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Chade-Meng Tan
कैसे मेडिटेशन आपको खुशहाल बना सकता है?

दो लफ्जों में
जॉय ऑन डिमांड (2016) पुराने ज़माने के मेडिटेशन के ज़रिए सुकून, स्टेबिलिटी और खुशियां ढूंढने तरीकों को बताने वाली एक गाइड है। यह समरी आपको उन छोटी छोटी चीजों के बारे में बताती जो आपके बुरे वक्त को, उम्मीद की रोशनी में बदल सकती हैं, साथ ही सच्ची, लगातार मिलने वाली खुशियों की जानकारी भी इसमें मौजूद है।

किनके लिए है?
- डिप्रेस्ड और बेचैन रहने वालों के लिए
- फिक्रमंद, वर्कोहॉलिक और और उन सभी के लिए जो खुश नहीं है
- जो अपनी स्प्रिचुअल आत्मा की तलाश में हैं

लेखक के बारे में
चेड मेंग तान ने अपना स्प्रिचुअल साइड जानने से पहले एक इंजीनियर के तौर पर अपना करियर शुरू किया था। बेस्ट सेलिंग लेखक और माइंडफूलनेस के बहुत सारे कोर्स बनाने के बाद, अब वह जॉय यानी खुशियों के बारे में अपनी जानकारी पूरी दुनिया के लोगों के साथ शेयर कर रहे हैं।

इंसान के खुशियों का लेवल तब तक एक जैसा रहता है जब तक वह मेडिटेशन के ज़रिए इसे बढ़ाने की कोशिश ना करे।
क्या आप खुश और हंसमुख इंसान हैं? हालांकि जवाब देने के लिए यह बहुत आसान सवाल नहीं है। और बेशक वक्त के साथ आपका जवाब बदल सकता है। लेकिन आपके मौजूदा हालात कुछ भी हो, ज्यादा खुश और जॉयफुल महसूस करने का एक फुलप्रूफ तरीका है, जिसके लिए पैसों या किसी महंगी चीज़ की जरूरत नहीं है।आपको पता होगा कि मेडिटेशन स्ट्रेस मैनेजमेंट और परफॉर्मेंस बेहतर करने में आपकी मदद कर सकता है, लेकिन असल में, यह यहीं तक लिमिटेड नहीं है इसका हमारे हाल-चाल और खुशियों पर भी बहुत असर हो सकता है। इसके अलावा आप जानेंगे कि क्यों बहुत सारे लोग अपने अडल्ट (19 साल के बाद की उमर) में भी टीनएजर की तरह ही महसूस करते हैं? आपको अपने मन को खुशियों के एहसास की आदत डालने की ज़रूरत है। और क्यों गैरों के लिए प्यार का एहसास करना आपको खुशहाल बनाता है?

एक बार एक चीनी शख्स हाथ देखने वाले के पास पहुंचा। उसका हाथ देखने के बाद, हथेली पढ़ने वाले ने उसे बताया कि वह दुखी है और 40 का होने तक ऐसे ही रहेगा। यह सुनते ही वह आदमी खुश हो गया, उसने समझा कि उसे 40 का होने तक ही ऐसे रहने की जरूरत है, उसके बाद आखिरकार वह खुशहाल हो जाएगा। हलांकि उसने गलत समझा था, हथेली पढ़ने वाले ने बताया, कि 40 की उम्र आते-आते, इंसान अपने दुखों का आदि हो जाता है।

एग्जांपल में दिए गए आदमी, और दुनिया के ज्यादातर लोगों के लिए जिंदगी भर खुशियों का लेवल एक जैसे ही रहता है। स्टडी बताती है कि इंसान अपने माहौल के हिसाब से पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों को ही एक्सेप्ट कर लेता है, हम अपनी सहूलियत के हिसाब से खुशियों के शुरुआती लेवल या नाखुशी की हालत में लौट जाते हैं।

साइकोलॉजिस्ट फिलिप ब्रिकमैन ने अपनी 1978 की स्टडी में पाया, कि पहले जमाने में लॉटरी जीतने और पैरालाइज होने जैसे इमोशंस का लोगों की खुशियों के लेवल पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ता था। एक्साइटमेंट और शॉक की वजह से लोगों की खुशियों में थोड़ा सा बदलाव आता है, उसके बाद वह उस इवेंट से पहले के एहसास में वापस चले जाते हैं मतलब हमारी जिंदगी में कोई दुख या खुशी का असर कुछ वक्त के लिए ही होता है, उसके बाद हम वैसे ही हो जाते हैं जैसे उस वाक्ये के पहले थे।

या फिर 1996 में साइकोलॉजिस्ट डेविड लिक्केन द्वारा जुड़वा बच्चों पर की गई स्टडी को ही ले लीजिए, जो बताती है कि इंसान के खुश रहने की क्षमता, कम से कम 50% जेनेटिक्स पर डिपेंड करती है। हैरत की बात है कि पैसा और एजुकेशन जैसी चीजों का इसमें सिर्फ 3% की योगदान है।नतीजतन, अगर कोई नाखुश पैदा हुआ है, तो उसे ऐसा ही रहना पड़ता है। लेकिन इससे निजात पाने का एक तरीका है। खुशियों और दुखों से निकलने की कैपेसिटी को प्रैक्टिस के जरिए बढ़ाया जा सकता है।

असल में, मेंटल एक्सरसाइज आपकी खुशियों को वैसे ही बढ़ाती है, जैसे फिजिकल एक्सरसाइज आपके मसल्स को मजबूत करती है। लेखक ने यह शानदार चीज़ तब जानी जब उन्होंने मेडिटेशन करना शुरू किया। लेखक ने पाया कि यह प्रैक्टिस आप के दिमाग पर वैसे ही असर डालती है जैसे पुश-अप्स या रनिंग लैप्स आपके बॉडी पर असर करते हैं।

ऐसा कैसे?

जब दिमाग मजबूत होता है तो यह कुछ खास तरीके के नतीजे एक्सेप्ट करने के काबिल बन जाता है, जैसे कि खुशियां।

लेकिन इसके लिए रेगुलर मेडिटेशन करने की जरूरत है, जो थोड़ा मुश्किल हो सकता है। आगे आप जानेंगे इससे क्या फायदा होता है, और खुशी की प्रैक्टिस की आदत डाल कर आप क्या हासिल कर सकते हैं।

मेडिटेशन के बहुत सारे फायदे हैं, शांति के एक नये जज्बे से लेकर इमोशनल स्ट्रेन्थ को बढ़ाने तक।
अगर आपने कभी एक्सरसाइज की हो तो आपको मालूम होगा कि शुरुआत में कितनी मुश्किल होती है लेकिन एक बार आप कर लेते हैं तो बहुत अच्छा महसूस होता है। मेडिटेशन के साथ भी ऐसा ही है। यह मेंटल प्रैक्टिस शुरुआत में मुश्किल हो सकती है, लेकिन इसके बहुत सारे फायदे हैं, उनमें से सबसे पहला बेहद शांति का एक्सपीरियंस है।

असल में, रेगुलर मेडिटेशन से, आप अपने दिमाग को शांत करना सीख सकते हैं। यकीनन यह एक रात में तो हो नहीं सकता। शुरुआत में आपके दिमाग में वही खयाल आते रहेंगे जिसकी इसे आदत है। लेकिन जैसे-जैसे आप प्रैक्टिस करेंगे, अपने थॉट्स को कंट्रोल करने के काबिल बन जाएंगे।

यह क़ाबिलियत हासिल करने के बाद, आप अपनी जिंदगी के हालातों में भी इसका इस्तेमाल कर सकेंगे। मिसाल के तौर पर मेडिटेशन के कुछ हफ्तों बाद ही, लेखक के एक स्टूडेंट ने अपने ससुराल वालों पर घटिया कमेंट करने की अपनी आदत पर कंट्रोल पा लिया, उसने तेजी से अपनी जिंदगी में सुधार किया।

लेकिन मेडिटेशन का यह इकलौता फायदा नहीं है। यह इमोशनल फ्लैक्सिबिलिटी भी बढ़ाता है मतलब दुखों से बाहर निकलने के काबिल बनाता है। इसका खासतौर पर इस्तेमाल इमोशनल स्ट्रगल के दौरान  किया जा सकता है।

एग्जांपल के लिए मान लीजिए आपको नौकरी से निकाल दिया गया है बहुत सारे लोगों के लिए एक इमोशनल स्ट्रगल की सिचुएशन है जिसकी वजह से लोग फिक्र, घबराहट और कभी-कभी तो नशे का शिकार हो जाते हैं, इनमें से कोई भी इस मुश्किल से निकलने का बेहतर तरीका नहीं है। वहीं दूसरी तरफ मेडिटेशन आपको दिमाग शांत रखकर स्ट्रेस का सामना करना सिखाता है। मेडिटेशन आपको अपने इमोशंस पर ध्यान देने और यह समझने में मदद करेगा कि सबकुछ वक्ति होता है।और इस स्किल के ज़रिए आप अपने हर तरह के इमोशंस को एक्सेप्ट करने के काबिल बन जाएंगे।

एक बार आप ऐसा कर लेते हैं तो आपपर इमोशंस का कंट्रोल नहीं रहेगा, आप अपने अगले कदम के बारे में सोच सकेंगे और उस वक्त का इस्तेमाल आप नयी नौकरी ढूंढने में कर सकते हैं।मेडिटेशन के फायदे तो साफ है, लेकिन क्या इन फायदों का एक्सपीरियंस करने में बहुत वक्त नहीं लग जाएगा? इसके बारे में ज्यादा जानकारी आपको अगले लेसन में मिलेगी।

अगर आप प्रैक्टिस पर ध्यान देते हैं तो मेडिटेशन आपकी जिंदगी में तेजी से खुशी ला सकता है।

इससे पहले कि हम मेडिटेशन के प्रोसीजर पर जाएं। यह समझना जरूरी है की मेडिटेशन को रोज़मर्रा की प्रैक्टिस कैसे बनाया जाए। यह थोड़ा सा मुश्किल हो सकता है लेकिन उतना नहीं जितना आप सोच रहे हैं।असल में, आप जॉय की पावर का इस्तेमाल करके मेडिटेशन को आसान बना सकते हैं। कुछ ऐसे,

हर मेडिटेशन प्रैक्टिस में एक ऐसा वक्त जरूर आता है जिसे लेखक जॉयपॉइंट(Joy Point) कहते हैं। एक बार इस पॉइंट पर पहुंच गए तो मेडिटेशन के स्टूडेंट्स को प्रैक्टिस में मज़ा आने लगेगा, अगर वह चाहे तो। जॉय पॉइंट की सबसे अच्छी बात यह है, कि एक बार आप वहाँ तक पहुँच गये तो आपकी प्रैक्टिस अपना मोमेंटम खुद बना लेगी।

और, प्रैक्टिस के ज़रिए जॉय हासिल कर पाना ज्यादा मेडिटेशन के लिए इनकरेज करेगा, जिससे जॉय हासिल करने की आपकी कैपेसिटी बढ़ेगी और सक्सेस की तरफ जाने वाला रास्ता मिल जाएगा। मेडिटेशन के शानदार फायदे की वजह से डिसकरेज होने के पहले आप अपने मकसद पर पहुँच जायेंगे।

जॉय पॉइंट बहुत दूर की बात लग सकता है, लेकिन जॉयपुल फायदे हासिल करने में उससे कम वक्त लगता है जितना आप सोच रहे हैं। मिसाल के तौर पर, बहुत सारे लोग जो माइंडफुलनेस-बेस्ड मेडिटेशन करते हैं उन्हें कुछ हफ्तों में ही पॉजिटिव बदलाव नज़र आने लगता है।

हर इंसान पर इसका अलग-अलग असर होता है, लेकिन यह साफ है कि एक हिसाब से कम वक्त में फायदा हासिल किया जा सकता है। एक स्टूडेंट के साथ लेखक  के एक्सपेरिमेंट को ले लीजिए, उन्होंने आकलन किया कि मेडिटेशन का पहला फायदा देखने के लिए किसी भी इंसान को कम से कम 100 घंटे का मेडिटेशन पूरा करना होगा। दलाई लामा के द्वारा किए गए आकलन में उन्होंने बताया कि मेडिटेशन कि 50 घंटे पूरे होने के बाद आप पॉजिटिव रिजल्ट देखने लगते हैं।और 2007 में चीनी साइकोलॉजिस्ट वाई. वाई. तान ने अपनी स्टडी में पाया कि सुकून, कंसंट्रेशन और रोजमर्रा की खुशियां बढ़ाने के लिए कम से कम 100 मिनटका मेडिटेशन काफी है। और यह 100 मिनट्स एक साथ करना जरूरी नहीं है। 

आसान तरीके से कहा जाए तो मेडिटेशन आपको तेज़ी से खुशहाल बना सकता है। आगे आप जानेंगे कि आज से ही आनंद के रास्ते पर चलना कैसे शुरू करें।

सिर्फ एक सांस में आप मेडिटेशन के जिंदगी बदलने वाले फायदों का एहसास कर सकते हैं।
अगर आप ज़्यादातर लोगों की तरह है तो आप सोच में पड़ गए होंगे कि कितनी कम मेहनत में आप मेडिटेशन प्रैक्टिस का फायदा हासिल कर सकते हैं(मतलब ज्यादा मेहनत भी ना करनी पड़े और मेडिटेशन का फायदा भी मिले)। यह एक नेचुरल सवाल है, जिसका जवाब आपको हैरत में डाल देगा।

मेडिटेशन से होने वाले थोड़े से फायदे का एहसास सिर्फ एक लंबी सांस लेने और छोड़ने से किया जा सकता है। नहीं समझ आया? इसे अपने ऊपर आजमा कर देखिए।

चाहे खुली या बंद आंखों के साथ  आराम से, एक गहरी सांस लीजिए। सांस अंदर और बाहर करते वक्त, अपनी सांस के फ्लो पर ध्यान दीजिए।बहुत सारे लोगों का मानना है,  इस तरह से एक बार सांस लेने के बाद, वह शांत और रिलैक्सड महसूस करते हैं। लेकिन ऐसा कैसे मुमकिन है?

यह बहुत सिंपल है, पहला, माइंडफुल ब्रीथिंग आपकी नॉर्मल सांसों से ज्यादा लंबी और डीप होती है, इसकी वजह से आपका पैरासिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम एक्टिवेट हो जाता है, जोकि रिजेनरेशन और आराम प्रोवाइड करता है।

दूसरा, जब आप अपनी सांस पर ध्यान देते हैं तो खुद को प्रेजेंट मोमेंट में ले आते हैं। नतीजतन, अलग तरह के आराम का एहसास करते हुए, आप, कुछ सेकंड के लिए क्या हुआ और क्या होने वाला है की फिक्र छोड़ देते हैं।ऐसे कुछ सिंपल मेडिटेशन बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं। रीजेनरेशन और कायाकल्प को ट्रिगर करने की ऐबिलिटी पर खासतौर से असर हो सकता है।

मिसाल के तौर पर, दुनिया के सबसे बेहतरीन टेनिस प्लेयर, 10 से 15 सेकंड के 2 पॉइंट के बीच में अपनी बॉडी के रिकवर करने की कैपेसिटी पर डिपेंडेंट रहते हैं। पिछले कुछ दशकों में टेनिस के शानदार प्लेयर रहे, नोवाक जोकोविच कहते हैं, कि इन थोड़े से टाइम गैप में माइंडफुल मेडिटेशन के ज़रिए वह कोर्ट के अंदर अपनी परफॉर्मेंस बेहतर कर सकते हैं। हो सकता है, उनके ग्रैंड स्लैम चैंपियन बनने के सफर का यह सबसे बड़ा सीक्रेट रहा हो।

नतीजा हासिल करने के लिए एक सांस ही काफी है।

किसी खास चीज या फिलिंग पर कंसंट्रेट करके या फिर एक पल आराम करने से भी मेडिशन की स्टेट हासिल की जा सकती है। इमैजिन कीजिए कि आप पैसों से भरे एक कमरे में जाते हैं और आपसे कहा जाता है कि आप जितना उठा सकें उतना ले जा सकते हैं। आप अपने साथ सिर्फ कुछ छुट्टे नहीं ले जाएंगे, है ना? मेडिटेशन के साथ भी ऐसा ही है।

अभी आपने जिस सांस लेने के तरीके के बारे में सीखा वह इन छुट्टों के बराबर ही है, जबकि आप उससे कहीं ज्यादा ले सकते हैं। लेकिन इस बेसिक पॉइंट से आगे बढ़ने के लिए, आपको सबसे पहले मेडिटेशन की नींव स्टैबलिश करने की ज़रूरत है, और इसके लिए आपको एंकरिंग के ज़रिए अपने मन को स्टेबल करना होगा।

इसका मतलब अपने मन का अटेंशन सामने मौजूद काम या चीज की तरफ ले आने की प्रैक्टिस है। एंकर का किरदार निभाने के लिए आपकी सांस से बेहतर कुछ नहीं हो सकता। आखिरकार यह हर वक्त मौजूद रहता है और फोकस करने के लिए एक शान्त, कंटीन्यूअस पॉइंट प्रोवाइड करता है। अगर आपका ध्यान डायवर्ट होने लगे तो अपनी सांस की तरफ वापस ले आइए, सांस लेना और छोड़ना शुरू कीजिए।आप कोई दूसरा एंकर भी चुन सकते हैं, जैसे कि आप की बॉडी या ऐसा कुछ जो आप सुनते देखते और टच करते हों।

तो मकसद एंकरिंग है, लेकिन अगर यह शुरुआत में मुश्किल लगता है तो आप धीरे-धीरे भी कर सकते हैं। इसकी जगह आराम करने की प्रैक्टिस कीजिए।

यह भी सही है, आप आराम को प्रैक्टिस समझ के, कर सकते हैं। हालांकि, यह सब के लिए आसान नहीं है। बहुत सारे लोगों के लिए सच में आराम करना भी बहुत मुश्किल है, बहुत सारे लोग कुछ ना करने के आदी नहीं है। उनके लिए आराम करना एक चैलेंज है।

जब आप यह प्रैक्टिस कर रहे हों तो अपने दिमाग को रिलैक्स रखिए। बीच पर आ रही लहरों या तितली के पंखों जैसी सुकून देने वाली चीजों के बारे में सोचिये। या फिर आप, "मुझे कहीं जाने या कुछ करने की जरूरत नहीं है। इस वक्त मैं सिर्फ आराम करूंगा", जैसे छोटे मेडिटेटिव सेंटेंस (मंत्र) दोहरा सकते हैं।

एंकरिंग या रेस्टिंग, शुरुआत में आप जो भी तरीका आपनाते हैं, आप खुद को शांति के रास्ते पर पाएंगे। आगे आप जानेंगे इससे आगे, ट्रू जॉय की तरफ, कैसे बढ़ा जाए।

आपके चारों तरफ खुशियां मौजूद हैं, इसे छोटी चीजों में ढूंढ कर, आप खुशियों की तरफ आगे बढ़ सकते हैं।
ढलती हुई जमीन पर पानी डाल कर देखिए, अपने नेचुरल स्वरूप को फॉलो करते हुए, यह बड़ी आसानी से नीचे की तरफ बहेगा। इसी तरीके से खुशियों की तरफ आगे बढ़ने के लिए, आपको खुशी के अहसास की तरफ झुकाव रखना होगा।

पहला कदम अपने मन को खुशियों से अवगत कराना है। यह सिंपल होने के साथ ही एक लॉजिकल नियम है। आखिरकार जब हमारा मन खुशियों के एहसास को पहचान जाता है तो यह बड़ी आसानी से इनकी मौजूदगी नोटिस करना सीख जाता है। और यहीं से हमारा मन खुशियां ढूंढने और ऐसे हालात पैदा करने के लिए काम करना शुरू कर देता है जिनमें वह खुशियों का एहसास कर सके।

ऊपर दिए गए शब्द अवगत का मतलब अंग्रेजी में "फैमिलियर" होता है, जो की फैमिली वर्ड से बना है। और खुशियों को फैमिली मेंबर की तरह मन के करीब ले आकर, आप हकीकत में इसके एहसास को जान सकते हैं।

"फैमिलियरिटी" यानि अपनापन क्रिएट करने के लिए, आपको यह जानने की जरूरत है कि किन हालातों में और कब-कब आप खुश होते हैं। याद रखिए जब आप ऐसा करना शुरू करते हैं तो शुरुआत में खुशियां बड़ी आसानी से नजरअंदाज हो जाती हैं। मिसाल के तौर पर जब आप हाईवे पर गाड़ी चला रहे होते हैं तो क्या अपने बगल से गुजरने वाली हर नीली कार को नोटिस करते हैं? ज़्यादातर नीली कारें बाकी रंगों के बीच दब जाती हैं। ऐसा ही खुशियों के छोटे-छोटे पलों के साथ होता है, इन्हें पहचानना थोड़ा सा मुश्किल हो सकता है।

इसलिए इन छोटी खुशियों को नोटिस करना ज़रूरी है। उस मोमेंट के बारे में सोचिए जब आप आराम महसूस करने के लिए गर्म पानी से नहाते हैं। यह एहसास असली खुशियों में से एक है लेकिन शायद ही लोग इसे महसूस करने के लिए वक्त निकालते हैं। इसके बजाय वह जल्दबाजी करते हैं और यह एहसास निकल जाता है।

इन छोटे-छोटे पलों की कीमत समझ लीजिए और ध्यान रखिए अपनी जिंदगी में पहले से मौजूद छोटे-छोटे पलों को नोटिस करना खुशियों की तरफ पहला कदम है।

लेकिन यह इकलौता तरीका नहीं है, आगे आप खुशियों के एहसास को बढ़ाने वाली दूसरी प्रैक्टिस के बारे में जानेंगे।

मेडिटेशन प्यार और कंपैशन के ज़रिए आपके नेगेटिव इमोशंस को खत्म कर सकता है। 

हर किसी ने ऑफिस या काम पर बुरे दिन का सामना किया है। लेकिन क्या आप जानते हैं की एक मेंटल एक्सरसाइज के ज़रिए इस नेगेटिव इमोशन को दूर किया जा सकता है?

खैर, लविंग-काइंडनेस से जुड़े थॉट्स के बारे में सोच कर, ऐसा किया जा सकता है। आप अपने मूड को खुशी में बदल सकते हैं। कुछ ऐसे,

पब्लिक जगह पर मौजूद भीड़ में से किन्ही दो लोगों को चुनिए, और उनके लिए सच्ची खुशियों की दुआ कीजिए। यह सिंपल लगता है, लेकिन इसका नतीजा देखकर आप हैरत में पड़ जाएंगे।

मिसाल के तौर पर, एक बार लेखक ने लोगों के एक ग्रुप से 1 घंटे में कम से कम एक बार इस एक्सरसाइज को करने के लिए कहा। एक्सपेरिमेंट के बाद, उन्हें एक पार्टिसिपेंट का इमेल आया, उसने बताया कि वैसे तो उसे अपनी नौकरी बिल्कुल पसंद नहीं है, लेकिन जिस दिन उसने यह एक्सरसाइज की वह दिन पिछले 7 दिनों में सबसे खुशी भरा रहा है।

इस एक तरीके से मेडिटेटिव प्रैक्टिस आपको खुश रखती है। हालांकि दोस्ती आपको नेगेटिव इमोशंस से बचा सकती है|

अगली बार आप परेशान हों, तो अपने मन को पिछले लेसन में दिये गए तरीके के ज़रिए शांत करना शुरु कीजिए। अपना ध्यान एंकर की तरफ से लाते रहिए, जैसे कि आपकी सांसे या कुछ और। एक बार आप शांत महसूस करने लगें, तो इमोशनल प्रॉब्लम्स को हल करना शुरू कर सकते हैं।

ऐसा करने के लिए, सबसे पहले जानिये कि आप क्या मेहसूस कर रहे हैं, और फिर इसे उलट जज्बातों से नरिश कीजिए (अगर आप गुस्से में हैं तो इसका सामना शांत रहकर कीजिए)। मिसाल के तौर पर, अगर आपको गुस्सा आ रहा है तो आप इस गुस्से को अपने अन्दर मौजूद मॉन्स्टर की तरह समझ सकते हैं। आप जितना ज़्यादा गुस्सा होते हैं, अंदर मौजूद यह मॉन्सटर उतना ही ताकतवर होता जाता है और अगर इसे दबाने की कोशिश की जाए, तो और तेजी से बढ़ता है।

इस हाल में एक ही तरीका कारगर है, अपने अंदर मौजूद इस मांस्टर को अपना लीजिए और इसे प्यार और शांत थॉट से नरिश कीजिए। जैसे ही आप ऐसा करें, इमेजिन कीजिए कि गुस्सा खत्म हो रहा, और वह मॉन्स्टर आपका दोस्त बन रहा है।

इस आखिरी तरीके को मिलाकर, आपको अपनी खुशियां बढ़ाने के लिए कई तरीके मिल गये। बस माइंडफुल रहिये, अपने आपको एंकर्ड रखिए और निगेटिव फीलिंग का सामना कंपैशन से कीजिए।

कुल मिलाकर
बहुत सारे लोगों के लिए खुशी होराइजन (क्षितिज) पर मौजूद कोई चीज है, लेकिन ऐसा है नहीं। असल में सच्ची खुशियां आपके इतना करीब हो सकती हैं जितना आप सोच भी नहीं सकते। लगातार मेडिटेशन की आदत डालकर,और प्रेज़ेन्ट में रहकर, आप ज़मीन पर ही खुशियां हासिल कर सकते हैं।

 

मेडिटेशन के दौरान अपने ऊपर जरूरत से ज्यादा भार मत डालिए

लोगों को लगता है मेडिटेशन के दौरान आपको बहुत मेहनत करने या सख्त डिसिप्लिन अपनाने की जरूरत है। हालांकि, ऐसी कोशिश नुकसानदायक हो सकती है। जबकि डेली मेडिटेशन की प्रैक्टिस कारगर हो सकती है, लेकिन यह आसानी से उल्टी भी पड़ सकती है। इसलिए मेडिटेशन करते वक्त कुछ भी हासिल कर लेने से बचिये। क्योंकि इस तरह की कोशिश आपके मन को मेडिटेशन से डिस्ट्रैक्ट करती है। इसके बजाय रिलैक्स होकर अपने थॉट्स को नोटिस कीजिए, और उन्हें जाने दीजिए।

 

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