The Stress Code..... ___😨🙄🤯

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The Stress Code

Richard Sutton
तनाव को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करें

दो लफ्जों में
साल 2018 में आई ये किताब समझाती है कि तनाव हमारे रोजमर्रा के जीवन पर क्या असर डालता है, तनाव हमारी सेहत को नुकसान क्यों पहुंचाता है और ग्लोबल इकोनॉमी को कैसे प्रभावित करता है। इसमें स्ट्रेस मैनेज करने के कुछ साइंटिफिक तरीके भी बताए गए हैं।  जिनकी मदद से आप अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारकर एक बेहतर जीवन सकते हैं। 

ये किताब किनको पढ़नी चाहिए
- भागमभाग की जिंदगी जीने वाले लोग
- ऐसे कामकाजी लोग जो काम और पर्सनल लाइफ के बीच तालमेल बिठाना चाहते हैं
- जो लोग क्रॉनिक स्ट्रेस से उभर रहे हैं 

लेखक के बारे में
रिचर्ड सटन एक हेल्थ और परफार्मेंस कंसल्टेंट हैं। उन्होंने पेन मैनेजमेंट और एथलेटिक डेवलपमेंट पर जाने माने एथलीट्स, ओलंपिक टीमों और इंटरनेशनल स्पोर्ट्स फेडरेशन्स को अपनी सेवा दी है। वे बड़े कॉर्पोरेट सेक्टर्स में भी अपनी सेवाएं देते हैं। 

ये किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए? 
आज हमारा जीवन तनाव से भरा हुआ है। हम घर से ऑफिस और एक जगह से दूसरी जगह भागते रहते हैं। नींद पूरी नहीं करते हैं। अपनी डेडलाइन और टार्गेट पूरे करने के लिए देर तक काम करते हैं। सच तो ये है कि आज के दौर में हम पहले से कहीं ज्यादा तनाव से भर गए हैं और इस वजह से बहुत सी बीमारियों का शिकार बनते जा रहे हैं। शुरुआत में तनाव हमें एंजायटी, वजन बढ़ने और कॉग्नीटिव फंक्शन की गड़बड़ी जैसी समस्याएं देता है। आगे चलकर इसकी वजह से दिल का दौरा, स्ट्रोक और ऑटोइम्यून बीमारियां हो सकती हैं। इतना ही नहीं तनाव कम उम्र में मृत्यु की वजह भी बन सकता है। हालांकि थोड़ा तनाव हमारे लिए अच्छा भी हो सकता है। इंटरव्यू जैसे चैलेंज या किसी मुसीबत से सामना होने पर दिल की धड़कन और एड्रीनलीन का लेवल बढ़ जाना हमें इन परिस्थितियों का सामना करने या उनसे निपटने में मदद करता है। तनाव से बचना वैसे भी मुमकिन नहीं है। इसलिए हमें इसे अपने फेवर में करने का आर्ट सीखना चाहिए। आगे के लेसन्स में हम समझेंगे कि तनाव हमारे जीवन में किस तरह की भूमिका निभाता है और हम किस तरह इसे अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल ग्रोथ के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। इस समरी को पढ़कर आप जानेंगे कि तनाव बढ़ाने की वजह क्या हैं? एथलीट्स हमें किस तरह स्ट्रेस मैनेजमेंट सिखा सकते हैं और थोड़ा तनाव हमें किस तरह सफलता के रास्ते पर ले जा सकता है?तेज रफ्तार जिंदगी और कामयाबी की भूख हमारा तनाव बढ़ा रही है।तेज रफ्तार जिंदगी और कामयाबी की भूख हमारा तनाव बढ़ा रही है।

तनाव और इसके नुकसान को हर कोई समझता है। हमारी लाइफस्टाइल हमें तनाव के जाल में उलझाती ही जा रही है। इस टॉपिक पर दुनियाभर के एक्सपर्ट्स लगातार चेतावनी देते रहते हैं। हमें अपनी रफ्तार कम करने, खुद के लिए समय निकालने और काम और जिंदगी के बीच बैलेंस बनाने की सलाह देते हैं। कुछ लोग खुद को शांत रखने के लिए योग और मेडिटेशन की मदद लेते हैं जबकि कुछ लोग नींद की गोलियों का सहारा लेने लगते हैं। इन सब बातों को देखकर सवाल ये उठता है कि आखिर हमें इतने तनाव होता क्यों हैं? रिचर्ड का कहना है कि हमारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम अपने जीवन को कितना स्टेबल बनाए रख पाते हैं। अगर हम स्टेबल रहते हैं तो हम किसी भी तरह के अप और डाउन या एक्टिविटी और रेस्ट को आराम से पार कर जाते हैं। लेकिन हमारी मॉडर्न लाइफ कई तरीकों से इस बैलेंस को बनाए रखना मुश्किल कर देती है। टेक्नॉलॉजी हमारी जिंदगी में इतनी घुसपैठ कर चुकी है कि हमें अपने लिए टाइम निकालना मुश्किल हो जाता है। हम चौबीसों घंटे ऑफिस के काम के लिए ईमेल या फोन पर अवेलेबल रहते हैं। हम अपने परिवार और दोस्तों के साथ भी फोन या चैट पर कनेक्टेड रहते हैं। इस वजह से हमारी टू डू  लिस्ट लंबी होती चली जाती है जबकि मी टाइम में कटौती होती जाती है। इसकी दूसरी वजह है समाज की वो सोच जहां सब सफलता और जीत के साथी होते हैं जबकि असफल या हारने वालों का साथ कोई नहीं देता। भले ही हम इस बात को महसूस न कर पाएं पर हम लगातार खुद को एक कॉम्पिटीशन में डालने लगते हैं। हमें रोज कुछ नया अचीव करना है, एक नया कदम बढ़ाना है ताकि हम बाकी लोगों से ऊंचे उठ सकें। हमें बस दूसरों से ज्यादा बड़ा और ज्यादा सफल बनना है। 

काम करने की शिफ्ट लंबी होती जा रही है। वीकेंड का कॉन्सेप्ट धीरे-धीरे गायब होने लगा है। सालाना छुट्टियों में कटौती हो रही है। इन सबके बाद तनाव का आसमान छूना कौन सी बड़ी बात है। इससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात ये है कि तनाव का लेवल बढ़ता ही चला जा रहा है। येल यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, लॉस एंजिल्स के रिसर्चर्स की एक स्टडी कहती है कि आधुनिक समाज में एक आम आदमी हर हफ्ते चार से पांच बार तनाव से गुजरता है। हम में से बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके लिए जिंदगी हवा में बंधी किसी रस्सी पर चलने जैसी मुश्किल है। यानि हम भले ही आगे बढ़ने की कोशिश करें पर निजी जीवन या काम का प्रेशर हमारा बैलेंस बिगाड़ने को तैयार रहते हैं। इसलिए स्ट्रेस मैनेजमेंट सीखना ही नहीं बल्कि अपने फायदे के लिए इसका इस्तेमाल करना भी जरूरी है। आगे हम इस पर बात करेंगे।

ऑफिस में तनाव होने की वजह है चीजों का आपके कंट्रोल से बाहर निकल जाना।

आपको शायद ये पढ़कर कोई हैरानी नहीं होगी कि काम या जॉब हमारे जीवन में तनाव की मुख्य वजह है। हम सब खुद को काम में पूरी तरह डुबा रहे हैं और मी टाइम को बिल्कुल वेल्यू नहीं दे रहे। लेकिन बहुत कम लोग होंगे जो ये सोचते हों कि आखिर काम की वजह से इतना तनाव क्यों होने लगा है। यहां व्हाइटहॉल स्टडी का जिक्र करना जरूरी है। ये स्टडी साल 1967 में शुरु हुई थी। इसमें 40 साल तक 28,000 ब्रिटिश सिविल सर्वेंट्स को मॉनीटर किया था। प्रोफेसर माइकल मर्मोट इस स्टडी को लीड कर रहे थे। इससे पहली बार ये पता चला कि वर्क प्लेस पर होने वाला तनाव हमारी सेहत और उम्र पर सीधा असर डालता है। इसमें ये भी बताया गया कि एम्प्लॉयीज का रैंक भी तनाव का लेवल तय करता है।  अब आप सोच रहे होंगे कि कोई जितने सीनियर लेवल पर होगा उसे उतना ज्यादा तनाव होता होगा। क्योंकि रैंक ऊंची होते जाने के साथ जिम्मेदारियां बढ़ती जाती हैं। अपने जूनियर स्टाफ को मैनेज करना होता है और अगर कहीं कोई गल्ती होती है तो सारा दोष सीनियर पर आता है। लेकिन व्हाइटहॉल स्टडी के नतीजे इससे उलट थे। लोवर रैंक पर काम कर रहे स्टाफ में सबसे ज्यादा तनाव देखा गया। उनकी सेहत भी सबसे खराब थी और कम उम्र में ही मृत्यु का रिस्क भी ज्यादा था। आंकड़ों से ये पता चला कि सीनियर अधिकारियों की तुलना में ये रिस्क 300 प्रतिशत ज्यादा था। पर इसकी वजह क्या रही होगी? व्हाइटहॉल स्टडी के दूसरे फेज में ये पाया गया कि लोवर रैंक के स्टाफ के पास सोशल सपोर्ट कम था। उनके काम में ज्यादा वेरायटी नहीं थी और सबसे जरूरी बात कि अपने सीनियर्स की तुलना में उनके पास डिसीजन मेकिंग के अधिकार बहुत कम थे। इसके बाद से बहुत सारे रिसर्चर्स ने ये बात साबित की है कि इस तरह की सिचुएशन जहां एम्प्लॉयी के पास कोई कंट्रोलिंग पावर न हो तो उनकी सेहत पर असर पड़ता है। उदाहरण के लिए डेनमार्क में साल 2008 में 16 स्टडीज का रिव्यू किया गया। इसमें 63,000 लोगों ने भाग लिया था। इन सबने कहा कि ऑफिस में ऐसी पोस्ट पर काम करना जहां कोई पावर न हो उनके लिए तनाव और फिर डिप्रेशन की वजह बनता है। तनाव एम्प्लॉयीज की मेंटल हेल्थ पर असर डालता है जिससे इनकी परफार्मेंस खराब होने लगती है। इस वजह से बिजनेस और इकोनॉमी भी बिगड़ने लगती है। तनाव से गुजर रहे एम्प्लॉयी ज्यादातर काम पर आते नहीं हैं। आते भी हैं तो काम पर अपना पूरा ध्यान नहीं लगा पाते। इस वजह से आउटपुट या रिजल्ट घटने लगते हैं और बिजनेस पर बुरा असर पड़ता है। अब इन सबका क्या हल है? इसका एक जवाब तो ये है कि एम्प्लॉयर्स को वर्क प्लेस का माहौल सुधारना होगा। वे अपने एम्प्लॉयीज पर प्रेशर बनाना कम करें। उनको खुले मन से काम करने दें। उनको डिसीजन मेकिंग में ज्यादा से ज्यादा शामिल करें। मैनेजर्स को चाहिए कि वे अपने स्टाफ की परेशानियों को सुनें और उसे जल्द से जल्द हल करें। ऑफिस में कोई किसी के साथ बुरा बर्ताव करे तो उसे रोकें। ध्यान से सोचें तो इसमें सबका फायदा है। आप एम्प्लॉयीज को जितना अच्छा और खुशनुमा माहौल देंगे वो उतना मन लगाकर काम करेंगे। उनकी सेहत अच्छी रहेगी। प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी। यानि आपका बिजनेस और तरक्की करेगा।

तनाव आपकी सेहत पर अच्छा और बुरा दोनों तरह से असर डालता है।
हमारे पूर्वज जंगल में झोंपड़ियां बनाकर रहते थे और घूम घूमकर भोजन इकट्ठा करते थे। उनके लिए सर्वाइवल के चैलेंज तनाव की वजह बनते थे। ये चैलेंज शारीरिक थे। जैसे कोई पड़ोसी उनके इकट्ठा किए भोजन को चुरा लेगा या कोई जानवर उनको अपना शिकार बना लेगा। हमारे शरीर ने कोई बड़ा खतरा नजर आने पर स्ट्रेस रिस्पांस देना सीखा। एक ऐसा बायोलॉजिकल मेकैनिज्म जो हमें खतरे से बचाने के लिए शरीर के महत्वपूर्ण सिस्टम्स को एक साथ तेजी से काम पर लगा दे। स्ट्रेस रिस्पांस में बहुत सी चीजें एक साथ होती हैं। एनर्जी रिलीज होती है। मसल्स में ज्यादा ताकत आ जाती है। दिमाग तेजी से दौड़ने लगता है और तो और दर्द सहने की ताकत भी बढ़ जाती है। यही वजह थी कि हमारे पूर्वज हर तरह के खतरे से बचते हुए सर्वाइव करते रहे। जब हम तनाव महसूस करते हैं तो असल में शरीर में क्या होता है? स्ट्रेस रिस्पांस दो भागों में बंटा होता है। ये कह लीजिए कि आपको दो तरह की वेव्स मिलती हैं। इसे दो एक्सिस वाले मॉडल से समझिए। पहला है सिम्पैथैटिक-एड्रीनो-मेड्युलर यानि SAM axis और दूसरा है हाइपोथैलेमिक-पिट्यूटरी-एड्रीनल यानि HPA axis. पहली वेव हाइपोथैलेमस यानि हमारे ब्रेन का कंट्रोल सेंटर रिलीज करता है। ये कहती है fight-or-flight. यानि या तो लड़ो या फिर भागो। इस समय सिम्पैथैटिक नर्वस सिस्टम तेजी से एक्टिवेट हो जाता है और एड्रीनलीन हार्मोन रिलीज होता है। इस हार्मोन से दिल की धड़कन तेज हो जाती है। दिमाग और हाथ पैरों में खून तेजी से दौड़ने लगता है। आपको किसी तरह के इन्फेक्शन से बचाने के लिए इम्यून सिस्टम तेज हो जाता है। आपकी नाक और आंखें और तेज होकर काम करने लगती हैं। अब स्ट्रेस रिस्पांस की दूसरी वेव आती है। अब एड्रीनल ग्लैंड्स, कोर्टिसोल हार्मोन रिलीज करती है। ये हार्मोन एड्रीनलीन के असर को बैलेंस करके इम्यून सिस्टम के काम को रेग्युलेट करता है। कोर्टिसोल के बिना हमारा इम्यून सिस्टम बहुत ज्यादा एक्टिव हो जाता है जिससे शरीर को ही नुकसान पहुंचता है। अब आप सोच रहे होंगे कि स्ट्रेस रिस्पांस तो कितनी अच्छी बात है। कौन नहीं चाहेगा कि उसकी इम्यूनिटी और सेंसेज किसी सुपरमैन की तरह मजबूत हो जाएं। 

लेकिन सच तो ये है कि थोड़ी देर के लिए ये सब अच्छा हो सकता है पर लगातार ऐसी कंडीशन का बने रहना हमारे लिए नुकसानदायक है। कोर्टिसोल और एड्रीनलीन खतरे की आहट होते ही हमारे खून में रिलीज हो जाते हैं। लेकिन इनकी ज्यादा मात्रा शरीर को नुकसान पहुंचाती है। अगर लंबे समय तक कोर्टिसोल बढ़ा रहे तो पाचन संबंधी समस्याओं, वजन बढ़ने और मेमोरी लॉस की वजह बन सकता है। वहीं एड्रीनलीन, ब्लड प्रेशर बढ़ाता है और हार्ट अटैक या स्ट्रोक के खतरे को बढ़ा सकता है। लेकिन खतरे बस यहीं तक नहीं हैं। आगे हम इनके बारे में और पढ़ेंगे। 

अगर तनाव लंबे समय तक बना रहे तो आगे चलकर हमारी सेहत पर बुरा असर डालता है।

जरा कल्पना कीजिए। आप इस हफ्ते पहले ही 50 घंटे काम चुके हैं और आज शुक्रवार की सुबह है। सुबह अलार्म बजते-बजते आखिर बंद हो जाता है। आप खुद को बिस्तर में जकड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं। जब आप  उठने की कोशिश करते हैं तो शरीर साथ नहीं देता है। यानि आप बुरी तरह थके हुए हैं। पिछले काफी समय से आपकी नींद पूरी नहीं हो रही है इस वजह से शरीर दर्द कर रहा है। आपको खाने पीने का मन भी नहीं है और आपका पाचन तंत्र भी गड़बड़ हो चुका है। सर भारी रहता है। ये सब इस बात के उदाहरण हैं कि तनाव शुरुआती दौर में हमारा किस तरह से नुकसान कर सकता है। लेकिन जब तनाव लंबे समय तक बना रहे तो क्या होगा? हम ये जानते हैं कि तनाव अब हमारी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है और इससे बचना बहुत मुश्किल है। लेकिन जब ये महीनों या फिर सालों तक बना रहे तो शरीर और दिमाग को पूरी तरह से बर्नआउट की स्टेज पर ले जा सकता है। इसे मेडिकल फील्ड में क्रॉनिक स्ट्रेस कहा जाता है। हो सकता है कि आपने भी इसे महसूस किया हो। रिचर्ड तो 2007 में इस दौर से गुजर भी चुके हैं। वे इसे "inevitable breakdown" कहते हैं। उनको 2007 में चाइनीज ओलंपिक टीम का एथलेटिक्स डायरेक्टर अपाइंट किया गया था। इस टीम को अगले साल बीजिंग ओलंपिक्स में भाग लेना था। उनके लिए तो ये जैसे किसी सपने के सच हो जाने वाली बात थी। लेकिन उनको ट्रेनिंग साइट पर ही रहना था और इस नई जगह पर बस पाना उनके लिए नामुमकिन था। उनको ये जगह किसी जेल की तरह लगी। गेट से लेकर पूरे ट्रेनिंग सेंटर में हथियारबंद लोग होते थे। सोशल मीडिया बैन था और बाहरी दुनिया से जुड़ने का इकलौता तरीका ईमेल था। वहां कोई अंग्रेजी भी नहीं बोलता था। कुछ ही महीनों में रिचर्ड बहुत ज्यादा अकेलापन महसूस करने लगे। उन्होंने हफ्ते में 70 घंटे काम किया और शायद ही कभी ट्रेनिंग सेंटर से बाहर निकले और न ही किसी से बातचीत की। लगातार तनाव से गुजरते हुए आखिर उनके शरीर ने जवाब दे दिया। वो बीमार रहने लगे, पेन किलर और एंटीबायोटिक पर गुजारा करने लगे और इस वजह से उनकी किडनी डैमेज हो गई। रिचर्ड की मानें तो ये घटनाएं आज की तारीख में बहुत आम होती जा रही हैं। आज इम्यूनिटी, नर्वस सिस्टम और रिप्रॉडक्शन की परेशानियों से गुजरने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। मेंटल हेल्थ बनाए रखना एक बड़ा चैलेंज हो गया है। इतना ही नहीं अब तो युवा उन बीमारियों का शिकार बनने लगे हैं जो पहले सिर्फ बुजुर्गों में देखी जाती थीं। इन सबको देखते हुए इस बात पर यकीन करना मुश्किल हो सकता है कि तनाव किसी के लिए भी अच्छा क्यों होगा। हालांकि साइंटिफिक स्टडी ये साबित करती है कि थोड़ा तनाव हमारे पोटेंशियल को बढ़ाकर हमारी मदद ही करता है। हम इसके बारे में आगे पढ़ेंगे।

थोड़ा तनाव हमें अपने टार्गेट को अचीव करने में मदद करता है और सफलता के रास्ते पर आगे ले जाता है।
2000 के दशक के मध्य में रिचर्ड एक बड़े टेनिस प्लेयर को ग्रास कोर्ट सीजन के दौरान उसकी हेल्थ और परफार्मेंस पर काउंसिलिंग कर रहे थे। सीजन खत्म होने के बाद रिचर्ड वापस अपने घर दक्षिण अफ्रीका रवाना हो गए। इसके बाद उस प्लेयर के कंधे में चोट लग गई। पहले तो रिचर्ड बिल्कुल नहीं घबराए। उन्होंने प्लेयर से कहा कि जब तक वो उसे देखने यूएस वापस नहीं आ जाते तब तक वो वहीं किसी डॉक्टर से इलाज शुरू कर दे। लेकिन वापस लौटकर भी रिचर्ड उसकी कंधे की समस्या समझ नहीं सके। ना ही उसकी तकलीफ कुछ कम कर पाए। यूएस ओपन टेनिस चैंपियनशिप में एक हफ्ते से भी कम समय बचा था। अब रिचर्ड को घबराहट होने लगी। उनको परेशानी का हल ढूंढना था। उनकी नौकरी और पूरा करियर इस बात पर निर्भर था। इस चुनौती ने रिचर्ड को दिलो दिमाग से पूरी तरह थका दिया। न वो सो पाते न खा पाते और उनका हर पल बेचैनी में कटता। उनको चिंता ने घेर लिया था। लेकिन वे पक्का इरादा कर चुके थे कि किसी न किसी तरह इस समस्या को सुलझाना तो है। तनाव के इस एपिसोड ने उनको और एनर्जी और हिम्मत से भर दिया। शायद उनको इसी झटके की जरूरत थी। उन्होंने इलाज के बारे में ढेरों किताबें पढ़ीं। ऐसी ही किसी किताब में उन्होंने विसरल मेनिप्युलेशन के बारे में पढ़ा। उनको लगा ये तरीका कारगर हो सकता है। वे तुरंत उस प्लेयर के कमरे में गए। वे पहली बार इस तरीके का इस्तेमाल कर रहे थे। वे ज्यादा जोर भी लगा रहे थे पर हैरानी की बात है कि इस इलाज ने काम किया। अगले दिन प्लेयर ने बताया कि रातों-रात चमत्कार हो गया था और वो ठीक हो चुका था। वो टूर्नामेंट का अपना पहला मैच खेलने के लिए बेसब्र हो रहा था। रिचर्ड ने राहत की सांस ली। वो पिछले कुछ हफ्तों से इतनी परेशानी से गुजरते हुए थक चुके थे। फिर भी इस घटना से कुछ अच्छी बातें उनके सामने आईं। उन्होंने महसूस किया कि जिस तनाव को हर कोई नुकसानदायक मानता है उसी तनाव ने उनको सफल होने का हौसला दिया। वैज्ञानिक भी ये मानते हैं कि थोड़े समय का तनाव सकारात्मक हो सकता है। ये हमें परिस्थितियों स्वीकार करने, रिस्क लेने और मुश्किल परिस्थितियों से निपटने में मदद कर सकता है। हम आगे इस पर और बात करेंगे। 

एक एथलीट से आप स्ट्रेस मैनेजमेंट बहुत अच्छी तरह सीख सकते हैं।

किसी एथलीट की लाइफ हमें बड़ी अच्छी लगती है। शानदार करियर, ढेर सारी कमाई, फैन्स का प्यार, सेलिब्रिटी वाली मौज और मनमर्जी का काम। लेकिन इन सबके पीछे भी एक दुनिया होती है जहां उन्हें भी बहुत सी परेशानियों से गुजरना पड़ता है। उनको रोज घंटों तक ट्रेनिंग लेनी होती है। टीम पॉलिटिक्स से गुजरना पड़ता है। लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने का दबाव होता है और कोच की डांट सुननी पड़ती है। वे अक्सर अपने घर परिवार से दूर रहते हैं और उनका बहुत सा समय सफर में ही खर्च हो जाता है। इन सबके बावजूद एथलीट क्रॉनिक स्ट्रेस से बचने और अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को दूसरों से बेहतर बनाए रखने में कामयाब हो जाते हैं। आखिर ये कैसे संभव हो पाता है?

एथलीट्स के पास इन सबसे बचने के बहुत से तरीके हैं। उनमें शुरुआत से ही स्ट्रेस के लिए पॉजिटिव नजरिया डेवलप किया जाता है। उनके लिए तनाव ऐसा स्टिम्युलेटर है जो उनको और बेहतर परफार्म करने में मदद कर सकता है। अगर वो ज्यादा स्ट्रेस महसूस करते हैं तो उनका साथ देने और उनसे बात करने के लिए उनके कोच, ट्रेनर और स्पोर्ट्स साइकोलॉजिस्ट हमेशा मौजूद रहते हैं। इस तरह उनको अपना मन हल्का करने में मदद मिलती है।  जहां तक फिजिकल स्ट्रेस की बात है तो अच्छी डाइट और एक्सरसाइज इसे कम करने में मदद करते हैं। किसी एथलीट की डाइट को बहुत सोच समझकर प्लान किया जाता है। ऐसी डाइट जो उनमें इन्फ्लामेशन कम करे, उनको ताकत दे और रिकवरी में मदद करे। इस तरह वो बढ़िया से बढ़िया क्वालिटी का भोजन लेते हैं और कैफीन और एल्कोहल से जितनी हो सके उतनी दूरी बनाए रखते हैं। मसल्स की थकावट दूर करने के लिए वो स्ट्रेचिंग और मसाज का सहारा लेते हैं। इसके अलावा वो ध्यान, योग और ब्रीदिंग एक्सरसाइज की मदद से दिमाग को शांत रखने, खुद को रिलैक्स करने और अपनी एकाग्रता बढ़ाने की पूरी कोशिश करते हैं। देखा जाए तो एथलीट की तुलना एक ऐसी मशीन से की जा सकती है जिसमें अच्छी तरह से ऑइलिंग की गई हो। इस तरह की मशीन में सभी पुर्जे मिलकर काम करते हैं जिससे इंजन अच्छी तरह चलता रहता है। इस वजह से कोई हैरानी वाली बात नहीं है कि वे एक लंबी और स्वस्थ जिंदगी जीते हैं। आप इन सब बातों को अपनी जिंदगी में कैसे उतार सकते हैं? हो सकता है कि आपके पास मालिश का या रोज हेल्दी डाइट तैयार करने का समय न हो। फिर भी अगर आप बस अपना खानपान सही समय पर लें और आराम करने के लिए थोड़ा वक्त निकाल लें तो भी बढ़िया नतीजे मिलेंगे। हो सकता है कि तनाव को लेकर आपका नजरिया भी बदल जाए। वैज्ञानिकों ने इस बात को साबित किया है कि जब आप किसी स्ट्रेस से गुजर रहे होते हैं उस वक्त ये मानना कि तनाव सेहत के लिए बुरा है, समय से पहले मृत्यु के खतरे को 43 प्रतिशत बढ़ा देता है। आसान शब्दों में कहा जाए तो ये बात आपका तनाव और बढ़ा देती है कि तनाव आपके लिए बुरा है। इसलिए जब भी आपको तनाव बढ़ता हुआ महसूस हो तो यह सोचकर अपनी चिंताओं को मत बढ़ाइए कि इससे आपकी सेहत को कितना नुकसान होगा। इसकी जगह आप इसे सकारात्मक ढंग से देखें और सोचें कि ये जो आपको अपने टार्गेट तक और तेजी से ले जाने की प्रेरणा देगा।

वेगस नर्व को एक्टिवेट करके स्ट्रेस रिस्पांस को बंद किया जा सकता है।
तनाव अपने साथ तरह-तरह की परेशानियां ले आता है। आप न तो कुछ सोच पाते हैं न किसी चीज पर फोकस कर पाते हैं। मन में ढेरों उलझनें आ जाती हैं। लेकिन अगर इस तनाव को रोक पाने का कोई तरीका हो तो कितना अच्छा होगा। विज्ञान ने ऐसा बटन ढूंढ निकाला है जो तनाव को स्विच ऑफ कर सके। जब आपको लगे कि बात हद से बाहर हो रही है तो इस बटन का इस्तेमाल कर लीजिए। अब इसका तरीका समझते हैं। इससे पहले जरा वेगस नर्व को समझ लें। हमारे शरीर में बारह cranial नसें होती हैं। वेगस इनमें से दसवीं और बहुत ही महत्वपूर्ण नस है। ये सबसे लंबी नसों में से एक है। ये नस सिर के ऊपर से होते हुए कानों के पीछे फिर सीने से होते हुए पेट की तरफ नीचे जाती है। ये हमारे दिमाग को हार्ट, फेफड़ों और पाचन तंत्र के साथ जोड़ती है। लेकिन इसका और भी महत्व है। ये एड्रीनलीन की वजह से पैदा हुई फाइट और फ्लाइट वाली कंडीशन के बाद शरीर को रिलैक्स भी कर सकती है। अब ये होता कैसे है? वेगस को एक्टिवेट करना बिल्कुल वैसा ही है जैसे आप कसरत करने के बाद स्ट्रेचिंग करते हैं।

जब हम हैमस्ट्रिंग को स्ट्रेच करते हैं तो ये अपनी नॉर्मल रेस्टिंग पोजीशन में वापस आ जाती है। इस वजह से कसरत की थकावट खत्म हो जाती है और हमें ज्यादा से ज्यादा फायदा मिलता है। और जब हम स्ट्रेस बाद वेगस को एक्टिवेट करते हैं तब भी बिल्कुल ऐसा ही होता है। इससे कोर्टिसोल का लेवल कम हो जाता है, इन्फ्लामेशन घट जाता है और हमारा दिमाग वापस बैलेंस होने लगता है। अच्छी बात ये है कि वेगस की एक्टिविटी बढ़ाने के लिए हमारे पास बहुत से रास्ते हैं। जैसे ध्यान, ब्रीदिंग एक्सरसाइज, तैरना और मधुर संगीत सुनना। योग भी वेगस को एक्टिवेट का एक अच्छा तरीका है। अगर आप रोजाना योग अभ्यास करते हैं तो ये कोर्टिसोल को 40 प्रतिशत तक कम कर देता है। आधुनिक दुनिया में योग, तनाव से राहत पहुंचाने वाले तरीकों में सबसे ज्यादा पॉपुलर हो गया है। इसकी वजह भी है। योग करना आसान है। इसमें ब्रीदिंग एक्सरसाइज, रिलेक्सेशन के तरीके, ध्यान और ऐसी बहुत सी मुद्राएं शामिल हैं जो ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाती हैं। योग आपके तनाव को तो दूर करता ही है साथ ही शरीर को मजबूत और लचीला भी बनाता है। ये आपको भावनात्मक रूप से भी मजबूत बनाता है। यानि तनाव को रोकने का बटन हमारे हाथ में है। आपको बस थोड़े से अभ्यास की जरूरत है। जब कभी आपको तनाव महसूस हो तो हाथ पर हाथ धरकर इसे खुद पर हावी न होने दें। स्विमिंग करें, योग करें या फिर संगीत सुन लें।

अगर आप तनाव को अपने फेवर में करना चाहते हैं तो अच्छा भोजन, कसरत और बाहरी दुनिया में निकलना शुरू करिए।

हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद और मिलिट्री सर्विस शुरू करने के बीच रिचर्ड ने तय किया कि वो पांच महीने का ब्रेक लेकर यूएस जाएंगे। उनका प्लान था कि वो वहां के कल्चर को समझेंगे, नाइट लाइफ एंजॉय करेंगे और नए दोस्त बनाएंगे। लेकिन इन सबकी जगह वो दिन भर घर में बैठकर टीवी देखते रहे और हाई शुगर फूड और डबल चीज पिज्जा जैसी चीजें खाकर अपना वजन बढ़ाते रहे। इस वजह से वो चिड़चिड़े हो गए। उदासी और थकान महसूस करने लगे। उनकी फिटनेस पर भी बुरा असर पड़ा। जब वो ट्रेनिंग के लिए पहुंचे तो उनको बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इन सबकी वजह से उनका तनाव बहुत बढ़ गया था। जब हम तनाव से गुजर रहे होते हैं तो स्ट्रेस रिस्पांस की दो तरंगों की वजह से हमारे हार्मोन्स का लेवल कम होता जाता है। इस वजह से हमारी एनर्जी, हेल्थ और कॉग्नीटिव फंक्शन डाउन होने लगते हैं। इन सबकी वजह से तनाव और बढ़ने लगता है। यानि ये पूरा साइकल चलने लगता है। अच्छी बात ये है कि सही डाइट, कसरत और बाहरी दुनिया में घूमने फिरने जैसे तरीकों से इन हॉर्मोन्स का लेवल सुधारा जा सकता है  और तनाव से जो भी नुकसान हुआ उसकी भरपाई की जा सकती है। अगर आप ये समझ नहीं पा रहे कि शुरुआत कैसे करें तो रिचर्ड के पास इसका सॉल्यूशन भी है। वे कहते हैं छोटे-छोटे कदमों से शुरू कीजिए और धीरे-धीरे अपनी स्पीड बढ़ाइए। अब यहां डाइट की बात करें तो पहले कैफीन और एल्कोहल कम करिए। क्योंकि ये दोनों चीजें कोर्टिसोल का लेवल और एड्रीनलीन की एक्टिविटी बढ़ाते हैं। वे ग्रीन टी और कोको का सेवन बढ़ाने की सलाह भी देते हैं। ये दोनों चीजें स्ट्रेस रिस्पांस को तो स्टेबल करती ही हैं साथ ही साथ तनाव से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले तीन सिस्टम इम्यून, नर्वस और कार्डियोवस्कुलर सिस्टम को मजबूत भी बनाती हैं। 

अब बात करें कसरत की। ये भी एक अच्छा तरीका है जो तनाव से गुजरने के बाद आपके शरीर को रिपेयर करता है। इससे दिमाग का फंक्शन और हार्मोनल बैलेंस बेहतर बनता है। इस वजह से हम ज्यादा एनर्जेटिक महसूस करने लगते हैं। कौन सी कसरत की जाए ये आप पर निर्भर करता है फिर भी कुछ कसरतें दूसरों से ज्यादा फायदेमंद होती हैं। जैसे कि एरोबिक्स, brain-derived neurotrophic factor (BFNF) को बढ़ाकर कॉग्नीटिव फंक्शन बेहतर करता है। BFNF एक तरह की प्रोटीन है जो ब्रेन सेल्स का प्रोडक्शन बढ़ाती है। अगर आप बाहर निकलकर 10-20 मिनट की सैर भी करें तो शरीर के लिए फायदेमंद हो सकता है। अगर हल्की धूप का समय चुनें तो और भी अच्छा है। स्टडीज से ये साबित हुआ है कि ऐसी हल्की धूप मूड को फ्रेश करती है और इम्यूनिटी बढ़ाती है। अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कुछ आसान से बदलाव करके आप तनाव के खिलाफ एक बैरियर बना सकते हैं। लेकिन सबसे जरूरी बात है सब्र रखना। किसी भी बदलाव में समय और मेहनत लगती है लेकिन आप जितनी ज्यादा मेहनत करेंगे अच्छे रिजल्ट आने की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी।

कुल मिलाकर
तनाव से बचना नामुमकिन है लेकिन इससे निपटने के बहुत से तरीके हैं। अपनी लाइफस्टाइल में थोड़े-थोड़े बदलाव कीजिए। स्ट्रेस रिस्पांस को बंद करना सीखिए और खुद के लिए थोड़ा वक्त निकालिए। इन सब तरीकों से आप तनाव के असर को कम और रिवर्स जरूर कर सकते हैं। आपको तनाव के प्रति अपना नजरिया भी बदलना होगा। इसे खुद पर हावी न होने दें बल्कि अपने टार्गेट को अचीव करने के लिए एक मौके की तरह इस्तेमाल करें। 

 

क्या करें

अपने लिए एक प्लान बनाइए जो स्ट्रेस होने पर आपकी मदद करे। इस तरह की चीजों से आपको मोटिवेशन मिलता है। अपने आहार को सही रखिए, कसरत कीजिए और खुद को रिलैक्स रखिए। छोटी-छोटी चीजों से शुरुआत कीजिए। 10-20 मिनट की सैर कीजिए। अपना मनपसंद खाना बनाइए। अपने परिवार और दोस्तों से हफ्ते में एक बार जरूर मुलाकात कीजिए। कुछ अपनी कहिए और कुछ उनकी सुनिए। इससे आपका दिल हल्का हो जाता है। 

 

येबुक एप पर आप सुन रहे थे The Stress Code By Richard Sutton. 

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