A Monk's Guide To Happiness

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A Monk's Guide To Happiness

Gelong Thubten
21वीं सदी में मेडिटेशन किस तरह से इंसान की हेल्प कर सकता है।

दो लफ्जों  में। 
2019 में आई ये बुक हमें ये बताती है कि किस तरह से हम अपनी लाइफ की समस्याओं से खुद को दूर कर सकते हैं और किस तरह से शांति प्राप्त कर सकते हैं। इस बुक में हम ऑथर के 25 साल के एक्सपीरिएंस की हेल्प से मेडिटेशन के बारे में अच्छे से लर्न कर पाएंगे।

  ये बुक किसके लिए है? 
- ये बुक उन व्यक्तियों के लिए है जो अपनी लाइफ की रोज़ाना की प्रॉबलम्स से तंग आ चुके हैं। 
- ये बुक उन सोशल मीडिया यूज़र्स के लिए है जो फेसबुक और इंस्टाग्राम से परेशान हो चुके हैं। 
- ये बुक उन लोगों के लिए भी है जो माइंडफुलनेस के बारे में जानना चाहते हैं। 

लेखक के बारे में। 
Gelong Thubten बौद्ध धर्म को फॉलो करने वाले और मेडिटेशन परफॉर्म करने वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। लंदन और न्यूयॉर्क में उन्होंने एक्टर के तौर पर भी काम किया है। 21 साल की उम्र तक वो अपनी रोज़ाना की पार्टी वाली लाइफ स्टाइल से तंग आ चुके थे और तब उन्होंने बौद्ध धर्म को फॉलो करना स्टार्ट किया। उसके बाद से ही वो मेडिटेशन को परफॉर्म कर रहे हैं।

हैप्पीनेस का मतलब होता है प्रेजेंट मूमेंट में फ्रीडम फील करना।
जरा सोचिए अगर आपके पास कोई सुपर पावर लेने का ऑप्शन होता तो आप कौन सी सुपरपावर अपनाना चाहते? लोग हमेशा इस सवाल का जवाब देते हैं कि मैं गायब होने की सुपरपावर चाहता या मैं फ्लाई करने की पावर हांसिल करना चाहता। आपने कभी इस चीज के बारे में नहीं सोचा होगा कि क्यों न हमारे पास कभी भी हैप्पीनेस हांसिल करने की सुपर पावर हो। ये सुपर पावर आपको शायद उतनी अट्रैक्टिव न लगे लेकिन ये बहुत पावरफुल चीज है। इस बुक में हम यही जानने का प्रयास करेंगे कि किस तरह से हम इस सुपरपावर को अचीव कर सकते हैं। इस समरी में हम जानेंगे कि आखिर क्यों हम हैप्पीनेस को गलत जगह फाइंड करने की कोशिश करते हैं? किस तरह से हम अपने माइंड को हैप्पीनेस जनरेट करने के लिए ट्रेन कर सकते हैं। और आप हैप्पीनेस को एक्वायर करने के लिए क्या कर सकते हैं?

तो चलिए शुरू करते हैं!

इंसान हमेशा यही जानने की कोशिश करता है कि किस तरह से खुश रहा जाता है। लेकिन वह सबसे फंडामेंटल सवाल तो भूल ही जाता है। सबसे फंडामेंटल सवाल यह उठता है कि आखिर हैप्पीनेस का मतलब क्या होता है? शायद आपको लग रहा होगा कि हम आपको हैप्पीनेस के बारे में कुछ फिलॉसफी से रिलेटेड बातें बताएंगे। लेकिन अगर आप ध्यान से समझने की कोशिश करेंगे तो हैप्पीनेस का सीधा मतलब यह होता है कि हम अपनी लाइफ में किस तरह से चीजों को इंप्लीमेंट कर रहे हैं।

जब आप किसी चीज को फाइंड करने की कोशिश करते हैं तो आपको यह पता होना चाहिए कि आप किस चीज को फाइंड कर रहे हैं। क्योंकि अगर आपको यही नहीं पता रहेगा कि आप क्या फाइंड कर रहे हैं तो उसका मिल पाना नामुमकिन है। सबसे पहला सवाल है कि हैप्पीनेस किस तरह से किसी की लाइफ में जनरेट होती है? हैप्पीनेस को असल में तीन कंपोनेंट में ब्रेक किया जा सकता है।

सबसे पहला कंपोनेंट होता है फुलनेस। जब कोई इंसान अंदर से खुश फील करता है तब उसे लाइफ में किसी चीज की कमी नहीं नजर आ रही होती है। कोई भी इंसान जब खुश होता है तो वह प्रजेंट मोमेंट को पूरी तरह से एन्जॉय करता है। किसी भी खुश इंसान को जब आप देखेंगे तो उसकी खुशी का मतलब यह होता है कि वह ऐसे किसी चीज को पाने की इच्छा नहीं रखता है जो कि उसके पास नहीं है। खुशी के माहौल में इंसान अपने पास मौजूद चीजों से पूरी तरह से सेटिस्फाई फील करता है और वह प्रजेंट मोमेंट को पूरी तरह से एंजॉय करने की कोशिश करता है।

हैप्पीनेस का सेकंड कंपोनेंट जो होता है वह होती है प्रजेंट मूवमेंट को लीड करने की फीलिंग। अगर आप प्रजेंट मोमेंट में खुश होना चाहते हैं तो यह बहुत जरूरी है कि आप अपने पास्ट को लेकर या फिर अपने फ्यूचर को लेकर भावनाओं में ना बहें। कोई भी व्यक्ति जब अपने पास्ट की पेनफुल मेमोरीज को याद करता है तो वह यादें व्यक्ति केप्रजेंट मोमेंट को भी खराब कर देती है। अगर हमें प्रेजेंट में अपनी हैप्पीनेस को पूरी तरह से एंजॉय करना है तो यह बहुत जरूरी है कि हम उस मोमेंट को पूरी तरह से एक्सपीरियंस करें। 

हैप्पीनेस के साथ हमारे अंदर एक सेंस ऑफ फ्रीडम भी जनरेट होती है। और यही हैप्पीनेस का तीसरा कंपोनेंट भी होती है। जब हम खुश होते हैं तो फिर हम नेगेटिव इमोशंस को खुद से दूर करने की कोशिश कर रहे होते हैं। हैप्पीनेस के माहौल में हम अपने फ्यूचर को एंटीसिपेट नहीं करते हैं यानी कि हम फ्यूचर के बारे में कुछ अंदाजा लगाने की कोशिश नहीं करते। बल्कि हम यह चाहते हैं कि जैसी चीजें चल रही है उसी तरह से चलती रहें। हैप्पीनेस फील करते टाइम हम उन सभी चीजों से खुद को दूर कर लेते हैं जो हमें हमारी हैप्पीनेस को हमसे से दूर ले जाते हैं।

जब हम हैप्पीनेस को अपने अंदर नहीं बल्कि बाहरी चीजों में फाइंड करने की कोशिश करते हैं तब हमारे अंदर अनहैप्पीनेस की फीलिंग डेवलप होती है।
अगर हैप्पीनेस का मतलब होता है प्रजेंट मूमेंट को एंजॉय करना और फ्रीडम फील करना तो अनहैप्पीनेस का मीनिंग इसका बिल्कुल ऑपोजिट होता है। जब हम अनहैप्पी होते हैं तब हम इनकंप्लीट फील करते हैं। हमें ऐसा महसूस होता है कि हमारी लाइफ में कुछ खालीपन सा है और ऐसी कोई चीज है जो कि हमारे पास नहीं है।

आइए जरा अच्छे से अनहैप्पीनेस के नेचर को समझने की कोशिश करते हैं। आखिर हम इनकंप्लीट कब फील करते हैं? किसी के भी अंदर इनकंप्लीटनेस की फीलिंग तब आती है जब उस इंसान कोई कोई चीज चाहिए होती है और वो उसके पास नहीं होती है लेकिन उसे लगता है कि वह चीज उसके पास होनी चाहिए। 

एग्जांपल के लिए सोचिये कि किसी व्यक्ति ने अपनी जॉब में बहुत अच्छा परफॉर्म किया और उसे लगता है कि उसका प्रमोशन होना चाहिए। उस व्यक्ति को लगता है कि जब उसका प्रमोशन होगा तो वह बहुत अच्छा फील करेगा और उसे ख़ुशी का एहसास होगा। उस व्यक्ति की यही चाहत उसके अंदर इनकंप्लीटनेस की फीलिंग डेवलप कर देगी। व्यक्ति को लगता है कि उसके पास प्रमोशन नहीं है तो फिर आपके पास खुशी भी नहीं है। उसके दिमाग में प्रमोशन एक मिसिंग पीस की तरह जनरेट हो जाता है जो कि उसको लगता है कि हैप्पीनेस को ब्लॉक कर रहा है। 

अगर हम इस चीज के बारे में समझने का प्रयास करेंगे तो हमें एहसास होगा कि हम अपनी हैप्पीनेस को उन चीजों में ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं जो कि हमारे हाथ में है ही नहीं। हमें लगता है कि कोई चीज है जो हमें हासिल हो जाएगी तो हमें खुशी का एहसास होगा लेकिन असल में ऐसा नहीं होता है। अगर हम ऐसा फील करते हैं तो हम खुद अपनी हैप्पीनेस को ब्लॉक कर रहे होते हैं। इसलिए बहुत ज्यादा जरूरी है कि आप अपनी हैप्पीनेस को अपने हाथों में ही रखें। जैसा कि एग्जांपल में हमने आपको बताया कि प्रमोशन ना मिलने से वह व्यक्ति अनहैप्पीनेस का एहसास कर रहा था। मान लीजिये अगर वह लकी रहा और उसको प्रमोशन मिल गया तो उसे यह प्रमोशन किस तरह से और कबतक से अच्छा फील कराएगा? ऐसी हैप्पीनेस बहुत ही शॉर्ट टर्म के लिए होती है। आपको एक चीज हासिल हो जाएगी तब आपको किसी दूसरी चीज की डिजायर होने लगेगी। आपको लगेगा कि अब आपको वह दूसरी चीज चाहिए तभी आपको हैप्पीनेस का एहसास होगा।

इंसान का यही नेचर होता है। जब तक उसे उसके मन की चीज नहीं मिल जाती उसे ऐसा महसूस होता है कि उसकी लाइफ में किसी चीज की कमी है और उस चीज की कमी की वजह से उसकी लाइफ में अनहैप्पीनेस है।

मॉडर्न कल्चर की वजह से इंसानों के अंदर चीजों की चाहत पैदा होती है। 

अभी हमने आपको बताया कि किसी भी इंसान के अंदर अनहैप्पीनेस का सबसे बड़ा कारण है उसकी डिजायर। इंसान की डिजायर कभी नहीं खत्म होती है। वह हमेशा किसी ना किसी चीज को लेकर अपनी लाइफ में इनकंप्लीट फील करता ही रहता है। आखिर ऐसा क्यों होता है?

दरअसल आजकल के समय में हम एडवर्टाइजमेंट से इतना घिर चुके हैं कि हमारे अंदर किसी ना किसी चीज को लेकर यह चलता ही रहता है कि हमें वह चीज हासिल करनी है। आप चाहे सोशल मीडिया पर टाइम स्पेंड कर रहे हो या फिर टीवी देख रहे हो आपको हर जगह एडवर्टाइजमेंट दिखेंगे। एडवर्टाइजमेंट हमें यह बताने की कोशिश करते हैं कि हम अगर उस एडवर्टाइजमेंट में दिखाने जाने वाला प्रोडक्ट को खरीद लेते हैं तो हमारी लाइफ से बहुत ज्यादा ब्यूटीफुल हो जाएगी और बहुत ज्यादा एफिशिएंट हो जाएगी। एडवरटाइजमेंट हमारे माइंड में यह डालने की कोशिश करते हैं कि उस प्रोडक्ट के हमारी लाइफ में ना होने से हम अनहैप्पी हैं।

बिल्कुल इसी तरह से जब आप फेसबुक या फिर इंस्टाग्राम पर देखते हैं कि कुछ लोग बाहर घूम रहे हैं, एंजॉय कर रहे हैं तब आपको लगता है कि उनकी लाइफ में बहुत ज्यादा आराम है और उनको देखकर आपको यह एहसास होता है कि आप तो उनसे बहुत पीछे हैं। इन सभी चीजों से हमारे लाइफ में बस यह मैसेज भेजा जाता है कि हमारी लाइफ इनकंप्लीट है चाहे वह सोशल मीडिया हो, टीवी हो या फिर एडवर्टाइजमेंट। 

हर तरफ से इंसान को इनकंप्लीट फील करवाने की पूरी कोशिश की जाती है। और यही इनकंप्लीटनेस फील करने के बाद इंसान यह महसूस करता है कि उसकी लाइफ में हैप्पीनेस की कमी है। यह सभी चीजें हमारे अंदर डिजायर पैदा करती है कि हम किसी चीज को हासिल करें। जब हम कोई चीज हासिल कर लेते हैं तब हमें दूसरे एडवर्टाइजमेंट दूसरी तरह की चीजें दिखाते हैं और फिर से हमारे अंदर डिजायर पैदा हो जाती है। यह साइकिल हमेशा चलती रहेगी। आपको इससे बचने का प्रयास करना है।

अगर हम बाहरी चीजों में हैप्पीनेस फाइंड करने की कोशिश करेंगे तो हमें अनहैप्पीनेस ही मिलेगी।
मॉडर्न कल्चर की वजह से हमारे माइंड में हैप्पीनेस को लेकर गलत धारणाएं बन गई है। लेकिन सिर्फ कल्चर को ही ब्लेम करना सही नहीं है। इंसान जब एक्सटर्नल सोर्स पर डिपेंड होने लगता है तो भी उसकी लाइफ में अनहैप्पीनेस क्रिएट हो जाती है। जरूरी नहीं है कि कोई ऐसी चीज हो जो कि आपके पास ना हो और आप उसकी वजह से अनहैप्पी फील करें। कई बार ऐसा होता है कि हम अपने इमोशंस की वजह से भी अनहैप्पी फील करते हैं।

रोमांटिक रिलेशनशिप या फिर किसी दोस्त के न होने का एहसास भी हमें अनहैप्पी फीलिंग प्रोवाइड करता है। एक बात हमें हमेशा अपने माइंड में रखनी चाहिए कि हर चीज का अंत निश्चित है। चाहे वह रोमांटिक रिलेशनशिप हो या फिर कोई और भी चीज। एक ना एक दिन उसे खत्म होना ही है।

जब हम आउट साइड सोर्स से हैप्पीनेस जनरेट करने की कोशिश करते हैं तो हम अपनी मेंटल हैबिट को इतना ज्यादा स्ट्रेच कर रहे होते हैं कि उससे अनहैप्पीनेस जनरेट होती है। हम अपने अंदर कंटीन्यूअस डिसेटिस्फेक्शन डेवलप कर लेते हैं। अगर हमें वह चीज मिल भी जाती है जिसकी हमें तलाश होती है तो फिर हमारी कोशिश यह रहने लगती है कि फिर से किसी ऐसी चीज को ढूंढा जाए जिसकी हमारी लाइफ में कमी हो।

हम एक ऐसे इंसान बन जाते हैं जो कि किसी पार्टी में एक ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहा होता है कि जो उससे बात कर सके। हम एक ऐसे व्यक्ति की तरह हो जाते हैं जो कि कभी भी अपने पास मौजूद चीजों से सेटिस्फाई नहीं होता वह हमेशा एक डिसएप्वाइंटिंग चीज से दूसरी डिसएप्वाइंटिंग चीज के ऊपर जंप करता है। हमारी इसी कंपल्सिव हैबिट की वजह से हम अपने प्रजेंट मूवमेंट को एंजॉय करने की बजाय दूसरी चीजों को लेकर अनहैप्पीनेस फील करते हैं और फिर हम ऐसी चीजें को पाने की कोशिश करने लग जाते हैं जो कि हमारी रीच में नहीं होती है और यही किसी की लाइफ में अनहैप्पीनेस का सबसे फंडामेंटल कारण होता है।

अनहैप्पीनेस तभी आती है जब इंसान अपने एक्सपीरिएंस को हांसिल करने की कोशिश करता है या फिर उन्हें खुद से दूर करने की कोशिश करता है। 

अभी तक हमने यह जानने की कोशिश  कि किस तरह से बाहरी चीजों पर अपनी हैप्पीनेस के लिए डिपेंड होना सही नहीं है। हालांकि कभी-कभी वह चीजें भी हमें हमारी हैप्पीनेस से दूर ले जाती हैं जिन्हें हम अपनी लाइफ में नहीं चाहते हैं। जैसे कि कुछ लोग, कुछ जगह और कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जो कि हम अवॉइड करते हैं। हम नहीं चाहते कि हम उन्हें एक्सपीरियंस करें। और जब वह हमारे सामने आ जाती हैं तो हम चाहते हैं कि उनसे हमारा पीछा जल्द से जल्द छूट जाए और हम उन्हें खुद से दूर कर सकें।

एग्जांपल के लिए सोचिए कि आप के सर में दर्द हो रहा है। दर्द होना अलग बात है, लेकिन जब आप उस दर्द को कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं तो आप अपने दर्द को और ज्यादा महसूस करते हैं। आप चाहते हैं कि आप अपने दर्द को कहें कि  "मुझसे दूर हो जाओ ना ।"

लेकिन जरा सोचिए कि अगर आप अपने सर दर्द के बारे में या फिर उसको खत्म करने के बारे में सोचना बंद कर देंगे तो क्या होगा? आप के सर में दर्द रहेगा लेकिन आपके अंदर से उसको रोकने की फीलिंग कहीं गायब हो जाएगी। आप न्यूट्रल फील करने लगेंगे। और फिर आपको वह हेडेक ज्यादा डिस्टर्ब नहीं करेगा। 

यही तरीका हर उस चीज के लिए हमें अपनाना चाहिए जिसकी हमें अपनी लाइफ में डिजायर होने लगती है। अगर हम चीजों को हासिल करने की कोशिश करना छोड़ देंगे तो हम शायद खुद को अनहैप्पीनेस से दूर कर सकेंगे। यहां पर हम उन चीजों की बात कर रहे हैं जो कि हमारे कंट्रोल नहीं है, लेकिन हमें उन चीजों की डिजायर होने लगती है।

एक और बहुत जरूरी थी जो कि हमें समझनी है वह यह कि हमारे दर्द कभी उन चीजों की वजह से नहीं होते जिन्हें हम पास लाना चाहते हैं फिर खुद से दूर ले जाना चाहते हैं। हमारी लाइफ में अनहैप्पीनेस तब आती है जब हम किसी ऐसी चीज को अपने पास लाने की या फिर किसी ऐसी चीज को खुद से दूर करने की कोशिश करते हैं जो कि हमारे कंट्रोल में नहीं होती। इसलिए इसका एक बहुत सिंपल सॉल्यूशन है कि जो चीज जैसी उसे वैसे ही रहने दिया जाए। यह कहने में बहुत आसान है लेकिन करना मुश्किल है। इसलिए अगर आपको अपनी लाइफ में हैप्पीनेस चाहिए तो आप कोशिश करें कि चीजों को जैसे का तैसा रहने दें।

अगर हमें चीजों को हांसिल करना या उनसे खुद को दूर करना अवॉइड करना है तो फिर हमें उनको न्यूट्रल तरीके से ऑब्जर्व करना सीखना होगा।
अगर आपको अपनी बॉडी की मसल्स को ट्रेन करना होता है तो आप क्या करते हैं? बहुत ही सिंपल जवाब है आप वर्कआउट करते हैं। कुछ ट्रेनिंग करते हैं और अपनी उस मसल्स को टारगेट करते हैं जिसे आप डेवलप करना चाह रहे हैं। बिल्कुल सेम यही चीज आपको करनी चाहिए जब आप अपनी माइंड की कैपेबिलिटी को स्ट्रांग बनाना चाहते हैं। माइंड की कैपेबिलिटी को स्ट्रांग करने का मतलब है अपनी मेंटल मसल को स्ट्रांग करना।

अगर आप चाहते हैं कि आप अपनी लाइफ में चीजों को वो जैसी हैं उसी तरह से रहने दे तो उसके लिए बहुत जरूरी है कि अपने माइंड को इस तरह से ट्रेन करें कि आप चीजों को न्यूट्रल तरीके से ऑब्जर्व कर सकें। और अगर आपको यह करना है तो इसके लिए एक सिंपल एक्सरसाइज है और वह मेडिटेशन। शायद आपने इसके बारे में पहले भी सुना होगा और हो सकता है आपने इसे करने की कोशिश भी कर ली होगी। बहुत समय से लोग इसके बारे में बातें कर रहे हैं। गौतम बुद्ध ने भी इसके बारे में काफी डिटेल में लोगों को समझाने की कोशिश की थी। 

अगर आप चाहते हैं कि आप अपनी लाइफ में हैप्पीनेस लेकर आएं तो बहुत जरूरी है कि आप थोड़ा समय निकालकर मेडिटेशन करें। बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो मेडिटेशन करने के पॉइंट को ही समझने का प्रयास नहीं करते। कई लोग मेडिटेशन को स्ट्रेस रिलीज करने का एक जरिया समझते हैं। दिन में जब हम 15 मिनट के लिए अपनी लाइफ से सारी फालतू की चीजों को निकालकर सिर्फ अपने माइंडज़ अपनी बॉडी और अपने सेंसेशन पर फोकस करते हैं तब हमें वह पावर मिलती है कि हम दोबारा से अपनी लाइफ की समस्याओं को फेस कर सकें। लेकिन अगर आप यह सोचते हैं कि मेडिटेशन करने का सिर्फ यही मकसद होता है कि आप अच्छा फील करें और आपको अपनी समस्याओं से लड़ने की ताकत मिले तो आप गलत हैं। 

मेडिटेशन करने का असल गोल यह होता है कि आप उसकी हेल्प से खुश रहने की एबिलिटी को डेवलप करें। कभी-कभी ऐसा होता है कि मेडिटेशन करने के समय जब इंसान अपने आसपास की चीजों को, टेंशन को अवॉइड करता है और सिर्फ अपनी बॉडी पर फोकस करता है तो उसे ख़ुशी का एहसास होता है। लेकिन जब वह मेडिटेशन  करके हटता है तो फिर उसे दोबारा से अपनी लाइफ की प्रॉब्लम है दिखने लगती है। मेडिटेशन करने का मकसद यही होता है कि जब आप मेडिटेशन करके उठें तब भी आपके अंदर वह एनर्जी और वह एबिलिटी हो कि आप अपने आप को हैप्पीनेस का फील दे सकें।

रोजाना की परिस्थितियों में माइंडफुलनेस की प्रैक्टिस करके हम उसे अपनी हैबिट बना सकते हैं। 

मेंटल एक्सरसाइज के लिए मेडिटेशन एक बहुत अच्छा तरीका है। मेडिटेशन की हेल्प से हम अपने इमोशन को, अपने सेंसेशन को और अपने एक्सपीरियंस को न्यूट्रल तरीके से ऑब्जर्व कर सकते हैं। इंसान जो चीजें मेडिटेशन के दौरान करता है बहुत जरूरी है कि उन्हें रोजाना के जीवन में अप्लाई  करें। यहां एक सवाल पैदा होता है कि एक्चुअली में हम मेडिटेशन के दौरान क्या करते हैं?

जनरल तौर पर बात की जाए मेडिटेशन की एक्सरसाइज में 3 स्टेप होते हैं। पहला स्टेप हम अपने माइंड पर फोकस करते हैं और प्रजेंट मूवमेंट को ऑब्जर्व करते हैं। जो लोग मेडिटेशन को पहली बार करते हैं या फिर मेडिटेशन के शुरुआती दौर में होते हैं वह इसके लिए अपनी सांसो पर या फिर अपनी बॉडी के पार्ट पर फोकस करते हैं। ऐसे समय में इंसान का मेन ऑब्जेक्टिव होता है किसी ऐसे चीज को एक्सपीरियंस करना जो कि जजमेंटल ना हो।

इस सिचुएशन में हम ना ही किसी चीज को पाने की कोशिश करते हैं और ना ही किसी चीज को खुद से दूर करने की कोशिश करते हैं। हम सिंपल अपने एक्सपीरियंस को एक्सेप्ट करने की कोशिश करते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि हमारा माइंड कुछ और दूसरे सेंसेशन को फील करने लगता है और यहीं पर दूसरा स्टेप शुरू होता है। मेडिटेशन के दौरान हमें उस पॉइंट को नोटिस करना चाहिए जब हमारा माइंड कहीं दूसरी तरफ डाइवर्ट होने लगता है।

थर्ड स्टेप में हमें अपने माइंड को दोबारा से उसी पॉइंट पर लाना होता है जहां हम फोकस कर रहे होते हैं। और यह साइकिल मेडिटेशन के दौरान रिपीट होती रहती है। ऐसा बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि मेडिटेशन करने के लिए आपको अपनी सांसो पर या फिर अपनी बॉडी पर फोकस करना है। आप मेडिटेशन कभी भी कर सकते हैं। जब आप ब्रश कर रहे हों, लंच कर रहे हो या फिर सीढियां चढ़ रहे हों तब भी आप अपने माइंड को एक पॉइंट पर फोकस करके बाकी चीजों से अपना ध्यान हटा सकते हैं और मेडिटेशन परफॉर्म कर सकते हैं। 

एग्जांपल के लिए जब आप ब्रश करते हैं तो उस काम के सेंसेशन को फील करिए। किस तरह से टूथपेस्ट आपके मुंह के अंदर मिक्स हो जाता है, किस तरह से आप ब्रश को अपने दांतों पर रब करते हैं पर अगर इस दौरान आपका माइंड कहीं डाइवर्ट हो तो सिंपल वे में उसको वापस उसी पॉइंट पर ले आइये जहां पर आप फोकस कर रहे थे। आप जितना ज्यादा मेडिटेशन को या फिर कहें माइंडफूलनेस को प्रैक्टिस करेंगे आप उसमें उतनी ज्यादा माहिर होते जाएंगे।

माइंडफुलनेस मेडिटेशन के लिए माइंड फुल होना जरूरी है।
सबसे पहला स्टेप अपने माइंड को किसी पॉइंट पर फोकस करिए। दूसरा स्टेप उस समय को नोटिस करिये जब आपका माइंड कहीं डाइवर्ट होता है और तीसरा स्टेप उसे वापस से फोकस वाले पॉइंट पर ले कर आइए। मेडिटेशन के दौरान इस साइकिल को रिपीट करते रहिए। सुनने में तो मेडिटेशन काफी सिंपल लगता है और हालांकि यह सिंपल है भी। लेकिन अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति से पूछेंगे जिसने मेडिटेशन परफॉर्म किया है तो वह आपको बताएगा कि मेडिटेशन करना कितना ज्यादा हार्ड होता है। 

सबसे ज्यादा हार्ड होता है दूसरा स्टेप जब इंसान का माइंड डाइवर्ट हो जाता है। उसे लगता है कि अब तो उसने अपना मेडिटेशन का प्रोसेस खराब कर लिया और फिर वो मेडिटेशन को बीच में छोड़ देता है। आपको ऐसा नहीं करना है। अगर आपका माइंड कहीं डाइवर्ट होता है तो फिर से आपको उसे उसी पॉइंट पर फोकस करना है जहां पर आप कर रहे थे।।आपको अपनी माइंड में यह फीलिंग नहीं डेवलप करनी है कि आपका मेडिटेशन फेल हो चुका है। मेडिटेशन का मतलब होता है कि आप तीनों स्टेप को साथ में प्रैक्टिस करें और अपने माइंड की एबिलिटी को  डेवलप करें।

जब अपना फोकस खो देते हैं तो वो एक बहुत अच्छा पॉइंट होता है एक्सपीरियंस को लर्न करने का और ग्रोथ अपॉर्चुनिटी को हांसिल करने का। जब आप माइंडफूलनेस को अपनी लाइफ के अलग-अलग एरिया में अप्लाई करते हैं तो आपको यह एटीट्यूड डेवलप करना बहुत जरूरी है कि आप अपने फेलियर पर ज्यादा ध्यान ना दें।।

सबसे लास्ट में हम आपको यही बताना चाहेंगे कि मेडिटेशन करने के दौरान कोई भी म्यूजिक प्ले ना करें और ना ही अपनी आंखें बंद करें। हो सकता है कि इन चीजों से आपको फोकस करने में हेल्प मिले। लेकिन याद रखिये कि मेडिटेशन आप इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि आप अपने माइंड को मेडिटेशन के टाइम शांत रख सकें बल्कि मेडिटेशन आप इसलिए कर रहे हैं कि लाइफ में हर समय आप अपने माइंड का फोकस बना सकें। और जब आप ऐसा करेंगे तभी आपकी लाइफ में हैप्पीनेस आएगी।

कुल मिलाकर
हैप्पीनेस का मतलब होता है फ्रीडम और कंप्लीटनेस फील करना जबकि अनहैप्पीनेस का मतलब इसका बिल्कुल ऑपोजिट होता है। अनहैप्पीनेस किसी भी इंसान की लाइफ में तब जनरेट होती है जब उसकी डिजायर बढ़ती है। जब कोई इंसान बाहरी चीजों में हैप्पीनेस फाइंड करने की कोशिश करता है तो उसे अनहैप्पीनेस ही हांसिल होती है। आज के टाइम में एडवरटाइजमेन्ट और सोशल मीडिया इंसान की अनहैप्पीनेस का सबसे मेन कारण हैं। अगर  हमें अपनी लाइफ में हैप्पीनेस चाहिए तो जरूरी है कि हम चीजों को न्यूट्रल तरीके से ऑब्जर्व करने की कोशिश करें। चीजों को न्यूट्रल वे में ऑब्जर्व करने से ही इंसान को कम्प्लीटन्स का एहसास होता है। 

 

क्या करें 

जब आप 30 दिन तक माइंड फुलनेस की एक्सरसाइज करते हैं तो उसके बाद आप खुद को एक्सटेंड करने का प्रयास करते हैं और कोशिश करते हैं कि जब मौका मिले तब आप कुछ तरह का मेडिटेशन कर सकें। और इसके लिए आप माइक्रो मूमेंट ऑफ माइंडफुलनेस की प्रैक्टिस कर सकते हैं। ये एक शार्ट पीरियड की एक्सरसाइज होती है। इस एक्सरसाइज के अंदर आप दिन भर में जो काम कर रहे हैं उसपर फोकस करके माइंडफुलनेस अचीव कर सकते हैं। ट्रैफिक में, वेटिंग एरिया में कहीं पर भी आप इस एक्सरसाइज को कर सकते हैं।

 

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