Bringing Up Bébé

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Bringing Up Bébé

Pamela Druckerman
एक अमेरिकन महिला द्वारा फ्रेंच पैरेंटिंग की खूबियों के बारे में जानें।

दो लफ़्ज़ों में
आपको ये जानकार हैरानी होगी कि फ़्रांस में रहने वाले छोटे बच्चे रात भर सोते हैं, हरी सब्जियाँ खाते हैं और वही करते हैं जो उनके पैरेंट्स कहते हैं। पेरिस में रहने वाली एक अमेरिकन महिला पामेला ड्रकरमेन (Pamela Druckerman)  ने ब्रिंगिंग उप बेबी (Bringing Up Bèbè) में फ्रेंच पेरेंटिंग के बारे में बहुत से राज़ बताए हैं।

यह किसके लिए है
- अगर आपका बच्चा रात में रोता है।
- अगर आप पैरेंट हैं या बनने वाले हैं।
- अगर आप फ्रांस और वहाँ की चीज़ों को पसंद करते हैं।

लेखिका के बारे में
पामेला ड्रकरमेन (Pamela Druckerman) वॅाल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्टर हैं जिन्होंने गार्जियन, न्यू यॉर्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट के लिए बहुत से लेख लिखे हैं। वे लस्ट इन ट्रांसलेशन (Lust in Translation ) और  इन्फिडेलिटी फ्रॉम टोक्यो टू टेनेसी (Infidelity from Tokyo to Tennessee) जैसी किताबों की लेखिका हैं। 

अपने बच्चों की देखभाल फ्रांस के तरीकों से करिये।
अगर आप कभी फ्रांस गए हैं तो आपने ये ज़रूर देखा होगा कि वहाँ के बच्चों का व्यवहार बहुत ही अच्छा होता है। वे बहुत छोटी उम्र से ही आत्मनिर्भर रहते हैं। वे खाने और दूसरी चीज़ों के लिए ज़िद नहीं करते। तो सवाल ये है कि आखिर फ्रांस के लोग अपने बच्चों को कैसे संभालते हैं?

आने वाले सबक़ में हम देखेंगे कि एक अमेरिकन महिला का फ्रांस में बच्चों की देखभाल करने के तरीकों के बारे में क्या कहना है। हम सीखेंगे कि किस तरह आप कुछ आसान से नियमों का पालन करके अपने बच्चे की देखभाल अच्छे से कर सकते हैं और साथ ही साथ खुद को भी थोड़ा समय दे सकते हैं।  

मार्शमैलौ का बच्चों की देखभाल से क्या लेना देना है।

क्यों आपको लड़के और लड़कियों में भेद भाव नहीं करना चाहिये।  

क्यों फ्रांस के रेस्टॅारेन्ट में किड्स मेनु नहीं होता।

 

छोटे बच्चों को अगर सोने में कोई परेशानी न हो तो वो रात भर सोयेंगे।
फ्रांस में रहने वाले बच्चे रात भर शांति से सोते हैं जबकि दूसरे देशों के बच्चे रात में रोते हैं जिससे पैरेंट्स को रात भर जागना होता है।  

अगर आपका बच्चा रात में रोता है तो ज़रूरी नहीं कि उसे किसी चीज़ की ज़रूरत हो। शायद उसे सोने में परेशानी हो रही हो। बच्चों को रात में खाने की कोई ज़रुरत नहीं होती। खाना पचने में दिक्कत की वजह से उनकी नींद खराब होती है।  

1993 में टेरेसा पिनेल्ला (Teresa Pinella) और लीएन बिर्च (Leann Birch) ने जर्नल पीडियाट्रिक्स की एक स्टडी में बताया कि एक माँ को कैसे अपने बच्चे को शांत करना चहिये। इसमें उन्होंने तीन नियमों का ज़िक्र किया।

- अपने बच्चे को ज़बरदस्ती मत सुलाइये।

-  जब आपका बच्चा थपथपाने और घुमाने पर भी चुप न हो तो ही उसे कुछ खाने के लिए दीजिये।

-  उसके रोने के तरीके पर ध्यान दीजिये।

पिनेल्ला और बिर्च ने पाया कि 38% पैरेंट्स के बच्चे सिर्फ चार हफ्ते में ही रात भर सोने लगे जबकि जिन 7% पैरेंट्स ने ये बातें नहीं मानी उनके हालात वैसे ही रहे।

अक्सर ऐसा होता है कि रात में बच्चे रोते वक्त पूरी तरह से नहीं जागे होते। उन्हें एक बार खुद से सोने का मौका दीजिये। अगर आप उनके रोते ही उन्हें उठा लेते हैं तो इससे उसकी नींद खराब हो सकती है और उसका रोना बढ़ सकता है।  

इसका मतलब ये नहीं कि आप रोते हुए बच्चे को पूरी तरह से अनदेखा कर दें। उन्हें रोता हुआ देख कर कुछ सेकंड के लिए शांत रहिए और अगर वो रोना बंद नहीं करते तब उनके पास जाइए। शुरुआत के दिनों में कुछ सेकेण्ड इंतज़ार करिए और फिर इस समय को थोड़ा थोड़ा बढ़ा कर कुछ मिनट तक ले जाइये। 

बच्चों को खुद से सोना सीखने के लिए कुछ समय चाहिए और ये आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप इसमें उनकी मदद करें। 

 

अपने बच्चे को सेहतमंद खाना खाने के लिए तैयार करिये।
यूनाइटेड स्टेट्स के ज़्यादातर बच्चे अच्छे से खाना नहीं खाते। जब लेखिका इटैलियन और क्यूबा रेस्टॉरेंट्स में गईं तो उन्होंने देखा कि सारे रेस्टॉरेंट्स के मेनू में हैम्बर्गर , चिकन फ्राई और पिज़्ज़ा जैसी चीज़े ही थी।

लेकिन फ्रांस के रेस्टॉरेंट्स में कोई किड्स मेनू नहीं होती। फ्रांस के लोग अपने बच्चे को हर तरह का खाना खिलाते हैं। वहाँ छोटे बच्चों के खाने में रेड कैबेज, फिश और डिल सॉस , बेक्ड एप्पल और चीज़ जैसी चीज़ें होती हैं। स्वादिष्ट खाने में बच्चों को फोल ग्रास, सारडाइन माउस या गोट चीज़ खिलाया जाता है। 

बच्चों को हर तरह के फ्लेवर और स्वाद वाला खाना खाना चाहिये। इसलिए फ्रांस के लोग अपने बच्चों को अलग अलग तरह के खाने खिलाते हैं। ज़रूरी नहीं कि फ्रांस के बच्चों को हर तरह का खाना अच्छा लगे, पर उन्हें हर तरह के खाने को कम से कम एक बार ज़रूर खिलाया जाता है। फ्रान्स के पैरेंट्स का मानना है कि अगर वो एक ही तरह के खाने को बार बार खाएंगे तो उन्हें इसकी आदत पड़ जाएगी। लेखिका एक फ्रेंच महिला से मिली थीं जो अपनी बेटी को उसके प्लेट में रखे गए हर तरह के खाने को एक बार ज़रूर खिलाती थी। इसलिए फ्रांस के लोग अपने बच्चों को थ्री कोर्स मील्स देते हैं। इससे न सिर्फ उन्हें अलग अलग खाना खाने को मिलता है बल्कि उन्हें न्यूट्रीएंट्स की समझ भी होती है ।

पहले कोर्स में वेजिटेबल सूप या सलाद हो सकता है। बच्चों को मेन कोर्स का खाना तब तक नहीं दिया जाता जब तक वे अपने सलाद न खा लें।

आप बच्चों को सब्जियां खाने की भी आदत डलवा सकते हैं। बस उन्हें कम से कम एक बार उसे खाने दीजिये।

खाने के लिए सख्त होने से बच्चे सेहतमंद और अनुशाषित रहते हैं।
हम अक्सर बच्चों को सेहतमंद खाना खाने के लिए कहते हैं पर खुद नहीं खाते। अक्सर हम काम के बीच में सैंडविच या कुछ और फ़ास्ट फ़ूड खाने लगते हैं। लेकिन फ्रांस के लोग जानते हैं कि सेहतमंद होने का मतलबा मोटा न होना ही नहीं होता।

एक निश्चित समय पर खाना खाने से हम मोटे नहीं होते। फ्रांस के बच्चों को दिन में चार बार खाना खिलाया जाता है- 8 बजे, दोपहर में, शाम 4 बजे और रात में फिर 8 बजे। इसके बीच अगर उन्हें चॉकलेट खाने का मन हो तो वो नहीं खा सकते।  

फ्रांस में सिर्फ 3.1% बच्चे ही मोटे होते हैं जबकि यूनाइटेड स्टेट्स में 10.4% बच्चे मोटे होते हैं। ये अंतर उनके बड़े होने के साथ बढ़ता ही जाता है। फ्रांस के बच्चे बाजार में चॉकलेट के लिए रोते नहीं क्योंकि वो जानते हैं कि इसका कोई फायदा नहीं होगा। जब तक उनके खाने का समय नहीं हो जाता तब तक उन्हें खाने के लिए कुछ भी नहीं मिलने वाला। 

भूख को काबू करने से बच्चों में ज्यादा सब्र करने की क्षमता आ जाती  है। 1930 में वॉटर माइकल (Walter Michael) नाम के एक मशहूर साइकोलॉजिस्ट ने इसपर एक एक्सपेरिमेंट किया। उन्होंने कुछ बच्चों को एक टेबल पर मार्शमैलौ को साथ बैठा दिया और कहा कि अगर वो उसे 15 मिनट तक नहीं खाते है तो उन्हें दो मार्शमैलौ खाने को दिया जाएगा। इन्ही बच्चों के बड़े होने पर माइकल ने पाया का जो बाचे खुद को खाने से रोकने में सक्षम थे, वे ज़िन्दगी में सफल हुए।

खाने के लिए सख्त होने का मतलब सिर्फ सेहत से नहीं है। इसका मतलब खुद पर काबू करने से भी है। 

 

आपको अपने बच्चों के लिए खुद की ज़रूरतें छोड़ने की कोई ज़रुरत नहीं है।
एक पैरेंट बनने के बाद ज़्यादातर अमेरिकन पैरेंट्स अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए अपने शौक़, ज़रूरतें और सेक्स लाइफ को छोड़ देते हैं। उन्हें लगता है कि पैरेंट बनने के बाद उनकी ज़िन्दगी पूरी तरह से बदल चुकी है और अब वो पहले के जैसे नहीं रह सकते। 

फ्रांस में बच्चों के लिए अपनी सेक्स लाइफ को छोड़ना सेहतमंद नहीं माना जाता। ज़्यादातर फ्रांस के लोगों का मानना है कि सेक्स लाइफ छोड़ने से बहुत सारी साइकोलॉजिकल बीमारियाँ होती हैं और इससे तनाव बढ़ सकता है।  

हेलीन डी लीरसाइन्डर (Hèlène de Leersynder) एक बच्चों की डॅाक्टर हैं। उनका कहना है कि सेक्स इंसान की ज़रुरत है। इसलिए फ्रांस में जब पैरेंट्स को खुद के लिए कुछ समय चाहिए होता है तो वो अपने बच्चों को कुछ दिन के लिए दूर भेजने में नहीं हिचकिचाते। वहाँ के प्राइमरी स्कूल के बच्चों को भी एक हफ्ते के लिए घूमाने ले जाना आम बात है।

लेखिका ने एक ऐसे पैरेंट्स से बात की जो अपने बच्चों को साल में एक बार 10 दिन के लिए उनके दादा दादी के पास छोड़कर छुट्टियों पर जाते थे।

बर्थडे पार्टीज में पैरेंट्स अपने बच्चों को एक दिन के लिए दूसरे पैरेंट्स के यहाँ छोड़कर भी अपने लिए कुछ समय निकाल लेते हैं। जब वो अपने बच्चों को लेने जाते हैं तो साथ ही साथ वहाँ के पैरेंट्स के साथ शैम्पेन भी पीते हैं।  

ये मानने में कोई बुराई नहीं है कि बच्चों और बड़ों की दुनिया अलग अलग होती है। अपने लिए कुछ समय निकालने में कोई बुराई नहीं है। खुद को और अपने बच्चों को आराम करने के लिए कुछ खाली समय दीजीए। 

 

फ्रांस के पैरेंट्स जेंडर डिफरेंसेस को स्वीकार करते हैं।
आज दुनिया भर के लोग लड़के और लड़कियों को एक बराबर का अधिकार दिलाने के लिए काम कर रहे हैं। फ्रांस की महिलाएं भी इसमें शामिल हैं पर उनका तरीका दूसरों से कुछ अलग है। 

फ्रांस के पुरुष अमेरिका के पुरुषों की तरह दुनिया के सबसे अच्छे डैड बनाने की कोशिश नहीं करते। न ही वहाँ की महिलाएं उनके घर के काम न करने पर गुस्सा होती हैं। डेब्रा ओलिवर व्हाट फ्रेंच वीमेन नो ( What French Women Know)  की लेखिका हैं। उनकी माने तो फ्रांस की महिलाएं पुरुषों को अपने जैसा नहीं मानतीं। उनका मानना है कि वो डाइपर खरीदने या पेडिएट्रिशीयन के पास अपॉइंटमेंट लेने का काम नहीं कर सकते।

लेखिका मानती हैं कि ऐसा करने से घर में प्यार का माहौल बना रहता है। अमेरिका की महिलाएं चाहती है कि पुरुष उनके घर के काम में हाथ बटाएँ। द बिच इन द हाउस ( The Bitch In The House ) एक बेस्ट सेलिंग अमेरिकन अन्थोलोजी है जिसमें बताया गया है कि ज़्यादातर महिलाएं अपने हस्बैंड के उन कामों को लिख के रखती है जो उन्होंनेहैं  नहीं किया। इससे उनका गुस्सा और चिचिड़ापन और बढ़ जाता है।

लेखिका ने बहुत सारी फ्रेंच महिलाओं से ये सवाल किया कि उन्हें अपने हस्बैंड्स के घर के काम में हाथ न बटाँने पर कैसा लगता है। ज़्यादातर महिलाओं ने कहा कि इससे उन्हें कोई परेशानी नहीं है। उन्हें कभी कभी इससे चिढ़ होती है पर फिर भी वो अपने हस्बैंड से उतना ही प्यार करती है। वो घर में नेगेटिव माहौल नहीं बनातीं। फ्रांस के लोगों का तरीका घर में शांति लाता है। 

अपने बच्चों पर जोर मत डालिये, लेकिन ना कहना ज़रूर सीखिये।
पिछले कुछ सालों से "हेलीकाप्टर पैरेंटिंग" अमेरिका में बहुत चर्चित है। ज़्यादातर पैरेंट्स अपने बच्चों के सारे काम करते हैं और उनकी सारी ज़रूरतों को पूरा करते हैं। 

लेकिन फ्रांस में ऐसा नहीं होता।  फ्रांस में आप पैरेंट्स को बच्चों के साथ खेलते या उन्हें झूला झुलाते नहीं दखेंगे। जब वहाँ के बच्चे खुद से खेल रहे होते हैं तो पैरेंट्स आपस में बातें करते हैं।

लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि बच्चे जो चाहे वो कर सकते हैं। पैरेंट्स के कुछ नियमों को उन्हें मानना होता है जैसे-  "झगड़ा मत करना" और "प्लेग्राउंड के बाहर मत जाना"। 

जब वहाँ के बच्चे कोई नियम तोड़ देते हैं तो पैरेंट्स उन्हें इसके बारे में बताते हैं। उन्हें पता है कि कब आपको ना कहना है। आपको पूरे आत्म विश्वास के साथ ना कहना चाहिए और आपको पूरा भरोसा होना चाहिए कि आपका बच्चा आपकी बात मानेगा।  

वहाँ के कुछ पैरेंट्स सख्त होने पर गर्व करते हैं। लेकिन वे सख्त तभी होते हैं जब उनके बच्चों से कोई बड़ी गलती करते हैं। आपको  छोटी और बड़ी गलतियों में अंतर करना सीखना होगा। 

इस तरह आपको अपने बच्चों को समय के साथ कम समझाना पडे़गा। इससे बच्चे खुद ही ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे आपको गुस्सा आए।  

बच्चे की ज़िन्दगी में पैरेंट्स का एक बहुत ही ज़रूरी हिस्सा होता है। अपने बच्चे को गलतियां करने का मौका दीजिए लेकिन इसमें अपने औहदे को मत भूलिये। आखिर में उन्हें वही करना है जो आप कहेंगे।   

 

कुल मिला कर
बच्चों को अपनी समझ बनाने के लिए कुछ समय चहिये। ऐसा करने में पैरेंट्स ही उनकी मदद करते हैं। अपने बच्चे को आज़ादी दीजिए लेकिन उनके साथ सख्ती भी बरतिए। उन्हें अलग अलग तरह के खाने खिलाइये। उनकी देखभाल करना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना आपका काम है।


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