Khaled Hosseini
दिल को झकझोर देने वाली कहानी
दो लफ्जों में
यह किताब तालिबान की हुकूमत के 30 साल के दौरान सोवियत हमला होने और तालिबान को फिर से बसाए जाने की दिल को झकझोर देने वाली कहानी है. इसमें करीबी इंसानी रिश्तो में हिंसा डर उम्मीद और यकीन के एहसासों को बड़ी खूबसूरती से दिखाया गया है.
यह किन लोगों के लिए है?
यह किताब उन जज्बाती लोगों के लिए है जो इंसानी रिश्तो में उथल-पुथल , दिल के दर्द और एहसासों को महसूस करने के साथ साथ इतिहास की बातों में भी इंटरेस्ट रखते हैं.
लेखक के बारे में
खालेद हुसैनी अफगानी अमेरिकी उपन्यासकार और डॉक्टर हैं. इनका जन्म 4 मार्च 1965 को काबुल अफगानिस्तान में हुआ है. यह दुनिया के जाने-माने और सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले उपन्यासकार हैं. उनके दूसरे मशहूर उपन्यास द काइट रनर और एंड द माउंटेन्स ईकोड हैं. 2006 में उन्हें गुड विल एम्बेसडर फॉर यू एन एच सी आर बनाया गया.
A Thousand Splendid Suns By Khaled Hosseini
मरियम उस वक्त सिर्फ 5 साल की थी, जब उसने यह शब्द ' Bastard ' सुना था. वह गुरुवार का दिन था, उस दिन जलील उससे मिलने आता था. उसी दिन उसकी मां के चाइनीज टी सेट का बाकी बचा आखिरी पीस भी उसके हाथों से गिरकर टूट गया था. मरियम की मां का नाम नाना था. यह देखकर वह मरियम पर इतनी ज्यादा नाराज हो गई, कि मरियम को लगने लगा मानो उसकी मां की बॉडी में कोई जिन्न आ गया था. उसने मरियम के हाथों को जोर से पकड़ते हुए अपनी तरफ खींचा और गुस्से से दांत पीसते हुए उससे कहा कि उसने यह क्या कर दिया Bastard? उसे Bastard शब्द का मतलब नहीं मालूम था. और फिर जैसे-जैसे वक्त गुजरता गया उसे समझ आता गया कि Bastard होना अच्छा नहीं था. और किसी को भी उसकी जरूरत नहीं थी. लेकिन जलील कभी भी उसे Bastard नहीं बोलता था. वह हमेशा उसे उसके नाम से बुलाता था. वह उसे गोद में बिठाकर अफगानिस्तान के एक शहर हेरात की कहानियां सुनाता था, जहां वह रहता था. मरियम को जलील बहुत अच्छा लगता था. जलील मरियम का पिता था. लेकिन वह मरियम और उसकी मां के साथ नहीं रहता था. मरियम अपनी मां के साथ एक छोटे से कमरे में रहती थी. मरियम जलील की सुनाई हुई सारी कहानियों पर यकीन करती थी. लेकिन उसकी मां मरियम से कहती थी कि जलील झूठ बोलता था. उसने अपना काम निकल जाने के बाद उसको और मरियम को अपने घर से बाहर निकाल दिया था. क्योंकि उसे उन लोगों के साथ रहने में शर्म आती थी. जलील हेरात में अपनी तीन बीवियों और 10 बच्चों के साथ रहता था. वह बहुत पैसे वाला आदमी था और उसका हेरात में एक सिनेमा हॉल भी था.
नाना पहले जलील के घर में काम किया करती थी. जलील ने उस को प्रेग्नेंट कर दिया था. इसकी जानकारी होने पर नाना के पिता ने उससे अपना रिश्ता तोड़ दिया था. जलील ने शहर से दूर एक छोटे कमरे का इंतजाम कर दिया था जिसमें यह दोनों मां बेटियां रहती थीं. मरियम के साथ नाना का बर्ताव जलील के मुकाबले ज्यादा अच्छा नहीं था. लेकिन वह उसे हरदम एक बात समझाती थी कि उसे कभी भी आदमी की जात पर भरोसा नहीं करना चाहिए था. क्योंकि जैसे एक कंपास की सुई हरदम नार्थ की तरफ इशारा करती थी उसी तरह मर्द की उंगली हमेशा औरत की तरफ उठती थी. वह औरत पर इल्जाम लगाने का कोई ना कोई रास्ता ढूंढ ही लेते थे . नाना ने मरियम को बताया था कि जब 1959 मे गर्मियों के मौसम में वह पैदा होने वाली थी तो जलील ने उसके लिए डॉक्टर तक को नहीं बुलवाया था. जैसे-जैसे मरियम बड़ी हो रही थी उसे अपनी मां की बातें समझ आने लगी थीं. लेकिन अभी भी जलील उसे अच्छा लगता था. वह उस पर यकीन करती थी . दूसरी तरफ जलील उससे कहता था कि उसकी मां झूठ बोलती थी. वह उसके खिलाफ उसके मन में जहर भरने की कोशिश कर रही थी. उसने उसकी मां को उसके पैदा होने के समय हॉस्पिटल भेजा था. और उसका मरियम नाम भी उसने ही रखा था. नाना ने मरियम को खाना पकाना और सिलाई करना सिखाया था. मुल्ला फैजुल्ला जो कि कुरान के टीचर थे. वह उस को पढ़ाते थे और बहुत कुछ सिखाते थे. मरियम उनसे पोयम सुनती थी. वह उसको अपने बचपन की कहानियां भी सुनाते थे. वह मरियम से कहते थे कि वक्त पड़ने पर वह कुरान की मदद ले सकती थी.
इसी तरह वक्त गुजरता गया और 1973 की गर्मियों का मौसम आ गया . मरियम 14 साल की हो चुकी थी. उस वक्त अफगानिस्तान का तख्ता पलट हो रहा था. वहां पर अफगान रिपब्लिक बनने जा रहा था. मरियम ने अपने 15 वें जन्मदिन पर जलील से अपनी एक इच्छा बताई. कि वह उसके सिनेमा हॉल में उसके साथ एक पिक्चर देखना चाहती थी. लेकिन जलील ने उसकी बात को टाल दिया. इस पर उसने जिद करते हुए जलील से अगले दिन मिलने आने के लिए कहा. जलील ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया. बस उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा और फिर वहां से चला गया. नाना को जब इस बारे में पता चला कि मरियम जलील के साथ इसलिए हेरात जाना चाहती थी क्योंकि वह वहां का माहौल जानना चाहती थी और उसके घर जाना चाहती थी , तो वह उसका मजाक उड़ाते हुए हंसने लगी. उसने कहा कि जलील झूठा था. वह उसे लेने के लिए नहीं आने वाला था.यह सुनकर मरियम को अपनी मां पर बहुत गुस्सा आया. और वह गुस्से में घर से बाहर निकल गयी. वह एक जगह जाकर बैठ गई. वहां वह पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े जमा करके गिनती करने लगी कि यह जलील की 3 बीवियां, और यह उसके 10 बच्चे थे. उसने उन पत्थरों के साथ में एक और पत्थर ऐड किया और बोली यह 11 वां पत्थर वह खुद थी. अगले दिन उसने एक खूबसूरत सा हिजाब पहना और नदी के किनारे बैठ गयी. वहां पर उसने एक घंटे तक जलील का इंतजार किया. लेकिन जब जलील वहां नहीं आया तो उसने खुद अकेले हेरात जाने का फैसला किया. वह हेरात जाने के लिए चल पड़ी. और वहां पहुंच भी गई. उसे यह देखकर हैरानी हुई कि रास्ते भर किसी ने उसको Bastard नहीं कहा था. उसने लोगों से पूछ कर जलील के घर का पता लगाया और वहां पहुंचकर उसके घर का दरवाजा खटखटा दिया . एक जवान सी लड़की ने दरवाजा खोला तो मरियम ने उसे अपने बारे में बताया. यह सुनकर वह लड़की दौड़कर घर के अंदर चली गई. इसके बाद घर के अंदर से जलील का ड्राइवर निकल कर दरवाजे पर आया. उसने मरियम से कहा कि जलील घर पर नहीं था. और पता नहीं कब तक लौटने वाला था. उसने मरियम को वहां से चले जाने के लिए कहा. मरियम ने जलील से मिले बिना वहां से जाने से मना कर दिया. वह वहीं दरवाजे के बाहर बैठकर जलील का इंतजार करने लगी. इंतजार करते-करते शाम से रात और रात से सुबह हो गई. वह वहीं बैठे बैठे सो गई थी. सुबह ड्राइवर ने आकर उसे जगाया और कहा कि घर के अंदर उसकी वजह से झगड़े शुरू हो गए थे. इसलिए जलील ने मरियम को घर छोड़कर आने के लिए उसको भेजा था. मरियम जलील से मिले बिना वहां से जाने के लिए तैयार नहीं थी. लेकिन ड्राइवर ने उसको जबरदस्ती कार में बैठाया और उसको वापस उसकी मां के पास ले गया. रास्ते में जलील के बारे में मरियम का सारा भ्रम टूट गया था. उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था और शर्म भी आ रही थी. कि उसने जलील को बहुत इच्छा इंसान मान लिया था. उसने अपनी सगी मां पर यकीन नहीं किया था. यह सोचकर वो रोने लगी. फिर जब वह अपने घर पहुंची तो काफी देर हो चुकी थी. उसकी मां ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली थी . शायद वह यह सोच कर डर गई थी कि उसकी जिंदगी का इकलौता सहारा मरियम उसको छोड़ कर चली गई थी.
A Thousand Splendid Suns By Khaled Hosseini
जब मरियम की मां नाना को दफना दिया गया तो जलील मरियम को अपने साथ हेरात ले गया. अपने घर ले जाकर उसने मरियम को रहने के लिए अपना गेस्ट रूम दिया. वहां जाकर वह बिस्तर पर लेट गई और अपनी आंखें बंद कर लीं. इसके बाद वह ज्यादातर टाइम अपने कमरे में अकेले ही रहती थी. और खाना भी अकेले खाती थी. उसको फैमिली के साथ खाना खाने की परमिशन नहीं थी. वह सिर्फ बाथरूम का इस्तेमाल करने के लिए ही सीढ़ियों से नीचे हॉल में आया करती थी. इन चीज़ों से वह जान चुकी थी कि उसकी औकात वही थी जो उसकी मां उसे बताती थी . वह एक नाजायज औलाद थी! उसी दिन मरियम से मिलने मुल्ला फैजुल्ला वहां आए .मरियम उन्हें देखकर रोने लगी . उसे इस बात का पछतावा हो रहा था कि वह क्यों अपनी मां की बात ना मानकर जलील से मिलने हेरात गई थी. वरना उसकी मां आज जिंदा होतीं . मुल्ला फैजुल्ला ने उसे तसल्ली दी. और कहा कि उसकी मां को दिमागी परेशानी थी. इसमें उसकी कोई गलती नहीं थी.
जलील की फैमिली ने मरियम की शादी जलील के दोस्त राशिद से कराने का फैसला कर लिया. राशिद उम्र में मरियम से 30 साल बड़ा था. वो काबुल में रहता था. उसका एक बेटा मर चुका था और उसकी वाइफ बच्चे को जन्म देते समय गुजर चुकी थी. वह अपना वारिस पैदा करने के लिए शादी करना चाहता था. मरियम यह शादी नहीं करना चाहती थी मगर उसकी मर्जी के खिलाफ राशिद से उसका निकाह करा दिया गया. और वह राशिद के साथ काबुल में उसके घर आ गई. उस घर में आकर उसे अपनेपन वाली कोई फीलिंग महसूस नहीं हुई. राशिद ने उसे एक अलग कमरा दे दिया. और कहा कि जब तक वह उसके साथ कंफर्टेबल नहीं होती थी तब तक वह उसके साथ नहीं सोएगा. इस इस चीज ने मरियम को बड़ी तसल्ली दी . शुरुआती दिनों में मरियम अपने कमरे में ही रहती थी. उसे ऐसा महसूस होता था मानो उसकी जड़ों को उखाड़ कर कहीं और लगा दिया गया था . और वह मुरझा गई थी. रोज जब रात होती, तो उसको एक डर सा लगता. और उसका दिल जोर से धड़कने लगता था कि कहीं आज राशिद उसे अपने साथ सोने के लिए ना बुला ले. फिर धीरे-धीरे उसने घर के काम काज करना शुरू कर दिये . और आसपास की औरतों से मिलना शुरू किया. वह औरतें बस अपने पतियों की बुराई किया करती थीं. मरियम यह सोचती थी कि क्या वाकई में यह सारी औरतें अपने पतियों से परेशान थीं, या फिर यह उनके लिए कोई खेल था. लेकिन अच्छी बात यह थी कि उन सब में से किसी ने भी मरियम को Bastard नहीं कहा था. तभी एक औरत ने पीछे से मरियम के कंधे पर थपथपाया और कहा कि वह शायद राशिद की दूसरी वाइफ थी. उसका नाम फरीबा था , उसके हस्बैंड का नाम हाकिम था. और वह एक स्कूल टीचर थे. फरीबा और हाकिम दोनों खुले विचारों वाले लोग थे . लेकिन राशिद का मानना था कि औरत का चेहरा देखने का हक उसके मां बाप के अलावा सिर्फ उसके हस्बैंड को था. फिर उसने मरियम को नीले रंग का एक नया बुर्का दिया और उसे पहनकर उसके साथ चलने के लिए कहा. इसके बाद दोनों बस में बैठकर एक रेस्तरां में गए जहां उन्होंने आइसक्रीम वगैरह खाई और फिर वह डरी डरी सी राशिद के साथ काबुल की गलियों में घूमती रही . राशिद ने मरियम को एक शॉल खरीद कर दी. मरियम को शॉल पसंद आई थी. लेकिन उससे भी ज्यादा उसने अपने आसपास के लोगों की खुले विचारों वाली सोच को ज्यादा पसंद किया था. उस रात मरियम को काबुल घुमाने के बाद राशिद उसके कमरे में आया और उसके साथ बिस्तर पर लेट गया. उसने जैसे ही मरियम को टच किया , वो डर से कांपने लगी. लेकिन राशिद ने उसको समझा बुझा कर उसके साथ अपनी मनमानी पूरी कर ली. उसके बाद रमजान का महीना आया और फिर ईद आ गई. राशिद मरियम के साथ टहलने निकला. वहां सब लोग एक दूसरे को ईद मुबारक कह रहे थे. रास्ते में फरीबा ने मरियम की तरफ देखकर हाथ हिलाया. तो मरियम ने सिर्फ गर्दन हिलाकर और हंसकर उसका जवाब दिया. राशिद ने उसे फरीबा से दूर रहने की हिदायत दी. उसने कहा कि इसका हस्बैंड हाकिम एक बेवकूफ टाइप का शख्स था. और यह दोनों बहुत बकवास करते थे. अगले दिन जब राशिद के दोस्त ईद की दावत खाने उसके घर पर आए, तो उसने मरियम को ऊपर ही रहने के लिए कहा. उसको बहुत अच्छा लगा कि वह उसकी इज्जत की परवाह करता था. और दूसरी औरतों के प्राइड और ऑनर की भी परवाह करता था . सब लोगों के चले जाने के बाद जब वह घर की सफाई कर रही थी तो वह राशिद के कमरे में पहुंची. वहां पर उसने ड्रेसिंग का दराज खोला तो वह डर गई. वहां पर एक पिस्तौल रखी हुई थी. इसके अलावा उसमें आधी नंगी लड़कियों की तस्वीरों वाली मैगजीन भरी पड़ी थीं. तब उसे समझ में आया कि असल में वह औरतों के मान सम्मान की परवाह करने का सिर्फ दिखावा करता था. कुछ महीनों बाद एक दिन डॉक्टर ने मरियम से कहा कि वह प्रेग्नेंट थी. यह खबर सुनकर राशिद बहुत एक्साइटेड हो गया था . वह चाहता था कि होने वाला बच्चा बेटा ही हो. यह देख कर मरियम टेंशन में आ गई कि अगर बेटी हो गई तो क्या होगा? एक दिन मरियम की तबीयत बिगड़ गई और उसका बच्चा गिर गया. इसके बाद वह 4 साल की शादी में 6 बार प्रेग्नेंट हुई और हर बार उस का का बच्चा गिर गया था. राशिद मरियम से बहुत ज्यादा चिढ़ गया था और उस पर जुल्म करने लगा था. एक दिन गुस्से में उसने मरियम के मुंह में जबरदस्ती छोटे छोटे पत्थर भर दिये और उन्हें चबाने को कहा. मरियम के मुंह से खून आने लगा और उसके दो दांत टूट गए थे . उसी दौरान फरीबा ने एक खूबसूरत सी बच्ची को जन्म दिया . जिसका नाम लैला रखा गया .
और फिर वक्त गुजरता गया और 1987 में लैला 9 साल की हो चुकी थी. उसके बाद सुनहरे थे और वह बहुत खूबसूरत थी. उसका तारिक नाम का एक दोस्त था. जिसे वह बहुत पसंद करती थी. फरीबा और हाकिम लैला से बहुत प्यार करते थे लेकिन आपस में बहुत झगड़ते थे. दरअसल लैला के दोनों बड़े भाई अहमद और नूर उसके पैदा होने के दो साल बाद मुजाहिदीन के साथ सोवियत के खिलाफ लड़ाई में चले गए थे. और फरीबा उनको रोक नहीं पाई थी. वह इसका सारा दोष हाकिम को देती थी कि वह हर समय पढ़ाई में खोया रहता था और उसने बेटों को लड़ाई में जाने से नहीं रोका था. उन दोनों के रिश्ते इतने खराब हो गए थे कि उन्होंने अपने बेडरूम अलग कर लिए थे. फरीबा हमेशा अपने दोनों बेटों के बारे में सोचती रहती थी. और उनकी याद में बहुत तकलीफ महसूस करती थी. वह लैला पर बिल्कुल ध्यान नहीं देती थी. घर के दोनों बेटों के जाने के बाद घर पूरी तरह से बिखर गया था.
A Thousand Splendid Suns By Khaled Hosseini
फ़िर एक दिन एक अनजान आदमी उनके घर यह खबर लेकर आया कि लैला के दोनों भाई अहमद और नूर लड़ाई में मारे गए थे. फरीबा का अपने बेटों के लिए दर्द और ज्यादा बढ़ गया था. जिस दिन उनका मातम मनाया गया, फरीबा ने काले कपड़े पहने थे. और वह उस दिन से काले कपड़े पहन कर रखती थी. उसने नमाज पढ़ना बंद कर दिया था. और ज्यादातर टाइम बिस्तर में सोती रहती थी. घर का सारा काम लैला को करना पड़ता था. वह कभी-कभी अपनी मां के साथ बिस्तर में लेट जाती थी. एक दिन जब वह फरीबा के साथ बिस्तर में लेटी हुई थी तो उसकी मां ने उसको उसके भाइयों की उस समय की बातें सुनाई जब वह छोटे थे. और फिर वह रोने लगी. फरीबा को रोता देख कर लैला भी रोने लगी थी. लैला ने उससे कहा कि वह उसे छोड़कर ना जाए. उसे भी उसकी जरूरत थी. उसके बेटे गुजर गए थे मगर उसकी बेटी अभी जिंदा थी. यह सुन कर फरीबा ने उससे कहा कि वह उस दिन को देखने के लिये जिंदा थी जिस दिन अफगानिस्तान आजाद होगा. सोवियत हारेंगे और उसके बेटों को इंसाफ मिलेगा. और आखिरकार 1989 में सोवियत अफगानिस्तान छोड़कर जाने लगे. इसके 3 साल बाद 1992 में अफगानिस्तान के प्रेसिडेंट मोहम्मद नजीबुल्लाह ने सरेंडर कर दिया . उस दिन से फरीबा ने काले कपड़े पहनना छोड़ दिया था और वह नॉर्मल हो गई थी.
लैला 14 साल की हो चुकी थी और तारिक के साथ उस का रिश्ता गहरा हो गया था. लेकिन अफगानिस्तान में शांति खत्म हो रही थी और टेंशन बढ़ रही थी. आए दिन काबुल मेें घरों पर गलियों में और हर जगह रॉकेट गिर रहे थे. लड़कियों का स्कूल जाना बंद करा दिया गया था क्योंकि उनके साथ रेप होने का डर बढ़ गया था. तारिक की फैमिली काबुल छोड़कर पाकिस्तान जा रही थी. फरीबा भी बढ़ते हुए खतरे को देखकर पाकिस्तान जाने के लिए तैयार हो गई. लैला तारिक से पाकिस्तान में मिलने का सोच कर बहुत खुश थी और वह लोग भी पाकिस्तान जाने की तैयारी करने लगे . उन्होंने साथ ले जाने के लिए जरूरत भर का सामान जमा कर लिया. हाकिम ने साथ ले जाने के लिए अपनी खूब सारी किताबें ले ली थीं. हाकिम को उस वक्त 17 वीं सदी में साएब तबरेजी की काबुल के लिए लिखी हुई पोयम की 2 लाइनें याद आ रही थीं. ' एंड द थाउजेंड स्प्लेंडिड सन्स दैट हाइड बिहाइंड हर वॉल्स '. जिसका मतलब था कि काबुल सिर्फ सूरज और चांद का शहर नहीं था. क्योंकि वह तो पहले से ही दिल पर जादू चलाते थे , बल्कि यह शहर उन हजारों शानदार सूरज से भी ज्यादा चमकते हुए और झिलमिलाते हुए चांद का था जिनके पास बहुत कुछ ऑफर करने को था . और वह इन लाइनों को याद करके रोने लगा. लैला ने उसे तसल्ली देते हुए कहा कि वह लोग फिर वहीं वापस लौट कर आने वाले थे. फिर जब वह यार्ड में से कुछ सामान निकाल रही थी. उस वक्त उसके पेरेंट्स घर के अंदर थे. उन्होंने उसे खाना खाने के लिए बुलाया . लैला को एक सीटी की तेज आवाज सुनाई पड़ी. उसने पलट कर आसमान की तरफ देखा. तभी एक धमाका हुआ. एक रॉकेट उनके घर के ऊपर गिर गया . उसी वक्त वह उड़ कर दूर जमीन पर जाकर गिरी. फरीबा और हाकिम की मौके पर ही मौत हो गई थी. और लैला बेहोश हो गई थी. जब उसे होश आया तो उसने देखा कि वह मरियम और राशिद के घर पर थी. और वह लोग उसकी मरहम पट्टी कर रहे थे. पहले एक हफ्ते तक लैला बेड पर पड़ी रहती थी और उसकी हालत में धीरे-धीरे सुधार आ रहा था. मरियम उसके घावों की मरहम पट्टी करती रहती थी. राशिद ने कहा कि उसके पूरी तरह ठीक होने तक वह वहां पर रह सकती थी. जब राशिद और मरियम ने लैला को बताया कि आखिर क्या हुआ था. तो यह सुनकर उसने रोते हुए कहा की उसके मां-बाप उस वक्त मर गए जब वह उन्हें मरता हुआ देख भी नहीं सकती थी. और फिर वह बोली कि वह भी उनके साथ ही क्यों नहीं मर गई थी !? मरियम लैला को शांत नहीं कर पा रही थी. लैला को देखकर मरियम को वह दिन याद आ गया जब उसकी मां ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली थी और उस वक्त वह भी घर पर मौजूद नहीं थी.
लैला की देखभाल करते हुए एक महीने का वक्त गुजर गया था. तभी अब्दुल शरीफ नाम का एक आदमी लैला से मिलने आया. उसने कहा कि वह अक्सर अपने बिजनेस के सिलसिले में काबुल से पेशावर तक जाया करता था. वहीं पाकिस्तान के एक हॉस्पिटल में उस की मुलाकात उस के दोस्त मोहम्मद तारिक से हुई थी. एक रॉकेट हमले में वह अपने दोनों पैर गवाँ चुका था. उसने लैला का पता देकर यह मैसेज देने के लिए कहा था कि वह उसको बहुत याद करता था. और फिर इलाज के दौरान वहीं उसकी मौत हो गई थी. यह खबर सुनकर लैला के तो मानो होश ही उड़ गए थे. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो गया था? जिंदगी में सब लोग एक के बाद एक उसे छोड़ कर चले गए थे. राशिद उस वक्त 58 साल के करीब हो चुका था. और वह 15 - 16 साल की लैला से शादी करना चाहता था. ताकि वह उसका वारिस पैदा कर सके. जब मरियम को यह बात पता चली तो उसने राशिद से ऐसा करने से मना किया . इस पर राशिद ने मरियम से साफ-साफ कह दिया कि वह लैला को तभी अपने घर में रखने वाला था जब वह उस से शादी करती. वरना वह उसे रिफ्यूजी कैंप भेज देने वाला था जहां उसके साथ कुछ भी बुरा हो सकता था. मरियम ने सारी बात लैला को बताई और इस बारे में उसकी राय पूछी. लैला सारी बातों पर सोच विचार करने के बाद राशिद से शादी करने के लिए तैयार हो गई . लैला ने यह फैसला दो वजहों से लिया था. एक तो यह की इस समय उसका कोई रिश्तेदार नहीं था और तारिक मर चुका था. दूसरा यह कि वह तारिक से प्रेग्नेंट हो चुकी थी. आखिरकार राशिद और लैला की शादी हो गई. इस समय मरियम के साथ बहुत नाइंसाफी हुई थी. अब राशिद लैला के साथ ही सोता था. उसने मरियम के साथ सोना बिल्कुल बंद कर दिया था. खाना सब लोग साथ में मिलकर खाते थे. वह चाहता था कि वह दोनों एक दूसरे को बहने मानें. एक दिन राशिद ने लैला से कहा कि मरियम एक गांव की लड़की थी . वह एक नाजायज औलाद थी. लेकिन बहुत अच्छा काम करती थी. इसमें कोई घमंड नहीं था. उस वक्त तक मरियम की उम्र 33 साल हो चुकी थी. राशिद ने लैला से कहा कि वह नई दुल्हन थी इसलिए उसे जो कुछ भी चाहिए था ,वह मरियम से मांग सकती थी. वह उसके मान सम्मान की हिफाजत के लिए हमेशा उसके साथ था. और फिर राशिद लैला के साथ खुशी-खुशी अपना वक्त गुजारने लगा. इसी तरह वक्त गुजरता गया .फिर कुछ महीनों बाद लैला ने एक बेटी को जन्म दिया. यह देखकर राशिद बहुत नाराज हुआ कि उसे बेटा क्यों नहीं हुआ था ? इस बात को लेकर लैला के साथ उसके झगड़े होने लगे थे. राशिद अपना सारा गुस्सा मरियम पर निकालता था. क्योंकि लैला ने राशिद के साथ सोने से मना कर दिया था. लैला की बेटी का नाम अजीजा रखा गया था. एक रात जब राशिद मरियम को बेल्ट से पीट रहा था. उस वक्त लैला ने उसे बचाया. वह कूदकर मरियम के ऊपर आ गई थी . उसने राशिद से पूछा कि वह उसे क्यों मार रहा था ? इसके बाद राशिद वहां से चला गया था. उसी रात जब मरियम नीचे गई तो उसने पहली बार अजीजा को देखा . बच्ची उसे देखकर स्माइल कर रही थी. उसने बच्ची को अपने हाथों में उठाया और उसे प्यार किया. फिर वह सोने चली गई. इसके बाद यहीं से मरियम और लैला की दोस्ती शुरू हो गई थी. वह दोनों अजीजा की देखभाल करती थीं और रात देर तक आपस में बातें किया करती थीं . अजीजा मरियम के पास बहुत खुश रहती थी . वह लैला से ज्यादा उसे प्यार करती थी. अजीजा को देखकर उसे अपनापन सा लगता था.
A Thousand Splendid Suns By Khaled Hosseini
इसी तरह वक्त गुजरता रहा. और फिर 1994 में अफगानिस्तान में मर्डर लूटपाट और रेप बहुत ज्यादा बढ़ गए थे. मरियम ने सुना कि अफगानिस्तान के लोग अपनी बीवियों और बच्चियों को रेप होने से बचाने के लिए खुद ही अपने हाथों से मार रहे थे. फिर एक दिन मरियम ने लैला को अपनी पूरी कहानी सुना दी कि लोग उसे Bastard क्यों कहते थे ? लैला मरियम की कहानी सुनकर इमोशनल हो गई और उसने कहा कि एक कहानी वह भी उसे सुनाना चाहती थी. उसकी बेटी अजीजा भी एक नाजायज औलाद थी. वह राशिद की नहीं बल्कि तारिक की बेटी थी. उसने आगे कहा कि भले ही मरियम की पिछली जिंदगी बहुत खराब रही थी लेकिन आगे एक बेहतर जिंदगी उसका इंतजार कर रही थी. लैला भाग कर पाकिस्तान जाना चाहती थी. उसने मरियम से भी अपने साथ पाकिस्तान चलने के लिये कहा. लैला ने छुपाकर कुछ पैसे जमा कर रखे थे. उसका पाकिस्तान भागने का इरादा पक्का था. लेकिन वह यह भी जानती थी कि बिना मर्द के दो अकेली औरतों का सफर करना खतरों से भरा हुआ था . मुजाहिदीन ने अकेली औरतों के सफर करने पर रोक लगा रखी थी. उनके साथ किसी आदमी का होना जरूरी था. पाकिस्तान का बॉर्डर अफगानयों के लिए वैसे तो बंद था, लेकिन चोरी छुपे दाखिल हुआ जा सकता था. फिर वह वकील नाम के एक शख्स से मिली. और उसे कहा कि उसके हस्बैंड की डेथ हो चुकी थी. वह अपनी मां और बेटी के साथ पेशावर जाना चाहती थी. क्या वह इस सिलसिले में उनकी मदद कर सकता था ? वह आदमी उनकी मदद करने के लिए मान गया. लेकिन वकील ने लैला की सारी बातें मिलिट्री के एक सिपाही को बता दीं . उसने लैला से बातें करके उसका झूठ पकड़ लिया और कहा कि तुम जानती हो औरतों का अकेले सफर करना जुर्म है. लैला बहुत डर गई और उन्हें जाने देने के लिए भीख मांगने लगी. लेकिन उस सिपाही को उन पर जरा भी तरस नहीं आया और उसने उन दोनों को राशिद के पास वापस भिजवा दिया. जैसे ही वह घर पहुंचीं राशिद वहां पर उनका इंतजार कर रहा था. वह लैला को घसीटता हुआ ऊपर ले कर गया और उसे बहुत मारा. उसने मरियम को भी एक अलग कमरे में ले जाकर बहुत मारा. लैला ने राशिद से कहा कि इसमें मरियम का कोई दोष नहीं था सारी गलती उसकी खुद की थी.
फिर वक्त गुजरता गया और ढाई साल बाद अफगानिस्तान में सितंबर 1996 में तालिबान के आने की शुरुआत हो गई . इनके आने पर पटाखे और म्यूजिक से उनका वेलकम किया गया. राशिद ने मरियम और लैला से कहा कि वहां आने वाले तालिब्ज का ना तो कोई पिछला रिकॉर्ड था और ना ही उनका कोई घर था. लेकिन वह लोग कम से कम उन बेईमान और लालची मुजाहिदीन से बेहतर थे . वह लोग अल्लाह हू अकबर और लॉन्ग लिव तालिबान चिल्लाते हुए अफगानिस्तान में दाखिल हुए. मरियम ने एक तालिब को देखा. उसने लंबी दाढ़ी रखी हुई थी और काले रंग की पगड़ी पहन रखी थी. वह लोग लाउड स्पीकर्स पर अपनी अनाउंसमेंट कर रहे थे कि अब अफगानिस्तान में इस्लाम के खिलाफ जाने वाले हर शख्स का बहुत बुरा हश्र किया जाने वाला था. यह सुनकर राशिद अंदर ही अंदर खुश हो रहा था. इसके अलावा वो कह रहे थे कि अब अफगानी मर्दों को दाढ़ी बढ़ाना और ऊपर काली पगड़ी पहनना शुरू कर देना चाहिए था. उनको दिन में 5 बार नमाज पढ़ना था और नाचना गाना पतंग उड़ाना यह सब बिल्कुल बंद था. चोरी करने वाले की सजा उस का एक हाथ काट दिए जाने की थी . अगर औरतें बिना मर्द को साथ लिए घर से बाहर निकलती थीं तो उसके लिए उन्हें जानवरों की तरह मारे जाने की सजा तय थी. औरतों को मेकअप नहीं करना था, ज्वेलरी नहीं पहनना था और उनको गैर मर्द से नजरें बिल्कुल नहीं मिलाना था . छोटी बच्चियों का स्कूल जाना बंद था. लैला तालिब्ज की बातें सुनकर बहुत नाराज हो गई थी. उसने राशिद से कहा कि वह लोग काबुल की आधी पापुलेशन को घरों में बंद करना चाहते थे. इस पर राशिद ने अपने जवाब में कहा कि वह लोग बिल्कुल सही कर रहे थे . यही असली अफगानिस्तान था.
तालिब्ज ने अफगानिस्तान में इस्लाम से पहले की मूर्तियों को तोड़ दिया . यूनिवर्सिटीज बंद करवा दीं और किताबें जला दीं, सिनेमाघर बंद करवा दिए गये, और घरों में टीवी चलाने पर रोक लगा दी गई थी . एक दिन राशिद ने लैला से कहा कि अजीजा की आंखों का रंग उन दोनों में से किसी से नहीं मिलता था. इसलिए उसे शक था कि वह उसकी बेटी नहीं थी. और वह इसकी शिकायत तालिबान से करने वाला था. लैला यह सुनकर डर गई और राशिद ने फिर से उसके साथ सोना शुरू कर दिया था. वह एक बार फिर से प्रेग्नंट हो गई थी. इस बार उसके बेटा हुआ था. वह बिल्कुल राशिद की तरह ही दिखाई देता था. उसका नाम जलमई रखा गया था. लैला अपने दोनों बच्चों को एक बराबर प्यार करती थी. लेकिन राशिद के प्यार ने जलमई को बहुत गुस्से वाला और जिद्दी बना दिया था. राशिद उसकी हर मांग को पूरी करता था. अजीजा अब 6 साल की हो गई थी और वह भी जलमई से बहुत प्यार करती थी.
फिर एक दिन राशिद ने लैला से कहा कि वह अजीजा को काबुल की गलियों में भीख मांगने के लिए भेजना चाहता था. क्योंकि वहां पर और भी फैमिलीज अपने बच्चों से भीख मंगवाया करती थीं. यह सुनकर जब लैला ने राशिद को बुरा भला कहा. तो उसने गुस्से में लैला को थप्पड़ मार दिया. लैला ने भी रशीद को जोर से धक्का दे दिया. और फिर ऐसी ही बहस और झगड़ों के बीच दिन गुजरते रहे.
साल 2000 में काबुल में बहुत भयानक सूखा पड़ा. नदी का पानी सूख गया था. वहां पानी की बहुत भयंकर कमी हो गई थी. इसके अलावा राशिद की जूतों की दुकान में आग भी लग गई थी. उनका सब कुछ बिक गया था और उनके भूखों मरने की नौबत आ गई थी. राशिद ने अजीजा को एक अनाथ आश्रम में भिजवा दिया था. इस बीच जलमई थोड़ा बड़ा और समझदार हो गया था. एक दिन उसने चिल्लाकर कहा दरवाजे पर कोई मिलने आया था. जब लैला दरवाजे के पास पहुंची तो वहां पर तारिक को देखकर शॉक हो गई. उसके घुटने कांपने लगे और वो डर गई. उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. उसने अपनी आंखों को बंद किया और फिर खोल कर ध्यान से देखा. उसके सामने वाकई में तारिक ही खड़ा था, जिसके बारे में उसके मरने की झूठी कहानी सुनाई गई थी. वो उसके पास भाग कर गई और उससे मिली.
बाद में पता चला कि राशिद ने अब्दुल शरीफ को पैसे देकर लैला को तारिक के मरने की झूठी कहानी सुनाने के लिए कहा था. अब इतने सालों बाद वह लैला से मिलने आया था. तारिक ने अपनी पूरी कहानी लैला को सुना दी. इसके बाद लैला ने कहा कि उसे झूठ बोला गया था कि वह मर गया था अगर उसे पता होता कि वह जिंदा था तो वह जरूर उसी से शादी करती. लैला ने उससे कहा कि उसकी अजीजा नाम की एक बेटी थी जो असल में तारिक की ही बेटी थी जो इस वक्त एक अनाथ आश्रम में रह रही थी. इस पर तारिक ने कहा कि वह अपनी बेटी से मिलना चाहता था. उधर जलमई ने राशिद से बता दिया था कि उसकी मां एक गैर मर्द से मिल रही थी. यह सुनकर राशिद बेल्ट लाकर लैला को बहुत भयंकर तरीके से जानवरों की तरह मारने लगा. और मारते मारते उसकी खाल उधेड़ दी. लैला ने खुद को बचाने के लिए उस को धक्का दिया. पीछे से मरियम ने चिल्ला कर राशिद को रुक जाने के लिए कहा. लेकिन वह नहीं माना और उसने लैला को मारना जारी रखा. मरियम उसके बाल पकड़कर नोचने लगी और उसे नाखूनों से मारने लगी. इस पर जब वह मरियम की तरफ पलटा और गुस्से में अपनी आंखों से उसकी तरफ घूर कर देखने लगा तो उसे एक झटके में उसके साथ शादी के सारे साल याद आ गए. फिर वह मरियम को बेल्ट से मारने के लिए आगे बढ़ा तो लैला ने उसके सिर पर कांच का गिलास जोर से मार दिया. उसके सिर से खून बहने लगा. और वह पलट कर अपने हाथों से लैला का गला दबाने लगा. यह देख कर मरियम लैला की जान बचाने के लिए परेशान हो गई. वह भागकर बाहर गई और मिट्टी खोदने वाला एक खुरपा लेकर आई . उस वक्त लैला का चेहरा नीला पड़ चुका था. उसकी सांस मुश्किल से आ रही थी और राशिद अभी भी उसका गला दबा रहा था. उस ने इतने सालों में जो कुछ भी सहा था उस का गुस्सा आज निकल कर सामने आ गया था. उसने जोर से चिल्ला कर कहा राशिद. और फिर जैसे ही वह घूम कर पलटा, उसने पूरी ताकत से खुरपे को उसके सिर में मार दिया. उसका खेल वही खत्म हो गया और वह मर चुका था. जिंदगी में पहली बार मरियम ने इतनी हिम्मत दिखाई थी और बिल्कुल सही जगह पर दिखाई थी. सामने राशिद की लाश पड़ी थी. वह लैला के पास गई और उससे पूछा कि क्या वह ठीक थी. इसके जवाब में लैला ने धीरे से अपने सिर को हिला दिया था. मरियम ने लैला से कहा कि उन्हें राशिद की लाश को ठिकाने लगा देना चाहिए था. और दूरदराज के किसी इलाके में भाग जाना चाहिए था. लैला इस वक्त डरी हुई थी और मरियम में अपनी मां को देख रही थी. जो अपने बच्चे की हिफाजत करने के लिए कुछ भी कर सकती थी. लेकिन फिर मरियम को यकीन हो गया कि तालिबान या सरकार उन्हें नहीं छोड़ेगी. पूरे अफगानिस्तान में उनका कहीं भी छुपना नामुमकिन था. राशिद को उसने मारा था. इसलिये वह इस वजह से बाकी लोगों को परेशानी उठाता हुआ नहीं देखना चाहती थी . वह लैला को अपने दोनों बच्चों को लेकर तारिक के साथ पाकिस्तान भेज देना चाहती थी. लेकिन लैला इसके लिए तैयार नहीं हो रही थी. वह मरियम के कंधे पर सिर रखकर रोने लगी. इसके बाद मरियम ने उनके लिए लंच बनाया और लैला से दोनों बच्चों का ख्याल रखने के लिए कहा. और उनको वहां से भेज दिया. यह आखिरी बार था जब लैला ने पलटकर मरियम को देखा था. वह उसे हाथ हिलाती हुई नजर आई थी.
A Thousand Splendid Suns By Khaled Hosseini
इसके बाद मरियम को जेल में बंद कर दिया गया था. उसके मुकदमे की कोई कार्रवाई नहीं की गई थी. बस उससे कुछ पेपर्स पर साइन करवाए गए थे. 27 सालों में दूसरी बार मरियम ने किसी कागज पर अपना नाम लिखा था. पहली बार उसने अपनी शादी के डॉक्यूमेंट पर अपना नाम लिखा था और अब दूसरी बार जेल के डाक्यूमेंट्स में. जेल में वह माँएं भी थीं. जिन्होंने जेल में ही अपने बच्चों को जन्म दिया था. वह बच्चे वही पोयम्स गा रहे थे जो जलील ने कभी उसे सिखाई थीं. जेल में वह अपने बचपन के दिनों को याद करने लगी. उसने अपनी माँ नाना को, जलील को, और मुल्ला फैजुल्ला को याद किया और सोचने लगी कि आखिर उस से क्या गलती हुई थी. उन सब को याद करके वह रोने लगी थी. अगले दिन उसे गाजी स्टेडियम ले जाया गया. उसे मालूम था कि उसकी लाइफ कुछ ही मिनटों की रह गई थी. जब उसे सबके सामने ले जाया गया तो उसे अपने किए की कोई शर्म नहीं थी. उसे याद आ रहा था कि वह इस दुनिया में एक नाजायज औलाद बन कर आई थी जिसका मतलब था एक फालतू चीज, और शर्मनाक शख्सियत. लेकिन फिर भी उसे कुछ लोगों से प्यार मिला. आखरी वक्त में उसे मुल्ला फैजुल्ला की सिखाई हुई कुरान की कुछ बातें याद आईं. फिर गार्ड्स ने उसे घुटनों पर बैठने को कहा. और आखिरकार उसे मार दिया गया.
पाकिस्तान में लैला और तारिक ने एक खुशहाल जिंदगी जीना शुरु कर दिया था. वहां पर वह दोनों वरी नाम के एक खूबसूरत इलाके में एक होटल में काम करने लगे थे. कभी-कभी वह लोग घूमने के लिए कश्मीर जाते थे वहां पर झेलम नदी को देखते थे और अपनी लाइफ एंजॉय करते थे. उनकी लाइफ बहुत अच्छी और कंफर्टेबल गुजर रही थी. लेकिन उनको इस कंफर्टेबल लाइफ मिलने के पीछे किसी का सैक्रिफाइस था और किसी ने अपनी जान दी थी. इन लोगों का मन यहां पर नहीं लगता था. उनको काबुल की याद आती थी. उन्होंने अफगानिस्तान जाने का फैसला कर लिया था .फिर जब अफगानिस्तान का माहौल नॉर्मल हो गया तो लैला और तारिक पहले काबुल ना जाकर उस गांव में गए जहां मरियम बड़ी हुई थी . वहां पर उनको मुल्ला फैजुल्ला का बेटा मिला. उसने उनको एक लेटर दिया. वह लेटर सालों पहले जलील ने अपनी बेटी मरियम के लिए लिखा था. उसने अपनी बेटी से माफी मांगी थी. कि उसे उसके लिए लड़ना चाहिए था और वह नहीं लड़ पाया था. इसके बाद वह लोग अफगानिस्तान में ही रहने लगे. और लैला उसी अनाथ आश्रम में काम करने लगी थी जिसमें अजीजा को रखा गया था. इसके बाद वह तीसरी बार प्रेगनेंट हो गई. इस बार लैला ने यह फैसला किया कि बेटी पैदा होने पर उसने उसका नाम मरियम ही रखना था .
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