Fast This Way

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Fast This Way

Dave Asprey
जानिए फास्टिंग की मदद से हेल्दी रहने के कुछ तरीके

दो लफ्जों में
2021 में आई ये किताब फास्टिंग की वकालत करने वाली दूसरी आम किताबों की तरह नहीं है। इसमें माडर्न साइंटिफिक तरीकों और लेखक के सालों के अनुभवों को आधार बनाकर फास्टिंग के सही तरीकों और उनसे मिलने वाले फायदों के बारे में बताया गया है।

  यह किताब किनको पढ़नी चाहिए
- जो लोग लाइफस्टाइल बीमारियों से जूझ रहे हैं।
- जो लोग फास्टिंग और डाइटिंग का अंतर जानना चाहते हैं।
- हर वह व्यक्ति जो सेल्फ कंट्रोल सीखना चाहता है।
 
लेखक के बारे में
डेव एक सफल बिजनेसमैन, जानेमाने लेखक और बुलेटप्रूफ कॉफी नाम की संस्था के फाउंडर हैं। उन्होंने द बुलेटप्रूफ डाइट और हेडस्ट्रांग जैसी बहुत सी बेस्ट सेलर किताबें लिखी हैं।

फास्टिंग का मतलब भूखा रहना नहीं है।
आपने जरूर सुना होगा कि फास्टिंग यानि उपवास करना सेहत के लिए अच्छा होता है। इस बात को फिटनेस एक्सपर्ट, आध्यात्मिक गुरु और बहुत सी स्टडीज सपोर्ट करती हैं। फास्ट रखने से शरीर में जमे विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और वजन पर नियंत्रण रहता है। लेकिन फास्टिंग के तरीकों को लेकर लोगों में गलतफहमी है। आम धारणा है कि फास्ट रखने का मतलब है भूखा रहना। 

अगर गहराई से समझें तो फास्टिंग सेल्फ कंट्रोल पर आधारित है। इसमें आपको ये समझना होता है कि आपके शरीर की क्या डिमांड है और उसको सही तरह से कैसे पूरा करना है। 

लोग अक्सर ये सोचकर फास्टिंग से हिचकिचाते हैं कि अगले दिन उनसे भूख सहन कैसे होगी। लेकिन अगर सही तरीके से शुरुआत करें तो आप बड़ी आसानी से इस डर को भगा सकते हैं। इस किताब में इन सब बातों को अच्छे तरीके से समझाया गया है। इस समरी मे आप जानेंगे कि फास्टिंग की शुरुआत किस तरह से करनी चाहिए? अच्छी और गहरी नींद लेने के टिप्स, और फास्टिंग के नियम किस तरह रोजमर्रा की जिंदगी पर लागू होते हैं?

तो चलिए शुरू करते हैं!

जब आपको भूख लगती है तो दो बातें हो सकती हैं। या तो आप सोचते हैं कि खाने के लिए जल्दी से कुछ मिल जाए ताकि आपकी भूख मिटे। दूसरी कंडीशन ये हो सकती है कि आपको अचानक कोई खास चीज खाने का मन करने लगता है। जैसे चिप्स, आइस्क्रीम या मोमोज। यानि भूख और क्रेविंग में फर्क है। भूख लगना एक बायोलॉजिकल जरूरत है जबकि क्रेविंग की वजह साइकोलॉजिकल होती है। और इसमें जंक फूड के लुभावने विज्ञापनों का बड़ा रोल होता है। 

आपने ये अंतर तो अच्छी तरह समझ लिया। अगर आप भूख लगने पर कुछ खाते हैं तो ज्यादा मत सोचिए। लेकिन अगर आप अनहेल्दी खाने की आदत छोड़ना चाहते हैं तो फास्टिंग एक अच्छा सॉल्यूशन हो सकता है। लेकिन याद रखिए कि फास्टिंग का मतलब डाइटिंग नहीं होता। इसे शरीर से ज्यादा दिमाग से फॉलो किया जाता है। इसका सही मतलब होता है कि आप खुद पर कंट्रोल करना सीखें और गलत आदतों से दूरी बना लें। फिर चाहे खान-पान हो, सोशल मीडिया की लत या देर रात तक जागना। आप उन सबको चीजों को "ना" कहने की हिम्मत जुटा लेते हैं जो आपके लिए नुकसानदायक हैं। 

आप ये दूरी बना लेने का तरीका धीरे-धीरे सीखते हैं। इसके लिए आपको खुद कोशिश करनी पड़ती है। अपनी आदतों को ऑब्जर्व करना होता है। मान लीजिए आपको दिन में पांच कप कॉफी पीने की आदत है। आप तीन कप पीने के बाद खुद से पूछिए कि क्या वाकई आपको चौथे और फिर पांचवें कप जरूरत है? 

लोग अब सोशल मीडिया पर काफी वक्त बिताते हैं। दो पल रुकिए और सोचिए कि अपने फ्रेंड की प्रोफाइल पिक लाइक करते हुए आप कब म्यूचुअल फ्रेंड की प्रोफाइल में पंहुच गए और उसकी सालों पुरानी पोस्ट खंगालनी शुरु कर दी। इसमें घंटों निकल गए। घड़ी देखी तो रात के दो बज रहे थे। क्या मोबाइल हाथ में लेते समय आपको इसका अंदाजा था? आपने तो बस इतना ही सोचा था कि आपको अपने फ्रेंड की पोस्ट लाइक करनी है। या आपने सोचा था कि पांच मिनट के लिए अपना अकाउंट विजिट करके दिमाग को तरो ताजा कर लें जिससे आप किसी टेंशन से ध्यान हटा सकें। यूनिवर्सटी ऑफ कैलीफोर्निया में साइकोलॉजिस्ट Cameron Sepah "Dopamine Fasting" के बारे में समझाती हैं। ये इंस्टाग्राम या फेसबुक जैसे ध्यान भटकाने वाले तरीकों से दूर रहने की प्रेक्टिस है। फोन पर हर दो-चार मिनट में आने वाले नोटिफिकेशन आपकी एकाग्रता भंग करते हैं। जरा सोचिए इनके बिना आपकी लाइफ में कितनी शांति हो सकती है। आप उस चीज पर फोकस कर सकते हैं जहां इसकी ज्यादा जरूरत है। लेकिन जैसा आपने पहले पढ़ा कि फास्टिंग किसी चीज को छोड़ने का नाम नहीं है। किसी चीज से थोड़ी दूरी बना लेना और उसका त्याग कर देना दो अलग बातें हैं। आपको भी सोशल मीडिया छोड़ने की जरूरत नहीं है। खुद पर कंट्रोल बना लीजिए। ये सोच लीजिए कि जब तक मेरा ये काम पूरा नहीं हो जाता, मैं कोई नोटिफिकेशन चेक नहीं करूंगा। या जब तक कोई बहुत जरूरी मैसेज नहीं होगा मैं फोन को हाथ नहीं लगाऊंगा। सेल्फ कंट्रोल का एक अच्छा उदाहरण है ऑक्सीजन फास्टिंग। इसमें एथलीट कम ऑक्सीजन वाले वातावरण में रहने की प्रेक्टिस करते हैं। इससे उनकी लंग कैपेसिटी बढ़ती है और वो बेहतर परफार्म कर पाते हैं। योग भी एक तरह की ऑक्सीजन फास्टिंग ही तो है जहां आपको अपनी सांसों पर नियंत्रण करना सिखाया जाता है। फास्टिंग थोड़ा मुश्किल जरूर है लेकिन तकलीफदायक नहीं है। जैसे-जैसे आप इसमें आगे बढ़ते जाते हैं, आपको मजा आने लगता है। क्योंकि आप मन और दिमाग से मजबूत होते जाते हैं। आपकी लाइफ अनुशासित होने लगती है। और एक वक्त ऐसा आता है जब ये अनुशासन आपकी आदत बन जाता है।

फास्टिंग की आदत धीरे-धीरे डेवलप करनी चाहिए।
अपना रूटीन चेंज करना मुश्किल होता है। अगर कोई कहे कि कल से आपको एक घंटे एक्सरसाइज करनी है या सुबह एक घंटा जल्दी उठना है तो शायद घबराहट में आप रात को सो ही न पाएं। लेकिन जब आप इस रूटीन में ढल जाते हैं तो इसके बिना गुजारा मुश्किल हो जाता है। दरअसल फास्टिंग में आप कोई आदत छोड़ते नहीं हैं। उसे होल्ड पर रखते हैं और एक बेहतर आदत अपना लेते हैं। दस साल के फास्टिंग एक्सपीरियंस के बाद डेव इस नतीजे पर पंहुचे हैं कि इंटरमिटेंट फास्टिंग सबसे अच्छा तरीका है। यानि अगर आप उपवास करते हैं तो लगातार भूखे मत रहिए। थोड़ा ब्रेक लेते रहिए। इसके लिए उन्होंने 16:8 के रूल से शुरुआत करने का प्लान बताया है। यानि आप जागने के बाद शुरु के 8 घंटे तक खा पी लीजिए और बाकी 16 घंटे गैप रख लीजिए। 

ये दिन भर भूखे रहने से कहीं आसान है। इससे आपकी सेहत पर भी अच्छा असर पड़ता है। जब आप भोजन में गैप रखते हैं तो शरीर ऊर्जा लेने के लिए स्टोर किए हुए ग्लूकोज का इस्तेमाल कर लेता है। इस तरह इन्सुलिन लेवल सामान्य बना रहता है। फास्टिंग करके शरीर से टॉक्सिन भी निकल जाते हैं। इससे एजिंग और इन्फ्लामेशन की रफ्तार भी कम हो जाती है। 

इन्फ्लामेशन बहुत सी बड़ी बीमारियों की जड़ है। ये सिर्फ मच्छर के काटने पर होने वाली बाहरी पैथोलॉजी नहीं है। खानपान भी इसकी वजह बन सकता है और ये शरीर के अंदर की कोशिकाओं को भी प्रभावित कर सकता है। प्रोसेस्ड फूड इसके लिए बहुत हद तक जिम्मेदार होते हैं। इससे निपटने के लिए शरीर की बहुत सारी एनर्जी लग जाती है। इन्फ्लामेशन लंबे समय तक  रहने पर दिल की बीमारियों, डायबिटीज और अस्थमा जैसी सीरियस कंडीशन को जन्म दे सकता है। अगर आपके मन में इस बात का डर है कि 16 घंटे फास्टिंग करके सुबह उठने के बाद बहुत ज्यादा भूख लगेगी तो इसका आसान उपाय है बुलेटप्रूफ कॉफी। सुबह उठकर आप एक कप ब्लैक कॉफी में थोड़ा ग्रास फेड बटर और एक चम्मच C8 MCT oil मिलाकर ले लीजिए। इतनी फैट से दिनभर आपका पेट भरा रहेगा।

फास्टिंग के तरीके बदलते रहिए। आपने फास्टिंग से होने वाले फायदों के बारे में जाना। लेकिन ये ऐसे फायदे हैं जो आपको महसूस तो हो सकते हैं पर दूसरों को नजर नहीं आएंगे। जब तक आप स्लिम-ट्रिम न हो जाएं और लोगों के बीच जाने में आत्मविश्वास न बढ़ा लें तब तक फास्टिंग का फायदा ही क्या हुआ? यही वजह है कि लोग फास्टिंग पतले होने के टार्गेट के साथ शुरु करने लगते हैं। लेकिन याद रखिए फास्टिंग का मतलब डाइटिंग नहीं होता। ज्यादातर डाइट प्लान भी वजन को ध्यान में रखते हुए बनाए जाते हैं जिसमें कैलोरी इनटेक को कम कर दिया जाता है। लेकिन हर तरह के भोजन से मिलने वाली कैलोरी अलग होती है। जरा सोचिए कि आप कौन सी 100 कैलोरी को हेल्दी बोल सकते हैं जो आपको सलाद से मिलती है या जो आलू चिप्स से मिलती है। डाइटिंग इस बात पर भी उतना ध्यान नहीं दे पाती कि हमारा शरीर भोजन को ऊर्जा में नहीं बदल पा रहा है। जो कि मोटापे की जड़ होती है। जब आप डाइटिंग करते हैं तो कैलोरी इनटेक में कटौती कर देते हैं। लेकिन आपके शरीर को एक निश्चित कैलोरी की जरूरत होती ही है। इस वजह से आपको खाने की क्रेविंग बनी रहती है। इसके उलट इंटरमिटेंट फास्टिंग आपको इस बात के लिए तैयार करती है कि आप कब खाएं और किस तरह खाएं। यही वजह है कि फास्टिंग का कोई एक रूटीन नहीं बनाना चाहिए। ताकि आपके शरीर को बदलाव मिलते रहें। इसे थोड़ा विस्तार से समझते हैं। 

खाना खाने के बाद 4-16 घंटे तक शरीर में पर्याप्त ऊर्जा बनी रहती है। इसके बाद अगर आपने दुबारा खाना नहीं खाया तो शरीर में स्टोर ग्लाइकोजन, ग्लूकोज में बदलने लगता है। इस प्रोसेस में Adrenaline और Cortisol हार्मोन रिलीज होते हैं और शरीर को ऊर्जा मिल जाती है। अगर आप OMAD यानि One Meal A Day का रूल फॉलो करते हैं तो आप 16 घंटे से भी ज्यादा भूखे रहते हैं। इस दौरान आपका शरीर ऊर्जा के लिए फैट बर्निंग करने लगता है। फैट टूटकर कीटोन बनाती है जिससे एनर्जी मिलती है। इस प्रोसेस को कीटोसिस कहते हैं। इस तरह न सिर्फ आपका वजन और Triglyceride लेवल कम होने लगता है बल्कि HDL (अच्छे कोलेस्ट्राॅल) का लेवल बढ़ने भी लगता है। 

OMAD फायदेमंद है पर अगर आप लंबे समय तक इस पर रहते हैं तो कई तरह की परेशानियां होती हैं। सेक्स हार्मोन्स कम हो जाते हैं, नींद खराब होने लगती है, बाल झड़ने लगते हैं। इसलिए डेव सलाह देते हैं कि आप  फास्टिंग का रूटीन बदलते रहें। किसी दिन हाई प्रोटीन और हाई फैट ब्रेकफास्ट लें। किसी दिन OMAD, किसी दिन कुछ घंटों के लिए खाने से परहेज करें और हफ्ते के अंत में चीट डे मनाकर जो मन करे वो खा लें। 

आप डाइटिंग करते हुए इतनी लिबर्टी नहीं लेते। यही वजह है कि आपको हरदम खाने की याद सताती रहती है। दो-चार दिन तो आप निकाल लेते हैं पर एक दिन आप तंग आकर डाइटिंग-वाइटिंग भूलकर खाने पर टूट पड़ते हैं। जबकि इंटरमिटेंट फास्टिंग में आपको पता होता है कि अगर आज आप भूखे रहते हैं तो कल ट्रीट पक्की है। इस तरह आप न सिर्फ अपने शरीर को बदलाव के लिए तैयार करते हैं बल्कि आपके दिमाग की भी ट्रेनिंग होने लगती है। कुछ ही दिनों में आपको इसकी आदत लग जाती है।

अच्छी नींद और फास्टिंग एक दूसरे के पूरक हैं।
आपको ये सुनकर हंसी नहीं आती कि लोग कुछ घंटे की नींद छोड़ सकते हैं पर एक वक्त का खाना नहीं छोड़ सकते। जबकि भूखे रहकर आपका उतना नुकसान नहीं होता जितना नींद पूरी न करने पर होता है। अच्छी नींद आपको तरो ताजा कर देती है। लेकिन अगर आप 6-8 घंटे की भरपूर नींद लेते हैं तो बहुत सी बीमारियों से भी बच सकते हैं। भरपूर नींद से कैंसर और हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है। टिशू रिपेयर तेज होने लगता है। Glymphatic System जो हमारे नर्वस सिस्टम को क्लीयर करता है वह भी नींद के दौरान ज्यादा एक्टिव रहता है। सबसे बढ़िया बात तो ये है कि आप सोते हुए खुद ब खुद एफर्टलेस फास्टिंग कर लेते हैं। अगर उठने के बाद भी आप फास्टिंग जारी रखें तो ग्रोथ हार्मोन का लेवल बढ़ जाता है। इससे फैट बर्न होती है और स्ट्रांग मसल्स डेवलप होती हैं। इस तरह आपके स्लीप साइकिल और फास्टिंग के बीच एक तालमेल बन जाता है। लेकिन अगर आप रात को देर से खाते हैं तो सोते समय तक खाना पूरी तरह से पच नहीं पाता। इससे बायोलॉजिकल क्लॉक गड़बड़ हो जाती है। हाई ग्लूकोज और इन्सुलिन से होने वाली बेचैनी की वजह से बार-बार नींद भी टूटती है। और अगली सुबह आपको अनईजी लगता है। 

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया, सैन डिएगो की हाल ही में हुई एक स्टडी कहती है कि भोजन और नींद के बीच तीन घंटे का गैप रहने पर ब्लड शुगर लेवल कम रहता है। यानि अगर आप रात को 8 बजे तक खाना खा लेते हैं और 11 बजे सोने जाते हैं तो आप ठीक करते हैं। आप जितनी देर से सोते हैं उतना ज्यादा आर्टिफिशियल लाइट के कॉन्टेक्ट में आते हैं। इससे भी बायोलॉजिकल क्लॉक गड़बड़ होने लगती है। इसलिए रात में रोशनी कम कर दीजिए। टीवी, लैपटॉप और मोबाइल बंद कर दीजिए। इन सबकी वजह से ऐसे हार्मोन रिलीज होते हैं जो आपकी नींद पर बुरा असर डालते हैं। इस बात के लिए तैयार रहिए कि कोई भी बदलाव आसान नहीं होता। इसलिए खुद को एकदम से चैलेंज मत कीजिए। आसान टार्गेट सेट कीजिए। हो सकता है कि एक-दो दिन आपको ठीक से नींद न आए या जल्दी डिनर लेने के कारण आपका ईवनिंग रूटीन प्रभावित हो। लेकिन ये समय पर भोजन करने से होने वाले फायदे के आगे कुछ भी नहीं है। 

मेटाबॉलिज्म में बदलाव होते रहने से आप फास्टिंग के दिनों में भी एनर्जेटिक बने रहते हैं। फास्टिंग आपकी सोच को बदलती है। आप हर उस चीज से खुद को दूर रखना सीख जाते हैं जिसके बिना रहने के बारे में सोचकर भी आप कभी डर जाते थे। इस तरह आप पहले से ज्यादा मजबूत होते जाते हैं। आज आपने फास्ट तो रख लिया। कल पहला कदम उठाना है एक्सरसाइज की तरफ। खाली पेट जिमिंग के बारे में सोचना अजीब लगता है। खास तौर पर ऐसे लोगों को जो एक्सरसाइज करते समय एनर्जी ड्रिंक्स की बॉटल साथ रखे होते हैं या एक्सरसाइज के पहले वाली रात कार्बोहाइड्रेट से भरपूर खाना खा लेते हैं। लेकिन अगर आप हमेशा कार्बोहाइड्रेट मेटाबॉलिज्म पर डिपेंडेंट रहते हैं तो वजन घटाना मुश्किल होगा। इंटरमिटेंट फास्टिंग आपके मेटाबॉलिज्म को बदलती रहती है। कभी आपका शरीर ग्लूकोज से एनर्जी लेता है और कभी फैट से। वैसे तो एनर्जी के लिए ग्लूकोज हमारे शरीर की पहली चॉइस होता है। पर जब ग्लूकोज न मिले तो फैट से काम चलाया जाता है। आप जितना अपनी फास्टिंग के तरीके को बदलते हैं आपका शरीर उतना ज्यादा इन दोनों एनर्जी सोर्सेज के साथ एडजस्ट करने लगता है। फैट बर्निंग से दोहरा फायदा होता है। एक तो आपका वजन कम होता है। दूसरा ये कि ग्लूकोज की तुलना में फैट से ज्यादा एनर्जी मिलती है। गुड फैट में एंटी इन्फ्लामेटरी गुण होते हैं। इसकी मदद से एक्सरसाइज की वजह से होने वाला दर्द कम होता है। ये बॉडी को हाइड्रेट भी करती है।

एक्सरसाइज करने के बाद फास्ट तोड़ लीजिए और निश्चिंत होकर हाई कार्बोहाइड्रेट डाइट खा लीजिए। इससे आप फैट बर्निंग की जगह ग्लूकोज बर्निंग पर शिफ्ट हो जाएंगे। ये मेटाबॉलिक फ्लेक्सिबिलिटी आपको फास्टिंग के दिनों में भी एनर्जेटिक रखती है। हॉट-कोल्ड थेरेपी भी इसमें बहुत काम आती है। जब आप नहा चुके हों तो थोड़ी देर ठंडे पानी की फुहारों के नीचे खड़े रहें। जो लोग ठंडे इलाकों में रहते हैं उनके लिए थोड़ा मुश्किल होगा। पर इस ठंडक की वजह से Cardiolipin का लेवल बढ़ेगा और आपका शरीर ज्यादा हीट पैदा करेगा। रिसर्च कहती हैं कि इस थेरेपी से मूड अच्छा रहता है, इम्यूनिटी मजबूत होती है, दर्द से राहत मिलती है और वजन कम होने लगता है। कभी भी विज्ञापनों या टीवी में नजर आ रहे पतले-दुबले मॉडल्स और एक्टर्स की तरह बनने का मत सोचिए। शूटिंग के पहले इनको बहुत सी मुश्किलों से गुजरना पड़ता है। ये लोग कई दिनों तक भूखे रहते हैं। डाइयूरेटिक्स (शरीर से पानी निकाल देने वाली चीजें) लेते हैं। इनके जैसे नजर आने की चाहत आपके लिए जानलेवा साबित हो सकती है। अपने शरीर का ध्यान रखिए। भरपूर नींद, अच्छा खाना और एक्सरसाइज को अपने रूटीन में शामिल करिए। इन सबसे आप हेल्दी बनते हैं, अच्छे और स्वस्थ नजर आते हैं।

महिलाओं को अपनी जरूरत के अनुसार ही फास्टिंग प्लान बनाने चाहिए।
डाइटिंग की तरह एक ही फास्टिंग प्लान सबको सूट नहीं करता। शुरुआत में आपको प्लान बदलकर आजमाने की जरूरत पड़ सकती है। ये बात महिलाओं पर खास तौर से लागू होती है। क्योंकि ज्यादातर स्टडीज पुरुषों पर या उनको आधार बनाकर की जाती है। महिलाओं को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। जबकि उनकी जरूरत पुरूषों से अलग होती है। प्रजनन क्षमता की वजह से महिलाओं पर फास्टिंग का प्रभाव ज्यादा होता है। जब महिलाएं भूखी रहती हैं तो उनके amygdala को ये मैसेज जाता है कि उनकी प्रजनन क्षमता पर बुरा असर पड़ रहा है। इसके रिस्पांस में हार्मोनल एक्टिविटीज घट जाती हैं ताकि शरीर में ऊर्जा बनी रहे। लेखक का अनुभव है कि बहुत ज्यादा इंटरमिटेंट फास्टिंग करने वाली महिलाओं में नींद की गड़बड़ी, बाल झड़ना, माहवारी की अनियमितता और कभी-कभी अस्थाई बांझपन भी देखने को मिलता है। इसका सरल सा उपाय है कि लगातार फास्टिंग करके एक दम से अपने शरीर पर जोर न डालें। इंटरमिटेंट फास्टिंग में एक से दो दिन का गैप रखें। 16 के बजाए 14 घंटे की फास्टिंग करें। यदि आप हेवी एक्सरसाइज करते हैं तो उन दिनों में करें जब आप फास्टिंग न कर रहे हों। बुलेटप्रूफ कॉफी भी एनर्जी बनाए रखती है। 

ये छोटे-छोटे उपाय हैं जो आपको भूख से तड़पने से बचा सकते हैं। इसके बाद भी अगर आपको भूख सताए या आपके हाथ तली हुई चीजों और स्नैक्स के लिए बढ़ते हों तो आप खाने में हिमालयन सॉल्ट और ग्रास फेड बटर मिला सकते हैं। इससे आपकी भूख शांत रहेगी। डेव ये सलाह भी देते हैं कि महिलाओं को आयरन इनटेक पर बहुत ध्यान देना चाहिए। क्योंकि इसकी कमी से थकान और माहवारी की समस्याएं हो सकती हैं। 

डेव इस बात पर सबसे ज्यादा जोर देते हैं कि किसी भी तरह का फास्टिंग प्लान शुरु करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए। खास तौर पर दूध पिलाने वाली माँओं, फेमिली प्लान कर रही महिलाओं और फर्टिलिटी की समस्या से जूझ रही महिलाओं को। अगर आपको माहवारी की समस्या है, वजन कम है, या पास्ट में कोई ईटिंग डिसऑर्डर रहे हों तो भी डॉक्टर से जरूर बात करें। और अगर आप प्रेग्नेंट हैं तो आपको फास्टिंग के के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। फास्टिंग का फायदा महिलाओं और पुरुषों दोनों को मिलता है। लेकिन महिलाओं को फास्टिंग करते वक्त ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। छोटे टार्गेट से शुरुआत करें। अपनी डाइट और हेल्थ को मॉनीटर करते रहें। आपकी बॉडी इस बात के सिग्नल देती है कि उसकी क्या कंडीशन है। इन सिग्नल्स को कभी इग्नोर न करें। फास्टिंग आपको अपने एक नए रूप से परिचित कराती है। फास्टिंग की शुरुआत से ही आपको खुद में फर्क नजर आने लगते हैं। आप स्ट्रेस ईटिंग को लेकर चौकन्ने हो जाते हैं। आपको समझ आने लगता है कि कई बार भूख का सिग्नल झूठा भी हो सकता है। भौतिक शरीर से अलग हटकर भी सोचिए। फास्टिंग से आपके सेंस ऑर्गन ज्यादा तेज हो सकते हैं। खाना ज्यादा अच्छा लगने लग सकता है। रंग पहले से ज्यादा चमकीले नजर आ सकते हैं। यानि आपका दुनिया को देखने का नजरिया ही बदलने लगता है। फास्टिंग आपके आध्यात्मिक पहलू को उभारती है। यही वजह है कि हर धर्म में फास्टिंग पर बहुत जोर दिया गया है। ईसाई, यहूदी, मुस्लिम और बुद्धिस्ट आप किसी का भी उदाहरण ले लीजिए। सबमें फास्टिंग को जरूरी  बताया गया है। इन धर्मों को मानने वाले बहुत से लोगों के लिए फास्टिंग, संयम का दूसरा नाम है। वे इसे न सिर्फ अनुशासित जीवन जीने के लिए प्रेक्टिस करते हैं बल्कि आसपास के वातावरण के साथ बेहतर तालमेल बिठाने का जरिया भी मानते हैं।

आप फास्टिंग को फिजिकल लेवल पर किया जाने वाला ध्यान समझ सकते हैं। आपका शरीर स्वस्थ होने लगता है। दिमाग में शांति आने लगती है। आप रिलेक्सेशन की स्टेज में पंहुच जाते हैं। फास्टिंग एक बहुत ही आनंद देने वाला अनुभव है। महिला हो या पुरुष, फास्टिंग के बाद दोनों की सेक्सुअल एक्टिविटी बढ़ जाती है। एक्टिविटी के 24 घंटे बाद पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन का लेवल गिर जाता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए Daoism (जिसे Taoism भी कहा जाता है) में कहा गया है कि पुरुषों को अनावश्यक ejaculation से बचना चाहिए। ताकि उनमें एनर्जी बनी रहे। जबकि वे महिलाओं को पूरी तरह से एन्जॉय करने की सलाह देते हैं। अंत में सबसे जरूरी बात ये है कि अपने आप को जज मत कीजिए। हो सकता है कि आपने पूरे मन से फास्टिंग करते हुए अपने दिन की शुरुआत की लेकिन अचानक कोई दोस्त मिठाई लेकर आ गया। आपका फास्ट खराब हो गया। लेकिन इसके लिए गुस्सा होने की या खुद को तकलीफ देने की जरूरत नहीं है। ये समझ लीजिए कि आपके रूटीन में एक नया मोड़ आ गया है। मिठाई को मजे लेकर खा लीजिए और अगले दिन थोड़ा ज्यादा परहेज कर लीजिए।

कुल मिलाकर
फास्टिंग का मतलब खुद को भूखा मारकर तकलीफ देना नहीं है। इसके भौतिक और आध्यात्मिक पहलू हैं। फास्टिंग खुद को अनुशासित रखने का तरीका है। फास्टिंग सिर्फ भोजन से नहीं की जाती है। हर उस चीज की फास्टिंग की जा सकती है जिसके चंगुल में आप खुद को जकड़ा हुआ महसूस करते हैं। इसमें सोशल मीडिया, टीवी, मोबाइल, बुरे विचार जैसी बहुत सी चीजें हो सकती हैं। 

 

क्या करें

नफरत से दूरी बनाने से शुरुआत करें।

एक दिन किसी भी तरह का नफरती विचार अपने मन में न आने दें। इससे आपको समझ में आएगा कि आपके आसपास कितनी नकारात्मकता भरी है। अगर फिर भी आपके दिमाग में नफरत भरने लगती है तो किसी पॉजिटिव चीज पर ध्यान लगाएं। प्रकृति के साथ समय बिताएं, अपनी हॉबी में मन लगा लें। दोस्तों और फैमिली के साथ रहें।

 

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