Scott Stossel
डर, उम्मीद, फिक्र और सुकून की तलाश
दो लफ्जों में
इस समरी में हम उनकी सिचुएशन और ज़िंदगी के बारे में जानेगें जिन्हें एग्ज़ायटी की प्रॉब्लम होती है. इस समरी में हम किताब के ऑथर के एक्सपीरियंस की बात करेंगे. कैसे ऑथर न सिर्फ एग्ज़ायटी के जूझ रहे अपने दौर को बताते हैं बल्कि इसके सॉल्युशन के लिए साइंटिफिक, फिलॉसफिकल और लिटरेरी ट्रीटमेंट भी एक्सप्लोर करते हैं. तो इस समरी में हम खासतौर से एग्ज़ायटी की प्रॉब्लम और अलग अलग फील्ड में मौजूद इसके सॉल्युशंस के बारे में बात करेंगे.
समरी किनके लिए है
- एग्ज़ायटी का सामना करने वालों के लिए
- साइकोलॉजी में दिलचस्पी रखने वालों के लिए
- अगर आपका कोई फैमिली मेंबर या फ्रेंड एग्ज़ायटी का सामना कर रहा है तो उसकी सिचुएशन को समझने के लिए
लेखक के बारे में
Scott Steal अमेरिकन जर्नलिस्ट, अटलांटिक मैगनीज़ के एडिटर हैं. स्टील ने अमेरिकन प्रॉस्पेक्ट मैगज़ीन के एडिटर के तौर पर भी काम किया है. स्टील ने “सार्ज: द लाइफ एण्ड टाइम्स ऑफ सार्जेंट श्रिवर” लिखी है. माई एज ऑफ एग्ज़ायटी लिखने के पीछे उनका मकसद अपनी एग्ज़ायटी को समझना और तकलीफ का सॉल्युशन पाना था.
मेंटल इलनेस में क्लिनिकल एग्ज़ायटी सबसे कॉमन बीमारी है
नॉर्मल एग्ज़ायटी सबको होती है. जैसे कभी प्रेज़ेंटेशन देते वक्त, बड़े मेडिकल ट्रीटमेंट के वक्त, या किसी भी बड़े इवेंट से पहले हम सबको एग्ज़ायटी होती है. कुछ लोगों को ज्यादा एग्ज़ायटी होती है जैसे ज्यादा फिक्र करना या किसी चीज़ से फोबिया होना. यूजुअली यह चीज़ें हमें नॉर्मल लाइफ लीड करने में प्रॉब्लम क्रिएट नहीं करतीं.
यह चीज़ें बहुत आगे बढ़ जाती हैं तो क्लिनिकल एग्ज़ायटी में बदल जाती हैं. जो लोग क्लिनिकल एग्ज़ायटी का सामना करते हैं कुछ चीज़ों को लेकर उनका रिएक्श बहुत एक्सट्रीम होता है. जैसे कि अगर उन्हें पब्लिक स्पीकिंग से फोबिया है और किसी सिचुएशन में उन्हें पब्लिक को एड्रेस करना पड़ गया तो उनकी बॉडी बहुत एक्सट्रीमली रिएक्ट करेगी फॉर एग्ज़ाम्पल ऐसी सिचुएशन में उन्हें वॉमिटिंग आने लगेगी या वह बेहोश होकर गिर पड़ेंगे
इस समरी में आप जानेंगे कि
एग्ज़ायटी के पीछे की थ्योरीज़ क्या हैं, कैसे क्लिनिकली एग्शियस लोगों के लिए रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी लगभग इम्पॉसिबल हो जाती है और कैसे ऑथर की एग्ज़ायटी उनके लिए कई जगह इम्बैरेसमेंट की वजह बनी
तो चलिए शुरू करते हैं
जब भी हम किसी के सामने या कोई हमारे सामने एग्ज़ायटी का ज़िक्र करता है तो रिएक्शन बहुत सिम्पल होता है कि यह तो नॉर्मल सी चीज़ है लेकिन जब यह एक्सट्रीम लेवल पर पहुँच जाए तो इसे क्लिनिकल एंग्ज़ायटी कहते हैं. जोकि बहुत कॉमनली होने वाली एक तरह की मेंटल डिसीज़ है. यह डिप्रेशन से ज्यादा होने वाली बीमारी है और दुनिया भर में 6 में से 1 लोग अपनी पूरी लाइफ में कमसे कम साल भर के लिए तो ज़रूर क्लिनिकल एग्ज़ायटी का सामना करते हैं.
एग्ज़ायटी एक ऐसी चीज़ है जो हर टाइम में और हर कल्चर में एक्ज़िस्ट करती आयी है. मिसाल के तौर पर साउथ अमेरिका का वह हिस्सा जहां स्पैनिश बोली जाती है उस हिस्से में एग्ज़ायटी को “ataques de nervios,” कहा जाता है. ग्रीनलैण्ड में “kayak angst” तो ईरान के लोग “हर्ट डिस्ट्रस” कहते हैं. इसके लिए शब्द कुछ भी इस्तेमाल किया जाए लेकिन बॉडी की जो स्टेट होती है वह सेम होती है.
हिस्ट्री में भी क्लिनिकल एग्ज़ायटी का ज़िक्र है. फॉर एग्ज़ाम्पल Plato और Hippocrates ने बीमारी की थ्योरीज़ दी. Spinoza ने इसके बारे में लिखा तो Sigmund Freud ने एग्ज़ायटी के मैकेनिज्म को डिफाइन करने की कोशिश की. अच्छा जब हम डिसीज़ की बात करते हैं तो एक तरह की कमी या खामी हमरे ज़ेहन में आती है लेकिन एग्ज़ायटी कोई कमज़ोरी या कैरेक्टर नहीं है, हालांकि, कुछ ऑर्गुमेंट तो यह भी कहते हैं एग्ज़ायटी का ताअल्लुक क्रिएटिविटी और जीनियस माइंड से है.
गांधी, डारविन, बारबरा जैसे कामयाब लोगों ने अपनी ज़िंदगी में एग्ज़ायटी का सामना किया है. इनके अलावा 40 मिलियन अमेरिकी भी इस बीमारी का सामना कर रहे हैं. एग्ज़ायटी का सामना करने वालों की तादात इतनी ज्यादा है कि आप इन लोगों को पागल तो बिल्कुल नहीं कह सकते हांलाकि इस तादाद से यह ज़रूर पता चलता है कि एग्ज़ायटी एक कॉमन चीज़ है.
मतलब यह कि क्लिनिकल एग्ज़ायटी एक ऐसी चीज़ है जिससे कोई बचा नहीं है किसी को भी हो सकती है. ऐसे में इस बीमारी का सामना कर रहे लोगों की लाइफ कैसी होती होगी?
एग्ज़ायटी एक ऐसी बीमरी है जो लोगों की ज़िंदगी स्ट्रेसफुल और हार्ड के साथ इंबैरेसिंग भी बना देती है
एग्ज़ायटी के साथ ज़िंदगी जीना एक बहुत बड़ी जद्दोजहद है. कुछ लोग इसे डायबिटीज़ से भी कम्पेयर करते हैं क्योंकि कई तरह की तकलीफों का सामना करना पड़ता है. जैसे डायबिटीज़ के पेशेंट्स को लगातार ब्लर और शुगर लेवल चेक करते रहना पड़ता है और ज़रूरत पड़ने पर फौरन दवाई लेनी पड़ती है वैसे ही एग्ज़ायटी से झूझ रहे लोगों को भी दवाइयों का सहारा लेना पड़ता है
एग्ज़ायटी का एक चेहरा यह भी है कि यह लोगों की रोज़ मर्रा की ज़िंदगी को लिमेटेड कर देती है, एग्ज़ायटी का सामना कर रहे बहुत सारे लोग अपने आपको घर में बंद कर लेते हैं ताकि वह सेफ और कंट्रोल में रहें.
क्लिनिकल एग्ज़ायटी का सामना करने वाला एक शख्स अपने घर के पांच किलोमीटर के दायरे में वॉक तक नहीं कर सकता था जब भी वह ट्राई करता उसे बेतहाशा खून की उल्टियां होती. अब आपको यह समझ आ गया होगा कि इसे क्लिनिकल एग्जायटी क्यों कहते हैं क्योंकि इससे मेडिकल सिंटम जुड़ जाते हैं जैसे कि चक्कर आना, उल्टियां होना वगैरह.
ऐसी हालत में बहुत बेसिक सी चीज़ कर पाना भी नामुमकिन सा हो जाता है जैसे कि ऑथर बिना दवाइयां खाए या बिना ड्रिंक किए न ही पब्लिक के बीच कुछ बोल पाते थे और न ही फ्लाइट में बैठ पाते थे.
इसके अलावा जिन लोगों को एग्ज़ायटी की प्रॉब्लम होती है. वह अपने करीबियों से बहुत ज्यादा अटैच हो जाते हैं. जब ऑथर छोटे थे तो वह अपने पैरेंट्स से दूर नहीं हो पाते थे अगर उनके पैरेंट्स कहीं चले जाएं तो वह अपने पैरेंट्स के दोस्तों तो कॉल कर देते थे. उन्हे लगने लगता था कि पैरेंट्स को कुछ हो गया है या फिर वह शायद मर गए हैं.
एक और प्रॉब्लम का सामना ऐसे लोगो को करना पड़ता कि अक्सर उनका बिहेवियर अनप्रिडिक्टेबल और इंबैरेसिंग हो जाता है. जैसे कि ऑथर जब फॉरेन ट्रैवल कर रहे थे तो वह सभी सैनिटरी फैसिलिटीज़ में चले गये लेकिन ऐसी किसी जगह नहीं गये जहां उन्हें जाना चाहिए था. क्योंकि वह अपने कंट्रोल में थे ही नहीं. नेक्स्ट वह क्या करने वाले है इसका उन्हें खुद कुछ नहीं पता था.
एक बार ऑथर एक केनेडी फैमिली के घर गये लेकिन वहां पर इतने स्ट्रेस हुए कि टॉयलेट में जाकर उन्होंने कुछ ऐसे कर दिया जिससे टॉयलेट ब्लॉक हो गया और बाथरूम में पूरा पानी भर गया.
आपकी एग्ज़ायटी की जड़ आपके बचपन से जुड़ी हो सकती है
एंज़ाइटी के पीछे क्या वजह क्या है इसको लेकर कई अलग-अलग तरह की थ्योरीज़ हैं मिसाल के तौर पर साइकोएनालिस्ट कहते हैं कि एंजाइटी के पीछे की मेन वजह बचपन में आये वह ख्याल हैं जो समाज में सही नहीं समझे जाते या जिन्हें हमरी सोसाइटी इम्मोरल समझती है और इनपर बंदिश होती है.
इसे लेकर Freud’s Oedipus एक बहुत अजीब सी थ्योरी देते हैं उनका कहना है कि लड़के अपनी मां की तरफ सेक्शुअली अट्रैक्टेड होते हैं जबकि वह अपने फादर को नहीं पसंद करते वही लड़कियां ऐसा अपने फादर के लिए फील करती हैं जबकि अपनी मां को नापसंद करती हैं. बच्चे अपने ऐसे ख्यालों पर अमल नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें पता होता है कि अगर वह ऐसा कुछ करेंगे तो उन्हें इसकी सजा मिल सकती है. नतीजतन उनका यह थॉट उनके ज़ेहन में लगातार बना रहता है और किसी ऐसी चीज या किसी ऐसी सिचुएशन में निकलता है जो उनके एंज़इटी की वजह बन जाती है
Freud कहते हैं कि उनके ट्रेन फोबिया की शुरुआत उस वक्त हुई थी जब उन्होंने बचपन में ट्रेन पर अपनी मां को विदाउट क्लोथ्स देखा था और वह उनकी तरफ अट्रैक्टेड हुए थे.
हालांकि Oedipus की यह थ्योरी अब आउटडेटेड समझी जाने लगी है दूसरी थ्योरी खासतौर पर मदर और चाइल्ड केयर रिलेशनशिप को समझने और एनालाइज करने की कोशिश करती है. ऐसा माना जाता है कि जो बच्चे अपनी मां से बहुत लंबे वक्त तक दूर रहते हैं वह एंज़ाइटी का शिकार हो जाते हैं और छोटी-छोटी चीज में एंगशियस होने लगते हैं.
रीसस (Rhesus) मंकीज़ पर हुई एक स्टडी से पता चलता है कि जो लंबे वक्त तक अपनी मां से दूर थे उन्हें एडल्टहुड में सोशल एबनॉर्मैलिटी, एग्रेशन के साथ ही एक लंबे टाइम के लिए इंजाइटी का भी सामना करना पड़ा. किसी स्ट्रेसफुल सिचुएशन में कोई कितना एंशियस होगा इसमें एक बड़ा रोल बचपन में उसके साथ उसकी मां के बर्ताव का है इसका मतलब यह है कि माएँ अपने बच्चों से एक खास तरीके से पेश आते हैं उनके डर को दूर कर हिम्मत भरता है. और जो बच्चे अपनी मां से दूर रहते हैं उनमें इस हिम्मत की कमी आ जाती है.
एक एक्सपेरिमेंट से पता चलता है कि जिन बच्चों की माएँ लविंग, केयरिंग और अपने बच्चों को अटेंशन देने वाली होती है वह बच्चे किसी भी नई सिचुएशन को लेकर कम एंशियस होते हैं जबकि वह बच्चे जिनकी माएँ खुद एंज़ाइटी का शिकार होती हैं वह बच्चे भी ज्यादातर सिचुएशन में एंजायटी का सामना करते हैं.
तू सवाल यह उठता है की ऑडी एसकेएसजेटी के पीछे की वजह क्या रही होगी तो इसका जवाब यह हो सकता है कि Freud Oedipus के भाई की मौत के बाद उनकी डिप्रेंस्ड हो गईं और अपने बड़े बेटे का खयाल रखना बंद कर दिया.
इस किताब के राइटर की मां को भी फोबिया और इंज़ाइटी थी. हो सकता है उसी वजह से ऑथर भी इनसाइटी के शिकार हुए हों
Oedipusके एग्जांपल से इस किताब के राइटर के एग्जांपल से के लाइफ एग्जांपल से एक चीज क्लियर होती नजर आती है कि कोई बच्चा कैसे रेज़ किया गया है इसका इस बात पर बहुत असर पड़ता है कि फ्यूचर में वह बच्चा इंजाइटी का शिकार होगा या नहीं.
एंग्जाइटी एक इवॉल्यूशनरी अडैप्टेशन है और ज्यादातर मामलों में यह एंज़ाइटी जेनेटिक होता है
हमारे सर्वाइवल के लिए हमारे अंदर होने वाले चेंजेज़ को इवॉल्यूशनरी अडैटेशन कहते हैं और इंज़ाइटी भी एक इवॉल्यूशनरी एडेप्टेशन है. हालांकि एंजाइटी के साथ रोजमर्रा की जिंदगी जीना काफी मुश्किल है लेकिन जरूरी नहीं है कि हर बार एंजाइटी नुकसानदायक और खराब ही हो.
सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट की थ्योरी कहती है कि अपने इर्द-गिर्द मौजूद खतरनाक चीज को लेकर हमारा सिक्सथ सेंस अलार्म बजा देता है जो एंज़ाइटी के रूप में बाहर आता है मिसाल के तौर पर अगर कोई शख्स सांप से या ऊंचे पहाड़ों से डरता है तो उसके जीने के चांसेस इन चीजों से ना डरने वालों के कंपैरिजन में ज्यादा हैं. मतलब हमारे अंदर किसी ऐसी चीज को लेकर ही फोबिया पैदा होता है जो हमारे लिए खतरनाक हो सकता है या कभी खतरनाक रहा हो. फॉर एग्जांपल जब इंसान ऐसे बस्तियों में रहते थे जहां पर सांप के काटने से लोगों की मौत हो जाती थी तो सांप को लेकर एक डर पैदा होने लगा और आज वह डर हमारे अंदर इंजाइटी के रूप में बचा हुआ है.
अब बात करते हैं क्लीनिकल इनसाइटी की जिन लोगों को क्लीनिकल इंजाइटी होती है उन्हें ऐसी चीजों से डर लगता है जो न कभी डेंजरस रहे हैं और न उनके अंदर खतरनाक होने की पॉसिबिलिटी होती है फॉर एग्जांपल चीज़ को लेकर ऑथऱ का डर यूजलेस है. यह भी पाया गया है कि कुछ इस तरह के जींस में क्लिनिकल इंज़ाइटी के चांसेस ज्यादा होते हैं
एंज़ाइटी का एक्सट्रीम लेवल बर्थ के कुछ हफ्तों बाद ही पता लगाया जा सकता है जिससे यह चीज क्लियर हो जाती है कि एक्सट्रीम लेवल ऑफ एंजाइटी के पीछे जेनेटिक रीजन है. स्टडी से पता चलता है कि 15 से 20 परसेंट बच्चे बर्थ के कुछ वक्त बाद ही बहुत ज्यादा एंशियस हो जाते हैं जो कि सारे बच्चों में नहीं होता और यही 15 से 20 परसेंट बच्चे अपने एडल्टहुड में पहुंचकर क्लीनिकल एंजाइटी या एक्सट्रीम इंजाइटी का शिकार हो जाते हैं. इस चीज को ऑथर खुद भी एक्सपीरियंस करते हैं उनकी बेटी को वही फोबिया हैं जो उनमे है जबकि उन्होंने अपनी बेटी की परवरिश बहुत ही लविंग और कैरिंग माहौल में की है.
इस डिस्कशन से यह चीज तो क्लियर हो गई कि इनवाइटी के पीछे जींस का एक बड़ा रोग है लेकिन अब सवाल उठता है की किस तरह के जींस ज्यादा रिस्पांसिबल होते हैं तो इसके जवाब में साइंटिस्ट कुछ नाम बताते हैं. Sathmin जीन हमारे अंदर डर के लिए रिस्पांसिबल होता है लेकिन जब इसे mice से अलग कर दिया जाए तो वह डर का एहसास भी खत्म हो जाता है. वहीं RGS2 नाम की जीन और एक्सट्रीम इंज़ाइटी के बीच रिलेशन होता है.
मतलब थोड़ी बहुत इंज़ाइटी फील करना किसी खास सिचुएशन को लेकर डर जाना नॉर्मल है जो हमारे अंदर सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट के तहत डिवेलप होती है लेकिन एक्सट्रीम इंजाइटी जिसमें मेडिकल कंडीशन जुड़ जाती हैं तो उनके पीछे बहुत बड़ा रोल जींस का है.
एंज़ाइटी को दवाइयों और ड्रग से बहुत ईज़िली इंफ्लुएंस किया जा सकता है
अभी तक हमने एंजाइटी की वजह को जानने की कोशिश की कैसे अगर किसी चीज में पोटेंशियल्स रेट होता है तो उस चीज से हमें इंजाइटी होने लगती है और दूसरा रीजन जेनेटिकल है लेकिन अब बात करते हैं एंजाइटी के फिजियोलॉजी की और कैसे इसे दवाइयों के जरिए बदला जा सकता है.
functional Magnetic Resonance Imaging यानि FMRI स्कैन से पता चलता है कि ब्रेन के किसी खास हिस्से में ज्यादा एक्टिविटी होने की वजह से इंज़ाइटी होती है यानी एंग्जाइटी हमारे ब्रेन के अंदर क्रिएट होती है.
जब हम फ्युचर की फिक्र में डूबे होते हैं तो सेरेबल कॉर्टेक्स के फ्रंटल लोब्स में एक्टिविटी बढ़ जाती है, वहीं जब पब्लिक स्पीकिंग की सिचुएशन से आती है और हम डर से भर जाते हैं तो हमारे एंटीरियर सिंगुलेट में एक्टिविटी बढ़ जाती है. क्लिनिकल एंज़ाइटी की वजह जानने के साथ हमें यह भी क्लियर रखना है कि यह ब्रेन के डिफेक्टेड न्योरोट्रांस्मिटर सिस्टम की वजह से होता है.
नॉर्मली एंशियस लोगों के कम्पैरिज़न में क्लिनिकली एंशियस लोगों में सैटिस्फैक्शन और हैप्पिनेस रेगुलेट करने वाले सेरोटिन जैसे न्युरोट्रांस्मिटर्स कम प्रोड्यूस होते हैं.
जब यह चीज़ें सामने आयीं कि दिमाग के इस हिस्से में एक्टिविटी बढ़ जाती है या सेरोटिन कम प्रोड्यूस होते हैं तो इन्हें बैलेंस आउट करने के लिए मेडिसिन का इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन मेडिसिन भी हर किसी के लिए नहीं है.
यह दवाइयां न्युरोट्रांस्मिटर्स पर असर डालती हैं. फॉर एग्ज़ाम्पल xanax नाम की दवा GABA न्यूरोट्रांसमीटर से जुड़कर काम करती है जोकि सेंट्रल नर्वस सिस्टम की एक्टिविटी को स्लो डाउन कर देता है नतीजतन पेशेंट को या जो भी एंज़ाइटी का सामना कर रहा है उसे काल्म फील होता है. Xanax के अलावा Ativan नाम की दवा बहुत पॉपुलर है. क्लिनिकल एंज़ाइटी के लिए दवाइयों का इस्तेमाल बहुत होता है. सिर्फ 2005 में Xanax और Ativan के 53 मिलियन प्रिस्क्रिप्शन दिए गये थे.
क्योंकि एंज़ाइटी कोई बीमारी नहीं है इसलिए इसके लिए दवाइयों का इस्तेमाल हमेशा डिस्कशन का टॉपिक रहा है. इन दवाइयों के साइड इफेक्ट के साथ इनका एडिक्शन भी हो सकता है. कुछ थ्योरीज़ तो यह भी कहती हैं कि इनका कोई खास असर नहीं होता बस इंसान अपनो सैटिस्फैक्शन के लिए यह दवाइयां खाता है. 2003 में हुई एक स्टडी यह भी बताती है कि तीन में से सिर्फ एक को ही एंटी एंज़ाइटी खाने के बाद बेहतर फील हुआ है.जहां तक एडिक्शन की बात है तो ऑथर खुद बताते हैं कि वह xanax और paxil नाम की दवाइयों के एडिक्ट हो गए थे एक बार उन्होंने दवाियों के बिना रहने की कोशिश की थी लेकिन बर्दाश्त नहीं हुआ और एक हफ्ते बाद ही उन्होंने दोबारा दवाइयां लेनी शुरू कर दी.
एंग्जाइटी ठीक करने में थेरेपी भी काफी असरदार साबित हुई है
अभी तक हमने बात की कि कैसे कुछ खास तरह की मेडिसिन हमारे ब्रेन के कुछ खास हिस्सों पर असर डाल करके हमारी इनसाइटी ठीक करने में काफी असरदार साबित हुई है लेकिन मेडिसिन एकलौता ट्रीटमेंट नहीं है एंजाइटी के लिए कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी या सीबीटी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है जिसके बारे में अब हम बात करेंगे. कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी के पीछे थ्योरी यह है कि जो एक खास तरह के बिहेवियर होते हैं जिन्हें हम एंक्शियस बिहेवियर भी कह सकते हैं उन्हें रेशनल थिंकिंग के जरिए कंट्रोल किया जा सकता है.
एक्स्पोज़र थेरेपी सीबीटी का एक हिस्सा है जिसका बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है इसमें पेशेंट से उस चीज का सामना कराया जाता है जिसे लेकर उसे इंज़ाइटी होती है और उसके सामने यह चीज साबित की जाती है जिसको लेकर वह डरते हैं उसमें डरने जैसा कुछ है ही नहीं. यह सिर्फ उनका ज़ेहन और उनका बिहेवियर जो उनके अगेंस्ट काम कर रहा है.
ऑथर को वोमिटिंग से डर लगता है उन्होंने इसका इलाज भी एक्सपोजर थेरेपी में ढूंढने की कोशिश की और उल्टी करने की दवाइयां ली ताकि वह अपने डर का सामना कर सके लेकिन चीजें एकदम उलट हो गई और दवाइयां लेने की वजह से ऑथर का गला ही चोक कर गया.
कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी करने वाले थैरेपिस्ट एंजाइटी की जड़ तक जाने की कोशिश करते हैं क्योंकि उनका मानना है कि इसकी असल वजह पेशन के दिमाग में ही होती है अॉथर की इंज़ाइटी दूर करने के लिए उनकी थेरेपिस्ट ने इमेजिनल एक्सपोजर का इस्तेमाल किया इसमें उन्होंने अॉथर से ऐसी सभी चीजों को लिस्ट आउट करने के लिए कहा जिससे उन्हें डर लगता है और फिर एक-एक करके उन चीजों को इमेजिन करके अपना एक्सपीरियंस शेयर करने को कहा इस पूरे प्रोसेस में एक बार तो अॉथर रोने लगे और उन्हें पता ही नहीं था कि आखिर वह रो क्यों रहे हैं ऑथर के इस रोने की वजह से ही उनकी थैरेपिस्ट को लगता है कि वह एंग्जाइटी के लिए ट्रीटमेंट के सही रास्ते पर हैं आज भी ऑथर दवाइयों और बिहेवियरल थेरेपी की मदद से अपनी इंज़ाइटी का इलाज ढूंढ रहे हैं .
एंजाइटी का कोई एक सॉलिड इलाज नहीं है लेकिन ऐसे बहुत सारे तरीके हैं जिनकी मदद से एंजायटी कम की जा सकती है और इस किताब को लिखने के पीछे भी ऑथर का यही मकसद था कि उन्हें इसके जरिए कोई ऐसा रास्ता जरूर मिलेगा जिससे उनकी इंज़ाइटी कम हो सके.
कुल मिलाकर
क्लीनिकल एंजाइटी बहुत कॉमन चीज है और जितना हम इसके बारे में सोच पाते हैं यह उससे भी ज्यादा गंभीर बीमारी है लेकिन ऐसे बहुत सारे तरीके हैं जिनकी मदद से क्लीनिकल इंज़ाइटी को ट्रीट और कम किया जा सकता है. हालांकि इंज़ाइटी को अपने कंट्रोल में कर पाना किसी इंडिविजुअल के हाथ में नहीं है लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि जिन लोगों को इंजाइटी की प्रॉब्लम होती है उनकी जिंदगी बहुत बुरी है. कोशिश करके अपनी लाइफ बेहतर की जा सकती है
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