रिस्क मैनेज करने के ज्यादातर तरीके गलत क्यों है
दो लफ्जों में
द फेलियर ऑफ रिस्क मैनेजमेंट (2009), रिस्क मैनेजमेंट की हिस्ट्री, मैथड और मिथ के बारे में एक कंपलीट गाइड है। यह समरी बताती है कि रिस्क मैनेज करने का आम तरीका गलत क्यों है और इसे कैसे सही किया जाए, यह किताब रिस्क का अंदाज़ा लगाने और कम करने का ट्राइड और ट्रयू तरीका भी बताती है।
किनके लिये है?
- बिजनेस ओनर्स और इन्वेस्टर्स
- जो लोग रिस्क की जानकारी में दिल्चस्कपी रखते हैं
- हर फील्ड के मैनेजर्स के लिए
लेखक के बारे में
डगलस डब्ल्यू हबर्ड, अप्लाइड इंफॉर्मेशन इकोनॉमिक्स, नाम के डिसीजन एनालिसिस मेथड के डेवलपर हैं। वह हबर्ड डिसीजन रिसर्च के फाउंडर और 'हाउ टू मेजर एनीथिंग' के लेखक हैं।
रिस्क मैनेजमेंट का मतलब, पॉसिबिलिटीज को लेकर स्मार्ट होना है
किसी भी मौसम फोरकास्ट के पीछे बहुत ही पेचीदा मॉडल्स और आंकड़ों के भंडार होते हैं। एक बार एनालिसिस करके डाटा प्रेजेंट कर दिया जाए, तो आप बड़ी अक्यूरेसी से, यह पता लगा सकते हैं कि आप पार्क में पिकनिक कर पाएंगे या नहीं। आप सोच रहे होंगे कि यह उतना भी मैटर नहीं करता, क्योंकि आप रेनकोट पहन सकते हैं। हालांकि, वोलेटाइल मार्केट में काम करने वाली मल्टी बिलियन डॉलर कंपनी या सुनामी और भूकंप का अंदाजा लगाने वाले साइंटिस्ट के लिये, रिस्क और रिस्क मैनेजमेंट, एक बहुत मुश्किल काम है। और पहले के मुकाबले अब ज्यादा इंपॉर्टेंट हो गया है। लेकिन, बहुत सारे तरीके जो रिस्क को समझने और उन्हें कंट्रोल करने के लिए इस्तेमाल होते हैं, गलत हैं। लकिली इस प्रॉब्लम से निकलने के रास्ते हैं। यह समरी आपको बताएगी, "कैसे"। इस समरी में आप जानेंगे कि क्यों एक्सपर्टस की राय पुरानी हो चुकी है? मोंटे कार्लो का रिस्क मैनेजमेंट से क्या नाता है? और आप उस इवेंट के रिस्क का अंदाजा कैसे लगायेंगे जो पहले कभी नहीं हुआ हो?
आपने रिस्क मैनेजमेंट का नाम तो सुना होगा, यह उन जार्गन्स का हिस्सा है जो आर्गेनाइजेशन और गवर्नमेंट यूज करती हैं, लेकिन अब इस शब्द का इस्तेमाल आम लोग भी करते हैं। रिस्क मैनेजमेंट की बहुत सारी डिफिनेशन होने के बावजूद, यह चीजों को सिंपल रखने में मददगार है। शुरुआत रिस्क से करते हैं, आप कह सकते हैं कि रिस्क किसी अनडिज़ायरेबल इवेंट की पॉसिबिलिटी और उसका साइज है। एग्जांपल के लिए साइंटिफिक और मैथमेटिक्स में रिस्क किसी इफेक्ट की प्रोबैबिलिटी और मेग्नीट्यूड को कहते हैं। लेकिन प्रोबेबिलिटी और मेग्नीट्यूड क्या मेजर करते हैं?
प्रोबेबिलिटी हमेशा अजीब घटनाओं का अंदाजा लगाती है (एग्जांपल के लिए, आपके घर पर बिजली गिर गई), जबकि मेग्नीट्यूड कई तरीकों से मापा जा सकता है, आमतौर पर पैसों या जिंदगियों के नुकसान से जैसे कि किसी एक्सीडेंट में कितने पैसों का नुकसान हुआ या फिर कितने लोग मारे गए इसे मेग्नीट्यूड कहते हैं। याद रखिए कि यह अनचाहा हादसा कुछ भी हो सकता है, नेचुरल डिजास्टर से लेकर किसी बड़े प्रोडक्ट के रिकॉल और पॉलिटिकल उठापटक तक। अब आप रिस्क के बारे में जान चुके हैं, तो इसे मैनेज करने का क्या मतलब होता है।
रिस्क मैनेजमेंट का मतलब खतरा कम करने के लिए अपने रिसोर्सेज का बेहतरीन इस्तेमाल करना है। मैनेजमेंट की सबसे कॉमन डिफेनेशन, "अपने मकसद को पूरा करने के लिए, प्लानिंग, ऑर्गेनाइजेशन, कोऑर्डिनेशन और रिसोर्सेज का सही इस्तेमाल करना है।" दूसरी तरह कहें तो, आप जो चाहते हैं उसे पाने के लिए अपने पास मौजूद हर सहूलियत का इस्तेमाल करना है।
किसी भी गोल को अचीव करने के लिए रिस्क मैनेजर उस मकसद के रास्ते में आने वाले रिस्क को कम करने की कोशिश करता है। दूसरे मैनेजमेंट टास्क की तरह ही रिस्क मैनेजमेंट भी, पैसे और वक्त जैसे लिमिटेड रिसोर्स का बेहतरीन इस्तेमाल करना ही है। आप रिस्क मैनेजमेंट के बारे में जान चुके हैं, अब यह जानने का वक्त है कि रिस्क मैनेजमेंट कैसे डेवलप्ड हुआ और आज के वक्त में इस्तेमाल होता है।
दुनिया भर की कंपनियों में रिस्क मैनेजमेंट की इंपॉर्टेंन्स बढ़ती जा रही है
यह कहा जा सकता है कि ऑर्गेनाइजेशनल रिस्क मैनेजमेंट तब शुरू हुआ जब किसी राजा या लीडर ने अपने शहर की दीवारों को मजबूत करने का फैसला लिया या फिर कड़ी सर्दी के दिनों में नियमों की सख्ती कम कर दी। लेकिन रिस्क मैनेजमेंट का मतलब पहले से बहुत बदल चुका है, कंप्यूटर के आगमन ने इस फील्ड को बहुत तेजी से बदल दिया है लेकिन डिजिटलाइजेशन से पहले 1940 में न्यूक्लियर पावर और ऑयल एक्सपोलोरेशन ने रिस्क मैनेजमेंट की मुश्किलों को बढ़ा दिया था, और यह एक बड़ी वजह है, कि काम का फील्ड अलग होने के बावजूद, कंपनियों के लिए रिस्क मैनेजमेंट की इंपॉर्टेंस बराबर है। तो इतने इंपॉर्टेंट फील्ड में रिस्क मैनेजमेंट कैसे बड़ा?
वर्ल्ड वॉर सेकंड और बाद में कोल्ड वॉर के दौरान रिस्क एनालिसिस का इस्तेमाल एक बहुत बड़ी कामयाबी रही थी। जंग के दौरान, "वॉर क्वान्ट्स", इंजीनियर और इकोनॉमिस्ट्स का एक ग्रुप, को कैलकुलेटिव वे में बहुत बड़ी ट्रेनिंग दी गई थी। उन्होंने इस तकनीक का इस्तेमाल तरह-तरह की चीजों का पता लगाने में किया, जैसे कि, दुश्मन की प्रोडक्शन कैपेसिटी और अटैक के रिस्क के बारे में।
लेकिन आज रिस्क मैनेजमेंट का इस्तेमाल जंग के अलावा बहुत सारी जगह पर होता है, हमारे वक्त में, गवर्नमेंट इंस्टीट्यूशन से लेकर कॉर्पोरेशन तक सभी अपने फील्ड में आने वाले रिस्क का अंदाजा लगाते हैं। इसे इस तरह समझिए, कि 2007 में, 'द इकॉनोमिस्ट', 'एओन कॉर्पोरेशन', एक इंश्योरेंस ब्रोकर और 'प्रोविटी', एक रिस्क मैनेजमेंट कंसलटिंग फर्म ने अलग-अलग स्टडी ऑर्गेनाइज की। इस सर्वे ने 29 देशों के 320 आर्गेनाइजेशन में रिस्क और रिस्क मैनेजमेंट के रोल के बारे में पता लगाया। नतीजा?
हालांकि, यह स्टडीज अलग-अलग की गई थी और उनका फोकस भी अलग फैक्टर्स पर था, उनके बीच में एक चीज़ सेम थी। तीनों ही स्टडी ने पता लगाया कि ऑर्गेनाइजेशनल लेवल पर रिस्क मैनेजमेंट का फंक्शन बढ़ता जा रहा है। इस सर्वे के हिसाब से 35 से 60 परसेंट कंपनियों ने या तो चीफ रिस्क ऑफिसर हायर कर रखा है या हायर करने की सोच रही है। एओन की स्टडी बताती है कि सर्वे की गई 88% कंपनियों के बोर्ड "रिस्क मैनेजमेंट रिव्यु करते हैं"।
तो यह एकदम साफ है, कि रिस्क मैनेजमेंट जरूरी है, लेकिन एक दिक्कत है, रिस्क मैनेजमेंट के लिए इस्तेमाल किया जा रहा तरीका गलत है। कैसे?
शुरुआत के लिए, आमतौर पर "वेरी लाइक्ली" जैसे शब्दों का इस्तेमाल रिस्क को डिस्क्राइब करने के लिए किया जाता है और इसका मतलब हर शख्श के लोगों के लिए अलग है। आप किसी भी ग्रुप में स्टेबल अंडरस्टैंडिंग कैसे बरकरार रखेंगे जब किया जा रहा काम "लेवल 5" जितना असरदार है। दूसरी तरह कहें, तो हम सब जानते हैं कि अगर किसी चीज की 'बहुत कम' प्रोबेबिलिटी है तो उसके 'मीडियम' प्रोबेबिलिटी वाले इवेंट के कंपैरिजन में होने की पॉसिबिलिटी कम है, लेकिन कितनी कम? ऐसा कह पाना नामुमकिन है।
अपनी बात को साबित करने के लिए, आर्थर ने एक क्लाइंट, जिसने रिस्क एसेसमेंट की वर्कशॉप कर रखी थी, से पूछा कि किसी भी इवेंट के बारे में "वेरी लाइक्ली" से क्या मतलब है। क्लाइंट ने जवाब दिया इसका मतलब है की उस इवेन्ट के होने के 20 परसेंट ही चांसेस हैं, उसका कलीग एग्री नहीं कर रहा था, और बहस शुरू हो गई। कुछ को इसकी पॉसिबिलिटी बहुत कम लगती है और कुछ को बहुत ज्यादा।
यह इकलौती ऐसी वजह नहीं है जो बताती है कि रिस्क मैनेजमेंट का कॉमन तरीका गलत है। दूसरा मुद्दा यह है कि स्कोरिंग के यह तरीके रिस्क के बीच में कोई रिलेशन स्टैबलिश नहीं करते। एग्जांपल के लिए, अक्सर रिस्क की वजहें आपस में जुड़ी होती हैं, चाहे कोरिलेशन या कॉमन-मोड रिस्क हो वह रिस्की नतीजों की पॉसिबिलिटी बढ़ा देता है। प्लेन के हाइड्रोलिक कंट्रोल को ही ले लीजिए, अक्सर एयरक्राफ्ट में आईडेंटिकल सिस्टम होते हैं, उन तीनों के ही एक के बाद एक फेल हो जाने की पॉसिबिलिटी बिलियन में एक है।
लेकिन एक प्रॉब्लम है, कॉमन-मोड रिस्क, मतलब, एक ऐसे काम का पोटेंशियल जो या तो दूसरे काम को ट्रिगर कर सकता है या उसके होने की पॉसिबिलिटी बढ़ा सकता है। इस तरह की सिचुएशन में कॉमन-मोड रिस्क हाइड्रॉलिक ट्यूब्स के एक-दूसरे के नजदीक इंस्टॉल होने से रिस्क पैदा होता है। इस तरह की नजदीकी उनके एक साथ फेल हो जाने की पॉसिबिलिटी पैदा करती है। एक टूटे हुए प्रोपेलर का शॉट तीनों को अलग कर देता है। अनफॉर्चूनेटली यह मामला यहीं खत्म नहीं होता। पॉपुलर तरीकों के साथ प्रॉब्लम यह है, कि वह एक्सपर्ट की राय पर बेस्ड होते हैं। इसके बारे में हम आगे जानेंगे।
एक्सपर्टस के ओपिनियन अक्सर बायस्ड होते हैं
जाने-माने एक्सपर्ट्स के ओपिनियन की इज्जत होती है और लोग ज्यादातर चीजों के लिए उसी को मानते हैं, और रिस्क मैनेजमेंट में भी ऐसा ही होता है। लेकिन हो सकता है, रिस्क समझने में एक्सपर्ट ऑपिनियन हेल्पफुल न हों। क्यों?
साइकोलॉजिकल रिसर्च बताती है कि लोग अपनी कैपबिलिटीज़ का ज्यादा अंदाजा लगाने लगते हैं। इस बारे में सोचिए कि इस स्टैनफोर्ड के 87% एमबीए स्टूडेंट्स ने अपनी कॉलेज परफॉर्मेंस क्लास में टॉप रखी। एक और फेमस स्टडी बताती है कि ज्यादातर लोग अपने आप को एवरेज ड्राइवर से बेहतर समझते हैं, हम जानते हैं कि यह गलत है। लेकिन इसका सबूत यह है, कॉर्नेल के साइकोलॉजिस्ट क्रूगर और डायनिंग ने एक किताब पब्लिश की जिसका नाम अनस्किल्ड एंड अनअवेयर: हाउ डिफिकल्टीज़ इन रिकोर्गनाइसिंग वन्स ओन इनकम्पिटेंस लीड टू इन्फ्लेटेड सेल्फ अवेयरनेस, जो बताती है कि लगभग पॉपुलेशन का दो तिहाई हिस्सा अपने आप को रीजनेबल, ह्यूमर्ड और ग्रामेटिकल समझता है लेखक के हिसाब से एक्सपर्ट कहे जाने वाले लोग भी इन आंकड़ों से इफेक्टेड हैं। वह अपने अंदाज़ों को लेकर ज्यादा ही कॉन्फिडेंट हो जाते हैं और रिस्क को अंडरस्टीमेट कर देते हैं।
रिस्क मैनेजमेंट को लेकर एक्सपर्टस की राय में एक और प्रॉब्लम है, यह सच है कि लोगों के एक्सपीरियंस बायस होते हैं- इसी सच का इस्तेमाल करके, इकोनामिक साइंस में नोबेल मेमोरियल प्राइस पाने वाले साइकोलॉजिस्ट, डेनियल काहनमैन ने बताया है कि प्रोबैबिलिटी का अंदाजा लगाने की हमारी काबिलियत गलत है। लेकिन कैसे?
एक सिंपल सच यह है कि यह हमारी मेमोरी परफेक्ट नहीं है और हम कंप्यूटर की तरह काम नहीं कर सकते। इसलिये हमारे दिमाग पर बायसेस का असर होता है जैसेकि पीक एंड रुल, जो बताता है कि हम आम तौर पर एक्सट्रीम और हाल में हूये वाक्यों को बाकी के मुकाबले अच्छे तरीके से याद रखते हैं, एग्जांपल के लिए समझ लीजिए, अगर आपकी पिकनिक बारिश की वजह से बर्बाद हो गई है और उस रोज़ वेदर फोरकास्टिंग में बारिश के चांसेस 5 परसेंट ही बताए गए हों, तो आप के दिमाग में यही बात चढ़ जाएगी कि वेदर फोरकास्टिंग हमेशा गलत ही होती है, जबकि हम इस बात पर कभी ध्यान देते कि यह वेदर फोरकास्टिंग कितनी बार सही होती है ।
एक्सपर्ट्स के ओपिनियन भी बाकियों की तरह बायस होते हैं, रिस्क को बेहतर तरीके से पहचानने के लिए सबसे एक्यूरेट मेथड में भी किसी ना किसी एक्सपर्ट की एडवाइस की ज़रूरत होती है। अच्छी बात यह है कि एक्सपर्ट ओपिनियन को इंप्रूव करने का तरीका है। इसे कैलिब्रेशन ट्रेनिंग कहते हैं और यह कुछ इस तरीके से काम करता है।
कैलिब्रेशन ट्रेनिंग का मेन मकसद लोगों को अनसर्टेंटीज़ के बारे में एक्यूरेटली बताना है। इस ट्रेनिंग का सबसे इंपॉर्टेंट हिस्सा रिपीटेशन और फीडबैक है। कैलिब्रेट करने के कई तरीके हैं।
फॉर एग्जांपल, स्ट्रेटफारवर्ड कैलिब्रेशन ट्रेनिंग रेंजेस टेस्ट करने के लिए की जाती है। यह ट्रेनिंग खासतौर पर मॉन्टे-कर्लो सिमुलेशन (एक ऐसा टूल जिसके बारे में हम बाद में डिटेल से जानेंगे) जैसे प्रोबेबिलिटी मॉडल के लिए अंदाज़े को कैलिब्रेट करने के लिए इंपॉर्टेंट है।
अभी हम जानेंगे, कि रेंज टेस्टिंग कैसे काम करता है।
टेस्ट में भाग लेने वालों से कुछ ऐसे सवाल किए जाते हैं, कि सबसे कम उम्र के स्पेस में जाने वाले इंसान की उम्र क्या थी? या एक साल पहले 1 टन स्टील के लिए डॉलर की क्या कीमत थी? उसके बाद उन्हें कहा जाता है कि वह सबसे कम और सबसे ज्यादा कीमत का अंदाजा लगाए, सबसे कम अंदाज़े का मतलब है कि वह 95% श्योर है कि असल वैल्यू ज़्यादा होगी और सबसे ज्यादा अंदाज़े का मतलब है कि वह 95% श्योर है कि असल वैल्यू कम होगी।
दूसरा टेस्टिंग मेथड पोस्टमार्टम एनालिसिस है। इस एक्सरसाइज में टेस्ट में भाग लेने वालों से कहा जाता है कि वह अज़्यूम करे कि ऐसे डिजास्टर पहले भी आ चुके हैं, और सोच कर जवाब दे कि इनके पीछे क्या वजह हो सकती है। यह तरीका अकेले सोचने के मुकाबले ज़्यादा इफेक्टिव और क्रिएटिव रिजल्ट पाने में कारगर साबित हुआ है।
याद रखिए, एक्सपर्ट्स, जिन्होंने इन तरीकों का इस्तेमाल करके कैलिब्रेट किया है वह प्रोबेबिलिस्टिक रिस्क-एसेसमेंट मेथड के डाटा के लिए बेस्ट सोर्स हैं। लेकिन रिस्क एसेसमेंट का बेस्ट मेथड क्या है?
मॉन्टे-कर्लो सिमुलेशन का इस्तेमाल करके अपने रिस्क का एक्यूरेट अंदाजा लगाया जा सकता है
मॉन्टे-कर्लो सिमुलेशन, रिस्क एसेसमेंट का एकदम बेस्ट तरीका है। इसका इस्तेमाल न्यूक्लियर पावर, एनवायरमेंटल पॉलिसीज और ऑयल एक्सप्लोरेशन जैसी चीजों में रिस्क एसेसमेंट के लिए होता रहा है। यह कैसे काम करता है?
मॉन्टे-कार्लो टेस्ट रिस्क एनालिसिस मेथड को प्रोड्यूस करने के लिए किसी भी रिस्क और उसके प्रोसेस से जुड़े डाटा वेरिएबल को एनालाइज़ करता है। दूसरी तरह कहे तो monte-carlo उन सभी फैक्टर्स को डिस्प्ले करता है जो रिस्क की पॉसिबिलिटी और मेग्नीट्यूड को इनफ्लुएंस करते हैं। और फिर उसका इस्तेमाल बहुत सारे सेनैरियो के लिए करते हैं जो किसी भी रिज़ल्ट की असल पॉसिबिलिटी का पता लगाता है। एग्जांपल के लिए इमेजिन कीजिए कि रेंचेस बनाने के लिए आप किसी नई फैक्ट्री में 1.5 मिलियन डॉलर इन्वेस्ट करते हैं। यहाँ, फैक्ट्री कितना प्रोड्यूस कर सकती है, एक रेंच के लिए आपको एवरेज अमाउंट क्या मिल सकता है और हर साल एवरेज डिमांड क्या है, यह सारी चीजें, वेरिएबल्स हैं। इन वैरियेबल्स को कंबाइन करके आप अपने पहले साल का रिटर्न या पैसे ना बनाने पाने का जोख़िम जान सकते हैं। अगला कदम?
एक बार आपके वैरियेबल्स सही जगह पर हैं तो आपको उनके लिए रियलिस्टिक रेंजेस सेट करने की जरूरत है। एक आइडियल सेनैरियो के हिसाब से आपके पास टेस्ट के अनुभव से काफी डेटा होगा, लेकिन ज्यादातर मामलों में कुछ हद तक आपको एक्सपर्ट के ओपिनियन पर भरोसा करना होगा, यकीनन, कैलिब्रेशन ट्रेनिंग के जरिए इंप्रूव्ड एक्सपर्ट्स।
तो मान लीजिए कि आपका एक्सपर्ट, 400,000 से 1 मिलियन प्रोडक्शन कैपेसिटी के लिए, प्राइस बाउंड्री $0.7 से $2.5 और डिमांड रेंज 300,000 से 1.5 मिलियन का अंदाजा लगाता है। आपका मॉडल तब 10,000 या उससे ज्यादा सेनैरियो क्रिएट करता है और बताता है कि हर सिचुएशन में आपको कितना फायदा या नुकसान होगा। जब तक आपके वेरिएबल्स एक जैसे रहते हैं, इसका मतलब है कि सभी रिज़ल्ट्स रियल रिटर्न होंगे।
याद रखिए यह हाइपोथेटिकल आसान था और इसमें वैरियेबल्स के बीच कोरिलेशन जैसी ट्रिकी चीजें नहीं आती, जैसाकि डिमांड और प्राइस के बीच में होती हैं। आप एक स्टैंडर्ड सिमुलेशन में 50 से ज्यादा वेरिएबल्स से डील करते हैं जो आपस में जुड़े होते हैं।
Monte-carlo सिमुलेशन जैसे कॉन्पिटेटिव प्रोबेबिलिटी की सबसे कॉमन कमी यह है कि किसी भी इवेंट को सिम्युलेट करने के लिए ज़रुरत भर डेटा नहीं होता। जानकारों का मानना है कि इस तरह के तरीके स्कोरिंग जैसे सॉफ्ट मेथड में ज्यादा अपनाये जाते हैं, लेकिन यह याद रखिए कि इफेक्टिव सिमुलेशन के लिए जरूरी डेटा हासिल करने का कोई तरीका नहीं है, स्कोरिंग मेथड और एक्सपर्ट ऑपिनियन को जस्टिफाई करने के लिए इस क्लेम का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन हकीकत में, बेहतर ऑप्शन हमारे पास मौजूद हैं। इंश्योरेंस कंपनी और न्यूक्लियर पावर इंडस्ट्री जैसे सेक्टर इमैजिनरी इवेंट्स को कैलकुलेट करते हैं। एग्जांपल के लिए, न्यूक्लियर पावर कंपनियां उस इवेंट के लिए बहुत सारे एक्सपेरिमेंट्स करती हैं जिसके होने के चांसेज़, 500 साल में एक बार है- इतना वक्त तो कंपनी की खुद की पहचान को नहीं हुआ होता। वह ऐसा कैसे कर लेते हैं?
डीकंस्ट्रक्टिव मॉडल का इस्तेमाल किया जाता है, इस केस में, न्यूक्लियर पावर कंपनियां अपने कंपोनेंट्स को डीकंस्ट्रक्ट करती हैं और हर कंपोनेंट के लिए फेलियर की पॉसिबिलिटी का आकलन करती हैं। यह कारगर इसलिए होता है क्योंकि कुछ डिजास्टर कभी नहीं आए और उन से रिलेटेड कोई डाटा भी नहीं होता। पावर प्लांट बनाने वाले हर पार्ट के फेलियर की पॉसिबिलिटीज को लेकर न्यूक्लियर पावर इंडस्ट्री के पास अच्छी खासी रिसर्च और उन से रिलेटेड डाटा होते हैं। पावर प्लांट बनाने वाले इन पार्ट्स में ह्यूमन एरर, वाल्व (एक तरह की डिवाइज़) जैसी दूसरी चीजें शामिल हैं।
डीकंस्ट्रक्शन की यह टेक्निक ज्यादातर सिचुएशंस में अप्लाई की जा सकती है। आप इस बात से हैरत में पड़ जाएंगे कि अपने रिस्क एसेसमेंट के टॉपिक को ध्यान में रखकर और उस पर रिसर्च करके आपको कितना कुछ सीखने को मिल सकता है। एक बार आपने डाटा इकट्ठा कर लिया तो किसी ऐसे शख्स ने कंसल्ट कर सकते हैं जिसे कॉम्पोनेंट और रिस्क मैनेजमेंट मॉडल के रिलेशनशिप के बारे में अच्छे से मालूम हो। और फिर मॉडल की मदद से इन अलग-अलग हिस्सों के फेल होने या कामयाब होने के चांसेस का पता लगाया जा सकता है, यह इस बात का भी पता लगा सकता है कि डिजास्टर कितना भयानक हो सकता है, इसी तरह आप उस इवेंट से जुड़े रिस्क का पता लगा सकते हैं जो कभी नहीं हुआ।
अपने मॉडल को फैक्ट से कंपेयर कीजिए और समझिये कि और कौन सी इनफॉरमेशन आपके लिए फायदेमंद हो सकती है
किसी भी प्रोबेबिलिटी कैलकुलेशन की एक्यूरेसी इस्तेमाल किए गए मॉडल और पैरामीटर पर डिपेंड करती है। ऐसे में आप अपने अंदाज़ों को ग्राउंड फैक्ट से कंपेयर करके अपने मॉडल की एक्यूरेसी इंश्योर कर सकते हैं। ऐसा क्यों?
क्योंकि अगर आप अपनी प्रिडिक्शन के दौरान रियल फैक्ट्स को नजरअंदाज कर देते हैं तो आप अपनी गलतियों का पता नहीं लगा सकेंगे, जैसे कि ऐसे आंकड़े जो आपकी कैल्कुलेशन में है ही नहीं। यह जानकारी आपको अपनी कमी पहचानने और आपके प्रोबेबिलिस्टिक टूल को बेहतर करने में मदद करेगी। आप कैसे जानेंगे कि रिस्क एनालिसिस करना आप के ऑपरेशन के लिए फायदेमंद है भी या नहीं?
इसे जानने के लिए आपको ज्यादा जानकारी की कीमत समझनी होगी। एग्जांपल के लिए मान लीजिए, रिस्क एनालिसिस का मकसद खतरा कम करना होता है, क्योंकि बिजनेस के मामलों में बात हमेशा पैसे बचाने की ही होती है। इसलिए यह जानना जरूरी है कि रिस्क एक्सपर्ट्स एडिशनल इंफॉर्मेशन की क्या कीमत समझते हैं। फॉर एग्जांपल, अगर आप किसी सर्वे पर $8,000 खर्च करके, सबसे कम रिस्क वाली सिचुएशन में $30,000 सेव करते हैं, तो यह कोई फायदे की बात नहीं है।
लेखक के एक्सपीरियंस के हिसाब से, लोग एडिशनल इंफॉर्मेशन की कीमत समझने में जरा सा भी वक्त नहीं देते। आप कुछ स्टेप्स के ज़रिये अपने लिए रिस्क एनालिसिस की इंपॉर्टेंस समझकर, इन गलतियों से बच सकते हैं।
यह जानने से शुरू कीजिए कि आपकी एक्सपेक्टेड अपॉर्चुनिटी लॉस क्या है, यह प्रोबेबिलिटी हर सेनैरियो में पैसे डूबने की पॉसिबिलिटी को इन्वेस्ट किए जा रहे पैसे से मल्टीप्लाई करती है। चलिए मान लेते हैं कि आप के नुकसान की पॉसिबिलिटी $60,000 है। अब आप जानते हैं कि इन्वेस्टमेंट के बारे में जानने के लिए आप कितना पैसा खर्च कर सकते हैं। (मतलब उस रिस्क एनालिसिस पर आप कितना खर्च करना चाहेंगे जो आपको इन्वेस्टमेंट के रिजल्ट की प्रिडिक्शन करके बता सके)
एक बार आप इसका पता लगा लेते हैं, तो अब बारी उस आंकड़े को जानने की है, जो आपके टार्गेट के लिये रिस्क मॉडल के पैरामीटर में सबसे ज्यादा कंट्रीब्यूट करता है- और इस केस में वह टारगेट आपकी इन्वेस्टमेंट रिटर्न है। एग्जांपल के लिए प्रोडक्ट की एग्जैक्ट कीमत का अंदाजा लगा लेने से आप अपने मुनाफे का भी अंदाजा लगा सकेंगे।
रिस्क को बेहतरीन तरीके से मैनेज करने के लिए कंपलीट ऑर्गेनाइजेशनल स्ट्रैटिजी का इस्तेमाल कीजिए। रिस्क का अंदाजा लगाने के लिए सही रिस्क मैनेजमेंट टूल बनाना, इस्तेमाल करना और उसे मेंटेन रखना बहुत ज़रुरी है, लेकिन एक परफेक्ट टूल से भी रिस्क मैनेज करते वक्त बहुत सारी रुकावटें आती हैं, जैसे कि रिसोर्सेज, अथॉरिटी और ऑर्गेनाइजेशनल साइलोस, एक तरह की स्ट्रक्चरल प्रॉब्लम जो इंफॉर्मेशन के बीच में बैरियर बन जाती है।
आप सोच सकते हैं, कि हर मैनेजर रिस्क मैनेजर होता है, क्योंकि हर मैनेजर को रिस्क और रिटर्न का आकलन करना ही होता है। अक्सर मैनेजर अपने एरिया का रिस्क बहुत अच्छे तरीके से समझ लेते हैं। लेकिन जब एक बड़े लेवल पर डिसीजन लेने की बात आती है जो कई डिपार्टमेंट पर लागू होगा, तो आपको एनालिसिस के लिये कंप्रिहेंसिव अप्रोच की जरूरत है। क्यों?
क्योंकि यह कंप्रिहेंसिव अप्रोच ऑर्गेनाइजेशन में होने वाली स्ट्रक्चरल प्रॉब्लम, अपनी मनमर्जी करने वाले डिपार्टमेंट्स और उन मैनेजर्स से निपटने में मदद करता है जो दूसरों से इंफॉर्मेशन नहीं शेयर करना चाहते।
इसलिए एक ऐसा डिपार्टमेंट होना बहुत जरूरी है जो सब्जेक्ट एक्सपर्ट और डिसीजन मेकर को इकट्ठा करके रिस्क-रिलेटेड डिसीजन काे रिव्यू और स्टैंडर्डाइज करे। क्योंकि ऐसे डिपार्टमेंट्स रिस्क और ऑर्गेनाइजेशन के रिलेशनशिप पर ध्यान रखने के साथ ही, उन एक्सपर्ट्स और स्टेकहोल्डर्स के साथ तालमेल बिठा सकते हैं, जो रिस्क और रिटर्न एसेसमेंट के लिए जरूरी हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, एक स्टैंडर्डाइज्ड रिस्क एसेसमेंट प्रोसेस होने की वजह से आप इंपीरिकल डाटा जोड़कर, सेनेरियो लाइब्रेरी बना करके अपने मौजूदा रिस्क मॉडल को बेहतर बना सकते हैं, सेनेरियो लाइब्रेरी-स्टैंडर्ड कॉर्पोरेट के रिस्क सिनेरियो का कलेक्शन जो वेरिएबल्स और कोरिलेशन से भरा हुआ हो। और इस तरह से यह टूल आपके ऑर्गेनाइजेशन में मौजूद हर शख्स के लिए स्टैंडर्ड की तरह काम कर सकता है।
कुल मिलाकर
ज्यादातर रिस्क मैनेजमेंट मेथड में कमी होती है, क्योंकि वह कोलिटेटिव डिस्क्रिप्शन यानी नंबरों के खेल पर बेस्ड होते हैं और ह्यूमन बायसेस (मतलब रिस्क मैनेजमेंट एक्सपर्ट का दोहरा बिहेवियर) और रिस्क के बीच के रिलेशनशिप को नजरअंदाज कर देते हैं। इसलिए रिस्क को समझने और बेहतर तरीके से मैनेज करने के लिए प्रोबेबिलिस्टिक मॉडल का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जो काबिलियत रखने वाले एक्सपर्ट्स और ढेर सारे डाटा पर बेस्ड होता है।
येबुक एप पर आप सुन रहे थे The Failure of Risk Management by Douglas W. Hubbard
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