Didn't See That Coming

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Didn’t See That Coming

Rachel Hollis
मुश्किलों के दौर में भी ज़िन्दगी जीना सीखिए, ख़ुश रहना सीखिए!

दो लफ्ज़ों में 
साल 2020 में “Rachel Hollis” की लिखी हुई किताब “Didn’t See That Coming” एक हैण्डबुक है. जिसमें लाइफ को हैंडल करने की स्ट्रेटज़ीज़ बताई गई हैं. आज के समय लोग अपने अंदर दर्द को छिपाए ज़िन्दगी जीते रहते हैं. इस किताब को पढ़ने या सुनने के बाद आपको पता चलेगा कि दर्द और दुःख के ऊपर लाइफ के कैसे सही ढ़ंग से जिया जा सकता है. 

ये किताब किसके लिए है? 
- सभी फील्ड के स्टूडेंट्स के लिए 
- साइकोलॉजी पढ़ने या समझने वालों के लिए 
- ऐसे लोग जो दुखी रहते हों 
-ऐसा कोई भी जो ट्रामा फेस कर रहा हो 

लेखिका के बारे में 
आपको बता दें कि इस किताब का लेखन “Rachel Hollis” ने किया है. ये पेशे से आंत्रप्रेन्योर, स्पीकर और बेस्ट सेलिंग ऑथर हैं. इन्होंने ब्लॉग्गिंग से करियर की शुरुआत करने के बाद एक बड़े मीडिया घराने की नींव रखी है. इन सबके अलावा इनका एक प्रचलित यूट्यूब चैनल भी है.जो हैं वही रहिए, अथेंटिक रहने के कई फायदे हैं
कई बार ज़िन्दगी में ऐसा समय आ जाता है. जब हमें मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. वो मुश्किलें किसी भी तरह की हो सकती हैं. उसे रियलिटी को ना झेल पाने वाली असलियत भी कहा जाता है. कई लोग उसे ज़िन्दगी की मार भी कहते हैं. 

लेकिन अब सवाल उठता है कि जब ज़िन्दगी की तरफ से झापड़ लग रहे हों, तो क्या करें? क्या कोई तरीका है दोगुनी शक्ति के साथ फाइट बैक करने का? इस किताब के चैप्टर्स में आपको उन्ही तरीकों के बारे में बताया जाएगा. 

ये किताब खुद के ट्रांसफॉर्मेशन की गाइड है. इसे पढ़ना और सुनना मत भूलियेगा. 

इन चैप्टर्स में आपको ये भी सीखने को मिलेगा 

-गिल्ट से कैसे बाहर आ सकते हैं? 

-अपने बुरे समय में क्या ना करें? 

तो चलिए शुरू करते हैं!

जब इंसान मुश्किलों का सामना कर रहा होता है. 
तो उसे लगता है कि वो किसी और प्लानेट में है. उसके शरीर और दिमाग का मैच ही नहीं हो रहा होता. कई बार दिमाग के घोड़े अलग ही रफ्तार में भाग रहे होते हैं. इंसान को समझ में नहीं आता कि आखिर वो करे तो करे क्या? 

मुश्किलें भी अलग-अलग तरह की होती हैं. कई मुश्किलों में आपको तुरंत बदलाव नज़र आने लगता है. वहीं कई मुश्किलों में बदलाव तुरंत नज़र नहीं आता है. उदाहरण के लिए अगर किसी का कोई करीबी खत्म हो जाता है. तो उसे तुरंत पता चल जाता है कि अब से वो नज़र नहीं आएगा. जब किसी की शादी टूट जाती है. तो उसे पता चल जाता है कि अब से अधिकांश वो अकेले ही सोयेगा. लेकिन एहसास होने के बाद भी इस तरह के ट्रॉमा किसी को भी परेशान कर सकते हैं. 

आपको कई बार ज़िन्दगी अकेले छोड़ देती है. उन मुश्किलों का सामना आपको अकेले ही करना पड़ेगा.

चलिए नज़र डालने की कोशिश करते हैं कि मुश्किलें आपकी आइडेंटिटी को कैसे शिफ्ट करती हैं?

तीन तरीकों से मुश्किलें या फिर क्राइसिस आपकी आइडेंटिटी को शिफ्ट करती हैं

पहले तरीके की आइडेंटिटी क्राइसिस ये होती है कि आपको ऐसा लगने लगता है कि आपकी कोई आइडेंटिटी ही नहीं बची है. कई लोगों को ऐसा लगता है कि किसी ने उनसे उनकी पहचान ही छीन ली है. ऐसा कई बार उन लोगों के साथ देखने को मिलता है. जिनका कोई चाहने वाला उन्हें छोड़कर चला जाता है. वो ऐसा सोचने लगते हैं कि उसके बिना मैं क्या करूँगा या करुँगी? उसके बिना मेरी कोई पहचान ही नहीं है. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है, आपकी खुद की एक पहचान है. किसी के चले जाने से आपकी पहचान खत्म नहीं हो सकती है. 

दूसरे तरीके की आइडेंटिटी क्राइसिस तब आती है. जब आप कुछ बनना या अचीव कर चाहते हैं. लेकिन कुछ कारणों से आप वो बन नहीं पाते. तब इंसान के अंदर एक उलझन का जन्म होता है. और उसे खुद की पर्सनालिटी के ऊपर ही शक होने लगता है. 

तीसरे तरह की आइडेंटिटी क्राइसिस तब आती है, जब इंसान की लड़ाई उसके ही विचारों से होने लगती है. 

तीनों ही तरह की दिक्कत में एक चीज़ कॉमन है. वो ये है कि जब हम ना मिलने वाली चीज़ों को पाने की ख्वाइश रख लेते हैं. तो ना-उम्मीदी की वजह से हमें दुःख का सामना करना पड़ता है. 

इसलिए हमेशा हमें खुद के प्रति ईमानदार रहना चाहिए, हमें अपने आपको सही तस्वीर दिखानी चाहिए. यही वजह है कि ऑथर कहते हैं कि जो हैं, वही बनकर रहिए, अथेंटिक रहने का कई फायदे हैं.

गिल्ट के कांसेप्ट को समझने की कोशिश करें और उससे बाहर निकलें
इंसान को अपनी ज़िन्दगी में कई बार ऐसी दिक्कतों का सामना करना पड़ जाता है. जिसकी उसनें कभी कल्पना भी नहीं की रही होती है. जैसे कि किसी की अचानक नौकरी ही चली जाए, या फिर किसी को कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी हो जाए. 

इन सबके लिए कभी भी इंसानी दिमाग तैयार नहीं रहता है. ज़िन्दगी में आने वाली इस तरह की दिक्कतों से इंसान दिमागी और शारीरिक तौर पर टूट जाता है. इस तरह की परेशानियों के लिए आप किसी को दोष भी नहीं दे सकते हैं. 

दुःख की बात है लेकिन सच है कि हम सभी के अंदर काफी खामियां हैं. कई बार हम खुद को बेईमान, झूठा, क्रोधित पाते हैं. कई बार इन बुराइयों से हम खुद के लिए और दूसरों के दिक्कतों को तैयार करते हैं. हम सभी के अंदर वो क्षमता होती है जिससे हम खुद को और दूसरों को ट्रॉमा दे सकते हैं. इसलिए हमें इस बुरी सच्चाई को एक्सेप्ट करना चाहिए. और ये सोचना चाहिए कि हम खुद के ट्रॉमा से बाहर कैसे आएं? साथ ही साथ कभी भी दूसरों के लिए मुश्किलें नहीं पैदा करनी चाहिए. 

‘गिल्ट’ और ‘शेम’ के बारे में भी आपको कुछ चीज़ें पता होनी चाहिए. ये इंडीकेटर्स होते हैं, जो कि आपको बताते हैं कि आपने किसी के साथ कुछ गलत किया है. अगर आपको गिल्ट और शेम की पहचान हो गई तो आपने खुद को ठीक करने का पहला कदम उठा लिया है. 

दूसरा कदम ये है कि आपको खुद के गिल्ट से बाहर निकलना है. ये मैटर ही नहीं करता है कि वो गिल्ट कितना छोटा या बड़ा है? आपको बस किसी भी तरह उस गिल्ट से बाहर निकलना है. कई लोग खुद को ही सज़ा देने लगते हैं. लेकिन ऐसा करने से किसी की भी समस्या का समाधान नहीं निकल सकता है. बल्कि इसका उल्टा ज़रूर हो जाता है. खुद को सज़ा देने से आप उस गिल्ट में ज्यादा समय तक रहते हैं. 

गिल्ट से बाहर निकलने के लिए खुद से नफरत ना करें, बल्कि आप खुद से प्यार करने लगें. ऐसा करने से आपको बहुत सारे फायदे होंगे. 

अपने गिल्ट को भुलाकर अपने आप से प्यार करना कोई आसान काम नहीं है. इस काम को और मुश्किल आपके आस-पास के लोग बना देंगें. इसलिए खुद को मज़बूत बनाने की कोशिश करते रहें. 

किसी भी मुश्किल दौर से बाहर आने के लिए ज़रूरी है कि नेगेटिव इमोशन को हील किया जाए. इसलिए हमेशा सतर्क रहें कि कोई दूसरा आपके गिल्ट को आपके खिलाफ उपयोग ना कर पाए. 

अधिकत्तर, किसी भी प्रेम सम्बन्ध में जब धोखा मिलता है. तो एक पार्टनर पूरी तरह से टूट जाता है. जो टूट जाता है, वो सोचता है कि सामने वाले को गिल्ट के रूप में सजा मिलनी चाहिए. लेकिन कभी भी किसी के लिए गिल्ट सही नहीं हो सकता है. अगर कोई किसी को गिल्ट देगा तो वो सामने वाले के साथ-साथ खुद की प्रोग्रेस भी खत्म कर लेता है. इसलिए जो रिश्ता टॉक्सिक बन जाए, उससे बाहर ही निकल जाना चाहिए. कभी भी खुद के मन में दूसरे के प्रति गलत भावना ना रखें. 

बस नज़रिया बदलने से बहुत कुछ बदल सकता है। 

नज़रिए के खेल को समझने के लिए हमें इटली चलना होगा. तो फिर देर नहीं करते हैं और इटली के पीसा शहर चलते हैं. वहां पर विश्व प्रसिद्ध लीनिंग टावर है. अगर आप इस टावर को पोस्टकार्ड में देखेंगे तो ये काफी विशाल नज़र आएगा. लेकिन सामने से ये मध्यम साइज़ का है. 

फिर भी यह मध्यम आकार का टॉवर अधिकांश गगनचुंबी इमारतों की तुलना में पर्यटकों के बीच अधिक लोकप्रिय है. ऐसा सिर्फ फ़ोटोज़ की वजह से है. 

अब आप सोच रहे होंगे कि कौन सी फ़ोटोज़ की बात हो रही है? 

इस टावर में लोग ऐसे एंगल से फोटो खिचवाते हैं कि देखने वाले को ऐसा लगता है. जैसे वो टावर को पकड़कर खड़े हों. देखकर ऐसा भी लगता है जैसे इंसान की साइज़ टावर के बराबर की हो. 

पीसा शहर में स्थित ये टावर बताता है कि नज़रिए को बदलना कितना आसान है? और नज़रिए के बदल जाने से कितना बड़ा बदलाव आ जाता है? 

इसलिए लेखक कहते हैं कि अगर क्राइसिस के समय भी इंसान अपने नज़रिए को बदल दे, तो काफी बदलाव आ सकते हैं. 

किसी संकट पर आप जिस तरह से प्रतिक्रिया देते हैं, वह काफी हद तक आपके नज़रिए पर निर्भर करता है. उदाहरण के लिए एक नज़रिए से तलाक खुद को घर में बंद करने और समाज से अलग होने का बहाना हो सकता है. वहीं दूसरे नज़रिए से भी इसमें कष्ट है. लेकिन ये ज़िन्दगी को नए सिरे से शुरू करने का अवसर भी बन सकता है. 

अब ये आपके ऊपर है कि आप किसी भी क्राइसिस को किस नज़रिए से देखना चाहते हैं. 

अब सवाल ये उठता है कि आप अपने नज़रिए को बेहतर कैसे करेंगे? 

सबसे पहले अपने आपको एहसास दिलाएं कि आपने पहले भी अपने नज़रिए को कई बार बदला है. बचपन में ऐसी कई चीज़ें आप मानते होंगे. जो अभी मानना मुमकिन ही नहीं है. क्योंकि अब आपका माइंड सेट बदल गया है. 

दूसरा खुद को बताएं कि अगर पिछला एक्सपीरियंस अच्छा नहीं था. तो इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि आने वाला एक्सपीरियंस भी अच्छा नहीं होगा. इससे आपके नज़रिए में फर्क आएगा. 

तीसरा, जब भी कठिन समय आए, तो सबसे पहले खुद के नज़रिए को चेक करें. अपने आप से कई सवाल पूछें. किसी भी सिचुएशन को दूसरे तरीके से देखने की कोशिश करें. याद रखें कि हमें हर पहलू से खुद को बेहतर करने की कोशिश करनी चाहिए. इसी के साथ खुद के नज़रिए के ऊपर विश्वास बनाकर रखें. नज़रिया बदलने से इंसान का समय बदल सकता है.

ग्रोथ माइंड सेट का साथ पकड़ने की कोशिश करें, ऐसा करने से मुश्किलें भाग जाएंगी
किसी भी क्राइसिस या मुश्किल का सामना करने के कई तरीके हैं. कुछ लोग मुश्किलों में बुरी तरह से टूट जाते हैं और डिप्रेशन में चले जाते हैं. वहीं कुछ लोगों को दर्द तो होता है. लेकिन वो उस दर्द का डटकर सामना करते हैं. 

इंसान के टैलेंट की परीक्षा क्राइसिस के समय ही होती है. यही वजह है कि एक ही तरह के ट्रॉमा का सामना अलग-अलग लोग अलग-अलग तरीके से करते हैं. इसलिए आपको खुद से वादा करना होगा कि आप किसी भी मुश्किल से बाहर ज्यादा मज़बूत होकर निकलेंगे. 

ऐसा तभी हो सकता है, जब आपके पास ग्रोथ माइंड सेट होगा. 

अब आपके मन में सवाल आ सकता है कि ग्रोथ माइंड सेट क्या होता है? इससे पहले हमें जानना चाहिए कि फिक्स्ड माइंड सेट क्या होता है. जब इन्सान सोचने लगता है कि कैपाबिलिटी, स्किल और टैलेंट सब जन्म से मिलता है. और इन्हें बदला नहीं जा सकता, तो उस तरह की सोच को फिक्स्ड माइंड सेट कहते हैं. 

वहीं ग्रोथ माइंड सेट वाला इंसान, हमेशा कुछ नया सीखने को तैयार रहता है. उसे खुद के ऊपर भरोसा होता है कि वो अपनी मेहनत से कुछ भी नया सीख सकता है. उसे पता होता है कि अगर मेहनत की जाए तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है. 

लेकिन ये बात भी सच है कि ट्रॉमा को हैंडल करना ग्रोथ माइंड सेट वालों के लिए भी आसान नहीं होता है. लेकिन उन्हें भरोसा होता है कि वो कड़ी मेहनत से किसी भी मुश्किल से बाहर निकल सकते हैं. 

अगर आपके पास ग्रोथ माइंड सेट रहेगा तो आप किसी भी सिचुएशन का सामना बड़ी आसानी से कर पाएंगे. इसलिए हमेशा खुद को ग्रोथ माइंड सेट अडॉप्ट करने के लिए तैयार करें. 

मुश्किलों में हार नहीं मानना है, कठिनाइयों से लड़कर ही विजेता बना जा सकता है। 

कई बार क्राइसिस इन्सान को अंदर से झकझोड़ कर रख देता है. वो क्राइसिस किसी भी तरह का हो सकता है. उस क्राइसिस का ट्रॉमा बहुत खतरनाक होता है. 

उस ट्रॉमा के आफ्टर इफेक्ट्स अलग-अलग तरह के होते हैं. कई लोग खुद को दुनिया से काट लेते हैं. कई लोग फोन ऑफ कर देते हैं और अपने चाहने वालों को जवाब देना बंद कर देते हैं. ट्रॉमा के आफ्टर इफेक्ट्स अलग-अलग होते हैं. और उससे बाहर निकलने में काफी समय लग सकता है. 

अगर आपको अपने पास्ट या ट्रॉमा से बाहर आना है. तो फिर आज या बाद में लेकिन आपको ओवरथिंकिंग से बाहर आना होगा. और अपनी लाइफ को नए नज़रिए से देखने की शुरुआत करनी होगी. 

जब भी किसी की ज़िन्दगी में बड़ी मुश्किल आती है तो अपनी लाइफ को खत्म मान लेना आसान होता है. भले ही आपकी ज़िन्दगी में रत्ती भर भी फर्क ना पड़ा हो. लेकिन मुश्किल दौर में ही आपको ज़िन्दगी को नए नज़रिए से देखने की शुरुआत कर देनी चाहिए. 

ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च भी कहती है कि “इंसान अपने दिमाग को अपने हिसाब से तैयार कर सकता है. वो अपने दिमाग से हर चीज़ हासिल कर सकता है. कोई भी इंसान तभी तक फेल या दुखी हो सकता है, जब तक उसे दिमाग के पॉवरके बारे में ना पता हो.”

लंदन यूनिवर्सिटीके सीनियर प्रोफेसर  TOM  STAN FORD  ने अपने जर्नलमें कहा है कि “हमारा दिमागभी आइस बर्ग यानि बर्फ़ के पहाड़ की तरह होता है. जो सतह से ऊपर जितना दिखाई देता है, उससे कहीं ज़्यादा सतह के नीचे होता है, जो हमें नहीं दिखता. लेकिन उसे देखने और महसूस करने की कोशिश में हम अपने दिमागको बेहतर तरीके से समझ सकते हैं.”

इसलिए हमें मुश्किल समय में भी अपने दिमाग को समझने की कोशिश करते रहना चाहिए. ऐसा करने से हमें पता चलेगा कि हमें ज़िन्दगी में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए. और हमेशा काम करते रहना चाहिए. 

साइकोलॉजिस्ट का कहना है कि जब एक बार आपके नेगेटिव विचार दिमाग तक पहुँच जाते हैं, तो दिमाग की नसों में उनकी छाप बनने लगती है, इसके बाद आप वैसा ही करते हैं, जैसा वो विचार आपसे करवाना चाहते हैं.  

इसलिए ये महत्वपूर्ण है कि आप ऐसे विचार चुनें, जो आपकी आत्मा को खुशी से भरें.

इसके लिए आप खुद की आत्मा को जानने की कोशिश भी शुरू कर सकते हैं. जितने अच्छे से आप खुद को जानेंगे उतने ही अच्छे से आप अपने दिमाग को जानने लगेंगे.

कई लोग मुश्किल दौर में इतने निराश हो जाते हैं कि वो खुद को खत्म करना ही बेहतर समझते हैं. लेकिन आपको पता होना चाहिए कि आपकी ज़िन्दगी किसी भी सिचुएशन से ज्यादा महत्वपूर्ण है. आपकी लाइफ केवल आपकी नहीं है. बल्कि उससे कई लोगों की ज़िन्दगी जुड़ी हुई है. आपके ऊपर आपके परिवार, दोस्त-यार चाहने वालों की ज़िम्मेदारी है. आप खुद की जान लेकर दूसरों की लाइफ बर्बाद नहीं कर सकते हैं. इसलिए लाइफ में मुश्किलें आती हैं तो उन्हें आने दें, लेकिन कभी भी खुद की ज़िन्दगी को खत्म करने का विचार ना आने दें. 

आप एक योद्धा की तरह हैं और आपको लाइफ भी उतनी ही दिलेरी से जीनी है.

बुरी आदतें केवल आपके दर्द को बढ़ाएंगी, इसलिए इनसे दूरी बनाकर रखें
जब भी आपका वर्किंग डे स्ट्रेसफुल होता है तो आप क्या करते हैं? हो सकता है कि आप लंच में कोई थैरेपी लेते हों, या फिर घर लौटने के बाद एक पैग वाइन का ले लेते हों. 

ईटिंग, शॉपिंग या फिर ग्लास ऑफ़ वाइन आपके लिए स्ट्रेसबस्टर का काम कर सकती है. लेकिन जब ये स्ट्रेस अधिकत्तर रहने लगता है या फिर क्राईसिस बन जाता है. तो फिर ये छोटे-छोटे कम्फर्ट बड़ी टॉक्सिक हैबिट बन जाते हैं. 

जब भी इंसानी दिमाग ट्रॉमा का सामना कर रहा होता है. तो उसकी फैसले लेने की क्षमता बुरी तरह से प्रभावित होती है. रिसर्च बताती हैं कि बड़ी क्राइसिस के समय इंसानी दिमाग हेल्दी डिसीजन नहीं ले पाता है. इसलिए उस दौरान इंसान को बुरी चीज़ों की आदत आसानी से लग जाती है. 

लेखकसलाह देते हैं कि “हमें अपने शरीर का तो ख्याल रखना ही चाहिए लेकिन उससे पहले हमें अपने दिमाग का ख्याल रखना चाहिए, बिना दिमाग के शरीर किसी पत्थर की तरह हो जाता है. इसलिए अगली बार कोई मिले जिसे मेंटल हेल्थकी ज़रूरत हो, तो उसे नज़र अंदाज़ ना करें, उसकी बात सुनने की कोशिश करें, कई बार आपका थोड़ा सा समय, सामने वाले का जीवन बचा सकता है. मेंटल हेल्थऔर इससे जुड़ी बीमारियाँ कोई मज़ाक नहीं हैं.”

हमें पता होना चाहिए कि बुरी आदतों से हमारी मेंटल हेल्थ भी बुरी तरह इफ़ेक्ट होती है. इसलिए हमें अच्छी आदत डालने की कोशिश करनी चाहिए. इस तरह हम बुरी आदतों से पीछा भी छुटा सकते हैं. 

जब इंसान की लाइफ में सब कुछ बढ़िया चल रहा होता है. तो उसके लिए अच्छी आदतें डालना भी आसान होता है. लेकिन क्या क्राइसिस के समय भी अच्छी आदत डाली जा सकती है? करने को तो कुछ भी किया जा सकता है. थोड़ी दिक्कत और परेशानी होगी, लेकिन इंसान इच्छाशक्ति के दम पर कभी भी अच्छी आदतें डाल सकता है. 

अगर कभी आपको भी क्राइसिस का सामना करना पड़े तो कुछ आदतें ज़रूर शामिल करने की कोशिश करिएगा. 

पहली आदत, जब भी समय मिले तो डीप ब्रीदिंग या फिर मेडीटेशन कर लें. इस आदत से आपकी ज़िन्दगी काफी आसान होती जाएगी. इसलिए जितना भी और कहीं भी समय मिले तो ध्यान करिए. ध्यान सेहत और दिमाग के लिए बहुत ज़रूरी है. इससे आपकी लाइफ आसान और बेहतर होती जाएगी. 

दूसरी आदत, रोज़ एक्सरसाइज करने की कोशिश करिए, एक्सरसाइज की आदत आपको दिमागी तौर पर मज़बूत बनाएगी. इस आदत को अपनाने के बाद आपको पता भी नहीं चलेगा कि कब आप दिमागी और शारीरिक तौर पर मज़बूत हो गए. एक्सरसाइज का मतलब केवल जिम में मेहनत करने से नहीं है. आप मैदान में टहलते हुए भी एक्सरसाइज कर सकते हैं. इसलिए खुद के एक्सरसाइज का चुनाव खुद ही करें. 

अपने दिमाग को शांत रखें और खुश रहें. 

क्राइसिस के समय भी अपनी ख़ुशी की तलाश करते रहिए। 

लाइफ में आगे बढ़ने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए. अगर आप मूव ऑन करना चाहते हैं तो आपको क्राइसिस से लड़ते आना चाहिए. ये आपके ऊपर है कि आप क्राइसिस के समय ज़िन्दगी को कैसे देखते हैं? 

मुश्किल दौर में ज़िन्दगी को देखने के दो तरीके हो सकते हैं. एक तो ये कि आप जो बुरा बीत गया या चल रहा उसी के बारे में सोचते रहें और दूसरा तरीका ये कि ज़िन्दगी में हमेशा हंसने के बहाने ढूंढते रहें. 

इसको आप इस कहानी से भी समझ सकते हैं. 20वीं शताब्दी की शुरुआत में दुनिया के कई कोनों में जुर्म की सज़ा फांसी ही हुआ करतो थी. उस समय ऐसा देखा जाता था कि कई मुज़रिम फांसी से कई महीनों पहले से ही मुर्दा की तरह शांत और उदास रहने लगते थे. वहीं कई मुज़रिम फांसी के दिन तक हंसी मजाक करते रहते. उन्हें फर्क ही नहीं पड़ता था कि कुछ समय बाद वो इस दुनिया में नहीं रहेंगे. इसी आदत को आज तक लोग “gallows humor” के रूप में याद करते हैं. 

ये सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है. लेकिन इंसान मुश्किल से मुश्किल दौर में भी हंसने के लिए समय निकाल सकता है. ख़ुशी आपके अंदर ही है. उसे वहीँ तलाश करने की कोशिश करें.

अपने भविष्य को री-इमैजिन करने की कोशिश करिए।
ज़िन्दगी में मुश्किल दौर के कई बुरे प्रभाव देखने को मिलते हैं. उसमें से सबसे बुरा ये होता है कि आपके भविष्य का सपना काफी हद तक टूट जाता है. 

इंसान को ऐसा लगने लगता है कि अब उसका सोचा हुआ फ्यूचर का सपना पूरा नहीं हो सकता है. इसकी वजह से वो और ज्यादा डीमोटिवेट होता जाता है. 

इसलिए कहा जाता है कि क्राइसिस आपके आज के साथ बस खिलवाड़ नहीं करता है. बल्कि वो आपका भविष्य भी खराब कर देता है. जब इंसान का भविष्य भी खराब दिखने लगता है. तो वो और ज्यादा परेशान हो जाता है. 

इसलिए इस दिक्कत को आप दिमाग की क्रिएटिविटी से दूर कर सकते हैं. इसके लिए आपको बस अपने दिमाग की इमैजिनेशन पॉवर को बढ़ाना होगा. 

अब सवाल ये उठता है कि मुश्किल में दौर में हम अपने भविष्य को कैसे बेहतर कर सकते हैं?   

खुद को ताकतवर बनाने की कोशिश करते रहिये, याद रखिए कि भविष्य के बारे में किसी को भी कुछ नहीं मालुम है. इसलिए उसके बार में ज्यादा सोचने से कुछ नहीं होगा. जो चीज़ें आपके हांथों में हैं, उनके ऊपर मेहनत करते रहिए. 

याद रखिए कि आपको खुद के भविष्य को बेहतर करने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी होगी. आप बस रोज़ 1 प्रतीशत भी अपने भविष्य के लिए काम करेंगे तो आपका फ्यूचर बेहतरीन हो जाएगा. 

अपने फ्यूचर के लिए एक प्लान बनाइए, ये प्लान अच्छा और सटीक होना चाहिए. इसमें आपको खुद के लिए विज़न तैयार करना है. आपको पता होना चाहिए कि किन स्किल्स पर काम करने की ज़रूरत है. आपकी स्किल्स ही आपके भविष्य को बेहतर बनाएंगी. इसलिए हमेशा नई चीज़ों को सीखने की कोशिश करते रहिए. 

आपको अपने आपकी पर्सनालिटी को रीइमैजिन करना सीखना होगा. खुद से सवाल पूछिए कि अगले 3 महीनें बाद आपके अंदर कौन से बदलाव आने ज़रूरी हैं? आप आज से 5 साल बाद खुद को कहाँ देखना चाहते हैं? इससे एक विज़न तैयार होगा. फिर आपको उस विज़न को गोल में तब्दील करना है. इसके बाद अपने गोल्स को छोटे-छोटे भागों में बांटना है. जैसे-जैसे आप छोटे-छोटे गोल्स अचीव करते जाएंगे. वैसे-वैसे आपके अंदर आत्मविश्वास भी बढ़ता जाएगा. उसी आत्मविश्वास के दम पर आप अपनी ख्वाइशों को पूरी कर सकते हैं. 

इसलिए सबसे पहले क्राइसिस में भी ख़ुश रहना सीखिए, अपने नज़रिए के ऊपर काम शुरू करिए. ज़िन्दगी भी अपने आप ही बदल जाएगी.

कुल मिलाकर
क्राइसिस का सामना करना मुश्किल है. लेकिन क्राइसिस की वजह से ज़िन्दगी से हार मान लेना बिल्कुल सही नहीं है. इंसान को कोशिश करना कभी नहीं छोड़ना चाहिए. कोशिश करने वालों को ख़ुशी और सफलता ज़रूर मिलती है. 

 

क्या करें? 

सफल लोगों के जीवन के बारे में अच्छे से पढ़े और उनसे दिलेरी सीखने की कोशिश करें. बिना मुश्किलों का सामना किए हुए कोई भी सफल नहीं हुआ है. इसलिए हमेशा स्ट्रगल के लिए तैयार रहें.

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