We Need to Talk........

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We Need to Talk

Celeste Headlee



ऐसी बातें करना सीखो जो मायने रखे

दो लफ्जों में
साल 2017 में आई यह बुक हमें अच्छी कन्वरसेशन के तरीकों से परिचय करवाती है। इसे पढ़कर हम समझ  पाएंगे की अच्छी कन्वरसेशन कैसे होती है और वो क्यों इतनी जरूरी है। हम इस बुक से यह जानेंगे कि आखिर किस तरह से कन्वरसेशन की मदद से हम दूसरे व्यक्तियों के बारे में जान सकते हैं। यह बुक हमें यह भी सिखाएगी की किस तरह हम सभी अपनी कन्वरसेशन की स्किल को बेहतर कर सकते हैं। 

यह किन लोगों के लिए है?
- उन लोगों के लिए जो सुपरफीशियल कन्वरसेशन यानी की बेकार की कन्वरसेशन से फ्रस्ट्रेट हो चुके हैं।
- उन लोगों के लिए भी जो अपनी बात को किसी व्यक्ति के सामने बहुत अच्छे से पेश कर सकते हैं लेकिन वो एक अच्छे लिसनर भी बनना चाहते हैं जो सामने वाले व्यक्ति की बातों को सही प्रकार से समझ सके। 
- उन व्यक्तियों के लिए है जोकि अपनी कन्वरसेशन की स्किल में सुधार लाना चाहते हैं।

लेखिका के बारे मे
Celeste Headlee एक जर्नलिस्ट होने के साथ साथ डेली न्यूज़ शो भी होस्ट करती हैं। इसके अलावा लेखिका एक क्लासिकल गायक भी हैं। इस बुक के अलावा उनकी एक और बुक है जिसका नाम है डू नथिंग जिसमें यह बताया गया की कोई भी व्यक्ति अपना खाली समय कैसे एन्जॉय कर सकता है।

अच्छा कम्युनिकेशन इंसान के लिए सबसे बेसिक है। लेकिन आज के मॉडर्न ज़माने में हम सब ने कुछ खराब आदतें डाल ली है जिसकी वजह से हम कम्युनिकेशन की सही स्किल को भूलते जा रहे हैं।
हम सभी एक दूसरे से किसी न किसी सिलसिले में बात करते ही हैं। मॉडर्न टेक्नोलॉजी की वजह से हम सभी एक दूसरे से और ज्यादा कनेक्ट हो चुके हैं। लेकिन क्या हम सही प्रकार से एक दूसरे से कन्वरसेशन कर पा रहे हैं?

जवाब है बिल्कुल नहीं। मॉडर्न टेक्नोलॉजी की वजह से हम चाहे कितने ज्यादा करीब आ गए हों लेकिन हमारी कम्युनिकेशन की स्किल में गिरावट आई है यानी कि वो समय के साथ खराब हो गयी है। हम अच्छी कन्वरसेशन करने में असफल रहे हैं। हमने लोगों की बातों को ध्यान से सुनना कम कर दिया है। 

हां लेकिन यह बात भी समझी जा सकती है की अच्छी कन्वरसेशन करना भी काफी मुश्किल काम है। यह उतना आसान नहीं हैं जितना लोग सोचते हैं। इस इस समरी में हम जानेंगे कि क्यों कन्वरसेशन को इफेक्टिव बनाने के लिए उसमें एफर्ट डालना आवश्यक है और किस तरह से कन्वरसेशन की मदद से हम सामने वाले व्यक्ति के बारे में अधिक अधिक जान सकते हैं।

तो चलिए शुरू करते हैं!

इंसान के अलावा भी इस संसार में बहुत सारे जीव मौजूद हैं। और कुछ जीव तो ऐसे हैं जो इंसान से तेज हैं, ताकतवर हैं और खतरनाक भी हैं। लेकिन इन सब के बावजूद भी इंसान ही सबको डॉमिनेट करता है। कभी आपने सोचा है कि आखिर ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि इंसान के पास एक सबसे बड़ी ताकत मौजूद है वह है एक दूसरे से कम्युनिकेशन करना। हम सभी कम्युनिकेशन के जरिये बाकी सभी कमियों की भरपाई कर सकते हैं। इंसानों की बात करने और एक दूसरे की बातें सुनने की एबिलिटी की वजह से आज इंसान इस बड़े संसार में एक डॉमिनेंट स्पीशीज बन चुका है। 

लेकिन आज के ज़माने में हम कम्युनिकेशन को बिल्कुल महत्व नहीं दे रहे हैं बल्कि इसके विपरीत हमारी कम्युनिकेशन की स्किल और ज्यादा खराब होती चली जा रही है। आज से नहीं बल्कि जीवन की शुरुआत से ही इंसान एक दूसरे से बात करते चले आ रहे हैं लेकिन एक दूसरे से कम्युनिकेशन अच्छे से हो ये अभी भी सीखना बाकी है। एक उदाहरण से इस बात को समझने की कोशिश करते हैं।

खराब कम्युनिकेशन की वजह से कई बार लोगों को आर्थिक यानी की पैसों का नुकसान भी सहना पड़ा है। बात करें यूनाइटेड किंगडम और यूनाइटेड नेशंस की तो वहां पर बड़े बड़े बिजनेसमैन को हर साल लगभग 37 बिलियन डॉलर का लॉस होता है। और इस लॉस की सबसे बड़ी वजह और कुछ नहीं बल्कि खराब कम्युनिकेशन है। सिर्फ दूसरे देशों में ही नहीं हमारे अपने देश में भी कई बार खराब कम्युनिकेशन की वजह से लोगों के बीच की दूरियां बढ़ जाती हैं। 

टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया के आ जाने से अब युवा लोग सिर्फ दिखावे का कम्युनिकेशन करते हैं। आज से कुछ 30 साल पहले हालात बिल्कुल अलग थे। पहले लोग एक दूसरे के प्रति अच्छे से सहानुभूति प्रकट करते थे। 

हाल ही में रिसर्चर्स के द्वारा एक रिसर्च को अंजाम दिया गया। रिसर्च के दौरान दो लोगों के बहुत सारे ग्रुप को एक रूम में ले जाया गया और एक दूसरे से चैट यानी कि बातचीत करने को कहा गया। रूम में मौजूद आधे ग्रुप के सामने सेल फ़ोन भी रख दिए गए। आपको जानकर हैरानी होगी कि सिर्फ फोन के वहां टेबल पर मौजूद होने से लोगों के ऊपर उसका गलत इम्पैक्ट हुआ और जिन लोगों के सामने फोन नहीं था वो लोग बेटर रिलेशनशिप डेवलप करते हुए नजर आए। 

इस रिसर्च से एक बात तो समझ में आ गयी की फोन को खुद से दूर करना तो बस शुरुआत है, एक अच्छी कम्युनिकेशन के लिए सबसे जरूरी है कि आप कन्वरसेशन की आर्ट को सीरियस होकर उसको समझने का प्रयास करें। 

बहुत बात यह भी देखने को मिल जाती है कि खराब कन्वरसेशन का जिम्मेदार आप अपने सामने वाले व्यक्ति को ठहरा देते हैं। लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। अगर आप खुद से एक अच्छी कन्वरसेशन बनाने की कोशिश करेंगे तो अवश्य ही आपको अच्छे रिजल्ट देखने को मिलेंगे।

कम्युनिकेशन के लिए जरूरी है की आप अपने सामने वाले व्यक्ति के साथ एक कॉमन ग्राउंड यानी कि किसी ऐसे टॉपिक पर बात करें जिसके बारे में दोनों को नॉलेज हो। इससे आप कठिन कन्वरसेशन को भी आसान बना सकते हैं।
बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो कठिन कन्वरसेशन से दूर भागते हैं। लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें की कई बार जो कन्वरसेशन कठिन नजर आती है वो काफी इंट्रेस्टिंग भी हो सकती है। आइये एक उदाहरण लेके इस बात को समझते हैं।

XERNONA क्लेटन जिनका जन्म 1930 में हुआ था, वो अमेरिका में हुए सिविल राइट्स मूमेंट में भी इन्वॉल्व थीं। इसके अलावा उन्होंने एटलांटा में सिटी प्लानिंग प्रोग्राम को भी हेड किया था। और अपने उसी सिटी प्लानिंग प्रोग्राम के दौरान वो काल्विन क्रेग से मिली। काल्विन क्रेग उनके कलीग थे लेकिन वो कु क्लक्स क्लान के भी सदस्य थे। कु क्लक्स क्लान एक ऐसा संगठन था जोकि अमेरिका में मौजूद कुछ कम्युनिटी का विरोध करता था।

क्लेटन और काल्विन क्रेग दोनों ही बिल्कुल अपोजिट ग्रुप्स का हिस्सा थे लेकिन इसके बाउजूद उन दोनों के बीच एक ऐसा खास बॉन्ड बन गया था की कई बार क्रेग, केल्टन के आफिस में जाके उनसे काफी लम्बे समय तक बात किया करते थे। वो कहते थे कि उनको क्लेटन के साथ बात करने में काफी आनंद आता है। ऐसा इसलिए था क्योंकि एक दूसरे के विरोधी होने के बावजूद भी उन्होंने एक कॉमन ग्राउंड खोज निकाला था जिससे उनका कन्वरसेशन इंट्रेस्टिंग हो गया था। साल 1968 में क्रेग ने कु क्लक्स क्लान को छोड़ दिया और उन्होंने अपने इस डिसीजन का श्रेय अपनी और क्लेटन की खास कन्वरसेशन को दिया। क्लेटन ने क्रेग की विचारधारा में बदलाव ला दिया और वो भी परसुऐसन से नहीं बल्कि अच्छा कन्वरसेशन पार्टनर बनकर।

क्रेग और क्लेटन के बारे में जानकर आपको यह तो समझ आ ही गया होगा कि आप अपने से बिल्कुल अलग विचार रखने वाले व्यक्ति के साथ भी अच्छी कन्वरसेशन कर सकते हैं। हमारी सोच कुछ ऐसी हो चुकी है की किसी व्यक्ति के साथ हम किसी बात पर एग्री करते हैं तो हमें महसूस होता है कि हम उस व्यक्ति की हर बात से एग्री कर सकते हैं। इसी प्रकार जब हम किसी व्यक्ति की किसी बात से एग्री नहीं करते तो हमें लगता है कि उस व्यक्ति की कोई भी बात एग्री करने लायक नहीं है। लेकिन ये धारणा बिल्कुल गलत है। 

मान लीजिये की आप का बेटा अपने किसी दोस्त के घर रात बिताने के लिए जाना चाहता है। अब लाजमी है कि आप उसके उस दोस्त के माता पिता से इस सिलसिले में बात करेंगे। हो सकता है ऐसे बहुत सारे मसले हों जिसपर आप और आपके बेटे के दोस्त के माता पिता एग्री करें लेकिन इससे यह तो नहीं साबित होता न कि उनके घर जाकर रात बिताना आपके बेटे के लिए सेफ होगा।

किसी से बात करते समय यह जरूरी है कि आप अपने सामने वाले व्यक्ति की बातों को सुने। सबसे जरूरी है की आप रेस्पेक्ट शो करने के साथ साथ कन्वरसेशन को पूरी कमिटमेंट के साथ अंजाम दें। जरूरी भी नहीं की सारी कन्वरसेशन एग्रीमेंट पर खत्म हो, हो सकता है कुछ कन्वरसेशन डिसएग्रीमेंट पर खत्म हों।

कभी भी यह न सोचें की आप अपने सामने वाले व्यक्ति की परिस्थितियों को अच्छे से जानते हैं। 

जैसा की हमने आपको बताया कि लेखिका एक रेडियो शो होस्ट करती हैं और होस्टिंग के दौरान उनका कई लोगों से आमना सामना होता है। लेकिन लेखिका भी बहुत बार कन्वरसेशन में गलतियां कर देती है। 

एक बार की बात है लेखिका अपनी एक मित्र के पिता की मृत्यु के बाद उनसे मिलने के लिए गईं। उनकी वो परेशान दोस्त लेखिका से सांत्वना की उम्मीद लगाए बैठी थीं। लेकिन लेखिका का जो रिस्पांस था उसके जरिये वो अपनी दोस्त से अपना एक्सपीरियंस शेयर कर रहीं थीं। उन्होंने अपनी दोस्त  से कहा कि जब वो 9 साल की थी तभी  उन्होंने भी अपने पिता को खो दिया  था। इसे सुनकर लेखिका की मित्र और दुखी हो गयी और उन्होंने कहा कि कम से कम तुम्हारे और तुम्हारे पिता के बीच एक स्ट्रांग रिलेशनशिप था। 

हालांकि लेखिका के कहने का मतलब यह बिल्कुल नहीं था।

हम लोग ये गलती बहुत बार करते हैं। ज्यादातर लोग अनजाने में ऐसा करते हैं। लेकिन गलती तो गलती ही है। सोसियोलॉजिस्ट चार्ल्स डरबर के मुताबिक किसी भी कन्वरसेशन में दो तरीके के रिस्पांस होते हैं। एक होता है शिफ्ट रिस्पांस और दूसरा होता है सपोर्ट रिस्पांस। लेखिका के उदाहरण में लेखिका ने कन्वरसेशन के दौरान शिफ्ट रिस्पांस दिया। हालांकि उसके पीछे उनका कोई गलत इरादा नहीं था। 

कभी कभी आप किसी अपने दोस्त के साथ जब कन्वरसेशन कर रहे होते हैं तो बहुत बार शिफ्ट रिस्पांस का यूज़ करते हैं। मान लीजिये आपके दोस्त ने कहा कि मैं बहुत अच्छा क्रिकेट खेलता हूँ और इसके रिस्पांस में अगर आप कहेंगे कि मैं भी अच्छा क्रिकेट खेलता हूँ तो ये हुआ शिफ्ट रिस्पांस। इससे सारा फोकस आपके ऊपर आ जाएगा। लेकिन अगर आप अपने दोस्त को कुछ ऐसा रिस्पांस देंगे जैसे कि आप उनसे पूछ लें कि उन्होंने क्रिकेट खेलना कबसे शुरू किया? तो ये होगा सपोर्ट रिस्पांस। सपोर्ट रिस्पांस के दौरान फोकस सामने वाले व्यक्ति पर ही रहता है। 

लेकिन सपोर्ट रिस्पांस देना काफी हार्ड होता है क्योंकि लोगों के लिए खुद पर फोकस रखकर और अपने एक्सपीरियंस को शेयर करना काफी आसान है। सहानुभूति यानी कि इमपैथी भी कुछ इस प्रकार ही काम करती है। अगर आप किसी से बताएंगे कि आज आपने खाने में एक बहुत ही स्वदिष्ट चीज खाई है तो सामने वाला व्यक्ति खुद को भी वो चीज खाते हुए इमेजिन करने लगेगा। 

लेकिन कई बार ऐसा होता है कि आपकी और सामने वाले इंसान की लाइफ मेल नहीं खाती। ये गलत बात नहीं है कि आपका नॉलेज बेस दूसरों से अलग है। लेकिन कई बार हम सामने वाला जिस बारे में बात कर रहा है उस बारे में बिल्कुल भी न जानते हुए उसके बारे में जानकार बने रहना प्रिटेंड करने लगते हैं। लेकिन यह गलत है। आप सीधा बोल सकते हैं कि आपको उस टॉपिक के बारे में नॉलेज नहीं है, हो सकता आपको थोड़ा शर्म का एह्साह हो लेकिन ऐसा करने से सामने वाले का आपके ऊपर ट्रस्ट बढ़ता है।

कन्वरसेशन तभी स्ट्रांग होती है जब आप अपने सामने वाले व्यक्ति की बातों को ध्यान से सुनते हैं।
हू, व्हाट, व्हेरे, व्हेन, व्हाई और हाऊ ये ऐसे शब्द है जिनकी मदद से आप किसी भी कन्वरसेशन को इफेक्टिव बना सकते हैं। कई बार आपको लगता है कि आप किसी से काफी लम्बा सा सवाल पूछ लेंगे तो शायद आपकी और उस व्यक्ति की कन्वरसेशन ज्यादा देर तक चल जाए लेकिन ऐसा नहीं है। अगर आपको कन्वरसेशन को इफेक्टिव बनाना है और लम्बा चलाना है तो ऊपर बताए हुए उन शब्दों का यूज़ करें।

जब आप ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं तो सामने वाला व्यक्ति सिर्फ हां और ना में जवाब नहीं दे सकता। उसको एक सही और एग्जैक्ट जवाब ही देना होगा। इस तकनीक का इस्तेमाल ज्यादातर जर्नलिस्ट लोग करते हैं लेकिन हम सब भी इसका प्रयोग कर सकते हैं। हालांकि सिर्फ यही एक चीज नहीं है जिसकी वजह से आप कन्वरसेशन को इफेक्टिव बना सकते हैं।

कोशिश करिए कि आप अपने सामने वाले से ओपन एंडेड सवाल पूछें और सुनें की वो क्या रिस्पांस दे रहे हैं। मान लीजिए आपके एक दोस्त के शहर में कुछ दिनों पहले काफी भयानक तूफान आया था। तो अगर आप अपने दोस्त से पूछेंगे कि क्या वो तूफान के समय डर गया था तो वो हां और ना में जवाब देगा और आपकी और आपके दोस्त की कन्वरसेशन वहीं खत्म हो जाएगी। लेकिन अगर आप उससे पूछेंगे कि तूफान के समय उसको कैसा फील हुआ? उसके घर के आस पास क्या स्थिति थी? तो इससे आप उसके एक्सपीरियंस को जान पाएंगे।

बहुत से लोग साइलेंस को खत्म करने का प्रयास करते हैं लेकिन कई बार कुछ देर आपके शांत रहने से सामने वाले को एहसास होता है कि आप उसकी बातें सुन रहे हैं। कन्वरसेशन को इंट्रेस्टिंग दिशा देने के लिए आप एक मोमेंट ले सकते हैं यानी की कुछ समय के लिए चुप रह सकते हैं। 

कभी भी अपने दिमाग को भटकने ने दें। दूसरों की बातों से ध्यान हटाना और उनकी बात न सुनना बिल्कुल वैसे ही होगा जैसे आप कांटों के बीच में फूल की तलाश कर रहे हैं या फिर रेगिस्तान में पानी की। मतलब की बिना किसी परपज़ के आप अपना समय खराब कर रहे हैं। 

सही प्रकार से सुनना भी एक कला है और वो सबके पास नहीं होती। कई बार होता है की कन्वरसेशन के दौरान आप यह सोचने में लग जाते हैं कि आपको अगली बात कौन सी करनी है और अभी आपके सामने वाले व्यक्ति ने अपनी बात खत्म भी नहीं की हुई होती है। ऐसा करते समय आप अपने सामने वाले व्यक्ति की बात नहीं सुन रहे होते हैं। बेहतर है कि आप ध्यान से सामने वाले व्यक्ति की बातों को सुनें और कन्वरसेशन को फ्लो में चलने दें। 

अगर आप कन्वरसेशन में पूरी तरह इन्वॉल्व हो जाएंगे तो आप पाएंगे कि आप बिलकुल सही, इंट्रेस्टिंग और ओपन माइंडेड प्रश्नों का प्रयोग कर रहे हैं।

लिसनिंग कोई एक्टिव स्किल या फिर पैसिव स्किल नहीं है।एक रिसर्च में यह साबित हुआ है कि जब कोई इंसान खुद के बारे में बात करता है तो ऐसा करने से उसको बहुत खुशी मिलती है। खुद के बारे में बात करने से इंसान को उसी प्रकार का सुख प्राप्त होता है जैसे उसे सेक्स करने पर, या फिर किसी प्रकार का नशा करने पर महसूस होता है। 

वहीं अगर हम बात करें लिसनिंग यानी की बात को सुनने की कला की तो वो इतनी सुखद नहीं होती। बल्कि लिसनिंग काफी मुश्किल काम है। बहुत से लोगों को लगता है कि बात चीत के दौरान न बोलना भी लिसनिंग कहलाता है लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। 

एक अच्छी बात यह है की लिसनिंग एक स्किल है जिसको कोई भी सीख सकता है।

बहुत से लोगों को लगता है कि वो बहुत अच्छे लिसनर हैं लेकिन हो सकता है कि वो लोग गलतफहमी में रह रहे हों। आज के मॉडर्न जमाने में बहुत सी ऐसी चीजें हैं जो आपको डिस्ट्रैक्ट करती रहती हैं। आपने बहुत बार खुद नोटिस किया होगा कि आप मीटिंग के दौरान बार बार अपने स्मार्टफोन पर ईमेल चेक करते रहते हैं। अगर आपको लगता है कि आप मल्टीटास्किंग कर रहे हैं तो आप बिल्कुल गलत हैं। ये भी एक तरह का डिस्ट्रैक्शन ही है।

एक्टिव लिसनिंग नेचुरल नहीं होती। लेकिन प्रैक्टिस के साथ कोई भी व्यक्ति इसको सीख सकता है। सबसे पहली चीज जो आपको समझनी है वो यह है कि लोग सिर्फ शब्दों के जरिये कम्युनिकेशन नहीं करते। कई बार सामने वाले व्यक्ति के हाव भाव और उसके बोलने का तरीका भी बहुत कुछ कहता है। अगर आप इन सब चीजों पर ध्यान देंगे तो आप धीरे धीरे समझ सकेंगे की सामने वाला व्यक्ति क्या कम्यूनिकेट करना चाह रहा है।

एक और महत्वपूर्ण टेक्निक यह है कि आप इस बात की फिक्र न करें की कम्युनिकेशन के दौरान आप अगली बात क्या बोलने वाले हैं। बल्कि आप यह सोचें की सामने वाला क्या कहना चाह रहा है। हो सके तो सामने वाले व्यक्ति की बातों का सार निकालने की कोशिश करें। 

लेखिका एक ऐसी फैमिली से आतीं हैं जिसका शुरू से ही म्यूजिक से लगाव रहा है। बचपन से ही लेखिका ओपेरा सुनने जाया करती थीं। लेकिन उन्होंने कभी भी पूरे ध्यान से ओपेरा नहीं सुना। इस बात का एहसास उन्हें तब हुआ जब उन्हें ऑडिशन के लिए एक एरिया सीखना पड़ा। एरिया एक तरह की ट्यून होती है जोकि सिंगल व्यक्ति के द्वारा परफॉर्म की जाती है। उन्हें वो सीखने के लिए काफी प्रैक्टिकल होना पड़ा। 

इसी प्रकार कन्वरसेशन के दौरान भी प्रैक्टिकल रहने की जरूरत होती है। हालांकि यह काफी मुश्किल है लेकिन अगर आपको यह कला आ गयी तो आपको कम्युनिकेशन में मजा आने लगेगा।

जब आप किसी व्यक्ति से बात कर रहे होते हैं तो लिसनर यानी की सामने वाले व्यक्ति के साथ थोड़ा सेंसिटिव रहें।
किसी भी व्यक्ति की बात को सुनना काफी जरूरी है। लेकिन लिसनिंग कम्युनिकेशन का सिर्फ आधा हिस्सा होता है। हो सकता है की आप अपने सामने वाले व्यक्ति की बातों को ध्यान से सुन रहे हों लेकिन कम्युनिकेशन के दौरान  एक समय ऐसा आएगा जब आपको बोलना पड़ेगा। आप कैसे इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि कम्युनिकेशन में आपका कितना कॉन्ट्रिब्यूशन है? कोशिश करिए की आप खुद को सामने वाले व्यक्ति की जगह पर रखकर यह समझने का प्रयास करें की लिसनर होना कैसा होता है। 

हम आपको तीन टिप दे रहें हैं जो आपकी मदद कर सकते हैं। सबसे पहली बात यह कि अपनी बात को सामने वाले व्यक्ति के सामने पूरी डिटेल्स के साथ पेश करें। दूसरी टिप यह की कभी भी अपनी बातें रिपीट न करें। तीसरी और आखिरी टिप कभी भी बात को अधूरा न रहने दें। यह कभी न कहें की इस बात पर हम बाद में चर्चा करेंगे। 

रेडियो पर जितने भी इंटरव्यू होते हैं वो ज्यादा से ज्यादा 5 मिनट चलते हैं। कभी कभी ये इंटरव्यू हमें काफी लम्बे लगते हैं क्योंकि उनके अंदर बहुत सी इंट्रेस्टिंग इनफार्मेशन मौजूद होती है। लेकिन सच तो यह है की बर्फ से गर्म पानी बनाने में समय तो लगता है।इंसानों की एक कमजोरी यह है की हम सभी किसी भी चीज पर बहुत ज्यादा देर तक अटेंशन नहीं दे सकते। एक स्टडी के मुताबकि इंसानों का अटेंशन स्पैन गोल्ड फिश से बस एक सेकंड ज्यादा होता है। ये एक चीज है जिसमें हमें इम्प्रूव करने की आवश्यकता है। लेकिन एक बात हमेशा याद रखें की अगर आप अपनी बात को लम्बा खीचेंगे तो सामने वाला व्यक्ति डिस्ट्रैक्ट हो ही जाएगा। 

कम्युनिकेशन के दौरान सामने वाले व्यक्ति पर और उसकी हरकतों पर नजर बनाए रखें। क्या वो आपकी बात ध्यान से सुन रहें हैं? वो इधर उधर तो नहीं देख रहा? कम्युनिकेशन को एक कैचिंग के गेम की तरह देखें। बॉल को अपने पार्टनर के पास तभी फेकें जब उसका पूरा ध्यान गेम पर हो। फालतू में बॉल फेकने पर कैच ड्राप हो सकता है। यानी की तभी कन्वरसेशन करें जब सामने वाले व्यक्ति का पूरा ध्यान आपके ऊपर हो। 

यह बिल्कुल भी न सोचें की बात को बार बार रिपीट करने से वो बात लिसनर के दिमाग में बैठ जाएगी। रिसर्च के अनुसार बात को रिपीट करने से स्पीकर के दिमाग में वो बात हमेशा के लिए रह जाती है लेकिन लिसनर के साथ ऐसा नहीं है।  अगर आप बात को बार बार रिपीट करेंगे तो शायद सामने वाले व्यक्ति का ध्यान उसपे से पूरी तरह से हट जाए। 

सबसे जरूरी बात कभी भी छोटी छोटी बातों को ज्यादा एक्सप्लेन न करें। ऐसा करने से लिसनर का ध्यान भटक सकता है। यह भी सच है की अगर आप यह चाहते हैं कि सामने वाला व्यक्ति आपकी किसी बात को याद रखे तो उसकी पूरी डिटेल देना जरूरी है लेकिन कभी कभी ज्यादा डिटेल भी नुकसान दे सकती है। 

एक बार फिरसे कैच वाले गेम को सोचिये। मान लीजिए आप चाहते हैं की सामने वाला व्यक्ति किसी एक तरह की बॉल को कैच करे। तो आपके लिए जरूरी है कि आप वही बॉल उसकी तरफ फेकें। फालतू की और बॉल फेकने की वजह से हो सकता है की सामने वाला व्यक्ति इम्पोर्टेन्ट बॉल को मिस कर दे।

अच्छा कन्वरसेशन एक मुश्किल काम है लेकिन अगर कोई ये करने में सफल होता है तो उसे काफी बेनिफिट हो सकता है। 

लेखिका एक रेडियो होस्ट हैं। रेडियो होस्ट का मेन काम लोगों से बात करना ही होता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की रेडियो होस्ट हमेशा ही अपने काम में लगे रहते हैं। बहुत बार उन्हें एडमिनिस्ट्रेशन से जुड़े काम के लिए दूसरों की मदद भी लेनी पड़ती है। 

तो क्या इसका मतलब ये है कि वो एन्टी सोशल है? ऐसा बिल्कुल नहीं है। लेकिन हां उन्हें उनकी लिमिट पता है। 

कन्वरसेशन को अच्छा बनाने के लिए एफर्ट लगता है। तो इसलिए अगर आप कन्वरसेशन के लिए तैयार नहीं है तो बिना मन के कभी भी कन्वरसेशन शुरू न करें। 

सभी कन्वरसेशन एक जैसी नहीं होतीं। साल 2010 में एक रिसर्च में यह पाया गया है की जरूरी नहीं है कि सबसे ज्यादा खुश वही इंसान हो जोकि ज्यादा सोशल हो और हर प्रकार से कन्वरसेशन  में इन्वॉल्व हो बल्कि वो इंसान भी खुश रह सकता है जो सिर्फ सब्सटेंटिव कन्वरसेशन यानी की इम्पोर्टेन्ट कन्वरसेशन करता है। सोशल होना अच्छी बात है। लेकिन उससे भी अच्छी चीज यह है की सही प्रकार से सोशल रहा जाए और सही कन्वरसेशन का हिस्सा बना जाए। छोटी कन्वरसेशन भी बहुत महत्वपूर्ण होती है। जैसा की हम सब जानते हैं क्वांटिटी से ज्यादा जरूरी है क्वालिटी। 

इमपैथी बहुत ही महत्वपूर्ण चीज है क्योंकि इसी की वजह से हम यह समझ पाने में सक्षम हो पाते हैं की सामने वाले व्यक्ति की क्या फीलिंग्स है और इसी की वजह से एक रियल कनेक्शन बनता है। लेकिन यंग जनरेशन में इमपैथी खो सी गयी है। कम्युनिकेशन के समय दूसरे व्यक्ति पर फोकस करना काफी जरूरी होता है। आप खुद ही सोचिए की जब आप किसी असहाय व्यक्ति की सहायता करते हैं तो आपको अंदर से कितना अच्छा महसूस होता है। एक स्टडी के अनुसार दूसरों की मदद करने वाले लोगों का जीवन अन्य व्यक्तियों से अधिक होता है। 

सिर्फ एक अच्छी कन्वरसेशन की मदद से आप अपने सामने वाले व्यक्ति को अच्छे से जान सकते हैं। वो क्या सोच रहा है? वो क्या फील कर रहा है? वो ऐसा क्यों है? वो आखिर है कौन?  इन सभी सवालो का जवाब आपको एक अच्छी  कन्वरसेशन से मिल सकता है। हालांकि ये काफी मुश्किल काम है लेकिन इससे आपको और आपके सामने वाले व्यक्ति दोनों को फायदा हो सकता है।

कुल मिलाकर
इंसानों की सबसे खास बात यह है की वो एक दूसरे से बात कर सकते हैं यानी की कम्यूनिकेट कर सकते हैं। लेकिन कोई भी इस बात को सीरियस नहीं लेता की कन्वरसेशन बहुत महत्वपूर्ण है। और जबसे टेक्नोलॉजी आयी है तबसे से तो कन्वरसेशन का अस्तित्व ही खत्म हो गया है। एक अच्छी कन्वरसेशन के जरूरी है की आप ओपन माइंड होकर उसका हिस्सा बनें और एक अच्छे लिसनर के रूप में सामने वाले व्यक्ति की बात को ध्यान से सुनें। अच्छी कन्वरसेशन से आपको खुशी मिलेगी। 

 

क्या करें?

मीनिंगफुल कन्वरसेशन करिए

हालांकि ये काफी आसान लगता है लेकिन अच्छी कन्वरसेशन सिर्फ आंख से आंख मिलाकर ही नहीं हो सकती। अब कभी भी आपको मौका मिले तो कन्वरसेशन को सीरियस्ली लें। दूसरे व्यक्ति की बातों को ध्यान से सुने और समझनें का प्रयास करें कि वो क्या कहना चाह रहा है। सोचें की उसके एक्सपीरियंस आपके एक्सपीरियंस से कैसे अलग हैं। ऐसा करने से आप काफी नई चीजें सीखेंगे।

 

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