Khaled Hussaini
प्यार और धोखे की कहानी
दो लफ्जों में
यह कहानी है प्यार और धोखे की, परिवारों में एक दूसरे का ख्याल रखने की, और जिंदगी के उन अहम फैसलों की जिनका असर पीढ़ियों तक होता है. मिस्टर खालेद हुसैनी ने इस किताब में बड़ी खूबसूरती से यह दिखाया है की किन तरीकों से परिवार एक दूसरे को बचाने के लिए कुर्बानियां देते हैं और कभी-कभी मतलबी पन से विश्वासघात करके चोट पहुंचा देते हैं.
लेखक के बारे में
खालेद हुसैनी अफगानी अमेरिकी उपन्यासकार और डॉक्टर हैं. इनका जन्म 4 मार्च 1965 को काबुल अफगानिस्तान में हुआ है. यह दुनिया के जाने-माने और सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले उपन्यासकार हैं. उनके दूसरे मशहूर उपन्यास द काइट रनर और ए थाउजेंड स्प्लेंडिड संस हैं. 2006 में उन्हें गुड विल एम्बेसडर फॉर यू एन एच सी आर बनाया गया.
यह किन लोगों के लिए है?
यह किताब उन जज्बाती लोगों के लिए है जिन्हें इंसानी रिश्तो में उथल-पुथल , दिल के दर्द और एहसासों को महसूस करना पसंद है.
And The Mountains Echoed By Khaled Hussaini
यह बात 1952 की है जब एक अफगानी मजदूर- सबूर अपने दो बच्चों को कहानी सुना रहा है. उसकी 3 साल की बेटी का नाम परी और 10 साल के बेटे का नाम अब्दुल्लाह है. बच्चों की मां परी को जन्म देते समय गुजर चुकी है. सबूर अपने दोनों बच्चों को कहानी में बताता है कि एक बार बाबा अयूब नाम का एक किसान था. वह एक गांव में रहता था. उसका बड़ा सा परिवार था. जिसकी देख - भाल करने के लिए वह बहुत कड़ी मेहनत करता था, क्योंकि उसे अपने परिवार से बहुत प्यार था. ख़ास - कर अपने सबसे छोटे बेटे - कैस से. लेकिन, एक दिन चीजें बिगड़ गयीं. एक भयानक राक्षस उस गांव में आया. वह रोज रात को किसी एक घर की छत को खटखटाता था. और अगली सुबह उस घर से एक बच्चे को लेकर बोरे में भरता था. और अपने कंधे पर लटका कर दूर पहाड़ों में अपने किले में चला जाता था. उसके बाद कोई भी शख्स उस बच्चे को दोबारा नहीं देख पाता था. जो भी उसे बच्चा देने से मना करता था वह उसके सारे बच्चों को पकड़ कर अपने साथ ले जाता था. एक रात को उस राक्षस ने बाबा अयूब के घर की छत को भी खटखटाया. बाबा अयूब यह सोच कर डर गया कि उसे पता नहीं अपना कौन सा बच्चा राक्षस को देना पड़ेगा. दोनों पति-पत्नी सुबह होने तक दुख - तकलीफ में यह फैसला नहीं कर पाए कि अपने किस बच्चे को राक्षस को दें. आखिर में बाबा अयूब ने एक ही तरह के पांच पत्थर के टुकड़ों पर अपने पांचों बच्चों के नाम लिखे और उन्हें एक बोरे में भर दिया. फिर उस बोरे में हाथ डाल कर एक पत्थर को बाहर निकाला. तो उस पर सबसे छोटे बेटे कैस का नाम लिखा हुआ था. बाबा अयूब ने रोते-रोते अपने छोटे बेटे कैस को राक्षस के हवाले कर दिया. और वह उसे लेकर अपने किले में चला गया.
सबूर ने यह गौर किया कि यहां तक की कहानी सुनते - सुनते परी सो गई थी. इस पर उसने अब्दुल्ला से परी के ऊपर कंबल ओढ़ा देने के लिए कहा. फिर उसने आगे की कहानी सुनाना शुरू किया. जब राक्षस कैस को अपने साथ लेकर वहां से चला गया तो बाद में बाबा अयूब को बहुत बुरा लगा. उसे अपने ऊपर बहुत गुस्सा आया कि वह अपने बेटे के लिए राक्षस से लड़ा क्यों नहीं? कैसे उसने अपने बच्चे को उसे इतनी आसानी से ले जाने दिया? बाबा अयूब ने वापस से अपने बच्चे को और राक्षस को ढूंढने की कोशिश की. आखिर बहुत ढूंढने के बाद जब वह राक्षस बाबा अयूब को मिल गया तो वह यह देख कर हैरान रह गया कि उसका बच्चा - कैस सही सलामत है. और बाकी सब बच्चे भी वहां पर बड़ी अच्छी तरह से रह रहे हैं. राक्षस उन सब बच्चों को एक अच्छी जिंदगी देता था.राक्षस बाबा अयूब से कहता है कि वह उसकी बहादुरी से बहुत खुश है. वह अगर चाहे तो अपने बच्चे को वापस उसी जिंदगी में ले जा सकता है जिस जिंदगी से वह आया है. लेकिन, साथ में उसको यह भी सोचना पड़ेगा कि यहां पर इन्हें हर तरीके की अच्छी पढ़ाई - लिखाई के साथ-साथ अच्छी जिंदगी भी मिल रही है. अब फैसला उसके हाथ में है. बाबा अयूब ने बहुत सोचा और आखिर में यही फैसला किया कि वह अपने बच्चे को यही छोड़ेगा, जिससे उसे एक अच्छी जिंदगी मिल सके. और फिर वह अपने घर वापस लौट गया. बाबा अयूब का बेटा उससे अलग हो गया. लेकिन, उसे एक अच्छी जिंदगी मिलने लगी. आने वाले सालों में बाबा अयूब ने भी अपनी मेहनत से काफी पैसा कमा लिया. और वह एक बड़ा आदमी बन गया.
इसी के साथ सबूर ने अपनी कहानी खत्म की और अपने बेटे अब्दुल्ला से सो जाने के लिए कहा क्योंकि उन्हें सुबह जल्दी भी उठना था.
परी और अब्दुल्ला सगे भाई - बहन हैं. इनकी मां की मौत के बाद इनके पिता सबूूर ने परवाना नाम की औरत से दूसरी शादी कर ली है. और उसका इकबाल नाम का एक बेटा भी है.
अगले दिन सबूर, परी और अब्दुल्ला एक गाड़ी में बैठ कर काबुल जाते हैं. जहां पर सबूर की दूसरी पत्नी परवाना के बड़े भाई - नबी, ने सबूूर को एक अमीर परिवार का घर बनाने में मजदूरी का काम दिलाने के लिए बुलाया होता है.
नबी उसी परिवार में उनके निजी नौकर की तरह काम करता है. काबुल पहुंचने पर अब्दुल्ला अपने सौतेले मामा नबी से मिलता है. नबी उन तीनों को लेकर अपने मालिक पति - पत्नी सुलेमान वहदाती और नीला वहदाती के पास लेकर जाता है. नीला वहदाती बच्चे को जन्म नहीं दे सकती है. इसलिए वह बहुत दुखी रहती है. नबी ने नीला से परी को गोद लेने के लिए बात चलाई थी. नीला परी से मिल कर बहुत खुश होती है. और परी को गोद लेने के लिए तैयार हो जाती है.
सबूर एक गरीब आदमी है और पिछले साल भयंकर सर्दी की वजह से अपने एक बेटे को खो चुका है. इसलिए, वह नबी की बातों में आकर अपनी बेटी परी को वहदाती घराने में बेचने के लिए तैयार हो जाता है. यह सोचा जाता है की यह बात उन सबके लिए अच्छी रहेगी. सबूर के परिवार को कुछ पैसों की मदद होने के अलावा उनके यहां एक शख्स का खर्च भी कम हो जाएगा. और वहदाती पति - पत्नी को एक बच्चा मिल जाएगा. हालांकि, परी और अब्दुल्ला एक - दूसरे के बहुत करीब थे. और उनका अलग होना बहुत ज्यादा तकलीफ देने वाला और जिंदगी बदल देने वाला था. इसके बाद परी वहदाती परिवार में रह गई. और अब्दुल्ला अपने पिता के साथ घर लौट गया.
सबूर की दूसरी पत्नी परवाना की कहानी कुछ इस तरह थी. परवाना और मासूमा दो बहने थीं . परवाना की बड़ी बहन मासूमा उससे ज्यादा सुंदर थी. और लोग उसे ज्यादा पसंद करते थे. इस बात पर परवाना को बहुत गुस्सा आता था. परवाना का परिवार सबूर के पड़ोस में ही रहता था. यह दोनों बहने सबूर के घर में आती - जाती रहती थीं. सबूर उन्हें कहानियां सुनाया करता था. परवाना सबूर को पसंद करने लगी थी. वह नहीं चाहती थी कि सबूर मासूमा से बात भी करे. जब दोनों बहने बड़ी होने लगीं और ग्यारह - बारह साल की हुईं तो आस-पास के लड़के मासूमा को ज्यादा अटेंशन देने लगे थे. लेकिन परवाना को बहुत कम लड़कों की अटेंशन मिलती थी. परवाना इस बात को लेकर बहुत नाराज थी. इन बहनों का बड़ा भाई नबी था. जब से उसे काबुल के एक बहुत पैसे वाले शख्स सुलेमान वहदाती के यहां नौकरी मिली थी तब से गांव में उसकी रिस्पेक्ट बहुत बढ़ गई थी. वह अक्सर अपने मालिक की कार लेकर गांव में आता रहता था. और अपने घर में पैसे भी भेजा करता था. इसी बीच एक खबर आती है की सबूर की पत्नी की मौत हो चुकी है. और वह अब दोबारा शादी करना चाहता है. परवाना सबूर से प्यार करने लगी थी. और वह उससे शादी भी करना चाहती थी. इस समय दोनों बहने 17 साल से ऊपर की हो चुकी थीं. लेकिन, मुश्किल यह थी कि सबूर मासूमा से शादी करना चाहता था. जब परवाना को इस बात का पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया. एक बार जब परवाना मासूमा के साथ एक बड़े से पेड़ की डाल पर बैठी हुई थी तो उसने उस पेड़ की डाल को जोर से हिला दिया, जिस की वजह से मासूमा नीचे जमीन पर गिर गई. और उसकी हड्डी ऐसी जगह से टूटी कि वह जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो गई. इसके बाद सबूर ने अपाहिज मासूमा से शादी करने का ख्याल अपने दिल से निकाल दिया. और फिर उसने परवाना से शादी कर ली.
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जहां तक नबी की बात थी, वह अपने मालिक और मालकिन सुलेमान वहदाती और नीला वहदाती को तब से जानता है जब इन दोनों की शादी तक नहीं हुई थी. शुरू में जब वह मिस्टर सुलेमान वहदाती के बड़े से आलीशान मकान में काम करता था तो वहां पर उसे बड़ा अच्छा लगता था. वह मिस्टर वहदाती के लिए खाना भी बना दिया करता था. और वहीं घर में ही कहीं सो जाया करता था. सालों तक मिस्टर वहदाती के लिए काम करते - करते उसे यह पता चल गया था कि मिस्टर सुलेमान थोड़े पागल टाइप के आदमी थे. अगर उनको कहीं नहीं जाना होता था तो भी वह उससे घंटों कार चलवाया करते थे. वह अपनी जिंदगी से नाखुश रहा करते थे. उन्होंने अपनी मेहनत से कुछ भी नहीं बनाया था. उनके पास जो कुछ भी था वह उन्हें विरासत में मिला था. वह वेश्याओं के पास भी जाते रहते थे.
नबी को अपनी मालकिन नीला वहदाती की चिंता होने लगी थी. वह जानता था कि दोनों पति-पत्नी की शादी ठीक नहीं चल रही है. और मैडम वहदाती अपना ज्यादातर समय अकेले ही गुजारती हैं. नबी को जब भी मैडम वहदाती को कार में बैठा कर कहीं ले जाने का मौका मिलता था, तो वह जान बूझ कर उनके साथ ज्यादा समय बिताने की कोशिश किया करता था. नीला वहदाती भी अपना अकेलापन मिटाने के लिए नबी से ढेर सारी बातें किया करती थी. और वह सुलेमान वहदाती की कई तरह की बुराइयां भी किया करती थी. उन्होंने नबी से बताया था कि उन्हें अपनी मां के जोर देने पर बड़ी मजबूरी में यह शादी करनी पड़ी थी. नबी मैडम वहदाती को पसंद करता था. एक दिन मैडम वहदाती ने उसे अपना गांव दिखाने के लिए लेकर चलने के लिए कहा. तो नबी बहुत हिचकिचाते हुए मैडम को गांव के अपने छोटे से घर ले कर जाता है. जहां पर उसकी एक बहन मासूमा पेड़ से गिर कर अपाहिज हो चुकी है. और दूसरी बहन परवाना ने सबूर से शादी कर ली है. सबूर नबी का जीजा है. जिसके पहले से दो बच्चे परी और अब्दुल्ला हैं. यहां आते ही मैडम वहदाती को तीन साल की बच्ची परी बहुत अच्छी लगती है. नबी को यह सच्चाई पता चलती है की मैडम वहदाती बच्चे को जन्म नहीं दे सकती हैं, क्योंकि वह बहुत कमजोर हैं. और बच्चा पैदा करने का दर्द नहीं सह सकती हैं. नबी को यह जान कर बहुत दुख होता है. और वह इस कोशिश में लग जाता है की मैडम वहदाती को कहीं से भी एक बच्चा दिला दिया जाए. उसने इस बारे में सबूर से बताया की मैडम वहदाती को परी बहुत पसंद आ गई है. वह चाहे तो काबुल आ जाए. वहां पर परी को अच्छी एजुकेशन के साथ-साथ एक अच्छी जिंदगी मिल सकती है. वह उसकी बेटी को गोद ले लेंगी. सबूर परी को अच्छी जिंदगी मिलने के बारे में सोच कर इस बात के लिए तैयार हो जाता है. नबी ने यही बात मैडम वहदाती से भी बता दी थी. इस बात पर सभी लोग मान गए. और परी को गोद लेने का दिन तय कर लिया गया - जिस दिन सबूर परी को लेकर काबुल आएगा और परी को गोद लेने का काम पूरा कर लिया जाएगा.
एक बार सुलेमान को ब्रेन स्ट्रोक हुआ. उसका शरीर पैरालाइज हो गया. और वह अपाहिज हो गया. नीला उसकी देख-भाल करते- करते परेशान हो गई थी. परी को अपने पास रखने के बावजूद नीला ना - खुशी और अधूरापन महसूस करने लगी थी. और फिर उसने सुलेमान को नबी के भरोसे छोड़ दिया. और वह परी को अपने साथ पेरिस लेकर चली गई. जाने से पहले उसने नबी से कहा की एक वही ऐसा शख्स है जो सुलेमान की देख-भाल अच्छे से कर सकता है . लेकिन उसने नबी को अपने वापस लौटने के बारे में कुछ नहीं बताया. नबी महीनों तक इस उम्मीद में अपने मालिक सुलेमान की अच्छे से देख-भाल करता रहा कि मैडम वहदाती वापस लौट कर वहां आएंगी. लेकिन वह वापस लौट कर नहीं आईं. और इसी तरह दिन गुजरने लगे. सुलेमान बहुत दुखी रहने लगा था. उसे अपने रिश्तेदारों से मिलना भी पसंद नहीं था. बस वह नबी के सहारे किसी तरह अपनी जिंदगी काट रहा था. नबी मैडम वहदाती का काफी इंतजार कर चुका था. और वह अब उनके वापस लौटने की उम्मीद भी छोड़ चुका था. परेशान होकर वह भी मिस्टर सुलेमान की नौकरी छोड़ देना चाहता था. लेकिन इंसानियत के नाते वह अपाहिज सुलेमान को छोड़ कर नहीं गया. वह सुलेमान का मन बहलाने और खुश रखने की हर कोशिश करता था. वह उनके साथ ताश खेलता था. और उनकी पसंद की दूसरी चीजें भी किया करता था. सुलेमान का नबी से बहुत करीबी रिश्ता बन गया था. वह नबी को पढ़ना - लिखना सिखाया करते थे. और नबी को भी अब सुलेमान के साथ रहने की आदत हो गई थी. और फिर सालों तक अपने मालिक की सेवा करते - करते सन 1968 आ गया था. इस समय तक सुलेमान की मां गुजर चुकी थीं. और तमाम रिश्तेदार भी दुनिया से जा चुके थे. और वह खुद को बहुत अकेला महसूस करने लगे थे. सुलेमान ने नबी से कहा कि अब उसे शादी करके अपना घर बसा लेना चाहिए. नहीं तो एक बार उम्र गुजर जाने के बाद वह अपना परिवार शुरू नहीं कर पाएगा. पर नबी का दिल सुलेमान को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ. इसलिए उसने शादी ना करने का फैसला किया.
1980 के बाद काबुल में खतरा बढ़ गया. और साल 1990 के बाद तो घरों में लूट होने लगी. इस वक्त नबी ही था जो सुलेमान की सारी जायदाद की हिफाजत कर रहा था. अब वह इस घर का नौकर होकर खुश था. यहीं रहते - रहते वह बूढ़ा हो चला था. साल 2000 आते - आते तालिबान ने पूरे काबुल को घेर लिया था. इस दौरान वह मिस्टर सुलेमान की पूरे दिल से सेवा करता था. लेकिन उसी समय सुलेमान को दूसरा स्ट्रोक आया. और इस स्ट्रोक में जब नबी ने सुलेमान से डॉक्टर को लेकर आने की बात कही तब सुलेमान ने उसका हाथ पकड़ कर उसे वहीं रोक दिया. और कहा की अब इसकी कोई जरूरत नही थी. उसका वक्त आ गया था. और कुछ बोलते - बोलते उनकी सांसे वहीं रुक गयीं. और उनका शरीर ठंडा पड़ गया. नबी का तो मानो जैसे दिल ही टूट गया था. उनके गुजरने के बाद नबी को पता चला कि सुलेमान ने अपनी सारी जायदाद उसके नाम कर दी है. इसके बाद नबी आराम से उस बड़े घर में रहने लगा.
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कुछ समय बाद एक डॉक्टर मिस्टर मार्कस नबी के पास आए और रहने के लिए उससे जगह मांगी. नबी अकेला होने की वजह से खुद भी किसी के साथ रहना चाहता था. इसलिए उसने मार्कस को फ्री में वहां रहने की जगह दे दी. नबी बूढ़ा हो चला था. और बीमार रहने लगा था. तभी साल 2002 में नबी को पता चला की उसकी मालकिन नीला वहदाती ने 1974 में सुसाइड कर लिया था. यह सुन कर नबी को अपनी भांजी परी की फिक्र होने लगी. नबी को जब लगने लगा कि उसका भी अब आखिरी वक्त आ गया है, और वह ज्यादा समय तक जिंदानहीं बचेगा तो उसने अपनी पूरी कहानी मिस्टर मार्कस को सुनाई. और उनसे दो रिक्वेस्ट की. पहली कि उसके मरने के बाद उसे उसके मालिक मिस्टर सुलेमान के करीब दफनाया जाए. और दूसरी, कि उसकी भांजी परी जो अब यूरोप में है उसको यह बता दिया जाए कि उसका मामा एक राक्षस नहीं है. उसका मामा उससे बहुत प्यार करता है. और यह जो वहदाती फैमिली की जायदाद है वह सब वह परी के नाम करके जा रहा है.
अब यह जानने के लिए की नीला वहदाती और परी के पेरिस जाने के बाद क्या हुआ था, कहानी को फिर से फ्लैश बैक में लेकर चलते हैं .
नीला वहदाती अपने अपाहिज पति को उसके बुरे वक्त में छोड़ कर पेरिस चली गई थी. और क्यूंकि वह यूरोप में पैदा होने के बाद अपने परिवार के साथ अफगानिस्तान गई थी, इसलिए वह खुद को एक अफगानी ना मान कर यूरोपियन ही मानती थी. शुरू - शुरू में जब वह परी को अपने साथ पेरिस लेकर आई थी, तो वह चाहती थी की परी को अच्छी एजुकेशन के साथ - साथ एक अच्छी जिंदगी भी मिले. वह नहीं चाहती थी कि अफगानिस्तान में रहते हुए अपनी जिंदगी में उसे जिन मुश्किलों को उठाना पड़ा वही मुश्किलें परी को भी उठानी पड़े. इसके बाद नीला ने कविताएं लिखना शुरू कर दिया था. और फिर धीरे-धीरे वह कविता लिखने में मशहूर हो गई थी. और लोगों को इंटरव्यू भी देने लगी थी. वहीं परी को नीला अपनी मां जैसी बिल्कुल नहीं लगती है. वह परी से अपनापन नहीं दिखाती है. और परी उससे एक अलगाव महसूस करती है. धीरे - धीरे नीला परी की तरफ से ज्यादा लापरवाह होती गई. एक दिन नीला की लापरवाही इतनी ज्यादा बढ़ गई कि उसने परी को घर में कई दिनों के लिए बंद कर दिया. और फिर जब नीला को इस बारे में पता चला तो परी की हालत काफी खराब हो चुकी थी. और उसे हॉस्पिटल में एडमिट कराना पड़ गया था. बड़ी होती परी को एक लड़का पसंद आया था. तो उस लड़के से भी नीला ने अपना चक्कर चला लिया. नीला अपने इंटरव्यू में काफी उल्टा - सीधा बोलने लगी थी. नीला का अफगानिस्तान वापस जाने का बिल्कुल भी मन नहीं करता था. जब कि परी का बड़ा मन करता था कि वह अपने देश अफगानिस्तान जाए. और वहां जाकर अपने नौकर नबी से मिले.
साल 1974 में एक दिन नीला को पता चलता है कि जिस लड़के से वह अपना चक्कर चला रही थी वह वापस परी के पास चला गया है. इस वजह से वह परी से अपना रिश्ता खत्म कर लेती है. इसके बाद वह फांसी लगा कर खुदकुशी कर लेती है. मरने से पहले नीला ने अपने इंटरव्यूज में दुनिया को यह बताया था की जब वह दस साल की थी तो उसके पिता उसे बहुत मारा करते थे. बहुत से लड़कों के साथ उसके रिश्ते थे. और उसने बहुत मजबूरी में मिस्टर सुलेमान वहदाती के साथ शादी की थी. हालांकि, शादी के बाद उसे पता चला कि वह एक " गे " थे. उनको अपना नौकर नबी पसंद था. इसलिए, वह अपनी बेटी के साथ पेरिस चली आई. और अब बेटी भी ऐसी निकली.
परी को नीला के इंटरव्यूज पढ़ कर पता चला कि वह कैसी औरत थी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके पिता मिस्टर सुलेमान " गे " थे. चलो एक बार को यह मान भी लिया जाए कि वह " गे " थे लेकिन वह यह मानने को तैयार नहीं थी कि उनका नबी के साथ भी एफेयर था. परी ने फैसला किया कि अब वह खुद अफगानिस्तान जाएगी और अपनी फैमिली की हिस्ट्री जानेगी.
तभी परी के एक दोस्त ने उसे एरिक नाम के एक लड़के से मिलवाया. और फिर साल 1977 में परी ने उससे शादी कर ली. इसके बाद उसने एरिक के साथ अफगानिस्तान जाने की तैयारी कर ली. लेकिन, इसी दौरान वह प्रेग्नेंट हो गई. और फिर उनका अफगानिस्तान जाना टल गया. उसने एक खूबसूरत बेटी को जन्म दिया जिसका नाम इजाबेल रखा गया. और वह अफगानिस्तान जाने के बारे में भूल गई. और वह अपनी बेटी में इतना खो गई कि तीन साल गुजर गए. इसके बाद वह अपने रिसर्च पेपर्स को सबमिट करने के लिए जर्मनी गई. इस बीच जब इजाबेल बहुत बीमार हो गई तब परी वापस लौटी. और अपनी बेटी से मिली. तब परी को अपनी मां नीला वहदाती की याद आई. जब तक इजाबेल सात साल की हुई, तब तक परी के दो बच्चे और हो गए थे. और परी पेरिस में मैथमेटिक्स की मास्टर बन गई थी.
इसी तरह समय गुजरता गया और साल 1994 में परी एरिक के साथ दो हफ्तों की छुट्टियां मनाने के लिए पेरिस से बाहर गयी. अब तक वह 45 साल की एक अधेड़ उम्र की औरत बन चुकी थी. छुट्टियों से लौटते ही एरिक को हार्ट अटैक आया और वह गुजर गया. इसके बाद वह अपने बच्चों को संभालने में लग गई. इसी तरह वक्त गुजरता रहा और साल 2010 भी आ गया. अभी वह पेरिस में ही थी. और उसके दिमाग में ही नहीं आया कि उसे कभी अफगानिस्तान भी जाना था. इजाबेल की शादी हो गई थी. और बाकी दोनों बच्चे भी अच्छे से सेटल हो गए थे. परी बीमार रहने लगी थी. और उसने व्हील-चेयर पकड़ ली थी. तभी उसके पास अफगानिस्तान में नबी के घर में रहने वाले डॉक्टर मार्कस का फोन आया. उन्होंने परी को बताया कि जब वह अपने मां - बाप के साथ अफगानिस्तान में रहती थी तब उनका एक नौकर था नबी जो एक्चुअली उनका नौकर नहीं था, बल्कि उनका मामा था. इसके बाद डॉक्टर ने उसको सारी कहानी सुनाई. और नबी का लिखा हुआ वह लेटर भी पढ़ कर सुनाया जो वह अपनी भांजी के नाम से छोड़ कर गया था. पूरी बात सुनने के बाद परी फोन पर ही शॉक हो गई. उसने सोचा की जिनको आज तक वह अपने पैरेंट्स मानती आई थी, एक्चुअली उन्होंने उस को गोद लिया था. और उसका असली परिवार अफ़गानिस्तान में पता नहीं कहां और किस हाल में जी रहा था. यह सब सोच कर परी बेचैन हो गई. और उसने अफगानिस्तान जाने की तैयारी कर ली.
अफगानिस्तान में परी का परिवार बिखर चुका था. उसका मामा नबी गुजर चुका था. उसके पिता सबूर भी गुजर चुके थे. उसके सौतेले भाई इकबाल की शादी हो गई थी. और उसका एक बच्चा भी था. जिसका नाम आदिल था.
परी अफगानिस्तान आ कर डॉक्टर मार्कस से मिली. डॉक्टर ने उसे उसका वहदाती फैमिली वाला पुराना घर दिखाया. परी ने डॉक्टर से कहा कि वह जब तक चाहें इस घर में रह सकते हैं. परी को अपने गांव को देखना था, जहां पर वह पैदा हुई थी .
परी के भाई अब्दुल्ला की एक बेटी होती है जिसका नाम भी परी है. वह अपनी पिछली जिंदगी को इस तरह याद करती है की ' वह इस वक्त अपने बाबा के साथ अफगानिस्तान में रहती है. उसके बाबा उसे अपने बचपन की कहानियां सुनाया करते थे. वह बताते थे कि उनकी परी नाम की एक छोटी बहन थी. जो बचपन में उन से बिछड़ गई थी. वह अपने बाबा की इकलौती बेटी है. और उसके बाबा ने उसका नाम परी अपनी बहन को याद करने की वजह से ही रखा है. इसलिए उसके बाबा के लिए यह नाम बहुत खास है. वह उसे बताते हैं कि उनके पिता ने उनकी बहन परी को किसी पैसे वाली फैमिली को बेच दिया था. उसने अपने बचपन से देखा है कि उसके बाबा को हमेशा एक ही दुख सताता है कि उनकी बहन उन से अलग हो गई थी. और वह कुछ भी नहीं कर सके थे. बस हमेशा से उनकी एक ही दिली इच्छा थी, कि वह मरने से पहले एक बार अपनी बहन से मिल सकें. अब वह छोटी से बहुत बड़ी हो चुकी है. और उसकी मां भी गुजर चुकी हैं. उसके बाबा भी बूढ़े हो चले हैं. वह अक्सर उस घर में जाती रहती है जहां उसके पिता का जन्म हुआ था. और जहां वह अपने परिवार के साथ रहा करते थे. वह आज फिर उस घर में जा रही है, क्योंकि उसके बाबा की बहन उनसे मिलने आ रही हैं. और जब वह जाकर परी से मिलती है तो वह देखती है कि अपने बाबा से जिस बुआ की तारीफ में उसने बहुत सी कहानियां सुन रखी थीं अब वह बूढ़ी हो चुकी थीं. वह परी से मिल कर उससे कहती है कि उसने अभी तक अपने बाबा से यह नहीं बताया है, कि उनकी बहन आ रही हैं. और वह बूढ़ी परी को कार में बैठा कर अपने पिता अब्दुल्ला के पास ले जाती है. घर पहुंच कर बूढ़ी परी कहती है कि उसे बड़ी घबराहट हो रही है. आखिर वह करीब 58 साल बाद अपने भाई से मिलने जा रही थी. इस पर छोटी परी ने अपने बाबा की बहन से कहा कि उसके बाबा भी अचानक मिले सरप्राइज को नहीं झेल सकते हैं. इसलिए वह भी अपने बाबा को अचानक से शॉक नहीं देना चाहती है.
आखिर कार, जब वह लोग घर पहुंचते हैं तो छोटी परी घर के बाहर से अपने बाबा को किसी से मिलवाने के लिए आवाज लगाती है. इसके बाद वह दोनों अंदर जाती हैं. जहां अब्दुल्ला बैठा हुआ रहता है. परी ने आज 58 साल बाद अपने बड़े भाई को देखा था. वह कुर्सी पर बैठा हुआ इनकी तरफ ही देख रहा था. और परी को पहचानने की कोशिश कर रहा था. उसकी बेटी परी अपने बाबा से उनकी बहन को पहचानने के लिए कहती है. यह सुनने के बाद पहले तो अब्दुल्ला कुछ नहीं बोलता है. वह अपनी कुर्सी पर शांत बैठा रहता है. और फिर अपनी बहन से बात करने की जगह वह पागलों की तरह नर्सरी क्लास की पोयम गाने लगता है. उसकी बेटी उसे टोकती है कि आखिर वह ऐसा क्यों कर रहे थे. तभी वह बूढ़ी परी को भी वही पोयम गाते हुए देखती है. पोयम गाते - गाते अब्दुल्ला और परी दोनों की आंखों में आंसू आ जाते हैं. और वह दोनों रोने लगते हैं. अब्दुल्ला अब पागलों वाली हरकतें करने लगा था. और इसी पागलपन में उसने अपनी बहन परी पर चिल्ला भी दिया था. इस पर वह दोनों रोने लगती हैं.
अगले दिन जब वह दोनों एक पार्क की बेंच पर बैठी हुई थीं, तब अब्दुल्लाह की बेटी ने परी को एक पैकेट यह बताते हुए दिया कि यह पैकेट उसके बाबा अब्दुल्ला ने साल 2007 में पैक किया था. उस पैकेट के लेबल पर लिखा था ' मेरी बहन के लिए'. परी ने उस पैकेट को खोला तो उस में अब्दुल्ला का लिखा हुआ एक नोट था, जिसमें उसने लिखा था कि 'अब वह पानी में उतर चुका था. और शायद जल्दी ही डूब भी जाएगा. लेकिन पानी में उतरने से पहले वह किनारे पर उसके लिए एक लेटर छोड़ कर जा रहा था. और वह यह उम्मीद करता था, कि वह लेटर उसे एक दिन जरूर मिलेगा. तब शायद वह यह समझ सकेगी कि उसके दिल पर उस वक्त क्या गुजरी होगी जब उसकी बहन उससे अलग हुई थी.' उस पैकेट में लेटर के नीचे एक और चीज थी, 'पीला पंख'. जिसके लिए अब्दुल्ला ने कभी वादा किया था कि वह उसे अपनी बहन को देगा. और इस पल में परी को अपने भाई का दर्द महसूस हो रहा था, जो उसने इतने सालों में सहा था. वो रोने लगी कि आज वह अपने भाई से मिली है और वह भी ऐसे!
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