़्यादा समझ और उसमें जी सकें. मेडिटेशन हमें आज के एग्ज़ाइटी भरे दौर में डिस्ट्रैक्शन और प्रेशर से बचाने या यूँ कहें कि उनके होने के बावजूद दिमाग़ को शांत रखने, अपनी फीलिंग्स और उसके पीछे की वजह जानने के लिए एक पावरफुल टूल है. जब हम एग्ज़ाइटी से दूर रहेंगे तो इसका हमारी ख़ुशियों और रिश्तों पर पॉज़िटिव असर ही पड़ेगा.

हमारे लिए सबसे ख़तरनाक हमारा अपना दिमाग़ है. इसमें चल रहे नेगेटिव थॉट हमें हमारे प्रेज़ेंट मोमेंट में जीने ही नहीं देते. अपने कितना भी डिस्ट्रैक्ट होने की कोशिश करें लेकिन इन थॉट्स के जंजाल से नहीं निकल पाते. क्योंकि हम में अपने इन नेगेटिव थॉट्स को किक ऑफ करने की स्किल ही नहीं है. वेल मेडिटेशन इज़ द सॉल्युशन औ यही मेडिटेशन का सबसे बड़ा फ़ायदा है. हमारा एक्शियस माइंड एक जंगली घोडे़ की तरह होता है, इसे कंट्रोल करने के लिए हमें इसे ट्रेन करना पड़ेगा और तरीक़ा बहुत सॉफ़्ट और जेंटल होना चाहिए. 

मेडिटेशन कोई बोझ नहीं है, इसे अपनी लाइफ़ में जोड़ने और इसके साथ कंफ़रटेबल होने के लिए आप बैठ कर सिम्पली अपने थॉट्स को ऑब्ज़र्व करें, और हाँ किसी एक थॉट पर रूकना नहीं है कि आप उस पर्टिकुलर चीज़ को लेकर ओवरथिंकिग करने लगें. इस एक्सरसाइज़ को करने के लिए आप किसी चीज़ को या किसी साउंड को अपना सेंटर ऑफ अटेशन बना सकते हैं, अगर आपको लगे कि आप बहुत सारे थॉट्स में फँसते जा रहे हैं तो बस अपने माइंड को वापस उस सेंटर ऑफ अटेंशन पर ले आइए यह जितनी बार होता है होने दीजिए बिना घबराये और बिना इरिटेट हुए आपको यह काम करना है.

अगर आप अपनी ज़िंदगी में क्लियरिटी चाहते हैं तो आपको कुछ वक़्त बिना कुछ किए भी गुज़ारने होंगे. कुछ वक़्त अपने दिमाग़ को बिना प्रेशर दिए यहाँ वहाँ भटकने दीजिए.

अच्छा बुरा मेडिटेशन कुछ नहीं होता जब तक आप अपने प्रेज़ेंट सिचुएशन से अवेयर हैं और डिस्ट्रैक्टेड नहीं हुए हैं. आपका मेडिटेशन गुड कैटेगरी में आता है. वहीं जब आप डिस्ट्रैक्ट हो गए तो सिचुएशन एकदम अपोज़िट हो जाती है.

मेडिटेशन करने के तरीक़े पर ही डिपेंड करता है कि आपको कैसा रिज़ल्ट मिलेगा
अगर आप अपनी लाइफ़ में माइंडफुलनेस और हेडस्पेस चाहते तो इसके लिए शुरूआत कहां से करेंगे. वेल अब ऐसा भी नहीं है कि पहले ही दिन आपने एक घण्टें बैठकर मेडिटेशन करने का  फ़ैसला कर लिया और आप सोच रहे हैं कि इस घण्टे के बाद आपकी लाइफ़ में क्लियरिटी आ जाएगी पूरा दिन आप अवेयरनेस में गुज़ारेंगे. तो ऐसा नहीं है आपको प्रैक्टिकल गोल्स ही रखने चाहिए. तभी आप मेडिटेशन के लिए अपने दिमाग़ को तैयार कर पाएँगे. जब आप मेडिटेशन स्टार्ट करें तो आपको यह रियलाइज़ करना बहुत ज़रूरी है कि जितना ज़्यादा आप अपनी प्लीज़ेंट फीलिंग्स यानि आपको जो अच्छा महसूस कराती हैं उनपर अटके रहेंगे उतना ज़्यादा आप उन्हें खोने से डरेंगे. आपको अपनी प्लीज़िंग फीलिग्स को जाने देना होगा ताकि आप सैडनेस से न डरें.

मेडिटेशन हमारे अंदर से फीलिंग्स की जद्दोजहद से निकाल देता है. ज़बरदस्ती हैप्पी रहने की कोशिश को यह ग़लत बताता है क्योंकि लाइफ़ हैप्पी और सैंड मोमेंट्स की हिस्सेदारी है मेडिटेशन से हम अपने अनकंफरटेबल फीलिंग्स को एक्सेप्ट करना सीख जाते हैं. इससे हमारी अवेयरनेस बढ़ती है. जब आप “मुझे अच्छा ही फ़ील करना है” और जब अच्छा फ़ील करें तो “कुछ बुरा हो गया तो”? की जद्दोजहद छोड़ देते और प्रेज़ेंट मोमेट में जीने लगते हैं ज़िंदगी रिलैक्स्ड और शांत होती है.

जब हमे किसी चैलेंजिंग फ़ीलिंग, सिचुएशन, इवेंट्स या इंवायरमेंट को डील नहीं कर पाते और कंप्रेस्ड हो जाते हैं तो हमारा माइंड स्ट्रेस्ड हो जाता है. मेडिटेशन आपको इमोशन को कौटेग्राइज़ेशन से बचा लेता है आपका यह लेबल करना ज़रूरी नहीं है कि कौन सा इमोशन बुरा है और कौन सा अच्छा मेडिटेशन प्रेज़ेंट मोमेंट में जीना सिखाता है. मेडिटेशन अटेंशन का पैसिव तरीक़ा है, आपका दिमाग जैसा चल रहा है चलने दीजिए बस इस बात का ध्यान रखिए कि आपके दिमाग़ में क्या आ और जा रहा है यही पॉज़िटिव औ नेगेटिव इमोशन के स्ट्रगल से बाहर निकलने का तरीक़ा है.

मान लीजिए कि आप एक बिज़ी हाई वे के किनारे खड़े हैं और दिमाग़ में सिर्फ़ कारें ही चल रहीं है अब आपका काम बीच में कूद कर ट्रैफ़िक सही कराना नहीं बल्कि जो भी थॉट्स आ रहे उन्हें अपने दिमाग़ से निकल जाने दीजिए बिना उससे एफेक्टेड हुए.

हर रोज़ एक घण्टे का सेशन ज़रूरी नहीं है दिन के दस मिनट मेडिटेशन के लिए काफ़ी हैं
मेडिटेशन का यह मतलब नहीं कि आपको एक घण्टा निकाल कर प्रॉपर इंतेज़ाम करके मेडेटेट करना होगा. हर किसी के पास न इतना टाइम है और न ही हर कोई क्लास ज्वाइन कर सकता है. लेकिन सॉल्युशन है. बस दस मिनट निकालिए और उसे जेटल मेडिटेशन के लिए इस्तेमाल करिए. 

आप जो भी काम कर रहे है उसमें पाँच से दस मिनट के लिए स्लो हो जाइए फिर किसी कंफ़रटेबल चेयर रेलैक्स होकर बैठ जाइए. और दस मिनट का टाइमर लगा लीजिए. बेहतर है कि सिम्पल टाइमर का इस्तेमाल करें रोलरकोस्टर वाली रिंगटोन की ज़रूरत नहीं है. अपनी आँखें बंद करने से पहले अपने माइंड और बॉडी को अलाइन कर लीजिए. इस तरफ़ अपनी अटेंशन ले जाइए कि आपकी बॉडी में क्या चल रहा है आपकी बॉडी कैसा महसूस कर रही है इसके बाद अपने थॉट्स को इसकी स्पीड से चलने दीजिए, अगर आप डिस्ट्रैक्ट हो जाते हैं तो कोई दिक़्क़त नहीं बस अपने माइंड को वापस ले आइए.

इतना करने के बाद बारी आती है ब्रीथिंग की. 30 सेकेंड में अपनी ब्रीथिंग को पूरी तरह ऑब्ज़र्व कीजिए कैसे आप ब्रीथ इन ब्रीथ आउट कर रहे हैं. जब आप साँस अंदर ले रहे हों तो उसे एक और जब एक्ज़ेल कर रहे हों तो दो गिनिए. इस तरह काउंटिंग जब तक कन्टिन्यु कीजिए जब तक की दस मिनट का अलार्म न बज जाए. अगर बीच में आप डिस्ट्रैक्ट होते हैं तो बस अपने आपको वापस लाइए, मैं फ़ोकस क्यों नहीं कर पा रहा मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है नो ड्रामा.

सबसे पहले अपने दिमाग़ पर फ़ोकस कीजिए जो भी इसमें आ रहा है आने दीजिए. फिर दस से बीस सेकेंड के बीच अपने दिमाग़ को कुछ स्पेस दीजिए. इससे आपका अटेंशन अपनी बॉडी और इनवायरमेंट पर जाएगा. अब कोशिश कीजिए कि इस पूरे सेशन में आपकी यह अवेयरनेस बनी रहे.

आप चाहे जो भी कर रहे, वह काम एक्टिवली हो रहा हो या पैसिवली आप कभी भी अपना हेडस्पेस हासिल कर सकते हैं
कोई टाइम डिसाइड करके मेडिटेट करने बैठना तो अच्छा है लेकिन मेडिटेशन को अपनी लाइफ़ का पार्ट और पार्सल बनाने के लिए आप कई तरीक़े अपना सकते हैं जैसे वॉकिंग.

ज़रूरी नहीं है कि आप ऑटो पायलेट पर वॉकिंग करें और अपने दिमाग़ में फुज़ूल के ख़्याल आने दें. वॉकिंग का यह टाइम आप मेडिटेशन के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं मतलब एक टाइम में आपका दो काम हो जाएगा.

इसके लिए शुरूआत अपनी बॉडी पर फ़ोकस करने से कीजिए. महसूस कीजिए कि वॉक करने के वक़्त आपको कैसी सेंसेशन फ़ील हो रही है. उसके तीस सेकेंड में अपने इंवायरमेंट के विजुएल्स को ग्रैम कीजिए, फिर फ़ोकस कीजिए साउंड पर और उसके बाद बारी आती है कि आप क्या स्मेल कर पा रहे हैं. और अपने फ़िज़िकल सेंसेशन पर आइए मतलब आपको सूरज की गर्मी महसूस हो रही है या ठंडी हवा चल रही है. एक दो मिनट के बाद आपका सारा अटेंशन आपकी बॉडी मूवमेंट और आपके फ़ीट स्टेप पर चले जाने चाहिए. एकदम वैसे ही जैसे सेटिंग मेडिटेशन के दौरान आपका फ़ोकस आपकी साँसों पर था. 

हालाँकि यह इतना आसान तो नहीं है लेकिन अगर आप अपनी लाइफ़ को मेडिटेशन का सिनोनिम बनाना चाहते हैं तो ज़्यादातर एक्टिविटी में मेडिटेशन शामिल कर सकते हैं. जैसे एक्सरसाइज़, रनिंग, कुकिंग एक्सट्रा. जैसे रनिंग मेडिटेशन आपकी एक्सरसाइज़ में फ़ोकस और रिलैक्सेशन का बैलेंस ला सकता है. और आपकी एक्सरसाइज़ बहुत कम एफर्ट में हो सकती है.

जब आप रनिंग कर रहे हों तो अपनी बॉडी और ब्रीथिंग पर फ़ोकस कीजिए और इस बात पर भी कि आपका माइंड पर इसपर कैसे रिएक्ट करता है. ऑब्ज़र्व कीजिए कि आपकी बॉडी कम्फर्टेबल है या आप अपनी बॉडी के साथ ज़बरदस्ती कर रहे हैं. इसका मक़सद किसी भी सेंसेशन को बदलना नहीं बल्कि बस ख़ुद से ख़ुद के प्रेज़ेंट सेल्फ़ से अवेयर होना है. इसकी हेल्प से आप माइंडफुल और प्रेज़ेंट मोमेंट में रह सकते हैं.

मेडिटेशन ज़िंदगी के छोटे से छोटे हिस्से में शामिल हो सकता है इसमें दूसरों के साथ आपका रिलेशन ठीक करने की कैपसिटी है
माइंडफुल होने के लिए आपको अलग से टाइम निकालने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि जब आपका दिमाग़ यहाँ वहाँ भटकना बंद करेंगा तो और छोटी छोटी चीज़ों को अपने कंट्रोल से बाहर नहीं जाने देने की कोशिश करेंगे तो आप जान जाएँगे कि अपनी लाइफ़ में पीस लाने के लिए आपके पास ज़रूरी टाइम और स्पेस पहले से है. यह हेडस्पेस और क्लियरिटी आपके अगले 24 घण्टे को माइंडफुल तरीक़े से बिताने की फ़ाउंडेशन प्रोवाइड करता है.

अपने फ़ोकस को बनाए रखने के लिए पूरे दिन को डॉट्स की ट्रीट कीजिए. एक डॉट को दूसरे सो कनेक्ट कीजिए. एक काम से पूरे तरह दूसरे काम पर शिफ़्ट करने के बजाय एक डॉट को दूसरे से कनेक्ट कीजिए. इस तरह आप अपने काम से अपने दिन से ज़्यादा अवेयर रहेंगे. 

दुनिया के टॉप नॉच लोग मेडिटेशन को इसलिए भी प्रायोरिटी देते हैं क्योंकि इससे सिर्फ़ आपकी लाइफ़ एफेक्ट नहीं होती बल्कि  दूसरों के साथ आपके रिश्ते भी बेहतर होते हैं. अपनी फ़िक्र अपने मसलों को पीछे छोड़ आप दूसरों की ख़ुशियों पर ज़्यादा फ़ोकस कर सकते हैं इस तरह आप अपनी टेंशन से भी दूर रहेंगे और ज़्यादा से ज़्यादा हेडस्पेस क्रिएट हो सकेगा. और जब आप प्रज़ेंट मोमेंट में रहेंगे तो इससे आपके रिलेशन पर पॉज़िटिव असर पड़ेगा आप अपनों को सुन रहें होगे उनपर फ़ोकस कर रहे होंगे. बोतों में सिर्फ़ जवाब देने के बजाय आप सुनने और समझने में फ़ोकस कर सकेंगे. 

हमारी लाइफ़स्टाइल ने बेसब्री को हमारा डिफ़ॉल्ट ट्रेट बना दिया है जब हमारा हेडस्पेस बढ़ता है तो हमारा पेशेंस लेवल इंक्रीस होता है दूसरों के साथ भी हम पेशंट रह पाते हैं.

माइंडफुलनेस बेटर स्लीप और ईटिंग डिस्ऑर्डर को ठीक करने में हेल्पफुल हो सकता है
मेडिटेशन करना और रोज़मर्रा के काम को माइंडफुल होकर करने से सिर्फ़ लाइफ़ ईज़ी और प्रोडक्टिविटी नहीं बढ़ती बल्कि आपकी नींद बेहतर होती है और ईटिंग हैबिट ठीक होती है. रनिंग मेडिटेशन और वॉकिंग मेडिटेशन की तरह आप स्लीप मेडिटेशन का इस्तेमाल कर सकते हैं.

सबसे पहले ऑब्ज़र्व कीजिए कि आप कैसा फ़ील कर रहे हैं. उसके बाद कुछ मिनट तक अपनी ब्रीथिंग पर फ़ोकस करें. फिर सूबह से अब तक अपने दिन पर एक नज़र डालें उसके बाद आप अपनी बॉडी के हर पार्ट पर ऐसे फ़ोकस करें कि एक बाद एक को आप टर्न ऑफ करना है. यह प्रोसेस बॉडी को आरामदायक नींद के लिए तैयार करता है.

 जनरल मेडिटेशन भी नींद को बहुत बेहतर कर सकता है University of Massachusetts Medical Schoo की एक स्टडी में पाया गया कि मेडिटेशन करने की वजह से इंसोमनिया का सामने करने वाला 58% लोगों ने नींद में काफी इम्प्रूवमेंट हुआ. 91% लोगों ने नींद की दवाइयां छोड़ दी हैं.

नींद के साथ हमारी ईटिंग हैबिट में भी काफ़ी प्रॉब्लम होती है. जैसे स्लीप मेडिटेशन से नींद बेहतर हो सकती है. ईटिंग मेडिटेशन की हेल्प से फ़ूड के साथ हमारा रिलेशन बेहतर हो सकता है. ईटिंग मेडिटेशन की हेल्प से हम अपनी बॉडी में क्या डालेंगे इसकी च्वाइस बेहतर कर सकते है. क्यों खाने को लेकर हमारा डिसिजन अक्सर इम्पल्सिव ही होता है. मन कर रहा है बिना सोचे समझे खा लिया. 

ईटिंग मेडिटेशन की शुरूआत भी ब्रीथिंग पर फ़ोकस करने से होगी. आप जहां भी हों अपने माइंड को स्लो करके सेटल हो जाइए. सोचिए कि आपकी प्लेट में यह खाना कहां से आया, खाने की वैल्यु को समझने की कोशिश कीजिए और शुक्रगुज़ार रहिए कि आपको खाना मिला है. खाने को ऑब्ज़र्व कीजिए कि यह कैसा दिख रहा है, स्मेल कैसी है, इसका कलर कैसा है. और आपका माइंड इसे लेकर कैसे रिएक्ट करता है. फिर फ़ोकस होकर खाना शुरू कीजिए अगर आपका माइंड यहाँ वहाँ जाता भी है तो उसे दोबारा खाने पर वापस ले आइए. जैसे जनरल मेडिटेशन भी आपकी नींद को बेहतर कर सकता है वैसे ही जनरल मेडिटेशन का आपके फ़ूड पर भी पॉज़िटिव इफ़ेक्ट होता है. 

ईटिंग डिसऑर्डर फ़ेस कर रही 24 साल की ऐमी ने ऑथऱ से मिलने बाद जनरल मेडिटेशन की मदद से ही हेल्थी लाइफ़स्टाइल पर वापस आयी थी.

रेगुलर मेडिटेशन करके स्ट्रेस और एग्ज़ायटी से दूर रहकर आप लाइफ़ क्वालिटी बेहतर कर सकते हैं
अब तक के डिस्कशन से यह तो प्रूव हो चुका है कि मेडिटेशन हमारी लाइफ़ के हर एस्पेक्ट को बेहतर कर सकता है. हमारी मॉडर्न लाइफ़ में हर गुज़रते दिन के साथ हमारे स्ट्रेस और एग्ज़ाइटी की गिरफ़्त में आने की पॉसिबिलिटी बढ़ती जा रही है. लेकिन इसका भी सल्युशन है साइंटिफिकली यह साबित हो चुका है कि माइंडफुलनेस हमारी सेहत के लिए एक ऐसेट है. और हम स्ट्रेस से बचने के लिए भी माइंडफुलनेस का इस्तेमाल कर सकते हैं. और माइंडफुलनेस के लिए आपको डेली मेडिटेशन करना होगा. रिसर्च बताती है कि मेडिटेशन इम्यून सिस्टम को इम्प्रूव करने के साथ ही ऑक्सीजन कंजप्शन, ब्रीथिंग रेट, हर्ट रेट और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है.

ऑक्सफर्ड की स्टडी बताती है कि किसी भी वुमन के कंसीव कने की एबिलिटी पर स्ट्रेस का बड़ी असर पड़ता है. और स्ट्रेस को को कंट्रोल में रखने के सबसे यूज़फुल मेडिसिन मेडिटेशन है. मतलब इनडायरेक्टली मेडिटेशन फर्टिलिटी को सपोर्ट करने में मेडिटेशन का बड़ा रोल है. University of Massachusetts Medical School की स्टडी बताती है मेडिटेशन करने वालों में स्ट्रेस रिलेटेड स्किन डिसीज़ चार गुना तेज़ी से ठीक होती है. स्टडीज़ यह भी बताती हैं कि एग्ज़ाइटी और डिप्रेशन जैसे इश्युज़ में मेडिटेशन बहुत ज़्यादा हेल्पफुल साबित हो सकता है. क्योंकि हम मेडिटेशन की स्टेट में अपने इमोशंस को इनके रॉ वर्जन में एक्सेप्ट करते हैं न कि अपने एक्सपीरियंस पर निगेटिव फिल्टर्स लगा रहे होते हैं. ऑथऱ की क्लीनिक में इलाज करा रहे 51 साल के पैम को एक साल के मेडिटेशन में एंटी डिप्रेसेंट से निजात मिल गयी अब वह दवाइयों पर नहीं जीते.

सिर्फ़ इतना ही नहीं UCLA के न्योरोसाइंटिस्ट बताते हैं जो लोग माइंडफुलनेस प्रैक्टिस करते हैं वह ख़ुद से और अपने इमोशंस से अवेयर होते हैं उनके निगेटिव लोगों से एफेक्ट में आने के चांसेस बहुत कम हैं. University of Massachusetts Medical School की स्टडी बताती है कि मेडिटेशन करने के आठ हफ्तों में ही 91% पार्टिसेंट की एग्ज़ाइटी और डिप्रेशन में काफी हद से इम्प्रूवमेंट दिखा.

कुल मिलाकर
ज़रूरी नहीं है कि आप घण्टे भर का टाइम  निकाल कर ताम झाम करके मंत्रा पढ़कर मेडिटेशन करें. बस आपको मेडिटेशन को लेकर जेंटल अप्रोच अपनाना है. सिर्फ़ दस मिनट का मेडिटेशन माइंडफुल रहने, अपने इमोशंस को समझने और काल्म लाइफ़ जीने में बहुत हेल्पफुल साबित हो सकता है.

 

 

क्या करें

जितना हो सके मेडिटेशन को ईज़ी बनाने की कोशिश कीजिए

कंफ़रटेबल, शांत जगह ढूँढिए कंफ़रटेबल कपड़े पहनिए और सबसे फ़ेवरेबल, कोज़ी और कंफ़रटेबल सिचुएशन में मेडिटेशन कीजिए. जहां तक वक्त की बात तो सुबह का वक़्त सबसे बेहतर होगा, क्योंकि इससे आपको पूरे दिन की क्लियरिटी आ सकती है. शुरूआत के लिए बेहतर है कि आप जर्नल में अपनी प्रोग्रेस में नोट करते हुए चलें ताकि इम्प्रूवमेंट करने में हेल्प हो सके.

 

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