Matthew Syed
क्युँ लोग अपनी ग़लतियों से सीखते नहीं?
दो लफ्जों में:
ब्लैक बाक्स थिंकिंग(2015) एक ऐसी किताब है जो असफलता का अन्वेषण करती हैं। असफलता, दर्द और शर्मिंदगी से संबंधित होने के बावजूद, आपकी सबसे श्रेष्ठ संपत्ति है। यह किताब आपको असफलता से एक निरामय और धनी रिश्ता बनाने का अनुरोध करती है।
उपयोगी टिप्पणियों से भरी हुई यह किताब, पढ़ने वाले को सफलता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
यह किसके लिए है:
• मनोविज्ञान के छात्र
• मनोविज्ञान के उत्साही
• अपनी ग़लतियों से परेशान हो कर, उनका निवारण चाहने वाले लोग
• वह लोग जो अपनी किस्मत पलटना चाहते हैं
लेखक के बारे में:
मैथ्यू सैयद एक ब्रिटिश पत्रकार होने के साथ ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के भूतपूर्व छात्र है। वह कोमनवेल्थ के टेबल टेनिस चैंपियनशिप के एकल वर्ग में तीन बार विजयी हुए हैं। मैथ्यू सैयद “बाउन्स” नामक किताब के भी लेखक है।
यह किताब आपको क्यूँ पढ़नी चाहिए?:
चाहे आप किसी परीक्षा में अनुत्तीर्ण रहे हैं, या किसी व्यक्ति को लुभाने में विफल रहे हैं, या फिर अपने दोस्तों के लिए एक आकर्षक भोजन तैयार करने में असफल रहे हैं, असफलता असफलता है। किसी भी प्रकार से असफल होना उतना ही दुःख दाई और कष्टप्रद है।
परंतु विफलताओं से सिर्फ दुःख, कष्ट और परेशानियाँ ही नहीं मिलती, विफलता, कामयाबी का पहला पड़ाव है। यह किताब आपको विफलता अपने हित में इस्तेमाल करना सिखाती हैं। असफलता वास्तव में प्रगति और विकास की कुंजी है।
इसे पढ़कर आप सीखेंगे:
• निर्दोष लोगों पर मुकदमा चलना एक आम घटना क्यूँ है
• एटीएम का आविष्कार कैसे विफलता से फैल गया
• आप अपनी ग़लतियों से सीखने में कितने माहिर हैं
लोग असफलता से डरते हैं क्योंकि, वह उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाती है।
बच्चों में यह स्वाभाविक है। बच्चों को अपनी ग़लतियाँ स्वीकार करने में मुश्किल होती है। वह अपने किए से तुरंत इनकार कर देते है, फिर चाहे उनके हाथ में पकड़ा मार्कर और उंगलियों पर लगी स्याही, उनकी हरकतें साबित कर रहीं हो। मगर क्या बड़े इनसे अलग होते हैं?
आमतौर पर लोग अपनी ग़लतियों को स्वीकार करने से मुकर जाते हैं। वास्तव में, हमें ग़लतियाँ करने से अधिक कष्ट हमारी ग़लतियों को स्वीकारने में होता है।
अपराधिक न्याय प्रणाली पर एक नजर इसे स्पष्ट करती हैं।
1984 में, डीएनए टेस्टिंग के आविष्कार के बाद अभियोजक बिना संदेह अपराध साबित करते थे। इस आविष्कार के बाद, ऐसा लगने लगा कि यह तकनीक निर्दोष लोगों उनकी निर्दोषिता साबित करने में भी मदद करेगी। लेकिन यह हुआ नहीं, ज्यादातर मामलों में कानूनी अफसरों ने अपनी ग़लती मानने से इनकार कर दिया।
मानसिक बीमारी की शिकार, 19 वर्ष के जुआन रिवेरा के मामले को ही देख लो।1992 में, जुआन को एक11 वर्ष की लड़की के बलात्कार और खून के आरोप में उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी। तेरह साल बाद, डीएनए टेस्टिंग ने साबित किया के जुआन निर्दोष था। लेकिन अभियोजक यह मंजूर नहीं था, इसके चलते जुआन को और छह साल कारावास में गुजारने के बाद रिहाई मिलीं।
तो सवाल यह है कि ग़लतियाँ स्वीकारना इतना मुश्किल क्यूँ है? ग़लतियाँ स्वीकार करने से हमारे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है खासकर तब जब वह किसी महत्वपूर्ण कार्य करने में हो।
रिवेरा मामले में जो अभियोजक थे, जरूरी नहीं के वह बुरे लोग थे। वह बस अपनी ग़लतियों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे थे।
शायद ग़लती मानने का सबसे मुश्किल हिस्सा है- प्रथम यह स्वीकार करना के हमसे ग़लती हुई है। यह अधिक कठिन तब होता है जब की गई ग़लती बहुत बडी हो, जैसे किसी निर्दोष व्यक्ति को तेरह साल के लिए कारावास की सजा सुनाना। एसी भयानक ग़लती को स्वीकारना, आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने के साथ-साथ ग़लती करने वाले व्यक्ति का जीना कष्टदायक कर देती है।
इसलिए संभावना है कि अभियोजक पक्ष वाकई में रिवेरा को दोषी मानते थे, और यह भी मानते के उस नकारात्मक डीएनए टेस्ट का कोई तो स्पष्टीकरण जरूर होगा जो रिवेरा का अपराध ख़ारिज नहीं करता।
असफलता निश्चित रूप से दर्द देती है, मगर यह सुधार के लिए आवश्यक है।
जैसे कि हमने पहले सबक में देखा(और स्वयं अपनी जिंदगी के अनुभव से सीखा), ग़लतियों को स्वीकार करना काफी मुश्किल है। परंतु ग़लतियाँ अस्वीकार करने के विपरीत परिणाम है: यह हमारे सफल होने के क्षमता में बाधा डालता है।
असफलता, व्यक्तिगत शर्म से ज्यादा इस बात का चीन है कि कुछ तो गलत है।
जब हम यह स्वीकार करते हैं कि कुछ गलत है- चाहे वह हमारा रवैया हो, या किसी कम्पनी का आयोजन हो- तब हमें सुधार लाने का अवसर मिलाता है।
कुछ इस तरह: बास्केट बाल खेलने के दौरान, हर मिस हुई बास्केट तकनीकी रूप से असफलता है। आपने यकीनन ग़लती की है। शायद आप बाल गलत तरीके से पकड़ रहे हैं, या ज्यादा जोर लगा रहे हैं, या आपके कूदने का तरीका गलत है। हर बार बास्केट मिस होने पर, आपको पता है के आप विफल रहे हैं।
सफल होने का यही एकमात्र तरीका है- अपनी असफलताओं से सीखते रहना। वह सारे मिस किए बास्केट आपको अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं- बाल किस तरह से पकड़ते है, कूदते कैसे है और जोर कितना होना चाहिए। यह जानकारी आपको अगली बार सफल होने में सहायता करती है।
कुदरत भी कुछ इस तरह ही चलती है। प्रजातियाँ सैकडों वर्षों के दौरान विकसित होती है। हर गुजरती पीढ़ी आने वाली पीढ़ियों का अस्तित्व आसान बनाती हैं।
मानो जैसे हर पीढ़ी अपने अस्तित्व को मिटाने ने वाली हर वह चीज को रिकॉर्ड कर आने वाली पीढ़ियों को खतरे के लिए बेहतर तैयार करती हैं।
यूनिलीवर बायोलोजिस्ट के एक दल ने यही तरकीब एक नोजल को डिजाइन करते हुए अपनाई। यह एक ऐसा नोजल बनाना चाहते थे, जिस में कभी कुछ अटके ना। उन्होंने करीब449 डिजाइन बनाई, जिसमें से उन्होंने हर श्रृंखला से सर्व श्रेष्ठ डिजाइन चुनी, जब तक अंत में एक प्रभावी नोजल विकसित नहीं हुआ।
अगर अपनी ग़लतियाँ स्वीकार नहीं करेंगे, तो आप कभी प्रगति नहीं करेंगे।
कल्पना कीजिए एक ऐसी दुनिया है, जहां कोई अपनी ग़लतियों का स्वीकार नहीं कर रहा ना उनसे कोई कुछ सीख रहा है। ऐसी दुनिया में लोग अपनी ग़लतियाँ दोहराते ही रहते और उनके परिणाम भी अत्यंत गंभीर होते।
किसी सफलता या विफलता अक्सर स्पष्ट होती है: मरीज या तो जीता है, या फिर मर जाता है; इसी प्रकार हवाई जहाज या तो भूमि पर उतरता है या दुर्घटना का शिकार हो जाता है। अगर कुछ स्पष्ट नहीं होता तो वह यह है कि असफलता किसी ग़लती के कारण है, या नहीं।
कभी-कभी यह भी स्पष्ट नहीं होता कि किए गए बर्ताव में बदलाव परिणाम में बदलाव ला सकता है या नहीं। क्या मरीज का उपचार अलग तरह से करते तो वह बच जाता? क्या हवाई जहाज कही और उतरता तो दुर्घटना टल जाती?
ठीक ऐसी ही अस्पष्टता, ग़लतियों की जिम्मेदारी लेना आसान बना देती है। लेकिन अगर आप गलतियाँ स्वीकार नहीं करेंगे, तो अगली बार इसे बेहतर करना कैसे सीखेंगे।
मेडिकल पेशे में, ग़लतियाँ इतनी अस्वीकार्य है कि शायद ही कभी कोई डाक्टर या नर्स उन्हें स्वीकार करते हो। इसके चलते, ग़लतियाँ दोहराई जाती है और आखिरकार किसी मरीज की जान दांव पर लग जाती है। अध्ययनों के अनुसार, यूएसए में हर साल40000 लोग मेडिकल ग़लतियों के कारण अपनी जान गवां बैठते हैं।
कुछ क्षेत्रों में तो असफल होना नामुमकिन माना जाता है। इस कारण इन क्षेत्रों में कोई वास्तविक प्रगति नहीं होती।
उदाहरण अर्थ, ज्योतिष शास्त्र जैसे विज्ञान की सदियों से कोई प्रगति नहीं हुई है। ज्योतिषीय भविष्यवाणियों को रेखांकित करने वाली धारणाएं इतनी अस्पष्ट है कि उन्हें झुठलाया नहीं जा सकता है।
और एक उदाहरण है रक्तपात, जो कि उन्नीसवीं शताब्दी में एक आम चिकित्सा पद्धति थी, जिसे नैदानिक परीक्षणों के मानक बनने के बाद खारिज कर दिया था।
डाक्टर बीमारियों को ठीक करने या रोकने की कोशिश में, मरीजों से खून निकालते। जबकि यह उन मरीजों को सिर्फ ज्यादा दुर्लभ बनाता, वह भी उस समय जब उन्हें ताकत की सबसे ज्यादा जरूरत थी। फिर भी डाक्टरों ने इस पद्धति का उपयोग1700 सालों तक किया। उन्हें यह पता ही नहीं था कि असल में वह अपने मरीजों को मार रहे थे, और यह इसलिए था क्योंकि उन्होंने कभी इस चिकित्सकीय पद्धति का अभ्यास करने की कोशिश नहीं की।
तो अब तक हमने गलतियाँ स्वीकार न करने के नकारात्मक पहलू को देखा, इसके आगे हम यह सीखेंगे के कैसे अपनी असफलता का सदुपयोग किया जा सकता है।
सीखने और आगे बढ़ने के लिए, आपको अपने सिद्धांतों को असफलता के आधीन करना होगा।
हम अक्सर दुनिया को एक सरल और सहज नजर से देखते हैं। नतीजा यह होता है कि हमें कभी अपने सिद्धांतों का परीक्षण करने की जरूरत नहीं पड़ती। मगर यह रवैया हमें अपने सिद्धांतों को सही या गलत साबित करने का मौका नहीं देता!
यह दुनिया बहुत बड़ी और डरावनी चीज़ है, तो जाहिर सी बात है कि हम कोई आसान स्पष्टीकरण ढूंढते हैं। हम फिर एक बार रक्तपात के पद्धति पर गौर करते हैं: उन्नीसवीं शताब्दी के डाक्टरों को लगता था के जिन मरीजों की मौत हुई थी वह तो बस उनके किस्मत में लिखी थी। उनका यह मानना था कि ऐसे मरीजों की दशा इतनी खराब थी, के रक्तपात भी उन्हें बचा नहीं पाता।
भले ही यह मानना कठिन है, कि यह दुनिया सरल नहीं। मुश्किल घडियां कई कारणों का नतीजा होती है। चीजों को आसान बनाना, आपको अपने सिद्धांतों का परिक्षण करने से रोक रहा है।
मध्यकालीन डाक्टरों ने कभी रक्तपात पद्धति के वैधता का परीक्षण नहीं किया, क्योंकि ऐसा करने का उनके पास कोई कारण नहीं था। वह हमेशा से “जानते थे” के मरीज के मौत का कारण क्या था- या ऐसा उन्हें लगता था।
अपने विचारों को असफल होने का मौका देना, खुद-ब-खुद नए विचारों के साथ ही प्रगति के लिए भी जगह बना देती है। चाहे कोई विचार कितना ही उचित क्यूँ न लगे, हम कभी उसकी वैधता निश्चित रूप से जान नहीं पाएंगे अगर हम उस विचार का परीक्षण नहीं करेंगे।
अपने विचारों का परीक्षण करने का एक तरीका है- बेतरतीब नियंत्रण परीक्षण(आरसीटी), इसमें किसी चीज को एक नियंत्रण दल के विरुद्ध रख कर परीक्षण किया जाता है। इससे असफलता का कारण स्पष्ट करने में सहायता होती हैं।
उदाहरण अर्थ, अगर आप रक्तपात पद्धति की गुण-कारिता जानना चाहता हो, तो आप दस मरीजों को इकट्ठा करें, सभी एक ही रोग से पीड़ित हो और उन्हें दो दलों में बांट दे- एक रक्तपात दल और एक नियंत्रण दल। रक्तपात दल का रक्तपात पद्धति से इलाज करेंगे; नियंत्रण दल का इलाज नहीं करेंगे।
अगर दोनों दलों में कोई जीवित नहीं रहता, तो हमारे पास एक सुचित निर्णय लेने के लिए पर्याप्त जानकारी नहीं है। लेकिन अगर, रक्तपात दल के सारे मरीजों की मौत होती है और नियंत्रण दल के आधे मरीज जीवित रह जातें हैं, तब हमें यह मानना पड़ेगा कि रक्तपात सिर्फ एक बेअसर ही नहीं बल्कि एक अत्यंत जानलेवा पद्धति हैं।
असफलता हमें महान समाधानों को खोजने में प्रेरित करती हैं और एक कठिन प्रक्रिया को आसान बनाने में मदद करती हैं।असफलता हमें महान समाधानों को खोजने में प्रेरित करती हैं और एक कठिन प्रक्रिया को आसान बनाने में मदद करती हैं।
असफलता कष्टप्रद हो सकती है, लेकिन यह आपको आपकी परेशानियों को एक अलग दृष्टिकोण से देखने में प्रेरित करती हैं। और इस नए दृष्टिकोण से आते हैं नए समाधान।
अक्सर, एक महान विचार सिर्फ तब आता है जब कोई विशिष्ट समस्या हो- वह समस्या है विफलता।
विफलता अपने आप में एक ऐसी चीज है जो हमें समाधान खोजने पर मजबूर करती है, इस तरह असफलता हमें सफलता की ओर ले जाती है।
उदाहरण अर्थ, एटीएम के आविष्कार को देखते हैं, यह विचार जान शेफर्ड-बैरन को तब सुझा जब वह एक दिन बैंक से पैसे निकालना भूल गए। देखा जाए तो वह पैसे निकालने में असफल रहे, जब उन्हें जरूरत थी। लेकिन उनकी इस असफलता से, एक ऐसा समाधान निकला: एक पैसे बांटने वाली मशीन जो बैंक बंद होने के बावजूद इस्तेमाल कि जा सकती है।
अपने समस्याओं का समाधान देने के साथ-साथ, असफलता एक अत्यंत कठिन प्रक्रिया को आसान बनाने में मदद करती हैं, जैसे वह हमें हमारी समस्याओं के अलग-अलग हिस्सों को पहचानने में सहायता करती है।
मानलो आपको अफ्रीका महाद्वीप के शिक्षण पद्धति में सुधार लाना है, तो आप क्या करेंगे? आप कैसे जान पाएंगे कि आपकी की गई मदद बदलाव ला रही हैं या नहीं? सिर्फ परीक्षण के परिणाम यह जानने के लिए काफी नहीं है, क्योंकि समस्या इतनी बड़ी है के हम निश्चित रूप से जान नहीं सकते के बदलाव का कारण क्या है।
मगर यदि हम एक छोटी सी जगह से शुरूआत करें, तो यह जानने में आसानी होगी कि कौन से सुझाव काम कर रहे हैं। फिर हम इन्हीं सुझावों को बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए, कैन्या में अर्थशास्त्रियों का एक समूह उनके स्थानीय स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार लाना चाहते थे। उन्होंने पहले सारे स्कूलों की ग्रेड दर्ज किए और अलग-अलग स्कूलों में अलग-अलग तरकीबे इस्तेमाल की, यह देखने के लिए कि कौन सा उपाय काम कर रहा है।
पहले उन्होंने मुफ्त की पाठ्य पुस्तकें बांटने का निर्णय किया। मगर जल्दी ही उन्हें पता चला के स्कूल उनके इस योगदान के बिना भी उतने ही अच्छेसे कार्य कर रहीं थीं। ऐसे उन्होंने कई तरीके अपनाए। आखिरकार, एक दिन उन्हें ग्रेड सुधारने के समस्या का समाधान मिला- वह था डी वार्मिंग!
एक बार छोटे पैमाने पर समाधान मिल जाए तो फिर उसीका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जा सकता है।
अपनी पूरी क्षमता जानने के लिए, असफलता में संमिलित होना जरूरी है।
अगर आप अपनी विफलता का पूरा फायदा उठाना चाहते हो, तो उसे सिर्फ बौद्धिक रूप से समझना काफी नहीं है। आपको असफलता से एक सकारात्मक नाता भी जोड़ना पड़ेगा।
यदि आप अपनी विफलता को संभालने में नाकामयाब रहे, या आप अपनी विफलता से भागते रहे, तो आप जिंदगी में और असफल होते जाएंगे।
असल में, विफलता का डर ही आपके सफलता प्राप्त करने की चाह में अनावश्यक बाधाएं डालता है।
उदाहरण के लिए, लेखक अपने कुछ सहपाठियों, जो अक्सर परीक्षा से एक रात पहले पार्टी करते, उन्हें याद करते हैं। यह बच्चे उम्मीदों पर खरे न उतर पाने के विचार से इतने डरते, के वह संभावित असफलता की ही चीज़ें करते। अगर वह परीक्षा पास करते थे, तो ठीक था, नहीं तो उनके फेल होने का दोष वह उस रात के पीने को देते।
जाहिर है, यह सुधरने का गलत तरीका है। जीवन में सुधार और विकास लाने के लिए हम में पहले विफलता को स्वीकारने की और उसकी जिम्मेदारी लेने की हिम्मत होनी चाहिए। क्योंकि असफलता एक उत्तम शिक्षक तो है, मगर इस दुनिया का कोई भी शिक्षक आपकी सहायता नहीं कर सकता अगर आप उसकी बात सुनने के लिए तैयार नहीं है।
असफलता से सीखने का मतलब है अपनी ग़लतियों पर सोच-विचार करना। लेकिन कुछ लोग अपनी असफलता को स्वीकार करने के बजाएं उससे दूर भागने की कोशिश करते हैं। यह सबसे बड़ी समस्या है, क्योंकि हमारा विफलता के प्रती जो दृष्टिकोण है वही हमारी सफलता को निर्धारित करता है
मिशिगन विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिकों के एक टीम द्वारा की गई एक प्रयोग में हमें इसका प्रमाण मिलता है। प्रयोग में बच्चों को दो दलों में बांटा गया- एक दल उन बच्चों का था, जो अपने आप को पैदाइशी बुद्धिमान समझते और दूसरी ओर वह बच्चे थे जो मानते की मेहनत और लगन से वह बुद्धिमान बन सकते हैं।
हर दल को बढ़ती कठिनाइयों के कार्य दिए गए थे, ताकि अंततः बच्चे असफल हो। इस प्रयोग ने दर्शाया की, वह बच्चे जो यह मानते थे के यह मेहनत और लगन से वह बुद्धिमान बन सकते हैं, उन्होंने अपने असफलता से मिली सीख को अपने अगले कार्य में सफल होने के लिए इस्तेमाल किया। मगर, जिन बच्चों ने अपने आप को पैदाइशी बुद्धिमान समझा, अपनी विफलता से सीख नहीं पाए।
कुल मिलाकर
असफलता को स्वीकार करना कितना ही कष्टप्रद क्यों न हो पर अगर हमें हमारी पूरी क्षमता जाननी है, तो हमें अपनी ग़लतियों का स्वीकार कर उनसे मिली सीख को अपने सफलता प्राप्त करने की चाह के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।
याद रहे असफलता के बिना हम कभी सफल नहीं हो सकते हैं।
अध्ययनों के माध्यम से, ऊपर दिए गए सबक हमें यह दिखाते है कि क्यूँ हम अपनी गलतियाँ का स्वीकार नहीं करते और कैसे हम अपने आप को झूठी दलीलें देते हैं।
यह हमें यह भी दिखाते हैं के अपनी ग़लतियों की जिम्मेदारी नहीं लेने के कारण कभी-कभी हम किसी और का भारी नुकसान कर देते है। खासकर मेडिकल क्षेत्र, व्यक्तिगत संबंधों, न्याय प्रणाली और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लिए इस बात का स्वीकार करना बहुत महत्वपूर्ण है।