Adam Kahane
मुश्किलों को कहें बाय बायl
दो लफ्जों में
अगर हम ये कहें कि जिंदगी का दूसरा नाम मुश्किल है तो शायद गलत नहीं होगा। कम हों या ज्यादा हर किसी को रोज किसी न किसी तरह की मुश्किल, उलझन या चुनौतियों से गुजरना पड़ता है। लेकिन साल 2021 में आई ये किताब बताती है कि आप कैसे किसी बड़ी से बड़ी मुश्किल को चुटकियों में हल कर सकते हैं। सालों का अनुभव समेटकर एडम ने इस किताब के रूप में आपको जैसे जादू की छड़ी थमा दी है।
ये किताब किनको पढ़नी चाहिए?
• सर्विस इंडस्ट्री या काउंसिलिंग से जुड़े लोग
• हर वो इंसान जो अपनी परेशानियों का हल चाहता है
• जो लोग प्राब्लम सॉल्वर बनना चाहते हैं
इस किताब को पढ़कर आप जानेंगे
• राजनीति के विरोधी खेल में साथ कैसे आ गए
• कभी कभी कदम पीछे भी हटाने पड़ते हैं
• Facilitators और कंडक्टरों में क्या समानता है
लेखक के बारे में
एडम, Reos Partners नाम की संस्था के को फाउंडर और डायरेक्टर हैं। उन्होंने कॉर्पोरेट सेक्टर, गवर्नमेंट और सामाजिक संस्थाओं के साथ बहुत काम किया है और बड़े से बड़े मुद्दे सुलझाने में उनकी मदद की है। उनकी लिखी बहुत सी बेस्ट सेलर किताबों में Solving Tough Problems: An Open Way of Talking, Listening, and Creating New Realities का नाम खास तौर पर लिया जा सकता है।
Transformative facilitation क्या है
सोचकर देखिए आपको ऐसी टीम के साथ काम करना है जहां हर कोई अलग-अलग तरीके से सोचता है और किसी की भी दूसरे के साथ नहीं बनती। आप इन लोगों को एकजुट कैसे करेंगे? एडम के पास बहुत आसान सा हल है जिसे वो transformative facilitation कहते हैं। इंसान आम तौर पर अपनेपन और मददगार स्वभाव के होते हैं। आपको बस ये देखना है कि वो कौन सी बात है जो सबको इस स्वभाव से दूर कर रही है। आपको बस उस बात को ही दूर कर देना है। यानि आप उनको करीब नहीं ला रहे आप उनकी दूरियां मिटा रहे हैं। जैसे पानी का स्वभाव ही है बहना पर आप पानी को बहने पर मजबूर नहीं कर सकते। अगर बहाव के रास्ते में कोई रुकावट हो तो आप उसे हटा जरूर सकते हैं। वो अपने आप फिर से बहने लगेगा। किसी facilitator का काम इसी रुकावट को दूर करना होता है। यहां हम ऐसी सिचुएशन पर बात करेंगे जहां ये facilitation करने की गुंजाइश होती है। किताब खत्म होते होते आपके पास भी कुछ तरकीबें आ जाएंगी। फिर चाहे ऑफिस हो, घर या आस पड़ोस ये तरकीबें आपको हर जगह काम आएंगी।
मान लीजिए किसी बास्केटबॉल टीम की परफार्मेंस ठीक नहीं चल रही है। खिलाड़ियों की आपस में बनती नहीं है। टीम वर्क का कुछ अता पता नहीं है। सभी खिलाड़ी परेशान हैं और इसका असर मैदान पर दिखाई दे रहा है। जबकि खिलाड़ियों में जीतने के लिए जरूरी हर टैलेंट है। पर वो एक दूसरे को सपोर्ट नहीं कर रहे। इस वजह से हार मिल रही है। इसे ठीक करने के लिए कोच आपको एक facilitator बनाकर लाता है। पर असल में facilitator होते क्या हैं? आसान शब्दों में बोलें तो वो इंसान जो किसी टीम या ग्रुप को बांधकर रखने का काम करे। यहां आपका काम है टीम को एकजुट करना ताकि उनको जीत हासिल हो। अब आप कहां से शुरुआत करेंगे? आपके मन में सबसे पहले ये ख्याल आएगा कि कम से कम खिलाड़ियों को इस बात के लिए राजी किया जाए कि वो कोच की बात सुनें। इसे vertical facilitation कहा जाता है। यानि निचले से ऊपरी लेवल तक जाना। किसी परेशानी को हल करने का ये सबसे आम तरीका है। यहां आप पूरे ग्रुप को एक साथ बिठाकर अपनी बात समझा सकते हैं। वैसे तो ये तरीका सही लगता है। कोच, खिलाड़ियों को सिखा रहा है यानि वो अपने काम में माहिर है। अपने करियर में उसने ढेरों टीमों को हजारों बार खेल के दांव पेंच सिखाए होंगे। उसे पता है कि टीम को कैसे तैयार करना है और खिलाड़ियों को कैसे काम करना चाहिए। अगर कोई कोच की बात सुनेगा ही नहीं तो सफलता कैसे मिलेगी? सब कुछ ऊटपटांग होने लगेगा और जाहिर है सामने वाली टीम बाजी मार लेगी।
दूसरा तरीका है horizontal facilitation का। यानि सबको एक साथ तैयार किया जाए। टीम में सभी बराबर हैं। यानि नए या जूनियर खिलाड़ी को भी अगर कोई बात कहनी हो या कोच तक से कोई परेशानी हो तो उसकी बात पर गौर किया जाए। आखिर मैदान में असली काम तो खिलाड़ियों का होता है ना। भले ही उनको कोच के जितना अनुभव न हो पर खेल के मैदान की हकीकत तो पता होती है। कोच चाहे कितनी भी अच्छी प्लानिंग कर ले पर जब तक खिलाड़ी खुश नहीं होंगे नतीजा नहीं मिलेगा। वैसे तो दोनों तरह की अप्रोच काम कर जाएगी। चाहे टीम खिलाड़ियों के दम पर जीते या कोच की स्ट्रैटेजी पर। लेकिन ये सफलता ज्यादा दिन नहीं टिकेगी। क्योंकि एक चीज मजबूत होगी तो दूसरी कमजोर पड़ जाएगी। जिस तरफ को इग्नोर किया जा रहा है वहां फ्रस्ट्रेशन भी होने लगेगी। अब क्या किया जाए? एक ही तरीका है कि आपको दोनों की तरफ ध्यान देना है। कोच की भी सुनी जाए और टीम की भी। एक facilitator के तौर पर आपका काम है कि दोनों एक दूसरे की बात सुनें और समझें। इसी को transformative facilitation कहा जाता है। ये थोड़ा मुश्किल तो है लेकिन परेशानी को सही तरह समझने के लिए आपको हर किसी के पास जाकर, उनसे बात करके उनकी बात को समझना जरूरी हो जाता है। आप सही तरीके से अपनी जिम्मेदारी निभा पाएं इसके लिए ये जरूरी है। अगर आपको लगता है कि कोच हमेशा अपनी बात मनवा रहा है तो खिलाड़ियों पर ज्यादा ध्यान दें। अगर ये समझ आ रहा हो कि खिलाड़ी तो कोच की सुनते ही नहीं और मनमानी करते हैं तो कोच की बात पर ज्यादा फोकस करें। एक facilitator को बार बार ये काम दोहराना पड़ता है जब तक हर कोई अपनी बात खुलकर न कह दे। यहां आपको सुनना भी है और बोलना भी। इसमें वक्त तो लगता है पर facilitators यही करते हैं। पूरी तसल्ली से सामने वाले को सुनना और अपनी बात कहना। इस तरह टीम में understanding बनती है और टीम स्पिरिट मजबूत होने लगती है। ऐसी टीम को जीतने से कोई नहीं रोक सकता।
रुकावटें हटाना
Transformative facilitation की सबसे अच्छी बात है कि इसकी मदद से आप किसी भी ग्रुप की परेशानियां सुलझा सकते हैं। न सिर्फ बास्केटबॉल टीम की परेशानी बल्कि किसी बड़े पॉलिटिकल मुद्दे को भी। नेल्सन मंडेला के जेल से रिहा होने के लगभग डेढ़ साल बाद एडम को साउथ अफ्रीका बुलाया गया। उनको देश के भविष्य के लिए बनाई एक पॉलिसी की वर्कशॉप लेनी थी। ये सब जानते हैं कि दक्षिण अफ्रीका में गोरों और कालों के लिए अलग नियम थे। ये वर्कशॉप इसी पॉलिसी को खत्म करने के बाद होने वाले बदलावों पर थी। यहां देश भर के 28 नेता थे जो गोरों और कालों की तरफ से, पॉलिटिकल पार्टियों, कॉर्पोरेट और सोशल ग्रुप्स की तरफ से आए थे। जैसा कि आप अंदाजा लगा सकते हैं वहां काफी तनाव का माहौल था। ऐसे नेता जो सालों से एक दूसरे के खिलाफ लड़ते आए वो एक ही जगह थे। एडम ने वही किया जो किसी अच्छे facilitator को करना चाहिए। रुकावट खत्म करने से शुरुआत की। सबसे पहले उन्होंने माहौल को सही किया। वेन्यू को एकदम सिम्पल तरीके का रखा। इन लोगों को किसी न किसी के साथ बेडरूम शेयर करने को दिए गए। ये लोग साथ में खाना खाते और समय मिलने पर साथ में बॉलीबॉल भी खेलते। इन चीजों की वजह से ये लोग आपस में घुलने मिले लगे। जबकि ये उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था। सालों के दुश्मन अब दोस्त बनने लगे थे और एक दूसरे के साथ खुलकर बातें करते थे। कैपिटलिस्ट, कम्युनिस्ट की बात समझने लगे थे। लोग अपनी बात रखते फिर दूसरे से राय पूछते।
कोलंबिया में भी एडम ने यही किया। यहां भी नेता, गोरिल्ला ग्रुप के लोग, बिजनेस करने वाले, रिसर्चर और भी कई ग्रुप्स के लोग थे। सबकी अलग सोच, अलग नजरिया और अलग गोल थे। बातचीत शुरू होने के पहले एडम ने कुर्सियों को एक गोल घेरा बनाकर लगाया ताकि सब एक दूसरे को अच्छे से देख और सुन सकें। जब उन्होंने खुद का परिचय देना शुरू किया तो सबको एक तय समय मिला जहां समय पूरा हो जाने पर घंटी बजा दी जाती थी। चाहे कोई कितने बड़े रुतबे वाला हो सबको बराबर समय दिया गया। इससे आप क्या सीखते हैं? यही कि जब कभी आपको facilitation करना पड़े तो सबसे पहले रुकावटों पर ध्यान दीजिए। सही कदम रखना सबसे जरूरी है। फिर चाहे आप किसी टीम का भविष्य बना रहे हों या देश का।
विनम्रता बहुत काम आती है
अब तक आप ये सोचने लगे होंगे कि facilitators तो बहुत बड़ा काम करते हैं। ये बात सच भी है पर facilitators खुद को कभी किसी हीरो या लीडर की तरह नहीं समझते। क्योंकि किसी facilitator का सबसे बड़ा गुण है विनम्रता यानि हमेशा जमीन से जुड़े रहना। उनका काम अपनी नहीं बल्कि दूसरों की मदद करना होता है। जैसे किसी ऑर्केस्ट्रा में कंडक्टर होता है बिल्कुल वैसे ही कोई facilitator काम करता है। आपको देखकर जरूर ऐसा लगेगा कि कंडक्टर ही ऑर्केस्ट्रा को चला रहा है पर हकीकत में सारी जिम्मेदारी कंपोजर की होती है। आखिर संगीत बनाने वाला वही तो है। और इसे सुनाने वाले लोग म्यूजीशियन होते हैं न कि कंडक्टर। फिर कंडक्टर का भला क्या काम है? ये तालमेल बिठाने का काम करता है। कभी आवाज तेज करनी होती है तो कभी धीमी। इस बात का ध्यान कंडक्टर ही रखता है। यानि कंडक्टर, tempo बनाकर रखता है। Facilitator का काम भी लगभग ऐसा ही है। आप ग्रुप की सर्विस करते हैं न कि उनको लीड। हां आपको सारे ग्रुप के लोगों को डायरेक्शन देने होते हैं पर ज्यादातर मामलों में आप बस उनके साथ ही चलते हैं।
एडम बताते हैं कि अपने करियर के दौरान सबसे विनम्र इंसान जो उनको मिले वो थे नेगुसु अकलीलू। इथिओपिया के इस facilitator ने अपने देश में शांति बनाए रखने के लिए एक वर्कशॉप चलाई जो बहुत सफल हुई। देश के 50 नेताओं को एक छत के नीचे लाने से पहले उन्होंने लगभग दो साल तक दिन रात एक करके काम किया। इसके लिए उन्होंने भाग लेने वालों को ये यकीन दिलाया कि इसमें उन लोगों का ही फायदा है। नेगुसु को हीरो नहीं बनना था। वो अपने देश की सेवा कर रहे थे। लेकिन ये बहुत मुश्किल काम था। पहले सब यही सोच रहे थे कि इसमें नेगुसु को कुछ न कुछ फायदा जरूर है वरना वो भला इतनी मेहनत क्यों करेंगे? लेकिन नेगुसु ने एक एक करके सबको यकीन दिलाया कि इसमें अगर किसी का सबसे ज्यादा फायदा है तो देश का। नेगुसु ने ये भी ध्यान रखा कि भाग ले रहे सभी नेताओं की जरूरत पूरी हो। दो साल बाद आखिरकार वर्कशॉप हुई। नेगुसु का काम इतने पर ही पूरा नहीं हुआ। वो वर्कशॉप के दौरान भी दिन में दो बार अपनी टीम के साथ मीटिंग करके इस बात का ध्यान रखते थे कि किसी को भी कोई परेशानी न हो और सबका अच्छी तरह ध्यान रखा जाए। Facilitatior का असली मकसद यही होता है कि वो किसी बड़े गोल को ध्यान में रखकर काम करे। आपको इस बात के लिए पक्का इरादा करना होगा कि आप अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटेंगे।
एक कदम पीछे हटाना या आगे बढ़ाना
जी जान लगा देने के बाद भी कई बार facilitator असफल हो जाते हैं। भले ही वर्कशॉप खराब हो जाए पर इस बात की संभावना बहुत कम होती है कि भाग लेने वाले लोग, facilitator को पहले दिन ही गलत ठहरा दें। हालांकि एडम के साथ दो बार ऐसा हो चुका है और दोनों बार उन्होंने इससे कुछ न कुछ सबक ही लिया है। साल 2018 में उनकी टीम को कनाडा के एक शहर में कुछ काम मिला। इनको ये पता लगाना था कि किस तरह वहां रहने वाले ब्लैक कम्यूनिटी के लोगों की सेहत को बेहतर बनाया जा सकता है। एडम को तो इस काम का अच्छा खासा अनुभव था तो उनको लगा ये तो बड़ा आसान है और वो पूरे जोश के साथ काम में लग गए। लेकिन जल्द ही गड़बड़ नजर आने लगी। सबको 1 मिनट बोलने का मौका देने वाली उनकी तरकीब जो हर जगह काम आती थी यहां गलत साबित होने लगी। वहां के बुजुर्ग लोगों को इससे उनके बचपन के उन सरकारी स्कूलों की घंटियों की याद आने लगीं जहां पढ़ना उनके लिए किसी सजा की तरह था क्योंकि स्कूल बिल्कुल खस्ताहाल होते थे और टीचर भी बच्चों के साथ बुरा सलूक करते थे। एक बुजुर्ग ने तो एडम को चले जाने तक को कह दिया।
एडम के लिए ये बहुत हैरान कर देने वाली बात थी। उस दिन का काम खत्म होने के बाद वो काफी देर सोचते रहे। तब जाकर उनको ख्याल आया कि उन्होंने बुजुर्गों के नजरिए से तो कुछ सोचा ही नहीं था। फिर उनको ये भी समझ आया कि वो तो गोरे हैं और उस समाज से आते हैं जिसने सालों तक काले लोगों पर अत्याचार किए और यहां तक कि उनकी जान भी लेता रहा। उसी समाज के इंसान के तौर पर उनका आना और एकदम से ये कहने लगना कि आप ये करो वो मत करो कभी भी उन लोगों को अच्छा नहीं लगेगा। यानि वर्कशॉप का तरीका गलत था। तब उन्होंने अपना तरीका बदला। अब वर्कशॉप की शुरुआत और खात्मा रोज उस तरह से होने लगा जैसे वहां के लोगों के काम शुरू और खत्म करने के रिवाज थे। इन एक्टिविटीज में लोकल लोगों को ही आगे रखा जाता था। एडम चुप रहकर बस इनको देखते। उनका काम नाश्ता परोसना और उस जगह को साफ रखने जितना रह गया था। वर्कशॉप के तीसरे दिन एडम का जन्मदिन था। वही बुजुर्ग जो एडम को चले जाने को कह रहे थे उन्होंने उसे गिफ्ट दी और ये भी कहा कि वो एडम की गल्ती को माफ कर रहे हैं।
ये घटना सिखाती है कि कई बार facilitators को एक कदम पीछे भी हटना पड़ सकता है। इस तरह आप लोगों की नजरों में अपनी जगह बना पाते हैं। लोग आप पर भरोसा कर पाते हैं और आपके नजरिए को भी समझ पाते हैं। हालांकि कई बार इसका उल्टा भी करना पड़ सकता है। यानि एक कदम आगे बढ़ाना। यानि ये समझना कि सामने वाले और आपके बीच कोई दूरी है। ये दूरी तभी कम हो सकती है जब आप आगे बढ़ें। इस वर्कशॉप में एडम को ये समझ आ गया था कि बुजुर्ग लोगों के दिलों में कहीं न कहीं इस बात का दर्द है कि गोरे लोगों ने उनकी पीढ़ियों को कितना सताया है। जबकि एडम का सीधे तौर पर इसमें कोई हाथ नहीं था पर वो ये भी समझ रहे थे कि जब तक वो इस बात का हल नहीं निकालेंगे उनको सफलता नहीं मिलेगी। भाग लेने वालों को भी ये दो कदम मदद कर सकते हैं। उनको दो तरह से सोचना चाहिए। एक तो उस इंसान के तौर पर जो इस वर्कशॉप का हिस्सा है और दूसरा किसी न्यूट्रल इंसान के तौर पर जो बाहर रहकर इस वर्कशॉप को देख रहा है। जब वो दोनों तरह से अपनी परेशानियां देखेंगे तो उनको भी सिचुएशन का सही अंदाजा होगा। यानि अगर कोई परेशानी है तो बाहरी तौर पर उसका क्या हल निकाला जाए और वो खुद किस तरह इसे सुलझाने में मदद करें। इस तरह से वर्कशॉप में भाग ले रहे लोगों को भी एक नया नजरिया मिलता है। वो भी अपनी जिम्मेदारी को अच्छी तरह समझ पाते हैं। उनको खुद भी हल ढूंढने का मोटिवेशन भी मिलता है। आखिर facilitator का काम यही तो है।
कुल मिलाकर
Transformative facilitation का मतलब है सबकी भागीदारी बनाते हुए काम करना। यानि हर वो इंसान जो किसी टीम या ग्रुप में ऊपरी या निचले किसी भी लेवल पर हो उनको बराबर वेल्यू और समय देकर उनकी बातें सुनना, समझना और फिर मसले को हल करना। एक
facilitator के तौर पर ये आपकी जिम्मेदारी है कि आप सिचुएशन को पूरी तरह समझकर वर्कशॉप की प्लानिंग करें। जिस भी तरह की परेशानी हो transformative facilitation उसका हल ढूंढने में मदद कर सकता है। कोई छोटी खेल की टीम ही नहीं बड़े से बड़े नेशनल लेवल की परेशानी भी। बस ये याद रखिए कि सबसे पहले आपको रास्ते में नजर आने वाली रुकावट को दूर करना है वरना सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। एक अच्छे facilitator के लिए पेशेंस और विनम्रता दो बहुत जरूरी चीजें हैं। आपका काम है लोगों को सर्विस देना न कि लीडरशिप देना। ये भी ध्यान दीजिए कि किसी facilitation में आप किस जगह ठहरते हैं। भले ही शुरुआत में आपको ऐसा न लगे पर हो सकता है कि परेशानी में आपकी भी कोई न कोई भागीदारी हो। ये भी ध्यान रखिए कि आपको खुद को पूरी तरह दोष भी नहीं देना है। बस सही समय पर एक कदम आगे या पीछे कर लीजिए ताकि भाग ले रहे लोग खुद ही हल निकाल लें।
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