Founded After 40

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Founded After 40

Glenda Shawley
40 साल की उम्र में बिजनेस कैसे शुरू करें?

दो लफ्जों में
फाउंडेड आफ्टर फोर्टी(2017) उन एंटरप्रेन्योर्स के सामने आने वाली अपॉर्चुनिटीज़ और प्रॉब्लम के बारे में डिस्कस करती है, जो काफी लेट बिजनेस शुरू करते हैं. बेहतरीन एग्जांपल और प्रैक्टिकल एडवाइस से भरी यह समरी हमें बताती है कि कैसे हम अपनी जिंदगी के किसी भी मोड़ पर कामयाब बिजनेस खड़ा कर सकते हैं.

किन के लिए है
- उन लोगों के लिए जो अपनी जिंदगी का लगभग आधा वक्त गुजार चुके हैं और अब नये आसमान की तलाश में है
- नए एंटरप्रेन्योर्स, जो कुछ बिजनेस एडवाइसेस चाहते हैं
- छोटे बिजनेस को चलाने वाले लोग जो एक नया नजरिया चाहते हैं

लेखक के बारे में
Glenda shawley लगभग दो दशक से एक कामयाब स्मॉल बिजनेस चला रही हैं. एक बिजनेस एडवाइजर के तौर पर shawley ने कई बिजनेस को खड़ा करने और उन्हें चलाने में मदद की है. उन्होंने अल्टरनेटिव मेडिसिन थेरेपिस्ट्स, वेब डिजाइनर्स, होम बेस्ड सोलो एंटरप्रेन्योर्स जैसे कई तरह के वेंचर्स के साथ काम किया है.

जब तक आपको मालूम नहीं होगा कि आप बिजनेस में क्यों है आपका बिजनेस कभी कामयाब नहीं हो सकता
उम्र के 40वें साल के पायदान पर पहुंचकर नर्वस हो जाना नॉर्मल है. बढ़ती उम्र के साथ आपके कंधों पर जिम्मेदारियां भी बढ़ती जाती हैं और ऐसे में इस बात की पॉसिबिलिटी बहुत ही कम है कि आप अपने दम पर बिज़नेस स्टार्ट करना चाहेंगे, क्या आपको ऐसा करना चाहिए? लेकिन मिड-लाइफ-क्राइसिस से गुज़रने के बजाय, आपके फोर्टीज़ की उमर आपके लिए नई अपॉर्चुनिटीज़ का दशक भी हो सकती है. 40 की उम्र तक आपको यह बात बहुत अच्छे से समझ आ सकती है कि आप अपनी वर्किंग लाइफ से क्या चाहते हैं और क्या नहीं. तो आप अपनी जिंदगी के इस दौर को नई चीजों के लिए मौके के रूप में कैसे बदल सकते हैं?

इस समरी में हम इसी पर तो बात करने वाले हैं. यहां आप बिजनेस शुरू करने के स्टेप बाय स्टेप तरीके जानेंगे, जिससे आपका कॉन्फिडेंस डेवलप होगा और आप अपने खुद के बॉस बन कर अपनी एवरीडे लाइफ में कुछ मीनिंगफुल काम कर सकेंगे. अपना आइडियल कस्टमर ढूंढने, प्रोडक्ट की कीमत तय करने से एक रेपुटेड ब्रांड बनने तक, यह समरी आपको अपनी जिंदगी के दूसरे पड़ाव में बिजनेस शुरू करने के लिये गाइड करेगी. इस समरी में आप जानेंगे, कि क्यों आपका ब्रांड एक आइसबर्ग की तरह है? कैसे आप सही और जरूरी लोगों को हायर कर सकते हैं? और किस तरह की प्राइसिंग स्ट्रेटजी का इस्तेमाल करना चाहिए?

तो चलिए शुरू करते हैं!

1992 में बिजनेस कंसलटेंट Shawley और इस किताब की लेखक, पर्फेक्ट रिज्यूमे बनाने में लोगों की मदद करके, पढ़ाकर और ट्रेड मैगजीन के लिए आर्टिकल लिखकर ठीक-ठाक पैसा कमा रही थी. उनके यह सारे काम फ्रीलांस थे. फ्रीलांसर होने के बावजूद shawley ने अपना खुद का बिजनेस क्यों नहीं स्टार्ट किया था? क्योंकि  उन्हें मालूम नहीं था कि वह ऐसा क्यों करें. shawley भी बिज़नेस उन्हें वजह से स्टार्ट करना चाहती थी जिस वजह से हम में से ज्यादातर लोग करते हैं. उन्हें अपनी फैमिली को फाइनेंशली सपोर्ट करना था और वह अपनी लाइफ में सिर्फ फैमिली एक्टिविटीज नहीं चाहती थी. हालांकि यह वजह वैलिड़ तो थी, लेकिन उनके बिजनेस के नींव के लिए अच्छी नहीं थी. आपके प्रोडक्ट और कीमत के अलावा एक और वजह से कस्टमर्स आपके कंपटीशन के बजाय आप को चुन सकते हैं और वह वजह है उनका आपके बिजनेस के पीछे की वजह से रिलेट कर पाना. shawley अपनी फैमिली को फाइनेंशली सपोर्ट करना चाहती थी, लेकिन यह वजह कस्टमर को उन्हें सपोर्ट करने के लिए कैसे इंस्पायरर  कर सकती थी? मिसाल के तौर पर, साइकोथैरेपिस्ट को ही ले लीजिए, उसके काम के पीछे की वजह कस्टमर को पेन फ्री जिंदगी जीने का मौका देती है. यह वजह, एक तरह की मोटिवेशन है जिसे वह अपने कस्टमर के साथ शेयर करती है और इसी शेयर्ड गोल की वजह से कस्टमर इस साइकोथैरेपिस्ट को बाकी साइकोथैरेपिस्ट के मुकाबले आगे बढ़ता हुआ देखना चाहेंगे.

जब आपको अपने काम की पीछे की वजह मालूम रहेगी तो आपको पता रहेगा कि किस काम को हां कहा जाए और किसको नहीं. काम के पीछे की वजह से ही, उस साइकोथैरेपिस्ट को यह समझने में मदद मिलेगी कि उसे कौन सा काम लेना चाहिए और कौन सा काम बेहतर है कि दूसरे ही करें. इस तरीके से साइकोथैरेपिस्ट के फ्रेंड्स और प्रोफेशनल नेटवर्क को मालूम होगा कि किस तरह के क्लाइंट को ही उनके पास भेजना चाहिए. वहीं दूसरी तरफ, shawley के पास काम को करने की कोई खास वजह नहीं थी  जिस भी काम से उसे अच्छे पैसे मिल जाते वह उस काम को हां कर देती. यह कन्फ्यूजिंग और थकाऊ था. उसके प्रोफेशन के लोगों को मालूम ही नहीं था कि वह किस तरह के काम में स्पेशलाइजेशन रखती है और किस तरह के क्लाइंट उसके पास भेजने चाहिए. इस प्रॉब्लम को समझ कर shawley ने अपने काम को स्पेसिफिक बना लिया और अब उसके काम के पीछे की वजह लोगों को अपना खुद का बिजनेस खड़ा करने में मदद करती है. अपने काम के पीछे की वजह जानने के लिए, एक्सप्लोर करना शुरू कीजिए कि आप किन चीजों को लेकर पैशनेट हैं और कौन सी यूनिक स्ट्रेंथ आपके अंदर है. अक्सर लोग इस तरह के सवालों का जवाब अकेले ही ढूंढने की कोशिश करते हैं लेकिन अपनी फैमिली और फ्रेंड से इस बारे में पूछना हेल्पफुल हो सकता है. क्योंकि कभी-कभी हम अपने अंदर की स्ट्रेंथ को नोटिस नहीं कर पाते जबकि हमारे आसपास रहने वाले लोग इसे समझ जाते हैं.

अगर आप बिजनेस की कुछ बुनियादी बातें समझ लेंगे तो आप वह गलतियां नहीं करेंगे जो अक्सर लोग करते हैं
एक बार आपको बिजनेस खड़ा करने की कोई सॉलिड वजह मिल जाए तो फौरन अपना वेंचर स्टार्ट कर देने का मन होता है. लेकिन उससे पहले आपको एक अच्छे बिजनेस के कुछ बुनियादी प्रिंसिपल समझ लेने चाहिए. जब आप शुरुआत कर रहे हो तो लोगों को अपने काम की तरफ अट्रैक्ट करना अच्छा आईडिया लग सकता है. क्योंकि जब लोग आपके प्रोडक्ट और सर्विस को पसंद करेंगे तो आपके पास खुद ब खुद बहुत सारे कस्टमर हो जाएंगे, हैं न? नहीं, यह एक ऐसी मिस्टेक है जो अक्सर लोग करते हैं. लोगों को अपीज़ करने की अपनी ख्वाहिश के बावजूद आपको हर किसी को सेल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. क्योंकि कोई भी चीज हर किसी को नहीं पसंद आती.

एग्जांपल के लिए अपना शॉपिंग टेस्ट ही ले लीजिए आप कुछ पर्टिकुलर स्टोर और ब्रांड की ही चीजें पसंद करते हैं. और जब भी आपको कुछ चाहिए होता है आप इन्हीं के पास आते हैं, किसी दूसरे की तरफ तो आप नजर उठाकर देखना भी पसंद नहीं करते. आपके आसपास मौजूद आपके दोस्त, पेरेंट्स हर किसी का अपना अलग टेस्ट है. आप ऐसा कोई भी प्रोडक्ट नहीं ढ़ूंढ़ पाएंगे जो हर किसी को पसंद हो. और अगर आप ऐसा कोई प्रोडक्ट क्रिएट भी करना चाहते हैं तो आखिर में ऐसा कुछ बना देंगे जो किसी को भी पसंद नहीं आएगा. इसलिए अपना प्रोडक्ट किसी खास ग्रुप ऑफ पीपल के लिए बनाने से मत डरिए, क्योंकि यही एक तरीका है जिससे कुछ खास कस्टमर्स को अपनी तरफ खींचा जा सकता है.

दूसरी एक और कॉमन गलती यह है कि लोगों को लगता है कि कस्टमर को जिस चीज की जरूरत होगी वह उस चीज को खरीदेगा ही. यह एकदम बेवकूफी वाली बात लगती है, कि अपने कस्टमर को वह ऑफर ना किया जाए जिसकी उसे जरूरत है या अपने प्रोडक्ट को कस्टमर की जरूरत के हिसाब से मार्केट न किया जाये. लेकिन यह सही है रियल वर्ल्ड में लोग वह नहीं खरीदते जिसकी उन्हें जरूरत है बल्कि वह खरीदने हैं जो उन्हें पसंद आता है. असल में कभी-कभी तो हम वह चीजें नहीं खरीदते जिन की हमें जरूरत है क्योंकि वह हमें एक्साइटिंग ही नहीं लगतीं. अब आप उन्हीं चीजों के बारे में सोच लीजिए जो आपने हाल-फिलहाल खरीदी हैं. क्या आपको उनकी जरूरत थी या फिर आपने पसंद की वजह से उन्हें खरीद लिया? इसलिए एक बिजनेस ओनर के तौर पर आपको अपने प्रोडक्ट को जरूरी ही नहीं बल्कि  ऐसा बनाना है जिसे लोग पसंद करें और खरीदना चाहे.

और आखरी बात यह कि कभी यह मत सोचिए कि अपने बिजनेस को जिंदा रखने के लिए आप अपने लॉयल कस्टमर पर डिपेंडेंट रह सकते हैं, चाहे आपने कितनी अच्छी सर्विस क्यों न दी हो. ऐसा इसलिए है क्योंकि हर बिजनेस रिपीट बिजनेस नहीं होता. अगर आप ऐसा कोई बिजनेस चला रहे हैं जो लोग रेगुलर बेसिस पर खरीदते हैं, जैसे कि फूड, कपड़े या ब्यूटी प्रोडक्ट्स तब तो वह लगातार आपके स्टोर विजिट करते रहेंगे. लेकिन अगर आप ऐसा कुछ बेच रहे हैं जो इतना फ्रिक्वेंटली इस्तेमाल नहीं होता, जैसेकि वेडिंग प्लानिंग वगैरा तो आपको लगातार नए कस्टमर की तलाश में रहना होगा.

अपने आइडियल कस्टमर को ढूंढिए और पता कीजिए कि वह आपके बिजनेस के बारे में क्या सोचते हैं। अब आप जानते हैं कि कौन सी कॉमन गलतियां नहीं करनी है, चलिए अब आइडियल कस्टमर के बारे में बात कर लेते हैं. आपके आइडियल कस्टमर वो लोग होते हैं जिनको ध्यान में रखकर आपने अपना बिज़नेस खड़ा किया है. जब आप अपना आइडियल कस्टमर आईडेंटिफाई करने की कोशिश कर रहे हो तो आपको अपने नीश का पता होना चाहिए जो कि बहुत स्पेसिफिक और बहुत डीप हो. मिसाल के तौर पर, मां को ले लीजिए. मां एक नीश है लेकिन यह पता करना कि दुनिया में कितनी मायें हैं यह तो बहुत बड़े लेवल की बात हो जायेगी. लेकिन अगर उस बिजनेस के बारे में बात की जाए जिसका मकसद 3 महीने तक के बच्चों वाली माओं की प्रॉब्लम सॉल्व करना है तो? अपने नीश को इस तरह स्पेसिफिक रखने का मतलब है कि आप अपने टारगेटेड कस्टमर के हिसाब से अपने बिजनेस की लैंग्वेज बिल्ड कर सकते हैं. आप ऐसी जगह पर एडवर्टाइजमेंट कर सकते हैं जहां पर आपका यह टारगेट कस्टमर मौजूद हो, चाहे ऑनलाइन हो या ऑफलाइन. मिसाल के तौर पर कोई ऐसा लोकल कैफे जहां पर पेरेंट्स आते हो या फिर कोई ऑनलाइन पेरेंटिंग फोरम.

3 महीने तक के बच्चों वाली मांओं को नीश बनाना सिर्फ स्पेसिफिक नहीं है बल्कि डीप भी है, सिर्फ यूनाइटेड किंगडम में ही हर साल 700,000 औरतें बच्चों को जन्म देते हैं. एक डीप नीश होना इसलिए फायदेमंद है क्योंकि अगर आप लोगों को अपीज़ कर लेते हैं, तो आपके पास लगातार कस्टमर आते रहेंगे. इससे पहले कि आप किसी पर्टिकुलर ग्रुप को अपना आइडियल कस्टमर मान लें, एक और काम किया जाना चाहिए- अपने लोकल एरिया में रिसर्च कीजिए. मिसाल के तौर पर, आपने नोटिस किया कि आपके लोकल एरिया में प्रीमियम विमेंस क्लॉथिंग शॉप की कमी है. शॉप बनाने के लिए किसी स्टोरबिल्डिंग में कमरा लेने से पहले सोचिये आस पास कितनी औरतें रहती हैं और उन में से कौन आपकी आईडियल कस्टमर बन सकती हैं? हला़कि मार्केट में उस पार्टिकुलर चीज की कमी है लेकिन जरूरी नहीं है कि इसकी वजह से आपको आपके आईडियल कस्टमर मिल ही जाएं.

किसी भी एरिया की आबादी के बारे में जानने के तरीके हैं. मिसाल के तौर पर, अगर आसपास कहीं हाउसिंग डेवलपमेंट हुआ है तो डेवलपर ने काम से पहले एरिया के सोशल और इकोनॉमिक कंडीशन के बारे में रिसर्च जरूर किया होगा आप उनके बनाए हुए डेटा को एक्सेस कर सकते हैं. एक बार आप आइडियल कस्टमर की स्पेसिफिक और डीप नीश क्रिएट कर लेते हैं, तो आगे आपको जानना है कि क्या वह आपका प्रोडक्ट उस कीमत पर खरीदने के लिए तैयार है जो आपके लिए फायदेमंद हो. यह चेक करने के लिए आप एक सस्ता और बिना रिस्क वाला रास्ता अपना सकते हैं. उस एरिया के वीकेंड मार्केट में अपने लिए एक जगह किराए पर ले लीजिए या फिर ऐसे एरिया में भी आप किराए पर ले सकते हैं जहां पर आपके आइडियल कस्टमर्स का आना जाना हो.

हार ना मानना और वैल्यू के आधार पर ब्रांडिंग करना आपके बिजनेस की कामयाबी के लिए बहुत जरूरी है
अपनी पिछली कार को खरीदने के बारे में आपने कैसे फैसला लिया था? जब लेखक यंग थीं तो वह skoda की बनाई हुई कार बिल्कुल नहीं पसंद करती थी क्योंकि मार्केट में उनकी एक रिप्यूटेशन बन गई थी कि उनका प्रोडक्ट टूट जाता है. उन्होंने Volvo को भी उसकी मिडिल एज्ड, फैमिली फ्रेंडली इमेज की वजह से रिजेक्ट कर दिया. इस तरह के खयाल बताते हैं कि ब्रांडिंग कितना इंपॉर्टेंट है, और अगर आप अपने बिजनेस को सक्सेसफुल बनाना चाहते हैं, तो आपको भी बहुत ध्यान से ब्रांडिंग करनी होगी. बहुत सारे लोगों को लगता है ब्रांड उसी को कहते हैं जो, लोग उनके बिजनेस के कांटेक्ट में आकर देखते हैं, जैसे कि लोगो, डिजाइन, स्टोर का लुक या स्टाफ की यूनिफार्म. लेकिन ब्रांडिंग इससे भी बहुत आगे की चीज है. बिज़नेस एक्सपर्ट्स अक्सर ब्रांडिंग को आइस-बर्ग से कंपेयर करते हैं, इसका एक ही हिस्सा ऊपर दिखता है लेकिन अंदर बहुत कुछ चलता रहता है. लोगो और कस्टमर की यूनिफार्म आपके ब्रांड की सरफेस है इस सरफेस के नीचे कस्टमर सर्विस, सोशल मीडिया पर कस्टमर रिव्यू वगैरह जैसे कई कंपोनेंट काम करते हैं. अगर सरफेस के ऊपर और सरफेस के नीचे की चीजों में कनेक्शन नहीं होगा तो आपके बिजनेस को नुकसान पहुंचेगा. मिसाल के तौर पर अगर किसी ब्रांड का स्लोगन है "हमारे साथ सेफ महसूस कीजिए" और इसका डिलीवरी ड्राइवर बहुत ख़राब ड्राइविंग करता है, तो इस बिजनेस की कथनी और करनी में फर्क हो जाएगा, जो पोटेंशियल कस्टमर को बिल्कुल नहीं पसंद आएगा. इसकी ब्रांडिंग बहुत कमज़ूर है.

सोशल मीडिया के जमाने में यह और भी जरूरी हो जाता है कि लोग आपके ब्रांड से पॉजिटिवली जुड़ें. पहले डिसेटिस्फाइड कस्टमर आपके बिजनेस के बारे में सिर्फ 5 ही लोगों को बता सकता था. लेकिन आज सोशल मीडिया की मदद से अगर किसी कस्टमर का एक्सपीरियंस आपके साथ अच्छा नहीं रहता तो वह 5 नहीं 5000 लोगों को बता सकते हैं. अपनी ब्रांडिंग उन कोर वैल्यूज़ पर आधारित कीजिए, जिन्हें आप चाहते हैं कि आपका बिजनेस उन वैल्यूज़ लिए जाना जाए. मिसाल के तौर पर, अगर कोई आर्टिस्ट और एंटरप्रेन्योर मोजैक बनाती है. वह चाहती है कि उसका प्रोडक्ट अफॉर्डेबल और हाई क्वालिटी का हो. जितनी जल्दी वह अपनी इन वैल्यूज़ को आईडेंटिफाई करने में कामयाब हो जाती है उतनी जल्दी वह अपने बिजनेस की ब्रांडिंग कर सकेगी. एक बार आपने यह डिसाइड कर लिया कि आप अपने बिजनेस के लिये किन वैल्यूज़ के आधार पर नाम कमाना चाहते हैं, फिर चाहे वह मोजैक जैसी अफॉर्डेबल लग्जरी हो या फैमिली फ्रेंड के लिए रिलायबिलिटी बन चुकी वोल्वो कार, आप एक ऑथेंटिक ब्रांड बन जाएंगे.

चाहे आपके बिजनेस शुरू करने के पीछे की वजह कितनी ही बड़ी रही हो फिर भी आपको प्रॉफिट कमाना है. 40s की उम्र में होने का एक फायदा यह होगा कि आपको फाइनेंस की थोड़ी बहुत समझ होगी, चाहे आपने घर का ही बजट क्यों ना हो हैंडल किया हो. फिर भी बहुत सारे एंटरप्रेन्योर्स के लिए प्रोडक्ट की कीमत तय करना बिजनेस लांच करने का सबसे मुश्किल फेज़ होता है. अच्छी बात यह है कि अगर आप अपने फाइनेंस के बारे में थोड़ा सा भी सोचेंगे, तो यह लंबा चल सकेगा. मिसाल के तौर पर अगर आप इफेक्टिव फाइसिंग स्ट्रेटजी इस्तेमाल करते हैं तो आप फायदा कमाते हुए भी अपने कस्टमर से ज्यादा चार्ज नहीं करेंगे. ऐसी ही एक स्ट्रेटजी जिसका बिजनेसेस काफी इस्तेमाल करते हैं उसे कॉस्ट प्लस प्राइसिंग कहते हैं, सबसे पहले किसी सर्विस और प्रोडक्ट की कीमत इस आधार पर तय कीजिए कि आपको उसकी बेसिक कॉस्ट क्या पड़ रही है, उसके बाद उसमें अपने फायदे का कुछ परसेंटेज जोड़ दीजिए. लेकिन उससे पहले यह इंश्योर कर लीजिए कि आपकी कीमत आपकी इंडस्ट्री से मिलती जुलती है क्योंकि हर सेक्टर में अलग-अलग कीमत चलती है. मिसाल के तौर पर अगर आप एक प्रीमियम क्लॉथिंग स्टोर खोल रहे हैं तो आपको उस पर एक्स्ट्रा परसेंटेज थोड़े ज्यादा लगाने होंगे क्योंकि सीजन खत्म होते ही  यह कपड़े आउट ऑफ़ फैशन हो जाते हैं, और बचे हुए कपड़े आपको डिस्काउंट पर बेचने होंगे. अगर आपका मार्कअप यानी फायदे का परसेंटेज ज्यादा है तो बाद में डिस्काउंट पर कपड़े बेचने के बावजूद आपका कॉस्ट कवर हो जायेगा.

दूसरा ऑप्शन है कंपटीशन प्राइसिंग, यह एक ऐसी स्ट्रेटजी है जिसमें आप अपने कंपटीशन के प्राइस देखते हैं और फिर अपना प्राइस उनसे काफी कम रखने की कोशिश करते हैं. कंपटीशन प्राइजिंग एक अच्छा तरीका हो सकती है लेकिन जब आप बहुत काम फायदे पर काम कर रहे हैं तो थोड़ा केयरफुल रहने की जरूरत है. अपनी कीमतों को कंट्रोल में रखना बहुत जरूरी है अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप जरा सा भी फायदा नहीं कमा पाएंगे. अपने आप से सवाल पूछें कि क्या आप अपने फाइनेंस पर टाइट कंट्रोल रख सकते हैं, और अगर ऐसा नहीं है, तो आपको कंपटीशन प्राइसिंग नहीं अपनानी चाहिए.

और आखिर में आती है वैल्यू ड्रिवन प्राइसिंग स्ट्रेटजी. अपने कंपटीशन के प्राइस से मैच करने की बजाय इसमें आप अपने हाई प्राइस को अपनी सर्विस और प्रोडक्ट क्वालिटी जैसे अॉफर से जस्टिफाई करते हैं. मिसाल के तौर पर, एक हेयर ड्रेसर हर हेयर कट के साथ हेड मसाज ऐड करके अपनी हाई प्राइसिंग को जस्टिफाई कर सकता है. वैल्यू बेस्ड प्राइसिंग काफी इफेक्टिव होती है, खासतौर पर तब जब आपका ऐड किया हुआ अॉफर आपके लिए तो सस्ता पड़े लेकिन कस्टमर्स के लिए डिजायरेबल हो मतलब उन्हें पसंद हो.

शुरुआत से ही अपने कस्टमर की जरूरत को अपने बिजनेस का सेंटर बनाइये
हम में से बहुत सारे लोगों के लिए 40 की उम्र के बाद कोई बिजनेस खड़ा करना काफी एक्साइटिंग हो सकता है, आप फाइनली अपने बॉस बन सकते हैं अपनी फैमिली लाइफ के हिसाब से अपना वर्किंग आवर सेट कर सकते हैं और डिसाइड कर सकते हैं कि कब आप को काम करना है और कब नहीं. लेकिन अगर आप भी ऐसा ही नजरिया रखते हैं तो एक बार सोच कर देखिए. अपने बिजनेस को अपने हिसाब से सेट  करने की सोचना नेचुरल है, लेकिन आपकी जरूरतों से ज्यादा आपके कस्टमर की जरूरत इंपॉर्टेंट है. जो भी करें दिल से करें. अपनी कंपनी को customer-centric बनाने का मतलब है कि आप अपने बिजनेस के एकदम शुरुआत से ही कस्टमर की जरूरतों को फोकस में रखें. बहुत सारे बिजनेसमैन यही गलती करते हैं वह अपना आइडियल कस्टमर आईडेंटिफाई करते हैं, कस्टमर्स को अट्रैक्ट करने वाला प्राइस पॉइंट सेट करते हैं, और उम्मीद करते हैं कि उनके आगे कस्टमर्स की लंबी लाइन लग जाए. लेकिन यह इतना आसान नहीं है. सबसे पहले आपको अपने बिजनेस के बारे में अवेयरनेस क्रिएट करनी होगी अपने बिजनेस को लोगों तक पहुंचाना होगा. कस्टमर सेंट्रिक तरीके से ऐसा करने के लिए उन प्रॉब्लम के बारे में सोचिए जिनका सामना आपका आईडियल कस्टमर कर रहा है. आपका बिजनेस इस प्रॉब्लम को कैसे सॉल्व कर सकता है?

सबसे पहले तो आप ऐसा सलूशन ऑफर कर सकते हैं जिसके बारे में आपके कस्टमर ने सोचा भी ना हो. अगर आप आयरेनिंग सर्विस चलाते हैं, तो मान लीजिए कि आपने अपना आइडियल कस्टमर उन मदर्स को चुना है जो अपने घर और बच्चों का ख्याल रखते हुए फुलटाइम जॉब में है. मुमकिन है इस तरह की औरतें अपना स्ट्रेस कम करने का कोई सलूशन ढूंढ रही होंगी और इसके लिए उन्होंने गूगल भी किया होगा. वहीं यह भी हो सकता है कि अपने स्ट्रेस को कम करने के लिए उन्होंने आयरेनिंग सर्विस को कंसीडर ही ना किया हो. और आपका बिजनेस उनकी बहुत हेल्प कर सकता है. इस तरह की मदर्स का अटेंशन ग्रैप करने के लिए इंश्योर कीजिए कि आपका ऑनलाइन प्रेजेंस है और वहां पर उनकी प्रॉब्लम को ऐसे डिस्क्राइब कीजिए जो उन्हें अच्छे से समझ आ जाये. उसके बाद उन्हें इस प्रॉब्लम का सलूशन ऑफर कीजिए. आप उनसे कुछ यूं कह सकते हैं, "इतने सारे काम की वजह से आपको स्ट्रेस हो रहा है और रातों को नींद नहीं आ रही? हमसे आयरेनिंग कराकर अपना स्ट्रेस लेवल कम कीजिए." इस तरीके से आप अपने बिजनेस को अपने आइडियल कस्टमर तक कुछ यूं पहुंचाते हैं जो उसकी प्रॉब्लम और उसकी जरूरतों को सेंटर में रखें. आपने अपने बिजनेस को खुद के नहीं बल्कि कस्टमर की जरूरत के हिसाब से आर्टिकुलेट करना भी शुरू कर दिया है. यकीनन, इससे आपका फायदा भी होगा लेकिन कस्टमर को यह लगना कि उसकी जरूरतें आपके लिए सबसे ज्यादा इंपोर्टेंट है बहुत ज्यादा फर्क ला सकता है.

40 की उम्र में होने के अपने फायदे हैं आप ज्यादा कॉन्फिडेंट और समझदार होंगे. लेकिन इसके कुछ ड्रॉबैक्स भी हैं इस उम्र में आप उतने एनर्जेटिक नहीं महसूस करते जितना शायद 30 की उम्र में करते. यह कोई प्रॉब्लम की बात नहीं है, तब तक तो बिल्कुल भी नहीं जब तक आप को मालूम हो कि कब हेल्प लेनी चाहिए. आपका यह बिजनेस आपके लिए इतना इंपॉर्टेंट हो सकता है कि आप इसे किसी और के हाथ में ना देना चाहे लेकिन जरूरत पड़ने पर किसी की हेल्प लेना बिजनेस के लिए बहुत जरूरी है.

मिसाल के तौर पर, आप उन कामों के लिए किसी को हायर कर सकते हैं जिनमें आपको बहुत टाइम लगता हो और सामने वाला इंसान चुटकियों में कर देता हो. आप कार्ड डिजाइनर को ही ले लीजिए उसका काफी वक्त दुकान से काट ले आने मे चला जाता है इस वक्त वह नया प्रोडक्ट लाइन डिजाइन करने में इस्तेमाल कर सकता था. ऐसे में इसका सिंपल सा सलूशन यह हो सकता है कि यह काम सेल्स और मार्केटिंग वाले बंदे को दे दिया जाए जिसे सेल्स में स्पेशलाइजेशन हासिल है और वह इन डिजाइनर कार्ड्स रिटेलर्स को बेच दे. इस तरीके से जिसको सेल्स की जिम्मेदारी दी गई है वह भी बड़ी आसानी से यह काम कर सकेगा क्योंकि डिजाइनर ने पहले ही इंडस्ट्री में अपने कोंटेक्ट और अपना रिप्यूटेशन बना रखा है. तो अगली बार जब आपको बिज़नेस का कोई काम करने में परेशानी आए, तो सोच कर देखिए क्या यह काम किसी और को दे देना ज्यादा बेहतर होगा?

अगर आप अपनी हेल्प के लिए किसी दूसरे इंसान को ढूंढ रहे हैं, तो जरूरी है कि आप एक रिक्वायरमेंट प्रोसेस के जरिए उस इंसान का चुनाव करें, ताकि वह उस जॉब के लिए बेस्ट फिट हो. अक्सर लोग कोई भी वर्कर एक ट्रेडिशनल इंटरव्यू प्रोसेस से चुनते हैं लेकिन यह थोड़ा ट्रिकी हो सकता है.  इंटरव्यू के दौरान किसी की कम्युनिकेशन स्किल से इंप्रेस हो जाना बहुत आसान है मगर हो सकता है प्रैक्टिकली उस इंसान को जरूरी स्किल्स आती ही ना हों. आप से यह गलती ना हो, इसलिए कंसीडर कीजिए कि एंप्लॉय को किस तरह के काम करने होंगे. मिसाल के तौर पर अगर एंप्लॉय को फोन पर कस्टमर से बात करनी है तो आप उसका टेलिफोनिक इंटरव्यू ले कर देख सकते हैं कि वह टेलिफोनिक कन्वर्सेशन में कैसा है. अगर आप किसी एडमिनिस्ट्रेटिव रोल के लिए हायरिंग कर रहे हैं, तो आप एंप्लॉय को कुछ कामों की लिस्ट देकर उससे काम को इफेक्टिवली करने का प्रैक्टिकल टेस्ट दे सकता हैं. इस समरी में दी गई एडवाइस और अपनी अच्छी खासी उम्र के एक्सपीरियंस की मदद से आप एंटरप्रेन्योरशिप के रास्ते में आने वाली रुकावट को बड़ी आसानी से दूर कर लेंगे. अपनी जिंदगी को सेल्फ फुलफिलमेंट और फाइनेंशली इस्टैब्लिशमेंट की तरफ ले जाइए.

कुल मिलाकर
किसी भी उम्र में बिजनेस स्टार्ट करने के लिए आपको क्लियर परपस, अच्छी फाइनेंशियल स्ट्रैटेजी और कस्टमर अंडरस्टैंडिंग की जरूरत होती है. मिड-लाइफ में कोई भी बिजनेस स्टार्ट करने का मतलब है कि आपके पास उम्र का एक्सपीरियंस और फाइनेंशियल समझ तो होगी लेकिन साथ ही कुछ फिजिकल चैलेंज का भी सामना करना पड़ सकता है, जिसके चलते आप एंप्लॉय हायर कर सकते हैं.

 

क्या करें

सोच समझकर लॉन्च करें

हो सकता है आपने अच्छे से डेकोरेशन और लोकल प्रेस को इनवाइट कर के लॉन्च पार्टी के बारे में सोच लिया हो, लेकिन यह रिस्की हो सकता है. अपने आपसे पूछिये कि क्या आपके बिजनेस में शुरुआती 48 घंटे में सैकड़ों पोटेंशियल कस्टमर से डील करने की काबिलियत है. आपको फर्स्ट इंप्रेशन बनाने के लिए कभी दूसरा चांस नहीं मिलता और अगर आपने अच्छे से तैयारी नहीं कर रखी है तो हो सकता है कि आप अपने कस्टमर को वह एक्सपीरियंस न दे पायें जिसकी वजह से वह लौटकर दुबारा आपके पास आएं. इसलिए लॉन्च करने से पहले सोचिए. बेहतर होगा कि आप शांति से शुरुआत करें और अपने बिजनेस के बारे में पोटेंशियल कस्टमर तक लोगों के मुंह से पहुंचने दें.

 

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