Sandra Aamodt, PhD
आज तक आपने डाइटिंग के बारे में जो भी सुना है, वह सब गलत है।
दो लफ़्ज़ों में
यह किताब डाइट और वेट लॉस के बारे में बात करती है। इसके साथ-साथ यह वजन और हेल्थ के कनेक्शन को लेकर बने बहुत से मिथ भी तोड़ती है। इस किताब में बताया गया है आखिर क्या वजह है कि कई बार डाइटिंग के इतने अच्छे नतीजे नहीं मिलते हैं और अगर आप वजन कम करना चाहते हैं तो आपके पास और कौन से रास्ते हैं।
यह किताब किनको पढ़नी चाहिए?
• जो लोग वजन कम करना चाहते हैं
• जो लोग वजन कम करने का मैकेनिज्म समझना चाहते हैं
• जो लोग हेल्दी ईटिंग हैबिट अपनाना चाहते हैं
लेखिका के बारे में
सैंड्रा आमोड एक न्यूरोसाइंटिस्ट और लोकप्रिय लेखिका हैं जो विज्ञान से जुड़े टॉपिक्स पर लिखती हैं। उन्होंने नेचर न्यूरोसाइंस के लिए एडिटर-इन-चीफ के तौर पर काम किया है और वे वेलकम टू योर ब्रेन और वेलकम टू योर चाइल्ड्स ब्रेन नामक किताबों की को ऑथर हैं।
आपका वजन एक बार कम होने के बाद दुबारा क्यों बढ़ जाता है? क्योंकि आपके जब आप वजन कम करते हैं तो दिमाग को यह सिग्नल जाता है कि आपको पर्याप्त कैलोरी नहीं मिल रही है। आप सही ढंग से खाना नहीं खा रहे हैं।
आजकल तरह-तरह की डाइट ट्रेंड में है जैसे फ्रूटेरियन डाइट, लिक्विड डाइट, कीटो इत्यादि। हर रोज ऐसा कोई न कोई डाइट कॉन्सेप्ट चलन में आ जाता है। आप यह सोचकर उसको फॉलो करने लगते हैं कि इससे आपको अच्छे रिजल्ट मिलेंगे पर अक्सर ऐसा होता नहीं है।
जब आप डाइटिंग करते हैं तो कुछ समय के लिए वजन कम तो कर लेते हैं पर अगर एक लंबे स्पैन की बात करें तो आप पहले से भी ज्यादा वेट गेन कर लेते हैं। अब न्यूरोसाइंस, जेनेटिक्स और साइकोलॉजी में हुई एडवांस स्टडीज की वजह से इसकी सही वजह पता लगा पाना आसान हो गया है।
अगर आपका लक्ष्य फिट रहना है तो सिर्फ वेट लॉस पर फोकस करना काफी नहीं है। इसके और भी पहलू हैं। आइए सबसे पहले डाइट से जुड़े हुए कुछ मिथ के बारे में बात करते हैं। इसके अलावा इस समरी में आप जानेंगे कि आखिर क्या वजह है कि हमारे लिए वेट गेन करना आसान है और घटाना मुश्किल है, वजन कम करने के लिए सिर्फ स्ट्रांग विल पावर ही काफी नहीं है, और एक्सरसाइज आपके लिए कितनी ज्यादा फायदेमंद होती है?
दो महिलाओं के उदाहरण लीजिए। पहली जिसका वजन 110 पाउंड है और दूसरी जिसका वजन 230 पाउंड है। ये दोनों ही 30 पाउंड वजन कम करती हैं। आप कहेंगे कि पहली महिला तो वैसे ही बहुत पतली थी और उसे वजन कम करने की जरूरत नहीं थी। दूसरी महिला के बारे में आप कहेंगे कि उसने सही किया, उसे वाकई वजन कम करने की जरूरत थी।
साइंस के हिसाब से देखें तो सही वजन का क्राइटेरिया उम्र, लंबाई, जेंडर जैसी चीजों पर बेस्ड होता है। इस आधार पर आप बता सकते हैं कि दोनों में से कौन सी महिला को वजन कम करने की जरूरत थी। लेकिन आपका ब्रेन हर वेट लॉस को एक ही नजरिए से देखता है और यह मानता है आपके शरीर से कुछ वजन कम हो चुका है और अब आपको इसकी भरपाई करने की जरूरत है। यानि वजन कम करने पर इन दोनों महिलाओं के ब्रेन का रिस्पांस एक सा होगा।
हमारा शरीर इस तरह से इवॉल्व हुआ है कि यह हमेशा अपने एवरेज वेट को बनाए रखने की कोशिश करता है। इस एवरेज वेट में 10-15 पाउंड का फ्लक्चुएशन होता रहता है।
डाइट और एक्सरसाइज की मदद से हम अपने वजन में से इस रेंज से मिलता जुलता रिडक्शन आसानी से कर लेते हैं। हालांकि यह 10-15 पाउंड की रेंज भी फिक्स नहीं है लेकिन इसके हायर लेवल पर जाने के ज्यादा चांस होते हैं।
यही वजह है आप वजन कम तो कर लेते हैं पर जब यह आपकी नॉर्मल फ्लक्चुएशन रेंज से भी नीचे चला जाता है, तब आपका शरीर अपने पुराने वजन पर लौटने की कोशिश करने लगता है।
अब इसकी वजह समझते हैं। असल में हमारा मस्तिष्क एक एनर्जी बैलेंस सिस्टम मेंटेन करता है। इससे होता यह है कि आप लगभग उतनी ही कैलोरीज बर्न करते हैं जितना कन्ज्यूम करते हैं। इसकी वजह से एक आपका एक एवरेज वेट बना रहता है।
अब एक और सिस्टम की बात करते हैं जिसे रिवार्ड सिस्टम कहा जाता है। जब आप अपनी कोई मनपसंद चीज खाते हैं जैसे बर्गर, डोनट तो बॉडी की तरफ से ब्रेन को एक सिग्नल जाता है जिससे डोपामाइन हार्मोन रिलीज होता है। इसे फील गुड हार्मोन भी कहते हैं। इसकी वजह से आप वो सब चीजें ज्यादा खा लेते हैं जो आपको अच्छी लगती हैं। ये सिस्टम कार्बोहाइड्रेट और फैट वाली चीजों के लिए ज्यादा एक्टिव रहता है। इसलिए जंक फूड की लत लगना इसी सिस्टम की देन है।
ये सिस्टम उस जमाने में तो फायदेमंद था जब मानव शिकार पर निर्भर था और रोज भोजन मिल पाने की गारंटी नहीं होती थी। इस सिस्टम की वजह से लोग ओवर ईटिंग करके आने वाले काफी दिनों की एनर्जी रिक्वायरमेंट पूरी कर लिया करते थे।
आज हमारे पास खाने की कमी नहीं है और हमारे भोजन में फैट और शुगर वैसे ही बहुत ज्यादा होती है। इस तरह हम अपनी कैलोरी रिक्वायरमेंट से ज्यादा इनटेक कर लेते हैं। और ये रिवार्ड सिस्टम हमें और खाने के लिए उकसाता है।
इस वजह से हमें डाइटिंग करनी पड़ती है। लेकिन रिसर्च यह कहती हैं कि डाइटिंग करने से ब्रेन को यह मैसेज जाता है कि हम भूखे रह रहे हैं और यह रिवार्ड सिस्टम इस कमी को पूरा करने के लिए ज्यादा तेजी से काम करने लगता है और हम फिर वजन बढ़ा लेते हैं।
हम सोचते हैं कि वजन कम करने के लिए स्ट्रांग विल पावर बहुत जरूरी है पर ऐसा नहीं है।
जब हमारे पास टेस्टी और इंस्टेंट फूड ऑप्शन मौजूद हैं तो क्या विल पावर हमारे रिवार्ड सिस्टम को कंट्रोल करने के लिए काफी है?
"अगर वजन घटाना है तो विल पावर बढ़ानी करनी चाहिए।"ये बात हम सबने सुनी है लेकिन यह असल में एक मिथ है। जब हमारे सामने हर रोज तरह-तरह के पकवान सजे हुए हों तो हम आखिर कितने दिनों तक खुद को उनसे दूर रख सकते हैं?
विल पावर कुछ हद तक तो हमारी मदद कर सकती है पर अगर हम एक लांग टर्म गोल अचीव करना चाहते हैं तो कोई दूसरा रास्ता अपनाना होगा। छोटी-छोटी चीजें जैसे किसी असाइनमेंट को समय पर पूरा करना, कुछ दिन जल्दी उठना या कोई नई रेसिपी बनाने के लिए हमें कुछ वक्त का मोटिवेशन चाहिए होता है। यहां हमारी विल पावर हमें बहुत मदद करती है। लेकिन रोज सुबह जल्दी उठने, रेग्युलर एक्सरसाइज करने या वजन कम करने जैसी चीजों के लिए हमें लगातार एक मोटिवेशन की जरूरत होती है। ऐसे में ये सोच लेना कि पक्का इरादा करने से काम बन जाएगा, बचकानी बात है।
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि विल पावर एक इन्वर्टर है जिससे कुछ घंटों का बैकअप मिल जाता है पर उसके बाद इस इन्वर्टर को भी चार्जिंग की जरूरत पड़ती है। हम जोश में आकर कोई काम शुरु तो कर लेते हैं पर बहुत जल्दी उसे बीच में छोड़ भी देते हैं। हम जिम जाकर पसीना भी बहाते हैं और घर आकर मीठा भी खा लेते हैं। ये सब बेसिक ह्यूमन नेचर है।
स्टडीज में ये पाया गया है कि विल पावर बाकी जगह तो काम अच्छी तरह काम करती है पर जब खान-पान में कंट्रोल की बात आती है तो इसका असर सबसे कम होता है। अगले लेसन्स में यह समझाया गया है कि विल पावर की मदद से अपनी क्रेविंग को कंट्रोल कर पाने की तुलना में हेल्दी फूड हैबिट डेवलप कर पाना ज्यादा आसान है। कुछ समय के लिए तो आप विल पावर से खुद को रोक लेते हैं पर बाद में अपनी पुरानी आदतों पर लौट आते हैं। इसलिए अच्छी आदतें डालना एक बेहतर सॉल्यूशन है।
वजन ज्यादा होने की वजह से लोगों को बहुत अपमान सहना पड़ता है। मीडिया और विज्ञापनों में नजर आने वाले पतले, छरहरे मॉडल्स उनकी तकलीफ और बढ़ा देते हैं। इन सबका उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है।
क्या कभी किसी ने आपके वजन पर उंगली उठाई है? लोग अक्सर शुगर कोट करके या डायरेक्टली आपके ओवरवेट होने को लेकर बातें कह देते हैं। इसे फैट शेमिंग कहा जाता है। फैट शेमिंग करने वाले के पास इसकी जो भी वजह हो, ये सुनने वाले का नुकसान ही करती है। लोग ऐसी बातों से मोटिवेट होकर वजन कम नहीं करते बल्कि स्ट्रेस ईटिंग करके और ज्यादा अनहेल्दी खाने लगते हैं। उनमें इनफीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स आ जाता है। उनको लगता है कि वो फिट या एक्टिव तो हैं नहीं तो उनको एक्सरसाइज की क्या जरूरत है।
फैट शेमिंग का सबसे ज्यादा शिकार बच्चे और टीनएजर्स होते हैं। अमरीका में ऐसी 2500 लड़कियों पर स्टडी की गई जिनको फैट शेमिंग से गुजरना पड़ा था। उनमें अगले पांच सालों के दौरान वजन बढ़ने के चांसेस दुगने हो गए थे।
ज्यादा वजन मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। हमें टीवी, न्यूज पेपर और सोशल मीडिया पर स्लिम-ट्रिम और आकर्षक शरीर वाले लोगों के फोटो देखने को मिलते हैं। हकीकत में इनमें से ज्यादातर फोटोशाॅप्ड होते हैं पर इसकी वजह से बॉडी को लेकर एक स्टीरियोटाइप सोच बन चुकी है। लोग खुद को इन तस्वीरों से कंपेयर करते हैं और स्ट्रेस और डिप्रेशन जैसी परेशानियों को न्यौता दे देते हैं। बॉडी इमेज पर मीडिया के प्रभाव को लेकर फ़िजी में एक रिसर्च की गई। वहां 70 के दशक में डाइटिंग करने वाली महिलाएं बहुत कम थीं। उस वक्त तक एक भरे-पूरे शरीर वाली महिला को आइडियल माना जाता था। 1995 में वहां टीवी आया और लोग वेस्टर्न प्रोग्राम देखने लगे। रिसर्च में यह जानने की कोशिश की गई कि क्या फ़िजी की महिलाएं भी टीवी प्रोग्राम और विज्ञापनों में दिखाए जा रहे लोगों की तरह लगना चाहती हैं?
1995 और 1998 में 17 साल की लड़कियों के ग्रुप पर स्टडी की गई। इसमें यह देखा गया कि उन दोनों ग्रुप में लड़कियों का औसत वजन तो स्थिर रहा पर उनकी फूड हैबिट काफी बदल चुकी थीं। अगले सिर्फ तीन सालों में ऐसी लड़कियों का प्रतिशत 13 से बढ़कर 29 हो गया जिनको एनोरेक्सिया या बुलीमिया जैसे ईटिंग डिसआर्डर होने लगे थे। आज लगभग 74% लड़कियां ऐसी हैं जो टीवी पर नजर आने वाली मॉडल्स की तरह लगना चाहती हैं। अब फ़िजी में आइडियल बॉडी इमेज को लेकर सोच बदल चुकी है।
आपका जेनेटिक मेकअप वजन बढ़ने में एक बड़ी भूमिका निभाता है।
आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि वजन बढ़ाने के लिए कुछ खास नहीं करना पड़ता पर इसे घटाना इतना आसान नहीं है। इसका जवाब हमारे इवॉल्यूशन में छिपा है। होमो सेपियन्स के विकास की शुरुआत लगभग दो लाख साल पहले की मानी जाती है। उस दौर में अकाल या भोजन की कमी एक बड़ी समस्या थी। खेती की शुरुआत सात से दस हजार साल पहले हो चुकी थी। लेकिन इतना अनाज उगा पाना जो मानव समाज की जरूरत पूरी कर सके बस एक सदी पुरानी बात है। इससे पहले तक लोग जानवरों का शिकार और भोजन को स्टोर करके अपनी जरूरत पूरी किया करते थे। तब न तो ओवर ईटिंग संभव थी और न ही वजन कम करने की जरूरत थी। इस वजह से धीरे-धीरे शरीर से वेट लॉस करने वाली जीन्स फेड होती गईं। मोटापे के लिए आपका जेनेटिक मेकअप बहुत हद तक जिम्मेदार होता है और जीन एक्सप्रेशन में एक छोटा सा अंतर भी वजन बढ़ने के पैटर्न को प्रभावित कर देता है।
क्लॉड बुचार्ड और एंजेलो ट्रेम्बले ने आइडेंटिकल और नॉन आइडेंटिकल ट्विन्स पर एक स्टडी की। इसमें उनको तीन महीने तक लगातार 1000 कैलोरी ज्यादा दी गई। नॉन आइडेंटिकल ट्विन्स के हर पेयर का वेट गेन अलग था। उन्होंने 8 से लेकर 28 पाउंड तक वेट गेन किया पर आइडेंटिकल ट्विन्स के हर पेयर ने एक जैसा वेट गेन किया। ऐसी ही एक स्टडी वजन घटाने को लेकर की गई। इसमें आइडेंटिकल ट्विन्स को तीन महीने तक रोज से 1000 कैलोरी ज्यादा बर्न करनी थी। अब लगभग सबका वजन एक ही रेंज में घटा था। इससे एक बार फिर ये साबित हुआ कि जेनेटिक मेकअप का वजन के साथ सीधा कनेक्शन है।
इस रिसर्च की इंट्रेस्टिंग बात ये थी कि इनमें से कुछ का वजन सिर्फ दो पाउंड ही कम हुआ था। यानि इससे भी यही साबित हुआ कि वजन कम करना आपके शरीर के लिए मुश्किल है।
ये सब पढ़कर अगर आप ये सोचने लगे हैं कि आपके वजन बढ़ने के क्या चांसेस हैं तो या तो मंहगे जेनेटिक टेस्ट कराइये या फिर अपने परिवार के बाकी लोगों को देखकर अंदाजा लगा लीजिए।
माइंडफुल ईटिंग, स्वस्थ रहने का एक आसान तरीका है।
बहुत से डाइटीशियन और खुद को हेल्थ गुरु कहने वाले लोग ये दावा करते हैं कि उनका दिया हुए डाइट प्लान बेस्ट है जिससे आप रातों-रात वजन कम कर लेंगे। पर अब वक्त आ गया है कि आप उनकी बातों को सीरियसली लेना छोड़ दें। वजन कम करने के लिए सबसे अच्छा रास्ता है आप अपने दिल की आवाज सुनिए। इसके लिए आपको माइंडफुल ईटिंग का कॉन्सेप्ट फॉलो करना होगा। माइंडफुल रहने का मतलब है अपने बिहेवियर और रिएक्शन को लेकर अवेयर रहना। यही अवेयरनेस आप अपने खान-पान में ले आएं तो बहुत अच्छा नतीजा मिल सकता है। हम बाहर जाते हैं, किसी चीज को देखकर टेम्प्ट हो जाते हैं और बस उसे खा लेते हैं। ये एक्सटर्नल स्टिम्युलेशन होता है। हमारी नीड नहीं होती। यानि अगर वो खाना हमारे सामने न आया होता तो हम नहीं खाते, सिम्पल। थोड़ा सा ध्यान देकर हम यह समझ सकते हैं कि हमारी बॉडी हमें खाने या भूख से जुड़ा क्या सिग्नल दे रही है। एनर्जी बैलेंस सिस्टम की वजह से हमें भूख लगने और पेट भर जाने पर ब्रेन से एक सिग्नल मिलता है। हमें बस इसे समझना और मानना होगा ताकि हम उतना ही खाएं जितना उस वक्त हमारी बॉडी की जरूरत है। ये सिस्टम इवॉल्यूशन के दौर से हमारे लिए काम कर रहा है। एटकिन्स और साउथ बीच डाइट तो बहुत बाद में आई हैं।
माइंडफुल ईटिंग की मदद से हम नेचुरल तरीके से वजन कम करके फिट हो सकते हैं और ईटिंग डिसआर्डर भी दूर कर सकते हैं। माइंडफुल ईटिंग के तीन स्टेप बताए गए हैं। पहला यह कि आपको जब भूख लगने लगे तब खाना खा लीजिए। अगर आप खाना स्किप या डीले करते हैं तो और तेज भूख लगती है और आप बहुत तेजी से खाना खाते हैं। इस तरह आप ओवर ईटिंग कर लेते हैं क्योंकि जब ब्रेन की तरफ से पेट को फुल होने का सिग्नल जाता है तो आप उसे इग्नोर कर देते हैं।
दूसरा यह है कि धीमे-धीमे खाना खाइए। इससे आप खाने को अच्छी तरह एन्जॉय भी करेंगे और ज्यादा खाने की संभावना कम होगी।
तीसरी यह कि खाते वक्त सिर्फ खाने पर फोकस करें। हम टीवी देखते हुए, मोबाइल चलाते हुए या बातें करते हुए खाते हैं यह एक कॉमन ट्रेंड बन चुका है। इससेआपकोयहसमझनहींआताकिआपकितनाखारहेहैं। लोग वर्क स्टेशन पर भी खाते हैं। यह आदत तुरंत छोड़ देनी चाहिए।
पतला होना और फिट होना दो अलग-अलग बातें हैं।
जब डाइटिंग और एक्सरसाइज करने से वजन घटने लगता है तब लोग अपने आप को हेल्दी समझने लगते हैं। सच यह है कि फिजिकल एक्टिविटी की वजह से हम अच्छा महसूस करते हैं। रेग्युलर एक्सरसाइज हेल्थ के लिए ज्यादा जरूरी है। हेल्थ का सही क्राइटेरिया आपका एक्टिविटी लेवल है न कि वजन। यानि एक फिजिकली एक्टिव इंसान अपने से कम वजन वाले इनएक्टिव इंसान के मुकाबले ज्यादा स्वस्थ हो सकता है। ऐसी बहुत सी स्टडीज हैं जो यह बताती हैं कि अगर असमय मृत्यु का अंदाजा लगाना है तो एक्सरसाइज लेवल, वजन की तुलना में दस गुना ज्यादा एक्युरेट क्राइटेरियाहोता है। हेल्थ पर एक्सरसाइज और वजन दोनों में से किसका ज्यादा असर होता है इसकी सबसे पहली स्टडी 1949 में लंदन के ट्रांसपोर्ट कर्मियों पर की गई। ब्रिटिश डाक्टर जेरेमी मॉरिस ने 31000 बस ड्राइवर और कंडक्टरों का डाटा लिया।
जाहिर है कि ड्राइवरों की फिजिकल एक्टिविटी ज्यादा नहीं हुआ करती थी। क्योंकि वो सीट पर बैठकर काम करते थे। कंडक्टर टिकट और किराए के लेन-देन के लिए एवरेज 500 कदम रोज चला करते थे। स्टडी में पाया गया कि कंडक्टरों को हार्ट अटैक होने के चांस 30% कम थे। और यदि उनको हार्ट अटैक हुए भी तो वो कम गंभीर थे। लेकिन यह भी तो हो सकता था कि चलने-फिरने की वजह से कंडक्टरों का वजन कंट्रोल रहता हो और इस वजह से वो स्वस्थ रहते हों? इसलिए मॉरिस ने समझदारी दिखाते हुए उनकी कमर का नाप भी लिया था। कंडक्टरों का वजन सच में कंट्रोल में था और वो ड्राइवरों की तुलना में पतले थे। लेकिन मॉरिस ने ये देखा कि ज्यादा वजन वाले कंडक्टरों का हार्ट भी अपने से कम वजन वाले ड्राइवरों की तुलना में ज्यादा स्वस्थ था। यह फैक्ट खास तौर पर बढ़ती उम्र के साथ बिल्कुल फिट होता है।
जब आप 60 की उम्र पार कर लेते हैं, तब आपका वजन कम होना, बढ़ने की तुलना में ज्यादा नुकसानदायक होता है। बुज़ुर्गों में गंभीर बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है और लंबे समय तक बीमार पड़ने की वजह से वजन घटने के बहुत संभावना होती है। ऐसे में शरीर में फैट का लेवल एक बफर का काम करता है और वेट लॉस से होने वाले नुकसान का खतरा कम करता है। इसलिए स्वस्थ रहने के लिए वजन कम करने से ज्यादा जरूरी है रेग्युलर एक्सरसाइज पर फोकस करें।
एक हेल्दी लाइफ जीने के लिए बुरी आदतों को छोड़कर अच्छी आदतें अपनाएं।
किसी चीज को लगातार करते रहने पर वह हमारी आदत बन जाती है। अगर आप ऐसी चीजें बार-बार करेंगे जो आपको स्वस्थ रखती हैं, तो एक दिन वह भी आपकी आदत में शामिल हो जाएंगी। इसलिए अपनी विल पावर को टेस्ट और स्ट्रेस करने से अच्छा होगा कि आप हेल्दी लाइफस्टाइल की आदत डाल लें। आप अपने रोजमर्रा के जीवन में जो भी करते हैं उनमें से आधी से ज्यादा ऐसी ही ऑटोमेटिक हैबिट हैं। इनको भूलना या छोड़ पाना मुश्किल होता है। आप जितनी पॉजिटिव हैबिट डेवलप करते हैं उतना ही आपके लिए अच्छा है। इस तरह आप अपनी विल पावर पर बोझ थोड़ा कम कर देते हैं। आपने सुना होगा कि एक काम को 21 दिन तक करने पर वह आदत बन जाता है पर यह पूरी तरह सच नहीं है। ये आदतों, सिचुएशन और इंडीविजुअल पर भी डिपेंड करता है। फिर भी इसमें औसत दो महीने तक का समय लग जाता है।
आगे कुछ टिप्स दिए गए हैं जो इसमें आपके काम आ सकते हैं। सबसे पहले एक अचीवेबल और रियलिस्टिक टार्गेट सेट करें वरना आपको निराशा ही हाथ लगेगी। ऐसा न हो कि आपने बिना सोचे-समझे शुरुआत तो कर दी पर जल्द ही थक कर उसे बीच में बाय-बाय भी कर दिया। पहले ये समझिए कि आप क्या कर सकते हैं और फिर अपने लिए एक टार्गेट बनाइए।
दूसरी ध्यान देने वाली बात यह है कि आप जिस काम की शुरुआत कर रहे हैं, उसको नियमित रूप से करना जरूरी है। मान लीजिए आपने मार्निंग वॉक करना शुरू किया है। हो सकता है कभी आप समय पर न उठ पाएं या आपको कोई जरूरी काम निकल आए और एक दिन का गैप हो जाए। यह नार्मल है पर अगर आपका रूटीन एक हफ्ते तक गड़बड़ हो रहा है तो यह सही नहीं है। इसके लिए आपको रिकार्ड रखना जरूरी है ताकि ऐसा न हो।
अपने आप को यह सोचकर पॉजिटिव रखिए कि अच्छी आदतों को अपनाकर बुरी आदतों को दूर करना बहुत आसान है। अगर आपको मीठा खाने का शौक है तो आप उसे फलों से रिप्लेस कर सकते हैं। अगर आप बार-बार फ्रिज खोलते हैं और कुछ न कुछ खा लेते हैं तो वहां स्प्राउट, नट्स, होल ग्रेन और लो कैलोरी आइटम रख दीजिए और सारे हाई कैलोरी, हाई फैट आइटम हटा दीजिए।यहकितनाआसानहै, हैना?
याद रखिए, अपनी आदत को बदलने का मतलब है खुद को बदलना! अगर आप खुद में ये बदलाव चाहते हैं तो आज से ही शुरुआत कीजिए।
कुल मिलाकर
वजन कम करने के लिए आपके पास डाइटिंग से अच्छे ऑप्शन मौजूद हैं। अगर आप अपनी बॉडी के हंगर सिग्नल और एक्सरसाइज पर ध्यान देते हैं तो अच्छी हेल्थ पा सकते हैं।
छोटी-छोटी चीजों से बदलाव करने की कोशिश करें। एक महीने की जगह एक हफ्ते या पांच दिन का टार्गेट बनाएं और उसे पूरा करें। अपनी डाइट, एक्सरसाइज और टीवी शिड्यूल एक साथ मत बदलिए। आप एकदम सब बदलाव नहीं सह सकते। फिजिकली एक्टिव रहना हेल्दी रहने का सबसे अच्छा तरीका है।