The Wisdom of Life..... 🤥

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The Wisdom of Life

Arthur Schopenhauer
इंसान असल मायनों में खुश कैसे रह सकता है?

दो लफ्जों में
‘द विस्डम ऑफ़ लाइफ’ साल 1851 में लिखी गई थी. इस किताब को आप एक फिलोसिफिकल निबंध के तौर पर भी देख सकते हैं, किताब का मुख्य उद्देश्य पाठक को इंसानी फितरत के बारे में बताने का है, इस किताब के माध्यम से लेखक ने कोशिश की है कि वो आपको बता सकें कि इंसान असल मायनों में खुश कैसे रह सकता है. ह्यूमन हैपीनेस को लेकर पहले के ग्रीक फिलोस्फर क्या सोचते थे, इस बात का जिक्र भी लेखक ने इस किताब में किया है. 

ये किताब किसके लिए है?
· उन सभी के लिए जिनको फिलॉसफी में रूचि हो 
· उन सभी के लिए जिनको ख़ुशी और ज्ञान चाहिए
· जिनकी 19वीं सदी की जर्मन फिलॉसफी में दिलचस्पी हो 

लेखक के बारे में
Arthur Schopenhauer (1788-1860) एक बहु प्रतिष्ठित जर्मन फिलॉसफर रहे हैं. एक लेखक के तौर पर इनके लेखन की पहचान इस बात से ही हो जाती है कि उन्होंने अपने दौर की सोच प्रैक्टिकल मटेरीयलिज्म को सिरे से नकार दिया था. उस दौर के कई जर्मन बुद्धजीवियों ने लेखक के एप्रोच का समर्थन भी किया था.

जिंदगी ने हमें जो गिफ्ट दिया है, उसे हम तीन भागों में बांट सकते हैं
एक सवाल जो सबसे बड़ा बन रहा है, आदिअनादी काल से ही, वो ये है कि जिन्दगी में ख़ुशी का असली मतलब क्या होता है. इसी सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश उस समय के सभी जर्मन फिलॉसफर कर रहे थे. उन्होंने इस जिज्ञासा को एक टर्म से संबोधित भी किया था, वो टर्म है ‘यूडैमोनिया’, इसका मतलब है शोहरत, संतुष्टि और ख़ुशी.

आखिर ख़ुशी है क्या? इस सवाल ने लेखक को भी काफी ज्यादा परेशान किया है, इस निबंध के माध्यम से लेखक ने उसी सवाल का जवाब देने की कोशिश की है. इस निबंध में उन्होंने दोनों पहलूओं पर ध्यान दिया, पहला ये कि आखिर ख़ुशी है क्या? और ज़िन्दगी को ऐसा कैसे बनाया जाए कि हम ख़ुशी तक पहुंच सकें, क्योंकि सही ज़िन्दगी जीना ही एक मात्र माध्यम है ख़ुशी तक पहुँचने का, जिंदगी के ज्ञान का रास्ता जिन्दगी को जीकर ही गुजरता है.

इंसानी जीवन के बारे में विचार करना या उस बारे में अध्यन करना कोई नयी बात नहीं है, लेकिन विचार करने के बाद वास्तिक चीज आती है कि आखिर जीवन कैसा होना चाहिए?

सबसे पहले ग्रीक फिलॉसफर एरिसटोटल ने बताया कि ह्यूमन ब्लेसिंग को हम तीन भागों में बांट सकते हैं, एक बाहरी ख़ुशी, एक आत्मा की ख़ुशी और एक शरीर की ख़ुशी.

सबसे पहले एक पर्सनालिटी होती है, या फिर ये कहें कि ‘व्हाट अ मैन इज’.

एक पर्सनालिटी में बस किसी का चरित्र नही होता है, बल्कि उसमे हेल्थ, खूबसूरती, रहन-सहन, बोल-चाल, खाना-पीना, एजुकेशन बहुत सी चीजें आती हैं. 

इन्ही सब चीज़ों को मिला जुलाकर किसी आदमी का नेचर कहा जाता है, यही नेचर आपको ख़ुशी प्रदान करता है.

सबसे ख़ास बात ये है कि किसी भी इंसान को ख़ुशी उसकी अंतरात्मा से ही मिलती है, जैसे कि अगर आपकी हेल्थ अच्छी रहेगी तो आप ज्यादा खुश भी रहोगे, एक कहावत भी है कि स्वस्थ भिखारी एक बीमार राजा मुकाबले ज्यादा खुश रहता है.

इससे किताब के लेखक आर्थर कहते हैं कि इंसान की ख़ुशी का नाता उसके दिमाग से होकर गुजरता है, एक बुद्धिमान आदमी अकेले भी काफी खुश रह सकता है, उसे ज्यादा सोशल होने की जरुरत ही नहीं पड़ती है, उसके दिमाग के अंदर खुद इतना कुछ होता है कि वो अकेले के समय में भी खुश ही रहता है. 

हम दूसरी कैटेगरी की बात करते हैं कि ‘व्हाट अ मैन हैज़’.

मटेरियल से आपकी जरूरतें पूरी हो सकती हैं लेकिन उससे ज्यादा और कुछ भी नहीं. इससे वो शांति नहीं मिल सकती जिसकी आपको तलाश है. कई बार देखा गया है कि अमीर लोग अंदर से काफी दुखी रहते हैं.  आप शारीरिक और मानसिक जितना स्वस्थ रहेंगे उतना खुश रहेंगे. 

चलिए इस सफर की शुरुआत करते हैं, तीन कैटेगरी में से पहली कैटेगरी से, ये कैटेगरी है पर्सनालिटी. ये एक ऐसी चीज है जो आप अपने साथ लेकर हर जगह जाते हो, इस बात से मतलब नहीं कि आप कहां हो, किसके साथ हो और क्या कर रहे हो, आपकी पर्सनालिटी हमेशा ही आपके साथ होती है.

इस पर्सनालिटी में एक चीज़ महत्वपूर्ण जगह रखती है, वो है आपकी हेल्थ, अगर आप स्वस्थ हो तो फिर आप छोटी-छोटी चीजों में भी ख़ुशी ढूंढ ही लोगे.

एरिसटोटल ने कहा है कि जिन्दगी एक मूवमेंट की तरह है. 

इसको हम ऐसे भी देख सकते हैं कि हमें अपने डेली रूटीन में एक्सरसाइज ज़रूर करनी चाहिए. इससे ज्यादा क्या? एक्सरसाइज से आपका दिमाग के दौड़ने की क्षमता भी बढ़ेगी, जब दिमाग चलेगा तो शरीर भी चलेगा, इसको एक पेड़ के उदाहरण से समझने की कोशिश करिए, पेड़ के पत्तों में लगी धूल भी तब हटती है जब थोड़ी हवा चलती है और उस हवा से पेड़ हिलता है.

हेल्थ सही रहेगी तो आपका दिमाग आपको ख़ुशी के रूप में ही गिफ्ट देगा.एक पुरानी कहावत है कि ‘मूर्ख की ज़िन्दगी मरे हुए से भी बेकार होती है’.

अगर आपके पास सौभाग्य है कि आप इंटेलेक्च्युअल की तरह जी सकते हैं, तो प्लीज़ उसी तरह जीते रहिये, तब आपका दिमाग भी हमेशा बिज़ी रहेगा और आपके पास समय ही नहीं रहेगा बोर होने का, जब दिमाग के पास समय नहीं है, तो आपके पास कैसे हो सकता है?

एक उपजाऊ दिमाग किसी बंजर ज़मीन में भी खूबसूरती देख सकता है, लेकिन एक मूर्ख इंसान के सामने अगर आप पूरा स्वर्ग भी रख देंगे तो उसे कुछ भी समझ नहीं आएगा. इसलिए अपने दिमाग को हमेशा ही किसी ना किसी प्रोडक्टिव काम में लगाये रहिये, ऐसा एक दिन नहीं होना चाहिए जब आपको लगे कि आज कुछ मैंने प्रोडक्टिव नहीं किया है. 

दूसरा पहलु ये है कि अगर आपका दिमाग खाली रहेगा, तभी आप एंटरटेनमेंट के पीछे भागने की कोशिश करेंगे, अगर आपके पास पहले से ही एंटरटेनमेंट मौजूद है तो आपको उसकी ज़रूरत ही नही है, इसलिए हमेशा व्यस्त रहने की कोशिश करिए, आपकी जिंदगी में ख़ुशी बहुत ज्यादा इस चीज पर भी डिपेंड करती है कि आप ज़िन्दगी से कितना कुछ चाहते हैं.

अब समय आ गया है कि दूसरी कैटेगरी की तरफ अपने कदम बढ़ाएं, ये कैटेगरी है प्रॉपर्टी, व्हाट अ मैन हैज.

सबसे पहले ये समझना होगा कि कुछ बुनियादी चीजें होती हैं, जैसे कि रोटी, कपड़ा और मकान, इन चीजों के बिना जिन्दगी को गुजर बसर करना ही मुश्किल हो सकता है. और कुछ ज़रूरतें वैसी होती हैं जो नेचुरल तो होती हैं लेकिन इनके बिना भी काम हो सकता है, इनको पूरा करना थोड़ा मुश्किल भी होता है.

और एक तीसरा हिस्सा भी है, वो है लग्जरी लाइफ स्टाइल का, ये ना ही नेचुरल है और ना ही इसकी हमे कोई ज़रूरत है, और अगर हम इसको पूरा करने के लिए आगे बढ़ेंगे तो ये सबसे ज्यादा मुश्किल यही है.

इन सब बातों में एक ख़ास बात ये है कि इन सभी चीजों की वैल्यू, हर इंसान के हिसाब से बदल जाती हैं, क्योंकि इस दुनिया में सब अलग-अलग हैं, जो चीज मेरे लिए लग्जरी है वो चीज किसी और के लिए बिल्कुल समान्य, नजरिये और जरुरत के हिसाब से चीजें बदल जाती हैं.

इसलिए आपने देखा होगा कि जो जन्मजात अमीर होता है, उसके लिए अमीरी बहुत मायने रखती है, उससे जो अपनी मेहनत से अमीर बना है, क्योंकि पहले केस वाला उस अमीरी के अलावा कुछ जानता ही नहीं है, वहीं दूसरे को जमीनी हकीकत मालुम है, इसलिए उसके अंदर उसे खोने का डर ही नही रहता, वो अंदर से खुश रहता है.जिसके अंदर कुछ खोने का भय ही ना हो, उसे खुश रहने से कौन रोक सकता है.

अपनी इज्जत को लेकर हमेशा डर में रहना सही नही है
‘पोजीशन’ लाइफ ब्लेसिंग की तीसरी कैटेगरी में आती है,ये पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि लोग आपको कैसे देखते हैं, इसके पहले पहलु से शुरू करते हैं, जो है ‘रेप्युटेशन’.

हमारी ज़िन्दगी यही सोचने में चली जाती है कि फलाना आदमी या औरत हमारे बारे में क्या सोचता या सोचती है? अगर आपसे सच कहूं तो ये सोचना ही बेवकूफी है कि सामने वाला आपके बारे में क्या सोचता है, वो उतना ही सोचेगा जितना उसका दिमाग है, इसलिए सबसे पहले ये कहना बंद करिए कि ‘लोग क्या कहेंगे’.

एक कहानी सुनिए, एक आदमी है, जिसका नाम है लेकोमटे, उसके ऊपर इल्जाम है कि उसने फ्रेंच किंग की हत्या की है, उसे कोर्ट से मौत की सजा सुना दी जाती है. सजा उसे साल 1846 में सुनाई जाती है. जब तक केस चल रहा था, ये हमेशा इसी टेंशन में रहा कि सोसाइटी में इसकी इज्जत का क्या होगा?

उम्र कैद के समय भी उसे टेंशन रही कि उसके पास अच्छे कपड़े नही हैं, अंतिम घंटो में भी कुछ सही सोचने के बजाए वो उन लोगों के बारे में सोचता रहा जो उससे अंजान थे. 

अगर आप हमेशा यही सोचते रहेंगे कि आपके बारे में लोग क्या सोचते हैं, तो फिर आप कभी भी अपने दिमाग की उस शांति के अवस्था में नहीं पहुंच पायेंगे, जहाँ आपको पहुंचना चाहिए, आधी जिन्दगी दूसरों के बारे में सोचने में ही लोगों की जिन्दगी खत्म हो जाती है. 

अब सवाल उठता है कि हमें क्या करना चाहिए? सबसे पहले तो खुद को एक टास्क दीजिये कि मुझे अब दूसरों की बात से इफेक्ट नहीं होना है, मुझे अब इसलिए जिन्दगी को नहीं जीना है कि दुनिया मेरे बारे में क्या सोचती है, बल्कि मुझे अपनी ख़ुशी के लिए जीना है, जब आप ये पहला टास्क खुद को दे देंगे तब आप आधी जंग जीत चुके होंगे और ख़ुशी के करीब आ जायेंगे.

दो और महत्वपूर्ण पहलु हैं, जिनपर हमे बात करनी चाहिए, ये पॉइंट है प्राइड और रैंक.

प्राइड आता है जब आपने ज़िन्दगी में कुछ अच्छा किया होता है, लेकिन ध्यान रखिये कि इसको आपको गलत ढ़ंग से नही लेना है. 

प्राइड एक तरह से काफी पर्सनल चीज है, ये अच्छा तभी तक है जब तक आप इसे सही मात्रा में महसूस करते हो, अगर आपका प्राइड घमंड का रूप लेने पाया तो इससे खतरनाक चीज कुछ भी नही है.

लेखक बताते हैं प्राइड का सबसे अनप्रोडक्टिव फॉर्म होता है फर्जी देश भक्ति दिखाना, जब आप ये कर रहे होते हो, तो आप कुछ नया नहीं सीख रहे होते हो. जो लोग देश भक्ति दिखाने में लगे हुए हैं, वो अपनी कुछ कमी छुपाने में भी लगे हुए हैं.

अब बात करते हैं रैंक की, सोशल रैंक भी उतना ही बुरा हो सकता है जितना कि प्राइड, क्योंकि आप किसी इंसान को पसंद करो, उसकी काबिलियत के हिसाब से, ना कि उसकी आर्थिक स्थति कैसी है, उस हिसाब से, सोसाइटी की रैंक से जल्द से जल्द बाहर निकलिए, और खुशियों के रास्ते में एक बेहतर सफर के लिए आगे बढ़ते रहिये, खुशियाँ आपका बाहर इन्तजार कर रही हैं.

हम हमेशा ये ख्याल अपने मन में लाते हैं कि हम इस समाज के बहुत इज्जतदार लोगों में से एक हैं, वहीं अगर कोई कभी आकर आपको ये बता दे कि आपकी उतनी इज्जत भी नहीं है, जितना आप सोचकर बैठे हुए हैं, तब आपको बहुत ज्यादा बुरा लगेगा, उसकी बात सीधे आपके ऑनर को ठेस पहुंचा देगी.

इस ऑनर के भी दो साइड होते हैं- पहला ऑब्जेक्टिव और दूसरा सब्जेक्टिव.

ऑब्जेक्टिव ऑनर वो होता है कि दूसरे आपके बारे में क्या सोचते हैं, और सब्जेक्टिव ऑनर होता है कि खुद आप अपने बारे में क्या सोचते हो.

अगर आपको शक हो तो बता देते हैं कि सोसाइटी के लोग किसी के बारे में वैसी ही राय बनाते हैं, जितना जरुरी वो समाज के लिए होता है, अगर ज्यादा ज़रूरी है तो अच्छी राय, कम ज़रूरी है तो बुरी राय.

आपको बता देते हैं कि इन कैटेगरी के अलावा भी ऑनर की 4 और सब कैटेगरी है.

उसमे से पहली है सिविक ऑनर- एक कानूनी तौर पर आदर्श समाज को इस कैटेगरी में डालते हैं, मतलब ये एक आदर्श चीज है, जैसा समाज होना चाहिए, सब एक दूसरे का सम्मान करें और प्यार से रहें.

दूसरी कैटेगरी है ऑफिशियल ऑनर की, इसमें वो लोग आते हैं जो पब्लिक सर्विस से जुड़े हुए होते हैं, जैसे कि वकील, टीचर, सैनिक, डॉक्टर.

इसको एक मापदंड के तौर पर भी देखा जा सकता है कि जो आदमी या औरत पब्लिक सर्विस में हैं, क्या वो वाकई उसके हकदार हैं? मतलब क्या वो अपनी ड्यूटी ईमानदारी से पूरी कर रहे हैं, इस कैटेगरी में वही ऑफिसर आएगा जो ईमानदारी से अपनी ड्यूटी करता होगा. 

तीसरी कैटेगरी है सेक्सुअल ऑनर- इस कैटेगरी में मेल और फीमेल अपने-अपने जेंडर के हिसाब योगदान देते हैं. जैसे कि फीमेल ऑनर के हिसाब से औरत अपने आपको सिर्फ शादी के बाद मर्द को सौंप सकती है, और मेल ऑनर कहता है कि शादी के बाद पूरी आर्थिक जिम्मेदारी उसे ही उठानी है.

फाइनल कैटेगरी का नाम नाइटली ऑनर- ये ऑनर लोगों के ओपिनियन के ऊपर बेस्ड है.

उदाहरण के तौर पर अगर कोई आपसे अच्छे से बात नही करता तो आप भी उसके बारे में बुरा ही सोचते हो, एक मानसिकता बनाते हो कि ये इंसान इस तरीके का है, वहीं कोई आपकी एक बार तारीफ़ कर देता है तो आप उसको अपने सर पर बैठाने को भी तैयार हो जाते हो, मतलब साफ़ है कि आपके ओपिनियन आपकी तारीफ़ के हिसाब से बदलते रहते हैं, ऐसा बस आपके साथ नही है बल्कि सोसाइटी का एक बड़ा तबका इसी हिसाब से ओपिनियन बनाता है.

ऑनर के साथ यहां अब फेम की भी बात कर लेते हैं, ट्रू फेम अगर किसी को चाहिए, तो उसे अपने जीवन के कदम भी उस हिसाब से बढ़ाने होंगे, ट्रू फेम को आप जीत सकते हो अपने कर्मों से, फेम जीतने के बाद भी ज़रूरी नहीं कि आप खुश हो जाएँ.

लेखक बताते हैं कि ख़ुशी किसी फेम की मोहताज नहीं है, ख़ुशी को खरीदने की कोशिश भी ना करियेगा, ख़ुशी आपके जीवनशैली और आत्मा के बीच में है, जिस दिन आप इन दोनों के बीच का मार्ग पकड़ लेंगे, ख़ुशी अपने आप आपके पास चलते-फिरते अपनी मौज में आ ही जायेगी, जिस दिन असल ख़ुशी आपको मिलेगी उस दिन आपको शांति भी मिल जायेगी.

बिल्कुल चिंता मत करिए अगर आपने अभी तक फेम नहीं पाया है तो इसका मतलब ये नही कि आप खुश नहीं रह सकते, क्या पता आपका मेन गोल खुश रहना हो, एक जरूरी बात है, जो आपको याद रखनी चाहिए कि खुश रहना बड़ा महंगा है, ये इतना आसान नही है, जितना आसान फेम था, इसलिए आपकी सोच बड़ी है, अगर आपका लक्ष्य खुश रहना है तो, बस, देर किस बात की, निकल पड़िए एक सफर में और बनाइए सफरनामा.

कुल मिलाकर
ख़ुशी के तीन सूत्र हैं- पर्सनालिटी, प्रॉपर्टी और पोजीशन, इन तीनो सूत्र के बंधन को आपने इस निबन्ध में समझा है, अब आपको फैसला करना है कि आपके दिमाग को इन तीनो सूत्रों में से सबसे ज्यादा ख़ुशी किस सूत्र से मिलती है, मतलब कब आप अपने आपको आजाद महसूस करते हो, क्या आप इतने काबिल हैं कि तीनो सूत्र के बीच में बैलेंस बना सकें? ये सवाल आप खुद से पूछियेगा, जवाब ही आपको आगे की राह में लेकर जाएगा. अगर आप इतने लकी हैं कि आपको इश्वर ने अच्छा दिमाग दिया है तो फिर उसे उपयोग में लेकर आइये, एक अनंत सफर की ओर निकलिए, अपने आपको पहचान लीजिये, समाज को पहचान लीजिये, दूसरों के हिसाब से जीना छोड़ दीजिये, खुद के सफर की शुरुआत करके उसे मंजिल तक पहुँचाने की आदत डालिए.


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