Jimmy Carter
एक प्रेसिडेंट की आत्म
कथा।
दो लफ्जों में
अ फुल लाइफ (A Full Life) में हम अमेरिका के राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर के बारे में जानेंगे। यह किताब हमें जिम्मी कार्टर के कैरियर और उनकी जिन्दगी के बारे में बताती है। उनकी सफलता हमारे लिए एक प्रेरणा है। यह हमें बताती है कि किस तरह उन्होंने एक किसान से एक प्रेसिडेंट तक का सफर तय किया।
यह किसके लिए है
- वे जो जिम्मी कार्टर के बारे में जानना चाहते हैं।
- वे जो राजनीतिक बातों में रुचि रखते हैं।
- वे जो जिम्मी कार्टर के काम के बारे में जानना चाहते हैं।
लेखक के बारे में
जिम्मी कार्टर ( Jimmy Carter ) का पूरा नाम जेम्स अर्ल कार्टर जूनियर ( James Earl Carter Jr. ) था जो अमेरिका के 39वें प्रेसिडेंट थे, जिन्होंने 1977 से 1981 तक अमेरिका की सेवा की। इससे पहले वे जॅार्जिया के 76वें गवर्नर थे। वे एक लेखक भी हैं जिन्होंने लगभग 25 से ज्यादा किताबें लिखी हैं।
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
इतिहास में ऐसे बहुत से लोग हुए जो छोटे घर में पैदा हुए थे लेकिन उन्होंने काम बहुत बड़े बड़े किए। यह किताब हमें ऐसे ही एक व्यक्ति की कहानी बताती है जो जॅार्जिया के गाँव में पैदा हुए थे और बाद में वे अमेरिका के प्रेसिडेंट बने। उनका नाम जिम्मी कार्टर था।
जिम्मी कार्टर एक किसान और एक सामाजिक सेवक के घर पैदा हुए थे। बचपन में वे अपने खेतों में पले बढ़े और उन्होंने देखा कि उनके चारों तरफ भेदभाव का माहौल है। भेदभाव को खत्म करने की ख्वाहिश उनके अन्दर बचपन से ही पैदा होने लगी और बाद में उन्होंने इसे खत्म करने के लिए बहुत सारे काम किए।
इस किताब में हम कार्टर के सफर के बारे में जानेंगे और उनसे प्रेरणा लेने की कोशिश करेंगे। हम देखेंगे कि किस तरह उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत की और रास्ते में उन्हे कौन कौन सी परेशानियाँ झेलनी पड़ी।
-जिम्मी कार्टर ने अपने कैरियर की शुरुआत कैसे की।
-कार्टर को किन किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
- कार्टर अपना इलेक्शन दूसरी बार किस वजह से हार गए।
जिम्मी कार्टर एक अच्छे परिवार में पैदा हुए थे।
जिम्मी कार्टर का जन्म 1924 में दक्षिणी जॅार्जिया के मैदानों में हुआ था। उनके पिता का नाम जेम्स अर्ल कार्टर ( James Earl Carter ) था और उनकी माता का नाम बेसी लिलियन गॅार्डी ( Bessie Lillian Gordy )था।
आर्चेरी नाम के मैदानों में उनके परिवार की जमीन थी। वो जमीन जिम्मी के माता पिता ने लोगों को रहने के लिए किराए पर दे दी थी। जिम्मी के माता पिता इज्जतदार व्यक्ति थे।
जिम्मी के पिता चर्च के डीकन थे जो कि शिक्षा के लिए काम करते थे। वे बहुत ही टैलेंटेड थे और लोगों की मदद करने में विश्वास करते थे। उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम किया। उनके साथ रह कर जिम्मी ने बहुत सारी चीजें सीखी।
जिम्मी की माँ के नर्स थी। अमेरिका में 1929 के समय हुए ग्रेट डिप्रेशन में उन्होंने लोगों की बहुत सेवा की और उसके बदले उन्हें जो भी मिलता वे उसे रख लेती थीं। वे कभी लोगों के साथ भेदभाव नहीं करती थीं। लोग उनकी सेवा के बदले उन्हें अंडे, घर के सामान देते या फिर उनके लिए काम कर देते थे।
जिम्मी ने अपना बचपन खेतों में बिताया। वे अपने परिवार के साथ खेतों में कपास और मूँगफली उगाते थे और उसे अपनी साइकल पर रखकर पास के स्टेशन और पड़ोस के गाँव में बेचने जाते थे।इसके अलावा वे मिट्टी के बहुत सारे खिलौने भी बनाया करते थे। जिम्मी ने अपने पिता के साथ रह कर लोहार का काम भी सीखा।
इसके अलावा वे बचपन से ही इंडस्ट्री के काम में माहिर थे। वे जूते बनाते, फर्नीचर बनाते और लोहा का काम करते थे। इसके अलावा वे घर पर बनाए गए केचप और दूध के सामान भी बेचते थे। जिम्मी ने अपना बचपन इस तरह के काम कर के बिताया।
कार्टर ने अपने बचपन में हर जगह भेदभाव को महसूस किया।
जब कार्टर छोटे थे तब स्कूल और चर्च को नस्ल के आधार पर बाँटा गया था। उस समय के एफ्रिकन अमेरिकन लोग वोट नहीं कर सकते थे। इसके अलावा उन्होंने बहुत सारी घटनाएँ देखी जो भेदभाव को दिखाती थीं।
कार्टर के दो परिवार ही आर्चेरी के गोरे परिवार थे। उनका पूरे गाँव में बाकी सभी लोग एफ्रिकन अमेरिकन थे। इसलिए कार्टर के दोस्त भी ज्यादातर एफ्रिकन अमेरिकन ही थे। वे। अक्सर अपना समय उनके साथ बिताते।
कार्टर के पिता काले लोगों की इज्जत तो करते थे लेकिन वे भी भेदभाव में विश्वास करते थे। उस समय अगर कोई काला व्यक्ति किसी गोरे के घर में सामने के दरवाजे से घुसे तो यह ठीक नहीं माना जाता था। ऐसे में जब एक एफ्रिकन अमेरिकन बिशॅाप का बेटा एल्वन जॅानसन कार्टर की माँ से मिलने आता था तो कार्टर के पिता चुप चाप घर से बाहर निकल जाते थे।
लेकिन कार्टर की माँ ऐसी बिल्कुल भी नहीं थीं। उन्हें यह बिल्कुल खराब नहीं लगता था कि कोई काला व्यक्ति सामने के दरवाजे से आए। वे सभी को एक समान मानती थीं।
भेदभाव होना आम बात थी। कार्टर जब 14 साल के थे तब वे अपने दो दोस्तों के साथ खेत में जा रहे थे। खेत के दरवाजे पर पहुंचते ही उसके दोनों दोस्त रुक गए और उन्होंने कार्टर को पहले अन्दर जाने दिया।
जब कार्टर स्कूल जाते तो उन्हें लेने के लिए एक बस आती थी जिसका नाम क्रैकर बाक्स था। इस नाम का मतलब था "गोरे लोगों को ले जाने वाला बक्सा"। यह सिर्फ गोरे लोगों के लिए ही आती थी। काले लोग स्कूल पैदल जाया करते थे। क्योंकि स्कूल बहुत दूर था, इसलिए ज्यादातर लोग स्कूल नहीं जाते थे।
कार्टर ने अपने करियर की शुरुआत एक नेवी इलेक्ट्रानिक्स आफिसर से की।
कार्टर के माता पिता चाहते थे कि उसे अच्छी शिक्षा मिले लेकिन पैसे कि कमी की वजह से वे आगे की पढ़ाई का खर्च नहीं उठा पा रहे थे। इसलिए उन्होंने फैसला किया कि वे उसे वेस्ट पाइंन के नेवल अकैडमी में भेजेंगे जहाँ उसे फ्री में पढ़ाया जाएगा और ग्रैजुएशन के बाद सेना में भर्ती की जाएगी।
कार्टर को दो साल की पढ़ाई के बाद एक इलेक्ट्रानिक्स आफिसर की नौकरी पर रखा गया जहाँ उनका काम नए नए इलेक्ट्रानिक्स जैसे रेडार और हथियारों को जाँचना था। इसके साथ ही कार्टर ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। उन्हें इतिहास और लिट्रेचर पढ़ना पसंद था। वे अपने क्लास के होनहार बच्चों में से एक बन गए।
ग्रैजुएशन के बाद उन्होंने रोज़ेलिन स्मिथ ( Rosalynn Smith ) से शादी कर ली जो उनकी पहली जीवनसाथी और उनके पॅालिटिकल कैरियर की साथी भी रहीं।
उस समय कार्टर की सैलेरी सिर्फ 300$ थी लेकिन उनका परिवार इसमें काम चला लेता था। वे अपने घर का फर्नीचर अपने हाथ से बनाते थे ताकी वे कुछ पैसे बचा सकें।
1948 में अपना ग्रैजुएशन पूरा करने के बाद कार्टर को एनापोलिस में जहाजों की नौकरी पर रखा गया। उन्हें प्रशांत महासागर के बहुत से देशों में घूमने का मौका भी मिला। इसके बाद उन्हें दो न्यूक्लियर पावर से चलने वाले सबमैरीन को बनाने के काम पर रखा गया। यह कार्टर का अब तक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट था।
इसमें भी उन्हें नई टेक्नोलॉजी के साथ काम करने का मौका मिला। वे पास के कालेज में न्यूक्लियर फिजिक्स की पढ़ाई करने लगे जिससे उन्हें अपने काम में मदद मिल सके। लेकिन किस्मत ने एक नया मोड़ लिया और उन्हें अपने खेतों में वापस जाना पड़ा।
कार्टर ने अपने पॅालिटिकल कैरियर की शुरुआत अपने गाँव से की।
कार्टर ने 11 साल नेवी में नौकरी की। लेकिन उसके बाद 1953 में उनके पिता की कैंसर से मौत हो गई जिसकी वजह से उन्हें वापस अपने गाँव लौटना पड़ा। कार्टर ने फैसला किया कि अब वे अपने गांव जा कर अपने पिता की जमीन का खयाल रखेंगे। वे अपने तीन बच्चों के साथ अपने गांव जॅार्जिया चले गए।
गांव पहुंचने पर कुछ दिनों तक उन्हें बहुत परेशानी झेलनी पड़ी। लेकिन बाद में उन्होंने खेती की जो उनकी आमदनी का जरिया बन गई। इसके अलावा उन्होंने एक वेयरहाउस बिजनेस खोला जहाँ पर गांव के सारे किसान अपना अनाज और बीज रख सकते थे।
कार्टर समाज के काम में अक्सर भाग लेते थे। वे जॅार्जिया क्रॅाप इंप्रूवमेंट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट चुने गए थे।इसके अलावा वे सम्टर काउन्टी बोर्ड आफ एजुकेशन के मेंबर भी थे। वे काले लोगों के स्कूल में जाते जहाँ उन्हें पता लगा कि काले लोग अब भी पैदल चल कर स्कूल आया करते थे और गोरे लोगों से किताब माँग कर पढ़ते थे।
जब कार्टर और उनकी पत्नी मेरी लेग्स का हिस्सा बने तब उनकी मुलाकात जाने माने लोगों से होने लगी जिससे उनकी भी जान पहचान बढ़ गई। लेकिन उनकी अच्छाई कुछ लोगों को पसंद नहीं आई।
कार्टर ने वाइट सिटिज़न काउन्सिल का मेंबर बनने से मना कर दिया जो कि कु क्लुक्स क्लान ( Ku Klux Klan ) से जुड़ा हुआ था। यह जॅार्जिया के गवर्नर और वहाँ के मंत्रियों द्वारा चलाया जाता था। जो लोग गोरे थे, सिर्फ वही इसके मेंबर फन सकते थे। इस भेदभाव की वजह से कार्टर ने इससे जुड़ने से इंकार दिया।
इसकी वजह से कुछ लोग कार्टर के विरोधी हो गए। जब कार्टर छुट्टियाँ मनाने गए थे तब किसी ने यह अफवाह फैला दी कि कार्टर स्कूलों को एक करने की कोशिश कर रहे हैं। कार्टर को एक बार गैस स्टेशन पर सर्विस देने से मना कर दिया गया। कुछ लोगों ने उनके दरवाजे पर उनके खिलाफ शब्द भी लिखे। लेकिन कार्टर इन सबसे रुकने वाले नहीं थे।
भेदभाव खत्म करने की नीति की मदद से कार्टर सबसे पहले एक मंत्री बने फिर जॅार्जिया के गवर्नर बने।
कार्टर का परिवार लोकतंत्र में विश्वास करता था जो उस समय ज्यादा लोकप्रिय नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने जब स्कूल में हो रहे भेदभाव को खत्म कर दिया तब लोग लोकतंत्र से और नफरत करने लगे। दक्षिण में रहने वाले लोकतंत्र के सहयोगियों से नफरत की जाती थी। एक बार लोगों ने कार्टर की माँ के गाड़ी पर उनके लिए गलत शब्द लिखे और उनके बच्चों को स्कूल में परेशान भी किया।
कार्टर स्टेट स्कूल सि ओटम को बचाना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने 1962 में मंत्री बनने का फैसला किया। लोगों का सपोर्ट पाने के लिए कार्टर पोस्ट कार्ड और न्यूज़ पेपर बाँटने लगे। वे रेडियो स्टेशन पर जाते और जहाँ भी उन्हें बोलने का मौका मिलता वे वहाँ पर बोलते थे। इसका नतीजा यह हुआ कि वे जीत गए। उन्होंने जॅार्जिया साउथवेस्टर्न जूनियर कालेज को एक चार साल के इंस्टिट्यूशन में बदल दिया जिसकी वजह से वे एक बार फिर से मंत्री पद के लिए चुने गए।
अब कार्टर गवर्नर बनने का ख्वाब देखने लगे। जब खेती का समय खत्म हो गया तब वे बहुत सारे वोटर से मिलते थे और उनका परिवार लोगों के पास जा कर पैम्प्लेट देते जिससे उन्हें कुछ फंड मिल सके। इलेक्शन का समय आने तक कार्टर लगभग 6 लाख लोगों से मिल चुके थे।
कार्टर के अभियान का सबसे बड़ा हिस्सा भेदभाव को खत्म करना था। वे मार्टिन लूथर किंग जूनियर से मिले और उन्होंने उनके चर्च पर एक भाषण भी दिया।
1971 में कार्टर इलेक्शन जीत गए जिसकी मदद से उन्होंने अपने राज्य को सुधारने के लिए बहुत से काम किए। उन्होंने जॅार्जिया के लोगों के लिए अच्छी शिक्षा और हेल्थकेयर की व्यवस्था की और एशिया और यूरोप के इन्वेस्टर को ला कर जॅार्जिया का व्यापार भी बढ़ाया।
कार्टर 1977 में अमेरिका के प्रेसिडेंट बने।
जब कार्टर एक गवर्नर के पद पर थे तब उन्होंने फैसला किया कि वे प्रेसिडेंट बनने के लिए खड़े होंगे। इसके लिए उन्होंने बहुत पहले से ही तैयारी शुरू कर दी थी। इसकी शुरुआत उन्होंने दूसरे डेमोक्रेटिक कैंडिडेट्स का प्रचार कर के किया।
उन्होंने नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी के चेयरमैन के कहने पर उनके पार्टी के अभियान की जिम्मेदारी उठाई और इसके साथ ही वे प्रेसिडेंट बनने के लिए बहुत सी चीज़ों के बारे में सीखते रहे। 1974 में यूनिवर्सिटी ऑफ जॅार्जिया में कार्टर को टेड कैनेडी के सपोर्ट में बोलने के लिए कहा गया। इस दौरान हंटर थाम्पसन नाम के एक पत्रकार उनकी भेदभाव हटाने की बातों से खुश। हो गए और उन्होंने बहुत सारी जगहों पर उनकी तारीफ की।
1976 में कार्टर प्रेसिडेंट बनने के लिए रेस में उतरे।उन्होंने बहुत सारे लोगों से अपनी जान पहचान बनाई। इसके अलावा उनकी पत्नी और उनके बच्चे भी देश भर में घूम कर उनका नाम फैला रहे थे और उनके लिए फंड की व्यवस्था कर रहे थे।
कार्टर के सपोर्टर भी घर घर जा कर उनके बारे में सबको बता रहे थे। उनके सपोर्टर को पीनट ब्रीगेड कहा गया। अभियान के अंत में कार्टर को मार्टिन लूथर किंग का सपोर्ट भी मिल गया जिसकी वजह से उनके सपोर्टर और भी बढ़ गए। उनके सपोर्ट की मदद से कार्टर को फ्लोरिडा शहर के लोगों का सपोर्ट भी मिल गया।
लोगों को यह बात अच्छी लगी कि कार्टर एक किसान हैं। उन्हें लगा कि क्योंकि वे एक आम आदमी की जिन्दगी जी चुके हैं वे उनकी जरूरतों को समझेंगे। उन्होंने उनका सपोर्ट करना शुरू किया और उनके लिए फंड की व्यवस्था की। उनके पास लगभग 26 मिलियन डॉलर का फंड इकठ्ठा हो चुका था।
आखिरकार कार्टर प्रेसिडेंट बन ही गए। उन्होंने अपना खेत एक ट्रस्ट को दिया और वे वॅाशिंगटन डीसी के लिए रवाना हुए।
प्रेसिडेंट बनने के बाद कार्टर ने चाइना के मसले को हल किया।
वर्ल्ड वार के बाद चाइना के लोगों के दो सरकारें बनाई गई थी - कम्युनिस्ट और रिपब्लिकन। माओ के कम्युनिस्ट ने रिपब्लिकन को ताईवान के आइलैंड पर पर भगा दिया जहाँ रिपब्लिकन ने रिपब्लिक ऑफ चाइना ( ROC ) बना ली। दोनों पार्टियों की पहचान पूरी दुनिया में बन गई।
पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ( PRC ) अमेरिका का दुश्मन था जिसका नतीजा यह निकला कि अमेरिका के संबंध ताईवान से गहरे होने लगे और उसने सिर्फ रिपब्लिक ऑफ चाइना को ही महत्व दिया। कार्टर का मानना था कि चाइना के लोगों के लिए PRC सरकार ही रहे लेकिन इस समस्या को निपटाने के लिए उन्हें एक अच्छा रास्ता ढूँढना था।
PRC को पहचानने का काम प्रेसिडेंट निक्सटन ने किया लेकिन कार्टर के आने से काम की रफ्तार बढ़ गई। कार्टर इस मामले को सुलझान के लिए कोई दूसरा रास्ता खोज रहे थे।
अगर कार्टर PRC को सपोर्ट करते तो ROC से खतरा बढ़ सकता था और अगर वे ROC को सपोर्ट करते तो PRC उन पर हमला कर देता। इसलिए 1978 में कार्टर ने बीजिंग के लीडर्स से बात करने के लिए अपने कुछ काबिल लोगों को भेजा।
लगभग एक महीने के बाद कार्टर के लोगों ने कहा कि PRC उनकी सभी शर्तों को मानने के लिए तैयार हो गया है। उन्होंने ताईवान के मामले को शांति से सुलझाया और उनके साथ एक साल की डील किया जिसके हिसाब से एक साल के बाद वे ROC को रक्षा के हथियार बेच सकते थे।
इसके बाद वाइस प्रीमियर डींग ज़िआओपिंग ( Deng Xiaoping ) अमेरिका गए और उन्होंने 30 साल से चल रहे झगड़े को सुलझाने के लिए बहुत सारे एग्रीमेंट पर साइन किया। इस घटना के बाद कार्टर का नाम ऊँचा हो गया।
कार्टर इसराइल और इजिप्ट के बीच शांति लाने में कामयाब रहे।
कार्टर ने फैसला किया था कि वे दुनिया में शांति फैलाने का काम करेंगे। इसके लिए वे अक्सर कुछ ना कुछ काम करते रहते थे। उन्होंने इसराइल और उसके पड़ोसी देशों में शांति फैलाने की कोशिश की लेकिन कोई भी इसके बारे में सोचने को तैयार नहीं था।
इस पर कार्टर की पत्नी ने उन्हें सुझाव दिया कि वे लोगों से पार्टी में बात ना कर के किसी शांत जगह जैसे कैम्प डेविड का इस्तेमाल करें जहाँ यह समझौता आसानी से हो सके। उनकी बात मान कर कार्टर ने इजिप्ट के प्रेसिडेंट अनवर अल सादत ( Anwar El Sadat ) और इसराइल के प्राइम मिनिस्टर मेनाकेम बेगिन ( Menachem Begin ) को कैम्प डेविड में बुलाया ताकि वे शांति के समझौते पर काम कर सकें।
सेप्टेंबर के महीने में कार्टर ने उन दोनों को बुलाया। 13 दिन तक वे इस पर काम करते रहे लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। वे दोनों लोग बात बात पर एक दूसरे से लड़ते रहते और एक दूसरे पर इल्जाम लगाते रहते थे। 11 दिन के बाद अनवर अल सादत ने कार्टर से कहा कि उन्हें एक हेलीकॉप्टर दिया जाए जिससे वे अपने देश वापस जा सकें लेकिन कार्टर ने उन्हें किसी तरह रोक लिया।
दो दिन तक मामला नहीं सुलझा। जेरुसालेम के स्टेटस पर फैसला करना और इसराइल वालों को इजिप्ट से निकालने का फैसला अब भी रुका हुआ था।
एक दिन बेगिन ने कार्टर से कहा कि वे तीनों अपने पोतों को कुछ तोहफा,देना चाहते हैं। अगर कार्टर तीनों लीडर्स की फोटो पर साइन कर देते तो वे उस फोटो को उन्हें दे देते। इस पर कार्टर के सेक्रेटरी ने चुपके से इसराइल फोन किया और उनके पोतों का नाम पता किया। फिर कार्टर ने उस नाम को फोटो पर लिख दिया। इससे बेगिन बहुत खुश हुए और उन्होंने समझौते पर काम करने को कहा।
इसके बाद उन लोगों ने दोनों देशों में शांति लाई।
प्रेसिडेंट के पद से हटने के बाद कार्टर एक प्रोफेसर और लेखक बन गए।
1980 में अमेरिका के कुछ नागरिकों को इरान की सेना ने बंदी बना लिया। जब बात चीत से उन्हें आजाद नहीं किया जा सका तब कार्टर ने अपने कुछ सैनिकों को उन्हें ले कर आने के लिए भेजा। यह मिशन पूरी तरह से नाकामयाब रहा। उनके भेजे गए दो हेलीकॉप्टर आपस में टकरा गए जिसमें 8 लोगों की मौत हो गई।
जब फिर से इलेक्शन हुए तब कार्टर ने विरोधी टेड कैनेडी और रोबर्ट रीजन थे। उन लोगों ने कार्टर की इस नाकामयाबी का फायदा उवाया और इसका नतीजा यह हुआ कि कार्टर चुनाव हार गए। कार्टर के बाद रोबर्ट रीजन अमेरिका के राष्ट्रपति बने।
जब कार्टर का समय खत्म हुआ तब वे वापस मैदानों में आ गए। उन्हें पता नहीं था कि अब उन्हें क्या करना है। उनके पास इमोरी यूनिवर्सिटी का प्रस्ताव आया कि वे स्टुडेंट्स को अपने टापिक्स पर लेक्चर दें। कार्टर ने लोगों को साहित्य, अंतर्राष्ट्रीय बातों और दूसरी चीजों पर लेक्चर देना शुरू किया।
इसके साथ ही कार्टर एक लेखक भी हैं। वे अपने परिवार को अपनी किताबों के जरिए सपोर्ट करते हैं। उन्होंने अब तक 28 किताबें लिखी हैं। उनकी ऐन आवर बिफोर डेलाइट को 2002 में पुलित्ज़र प्राइज़ मिला। उसी साल उन्हें शांति स्थापित करने के लिए नोबल प्राइज़ भी मिला। इसके अलावा उन्होंने अपनी एक्सेप्टेंस स्पीच भी पब्लिश की जो बाकी किताबों से ज्यादा बिकी।
1980 में चुनाव हारने के के बाद भी कार्टर ने दुनिया के लिए काम करना नहीं छोड़ा। वे अब अपनी जिन्दगी को पूरी तरह से जीना चाहते हैं।
कार्टर और उनकी पत्नी रोज़ेलिन ने दुनिया में शांति बनाए रखने के लिए कार्टर सेंटर की स्थापना की।
जब कार्टर प्रेसिडेंशियल लाइब्रेरी के लिए फंड इकठ्ठा कर रहे थे तभी से कार्टर सेंटर का बनना शुरू हो गया था। एक रात कार्टर उठे और उन्होंने अपनी पत्नी रोज़ेलिन को फोन लगाया और कहा कि वे कैम्प डेविड जैसी कोई जगह बनाना चाहते हैं जहां पर दुनिया भर में चल रही परेशानियों को शांति से सुलझाया जा सके।
हालाँकि कार्टर सेंटर यह काम नहीं करता, लेकिन वहाँ पर वातावरण, शिक्षा, लोकतंत्र और सेहत को ले कर बहुत सारे काम किए गए हैं। कार्टर ने अपना काम 80 देशों में फैला दिया है। वहाँ पर 180 स्टाफ मेंबर हैं, सैकड़ों एक्सपर्ट और हजारों कर्मचारी काम करते हैं।
जल्दी में ही कार्टर सेंटर ने एफ्रिका, लैटिन अमेरिका और कैरीबियन में फैर रही घातक बीमारियों से निपटने के लिए भी काम किया। उन्होंने मलेरिया जैसी 5 बीमारियों से निपटने का काम किया जिससे हर साल लाखों लोगों की मौत हो रही थी। उन्होंने लोगों को इससे बचने के लिए सामान भी सप्लाई किया।
इसके अलावा कार्टर ने लोकतंत्र के इलेक्शन को जाँचने का काम भी किया। वे अपने कुछ लोगों को आम नागरिकों के बीच भेज कर यह पता करते हैं कि क्या नागरिकों को लगता है कि चुनाव ईमानदारी से हो रहे हैं। अमेरिका के अलावा उन्होंने इजिप्ट,निकारगुआ, पेरु, हाइती और बहुत सारे देशों के चुनावों की जाँच भी की।
अब कार्टर अपने परिवार के साथ एक अच्छी जिन्दगी जी रहे हैं।
कुल मिला कर
जिम्मी कार्टर शुरुआत से ही लोगों की सेवा करते आए हैं। उन्होंने एक मंत्री के पद पर रह कर शिक्षा को बढ़ावा दिया। इसके अलावा उन्होंने भेदभाव को खत्म करने के लिए बहुत सारे कदम उठाए। वे 1977 से 1981 तक अमेरिका के प्रेसिडेंट रहे। प्रेसिडेंट के पद से हटने के बाद भी उन्होंने समाज की सेवा के लिए बहुत से काम किए।
