Bill Perkins
Getting All You Can from Your Money and Your Life
दो लफ्ज़ों में
साल 2020 में रिलीज़ हुई किताब “Die with Zero” आपको पैसों की सेविंग के बारे में नया नज़रिया देगी. इस किताब में खर्च ज्यादा करना और सेव कम करने के फायदे बताए गए हैं. जी हाँ, आप सही सुन रहे हैं. “खर्च ज्यादा और सेव कम” के फायदे. इस किताब के चैप्टर्स रिटायरमेंट के आस-पास फैले मिथ को तोड़ने का काम करते हैं. और आपको असली तस्वीर से रूबरू करवाते हैं.
ये किताब किसके लिए है
- ऐसे लोग जिन्हें काम करना बहुत पसंद है
- सभी फील्ड के स्टूडेंट्स
- यंग प्रोफेशनल्स
लेखक के बारे में
आपको बता दें कि इस किताब का लेखन ‘Bill Perkins’ ने किया है. ये प्रसिद्ध फंड मैनेजर और फिल्म प्रोड्यूसर भी हैं.
पैसा ज्यादा से ज्यादा कमाया जा सकता है लेकिन खोया हुआ समय वापस नहीं आता
सोसाइटी में हैप्पी रिटायरमेंट का कांसेप्ट काफी चलता है. इस हिसाब से कई बार आपसे कहा गया होगा कि अच्छे रिटायरमेंट के लिए हर एक पैसा बचाने की कोशिश करनी चाहिए. इस तरह की बातों कई ग्यानी लोगों ने आपको लेक्चर भी दिया होगा.
आपको कैसा लगेगा? अगर कोई कहे कि वो मत करना जो बाकी सब कर रहे हैं. मतलब ज्ञानी लोगों की बातों को एक कान से सुनो और दूसरे कान से निकाल दीजिए.
इन चैप्टर्स से आपको पता चलेगा कि पैसे और बचत के बारे में अभी तक आपको कुछ भी सच नहीं बताया गया है. इसी के साथ आपको ये पता चलेगा कि अपने समय को आप कैसे बचा सकते हैं और पैसे को सही ढ़ंग से खर्च करके, कैसे आप खुशियों को अपने पास बुला सकते हैं? इस समरी में आप यह भी जानेंगे कि क्या ड्रीम्स का पीछा करना सही है? सक्सेस और उम्र के बीच का रिश्ता,और कैसे अपने एक्सपीरियंस को इन्वेस्टमेंट मे बदलें?
तो चलिए शुरू करते हैं!
लेखक यहाँ जॉन की कहानी शेयर करते हैं. जॉन केवल 35 साल का था. जब डॉक्टर ने उसे बताया कि उसे टर्मिनल कैंसर है. और उसके पास अब ज्यादा समय नहीं बचा है. इस बुरी खबर से जॉन और उसका परिवार बुरी तरह से टूट गया. लेकिन उसकी पत्नी एरिन ने हिम्मत नहीं हारी. और अपनी जॉब से इस्तीफ़ा दे दिया.
ऐसा उसने केवल जॉन के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने के लिए किया. उसका मानना था कि जितना भी समय जॉन के पास है. वो पूरा समय उसके साथ बिताना चाहती है. और ज्यादा से ज्यादा अच्छी यादें इकट्ठा करना चाहती है.
जॉन की मौत के बाद एरिन के मन में ये सुकून था कि उसने जॉन के साथ कुछ कीमती पल बिताए हैं.
आपको ये कहानी बड़ी साधारण सी लग सकती है. लेकिन हमें ये कहानी एक सच से रूबरू करवाती है कि इस धरती में हम सब के पास सीमित समय है. इसलिए हमें अपने समय को सोच समझकर खर्च करना चाहिए. लेकिन जब हमें एहसास होता है कि हमारे पास रिसोर्स कम हैं. तो हमारा ध्यान समय के महत्त्व से कहीं दूर हट जाता है. लेखक इसी अप्रोच को वेस्टेड लाइफ कहते हैं.
इस पूरी बात का सार यही है कि हम पैसे तो बहुत कमा सकते हैं. लेकिन खर्च किया हुआ समय कभी वापस नहीं ला सकते.
जब लोग समय को पर्याप्त समझ लेते हैं और उन्हें लगने लगता है कि बहुत समय पड़ा है. तब उन्हें संतुष्टि मिलनी बंद हो जाती है. आज कल के दौर में 30 साल के लड़के/लड़कियाँ रिटायरमेंट की प्लानिंग करने लगते हैं. वो अभी घूमना और एक्सपीरियंस करना बंद कर देते हैं. वो सोचते हैं कि हम रिटायरमेंट के बाद ये करेंगे, वो करेंगे. लेकिन जब रिटायरमेंट का समय आता है तो लोग बीमार पड़ने लगते हैं. उनके मन से घूमने और ज़िन्दगी का मज़ा लेने का विचार ही खत्म सा हो जाता है.
तब उनके पास पैसा तो रहता है. लेकिन ज़िन्दगी को खुलकर जीने की दिलेरी और हेल्थ खत्म हो जाती है. इसलिए कहा भी गया है कि “वेल्थ इज नथिंग विथ आउट हेल्थ”. आपकी उम्र 90 साल है. और आपके पास खूब पैसा और समय है. लेकिन क्या आप तब पहाड़ चढ़ने का आनंद ले पाएंगे?
इसलिए अगर आप आज 30 साल के हैं. तो ये समय आपकी ज़िन्दगी का स्वर्णिम युग है. आज ही ज़िन्दगी का आनंद लेना शुरू कर दीजिए. देर ना करिए. अगर आपका करियर सेट है. तो ज़िन्दगी को आनंद से भर दीजिए.
भले ही आपको रोज़ पैसे बचाने का ज्ञान मिलता हो. लेकिन अपने दिल की आवाज़ को सुनना बंद ना करें.
अगले चैप्टर में हम समझेंगे कि कैसे आप इन्वेस्टमेंट के साथ ज़िन्दगी का आनंद भी उठा सकते हैं?
आपके अनुभव आपको यादों के रूप में बहुत अच्छा रिटर्न देंगे, आपको ऐसा रिटर्न और कहीं नहीं मिल सकता
हम लोगों में से अधिकत्तर लोगों को फाइनेंशियल इन्वेस्टमेंट के बारे में पता होता है. हम अपने पैसों को अलग-अलग जगह इन्वेस्ट करते हैं. कई लोग पैसों को स्टॉक्स, शेयर्स या प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट करते हैं. इसके बदले कुछ समय बाद उनको अच्छे रिटर्न्स भी मिला करते हैं.लेकिन क्या आपको मालुम है कि आप पैसों के अलावा अपने एक्सपीरियंसेस को भी इन्वेस्ट कर सकते हैं?
मान लेते हैं कि आपने एक यूरोप ट्रिप प्लान की, इसके बाद यूरोप घूमने में आपके 10 हज़ार डॉलर खर्च हुए. इस ट्रेवल के दौरान, आपने कुछ नए दोस्त बनाए. नई जगहों को एक्सप्लोर किया, नई जानकारियां इकट्ठा कीं, आपको और भी कई अनमोल यादें सजोने के मौके मिले. ट्रिप से लौटने के बाद आपको खुद के अंदर कई बदलाव भी महसूस होने लगे. तो क्या आप इस सफर को एक इन्वेस्टमेंट के तौर पर देखते हैं?
याद रखें, आपको ट्रिप में खर्च हुए 10 हज़ार डॉलर वापस नहीं मिलेंगे. और ना ही ये कोई मार्केट में फैला हुआ कोर्स था. जिसके बदले आपको कोई नौकरी मिल जाएगी. अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि जब ऐसी कोई बात नहीं है. तो फिर ये इन्वेस्टमेंट कैसे हुआ? इसके लिए हमें समझना चाहिए कि अच्छे रिटर्न के लिए सिर्फ पैसा ही एक आप्शन नहीं है. इस पूरी बात का सार यही है कि “आपके अनुभव या फिर यूं कहें कि आपके एक्सपीरियंस आपको यादों के रूप में एक बहुत बड़ा डिवीडेंट देते हैं. जिसे मेमोरी डिवीडेंट कहा जाता है.”
ये डिविडेंट आपके लिए उम्रभर काम करेगा. जब कभी भी आप यूरोपियन ट्रिप की फ़ोटोज़ को देखेंगे. तो आपकी नज़रों के सामने वो खूबसूरत यादें दौड़ने लगेंगी. इससे आपको जो ख़ुशी महसूस होगी. उसे आप शब्दों में बयाँ नहीं कर सकते हैं. ये बात भी सच है कि यादों में उतना मज़ा नहीं आएगा, जितना उस ट्रिप में आया था. लेकिन यादों से आपका मेमोरी बैंक कभी खाली नहीं होना चाहिए. यादें ही इंसान को वो ख़ुशी देकर जाती हैं. जिनकी तलाश वो उम्र भर करता है. अच्छी यादें आपको अमीर बना सकती हैं. लेकिन वो अमीरियत पैसों के रूप में नहीं होगी. लेकिन उन यादों को बनाने के लिए भी पैसों की ज़रूरत पड़ सकती है. इसलिए आपको पैसे कमाते रहना चाहिए. लेकिन उन पैसों को बैंक में रखने बस से ख़ुशी नहीं मिलेगी. आपको पता होना चाहिए कि पैसों को खर्च करके, कैसे आप खुशियों को अपनी मुठ्ठी में कर सकते हैं?
सफर में देरी ना करें, यादों की खुशियों को इकट्ठा करते रहें. इसके लिए आपको यूरोप जाने की भी ज़रूरत नहीं है. अपने घर के आस पास भी घूमकर आया जा सकता है.
अगर, आपका बॉस आपसे फ्री में काम करने को कहे? तो आपका कैसा रिएक्शन होगा. उम्मीद है कि आप मना कर देंगे. लेकिन लाखों अमेरिकंस कई सालों से फ्री में काम कर रहे हैं. और उन्हें पता भी नहीं है. उन्हें कई सालों से जीरो फाइनेंशियल गेन मिल रहा है.
उदाहरण के लिए एलिजाबेथ से मिलिए, उनकी उम्र 45 साल है और उनकी कोई सन्तान नहीं है. उनकी सलाना कमाई $49,000 है. उनका साल भर का खर्चा $33,000 है. बाकी $16,000 को वो सेविंग अकाउंट में रखती हैं. 65 साल में उन्होंने रिटायरमेंट लिया, तब उनके पास टोटल नेट वर्थ $770,000 थी. इसमें उनकी सेविंग और घर की कीमत मिली हुई है. रिटायरमेंट के बाद एलिज़ाबेथ का $32,000 हर साल खर्च होता था. और 85 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया.
इस कहानी का सार ये था कि “Die with zero or work for free.”
मतलब एलीजाबेथ की मौत के बाद, उनके बैंक अकाउंट में $130,000 डॉलर बचे हुए थे. जिसका उपयोग उन्होंने जीते जी नहीं किया. वो जिस तनख्वाह में काम कर रही थीं. उस हिसाब से $130,000 डॉलर मतलब 6 हज़ार घंटो की मेहनत, इतनी मेहनत उनके किसी काम में नहीं आई. अब एलिजाबेथ इस दुनिया में नहीं हैं. मतलब उन्होंने 2.5 साल फ्री में काम किया. अपनी मेहनत की कमाई का उपयोग वो कभी नहीं कर पाएंगी. अब सवाल ये उठता है कि क्या एलिजाबेथ ज़िन्दगी को अलग नज़रिए से जी सकती थीं? क्या वो कुछ और कर सकती थीं? हाँ, वो पैसों को खर्च करने के लिए अलग अप्रोच अपना सकती थीं. उस अप्रोच को Life-Cycle Hypothesis or LCH के नाम से जाना जाता है.
उस हिसाब से आपको ज़िन्दगी में अपनी कमाई के हिसाब से खर्च करते रहना चाहिए. जैसे-जैसे आपकी कमाई बढे, वैसे-वैसे आपको अपने खर्चे बढ़ाने चाहिए. आपको हिसाब रखना चाहिए कि जब आपकी मौत हो. तो आपके सेविंग अकाउंट में ज्यादा पैसे नहीं बचने चाहिए. इसका मतलब ये नहीं है कि आप कर्जे में ज़िन्दगी को जियें.
ये भी सच है कि कोई नहीं बता सकता है कि वो कितना जियेगा? इसलिए ये थ्योरी कहती है कि आपको अपनी ज़िन्दगी को लेकर अंदाज़ा लगाते रहना चाहिए. एलीज़ाबेथ अपने पैसों को खर्च करके, ऐश का जीवन बिता सकती थीं. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और उनके पैसे सिर्फ और सिर्फ अकाउंट में पड़े हुए हैं. इस हिसाब से 2.5 साल उन्होंने फ्री में काम किया, इन सालों में वो कई एक्सपीरियंस गेन कर सकती थीं. लेकिन आखिर में ये सब नज़रिए का खेल है. ये आपके ऊपर है कि आप अपनी ज़िन्दगी को किस नज़रिए से देखते हैं? लेकिन कोशिश करिएगा कि वो नज़रिया आपका खुद का हो. किसी मोटिवेशनल गुरु की दूकान में मत पहुँच जाइएगा.
“Dying with zero” का ये मतलब नहीं है कि अपने बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करिए
“Dying with zero” वाली थ्योरी सुनने में बहुत अच्छी लगती है. लेकिन क्या हो अगर आपके बच्चे भी हों? क्या तब भी आप इस थ्योरी को फॉलो कर पाएंगे. अधिकत्तर लोग अपने बच्चों के लिए खूब सारी विरासत छोड़कर जाना चाहते हैं. अपने बच्चों की वजह से लोग खुद के ऊपर पैसे नहीं खर्च करना चाहते. कई लोग खुद के ऊपर पैसे खर्च करने को स्वार्थी होना मानते हैं. इसको ढ़ंग से मैनेज करने के लिए आपको खुद से सवाल करना होगा कि आप अपनी वेल्थ के पैसों में खुद के लिए कितना रखना चाहते हैं? और बच्चों को कितना देना चाहते हैं.
मान लेते हैं कि आपकी एक बच्ची है. और आप अपनी बच्ची को 50 हज़ार डॉलर देकर जाना चाहते हैं. जब इतना आपको पता चल गया है. तो आपको मान लेना है कि आपकी कमाई में से इतना पैसा कभी आपका था ही नहीं. जब आप ऐसा सोच लेंगे तो पैसों का सफर आपके लिए आसान बन जाएगा. एक बात और, आपकी कोशिश ये होनी चाहिए कि जीते जी आप इतना पैसा अपनी बच्ची को दे दें. कभी भी ये मत सोचियेगा कि मेरे जाने के बाद ये पैसा उसको मिल जाएगा. क्योंकि मान लेते हैं कि अभी बच्ची की उम्र 30 साल है. अगर आप अभी उसका पैसा उसे दे देंगे. तो वो उन पैसों का सही इस्तेमाल कर लेगी.
इकॉनोमिक रिसर्च बताती है कि ज्यादातर अमेरिकन्स विरासत का पैसा तब पाते हैं. जब उनकी उम्र 60 साल से ज्यादा हो जाती है. अब आप खुद सोचिए कि 60 साल से ज्यादा उम्र का इंसान उन पैसों का क्या करता होगा? वो उन पैसों को अपने बच्चों के लिए जमा कर देता होगा. मतलब पैसों को बैंक में ही पड़े रहना है.
इसलिए पैसों के सही इस्तेमाल को सीखना भी बहुत ज़रूरी है. इसको सीखे बिना हम ज़िन्दगी को पूरी तरह एन्जॉय नहीं कर सकते हैं.
हम एक ही बार जीते हैं और एक ही बार मरते हैं. ये सुनने में काफी ज्यादा फ़िल्मी लग सकता है. लेकिन ये सच भी है. इसी के साथ एक सच ये भी है कि हम भले ही शारीरिक तौर पर एक ही बार मरते होंगे. लेकिन पूरी ज़िन्दगी की बात करें तो हम मानसिक तौर पर कई बार मौत जैसा अनुभव करते हैं. यही ज़िन्दगी का संघर्ष भी है और सच्चाई भी.
अब आप ये भी सोच सकते हैं कि इस बात का आखिर क्या मतलब है? तो इस बारे में लेखक बताते हुए कहते हैं कि “जब उनकी बेटी छोटी थी, तो उसे उनके साथ फिल्में देखना बहुत पसंद था. दोनों एक साथ बैठकर कई फ़िल्में देखा करते थे. लेकिन दोनों की एक फिल्म पसंदीदा थी. लेकिन फिर एक दिन, उनकी बेटी ने उनसे कहा कि उसे अब वह फिल्म पसंद नहीं है. और ठीक इसी घटना से, लेखक का जीवन एक छोटे लेकिन बेहद महत्वपूर्ण तरीके से बदल गया.”
अब वो उस छोटी सी बच्ची के पिता नहीं थे. जो अपना सारा समय अपने पिता के साथ बिताना चाहती थी. अब वो उस बड़ी होती लड़की के पिता बन गए थे. जो इंडिपेंडेंट होना चाहती है. जिसकी अपनी कुछ ख्वाईशें और पसंद हैं. जो अपने तरीके से ज़िन्दगी जीना चाहती है.
इस कहानी का सार यही है कि “बदलाव को नहीं बदला जा सकता है. इसलिए अवसरों का फायदा उठाना सीखिए.
एक तरह से देखें तो उस घटना के बाद से लेखक के अंदर भी बदलाव की शुरुआत हो गई थी. अब उन्हें एहसास हो गया था कि उनकी बेटी बड़ी हो रही है. उनकी जिम्मेदारियां बढ़ गईं हैं. उन्हें अपनी बेटी की तरफ ज्यादा सतर्क हो जाना चाहिए. ठीक ऐसे ही उनके अंदर का एक इंसान मर गया था. जब उनके बेटी का जन्म हुआ था. बेटी के जन्म से पहले वो बहुत गैर ज़िम्मेदार इंसान हुआ करते थे. लेकिन बेटी के जन्म के साथ ही उन्हें एहसास हुआ कि अब उन्हें बदल जाना चाहिए.
अब करते हैं पैसों की बात, यानि आपको लग सकता है कि इस पूरी कहानी का पैसों के मैनेजमेंट से क्या लेना देना है?
आपको पता होना चाहिए कि समय के साथ इन्सान बदलता रहता है. इंसान का पूराना वर्जन खत्म होता रहता है. इसी के साथ उसकी इच्छाएं भी बदलती रहती हैं.
इसलिए आपको अपनी ज़िन्दगी को time-buckets में बाँट लेना चाहिए. हर बकट में 5 से 10 सालों का समय रखने की कोशिश करिए.
मान लीजिए कि आपकी उम्र 30 साल है. अब आप अपनी आगे की ज़िन्दगी को 6 से 7 बकट में बाँट लीजिए.
ज़िन्दगी को बकट लिस्ट में बाँट लीजिए, इसके बाद आपको हिसाब लगाना है कि आने वाले समय में आपकी कितनी ख्वाईशें बची हुई हैं? इसके बाद आपको खुद से सवाल पूछना है कि किस उम्र में आपको बची हुई ख्वाइशों को पूरा करना है?
इन सवालों के जवाब के बाद, अपनी ख्वाइशों को अलग-अलग बकट लिस्ट में डालने का काम करिए.
रिटायरमेंट के लिए फंड इकट्ठा करें लेकिन दिमाग और हिसाब के साथ
अभी तक हम लोगों ने “dying with zero” के फायदों के बारे में चर्चा कर ली है. लेकिन कई लोगों के मन में जीरो को लेकर कई डर भी बने रहते हैं. किसी को अपने अकाउंट में शून्य अच्छा नहीं लगता है. सभी बहुत ज्यादा से ज्यादा पैसा रखना चाहते हैं.
कई लोग ऐसा भी सोचते हैं कि अगर अभी पैसा नहीं कमाया तो कब कमाएंगे? बुढ़ापे के समय पैसा खत्म हो गया तो क्या होगा? ये सब चिंता वाजिब भी हैं. इसलिए ये सवाल उठ सकता है कि रिटायरमेंट के लिए कितना पैसा सही है?
इस सवाल का जवाब हर इंसान के लिए अलग-अलग होगा. इसलिए इसके जवाब के लिए आपको खुद की नेट वर्थ पर नज़र डालनी होगी. आपको अपनी कमाई और खर्चों का हिसाब लगाना होगा. प्रॉपर्टी की कीमत पता करनी होगी.
इस बात का सार यही है कि रिटायरमेंट के लिए सेविंग ज़रूरी है. लेकिन दिमाग और हिसाब के साथ. बिना दिमाग लगाये, हमें ज़िन्दगी में कोई काम नहीं करना चाहिए.
ज़िन्दगी का आनंद लेने के लिए आपको पैसे कमाने होंगे. इसी के साथ उस कमाई की रफ्तार भी ठीक ठाक होनी चाहिए.
कमाई को लेकर लेखक कहते हैं कि ““अगर आप जीने के लिए पैसे कमा रहे हैं तो फिर आप अपने समय की ट्रेडिंग कर रहे हैं. जिससे आपको पैसे मिलते हैं और उन पैसों से आपअपना खर्चा चलाते हैं. लेकिन भविष्य में आप इस ट्रेडिंग से बर्बाद होने वाले हैं. क्योंकि आप पैसे तो कमा लेंगे लेकिन आप कभी भी खुद के लिए समय नहीं खरीद सकते हैं. जब भी आप काम करना बंद कर देंगे, तो आपके पास पैसे आने भी बंद हो जाएंगे. इसलिए खुद के लिए एक ऐसी मनी मशीन तैयार करें, जो आपके लिए सोते समय भी पैसा कमाती रहे.”
क्या ऐसा हो सकता है?
हाँ, ऐसा हो सकता है और इसी को Compounding money कहते हैं. ये तरीका आपके लिए पैसे बना सकता है और इतना बना सकता है कि आपने कभी सोचा भी नहीं होगा. इस तकनीक में आपके पैसे का जो INTEREST यानि ब्याज़ होता है. वही आपके लिए लगातार पैसे बनाता रहता है. उदाहरण के लिए अगर आपने 100 DOLLAR अलग रख दिए हैं. तो सालभर में INTEREST मिलाकर वो 110 डॉलर हो जाएगा. फिर अगले साल आपको उस 110$ में INTEREST मिलेगा. इसी तरह वो पैसा आपके लिए पैसे बनाता रहेगा और आपको उसे छूने की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी
अगर आप ऐसा सोच रहे हैं कि आप अपनी SALARY से कुछ नहीं बचा पाते हैं. तो SAVE क्या करें? तो फिर भी आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. ज्यादातर लोगों का ऐसा ही सोचना है. लेकिन अगर आप हर रोज़ 1 चाय के बराबर पैसा भी INVEST करेंगे, तो उससे भी आपका FUTURE बदल सकता है. 1924 में 1924 Theodore Johnson ने UPS में काम करने की शुरुआत की थी. उन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी भी $14,000 सलाना से ज्यादा कमाई नहीं की थी. लेकिन उन्होंने अपनी कमाई के 20 PERCENT से UPS के STOCK’S खरीदने की शुरुआत कर दी थी. जिसकी वजह से 90 साल की उम्र में उनके पास $70 millionDOLLAR से ज्यादा पैसे इकट्ठे हो गए थे.
आप जितने बड़े होते जाते हैं, रिस्क के परिणाम उतने ही गंभीर होते जाते हैं
आपने कई बार सुना होगा कि “रिस्क जितना बड़ा होता है, रिवॉर्ड भी उतना ही बड़ा मिलता है.” लेकिन आपको पता होना चाहिए कि ये बात पूरी तरह से सच नहीं है.
रियलिटी कुछ और ही है, इसकी असलियत दुनिया घूमने की तरह है. दुनिया घूमने का मज़ा ज्यादा तभी आएगा, जब आप जवान होंगे. शरीर में जितनी उर्जा, घूमने का उतना ही ज्यादा मज़ा.
ज़िन्दगी में भी जल्दी रिस्क लेना बेहतर होता है. इसके पीछे भी कई कारण हैं.
मान लेते हैं कि आपका सपना मायानगरी में छाना यानि बॉलीवुड स्टार बनने का है. इस सपने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन सभी का ये सपना पूरा नहीं होता है. इस सपने को पूरा करने के लिए मायानगरी मुंबई जाना होगा.
वहां जाने के बाद, बहुत सारे ऑडिशन देने होंगे. अगर किस्मत और मेहनत का मिलाप हुआ. तो हो सकता है कि आपका सपना पूरा हो जाए. लेकिन ज्यादातर लोगों का ये सपना पूरा नहीं हो पाता है. इस सपने के टूटने के बाद एक उदासी का दौर आता है. जिसे झेल पाना भी सबके बस की बात नहीं होती है.
इसलिए इस बात का सार बहुत सिम्पल है. वो ये है कि कम उम्र में रिस्क लेना बेहतर होता है.
अगर आप एक्टिंग करना चाहते हैं और उस सपने के पीछे भागने की शुरुआत 21 साल में कर देते हैं. तब आपके पास उम्र का साथ होगा. भले ही आप फेल हो जाएँ. लेकिन आपके पास दूसरी तरफ जाने का पूरा मौका बचा रहेगा.
21 की उम्र में रिस्क लेने वाले के पास 9-10 सालों का समय रहता है. वो इतने सालों तक अपने पैशन के पीछे भाग सकता है. फिर अगर उसे सफलता ना मिली तो वो दूसरे करियर की ओर भी देख सकता है.
लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है. चीज़ें भी बदलती जाती हैं. मान लेते है कि कोई 35-40 साल में जॉब छोड़कर एक्टिंग में ट्राय करने चला जाए. तो क्या होगा? इस उम्र तक आम तौर पर शादी और बच्चे हो जाते हैं. ऐसे में उसके फेलियर के चांस भी बढ़ेंगे और फेल होने के बाद के परिणाम भी भयंकर होंगे.
इसलिए अगर आप भी लाइफ में रिस्क लेना चाहते हैं. तो जल्दी से जल्दी लें, जल्दी रिस्क लेकर ही आप फायदा उठा सकते हैं.
इस चैप्टर के माध्यम से लेखक यही कहना चाहते हैं कि अगर आपको कुछ भी हासिल करना हो, तो फाइनेंशियल स्टेबल होने का इंतज़ार ना करिए. पहले कोशिश करिए. अगर ऐसा लग रहा हो कि रिस्क लेना ज़रूरी है. तो जल्दी लीजिए. जितना लेट आप करते जाएंगे, आपके सफल होने का चांस भी उतना ही कम होता जाएगा. इसलिए खुद को समय दीजिए और ज़िन्दगी की रेस में कूद जाइए.
ज़िन्दगी में समय सीमित है. इसलिए अपने सपनों का आज पीछा करिए. कल तो कभी आने वाला ही नहीं है.
कुल मिलाकर
दुनिया घूमने और देखने को सपने को बुढ़ापे के लिए ना टालिए. तब आपके पास पैसा तो होगा लेकिन शरीर में ताकत नहीं बचेगी. ज़िन्दगी में ख़ुशी का दूसरा नाम ही एक्सपीरियंस है. इसलिए ज्यादा से ज्यादा अनुभव करते रहिए.
क्या करें?
समय के साथ इन्सान बदलता रहता है. इंसान का पूराना वर्जन खत्म होता रहता है. इसी के साथ उसकी इच्छाएं भी बदलती रहती हैं. इसलिए आपको अपनी ज़िन्दगी को time-buckets में बाँट लेना चाहिए. हर बकट में 5 से 10 सालों का समय रखने की कोशिश करिए.
अपने गोल्डन इयर्स के बारे में फिर से विचार करिए.
हमें ये सोचना सिखाया जाता है कि हमारे सुनहरे साल तब आते हैं जब हम रिटायर होते हैं.शायद 65 साल की उम्र के बाद. हमें बताया गया है कि रिटायरमेंट के बाद ही वो अनमोल पल आते हैं. जब हमारे पास करने के लिए समय और पैसा दोनों होता है, वह सब कुछ जो हम हमेशा चाहते थे. लेकिन ये सब छलावा है. हमें याद रखना चाहिए कि आज से ही हमारा गोल्डन ईयर शुरू हो चुका है. इसलिए अपने पैसों का सही इस्तेमाल करना सीख जाइए.
येबुक एप पर आप सुन रहे थे Die with Zero By Bill Perkins.
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आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे.
अगर आप का कोई सवाल, सुझाव या समस्या हो तो वो भी हमें ईमेल करके ज़रूर बताएं.
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