Linda Geddes
सूरज की रोशनी का महत्व
दो लफ्जों में
साल 2019 में आई ये किताब इस बात की जानकारी देती है कि सूरज की रोशनी हमारे जीवन पर क्या असर डालती है। लोग पुराने जमाने से सूरज की पूजा करते आ रहे हैं और इसकी रोशनी की मदद से अपने बहुत से काम बना रहे हैं। विज्ञान इस बात को साबित भी कर चुका है कि सूरज का होना हमारे प्लानेट और जीवन के लिए क्या मायने रखता है। ये
किताब किनको पढ़नी चाहिए
• जो लोग विज्ञान में रुचि रखते हैं
• विंटर ब्लूज का शिकार लोग
• जो लोग हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाना चाहते हैं
लेखिका के बारे में
लिंडा एक पत्रकार हैं जो विज्ञान, तकनीक, बायोलॉजी और मेडिसिन के टॉपिक्स की एक्सपर्ट हैं। उन्होंने न्यू साइंटिस्ट नाम की जानी मानी मैगजीन के लिए राइटर और एडिटर के तौर पर काम किया है। उनको ब्रिटिश साइंस राइटर नाम की संस्था की तरफ से बेस्ट इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट का अवार्ड भी मिल चुका है।
हम सबके शरीर में एक ऐसी घड़ी होती है जो सूरज के निकलने और ढलने के हिसाब से शरीर के फंक्शन का ध्यान रखती है।
इंसानों का सूरज से गहरा नाता रहा है। आप दुनिया में कहीं भी चले जाइए, कोई भी पुरानी इमारत या खंडहर देख लीजिए आपको हर कल्चर में सूरज का सम्मान और अपनी-अपनी तरह से पूजा करने के सबूत मिल जाएंगे। अब तो विज्ञान ने भी इस बात पर मुहर लगा दी है कि सूरज हमारी भलाई के कितने काम करता है। ये किताब ऐसी बहुत सी साइंटिफिक स्टडीज को इकट्ठा करके आप तक लाती है। आप समझते हैं कि धरती पर मौजूद बाकी जीवों की ही तरह हमारा शरीर भी किस तरह सही ढंग से चलने के लिए सूरज पर निर्भर करता है। ये स्टडीज हमें बताती हैं कि अगर हमारे जीवन में सूरज की रोशनी न हो तो हमारी सेहत और मेंटल हेल्थ दोनों खराब हो सकते हैं। जेट लैग, विटामिन की कमी और विंटर ब्लूज ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं। जितनी अच्छी तरह हम इन मुद्दों के पीछे छिपी वजह समझते हैं उतनी अच्छी तरह हम इनसे निपट सकते हैं।
इस किताब को पढ़कर आप जानेंगे कि धूप सेंकना रिकेट्स में फायदेमंद क्यों था, आप विंटर ब्लूज का मुकाबला कैसे कर सकते हैं और डेलाइट सेविंग टाइम हमारी भलाई से ज्यादा नुकसान क्यों कर रहा है?
तो चलिए शुरू करते हैं!
अगर आप सुबह बिना अलार्म लगाए एक ही समय पर उठ जाते हैं तो इसका मतलब है कि आपका शरीर इंटरनल क्लॉक से तालमेल बनाकर चल रहा है। असल में शरीर की हर एक्टिविटी इस घड़ी के हिसाब से होती है फिर चाहे डाइजेशन हो या नींद। आपके लिए ये बात शायद नई होगी कि हम सबके पास एक सी घड़ी ही होती है। इसे suprachiasmatic nucleus या एससीएन कहा जाता है। ये आपके हाइपोथैलेमस में बैठा लगभग 20,000 सेल्स का एक ग्रुप होता है। हाइपोथैलेमस, दिमाग के बीच एक छोटा सा हिस्सा है जो शरीर में हार्मोन्स को रेग्युलेट करने जैसे बहुत से कामों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। SCN आपकी सर्कैडियन रिदम को मेंटेन रखता है ताकि शरीर के फंक्शन जितना हो सके उतने सही ढंग से चलते रहें।
सुबह होने के साथ कुछ हार्मोन्स को एक्टिव करने की जरूरत होती है, BP को थोड़ा बढ़ाने की जरूरत होती है और मसल्स को एक्टिव करने की जरूरत होती है ताकि आपके अंदर दिन भर काम करने की ताकत बनी रहे। इसी तरह रात होने पर आप शांति से आराम कर सकें इसके लिए BP और शरीर का तापमान थोड़ा कम करना होता है। ये सब सही समय पर हो इसके लिए आपकी सर्कैडियन रिदम को डे टाइम के साथ तालमेल बिठाना होता है। जब आप सो जाते हैं तो आपका शरीर बहुत अलग तरह के फंक्शन करता है बजाए तब जब आप जाग रहे होते हैं। ये देखना कि सब कुछ सही समय पर हो आपकी SCN और सर्कैडियन रिदम का ही काम है। लेकिन इस इंटरनल क्लॉक हमारे शरीर में बिठाने और सही तरह से चलाने के लिए कौन जिम्मेदार है? जवाब है सूरज।
जब सूरज डूबता है और रोशनी धीमी पड़ने लगती है तो हमारे शरीर को सिग्नल मिलता है कि अब आराम करने और सोने के लिए खुद को तैयार करे। इसी तरह जब सुबह सूरज निकलता है और रोशनी तेज होने लगती है तो शरीर को सिग्नल मिलता है कि वो मेलाटोनिन जैसे हार्मोन को रिलीज करना बंद कर दे जो आपको सोने में मदद करता है और उन हार्मोन्स को एक्टिव करे जो आपको नाश्ते के लिए भूख लगने का इंडिकेशन देते हैं। ये रिदम आपके डीएनए में गहराई से समाई हुई है और इनको साइनोबैक्टीरिया जैसे बहुत ही शुरुआती दौर के जीवों में भी देखा जा सकता है जिससे मानव जीवन विकसित हुआ है। पेड़ पौधों की भी अपनी एक सर्कैडियन रिदम होती है जिसके हिसाब से वो अपने काम करते हैं। कुछ फूल जैसे कमल और गुलाब सूरज निकलने के समय खिलते हैं जबकि रातरानी और रजनीगंधा जैसे फूल सूरज ढलने के बाद खिलते हैं क्योंकि उनका पॉलीनेशन रात के समय निकलने वाले कीट पतंगों से होता है। हम इंसान भी अलग नहीं हैं। हमारा शरीर भी अपने कामों के लिए सूरज पर निर्भर है।
हेलियोथेरेपी का इस्तेमाल सदियों से बीमारियों के इलाज और शरीर को ताकत देने के लिए किया जाता रहा है।
रोमन और यूनानियों को विश्वास था कि सूरज की रोशनी में हीलिंग पावर है। हिप्पोक्रेट्स जिनको फादर ऑफ मेडिसिन माना जाता है उन्होंने कहा था कि सेहत बनाए रखने के लिए कुछ समय धूप में बिताना जरूरी है। रोम के लोग मिर्गी, एनीमिया, अस्थमा, पीलिया और मोटापे जैसी बीमारियों के इलाज के लिए सन बाथ जिसे सोलारिया कहते हैं की मदद लेते थे। लंबे अरसे तक लोगों के लिए ये हैरानी की बात बनी रही कि आखिर सन बाथ से किस तरह फायदा होता है। आखिर बीसवीं सदी में स्टडीज से ये पता चला कि सूरज की रोशनी और खास तौर पर UV rays स्किन की टीबी के इलाज लिए असरदार हो सकती हैं। स्टडीज से ये भी पता चला है कि हमारी स्किन सूरज की रोशनी में विटामिन डी बनाती है जो हड्डियों को मजबूत रखने और रिकेट्स जैसी बीमारियों को रोकने के लिए मदद करता है।
18 वीं सदी के आखिर में जब मजदूर फैक्ट्रीज में जाकर काम करने लगे और फील्ड वर्क से दूर होते गए तो इंग्लैंड में रिकेट्स एक बड़ी बीमारी बनकर उभरने लगा खास तौर पर उन शहरों में जहां कारखाने थे। हेलियोथेरेपी और विटामिन डी की खुराक ने लोगों को ठीक करने में मदद की। रिसर्च ये भी बताती हैं कि विटामिन डी गर्भवती महिलाओं के लिए खास तौर पर जरूरी है। उसमें भी प्रेग्नेंसी के आखिरी कुछ महीनों में क्योंकि ये न्यूबोर्न में मल्टीपल स्क्लेरोसिस रोकने में मदद करता है। हमें सूरज की कितनी रोशनी मिलती है इसे लक्स नाम की यूनिट से मापा जाता है। आज ब्रिटेन के किसी ऑफिस में काम करने वाले आदमी को गर्मियों में लगभग 587 लक्स की रोशनी मिलती है और सर्दियों में 210 लक्स की। यानि रोज का एवरेज निकालें तो 100-300 लक्स बनता है। जबकि ये कड़ाके की सर्दी वाले दिनों में भी आउटडोर रहने वालों को मिल रही रोशनी से कम से कम दस गुना कम है। अब पेन्सिलवेनिया में रहने वाले किसी किसान की बात करें तो उसे गर्मियों में 4,000 लक्स और सर्दियों में 1,500 लक्स रोशनी आराम से मिल जाती है। लेकिन इस कमी का शिकार सिर्फ ऑफिस जाने वाले लोग ही नहीं बल्कि स्कूली बच्चे भी हैं। बहुत से स्कूलों ने तो इस बात पर ध्यान देना शुरू कर दिया है कि बच्चे स्कूल के दौरान कुछ देर धूप में जरूर बिताएं पर इसकी चिंता करने वाले ऑफिस बहुत ही कम हैं। जबकि एडल्ट्स को भी अपनी हड्डियों और सर्कैडियन रिदम के लिए सूरज की रोशनी की उतनी ही जरूरत होती है।
आर्टिफिशल लाइट में ज्यादा समय बिताने से आपकी सर्कैडियन रिदम बिगड़ सकती है।
इतिहास में झांककर देखें तो किसी को कभी इस बात की चिंता नहीं रही होगी कि उसे सूरज की रोशनी की कमी हो रही है। अफ्रीका या नाॅर्थ अमेरिका के रेगिस्तानी इलाकों में तो इस बात की चिंता हो जाती है कि आपको जरूरत से ज्यादा धूप मिल रही है। हालांकि इन दिनों ज्यादातर लोग अपना दिन घर के अंदर आर्टिफिशल लाइट में, अपनी डेस्क पर काम करते हुए और कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन को देखते हुए बिताते हैं। शाम और रात के वक्त ये रोशनी और स्क्रीन की ब्राइटनेस कहीं तेज होती है। इसकी वजह से आपकी सर्कैडियन रिदम असल समय के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए मेहनत करती है। इसमें सबसे बुरी बात ये है कि इसकी वजह से आपकी नींद पर बुरा असर पड़ता है जबकि अच्छी नींद शरीर के लिए जरूरी चीजों में से एक है। आप सही नींद ले सकें इसके लिए ये जरूरी है कि आपकी इंटरनल क्लॉक को पता रहे कि सोने का समय कब है। इसका मतलब है दिन और रात के बीच के फर्क को पहचानना और ये समझना कि कब दिन खत्म होता है और कब रात शुरू होती है।
आर्टिफिशल लाइट हमाले शरीर को उगते और डूबते हुए सूरज से मिलने वाले सिग्नल्स में गड़बड़ कर सकती है जो हमारी सर्कैडियन रिदम को हमारे आसपास की दुनिया के साथ तालमेल बिठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। खास तौर पर कंप्यूटर और स्मार्टफोन की स्क्रीन से निकलने वाली नीली और सफेद रोशनी मेलाटोनिन हार्मोन की रिलीज में देरी कर सकती है जो कि शरीर को नींद का सिग्नल देता है। घर के अंदर और भी कई तरह की रोशनी होती है लेकिन उनमें से ज्यादातर आपकी इंटरनल क्लॉक को इस धोखे में रख सकती हैं कि अभी शाम नहीं ढली है। लिंडा ने एक महीने के लिए घर में मोमबत्ती की रोशनी करके एक एक्सपेरिमेंट किया। हालांकि वो पहले जितनी ही नींद लेती थी पर उसे यह महसूस हुआ कि उसकी नींद पहले से ज्यादा गहरी और रिफ्रेशिंग थी। सुबह उठने पर वो पहले से ज्यादा एनर्जेटिक फील करती थी। ये सारी बातें इस तरफ इशारा करती हैं कि उसकी सर्कैडियन रिदम पहले से बेहतर काम करने लगी थी।
सर्कैडियन रिदम का बिगड़ना कैंसर की वजह बन सकता है।
इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च इन कैंसर के अनुसार सर्कैडियन रिदम की गड़बड़ इंसानों में कैंसर की वजह बन सकती है। अमेरिकन नेवी में सबमरीन कैप्टन रह चुके सेथ बर्टन का मानना है कि अपने करियर के दौरान उनकी सर्कैडियन रिदम लगातार बिगड़ती रही और इस वजह से उन्हें आगे जाकर कैंसर हुआ। सूरज की रोशनी न मिलने के अलावा बर्टन की टीम ने अपनी घड़ियों को 24 घंटे की जगह 18 घंटे के हिसाब से सेट किया यानि वो हर दिन अलग-अलग समय पर खाते और सोते थे। ये बात अब जाकर समझ आने लगी है कि इस तरह का बिगड़ा हुआ रूटीन हमें कितना तगड़ा नुकसान पहुंचाता है। चूहों पर की गई स्टडीज से पता चलता है कि ये कैंसर की वजह बन सकते हैं। सर्कैडियन रिदम बिगड़ने का असर हमारी मेंटल हेल्थ और मूड पर भी पड़ सकता है।
अगर आप किसी ऐसी जगह रहते हैं जहां सर्दियों के मौसम में धूप कम होती हो तो आपको शायद seasonal affective disorder या SAD के बारे में पता होगा। इसे कभी-कभी "विंटर ब्लूज" भी कहा जाता है। सर्दियों में वैसे ही दिन छोटे होते हैं और इस दौरान लोगों के मूड में कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं। इनसे बचने के भी बहुत से तरीके निकाले गए हैं। 1970 के दशक से लाइट बॉक्स नाम की तरकीब काफी चलन में रही है। इसमें लोग एक दीये के सामने बैठकर सन बाथ वाला एहसास ले सकते हैं। मैरीलैंड के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ में एक क्लीनिकल स्टडी से पता चला है कि कुछ दिनों तक एक लाइट बॉक्स के सामने बैठने पर एसएडी के लक्षणों को कम किया जा सकता है। दस दिनों के बाद वे पूरी तरह से गायब हो सकते हैं। नॉर्वे के रजुकान शहर में जहां साल में लगभग 6 महीने धूप गायब रहती है एक बहुत बड़ा कदम उठाया गया। ये शहर पहाड़ों के बीच बसा है। यहां पहाड़ों पर ऊंचे-ऊंचे मिरर लगा दिए गए हैं जिनसे रिफ्लेक्ट होकर सूरज की रोशनी शहर तक आ जाती है।
इस कदम की वजह से वहां 3,000 लोगों की छोटी सी आबादी को रोज पहले से ज्यादा धूप मिलने लगी है। स्वीडन में SAD से निपटने के लिए सौना में टाइम बिताकर ठंडे पानी में डुबकी लगाना चलन में है। ये बात सुनने में अजीब लग सकती है पर इस कदम के सपोर्ट में बहुत से साइंटिफिक फैक्ट्स हैं। धूप की तरह सौना में मिलने वाली हीट त्वचा में नाइट्रिक ऑक्साइड बनाती है जिसके कई फायदे हैं। ये सेरोटोनिन रिलीज को ट्रिगर करता है जो हमारे मूड को अच्छा रखने वाला हार्मोन है। बाद में ठंडे पानी में लगाई डुबकी शरीर में flight or fight वाला रिएक्शन पैदा करती है जिसके कम हो जाने पर एंडोर्फिन रिलीज होता है जो हमारा उत्साह बढ़ाता है। यानि विंटर ब्लूज से निपटने के लिए ये कोई बुरा तरीका नहीं है।
क्रोनोथेरेपी का इस्तेमाल डिप्रेशन के इलाज में किया जा रहा है।
सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर एक अलग बात है लेकिन क्रॉनिक डिप्रेशन और बाइपोलर डिसऑर्डर बहुत गंभीर मुद्दे हैं। स्टडीज ये बताती हैं कि हमारी सर्कैडियन रिदम मेंटल हेल्थ को बेहतर बनाने में बड़ी भूमिका निभा सकती है। अब बड़ी संख्या में डॉक्टर और रिसर्चर्स की टीम क्रॉनिक डिप्रेशन और बाइपोलर डिसऑर्डर का इलाज कर रही है जिसमें सर्कैडियन रिदम को मजबूत करने पर ध्यान दिया जाता है। मिलान के सैन रैफेल अस्पताल के साइकिएट्रिस्ट फ्रांसेस्को बेनेडेटी ऐसे ही एक डॉक्टर हैं। उनकी एक मरीज मारिया इतने बुरे डिप्रेशन का शिकार है कि उसने कई बार आत्महत्या की कोशिश भी की है। वो कुछ समय अस्पताल में भर्ती रही है पर इससे उसे कुछ फायदा नहीं हुआ। कभी-कभी तो उसकी हालत और भी खराब हो गई।
पिछले दो दशकों से डॉक्टर बेनेडेटी उसका इलाज कर रहे हैं जिससे उसकी हालत में सुधार आ रहा है। उसके लिए जैसे ये एक नया एक जन्म हो। अब न सिर्फ उसका मूड सही होने लगा है बल्कि उसके रिश्ते और काम भी सुधरने लगे हैं। उसके इलाज में ट्रिपल क्रोनोथेरेपी की मदद ली जा रही है। ये एक तरह का कांबिनेशन है जिसमें लाइट थेरेपी, मूड को ठीक रखने के लिए दवा लेना और कभी-कभी रात को जागना शामिल है। जब मारिया को डिप्रेशन शुरू होता है तो वो पूरी रात जागती रहती है लेकिन दिन निकलते ही उसके मन में अपना आर्ट वर्क करने की इच्छा जागती है जो इस बात की तरफ इशारा करती है कि क्रोनोथेरेपी ने काम किया है और डिप्रेशन दूर हो गया है।
ये कोई पक्का इलाज नहीं है लेकिन इस मेथड पर काम कर रहे एक्सपर्ट्स का मानना है कि मरीज की सर्कैडियन रिदम को रीसेट करना उतना ही असरदार है जितना कि डिप्रेशन के इलाज में इस्तेमाल हो रही दवाएं। जबकि दवाओं के तो साइड इफेक्ट्स भी होते हैं।
न्यूरोलॉजिस्ट ये बात जानते हैं कि एक इंसान की सर्कैडियन रिदम, सेरोटोनिन जैसे न्यूरोकेमिकल्स को रिलीज करने के लिए कितनी जरूरी होती है। एंटीडिप्रेसेंट दवाएं भी इसी बुनियाद पर काम करती हैं। कुल मिलाकर बात ये है कि किसी की सर्कैडियन रिदम को मजबूत करने या रीसेट करने से भी डिप्रेशन कम हो सकता है। साल 1996 से डॉक्टर बेनेडेटी के क्लीनिक में बाइपोलर डिप्रेशन के लगभग एक हजार मरीजों का इलाज किया गया है। उनमें से कई पर दवाओं का असर नहीं हुआ जबकि 70 प्रतिशत ने ट्रिपल क्रोनोथेरेपी के बाद सुधार महसूस किया है।
अपनी लाइफस्टाइल बदलकर आप अपनी इंटरनल क्लॉक को ठीक रख सकते हैं।
अगर आप सर्कैडियन रिदम के महत्व को समझते हैं तो आपको डेलाइट सेविंग टाइम या DST का कॉन्सेप्ट अच्छा नहीं लगेगा जो साल में दो बार दुनिया भर के लोगों का स्लीप रूटीन बदल देता है। लोग इसकी वजह से जो परेशानी महसूस करते हैं उसे सोशल जेट लैग कहा जाता है। जर्मनी के बैड किसिंजेन शहर में माइकल विडेन नाम के इंसान एक कैंपेन चला रहे हैं ताकि लोग दीवार पर लगी घड़ी की जगह अपनी इंटरनल क्लॉक पर ज्यादा फोकस करें। इसकी एक वजह बिजनेस भी है। मिडिल जर्मनी के आसपास काफी संख्या में स्पा टाउन हैं और बैड किसिंगन की टैग लाइन "डिस्कवर टाइम" इसे बाकी लोगों से अलग करने में मदद करती है।
विडेन, क्रोनोथेरेपी के नियम का पालन करते हैं और सेहत पर इसके फायदों को लेकर जागरुक भी हैं। उनको ये बात अच्छी तरह पता है कि अलग-अलग लोगों के टाइमजोन अलग-अलग होते हैं जैसे कोई रात देर तक जागता है तो कोई सुबह जल्दी उठता है। इसलिए वो पूरे शहर के लिए इस तरह का रूटीन बनाने पर जोर दे रहे हैं जो हर तरह के लोगों को सूट करे। वो अपने शहर बैड किसिंगन में DST के खिलाफ हैं। इसकी वकालत करते हुए उन्होंने एक पिटीशन भी दायर की थी जिसमें लगभग 67,000 नागरिकों ने अपने सिग्नेचर करके सपोर्ट किया था पर टाउन काउंसिल ने इसके खिलाफ वोटिंग की। डीएसटी पर बहस जारी है। इसके साथ एक और बड़े मुद्दे पर भी लोग अपनी आवाज उठा रहे हैं कि हम अपनी लाइफ को सही रूटीन पर कैसे लाएं।
एडिना मिनेसोटा नाम की जगह का उदाहरण देखें। कई स्टडीज से पता चला है कि बच्चों को एडल्ट्स की तुलना में ज्यादा नींद की जरूरत होती है लेकिन जब उन्हें स्कूल जाने की वजह से सुबह जल्दी उठना पड़ता है तो वे अच्छी तरह परफार्म नहीं कर पाते हैं। यहां कई हाई स्कूलों ने अपना समय सुबह 7:20 से बदलकर 8:30 कर दिया और इसके अच्छे नतीजे तुरंत सामने आने लगे। बच्चों को थकान कम महसूस हुई, उनके ग्रेड अच्छे हो गए और उनकी अटेंडेंस भी बढ़ गई। ये बदलाव शिक्षकों को भी अच्छा लगा क्योंकि इसकी नजह से स्टूडेंट्स पढ़ाई में जयादा मन लगाने लगे थे। इंग्लैंड में 13 से 16 साल के बच्चों के लिए एक स्कूल का समय सुबह 8:50 से 10:00 बजे कर दिया गया। यहां भी बच्चों की परफार्मेंस बेहतर हो गई और उनके बीमार होकर स्कूल से छुट्टी लेने में भी कमी आई। बहुत सी कंपनियों ने भी क्रोनोथेरेपी को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है। वे ऑफिस के अंदर इस तरह की लाइटिंग करते हैं जो सूरज की रोशनी से मिलती जुलती हो। इसके अलावा जरूरत पड़ने पर वर्क फ्राम होम की सुविधा भी देती हैं। उम्मीद है कि पहले से ज्यादा स्कूल और कंपनियां हमारी सर्कैडियन रिदम के महत्व को पहचानेंगे और उन छोटे-छोटे बदलावों की शुरुआत करेंगे जो हमारी भलाई के लिए एक बड़ा कदम साबित हों।
कुल मिलाकर
सूरज हमारे लिए हमारी सोच से कहीं ज्यादा महत्व रखता है। सबसे पहले ये हमारे सर्कैडियन रिदम को ठीक रखता है जिसकी वजह से हमारे शरीर के बहुत से फंक्शन अच्छी तरह चलते हैं। रात की अच्छी नींद हो या हार्मोन्स को सही समय पर रिलीज करना सर्कैडियन रिदम इन सब पर असर दिखाती है। सूरज हमारे शरीर को विटामिन डी भी देता है जो हमारे लिए बहुत जरूरी है और हमारे मूड पर भी असर डाल सकता है। मेंटल हेल्थ पर हुई स्टडी में पाया गया है कि सर्कैडियन रिदम को रीसेट करने से क्रॉनिक डिप्रेशन के इलाज में मदद मिल सकती है। दुनिया भर में स्कूल और कंपनियां इस बात को ध्यान में रखकर अपना समय तय करने लगे हैं जो हमारी इंटरनल क्लॉक के हिसाब से सही हो।
क्या करें
जब कभी आप जेट लैग से गुजरें तो मेलाटोनिन लेने की कोशिश करें।
लंबी इंटरनेशनल फ्लाइट तय करने के बाद जिस तरह का जेट लैग होता है वो सर्कैडियन रिदम बिगड़ने पर होने वाले बदलाव की एक झलक भर है। इसे ठीक करने के लिए सूरज डूबने के वक्त थोड़ा मेलाटोनिन लें। जब बाहर अंधेरा हो जाता है तब आपका शरीर स्वाभाविक रूप से मेलाटोनिन रिलीज करता है जो आपको गहरी नींद लिए तैयार करने का एक तरीका है। लेकिन अगर आपकी सर्कैडियन रिदम अलग टाइम जोन की वजह से बदल रही है तो इस पर ध्यान दीजिए। अगर आप सोने से पहले एक या दो रात मेलाटोनिन लें तो आपकी सर्कैडियन रिदम वापस पटरी पर आ जानी चाहिए।
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