Be A Free Range Human

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Be A Free Range Human

Marianne Cantwell
9 से 5 वाली ज़िंदगी से निजात पाकर खुद की पसंद की ज़िंदगी चुनें

दो लफ्जों में 
साल 2013 में लिखी गई बी अ फ्री रेंज ह्यूमन उन सभी लोगों के लिए एक एस्केप मैन्युअल है जो खुद को कैद और बंधा हुआ महसूस करते हैं। ये किताब उन मिड करियर प्रोफेशनल्स को ज़िंदगी के प्रति एक ऑल्टरनेटिव अप्रोच देती है, जो ज़िम्मेदारियों के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं। इसे फ्री रेंजिंग कहना सही होगा, यानि कुछ ऐसा करना जिससे आपको प्यार हो, और वो भी जब और जहां आपका दिल चाहे। और इसकी सबसे अच्छी बात ये है कि आप ऐसा करते हुए इतना पैसा कमा सकते हैं की अपने सारे खर्चे पूरे कर सकें।

  किसे पढ़नी चाहिए?
- ऐसे लोगों को जो खुद को अपने काम में मिसफिट मानते हैं और जो विकल्प तलाश रहे हैं
- उन पेशेवरों को जो 9 से 5 की चक्की में पिसते हुए ऊब चुके हैं 
- होने वाले उद्यमियों को, जिन्हें प्रेरणा की ज़रूरत है
 
लेखक के बारे में 
मैरिएन कैंटवेल खुद एक फ्री रेंज व्यक्ति हैं और दूसरों को एक बोरियत भरी ज़िंदगी छोड़कर पसंद की ज़िंदगी चुनने में मदद करने में विशेषज्ञ हैं। एक लोकप्रिय वक्ता और सलाहकार के रूप में जानी जाने वाली मैरिएन नियमित रूप से "कॉर्पोरेट केज" से बचने के लिए कोर्सेज चलाती हैं। उनका काम बीबीसी एवं दर्जनों ब्रिटिश और अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुका है।

सेल्फ इम्प्लॉइमन्ट तब ज़्यादा सही लगने लगता है जब आपको पता चलता है कि अब सुरक्षित नौकरी जैसी कोई चीज नहीं है।
हमसे अक्सर कहा जाता है कि सपने तभी अच्छे लगते हैं, जब आप छोटे और बेफिक्र होते हैं, लेकिन सपनों से पेट नहीं भरता। सच्चाई ये है कि जिस नौकरी से आप नफरत करते हैं, उसमें खपते जाना होगा, ताकि  क़र्ज़ अदा कर सकें, बच्चों की बेहतर परवरिश कर सकें, और अपने भविष्य के लिए बचत कर सकें जिससे रिटायरमेंट के बाद की ज़िंदगी आराम से गुज़रे - है ना?

गलत! आज ज़्यादा से ज़्यादा लोग, अपने बोरियत भरे बेरंग दफ्तरों से बाहर निकल रहे हैं, ताकि अपनी शर्तों पर एक शानदार ज़िंदगी बना सकें। और सबसे अच्छी बात ये है कि वे अपने जीवन स्तर से समझौता किए बिना ऐसा कर रहे हैं।तो आखिर कौन हैं ये क्रांतिकारी जो ऐसा कर पा रहे हैं? ये एक नई नस्ल हैं - उन्हें फ्री रेंज ह्यूमन कहा जा सकता है। ये जब, जहां और जिस तरह चाहें वैसे काम करते हैं, और ये लोग अपना पसंदीदा काम करके पैसा भी कमाते हैं। ऐसे लोग आपको दुनिया भर में पार्कों और कैफे में, समुद्र तटों पर और किचन टेबल पर मिल जाएंगे।  उनका मिशन क्या है? स्वतंत्रता और तृप्ति - रिटायरमेंट के बाद नहीं, बल्कि अभी।अगर आप इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहे हैं तो कोई बात नहीं।  आप सही जगह पर हैं, क्योंकि कुछ साल पहले तक लेखक मैरिएन कैंटवेल खुद इसी पारम्परिक ज्ञान को ही सच मानती थीं, लेकिन फिर उन्होंने खुद के लिए एक फ्री रेंज ज़िंदगी बनाई। और अब वे इस बात पर यकीन करती हैं कि ऐसा कोई भी कर सकता है। इस समरी मे आप जानेंगे कि कैसे पता करें कि आप वास्तव में अपने जीवन के साथ क्या करना चाहते हैं? एक ठीक ठाक बिज़नेस शुरू करने के लिए आपको नयेपन की ज़रूरत नहीं है, और आप जैसे हैं, वैसे रहते हुए ज़्यादा पैसे कैसे कमा सकते हैं?

तो चलिए शुरू करते हैं!

अगर आप एक ऐसे करियर में फंस गए हैं जिससे आप नफरत करते हैं, लेकिन एक अलग मंज़िल तक पहुंचने के लिए दूसरा रास्ता नज़र नहीं आ रहा है, तो बहुत मुमकिन है कि आपको अक्सर ऐसा ही लगता होगा। क्योंकि यही वह तर्क है जो हममें से लाखों लोगों को ऐसे दफ्तरों में काम करने पर मजबूर करता है जहां हम बोरियत से मर जाने तक काम करते रहते हैं। लेकिन ऐसा करना अगली किश्त भरने से चूक जाने से बेहतर है, है ना? बिल्कुल नहीं - असल में, आपको सिक्योर ज़िंदगी और खुशहाल ज़िंदगी के बीच चुनने की ज़रूरत नहीं है। 

पहले काम एक सिम्पल डील हुआ करता था। घुटने टेककर, एक ऐसा काम करने के बदले में, जिसे करने में आपको मज़ा नहीं आता, आपको एक ठीक ठाक सैलरी और बेहतर रिटायरमेंट मिल जाता था, जिसके बाद आप अपने शौक पूरा करने में बाकी की ज़िंदगी गुज़ार सकते थे। यह एक बॉन्ड होता था, जिसे लाखों श्रमिक सारी शर्तों के साथ कबूल कर लेते थे ताकि ज़िंदगी में सिक्योर रहे।  इसके लिए उन्हें अपनी आज़ादी की क़ुरबानी देने में कोई झिझक नहीं होती थी।  लेकिन अब हालात बदल चुके हैं।    

वर्किंग आवर्स बहुत ज़्यादा लंबे हो चुके हैं और लोगों को ये भी पता है कि उन्हें नौकरी से हटाने या नौकरी छोड़ने के लिए ज़्यादा लंबा नोटिस देने की ज़रूरत नहीं।  यानि ये कहा जा सकता है कि अब नौकरियां उतनी सुरक्षित नहीं रहीं जितनी पहले हुआ करती थीं। अपने कॉन्ट्रैक्ट पर एक नज़र डालें। आपका एम्प्लॉयर आपको नौकरी से हटाने से पहले कितने वक़्त का नोटिस देने के लिए बाध्य है - एक महीना या ज़्यादा से ज़्यादा तीन? पढ़ने में भले ही ये ठीक लगे, लेकिन जब असल में ऐसी परिस्थिति आती है, तो इतना नोटिस पीरियड बहुत सिक्योर नहीं लगता।  

रिटायरमेंट प्लान्स भी अब वैसे नहीं रहे जैसे पहले हुआ करते थे। एक्स्पर्ट्स के अनुसार जो बच्चे आज पैदा हो रहे हैं, वह शायद अपनी उम्र के अस्सी के दशक में भी काम करते हुए मिलेंगे। यदि आपका काम तृप्ति और खुशी का स्रोत है, तो उम्र के उस पड़ाव तक काम करना कोई बड़ी समस्या नहीं है, लेकिन यदि ऐसा नहीं है तो क्या होगा? यह ज़िंदगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा है किसी ऐसे चीज़ पर खर्च करने के लिए जिसे आप बिल्कुल पसंद नहीं करते। और इसके बदले में क्या मिलेगा, ज़िंदगी के आखिरी दिनों में 5 या 10 साल की आज़ादी?

करियर के इस सालों से चले आ रहे ढर्रे को तोड़ने का मतलब ये है कि अब "स्थिर" नौकरी पर भरोसा करना समझदारी का काम नहीं रहा है।  यदि आपका एम्प्लॉयर आपको सही सुरक्षा और स्थिरता नहीं दे पा रहा है, तो असल मायने में आप स्व-रोज़गार की श्रेणी में ही आते हैं। फ़र्क़ सिर्फ इतना है कि आपके पास केवल एक ही क्लाइंट है। एक फ्रीलांसर की तरह आप बहुत सारा रिस्क ले रहे हैं, लेकिन उनसे अलग आप अपना सबकुछ केवल एक कमाई के स्रोत पर लगा रहे हैं, जो मार्किट क्रैश होने या बोर्ड के एक फैसले से धूमिल हो सकता है। जब आप अपनी स्थिति को इस तरह देखेंगे, तो अकेले काम करना अचानक ही उतना खतरनाक नहीं लगेगा।  पर सवाल ये उठता है कि आप शुरुआत कहां से करें? चलिए पता करते हैं।

जो आपको पसंद है, वो करना, सफलता की पहली शर्त है, लेकिन सबसे पहले आपको पता लगाना होगा कि आखिर वो काम है क्या?
ज़िंदगी बहुत छोटी है। अब आपके दिमाग में शायद ये सवाल कौंधेगा कि "इस दुनिया में आपके सीमित समय में आप असल में करना क्या चाहते हैं?" और आपको लगेगा की यही सबसे अहम सवाल है। लेकिन अगर आप ऐसा सोचते हैं, तो आप गलत हैं।  हमें अक्सर समझाया जाता है कि अपने पैशन को फॉलो करना और अच्छे पैसे कमाना किसी किस्म का जाल नहीं है। मगर ये सच नहीं। यहां पर ये समझना होगा कि जो आपको पसंद है, वो करना, सफलता की पहली शर्त है, लेकिन सबसे पहले आपको पता लगाना होगा कि आखिर वोकाम है क्या? क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि जो सफल चेंज-मेकर्स होते हैं वो भी वही करते हैं, जिससे उन्हें प्यार होता है? ऐसा इसलिए क्योंकि आपके पास एक शानदार आईडिया होने के बावजूद कहीं नहीं पहुंच पाएंगे, अगर आप उसकी परवाह नहीं करते। और वो करने से जो आपको पसंद है, केवल ख़ुशी नहीं मिलती, बल्कि ऐसा काम करने से आप लक्ष्य तक पहुंचने के लिए थोड़ी ज़्यादा मेहनत करते हैं जिससे आपको सफलता मिलती है।

इसलिए यह पता करना बेहद ज़रूरी है कि आप वास्तव में क्या करना चाहते हैं? ये पता करना सुनने में जितना आसान लगता है, असल में ये उतना ही कॉम्प्लिकेटेड है।  मनोवैज्ञानिक रिचर्ड वाइसमैन कहते हैं, "ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे दिमाग में दो "किरदार" होते हैं। एक किरदार रचनात्मक है, जो बेहतरीन आइडियाज को जन्म देता है, लेकिन ये "शांत आदमी" बहुत ही आसानी से दूसरे "तेज़ आदमी" वाले किरदार से दब जाता है, जो हमारा इनर क्रिटिक है।

जब भी हमारा शांत किरदार कोई आकर्षक आईडिया देता है, तेज़ किरदार तुरंत ही उसे गैर मुमकिन करार दे देता है।  ये एक आईडिया डेथ सर्किल है, और इसी वजह से कई लोग ज़िंदगी भर अपने दफ्तरों में अटके रह जाते हैं।  उनके अंदर से आती ऐसी किसी भी तरह के बदलाव की आवाज़ का गला अंदर का ही क्रिटिक घोंट देता है।  ये दूसरी आवाज़ केवल यही जानना चाहती है कि आप अपने खर्चे कैसे पूरा करेंगे।

इस साइकिल को तोड़ने के लिए ये प्रैक्टिस करके देखें।  आपको इसके लिए सिर्फ एक कागज़ और कलम चाहिए।  तो तैयार हैं? बढ़िया, तो अब इस सवाल का जवाब जितना जल्दी हो सकता है, उतना जल्दी दें।  जवाब मन में आते ही, उस पर दोबारा विचार कर उसे बदलने की कोशिश न करें। आखिरी बार आपने खुद को ज़िंदा और उस क्षण में पूरी तरह डूबा हुआ कब महसूस किया था? अगर एक बोतल से जिन्न बाहर आये और आपको 12 महीने की छुट्टी देते हुए उसकी पूरी तनख्वाह भी दे दे, तो आप क्या करेंगे? यहां आपको लिखना चाहिए कि आपके दिमाग में जो भी प्लान आया है उसमें आपको सब ज़्यादा क्या एक्साइट कर रहा है।  मसलन अगर ये किसी आर्ट को क्रिएट करने के बारे में है, तो इस आईडिया को क्या अट्रैक्टिव बना रहा है? उस आर्ट को क्रिएट करना उन लोगों का साथ, जिनके साथ मिलकर आप ये आर्ट को क्रिएट रहे हैं? ये आपके फ्री-रेंज करियर को डिफाइन करने का पहला कदम है। अभी किसी भी तरह की प्रैक्टिकैलिटी की चिंता मत कीजिये - उन तक पहुंचने से पहले हमें कुछ आम धारणाओं को तोडना होगा।  

आपकी कमियां अक्सर आपकी खूबियां होती हैं, आपको बस सही परिवेश में होने की ज़रूरत है। 9 से 5 की चक्की से निकलने के लिए फ्री-रेंज ऑल्टरनेटिव को ढूंढना एक जिगसॉ पजल की तरह है। हालांकि, इसका सबसे ज़रूरी टुकड़ा हमेशा आप ही होते हैं। आप एक औसत से ऊपर की शानदार ज़िंदगी का आनंद लेने के बारे में कैसे सोच सकते हैं, अगर आपको यकीन हो की आप खुद एक ऐव्रिज इंसान हैं? आप ऐसा नहीं कर सकते। इसका मतलब ये हुआ कि हमें आपके लिए एक फ्री-रेंज करियर ढूंढने से पहले आपकी छिपी हुई खूबियों या सुपरपॉवर्स को खोजना होगा। ऐसा करने के लिए हमें मूल संदेश को अच्छी तरह से समझना होगा, और वो ये है कि आपकी कमियां अक्सर आपकी खूबियां होती हैं, आपको बस सही परिवेश में होने की ज़रूरत है।

बचपन से ही आपको एक झूठ बेचा जाता है। वो झूठ ये है कि आपको एक बेहतर इंसान होने के लिए, हर चीज़ में बेहतर होना होगा। अपने स्कूल के दौर के बारे में सोचें। उस वक़्त आपको रिपोर्ट कार्ड मिलने पर ज़ोर किस बात के लिए दिया जाता था? आपके पेरेंट्स या टीचर्स आपको हमेशा कमज़ोर विषयों को सुधारने को लेकर प्रेरित करते थे, ना की बेहतर विषयों को और बेहतर करने के लिए। ये कई तरीकों में से एक तरीका है जब बच्चे औसत बनने के लिए परिश्रम करते हैं, ना की अपनी खूबियों को मज़बूत करने के लिए। जो फ्री रेंज ह्यूमन होते हैं, उनका नजरिया भी अलग होता है और आपको भी अपना नजरिया बदलना होगा। तो अब आता है सबसे ज़रूरी सवाल: आप अपनी सुपरपॉवर्स को कैसे पहचानेंगे? 

इसकी शुरुआत आपको अपनी कमियों के आकलन के साथ करनी होगी। इस बात को लेखक के निजी ज़िंदगी के उदाहरण से समझें। अपना करियर बदलने से पहले उन्हें हमेशा अपने सीनियर से इस बात के लिए डांट खानी पड़ती थी, कि वे हाथ के काम को पूरा करने की जगह हमेशा चीज़ों को बेहतर तरीके से करने की कोशिश करती हैं। ऐसा करने के लिए  वो जो भी काम कर रही हों, उसे करने के अलग अलग तरीके अपनाती थीं, ताकि अपनी प्रेजेंट कंडीशन को बेहतर कर सकें।    

जब वे इंडिपेंडेंट कंसलटेंट बनीं, तब उन्होंने महसूस किया की यही उनके काम का सही डिस्क्रिप्शन है: उनके क्लाइंट्स उन्हें समस्या पहचानने और इम्प्रूवमेंट्स  के सुझाव देने के लिए ही उन्हें हायर कर रहे थे।  यानि पहले की जॉब में जिसे उनकी कमी माना जा रहा था, दूसरी जॉब में वही उनकी खूबी में तब्दील हो गया।  यानि कमी लेखक में नहीं, बल्कि इस सच्चाई में थी कि वे गलत परिवेश में हैं।  

आप भी अपनी "कमियों" के बारे में सोचें। आपको तुरंत ही अपनी छिपी हुई खूबियां नज़र आने लगेंगी। मसलन  अगर आपको किसी एक चीज़ में ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत हो रही है और आप अलग अलग प्रोजेक्ट के बीच स्विच करते रहते हैं, तो ज़ाहिर सी बात है, ये तब बहुत बड़ी समस्या मानी जायेगी, जब आपका काम, एक वक़्त में एक ही काम ख़तम करना हो, लेकिन ये खूबी एक अलग परिवेश में बहुत ही बड़ा गुण मानी जायेगी।  

उदाहरण के तौर पर एक विषय से दुसरे विषय पर तुरंत ही मेंटली स्विच कर लेना वो भी डिटेल्स में उलझे बगैर। इस स्ट्रेंथ को ब्रेनस्टॉर्मिंग सेशंस के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है।  यानी जो अभी आपकी मौजूदा नौकरी में कमी मानी जा रही है, वही आपकी स्ट्रेंथ है -  फ़ास्ट मूविंग, अडैप्टेबल और बिग पिक्चर थिंकर होना वो भी ढेर सारे आइडियाज के साथ, निश्चित रूप से स्ट्रेंथ में शामिल है।

एक बहुत ही शानदार आईडिया सोच लेना ही ओरिजिनल होने का इकलौता तरीका नहीं है।
जब लेखक खुद को बतौर कंसलटेंट स्थापित करने में जुटी हुई थीं, तब उनका सामना प्रतिस्पर्धी से हुआ।  उनके प्रतिस्पर्धी के बिज़नेस का कांसेप्ट लगभग उनके कांसेप्ट जैसा ही था।  यहां तक की दोनों का वेबसाइट डिज़ाइन भी काफी कुछ एक सा बन गया था।  लेखक पर तो जैसे गाज ही गिर गई। वे इस बात से इतना घबरा गईं कि उन्होंने लगभग हार ही मान ली। लेकिन लगभग एक महीने तक बिज़नेस चलाने के बाद उन्हें महसूस हुआ कि उन्हें अपने प्रतिस्पर्धी जैसा नहीं बनना - उनके उसूल, प्राथमिकताएं और क्लाइंट एकदम अलग हैं। लेकिन इस धारणा ने कि बिज़नेस शुरू करने के लिए आपका आईडिया पूरी  तरह से नया होना चाहिए, उनके बिज़नेस को शुरू होने से पहले ही लगभग ख़त्म ही कर दिया था।  यहां पर समझने वाली बात यही है कि एक बहुत ही शानदार आईडिया सोच लेना ही ओरिजिनल होने का इकलौता तरीका नहीं है।  

ऑरिजनैलिटी को अक्सर ब्रिलियंट या पहले कभी न सुने हुए आईडिया तक सीमित कर दिया जाता है। ये बार इतना ऊंचा है कि इसे क्लियर कर पाना लगभग नामुमकिन है। अच्छी बात ये है कि आपको ओरिजिनल होने के लिए अगला स्टीव जॉब्स बनने की ज़रूरत नहीं है। ओरिजिनल होने का एक तरीका ये भी है कि चक्के को दोबारा ईजाद करने की जगह, पहले से मौजूद आइडियाज पर अपना स्टाम्प लगा दिया जाए।  सोचिये कि आपको पता चले कि जो आप करना चाहते हैं, वो पहले से ही कोई कर रहा है।  अब अगर एक जादू हो जाए और उनका बिज़नेस आपको मिल जाए, तो क्या आप उसे ऐसे ही चलाएंगे, जैसे वे चला रहे थे? शायद नहीं - आप उसे अपने अंदाज़ में चलाएंगे, और इसी वजह से उसमें आपकी छाप नज़र आएगी।  

ओरिजिनल होने के लिए कनेक्शंस ढूंढ लेना भी एक तरीका है। आईपॉड का उदाहरण लें। जब ये पहली दफा लॉन्च हुआ तो कस्टमर्स को इसके यूनिक क्लिक-व्हील इंटरफ़ेस प्यार ही हो गया।  हालांकि ये नया आईडिया नहीं था।  दरअसल एप्पल के मार्केटिंग के व्यक्ति फिल स्किलर ने इस तरह का इंटरफ़ेस 1983 के हेवलेट पैकर्ड वर्कस्टेशन में देखा था।  वहां से प्रेरणा लेकर इसे आईपॉड के डिज़ाइन में डाला गया। यानि क्लिक व्हील एक पुराना आईडिया था जो इस बात का इंतज़ार कर रहा था कि कब कोई उसपर से धूल झाड़कर उसका कहीं और इस्तेमाल कर ले।  

इसलिए अगर आप ओरिजिनल बनना चाहते हैं, तो एप्पल से सीख लेकर अपनी क्यूरोसिटी को बनाए रखें। ऐसी किताबें पढ़ें, जो आपके क्षेत्र में कोई न पढता हो।  आपके आसपास जो भी घट रहा हो, उसपर गौर करें।  इसके बाद अपनी ज़िंदगी के दो अलग पहलुओं में कनेक्शन ढूंढने की कोशिश करें।  यह एक बहुत ही शानदार तरीका है, अपनी ऑरिजनैलिटी को अलग रूप देने का।  

लेकिन याद रखिये - ऑरिजनैलिटी सिर्फ आइडियाज के बारे में नहीं है।  आप खुद को ओरिजिनल कम्युनिकेशन के ज़रिये भी अलग दर्शा सकते हैं। अपना एक स्टाइल डेवेलप करना आसान है, लेकिन उसमें पारंगत होने के लिए प्रैक्टिस बहुत ज़रूरी है।  किसी भी फ्री वेबसाइट पर जाकर अपना एक ब्लॉग बनाइए। अब यहां पर हफ्ते में दो बार उस बारे में लिखिए, जो आपको बेहद पसंद है और उसे पब्लिश कर दीजिए। ये तरीका आपकी थॉट प्रोसेस को क्लियर करेगा। वक़्त के साथ साथ आप खुद के लिए एक क्लियर मैसेज ढूंढ पाएंगे कि आपको क्या और कैसे करना है।  

फ्री-रेंज बिज़नेस के चार मुख्य प्रकार हैं।

अब तक, हम लोग फ्री-रेंज माइंडसेट के बेसिक्स देख चुके हैं।  यहीं से अगला सवाल पैदा होता है - जो फ्री-रेंज होते हैं, वो दरअसल रोज़गार के लिए क्या करते हैं? लेखक को जो सबसे कॉमन आईडिया लोगों से सुनने को मिलता है, वो किताब की दुकान या कैफ़े शुरू करना होता है। लेखक का कहना है कि इसमें कोई बुराई नहीं है अगर वाकई ये आपका सपना है, मगर एक फ्री-रेंज ह्यूमन के तौर पर पैसा कमाने के कई आसान रास्ते भी मौजूद हैं।  

यहां पर ये समझने की ज़रूरत है कि: फ्री-रेंज बिज़नेस के चार मुख्य प्रकार हैं।  

जब लोग एक प्यारा सा छोटा सा कैफ़े खोलने का सपना देखते हैं, तो वे अक्सर ये नहीं सोच रहे होते हैं कि वे असल में एक छोटा बिजनस चलाने की सोच रहे हैं। वे सिर्फ उसके साथ आने वाली ज़िंदगी के बारे में सोच रहे होते हैं।  इसे अगर अलग तरीके से कहा जाए तो जो उन्हें चाहिए वो है आज़ादी और अपने हिसाब से काम करने की काबिलियत और अपनी प्राथमिकताएं खुद तय करना।  

लेकिन यहां मुद्दा ये है कि कैफ़े या दुकान खोलना बहुत ही अच्छा फ्री-रेंज बिज़नेस नहीं है।  इनके लिए एक बड़े स्टार्टअप कैपिटल की ज़रूरत होगी और इनके साथ एक्सपेरिमेंट करना बहुत मुश्किल काम होगा।  सबसे ज़रूरी बात, इनसे पैसा कमाना बहुत ही मुश्किल होगा।  ऐसा इसलिए क्योंकि आपको किराया व अन्य ज़रूरत की चीज़ों जैसे निश्चित खर्चों के बारे में पहले सोचना होगा - और इनका इंतज़ाम न होना ही आपके बिजनस की असफलता का सबसे बड़ा कारण होगा।  सो फ्री-रेंज काम का पहला नियम ये रहा: खर्चों को न्यूनतम रखें।  

इससे कई और बहुत सारे विकल्प खुलते हैं। सर्विस सेक्टर के बारे में सोचें।  ये ऐसा कोई भी काम हो सकता है, जहां आपको आपके समय के लिए भुगतान किया जा रहा हो - वेब डिज़ाइनर, थेरेपिस्ट या फ्रीलान्स राइटर जैसे किसी काम के बारे में सोचिये।  सर्विसेज का सबसे बड़ा फायदा ये है कि आप ऐसा काम अभी के अभी शुरू कर सकते हैं, अगर आपके पास कौशल है। इसमें आपको शायद बहुत ज़्यादा निवेश करने की भी ज़रूरत नहीं होगी। इसका नकारात्मक पहलु यही है कि ये टाइम बाउंड है। आप महीने में उतने की क्लाइंट ले सकेंगे जितना समय आप दे पाएं और इससे आपकी कमाई सीमित हो जाती है।  

एक अन्य विकल्प है कि आप अप्रत्यक्ष या वर्चुअल सामान बेचें -  इनमें ऐसी चीज़ें शामिल हैं जिसमें इन्फॉर्मेशन हो, जैसे कि इ-बुक, गाइड या ऑनलाइन कोर्सेज। सर्विसेज से अलग इसमें आपकी कमाई सीमित नहीं होगी। एक बार आप प्रोडक्ट बना लेंगे तो उसे बार बार बेच सकते हैं। मगर इसके लिए आपको बाजार की काफी अच्छी समझ होनी चाहिए, ताकि आप ऐसा प्रोडक्ट बना पाएं जिसे बेचा जा सके। 

आप प्रत्यक्ष चीज़ें बनाकर भी बेच सकते हैं जैसे हाथ से बुनी हुई चीज़ें या स्टाल पर बेचा जाने वाला खाना।  हालांकि ये इन्हें बनाने के लिए समय और सामान दोनों की ही काफी ज़्यादा ज़रूरत है, इसलिए ये एक ऐसा विकल्प है जिसे आपको टालना ही चाहिए। हां अगर आपको क्रिएटिव कामों में बहुत ही ज़्यादा दिलचस्पी हो तो अलग बात है।   

एडवरटाइजिंग आखिरी विकल्प है - आय का एक तरीका ये भी है कि अपने यूट्यूब चैनल या ब्लॉग पर आप विज्ञापन लगाएं। ये एक आसान विकल्प ज़रूर है, लेकिन अगर आप वायरल कंटेंट नियमित रूप से ना बना रहे हों, तो इसे साइड इनकम के तौर पर ही रहने दें।

आपको कंपनी को चलाने के लिए एक कॉम्प्लेक्स बिज़नेस प्लान की ज़रूरत नहीं है।
क्या अब तक की बातों ने आपको नौकरी छोड़कर अपना काम शुरू करने के लिए प्रेरित किया है? बढ़िया, अब आपको सिर्फ एक शानदार बिज़नेस प्लान बनाने की ज़रूरत है, है ना? मगर ये पूरा सच नहीं है - सच ये है कि नया काम शुरू करने के लिए डिटेल प्लानिंग की ज़रूरत नहीं होती। 

बिजनस एक्सपर्ट जैसन फ्राइड और डेविड हेनेमिएर हैनसन से समझें।  जैसा कि उन्होंने अपनी 2010 में लिखी किताब रीवर्क में ज़िक्र किया था, लॉन्ग टर्म बिज़नेस प्लानिंग "कल्पना" से थोड़ा ही आगे की बात है।  जब बहुत सारे फैक्टर्स दांव पर हों तो योजनाएं भविष्यवाणी की जगह अनुमान बनकर रह जाती हैं - ये प्लानिंग भले ही स्ट्रेटेजिक हो लेकिन होती अनुमान ही है।दरअसल किसी काम को करते वक़्त ही उसके बारे में सारी जानकारी मिल पाती है, उस काम को शुरू करने से पहले नहीं।  मगर जहां तक प्लानिंग की बात है, इसे काम शुरू करने से पहले तैयार किया जाता है और ये निर्णय लेने का सबसे ख़राब समय होता है!

किसी भी सूरत में बिज़नेस प्लानिंग भविष्य के लिए असली गाइड नहीं होतीं - बल्कि उनकी रूपरेखा इसलिए तैयार की जाती है ताकि इन्वेस्टर बिजनस को समझकर उसमें इन्वेस्ट कर सकें। लेकिन क्या आपको याद है कि हमने पिछले पाठ में क्या कहा था? फ्री-रेंज बिज़नेस का पहला नियम यही है कि खर्चे न्यूनतम हों।  अगर आपको निवेश की ज़रूरत नहीं है, तो आपको डिटेल बिज़नेस प्लान की भी ज़रूरत नहीं होगी। इसका मतलब ये हुआ कि आप बिना तैयारी के मैदान में उतर रहे हैं। बिलकुल, मगर यही तो बात है।  प्लानिंग पर कम से कम समय खर्च करने का मतलब काम करने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा समय मिलना। ये बात हम ग्रुपऑन, जो कि इक्कीसवी सदी के सबसे सफलतम व्यवसायों में से एक है, के संस्थापक एंड्रू मेसन से पूछते हैं। 

मेसन का पहला बिज़नेस पूरी तरह से ठप्प हो गया था, क्योंकि वे उस वक़्त प्लानिंग को लेकर काफी ऑब्सेस्ड थे।  अपने प्रोडक्ट को लॉन्च करके रियल कस्टमर्स से  प्रोडक्ट का फीडबैक लेने की जगह मेसन ने एक साल तक प्रोडक्ट में इस अनुमान के बिना पर बदलाव किये कि लोगों को क्या चाहिए होगा। लेकिन ग्रुपऑन की बात अलग रही।  इस बार प्लानिंग में समय गंवाने की जगह उन्होंने प्रोडक्ट को जल्द से जल्द लॉन्च कर दिया।  

यही आपको भी करना होगा।  लोगों की ज़रूरतों और ख्वाहिशों को नोट करने में वक़्त बर्बाद करने की जगह एक छोटा सा प्रोडक्ट नमूने के तौर पर लोगों के सामने पेश करें।  अपने दोस्तों पर ये प्रयोग आज़माएं या अनजान लोगों को मीटअप डॉट कॉम जैसी वेबसाइट पर तलाश लें।  जैसे ही प्रोडक्ट लॉन्च हुआ तो फिर आप बिज़नेस शुरू करने की ख्वाहिश रखने वाले व्यक्ति नहीं रह जाएंगे, बल्कि आप बिजनेसमैन बन चुके होंगे।  

आपको सफल होने के लिए सबसे अपील करने की ज़रूरत नहीं। 

इस करियर-केज वर्ल्ड में आप तब मुसीबत में हैं अगर लोगों को वो अच्छा ना लगे जो आप कह रहे हैं।  ज़्यादातर दफ्तरों में यही नियम काम करते हैं कि आप शांति बनाए रखें, वादविवाद से बचें, दिन किसी तरह निकालें, और किसी तरह एक महीना निकाल लें, ताकि अंत में आपको अपना पे-चेक मिल जाए।  लेकिन फ्री-रेंज ह्यूमन होना अलग है।  आज़ाद होने के बहुत सारे फायदों में से एक ये भी है कि आप अपनी आय  के  नुकसान की चिंता किए बिना ही वो सब कह सकते हैं, जो आप असल में कहना चाहते हैं।

बिज़नेस शुरू करते वक़्त केवल दो बातें हो सकती हैं। पहली ये कि क्लाइंट को लुभाने तो आपको अपने और अपने व्यवसाय के बारे में स्टेटमेंट देना होगा।  इसमें जोखिम ये है कि अगर आपने अपने दिल की बात यहां कही, तो हो सकता है कि लोगों को ये स्टेटमेंट पसंद ना आए। इससे आपको पैसा कमाने के लिए संघर्ष करना होगा। दूसरी बात ये हो सकती है ये कि आप स्टेटमेंट में ऐसी बातें कहें जो लोगों को तो बहुत पसंद आए, मगर इससे आप बेहद दुखी होंगे। आख़िरकार, इससे ज़्यादा बुरा कुछ नहीं हो सकता जब आप खुद को वैसा बताएं जैसे आप नहीं हैं।  किस्मत से यहां एक विकल्प मौजूद है। 

जब आप वो कहते हैं, जो आप मानते हैं, तो आप भले ही कुछ लोगों को नाराज़ कर रहे हों - मगर आप औरों को खुद से प्यार करने की वजह भी दे रहे होते हैं।  अपने पैरों पर खड़े होने का रास्ता यही है कि आप उन दूसरे किस्म के लोगों पर भरोसा करें और सिर्फ और सिर्फ उनसे ही बात करें। अपनी असली आवाज़ उनतक पहुचाएं। मगर क्या ये प्रैक्टिकल है? बैनी लेविस से जानते हैं जो लैंग्वेज लर्निंग सर्विस, फ़्लूएंट इन थ्री मंथ्स शुरू करने वाले मास्टरमाइंड हैं। देखते हैं लेविस की सोच ने उनके बिज़नेस को दूसरों से अलग कैसे किया। लेविस ऑनलाइन लैंग्वेज लर्निंग कम्युनिटी में थोड़े से अलहदा किस्म के व्यक्ति माने जाते हैं।  अन्य भाषाविदों के मुकाबले लेविस को इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं है कि दूसरों को किसी भाषा में एकदम एक्सपर्ट बना दिया जाए। उनका नजरिया है कि भाषा कम्युनिकेशन का एक जरिया है जिससे दूसरों को समझना और उन्हें अपनी बात समझा पाने का रास्ता खुलता है। अगर आप कोई भाषा टूटी फूटी भी बोल लेंगे, तो भी ऐसा करना मुमकिन है।  लेविस का दावा है कि वे आपको इतना कौशल तीन महीने में सिखा देंगे।

जैसा की लेविस मानते हैं, इतना सीख लो कि अपना रास्ता बनाकर जल्द से जल्द निकल जाओ ताकि सफर का पूरा आनंद ले सको। मगर ये बात ट्रेडिशनल लैंग्वेज एक्सपर्ट्स को पसंद नहीं। लेकिन कहीं न कहीं यही तकरार लेविस के लिए फायदेमंद है।  जितने भी ब्लॉगर्स जो लेविस को पसंद नहीं करते, आखिर में उनके तरीकों और उनके बारे में ही लिखते हुए पाए जाते हैं। अगर उनका रिव्यु नेगेटिव भी हो तब भी लेविस के साइट को ट्रैफिक तो मिलता ही है।  जैसा कि लेविस कहते हैं, "उन्होंने मुझे नापसंद करके मेरी रीडरशिप को बढ़ाने में मदद की है।" 

इसका परिणाम ये है कि लेविस के पास दुनिया के सबसे प्रचलित लैंग्वेज लर्निंग ब्लॉग्स में से एक ब्लॉग है, जिससे उनकी आय भी होती है। ये आपको दर्शाता है कि किस तरह अपनी असली मान्यताओं पर टिके रहने के बावजूद आप तरक्की कर सकते हैं।

कुल मिलाकर
अकेले काम करने और अपने मन का काम करने को अमूमन खतरे की तरह ही लिया जाता है और खर्चे पूरे करने के लिहाज़ से इसे सही भी नहीं माना जाता।  लेकिन ये विचार तभी ठीक लगता है जब आपकी 9 से 5 की नौकरी आपको सच में एक सुरक्षित ज़िंदगी दे रही हो। आज की अर्थव्यवस्था में तो ये लगभग नामुमकिन है। इसलिए यही बात सही लगती है की एक फ्री-रेंज ह्यूमन बनकर खुद का बिज़नेस किया जाए।  ऐसा करने के लिए हालांकि आपको सबसे पहले ये देखना होगा की आप ज़िंदगी में सच में क्या करना चाहते हैं, अपनी छुपी हुई खूबियों को तलाशना होगा, और ऑरिजनैलिटी से जुड़े सामान्य भ्रमों को तोडना होगा।  अब अगला कदम? गैरज़रूरी प्लानिंग के चक्कर में ना पड़ें, बदनाम होने से बिलकुल न घबराएं और सीधे काम शुरू कर दें!

 

क्या करें?

पेरफ़ेक्शनिज़्म के जाल में ना फंसें। 

"क्या हुआ अगर कुछ गड़बड़ हो गई तो?" खुद का काम शुरू करना डरावना हो सकता है और बहुत मुमकिन है कि इस तरह के सवालों की बाड़ आपके सामने आ जाए।  इसलिए इसे अलग एंगल से देखें।  सोचें कि अपनी ज़िंदगी के बेहतरीन साल किसी ऐसे काम में लगाकर, जो सही ना लगता हो, आप फ़िलहाल कैसा महसूस कर रहे हैं? फिर खुद से पूछें, कुछ अलग करने की कोशिश ना करने कीआप क्या कीमत चुका रहे हैं? सिर्फ एक ही चीज़ है जिसमें किसी प्रकार का कोई भी खतरा शामिल नहीं है, और वो है कुछ ना करना।  इसीलिए ये बहुत ज़रूरी है की अपनी गलतियों पर अटके ना रहें।  याद रखें, ये एक प्रयोग है और आप कोई भी पूँजी इसमें दांव पर नहीं लगा रहे हैं। ये समझ लें कि अबसे गलतियां केवल ये सीखने का एक तरीका हैं कि क्या चीज़ काम करेगी और क्या नहीं।

येबुक एप पर आप सुन रहे थे Be A Free Range Humanby Marianne Cantwell

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