Do What You Are

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Do What You Are

Paul D Tieger, Barbara Barron & Kelly Tieger
अलग अलग पर्सनैलिटी के बारे में जानकर अपने लिए सबसे बेहतर कैरियर चुनें।

दो लफ्जों में 
डू व्हाट यू आर ( Do What You Are ) में हम देखेंगे कि किस तरह से अपनी पर्सनैलिटी को अच्छे से समझ कर आप अपने लिए एक बेहतर काम खोज सकते हैं। यह किताब हमें बताती है कि किस तरह से अलग अलग लोगों की अलग अलग पर्सनैलिटी होती है और किस तरह की पर्सनैलिटी के लोगों को किस तरह का काम करना चाहिए।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
आज के वक्त में ना जाने कितने लोग हैं जो सुबह से नफरत करते हैं, क्योंकि सुबह होते ही उन्हें अपने काम पर जाना होता है, जो कि उन्हें बिल्कुल नहीं पसंद। लोग मंडे के नाम से नफरत करते हैं और उसके आते ही फिर से संडे का इंतजार करने लगते हैं। क्या यह बातें आपको कुछ जानी पहचानी लग रही हैं? कहीं आप भी उन लोगों में तो नहीं आते? 

अगर आपका जवाब हाँ है, तो यह किताब आपके लिए लिखी गई है। यह किताब बताती है कि क्यों आप अपने काम से खुश नहीं हैं और किस तरह से अपनी पर्सनैलिटी के बारे में जानकर आप उसके हिसाब से अपने लिए एक बेहतर नौकरी खोज सकते हैं जिसे करने में आपको मजा आएगा। यह किताब आपकी मदद करेगी ताकि आप खुद को बेहतर तरीके से समझ सकें। 

 

-आप किस तरह की पर्सनैलिटी रखते हैं।

-अपनी पर्सनैलिटी के हिसाब से काम करना किस तरह से मुश्किल हो सकता है।

- किस तरह से आप अपनी मनपसंद नौकरी खोज सकते हैं।

अपने काम से खुश रहने के लिए आपको वो काम करना होगा जो कि आपकी पर्सनैलिटी को सूट करता हो।
अगर आप जो कुछ भी काम कर रहे हैं उससे खुश नहीं हैं, तो इसकी वजह यह हो सकती है कि आप अपनी पर्सनैलिटी के हिसाब से काम नहीं कर रहे हैं। अगर आपकी पर्सनैलिटी अलग है, तो आपको अलग तरह का काम करना अच्छा लगेगा। अलग अलग पर्सनैलिटी का होना कोई नई बात नहीं है, बल्कि यह ग्रीस के जमाने से ही चली आ रही है। लेकिन इसके बारे में हमने अच्छे से जानना शुरू किया जब कार्ल जंग नाम के एक साइकोएनालिस्ट ने 1921 में इसपर काम किया।

इसके बाद 1940 के दशक में कैथरीन ब्रिग्स और उनकी बेटी इसाबेल ब्रिग्स माइर्स ने अलग अलग पर्सनैलिटी होने की थियोरी पर अच्छे से काम करना शुरू किया और उन्होंने ब्रिग्स-माइर्स टाइप इंडिकेटर बनाया जो कि चार स्केल पर 16 अलग अलग तरह की पर्सनैलिटी के बारे में हमें बताता है।

अब अगर हम इसकी बात करें कि इससे आपका क्या फायदा होगा, तो हर व्यक्ति अपनी पर्सनैलिटी के हिसाब से दुनिया को देखता है और उसके हिसाब से काम करता है। इसलिए आपको वो काम अच्छा लगेगा जो आपकी पर्सनैलिटी को सूट करता होगा। अपनी पर्सनैलिटी के खिलाफ जाकर अलग तरह का काम करना मतलब अपने उल्टे हाथ से लिखने की कोशिश करना होता है। आप फिर भी लिख तो लेंगे, लेकिन आपकी लिखावट खराब होगी और उसमें आपको बहुत मेहनत करनी होगी।

एकज़ाम्पल के लिए अगर आप अकेले में रहना और शाँत माहौल में रहकर किताबें पढ़ना पसंद करते हैं तो सेल्समैन की नौकरी आपके लिए नहीं है और अगर आप बहुत ज्यादा बात करते हैं और लोगों के साथ घुलना मिलना पसंद करते हैं तो आपके लिए साइंटिस्ट का काम अच्छा नहीं होगा। अपनी पर्सनैलिटी के हिसाब से काम चुनना आपके लिए फायदेमंद होगा।

अपनी पर्सनैलिटी को पहचानने के लिए आपको चार तरह के स्केल के बारे में जानना होगा।
पिछले सबक में हमने ब्रिग्स-माइर्स टाइप इंडिकेटर के बारे में बात की थी जो कि यह बताता है कि आपकी पर्सनैलिटी क्या है। इसमें चार स्केल होते हैं जिसके बारे में हम इस सबक में जानेंगे। आपको यह पहचानना होगा कि आप इसमें से कौन हैं।

सबसे पहला आता है कि आप दुनिया के साथ किस तरह से घुलते मिलते हैं। इसमें दो तरह की पर्सनैलिटी आती है - एक्स्ट्रावर्ज़न और इंट्रोवर्ज़न। एक्स्ट्रावर्ज़न हमेशा अपनी बाहर कि दुनिया के बारे में सोचता है और खुद के बारे में ज्यादा ना सोचकर दूसरों के साथ घुलने मिलने की कोशिश करता है। लेकिन इंट्रोवर्ज़न पर्सनैलिटी के लोग अपने दिमाग में रहना या फिर अकेले रहना पसंद करते हैं।

एक्स्ट्रावर्ज़न पर्सनैलिटी की खास बात होती है कि वे बोलते हुए सोचते हैं। आप ने बहुत से लोगों को देखा होगा कि वे किसी बात को समझते वक्त उसे बोलते रहते हैं। स्कूल के कुछ बच्चों से जब सवाल पूछा जाता है तो वे तुरंत बोलना शुरू कर देते हैं और फिर बाद में उसके नतीजे तक पहुंचते हैं। 

दूसरी तरफ इंट्रोवर्ज़न परर्सनैलिटी रखने वाले लोग सबसे पहले जवाब के बारे में अच्छे से सोच लेते हैं और फिर उसे बोलते हैं। वे ज्यादातर चुप रहते हैं और अकेले रहना पसंद करते हैं। अब यह जरूरी नहीं है कि कोई पूरी तरह से एक्ट्रोवर्ट या इंट्रोवर्ट हो, लेकिन हम में से हर किसी का झुकाव एक की तरफ ज्यादा होता है। आपका झुकाव किस तरफ है? 

इसके बाद की जो पर्सनैलिटी है वो है - सेंसिंग और इंट्यूशन। यह दिखाती हैं कि किस तरह से एक व्यक्ति नई जानकारी को लेता है। एक सेंसर हमेशा किसी जानकारी को देखकर, सुनकर, महसूस कर के लेता है और सिर्फ उन बातों को मानता है जिन्हें नापा जा सकता है। इस तरह के लोग इस बारे में सोचते हैं कि इस समय क्या हो रहा है और वे याद करने में माहिर होते हैं।

दूसरी तरफ आते हैं वे लोग जो भविष्य में रहते हैं और यह सोचने की कोशिश करते हैं कि क्या क्या हो सकता है। उन्हें इससे कम फर्क पड़ता है कि इस समय क्या हो रहा है। वे कल्पना करने में माहिर होते हैं और किसी चीज़ को याद कर लेने की बजाय उसके पीछे की वजह जानने की कोशिश करते हैं।

एक सेंसर हमेशा दिए गए नियमों के हिसाब से काम करता है जबकि एक इंट्यूटिव अपने हिसाब से काम करता है।

आपकी पर्सनैलिटी में यह आता है कि आप किस तरह से फैसले लेते हैं और किस तरह की जिन्दगी चाहते हैं।
हमने दो स्केल की बात की जिससे आपको अब तक यह पता लग गया होगा कि आप इंट्रोवर्ट हैं या एक्सट्रोवर्ट और सेंसर हैं या इंट्यूटिव। अब हम बचे हुए दो स्केल की बात करेंगे।

तीसरा स्केल यह दिखाता है कि आप किस तरह से फैसले लेते हैं, जिसमें दो तरह की पर्सनैलिटी आती है - थिंकिंग और फीलिंग। जो लोग सोचते ज्यादा हैं, वे अक्सर कड़े और सही फैसले लेते हैं और अपनी भावनाओं को नियमों के बीच नहीं आने देते हैं। जबकि जो लोग महसूस ज्यादा करते हैं वे अक्सर अपनी भावनाओं से फैसले लेते हैं। 

एक्साम्पल के लिए मान लीजिए आप एक टीचर हैं और आपके स्कूल का एक बच्चा शरारत करते हुए आपको मिलता है। उस बच्चे ने इससे पहले कभी शरारत नहीं की और वो बहुत अच्छे से रहता था। लेकिन पिछले कुछ दिनों से उसे शरारती बच्चों के साथ बैठा दिया गया था। इसलिए अब वो उनके साथ रहकर शरारत करने लगा था। 

ऐसे हालात में आप होते तो क्या करते? क्या आप यह कहते कि नियम सबके लिए एक हैं और उस बच्चे को सजा मिलनी चाहिए या फिर आप यह कहते कि उस बच्चे को शरारती बच्चों के साथ बैठा कर टीचरों ने गलती की और क्योंकि इससे पहले उसने कभी ऐसा नहीं की , उसे माफ कर देना चाहिए? अगर आप ने पहला आप्शन चुना तो आप थिंकर हैं और अगर दूसरा चुना तो फीलर।

इसके बाद अंत में आता है कि आपको किस तरह की जिन्दगी पसंद है। इसमें भी दो तरह की पर्सनैलिटी आती है - जजिंग और पर्सीविंग। जजर्स वो होते हैं जो नियम से चलना पसंद करते हैं और अगर कोई भी काम अधूरा है, तो उन्हें वो बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। दूसरी तरफ पर्सीवर्स वो होते हैं जो फ्लेक्सिबल रहना पसंद करते हैं। इस तरह के लोग अपने पास आप्शन रखना चाहते हैं और अगर एक तरीका काम ना करे तो दूसरा तरीका अपनाने में पीछे नहीं हटते।

चारों स्केल से अपनी पर्सनैलिटी को पहचान कर एक साथ लाइए।
हमने देखा कि किस तरह से चार तरह के स्केल पर अलग अलग तरह के लोग हो सकते हैं और आप ने अब तक यह भी पता कर लिया होगा कि आप इन चारों स्केल पर कहाँ कहाँ आते हैं। अब अपनी सारी पर्सनैलिटी को एक साथ लेकर आइए और उसे एक कोड दीजिए। एकज़ाम्पल के लिए, अगर आप एक एक्सट्रोवर्ट-सेंसर-फीलर-जजर हैं, तो इस हिसाब से आपका कोड हुआ ईएसएफजे ( ESFJ ) और अगर आप एक इंट्रोवर्ट-इंट्यूटिव-थिंकर-पर्सीवर हैं, तो आपका कोड हुआ आईआईटीपी ( IITP )। इस तरह से कुल मिलाकर 16 तरह की पर्सनैलिटी हो सकती है।

अब एक बार आप ने अपनी पर्सनैलिटी कोड को पहचान लिया तो आप यह देखना शुरू कीजिए कि आपके लिए किस तरह का काम अच्छा होगा। अगर आप एक्ट्रोवर्ट-सेंसर-फीलर-जजिंग पर्सनैलिटी के हैं, तो आपके लिए सेल्समैन का काम सबसे ज्यादा अच्छा होगा और अगर आप एक्ट्रोवर्ट-इंट्यूटिव-फीलर-जजिंग पर्सनैलिटी के हैं, तो आपके लिए लीडर का काम अच्छा होगा। अगर आप इंट्रोवर्ट-इंट्यूटिव-थिंकर-पर्सीवर पर्सनैलिटी के हैं तो आपके लिए इंवेंटर का काम सबसे अच्छा होगा क्योंकि तब आप अकेले में रहकर , अपनी कल्पना के जरिए अलग अलग तरह के तरीके अपना कर कुछ नया बना सकते हैं।

यहाँ पर आपको यह जान लेना चाहिए कि कोई भी पर्सनैलिटी किसी दूसरे से बेहतर या खराब नहीं होती है। अगर उन सभी को सही जगह पर लगा दिया जाए तो वे बेहतर तरीके से काम कर सकते हैं और अच्छे नतीजे ला सकते हैं। अगर आप एक लीडर को एक इंजीनियर का काम दे देंगे, तो वो नाकाम हो जाएगा क्योंकि उसे लोगों के साथ काम करना पसंद है, वो एक एक्सट्रोवर्ट है। इंजीनियर बनने के लिए आपको कुछ हद तक इंट्रोवर्ट होना होगा।

हर तरह की पर्सनैलिटी की अपनी खूबियां और अपनी खामियां हैं। समाज के हिसाब से वो लोग जो बाहर जाकर लोगों से मिलते हैं, यानी कि एक्सट्रोवर्ट हैं, वे कुछ ज्यादा अच्छे और काबिल माने जाते हैं और जो लोग कमरे में बंद होकर सिर्फ अपने आप में रहते हैं, उन्हें सब पागल का टाइटल दे देते हैं। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। एक एक्सट्रोवर्ट व्यक्ति कभी कुछ नया नहीं बना सकता, वो आर्टिस्ट नहीं बन सकता, वो अपनी कमियों पर ध्यान नहीं दे सकता। ठीक इसी तरह से एक इंट्रोवर्ट व्यक्ति दूसरों से मदद माँग कर अपना काम आसान नहीं कर सकता और ना ही किसी टीम के साथ काम कर सकता है।

जिन्दगी में किसी भी तरह की पर्सनैलिटी का दर्जा किसी दूसरी तरह की पर्सनैलिटी से ऊपर नहीं होता। हर किसी की अपनी खूबी और खामी है।

हम अलग अलग पर्सनैलिटी के लोगों को अलग अलग भागों में बाँट सकते हैं।
वैसे तो कोई भी दो लोग पूरी तरह से एक जैसे नहीं हो सकते, लेकिन उनकी पर्सनैलिटी एक जैसी हो सकती है। हमने जिन 16 तरह की पर्सनैलिटी के बारे में जाना, उनमें से अगर कुछ पर्सनैलिटी उनमें मिलती हैं तो वे एक दूसरे से कुछ हद तक मिलते जुलते होंगे। इस हिसाब से हम एक तरह के लोगों को एक तरह के सेक्शन में रख सकते हैं।

सबसे पहले सेक्शन को ट्रेडिशनैलिस्ट कहा पाता है जिनके पास सेसिंग और जजिंग पर्सनैलिटी होती है। अब इससे फर्क नहीं पड़ता कि वे इंट्रोवर्ट हैं या एक्सट्रोवर्ट , लेकिन अगर उनके पास सेसिंग और जजिंग पर्सनैलिटी है, तो वे ट्रेडिशनैलिस्ट कहे जाएंगे।

इस तरह के लोग नियम के हिसाब से रहना बहुत पसंद करते हैं और इनके लिए वो काम सबसे अच्छा होता है जिसमें अच्छे सिस्टम और प्रोसीजर्स हो। इस तरह के लोगों को किसी भी तरह का काम दे दिया जाए तो वे उसे अच्छे से कर पाने में माहिर होते हैं अगर उन्हें सारे नियम कानून अच्छे से समझा दिए जाएं तो। इस तरह के लोग लम्बा नहीं सोचते हैं और ज्यादातर सरकारी काम करते हुए नजर आते हैं, जैसे कि पुलिस आफिसर।

इसके बाद आते हैं वे लोग जिनमें सेसिंग और पर्सीविंग पर्सनैलिटी होती है। इस तरह के लोगों को नियम से चलना और हर रोज वही एक काम करना पसंद नहीं होता , बल्कि ये लोग हमेशा कुछ नया करने के लिए उतावले रहते हैं। इस तरह के लोग दुनिया बदलने का ख्वाब देखते हैं और खुद को बदलते हालात के साथ बहुत तेजी से बदल लेते हैं। 

लेकिन इनमें बुरी बात यह होती है कि कभी कभी यह बच्चों जैसी हरकतें करने लगते हैं और कुछ नया करने के चक्कर में खतरों को अनदेखा कर देते हैं। इस तरह के लोग पैटर्न को नहीं पहचान पाते। इस तरह के लोग भी आपको पुलिस की नौकरी करते हुए मिल सकते हैं, लेकिन वे इस काम को इसलिए करते हैं क्योंकि इसमें उन्हें समय समय पर अलग अलग तरह के मुजरिमों के साथ निपटने का मौका मिलता है। इन्हें इस काम में कुछ नया करने को मिलता है और इसलिए  वे इस काम से प्यार करते हैं।

तीसरे और चौथे सेक्शन के लोगों को आइडिएलिस्ट और कान्सेप्चुएलाइज़र्स कहा जाता है।
तीसरे ग्रुप में वो लोग आते हैं जो इन्ट्यूटिव और फीलर्स होते हैं। इस ग्रुप के लोगों को खुद में सुधार करना, ज्ञान पाना और ईमानदारी में संतुष्टि पाना बहुत पसंद है। इस तरह के लोग इन बातों के बारे में सोचते हैं और उस काम को करते हैं जो सही हो और जिससे इन्हें आध्यात्मिक शांति मिल सके। इस तरह के लोग दूसरों से अच्छे से काम करवा सकते हैं और बेहतर समाधान खोज सकते हैं। लेकिन साथ में यह लोग मूडी और ईमोशनल भी हो सकते हैं। इन लोगों की बुराई की जाए तो इन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगता और यह कभी कभी बहुत ज्यादा अनुशासन में रहने लगते हैं।

अगर आप इस तरह के हैं तो आपको काम्पटेटिव माहौल से दूर रहकर एक ऐसे काम को करना होगा जिसमें लोकतंत्र हो और सभी लोग मिलकर काम करते हों। इस तरह के लोग टीचिंग, कंसल्टिंग और ह्यूमन रीसोर्स के काम में ज्यादा अच्छा करेंगे।

अंत में आते हैं इंट्यूटिव थिंकर्स जिन्हें कान्सेप्चुएलाइज़र्स कहा जाता है। इस तरह के लोग हर काम में बेस्ट बनने की कोशिश करते हैं। इस तरह के लोग हमेशा खुद को सुधार कर सबसे आगे निकलने की कोशिश करते हैं। वे पैटर्न और ट्रेंड पहचानने में माहिर होते हैं और उनका आत्मविश्वास बहुत ज्यादा होता है। लेकिन साथ ही में वे कुछ घमंडी, बातों को ना मानने वाले और थोड़े से उलझे हुए भी हो सकते हैं जिन्हें समझना मुश्किल हो सकता है। वे दूसरों की भावनाओं के बारे में और छोटी बातों के बारे में ज्यादा नहीं सोचते।

इस तरह के लोग ऊपर के दर्जे पर अच्छे से काम कर पाएंगे। इन्हें वो काम अच्छा लगता है जहां पर वे अपने हिसाब से काम कर सकें और जो चुनौतियों से भरा पड़ा हो।

यहाँ पर आपको यह समझना चाहिए कि कोई भी किसी दूसरे से आगे नहीं है और हर किसी की इस दुनिया में अपनी जगह है। एक बड़े आर्गनाइजेशन के अलग अलग डिपार्टमेंट में हमें इन सभी तरह के लोगों की जरूरत पड़ सकती है।

अपना डामिनैंट फंक्शन पहचान कर आप अपने लिए एक बेहतर काम खोज सकते हैं।
हर पर्सनैलिटी में एक डामिनैंट फंक्शन होता है जो उनकी पर्सनैलिटी के सबसे मजबूत पहलू को दिखाता है। जब आप इससे संबंधित कोई काम करते हैं, तो उस काम को करने में आपको ज्यादा मजा आता है। बाकी दूसरे सबसे मजबूत पहलू को आक्सिलरी फंक्शन कहा जाता है। तीसरे और चौथे फंक्शन आपके लिए उतने मायने नहीं रखेंगे। तो आइए यह जानने की कोशिश करते हैं कि आपका डामिनैंट फंक्शन कौन सा है।

अगर आपकी पर्सनैलिटी ISTJ, ISFJ, ESTP या ESFP, तो आप एक सेंसर हैं जिसे बोरिंग और गहरी जानकारी तक पहुंचना अच्छा लगता है। इस तरह के लोगों को अपने दोस्तों से जलन होती है और वे उस काम को अच्छे से कर पाएंगे जिसमें उन्हें इस तरह की जानकारी को सबके सामने रखने का मौका मिले। इस तरह के लोग रीसर्च के काम में माहिर होते हैं।

इसके बाद अगर आपकी पर्सनैलिटी INFJ, INTJ, ENFP या ENTP है, तो आप इंट्यूटिव हैं जो बहुत दूर तक सोचने की कोशिश करते हैं। आप ऊपरी सतह को हटा कर अंदर तक की जानकारी लेने के बारे में सोचते हैं जहां तक कोई नहीं सोच पाता। आप कुछ हद तक क्रीएटिव हैं और आपको अपनी कल्पना की ताकत का इस्तेमाल करने की जरूरत है। इस तरह के लोगों के लिए एडवर्टाइज़मेंट का काम अच्छा होगा।

अगर आप एक ISFP, INFP, ESFJ या ENFJ हैं, तो आप एक फीलर हैं और उस काम को करना पसंद करते हैं जिसमें आपकी वैल्यूस दिखती हो। इस तरह के लोगों को सहानुभूति और वफादारी पसंद होती है और वे उस काम को अच्छे से कर पाते हैं जिसमें उन्हें एक खास तरह का अनुभव मिले। वे एक आर्टिस्ट बन सकते हैं या फिर ग्राहकों के पक्ष में या जरूरतमंद लोगों के पक्ष में बोलने वाले वकील बन सकते हैं।

अंत में आते हैं ISTP, INTP, ESTJ और ENTJ , जो कि थिंकर्स होते हैं। इस तरह के लोग भावनाओं की चिंता ना करते हुए सख्ती से फैसले लेते हैं और मुश्किल फैसले करने में माहिर होते हैं। इस तरह के लोग अच्छे वकील बन सकते हैं।

आपकी पर्सनैलिटी के अलग अलग पहलू अलग अलग उम्र पर उभर कर सामने आते हैं।
हम में से लगभग हर किसी के ऊपर बचपन से ही कैरियर चुनने का प्रेशर डाला जाता है। लेकिन बचपन में हमारी पर्सनैलिटी पूरी तरह से विकसित नहीं होती है और इसलिए हम अपनी पर्सनैलिटी के हिसाब से अपने कैरियर को नहीं चुनते। इस वजह से ज्यादातर लोग अपने लिए गलत कैरियर चुन लेते हैं और सारी उम्र अपने काम से नाखुश रहते हैं।

हमारी खूबियां समय के साथ उभर कर सामने आती हैं और हमें उसके हिसाब से अपने कैरियर को चुनना चाहिए। जिन्दगी के पहले 6 सालों में हमारी पर्सनैलिटी बनना शुरू होती है। इसके बाद 6 से 12 सालों के बीच में हमारा डामिनैंट फंक्शन उभर कर सामने आने लगता है। अगर आप एक फीलर हैं तो आप उस उम्र में ही अपनी वैल्यूस को पहचान कर उस तरह के काम करना शुरू कर देंगे। 

इसके बाद 12 से 25 साल की उम्र के बीच में आपकी पर्सनैलिटी का दूसरा सबसे ताकतवर पहलू उभर कर सामने आता है, जिसे आक्सिलरी फंक्शन कहा जाता है। अगर आप एक फीलर के साथ साथ एक सेंसर भी हैं, तो आप देखेंगे कि आपको जानकारी से प्यार होने लगेगा और आप रीसर्च के काम को खुद करने लगेंगे। इस उम्र तक आपकी पर्सनैलिटी के तीसरे और चौथे पहलू कुछ ज्यादा उभर कर सामने नहीं आए रहते।

इसके बाद 25 से 50 साल की उम्र में आपकी पर्सनैलिटी का तीसरा पहलू उभर कर सबके सामने आता है। इस समय आपको अपने कैरियर को बदलने की चाहत महसूस होगी। अगर आप पिछले 20 साल से एक ही काम कर रहे हैं तो आपको कुछ अलग तरह का काम करने का मन करेगा क्योंकि अब आपकी पर्सनैलिटी का तीसरा पहलू उभर रहा है। 50 साल की उम्र के बाद आपकी पर्सनैलिटी का चौथा पहलू उभर कर सामने आता है। 

आपकी गुजरती उम्र के साथ यह बदलाव आपको देखने को मिलेंगे। आज आपको जिस काम से बहुत ज्यादा प्यार है, शायद उससे कल ना हो। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर बदलाव के साथ आपको अपना कैरियर बदलना हो। कुछ बदलाव से आपके शौक बदल सकते हैं। अब अगर आपके साथ यह कभी होता है, तो आपको इसके पीछे की वजह पता होगी।

अपनी पर्सनैलिटी के हिसाब से अलग अलग नौकरियों के बारे में पता करें और अपने लिए सबसे अच्छी नौकरी चुनें।
आपके लिए सबसे अच्छा काम वो होगा जिसमें आप माहिर हों और जो आपको अच्छा लगता हो। लेकिन इसकी संभावना बहुत कम है कि कोई आपको घर पर आकर आपको वो नौकरी दे दे। इसलिए आपको खुद बाहर निकल कर उस काम को खोजना होगा। 

इसके लिए सबसे पहले आपको अपने चार अक्षर के पर्सनैलिटी टाइप के बारे में पता करना होगा कि आपकी पर्सनैलिटी के वो चार पहलू कौन से हैं। इसे जानने के बाद आपको अपनी खूबियों और खामियों के बारे में पता लगेगा और उसके हिसाब से आप यह पता कर पाएंगे कि आपके लिए कौन सा काम अच्छा होगा और कौन सा नहीं।

इसके बाद आपको यह तय करना होगा कि आपके लिए सबसे जरूरी क्या है। अगर आप ISTJ , यानी इंट्रोवर्ट, सेंसर, थिंकर और जजर हैं, तो आपके लिए वो काम ठीक होगा जिसमें बहुत से सिस्टम और नियम हों, जिसमें आपको अकेले काम करना हो और जिसमें आपको एक ही काम को बार बार करना हो।

इसके लिए आप एक क्लर्क की नौकरी कर सकते हैं या फिर एक बैंक में नौकरी कर सकते हैं। या फिर आप दूसरी तरह की नौकरियों के बारे में खोज सकते हैं जिसमें आपके जैसी खूबी रखने वाले लोगों की जरूरत हो। इस तरह से आप इंटरव्यूवर को यह समझा पाएंगे कि आप उस काम के लिए ठीक क्यों हैं।

अब तक आपके पास कुछ नौकरियों की लिस्ट तैयार हो जानी चाहिए। इसके बाद आपको यह तय करना होगा कि कौन सी नौकरी आपके लिए सबसे अच्छी होगी। उस नौकरी की जरूरतों को समझिए और उनपर काम कीजिए ताकि आप उसे हासिल कर सकें। इससे आप इंटरव्यूवर को समझा पाएंगे कि आप क्यों उस काम के लिए अच्छे हैं और किस तरह से आपकी कमजोरियां काम के बीच में नहीं आएंगी। 

अंत में उन लोगों से बात कीजिए जो कि उस काम को कर रहे हैं। इससे आपको यह पता लगेगा कि आपका काम आपके लिए कितना अच्छा है। क्या वो सिर्फ ऊपर से देखने में अच्छा लग रहा है, या फिर अंदर से भी अच्छा है?

यह जरूरी नहीं है कि आप सारी उम्र सिर्फ एक ही काम करते रहें
आज के वक्त में महंगाई बढ़ रही है और साथ ही लोगों के मरने की उम्र भी बढ़ रही है जिससे लोगों को रिटायरमेंट की उम्र के बाद भी काम करने की जरूरत पड़ रही है। लेकिन अगर आप अपने काम से खुश नहीं हैं तो कैरियर बदलने में ना तो कोई बुराई है और ना ही उसके लिए अभी देर हुई है।

जब आप बूढ़े हो जाने पर अपना कैरियर बदलने हैं तो इसे एन्कोर कैरियर कहते हैं। इस वक्त लोग अपने डामिनैंट फंक्शन से वाकिफ होते हैं और अपने कैरियर को बदल कर एक सही कैरियर चुनना उनके लिए इस समय सबसे फायदेमंद हो सकता है।

यह जरूरी नहीं है कि आप अपने कैरियर को कभी ना बदलें। आप किसी भी उम्र में अपना कैरियर बदलकर वो काम कर सकते हैं जिसको लिए आप बने हैं। अगर आपको लगता है कि आप एक डामिनैंट थिंकर हैं, लेकिन आप एक इंश्योरेंस एजेंट का काम कर रहे हैं, तो जाहिर सी बात है आपको इसमें मजा नहीं आएगा। आपको अपना कैरियर बदलकर एक वकील बनने के बारे में सोचना चाहिए।

अगर आपको लग रहा है कि आप अपने काम से खुश नहीं हैं, तो आपको अपनी पर्सनैलिटी पर ध्यान देना चाहिए और उसके हिसाब से एक काम खोजना चाहिए।

कुल मिलाकर
अलग अलग लोगों की अलग अलग पर्सनैलिटी होती है और जब एक व्यक्ति अपनी पर्सनैलिटी के हिसाब से काम करता है तो वो खुश रहता है। अपनी मनपसंद नौकरी पाने के लिए सबसे पहले अपनी पर्सनैलिटी को पहचानिए और फिर उससे संबंधित कुछ नौकरियों की लिस्ट बनाइए। फिर यह चुनिए कि आपके लिए उसमें से सबसे अच्छी नौकरी कौन सी है।

 

अपने सीखने के आप्शन पर ध्यान दीजिए।

अपनी पर्सनैलिटी को जानने के बाद अपने मनपसंद काम को पाने के लिए आपको ट्रेनिंग की जरूरत होगी ताकि आप उसके लिए खुद को तैयार कर सकें। इंटरनेट की मदद से आज यह बहुत आसान हो गया है। बहुत सी वेबसाइट्स हैं जो अलग अलग तरह के कोर्स देती हैं। आप वहां जाकर ट्रेनिंग ले सकते हैं।


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