Barbarians at the Gate

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Barbarians at the Gate

Bryan Burrough, John Helyar
The Fall of RJR Nabisco

दो लफ्ज़ों में 
साल 1989 में रिलीज़ हुई किताब ‘Barbarians at the Gate’ यूएस की हिस्ट्री में हुई सबसे बड़ी कॉर्पोरेट डील की कहानी बताती है. एक सी.ई.ओ किसी भी कंपनी को किस कदर तक नुकसान पहुंचा सकता है? एक सीईओ किसी कंपनी को गलत तरीके से चलाने, बहुत अधिक या बहुत कम विविधता लाने, या गलत समय पर विस्तार करने से कई तरह से नुकसान पहुंचा सकता है. कभी-कभी, नुकसान जानबूझकर किया जाता है और इसका असर बहुत भयानक होता है.  ‘आरजेआर नाबिस्को’ का मामला 1980 के दशक में कॉरपोरेट क्लेप्टोक्रेसी का एक प्रमुख उदाहरण है. पर्दे के पीछे की कहानी को अब-क्लासिक बिजनेस बुक, “बारबेरियन्स एट द गेट: द फॉल ऑफ आरजेआर नाबिस्को” में ब्रायन बरो और जॉन हेलियर द्वारा दोबारा बताया गया है.

  ये किताब किसके लिए है? 
-ऐसा कोई भी जिसे फाइनेंस और बिजनेस में इंटरेस्ट हो 
-किसी भी फील्ड के स्टूडेंट्स 
-ऐसा कोई भी जिसे नई चीज़ों के बारे में जानना अच्छा लगता हो 

लेखक के बारे में 
आपको बता दें कि इस किताब को Bryan Burrough, John Helyarने मिलकर लिखा है. ये दोनों पेशे से इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट रहे हैं. इन्होंने RJR Nabisco’sbuyout की स्टोरी को कवर भी किया था. इसलिए आप एक लिसनर के तौर पर उम्मीद कर सकते हैं कि इस किताब में फैक्ट्स को सही ढ़ंग से पेश किया गया होगा.

इस डील की पहली तस्वीर इसी चैप्टर में पता चलेगी
1980 के दशक में, तंबाकू की दिग्गज कंपनी आर.जे. रेनॉल्ड्स अपने भविष्य को लेकर निराशा में थी. यह एक प्रोड्क्शन वाली कंपनी थी, और इसका प्रोडक्ट सिगरेट था. इस किताब में एक ऐसी कॉर्पोरेट डील के बारे में बात होगी, जिसको यूएस हिस्ट्री की सबसे बड़ी कॉर्पोरेट डील में से एक माना जाता है. इसलिए अगर आपका इंटरेस्ट इतिहास के पन्नों को बेह्तर तरीके से जानने में है. तो ये किताब आपके लिए ही लिखी गई है. 

हमें इन चैप्टर्स में और भी बहुत कुछ सीखने को मिलेगा 

-लेवरेज buy out क्या होता है? 

- RJR Nabisco’sbuyout क्या था?

तो चलिए शुरू करते हैं!

क्या आपको leveraged buyout या फिर LBO के बारे में मालुम है? अगर मालुम है तो आपको बता दें कि 1980 के दशक में इस शब्द को गंदा समझा जाता था. इस शब्द को लोग कॉर्पोरेट लालच के तौर पर यूज़ किया करते थे. लेकिन इस शब्द का इन्वेंशन केवल फैमिली की वेल्थ को बचाने के लिए किया जाता था. 

ये लेन-देन चतुर वकीलों द्वारा तैयार किए गए थे जो अमीरों की मदद करने के तरीकों की तलाश में थे. जब भी व्यवसाय के मालिक संपत्ति टैक्स से बचना चाहते थे तो उनके वकीलों द्वारा इस तकनीक का उपयोग किया जाता था. ये टैक्स अपने बिजनेस को अगली पीढ़ी को ट्रांसफर करने के दौरान सरकार को दिया जाता था. 

आपको बता दें कि LBO का कांसेप्ट सबसे पहले 1960 के दशक में देखने को मिला था. इसके पीछे के मकसद के बारे में हम लोगों ने पहले ही चर्चा कर ली है. उस दौरान कुछ ऐसे नियम थे, जिसकी वजह से बड़े बिजनेस ओनर्स को काफी टैक्स देना पड़ता था. जब भी वो अपने बिजनेस से रिटायर होना चाहते थे, या फिर बिजनेस को अगली पीढ़ी को सौपना चाहते थे. उन्हें सरकार को काफी ज्यादा टैक्स देना पड़ता था. 

फिर उन्होंने बड़े-बड़े वकीलों से बात की, वकीलों के सामने टैक्स एक चुनौती की तरह खड़ा था. तब उन्होंने leveraged buyout या फिर LBO की शुरुआत की.. 

आपको बता दें कि उस वकील का नाम JerryKohlberg था, जिन्होंने पहली बार leveraged buyout को एक सॉल्यूशन के तौर पर पेश किया था.

1980 के दशक में ऐसा क्या हुआ? जिसकी वजह से LBO मनी मेकिंग मशीन बन गया
1982 का समय चल रहा था, ये वही दौर था जब गिब्सन ग्रीटिंग्स नामक एक कंपनी को एक निवेश समूह को $80 मिलियन में बेचा गया था. करीब 1.5 साल ही बीते रहे होंगे, उस फर्म को पब्लिक कर दिया गया. और उसे $290 million में बेचा गया था. 

इस डील के बाद primary individual investor को बहुत ज्यादा फायदा हुआ था. जिसकी वजह से LBO का क्रेज़ ट्रेंड में पहुँच गया था. उस दौर में ऐसा कोई इन्वेस्टर नहीं बचा था जिसे LBO में हाँथ ना आजमाना रहा हो. 

फिर 1983 आते-आते LBO की डील 10 गुना ज्यादा बढ़ चुकी थी. 

अब सवाल यही उठता है कि आखिर LBO की डील मनी मेकिंग मशीन कैसे बन गई थी? 

इसके पीछे 2 मेन फैक्टर्स थे, पहला फैक्टर US Internal Revenue Code था. जिसकी वजह से सरकार ने इंटरेस्ट टैक्स पर तो कटौती की थी लेकिन डिविडेंड में नहीं.. जिसकी वजह कम्पनियों को मोटिवेशन मिला था कि वो उधार लेकर भी इंटरेस्ट भरने लगीं थीं. 

दूसरा फैक्टर, उस दौर में जंक बांड्स को इंट्रोड्यूस किया गया था. जिसकी वजह से कम्पनियों का रुझान LBO की डील्स में बढ़ गया था. 

अब बात ‘Ross Johnson’ की होगी, बिजनेस लीडर्स को इनकी कहानी जाननी चाहिए
साल 1950 का दशक था, एक आम इंसान ‘Ross Johnson’ ने कैनेडियन बिजनेस की दुनिया में कदम रखा. बिजनेस की दुनिया में उनकी एंट्री कोई फाईव स्टार नहीं थी. बल्कि उन्होंने बिजनेस की दुनिया में बिल्कुल निचले तबके से कदम रखा था. 

लेकिन आगे चलकर उन्हें न्यू ब्रीड ऑफ़ बिजनेसमैन के तौर पर याद किया जाता था.वो एक ऐसे बिजनेसमैन थे, जिन्हें एक फर्म से दूसरे फर्म में स्विच करने की उत्सुकता रहती थी. ‘Ross Johnson’ को इन्वेस्टर्स से अलायन्स बनाने में भी मज़ा आता था. 

इन सभी पहलुओं के साथ ‘Ross Johnson’ की पर्सनालिटी एक ज़िन्दादिल इंसान की तरह थी. जिसे अच्छे से अच्छे रेस्तरां का एक्सपीरियंस लेना और बड़े-बड़े सेलेब्रीटीज़ से मिलना बहुत पसंद था. इनशॉर्ट ‘Ross Johnson’ लग्ज़री लाइफ एन्जॉय करने के शौक़ीन थे. 

कई रिपोर्ट्स तो यहाँ तक कहती हैं कि ‘Ross Johnson’ के संबंध सेलेब्रीटीज़ से बहुत अच्छे थे. कभी-कभी वो अपनी कम्पनियों का प्रचार भी दोस्ती-यारी में ही करवा लिया करते थे. आप इसके एग्जाम्पल के तौर पर former American Football player Frank Gifford और मशहूर टेनिस खिलाड़ी Rod Laver को भी याद कर सकते हैं. 

हम ‘Ross Johnson’ की लाइफ से बिजनेस के गुण सीख सकते हैं. 

इसके लिए आप तीन तरीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं-

पहला- सबसे पहले अपने गोल्स की लिस्ट तैयार करिए, इसके बाद ये ओब्सर्व करने की कोशिश करिए कि किस गोल के लिए और कितने समय के लिए, आपको दूसरे लोगों की मदद की ज़रूरत पड़ेगी. इससे आपको पता चलेगा कि आपके अंदर कितनी लीडरशिप क्वालिटी है? याद रखें कि लीडरशिप एबिलिटी का सीधा असर आपके काम और दिमाग पर पड़ता है. 

दूसरा- खुद की लीडरशिप एबिलिटी का पता लगाने की कोशिश करिए. अब समय आ गया है कि दूसरों को जज करना बंद करिए और खुद की काबिलियत को जांचने की शुरुआत करिए. 

तीसरा- दूसरों से कहिये कि आपकी लीडरशिप क्वालिटी को रेटिंग दें, दूसरों की मदद से आप खुद को बेहतरीन बना सकते हैं. इस तरह की एक्सरसाइज से आपको पता चल जाएगा कि किन एरियाज़ में काम करने की ज़रूरत है.

जॉनसन की पॉवर बढ़ने की कहानी
आपको बता दें कि इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जॉनसन को पेसकेट के साथ अपने संबंधों से लाभ हुआ था. जॉनसन के लिए बड़ा मौका 1976 में आया, जब उन्हें कनाडा की पैकेज्ड गुड्स कंपनी का सीईओ बनने का मौका मिला था. 

इस भूमिका में, जॉनसन का लिविंग स्टैण्डर्ड बहुत बेहतर हो चुका था. लेकिन उसका विज़न इस उपलब्धि से भी आगे का था. इसलिए जॉनसन ने बहुत बड़ी कंपनी के साथ मर्जर की कोशिशें शुरू कर दी थी. उस कंपनी का नाम ‘Nabisco’ था. अंततः,नाबिस्को ने तकनीकी रूप से स्टैंडर्ड ब्रांड्स को अपने कब्जे में ले लिया. अब आगे कुछ अलग होने वाला था. 

स्टैण्डर्ड ब्रांड के साथ साझेदारी से पहले ‘Nabisco’ बहुत स्थापित ब्रांड हुआ करता था. कंपनी के कुछ प्रोटोकॉल्स होते थे, जिन प्रोटोकॉल्स से वो कभी भी समझौता नहीं कर सकती थी. जैसे कि ‘Nabisco’ में काम करने वालों को कभी भी अपनी नौकरी जाने का डर नहीं रहता था. वो लोग कभी शाम को 5 बजे के बाद ऑफिस का काम नहीं किया करते थे. 

लेकिन जब ‘Nabisco’ ने स्टैण्डर्ड ब्रांड के साथ मर्जिंग की, तो चीज़ें अपने आप बदलने लगीं.. जॉनसन और ‘Nabisco’ के प्रोटोकॉल्स के बीच में क्लैश होने लगे.. स्टैण्डर्ड ब्रांड्स में काम करने वालों को एलीट कंपनी की पॉलिसी समझ में नहीं आ रही थी. दोनों ही कम्पनीज़ में काम करने वाले लोग एक दूसरे के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे थे. जिसका असर कंपनी की प्रोडक्टिविटी पर भी साफ़ देखने को मिलने लगा था. 

धीरे-धीरे वो हुआ जिसका अंदाज़ा ‘Nabisco’ के मालिकों को बिल्कुल नहीं था. ‘Nabisco’ कंपनी के अंदर जॉनसन की अप्रोच नज़र आने लगी थी. इसी का असर ये हुआ था कि कंपनी ने RJR Reynolds के मर्जिंग का फैसला कर लिया था. बता दें कि RJR Reynolds उस दौर की सबसे बड़ी tobacco कंपनी हुआ करती थी. उस समय RJR Reynolds अमेरिका की सबसे सफल सिगरेट कंपनी भी हुआ करती थी. 

इसी कंपनी के फाउंडर्स ने सबसे पहले प्री-रोल्ड सिगरेट्स को लॉन्च किया था. इन्होने इस फील्ड में कई इनोवेशन किए थे. यही वजह थी कि इस मार्केट में कंपनी एक तरफा राज़ किया करती थी. 

कई लोगों के मन में सवाल था कि आखिर इन दोनों ब्रांड्स की मर्जिंग क्यों हुई थी? इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण अवसर को फायदे में बदलना था. दोनों ही कम्पनियां मार्केट का फायदा उठाना चाहती थीं. हालांकि, उत्तरी अमेरिकी कंपनी, नाबिस्को के आकर्षक व्यवहार का विरोध भी RJR कंपनी के खेमे में होना शुरू हो गया था. उदाहरण के लिए आर.जे.आर में काम करने वालों ने लाइफ में कभी भी लग्ज़री ट्रांसपोर्टेशन नहीं देखी थी. लेकिन इस तरह की ट्रेवलिंग नाबिस्को के कर्मचारियों के लिए आम बात थी.

एक युवा वॉलस्ट्रीट ने एलबीओ का नेचर बदल दिया
उस समय एक ऐसी हवा चल रही थी कि किसी भी बिजनेस की बुनियाद को हिलाने के लिए Ross Johnson का नाम ही काफी था. उस दौर में उन्हें ‘shaking up businesses’ के नाम से भी जाना जाता था. लेकिन अब सीन में एक नया बच्चा आने वाला था जो कि Ross Johnson की बढ़ती हुई ताकत को चुनौती देने वाला था. 

उस इंसान का नाम Henry Kravis, था, जिसनें कई मिलियन सिर्फ और सिर्फ एलबीओ की मदद से कमाए थे. वहीं रॉस का एक अलग दृष्टिकोण था जिसकी वजह से उसे एलबीओ के कांसेप्ट को समझने में सालों लग गए. 

अपने कैरियर में Henry Kravis ने वॉल स्ट्रीट बैंकर के तौर पर काम किया था. लेकिन Henry Kravis की लाइफ में टर्निंग पॉइंट तब आया जब उन्हें एक स्टेशनरी कंपनी का सी.ई.ओ बनाया गया. लेकिन प्रेशर की वजह से उन्होंने अपने कजिन GeorgeRoberts के साथ मिलकर कंपनी को अलविदा कह दिया. 

इसके बाद साल 1976 में Henry Kravis, GeorgeRoberts और Jerry Kohlberg ने मिलकर एक private equity company बनाई, जिसका नाम उन्होंने Kohlberg Kravis Roberts (KKR) रखा. 

इसी फर्म की मदद से Henry Kravis ने एलबीओ की फील्ड में बदलाव में बड़ा योगदान निभाया था. जहाँ पहले एलबीओ का काम टैक्स वसूली के इर्द गिर्द हुआ करता था. इन्होने एलबीओ को कॉर्पोरेट टेक ओवर का वीपन बना दिया था.

जब रॉस जॉनसन एलबीओ गेम में उतरे, तो उनके लालच के कारण विपत्ति आई
एलबीओ की दुनिया में लोग ‘Kravis cousins’ को प्रोफेशनल के तौर पर याद करते हैं. ये माना जाता था कि एलबीओ की फील्ड में भारी बदलाव इन्हीं की वजह से आया था. इन लोगों ने एलबीओ की मदद से काफी ज्यादा पैसा भी कमाया था. जिसकी वजह से ऐसा दौर आ चुका था कि ज्यादातर लोग एलबीओ की फील्ड में उतरना चाहते थे. 

इसी जुगाड़ में ‘Ross Johnson’ भी था, वो जानता था कि अगर अभी वो एलबीओ की दुनिया में नहीं आया, तो वो पैसा कमाने का बहुत बड़ा मौका गवा देगा. उसे ये भी पता था कि एलबीओ के रूप में उसके सामने एक बहुत बड़ा अवसर खड़ा हुआ है. जिसे वो आसानी से नहीं गवा सकता है. 

लेकिन जॉनसन जानता था कि उसका लालच किसी भी गंभीर खिलाड़ी को आरजेआर नाबिस्को, केकेआर को छूने से रोक सकता है. बता दें कि आरजेआर नाबिस्को उस दौर की नामी कंपनी बन रही थी. इसलिए उसने एलबीओ की दुनिया में एक आउटसाइडर इन्वेस्टमेंट बैंकिंग कंपनी ‘Shearson’की मदद लेकर कदम रखने का फैसला किया. 

अब उसका ये कदम पूरी इंडस्ट्री के लिए सही साबित होने वाला था या फिर ग़लत? ये तो आने वाला वक्त ही बताता.. लेकिन जॉनसन अपने इस कदम से काफी ज्यादा खुश था. 

अब कुछ बातें ‘Shearson’कंपनी के बारे में भी जान लेनी ज़रूरी है. यह फर्म एलबीओ पाई का अपना हिस्सा  छीनने के लिए बेताब थी, मतलब साफ़ था कि इस कंपनी को भी एलबीओ में जगह बनानी थी. और जॉनसन को भी इस फील्ड का खिलाड़ी बनना था. इसलिए इन दोनों की दोस्ती हुई थी. 

लेकिन जॉनसन और शियरसन के बीच समझौता कोई आम समझौता नहीं था. ये डील काफी अजीबोग़रीब थी. डील में ये तय किया गया था कि टोटल डील का बहुत बड़ा हिस्सा जॉनसन के पास जाएगा. सभी को पता है कि इस तरह की असामान्य डील का फ्यूचर स्टेबल नहीं रहता है. 

हुआ भी कुछ ऐसा ही था, जॉनसन के पास एलबीओ की फील्ड का एक्सपीरियंस नहीं था. जिसकी वजह से सीक्रेट इनफार्मेशन लीक हो गई थी और इसके विनाशकारी रिजल्ट देखने को मिले थे.

जॉनसन ने बिडिंग में भी चालाकी दिखाने की कोशिश की थी
जॉनसन अपने अलग ही अंदाज़ में बिडिंग करना चाहता था. लेकिन उसे ये नहीं पता था कि उसका अंदाज़ उसी के ऊपर भारी पड़ने लगेगा. चलिए सबसे पहले जॉनसन के अंदाज़ को समझने की कोशिश करते हैं. 

जैसा कि हमें मालुम है कि जॉनसन और ‘Shearson’मिलकर एलबीओ की बिडिंग करने वाले थे. दोनों ही पक्ष की इच्छा ज्यादा अमाउंट बिड करने की थी. वो चाहते थे कि RJR Nabisco,  के टेक ओवर के लिए ऑफर प्राइज़ 75 डॉलर प्रति शेयर दिया जाए. ये प्राइज़ काफी ज्यादा था क्योंकि कभी भी इस कंपनी का प्राइज़ इतना नहीं लगा था. 

इस हिसाब से कंपनी की वैल्यूएशन $17.6 billion, बन रही थी. कंपनी को टेक ओवर करने के लिए तो इतना पैसा कोई भी बैंक देने को भी तैयार नहीं था. ये ऑफर प्राइज़ एक्चुअल कंपनी वैल्यूएशन का डबल अमाउंट था. 

अब सवाल ये भी उठ रहा था कि क्या जॉनसन और ‘Shearson’की ये स्ट्रेटजी वाकई में बेहतर साबित होने वाली थी? 

उस दौर में किसी को अंदाज़ा नहीं था कि दुनिया में किसी के पास इतना पैसा भी है. कई लोगों को तो ऐसा भी लगा था कि ये बात सच नहीं बल्कि छलावा है. लेकिन इस बात में सच्चाई थी. 

अब तस्वीर में RJR Nabisco, कंपनी के तब के बोर्ड मेम्बर्स आने वाले हैं. जैसे ही ये खबर बोर्ड मेम्बर्स के कानों में पहुंची थी. उनके मन में उम्मीद की लहर दौड़ गई थी. उन्हें एक अच्छा अवसर नज़र आने लगा था. उन्होंने फैसला किया कि उन्हें इस खबर का फायदा उठाने की कोशिश करनी चाहिए. इसलिए सबसे पहले उन्होंने इस खबर को मीडिया में लीक करवाने की कोशिश शुरू की.. मैनेजमेंट काफी हद तक कामयाब भी हो चुका था. 

उन्हें पता था कि जैसे ही ये खबर मीडिया में आएगी, वैसे ही उनकी कंपनी की वैल्यूएशन जनता की नज़रों में बढ़ जाएगी. इसी के साथ उन्हें कई और अच्छे ऑफर्स आने लगेंगे. 

जॉनसन को ऐसा लग रहा था कि RJR Nabisco, कंपनी के मैनेजमेंट को जॉनसन से प्रेम है, इसलिए वो इस खबर को लीक कर रही है. जॉनसन सोच रहा था कि खबर के लीक होते ही उसकी पॉपुलैरिटी भी बढ़ने लगेगी. लेकिन उसे नहीं पता था कि कॉर्पोरेट में भी बहुत राजनीति होती है. RJR Nabisco, कंपनी के मैनेजमेंट को केवल अपनी कंपनी के मुनाफे से मतलब था. उन्हें जॉनसन से कोई लेना देना नहीं था. वो केवल मार्केट में एक माहौल तैयार करना चाहते थे. और उन्हें ऐसा करने के लिए जॉनसन जैसा बली का बकरा मिल चुका था. 

धीरे-धीरे मीडिया की मदद से खबर मार्केट में फ़ैल चुकी थी. शुरूआती रुझानों के बाद RJR Nabisco, कंपनी के पास अच्छे ऑफर्स भी आने शुरू हो चुके थे. कंपनी ने बेस्ट ऑफर्स को सेलेक्ट करने के लिए एक कमीटी भी बना दी थी. कमेटी का काम बेस्ट ऑफर्स का चयन करना था. 

अब लोगों के सामने सबसे बड़ा सवाल यही था कि क्या यूएस की हिस्ट्री में सबसे बड़ी कॉर्पोरेट डील हो पाएगी? 

RJR Nabisco, का टेक ओवर करने के लिए बहुत से ऑफर्स आ रहे थे. लेकिन इन दोनों के बारे में जानना ज़रूरी है. पहला केकेआर ने 94 डॉलर प्रति शेयर ऑफर किया था. इसके बाद First Boston, कंपनी ने तो 118 डॉलर प्रति शेयर ऑफर कर दिया था. ये डील खत्म होती कि ‘Shearson’ने भी अपने ऑफर को बढ़ाकर 100 डॉलर प्रति शेयर तक पहुंचा दिया. 

अब आप देख सकते हैं कि जॉनसन की बेवकूफी की वजह से बिडिंग की वैल्यू कितनी बढ़ चुकी थी? इसमें बहुत बड़ा योगदान मीडिया का भी था. 

इसके बाद RJR Nabisco, के मैनेजमेंट ने सभी प्रतिभागियों से दूसरे राउंड में बोली लगाने को कहा, इसी के साथ First Boston कंपनी को उनका फाइनेंस दिखाने को भी कहा गया. 

शीयरसन और कोहलबर्ग क्रैविस दोनों ने अपनी बोलियां बढ़ाईं, जो $108 और $109 के बीच आ गईं. जबकि फर्स्ट बोस्टन अकाउंट में पैसा दिखाने में असफल साबित हुआ. जिसकी वजह से अब लड़ाई KKR ग्रुप और जॉनसन के बीच में आ चुकी थी.

अब इस कॉर्पोरेट डील के क्लाइमेक्स का वक्त आ चुका है
यदि आप रॉस जॉनसन के गिरोह का हिस्सा होते, तो आप एक आकर्षक जीवन जीने पर भरोसा कर सकते थे – लेकिन अन्य लोगों से उसको कोई ख़ास मतलब नहीं था. इसलिए एलबीओ बोर्ड के सामने जॉनसन को केवल खुद की ही फ़िक्र थी. 

जॉनसन के फैसलों में कॉर्पोरेट लालच साफ़ तौर पर नज़र आती थी. इस लालच का उसे कुछ ख़ास फायदा नहीं हुआ था. जॉनसन के नेचर और लालच को New York Times ने अपनी इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म में कवर किया था. उन्होंने जॉनसन के ऊपर एक आर्टिकल लिखा, जिसकी वजह से लोगों ने जॉनसन के रवैये को बिल्कुल पसंद नहीं किया था. 

यही देखते हुए RJR Nabisco ग्रुप ने भी kkr ग्रुप का चुनाव किया, उन्हें जॉनसन के साथ जाने में डर लग रहा था. वो इस डील के लिए कंपनी की रेपूटेशन को दांव में नहीं लगाना चाहते थे. 

इसलिए कहा भी जाता है कि लाइफ की दौड़ में इंसान को हमेशा अपने कैरेक्टर को मज़बूत और शानदार बनाकर रखना चाहिए. कोई भी कंपनी या इंसान अच्छे कैरेक्टर वालों के साथ ही काम करना चाहता है. 

“RJR Nabisco LBO deal”, को इतिहास के पन्नों ने संजोकर रखा हुआ है. इन पन्नों की मदद से कोई भी इंसान बहुत कुछ सीख सकता है. उस डील ने लाखों लोगों के भविष्य को बनाया भी था और बिगाड़ा भी था.

कुल मिलाकर
Barbarians at the Gate’ यूएस की हिस्ट्री में हुई सबसे बड़ी कॉर्पोरेट डील की कहानी बताती है. एक सी.ई.ओ किसी भी कंपनी को किस कदर तक नुकसान पहुंचा सकता है? इस डील की पूरी कहानी में हम कई शक्तिशाली कैरेक्टर से मिले हैं. हमें उन सभी कैरेक्टर्स से बहुत कुछ सीखने की कोशिश करनी चाहिए. 

इसी के साथ आपको बता दें कि LBO का कांसेप्ट सबसे पहले 1960 के दशक में देखने को मिला था. इसके पीछे के मकसद के बारे में हम लोगों ने पहले ही चर्चा कर ली है. उस दौरान कुछ ऐसे नियम थे, जिसकी वजह से बड़े बिजनेस ओनर्स को काफी टैक्स देना पड़ता था. जब भी वो अपने बिजनेस से रिटायर होना चाहते थे, या फिर बिजनेस को अगली पीढ़ी को सौपना चाहते थे. उन्हें सरकार को काफी ज्यादा टैक्स देना पड़ता था.

 

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