Iddo Landau
कई तरीकों से लाइफ मीनिंगफुल बन सकती है
दो लफ्ज़ों में
आज के समय में आपने भी नोटिस किया होगा कि ज्यादातर लोग लाइफ में मीनिंग की तलाश करते रहते हैं. साल 2017 में रिलीज़ हुई किताब “Finding Meaning in an Imperfect World” आपको उसी सवाल के जवाब की ओर लेकर जाने का काम करेगी. इस किताब की मदद से आपको पता चलेगा कि क्या ये सवाल सही भी है? या फिर ये सिर्फ और सिर्फ मन का भ्रम है. लेखक ने इस किताब में कई ऐसे टूल्स की बात की है. जिनकी मदद से आप लॉजिकल तरीके से लाइफ में मीनिंग की तलाश कर पाएंगे. आपको कई थ्योरीज़ के बारे में भी पता चलेगा. इसी के साथ आप इतने काबिल हो जाएंगे कि मीनिंग की तलाश आसान हो जाएगी.
ये किताब किसके लिए है
· ऐसे थिंकर्स जिनको लाइफ में मीनिंग की तलाश है
· सभी स्टूडेंट्स के लिए
· प्रोफेशनल जिन्हें लाइफ में सक्सेसफुल बनना हो
· ऐसे लोग जिन्हें क्रिएटिव थिंकिंग से प्यार हो
· ऐसे लोग जिन्हें फिलॉसफी में इंटरेस्ट हो
लेखक के बारे में
इस किताब को Iddo Landau ने लिखा है. ये पेशे से हैफा यूनिवर्सिटी में फिलॉसफी के प्रोफेसर हैं. इन्होने मीनिंग ऑफ़ लाइफ के बारे में काफी ज्यादा रिसर्च की हुई है.
वैल्यूज़ को याद रखिए और ग्रोथ ओरिएंटेड फैसले लेते रहिए
सक्सेस के रास्ते में वैल्यूज़ का रोल बहुत अधिक हो जाते हैं. यही आपकी सारथी होती हैं. इनकी वजह से आपको पता चलता है कि क्या सही है? और क्या सही नहीं है? इसलिए सक्सेस के रस्ते में वैल्यूज़ का साथ कभी भी छोड़ने की ज़रूरत नहीं है. आपने देखा होगा कि कुछ लोगों का बिजनेस इतना सफल हो जाता है कि उनकी कई पीढ़ी उसी बिजनेस को करती रहती हैं. ऐसा क्यों होता है?
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वो लोग अपनी वैल्यूज़ का साथ कभी नहीं छोड़ते हैं. इसी के साथ ये भी देखने को मिलता है कि नीचे की जनरेशन के आते ही बिजनेस डाउन होने लगता है. इसके पीछे की वजह ये है कि उनके फैसले और वैल्यूज़ का सही से मिलाप नहीं होता है. इसलिए इस चैप्टर की शुरुआत में ही बता दिया गया है कि ग्रोथ ओरिएंटेड फैसले होने चाहिए. अपने बिजनेस या करियर में आप जब भी फैसला करें तो खुद से सवाल करिएगा कि क्या आप ये फैसला किसी डर की वजह से तो नहीं ले रहे हैं? अगर ऐसा है तो उस फैसले को मत लीजिएगा. हमेशा अपनी लाइफ में फैसले को ग्रोथ के हिसाब से करने की कोशिश करिएगा. आपको पता होना चाहिए कि फैसले को डर की वजह से नहीं लेना चाहिए. जब भी आप इन सेक्योर होते हैं. तब आप डर की वजह से फैसले लेते हैं. उस डर की वजह से आपकी लाइफ खराब हो सकती है. इसलिए फैसलों को बड़ी सावधानी से लेना चाहिए. इसलिए लेखक कहते हैं कि आगे बढ़ने की शुरुआत करिए, ग्रोथ ओरिएंटेड फैसला करिए और सक्सेस के रास्ते में आगे की ओर बढ़ते जाइए.
जब हम लाइफ की मीनिंग के बारे में पूछते हैं, तो हम वैल्यू के बारे में पूछ रहे होते हैं
क्या लाइफ में मीनिंग हो सकती है? क्या ये इस वर्ल्ड में सम्भव भी है? क्या मौत सभी चीज़ों को मीनिंगलेस बना देती है? हम सभी को लाइफ में कभी ना कभी ऐसे सवालों से जूझना पड़ता है.
उस समय हमारे पास कोई भी नहीं होता है. जिसके पास इन सवालों के जवाब हों, इसलिए पूरी लाइफ हमें इन सवालों के जवाब नहीं मिल पाते हैं. कभी-कभी हमें ऐसा भी लगता है कि हमारे पास इन सवालों के जवाब ढूँढने के लिए कोई जादुई ताकत होनी चाहिए.
लेकिन आपको बता दें कि इस किताब के चैप्टर्स से आपको इन सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे. कुछ सिम्पल सी ट्रिक्स से आपको लाइफ की मीनिंग भी पता चला जाएगी. साथ ही साथ आपको ये भी पता चल जाएगा कि इस इमपरफेक्ट वर्ल्ड में मीनिंग की तलाश कैसे करना है? आपको ये भी पता चलेगा कि कैसे हर किसी की लाइफ मीनिंगफुल हो सकती है? उन टूल्स और ट्रिक्स को जानने के लिए इस किताब की समरी को सुनने की शुरुआत कर दीजिए.
इस किताब में और भी बहुत कुछ मिलने वाला है
· लाइफ में परफेक्ट होना ज़रूरी नहीं होता है
· क्लीन किचन फ्लोर से भी आप मीनिंग ऑफ़ लाइफ सीख सकते हैं
· लाइफ की छोटी-छोटी घटनाएँ आपको बड़ी-बड़ी सीख दे सकती हैं
तो चलिए शुरू करते हैं!
अगर आपका कोई दोस्त कहे कि ‘लाइफ तो मीनिंगलेस हो गई है’ तो फिर आपका रिएक्शन कैसा होगा? अगर आप फिलॉसफर होंगे तो सबसे पहले आप क्लियर करेंगे कि उसका मीनिंग से क्या मतलब था? यही सबसे सही तरीका है. ये पता लगाने का कि आप दोनों एक ही सब्जेक्ट के बारे में बात कर रहे हैं. अब सवाल ये उठता है कि मीनिंग ऑफ़ लाइफ का क्या मतलब है? इसकी मीनिंग एक शब्द में आकर अटक जाती है. वो शब्द है ‘वैल्यू’.
इस बात को आप इस तरीके से समझ सकते हैं. जब लोग ये कहते हैं कि उनकी लाइफ मीनिंगलेस हो गई है. उस समय उनकी बात का सार रहता है कि अब उनकी लाइफ की कोई वैल्यू नहीं है. इसका एक आशय ये भी है कि अभी उनके पास कुछ प्रोडक्टिव करने को नहीं है.यहाँ पर आप फेमस ऑथर Leo Tolstoy का एग्जाम्पल ले सकते हैं. आप सोच रहे होंगे कि अगर किसी ने उनकी लाइफ के बारे में पढ़ा होगा. तो फिर उसे मालुम होगा कि उनकी लाइफ तो फुल ऑफ़ मीनिंग थी. उन्होंने कई किताबें लिखी थीं. उसी समय लोग उन्हें रूस के सबसे बड़े और नामी लेखक के तौर पर जानते थे. इसी के साथ उनका एक खुशहाल परिवार भी था. किसी को भी इससे अधिक क्या ही चाहिए होता है?
लेकिन आपको पता होना चाहिए कि लाइफ के एक टाइम पर उन्होंने खुद को बड़ी मुश्किल में पाया था. इसके बारे में उन्होंने लिखा भी था कि वो समय उनकी लाइफ का मीनिंगलेस टाइम था. मगर ऐसा क्यों हुआ था? उस समय उनकी सारी कामयाबी उनके लिए मूल्यहीन हो गई थी. उन्हें किसी भी चीज़ से ख़ुशी नहीं मिलती थी.
आपको भी अगर कभी भी ऐसी सिचुएशन का सामना करना पड़े तो खुद को एक पर्पस दीजिएगा. इससे आपका नज़रिया बदल जाएगा. आपको पता होना चाहिए कि पूरा खेल ही नज़रिए का होता है. आपको भी अगर लाइफ को मीनिंग फुल बनाना है. तो फिर आपके पास एक सार्थक पर्पस होना चाहिए. एक मीनिंगफुल पर्पस से ही एक सही गोल का निर्माण होता है. बिना गोल के कैसे किसी की लाइफ मीनिंगफुल हो सकती है?
इसलिए इस चैप्टर की शुरुआत में ही कहा गया है कि जब हम मीनिंग की बात कर रहे होते हैं. तब हम वैल्यू के बारे में पूछ रहे होते हैं. इसका मतलब ये है कि आपकी हमेशा कोशिश रहनी चाहिए कि ऐसे गोल का पीछा करें. जिससे आपकी लाइफ में कोई ना कोई वैल्यू एड होती हो. अगर किसी भी गोल से आपकी लाइफ में वैल्यू एड होती होगी. तो फिर बहुत कम चांस है कि आप उस काम से बोर हो जाएंगे. तब आपको ऐसा भी महसूस नहीं होगा कि आपकी लाइफ मीनिंग लेस हो गई है.
आपके पास ऐसा गोल होना चाहिए जिसको देखकर आपको यकीन हो जाए कि इससे आपकी लाइफ में वैल्यू एड हो रही है. मान लीजिए कि आपके पड़ोसी को टी बैग इकट्ठा करने की आदत है. आपको मालुम है कि इससे लाइफ मीनिंगफुल नहीं बनती है. आपको ये भी मालुम है कि ये सही लक्ष्य नहीं है. अगर आप यही बात अपने पड़ोसी को समझा देंगे. इसी के साथ अगर उसे आपकी बात में यकीन भी हो गया. तो फिर उसे अपना गोल मीनिंगलेस लगने लगेगा. उसे ऐसा इसलिए लगने लगेगा क्योंकि उसे पता चल जाएगा कि इस काम से उसकी लाइफ में कोई वैल्यू एड नहीं हो रही है.
इसी के साथ अगर आप उसे नहीं समझाते हैं. तो फिर उसे उसी काम से लाइफ में वैल्यू एड होते लगती रहेगी. वो उसी काम में लगा रहेगा. मतलब साफ़ है कि जब लक्ष्य से लाइफ में वैल्यू एड होती है. तो हमें जिंदगी मीनिंगफुल लगने लगती है.
इसलिए लाइफ के मीनिंगफुल होने और लगने में भी बहुत फर्क होता है. जिसकी बात हम आने वाले चैप्टर्स में करने वाले हैं.
लाइफ को मीनिंगफुल बनाने के लिए आपको परफेक्ट होने की कोई ज़रूरत नहीं है
प्राचीन ग्रीक से लेकर मॉडर्न थिंकर्स तक की किताबों को पढ़ेंगे. तो फिर आपको एक बात सेम मिलेगी. वो ये है कि लाइफ को मीनिंगफुल तभी मान सकते हैं. जब आप कुछ कठिन हासिल करने की कोशिश करें. ऐसा इसलिए है क्योंकि जब मीनिंग ऑफ़ लाइफ की बात होती है. तो ज्यादातर फिलॉसफर परफेक्शनिस्ट हो जाते हैं. ये बात बस फिलॉसफर के ऊपर ही लागु नहीं होती है. ज्यादातर लोग अपनी लाइफ को मीनिंगलेस इसलिए ही मानते हैं क्योंकि वो परफेक्ट नहीं होते हैं. उन्हें लाइफ की बस एक तस्वीर नज़र आती है.
उनकी तस्वीर में लाइफ या तो पूर्ण होती है या फिर कुछ नहीं होती है. अगर कभी ऐसा हो जाए कि वो किसी भी काम को पूरी तरह से ना कर पाएं. तो फिर उन्हें लाइफ के अंदर ही कमी नज़र आने लगती है. जिसकी वजह से वो अपनी पूरी लाइफ को ही मीनिंगलेस समझने लगते हैं. आपको बता दें कि लाइफ को इस तरह के अप्रोच से देखना ही गलत है. आपको पता होना चाहिए कि हम लोगों में से ज्यादातर लोग साइंटिस्ट या फिल्म स्टार नहीं बन सकते हैं. तो फिर क्या ज्यादातर लोगों की लाइफ मीनिंगलेस है? इस बात को हमें बड़ी तस्वीर की मदद से समझना चाहिए.
हमें समझना चाहिए कि अगर परफेक्शनिस्ट वाली क्वालिटी को एक तरफ रख दें. तो फिर जिंदगी बहुत मज़ेदार और खूबसूरत है. फ़र्क बस एक बात का ही है. वो फ़र्क है तो बस नज़रिए का, इसलिए कहा जाता है कि हमें नज़रिए को पैदा करते आना ही चाहिए. इसलिए हमें इस बात को भी समझने की ज़रूरत है कि किसी चीज़ को ग्रेट होने के लिए परफेक्ट होना ज़रूरी नहीं होता है. परफेक्शनिस्म के साथ कई दिक्कतें भी हैं?
पहली दिक्कत ये है कि उस क्वालिटी के साथ कई बार डबल स्टैंडर्ड भी आता है. एग्जाम्पल के लिए परफेक्शनिस्ट को महंगे फ्रेंच रेस्त्रां में खाना खाने में कोई दिक्कत नहीं होती है. लेकिन उसके लिए सस्ते रेस्त्रां की क्वालिटी खराब होती है. वो अपने डबल स्टैंडर्ड को ही मीनिंगफुल लाइफ के तौर पर बताने लगते हैं. उनको बस डबल स्टैंडर्ड ही नहीं कहना चाहिए, वो अन रीयलिस्टिक भी होते हैं. मीनिंगफुल लाइफ का उनका एक मापदंड होता है. जो उनके ही मन का उपज होता है. उसी तराजू से वो पूरी दुनिया को नापते हैं. इसलिए आपको इस बात का ख्याल रहना चाहिए कि कई चीज़ें और लोग इमपरफेक्ट होने के बाद भी बहुत खूबसूरत होते हैं. लाइफ की असली मीनिंग वहीं छुपी हुई है.
मान लीजिए कि आपको एक भारी पत्थर दिया जाता है. इसी के साथ कहा जाता है कि इसे लेकर आपको ऊपर खड़ी पहाड़ी पर चढ़ना है. आप उसे लेकर चढ़ने की शुरुआत करते हैं. लेकिन बीच रास्ते में ही आप बहुत थक जाते हैं. आपकी सांस फूलने लगती है. ऊपर पहुँचते-पहुँचते आप थक कर टूट जाते हैं.
ऊपर पहुँचते ही आपके हांथों से पत्थर छूट जाता है. अब आप उसे नीचे गिरते हुए देख रहे होते हैं. अब आप सोच रहे होते हैं कि फिर से पूरी मेहनत करनी पड़ेगी. क्या आप लाइफ को भी इसी तरह से जीना चाहते हैं?
अब यहाँ हमें ग्रीक माईथोलॉजी के एक कैरेक्टर से मिलना होगा. इस कैरेक्टर का नाम सिसीफस है. ऐसा हो सकता है कि इसकी स्टोरी मिथ ही हो, लेकिन फिर भी इसकी लाइफ हम सभी से मिलती है. एक फ्रेंच राइटर हुआ करते थे . जिनका नाम अल्बर्ट था. उन्होंने कहा भी था कि हम सभी की लाइफ सिसीफस की तरह ही है. हम अपनी लाइफ में ऊपर जाने के लिए बहुत मेहनत करते हैं. लेकिन एक दिन सबको नीचे आना ही पड़ता है. जिसे मौत कहते हैं.
लेकिन यहाँ हमें समझने की ज़रूरत है कि मौत से लाइफ की वैल्यू कम नहीं हो जाती है. मौत एक मात्र सच है. लेकिन लाइफ भी झूठ नहीं है.
कई लोग ऐसा मानते हैं कि मौत से लाइफ मीनिंगलेस हो जाती है. वो ऐसा इसलिए मानते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि कोई भी चीज़ इस दुनिया में हमेशा के लिए नहीं है. सभी को एक ना एक दिन खत्म ज़रूर होना है. इसलिए वो कहते हैं कि मौत के कारण लाइफ मीनिंगलेस हो जाती है.
लेकिन सिर्फ और सिर्फ इस रीज़न की वजह से इस थ्योरी को सच नहीं मान लेना चाहिए. सभी को देखकर लगता भी ऐसा ही है कि काफी लोगों को ही इस आईडिया के ऊपर भरोसा है. अगर लोग इस थ्योरी को सच मानने लग जाएंगे तो कोई भी कुछ भी कर ही नहीं सकता है.
एग्जाम्पल के लिए इस सवाल को खुद से पूछिए कि क्या आपको साफ़ किचन फ्लोर पसंद है? क्या आप उसे साफ़ करने के लिए एफर्ट्स करते हैं? अगर आपको साफ़ सफाई पसंद है. तो फिर आप उसे साफ करने के लिए ज़रूर एफर्ट्स करते होंगे.
जब भी आप उसे साफ़ करते होंगे तो आपको ख़ुशी मिलती होगी. ये जानते हुए कि ये सफाई बहुत समय तक नहीं रहेगी. उसे फिर से गंदा होना ही है. वो फिर से गंदा हो जाएगा इसका मतलब ये नहीं है कि हम कभी उसे साफ़ ही ना करें. इसलिए हमें समझना चाहिए कि टेम्परेरी चीज़ों में भी ज़िंदगी की ख़ुशी है.
ये बात बस क्लीनिंग में ही लागु नहीं होती है. हमें उन सभी चीज़ों की वैल्यू करनी चाहिए जो चीज़ हमारे पास है. ये जानते हुए भी कि ये चीज़ें परमानेंट नहीं हैं.
मान लीजिए कि आपके दुआर में एक आम का पेड़ लगा हुआ है. आपको मालुम है कि एक दिन तो आएगा जब ये पेड़ खत्म हो जाएगा. लेकिन क्या तब तक वो आपको छाँव नहीं दे रहा है? क्या तब तक आप उसके फल नहीं खायेंगे? उसका खत्म हो जाना एक सच्चाई है. लेकिन इससे उसकी वैल्यू कम नहीं हो जाती है. इसी तरह ज़िंदगी भी है. भले ही वो किसी की भी हो.
लाइफ मीनिंगफुल हो सकती है, भले ही आप स्वतंत्र इच्छा (फ्री विल) में विश्वास न करें
क्या आप भी उन लोगों में से हैं, जिन्हें ये लगता है कि लाइफ में कुछ भी बिना वजह से नहीं होता है? अगर आप ऐसा सोचते हैं. तो फिर ये काफी हद तक सही भी हो सकता है. मान लेते हैं कि कोई अपना फोन ऊपर से गिरा देता है. तब क्या होगा? फोन ज़मीन में गिर जाएगा. ऐसा ग्रैविटी की वजह से होगा. यहाँ पर आप बहस कर सकते हैं कि ऐसा फ्री विल यानी फ्रीडम टू चूज़ की वजह से हुआ है. लेकिन भले ही आपकी अज़ीब सी चाहत रही होगी, फोन को फेकने की, लेकिन उस अजीब सी चाहत के पीछे भी कारण होता है. भले ही आपको उस कारण के बारे में ना पता हो.
अगर ऐसा है, तो स्वतंत्र इच्छा (फ्री विल) एक भ्रम है.
ये थ्योरी बताती है कि हर एक्शन के पीछे कोई ना कोई वजह होती है. इसका मतलब है कि एक फैक्टर है जो हमारे एक्शन को कंट्रोल करता है. लेकिन हम उसे कंट्रोल नहीं कर सकते हैं. जिसे ‘determinism’ कहा जाता है.
हर कोई विश्वास नहीं करेगा कि फ्री विल बस एक भ्रम है. भले ही वो भी सही हों, लेकिन फिर भी इसका मतलब ये नहीं है कि लाइफ मीनिंगलेस है.
अगर आप छोटे बच्चों के साथ टाइम स्पेंड करते होंगे. तो फिर आपको पता होगा कि वो कैसे-कैसे गेम खेलते रहते हैं. कई बच्चों को ‘क्यों’ वाला गेम खेलने में भी बहुत मज़ा आता है?
इस गेम को खेलते समय वो सवाल करते रहते हैं कि आप ऐसा क्यों करते हैं? आप ऑफिस क्यों जाते हैं? हम खाना क्यों खाते हैं? सुनने में ये काफी अज़ीब सा गेम लगता है. लेकिन ये काफी हद तक रीज़न को समझने में मदद भी करता है.
इस गेम की मदद से आपको गोल के पीछे के रीज़न के बारे में पता चल सकता है.
इस लॉजिक के हिसाब से आपको लग रहा होगा कि वही लाइफ मीनिंगफुल है. जिसके अंदर कोई ना कोई गोल हो, लेकिन आपको पता होना चाहिए कि लाइफ खुद में एक गोल ही है.
लेकिन क्या हो अगर आपकी लाइफ में कोई गोल ही ना हो? क्या तब भी ये लाइफ मीनिंगफुल है?
इस सवाल का जवाब आपको कहाँ से मिलेगा?
हाँ, बिना गोल के भी लाइफ मीनिंगफुल हो सकती है. आपको एहसास होना चाहिए कि लाइफ खुद में ही एक गोल है. लाइफ से बड़ा गोल कुछ भी नहीं है. इसलिए आप इसे जीते हुए भी एन्जॉय कर सकते हैं.
इस बात को समझने के लिए आपको फिर से ‘क्यों’ गेम पर लौटना पड़ेगा. आप स्टोर क्यों जाते हैं? कैंडी लेने के लिए, कैंडी लेने से क्या होगा? उसे आप खायेंगे. उसे क्यों खायेंगे? उससे आपको ख़ुशी मिलेगी. मतलब साफ़ है कि सभी का मुख्य गोल ख़ुशी ही होती है. उसे आप कैसे भी अचीव कर सकते हैं. उसे अचीव करने के लिए आपको किसी भी गोल का पीछा करने की ज़रूरत नहीं है.
इसलिए कहा जाता है कि खुद के लिए जी गई लाइफ भी मीनिंगफुल हो सकती है. बात बस इतनी सी है कि आप अपनी लाइफ को कैसे जीते हैं. क्या आपको ख़ुशी का मतलब मालुम है?
लाइफ में ऐसी कई सारी चीज़ें हो सकती हैं. जिनकी वजह से हमारी लाइफ में वैल्यू एड हो सके. आपको पता होना चाहिए कि लाइफ भी उन चीज़ों में से एक हो सकती है. ज़िंदगी खुद में इतनी काबिलियत रखती है कि वो आपकी लाइफ में वैल्यू एड कर सकती है. इसलिए अगर आप खुद के लिए भी लाइफ जीते हैं. तो भी इसमें किसी भी तरह की बुराई नहीं है.
इसलिए अब इस बात को भी समझ लेना चाहिए कि बिना किसी भी गोल के हुए भी लाइफ मीनिंगफुल हो सकती है.
मीनिंग को लूज़ कर देने भर से भी लाइफ मीनिंगलेस नहीं हो जाती है
क्या आपने कभी किसी गोल को अचीव करने के लिए दिन रात मेहनत की है? इसके बाद उसे हासिल कर लेने बाद इंटरेस्ट ही चला गया हो. ऐसा लगा हो कि अब तो कोई मतलब ही नहीं है. इस पैराडॉक्स का मतलब ये है कि बिना गोल के हमें लगता है कि मीनिंग की कमी है. लेकिन जब हमें गोल मिल जाता है. तो वो मीनिंग भी खत्म हो जाती है. अधिकत्तर लोगों को अंत में कुछ इसी तरह की सिचुएशन का सामना करना पड़ता है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं होता है कि लाइफ मीनिंगलेस है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि हर गोल को अचीव करने के बाद मीनिंग खत्म नहीं हो जाती है. कई गोल को अचीव करने के बाद हमें संतुष्टि भी मिलती है. जैसे कि अपने बच्चे को बड़ा होते हुए देखना, किसी गंभीर बिमारी से लड़कर बाहर आना.
इन सबके ऊपर कई ऐसे गोल्स होते हैं. जो कि कभी भी खत्म नहीं होते हैं. जैसे कि खुद को जानकार बनाना, इसके लिए आपको लाइफ टाइम नई-नई चीज़ों को सीखते रहना पड़ेगा. एक अच्छा पति बनने की कोशिश करना. ये सब ऐसे गोल हैं. जो कि एक प्रोसेस की तरह हैं. इन गोल्स को अचीव करने के लिए आपको पूरी लाइफ इन्वेस्ट करनी होगी. इनको अचीव करने के बाद आपको सुकून मिलेगा.
ऊपर वाली पैराडॉक्स सिचुएशन का सामना उन लोगों को करना पड़ता है. जो लाइफ को खुलकर नहीं जीते हैं. जिन्हें छोटी-छोटी खुशियों का आनंद उठाते नहीं आता है. जिनके लिए प्रोफेशनल काम ही सब कुछ है. जो सिर्फ और सिर्फ काम करते हैं. उन्हें अंतिम में जाकर पैराडॉक्स सिचुएशन का सामना करना होता है. इसलिए आपको समझना चाहिए कि लाइफ में सब कुछ ज़रूरी है. हर किसी के लिए थोड़ा-थोड़ा समय निकालने की कोशिश करिए.
ज़िंदगी का अंदाज़ा कोई भी नहीं लगा सकता है. लाइफ में बहुत सी दिक्कतों का सामना करना ही पड़ता है.
कई फिलॉसफर दर्द भरी ज़िंदगी को मीनिंगलेस बता देते हैं. लेकिन हमें अपने नज़रिए को बड़ा करना आना चाहिए. कई बार ऐसा होता है कि लाइफ हमें जो पिक्चर दिखा रही होती है. वो सही नहीं होती है. असली पिक्चर बहुत बड़ी है. उसे देखने लिए अपने चश्में के नंबर को सही करवाना पड़ेगा.
जर्मन फिलॉसफर ArthurSchopenhauer ने कहा है कि दर्द तो लाइफ का हिस्सा है. अगर आप गौर करें तो ख़ुशी में भी दर्द छुपा हुआ होता है. गर्मी के दिनों में ठंडे पानी को एन्जॉय करने के लिए भी आपको काफी प्यास का सामना करना होता है. लेकिन जैसे ही आप प्यासे होते हैं. आप पानी के प्लेज़र को भूल जाते हैं. आपको याद रखना चाहिए कि अगर आप पानी नहीं पीते तो फिर प्यास से आपको और ज्यादा कष्ट हो सकता था.
ArthurSchopenhauer ने आगे कहा है कि सफरिंग और दर्द का मतलब लाइफ मीनिंगलेस है. ये बिल्कुल भी नहीं होता है. इतिहास को भी आप उठाकर देखेंगे तो ऐसे लाखों लोग मिलेंगे. जिन्होंने एक्सट्रीम कंडीशन में भी अपनी लाइफ को सार्थक बनाया है. उन लोगों में आपको कई बड़े नाम भी मिलेंगे, जिन्होंने तो इतिहास ही अपने नाम से लिख दिया है. इसलिए पर्सनल सफरिंग का मतलब मीनिंगलेस नहीं होता है. उससे आपके कैरेक्टर को मज़बूती मिलती है कि वो किसी भी सिचुएशन का सामना कर सकता है.
अपनी लाइफ को मीनिंगफुल बनाने के लिए आपको ही प्रयत्न करना होगा
अब तक आपको समझ में आ गया होगा कि लाइफ को मीनिंगफुल बनाना ज़रूरी है. वैसे तो लाइफ खुद में ही मीनिंगफुल है. लेकिन फिर भी अगर आपको मीनिंग की तलाश करनी है. तो फिर एफर्ट्स भी आपको ही लेने पड़ेंगे. क्या आप मेहनत करने के लिए तैयार हैं?
लाइफ को मीनिंगफुल बनाने के लिए सेल्फ रिफ्लेक्शन बहुत ज़रूरी है. आपको खुद के साथ समय बिताना पड़ेगा. सोचना होगा कि लाइफ में ऐसे कौन से फैक्टर्स हैं? जो आपके लिए महत्वपूर्ण हैं. आसान भाषा में कहें तो आपको खुद की मदद करनी होगी. उन फैक्टर्स की लिस्ट बनाइए, उसके बाद उसमें एड करिए कि उनके लिए आपको क्या करना चाहिये? एक लिस्ट और तैयार करिए, इसमें नोट डाउन करिए कि ऐसी कौन सी स्किल्स होगी, जिससे आपको ख़ुशी मिलेगी? उसे सीखने की शुरुआत कर दीजिए. इसके लिए आपको इंटरनेट की मदद लेनी है.
अपने सोचने की क्षमता को बढ़ाने की कोशिश करिए. सोचिए कि अगर आपके पास कुछ ही दिन या महीने बचे हों, तो फिर आप क्या करना पसंद करेंगे?
उन चीज़ों को अभी इसी वक्त अपनी लाइफ में एड करिए. ये सब करने से आपकी लाइफ में मीनिंग अपने आप ही एड हो जाएगी. नज़रिए का खेल भी बहुत बड़ा होता है. क्या पता जब आप खुद से मुलाक़ात करें तो आपको एहसास हो जाए कि लाइफ में तो बहुत मीनिंग है. बस, मैं ही उसे देख नहीं रहा था. इसलिए अब टाइम आ गया है कि आप खुद से मुलाक़ात करिए. लाइफ को एन्जॉय करने की शुरुआत कर दीजिए.
कुल मिलाकर
कई बार लाइफ में मीनिंग की कमी लग सकती है. लेकिन तब भी हमें लाइफ को परफेक्ट बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. अपने नज़रिए को बड़ा करिए, आपको पता चलेगा कि लाइफ तो फुल ऑफ़ मीनिंग है. आज ही बल्कि अभी से लाइफ को जीने की शुरुआत कर दीजिए.
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