Adult Children of Emotionally Immature Parents.....

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Adult Children of Emotionally Immature Parents
How to Heal from Difficult, Rejecting, or Self-involved Parents (ग़लत परवरिश की वजह से भी इंसान पूरी तरह से टूट सकता है)

दो लफ्ज़ों में
साल 2015 में रिलीज़ हुई बुक “Adult Children of Emotionally Immature Parents” एक बेहद नाज़ुक टॉपिक के ऊपर रौशनी डालने का काम करती है. इस किताब में ऐसे एडल्ट्स की बात की गई है. जिनका बचपन distant, rejecting, या फिर  self-involved parents के साथ बीता है. यानि सरल शब्दों में कहें तो उनके पैरेंट्स “Immature Parents” की कैटगरी में आते थे. आप इस बुक समरी को step-by-step guide की तरह भी समझ सकते हैं. जिसकी मदद से आपके पुराने सारे घांव भर जाएंगे. 

ये बुक समरी किसके लिए है? 
-किसी भी फील्ड के स्टूडेंट्स के लिए 
- Adult children के लिए 
-ऐसा कोई भी जो पैरेंट्स बनना चाहता हो 
-ऐसा कोई भी जिसे family psychology में इंटरेस्ट हो 
लेखक के बारे में 
आपको बता दें कि इस किताब का लेखन खुद क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट ने किया है. जिनका नाम Lindsay C. Gibson है. इनको psychotherapy for adult children का सालों का अनुभव है. जिसे इन्होने बाखूबी इस किताब में बयाँ किया है.

emotional intimacy” की कमी की वजह से अकेलेपन का जन्म होता है
इस सफर की शुरुआत करने से पहले, हम सभी को अपने बचपन के बारे में ज़रूर सोचना चाहिए. हमें ये भी सोचना चाहिए कि आज हम अपने बचपन को किस तरह से डिसक्राइब करेंगे? क्या हमारे पास कोई शब्द हैं? जिनकी मदद से हम अपने बचपन को परिभाषित कर सकें? 

अगर आप emotionally immature parent के साथ बड़े हुए हैं. तो इस बात का बहुत बड़ा चांस है कि आपके अंदर anger, betrayal, और  loneliness की फीलिंग आ रही होगी. ऐसा भी हो सकता है कि बचपन के बारे में सोचते ही आपको घबराहट होने लगती हो? अगर ऐसा कुछ है तो आपको मान लेना चाहिए कि आपके बचपन में सबकुछ सही नहीं था. 


 

आपको इस किताब में ये भी जानने को मिलेगा 

- highly sensitive children के बारे में काफी कुछ 

-पैरेंटिंग के बारे में काफी कुछ नया 

- Emotionally Immature Parents के बारे में काफी कुछ

तो फिर देर किस बात की? चलिए इस सफ़र की शुरुआत करते हैं 

अब समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर True emotional intimacy का असली मतलब क्या होता है? आपको बता दें कि अपने दिल की नाज़ुक बातें भी किसी से शेयर करने को ही True emotional intimacy कहते हैं. इस फीलिंग से human relationships कम्प्लीट होती है. बिना इस फीलिंग के बच्चे और बड़ों के अंदर अकेलापन पैदा हो सकता है. 

ऑथर कहती हैं कि Emotional loneliness से बुरी चीज़ कुछ और नहीं हो सकती है. बड़े तो फिर भी इस फीलिंग को सह सकते हैं. लेकिन उन बच्चों के ऊपर बहुत बुरा असर पड़ता है. जिनको बचपन से ही इस तरह के माहौल में बड़ा होना पड़ता है. इसलिए अगर आप पैरेंट्स हैं या फिर बनने वाले हैं. तो अपने बच्चों के साथ True emotional intimacy बनाने की ज़रूरत होगी. बिना True emotional intimacy के आपके बच्चे का पूरा डेवलपमेंट नहीं हो पाएगा. 

जिन लोगों को बचपन में इमोशनल कनेक्शन नहीं मिल पाते हैं. वो बड़े होने के बाद काफी ज्यादा इनसेक्योर रहते हैं. इसी वजह से उनकी रिलेशनशिप भी खराब होती रहती हैं. उन्हें हमेशा डर लगा रहता है कि लोग उन्हें छोड़कर चले जाएंगे. उनके अंदर सेल्फ कॉन्फिडेंस की भारी कमी आ जाती है.

emotional immaturity” के साइन को पहचानना ज़रूरी है
क्या आपको शक है कि आपके पैरेंट्स emotionally immature हैं? लेकिन आपको पता नहीं कि इस बात को कन्फर्म कैसे किया जाए? 

सबसे पहले हमें इस पहलू को नहीं भूलना चाहिए कि आज के दौर में स्ट्रेस लेवल काफी बढ़ चुका है. पैरेंट्स के ऊपर कई तरह की जिम्मेदारियां होती है. काम का दबाव भी होता है.. तो अगर कोई कभी कभार गुस्सा कर देता है या फिर emotional control खो देता है? तो ये नार्मल है. 

अगर आपको truly emotionally immature parents के बारे में पता लगाना है तो आपको उनके बिहेवियर पैटर्न पर गौर करना होगा. क्या वो complicated emotions को हैंडल नहीं करना चाहते हैं? क्या वो सच में जिम्मेदारियों से भागते हैं? क्या वो अधिकत्तर नेगेटिव माइंड सेट में रहते हैं? क्या उनको अंदाजा भी नहीं रहता है कि उनके एक्शन का असर बच्चों पर क्या पड़ रहा है? क्या वो पूरी तरह से सेल्फिश हैं? क्या उन्हें अपने बच्चे की कोई फ़िक्र ही नहीं है? 

वैसे ये बात भी सच है कि कई तरह के emotionally immature parents होते हैं. लेकिन उनका सबसे बड़ा लक्षण emotional intimacy की कमी ही होती है. 

emotionally immature parents के साथ कम्युनिकेशन कर पाना बहुत मुश्किल होता है. कई बार तो वो बच्चे की बात सुनने को तैयार ही नहीं होते हैं. वो हमेशा यही सोचते हैं कि वो ही सही हैं. और बच्चे को इस दुनिया में लाकर उन्होंने बहुत बड़ा एहसान किया है. वो कभी भी बच्चे के साथ इमोशनल और हेल्दी रिलेशनशिप बनाने की कोशिश ही नहीं करते हैं. 

इस तरह के पैरेंट्स के अंदर खुद की गलती मानने का सेल्फ कॉन्फिडेंस ही नहीं होता है. उनके दिमाग में हमेशा खुद की ज़रूरतों को पूरा करना ही होता है. उन्हें बच्चों की नीड्स से कोई लेना देना ही नहीं होता है. इसी के साथ वो अपने बच्चों में फेवरेट कार्ड भी खेलते हैं. 

वैसे तो यह सच है कि ‘सही परवरिश’ की कोई एक परिभाषा या कोई एक तरीका नहीं है. लेकिन फिर भी इमोशनली इन्टीमेट होकर, आप बच्चों की तरफ अपना लगाव दिखा सकते हैं. सही परवरिश के लिए हालात के मुताबिक समझ-बूझ की ज़रूरत होती है. सब बच्चों पर एक ही नियम लागू नहीं हो सकता. चाहे बच्चों के ख्याल रखने की बात हो, प्यार जताने की हो या फिर सख्ती बरतने की; हर बच्चे के साथ अलग ढंग से पेश आने की जरूरत होती है. मान लीजिए मैं नारियल के बाग में खड़ा हूं और आप मुझसे पूछें, “एक पौधे को कितना पानी देना होगा?” तो मेरा जवाब होगा, “एक पौधे को कम-से-कम पचास लीटर.......” घर जाने के बाद अगर आप अपने गुलाब के पौधे को पचास लीटर पानी देंगे तो वह मर जाएगा... आपको देखना होगा कि आपके घर में कौन-सा पौधा है और उसकी क्या ज़रूरतें है.

emotionally immature parenting के बारे में भी कुछ बातें जान लेते हैं
अब तक की चर्चा में हम लोगों ने emotionally immature parents के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें कर ली हैं. अब कुछ और अंदर जाने का वक्त आ चुका है. 

4 तरीकों के emotionally immature parents होते हैं. 

The first type is the emotional parent- इस तरह के पैरेंट्स सिर्फ और सिर्फ फीलिंग्स की मदद से पैरेंटिंग करते हैं. 

दूसरे तरीके को driven parent कहते हैं. इस तरह के पैरेंट्स obsessively goal-oriented होते हैं और बहुत ज्यादा बिज़ी दिखाते हैं. ये परफेक्शन की तलाश में अपने बच्चों की ज़िन्दगी को नर्क बना देते हैं. 

अब बारे तीसरे तरीके की आ गई है, इन्हें पैसिव पैरेंट कहा जाता है. इनके बच्चों को इनके नेगेटिव अप्रोच से बहुत ज्यादा नुकसान होता है. ये अक्सर उदासीन रहते हैं और बच्चों को कुछ करने से मना करते रहते हैं. 

The fourth and final type is the rejecting parent..इस कैटगरी के पैरेंट्स emotional intimacy को एन्जॉय ही नहीं करना चाहते हैं. ये बच्चों से कभी भी इमोशनल कनेक्ट बनाने की कोशिश ही नहीं करते हैं. इसी वजह से ये काफी ज्यादा commanding भी बन जाते हैं. जिसके कारण बच्चों के मन में इनके प्रति एक तरह का डर बैठ जाता है. ऐसे लोगों को ही अपने बुढ़ापे में अकेलेपन का सामना करना पड़ता है. क्योंकि जब समय रहता है तो कभी इन्होने किसी से भी इमोशनल कनेक्ट बनाया ही नहीं होता है. 

इसलिए ऑथर सलाह देती हैं कि आप खुशकिस्मत हैं कि खुशियों की पोटली के रूप में एक बच्चा आपके घर में आया है..... ना तो बच्चे आपकी जायदाद हैं और ना आप उनके मालिक... बस उनको पालते-पोसते बड़ा होते देखिए और खुश रहिए. उनको अपने आने वाले कल की जमा-पूंजी मत समझिए.

अब बात “Coping mechanisms” की होगी
आम तौर पर emotionally neglectful childhood के बाद लोगों की दो तरह की पर्सनालिटी में से एक बन जाती है. या तो वो internalizers बन जाते हैं या फिर externalizers.

coping mechanisms के बारे में जानने से पहले आपको पता करना होगा कि आप इन दो में से कौन सी पर्सनालिटी बन चुके हैं. 

Externalizers पर्सनालिटी वाले लोग काफी ज्यादा रिएक्टिव होते हैं. वो बिना सोचे कोई भी कदम उठा लेते हैं. मतलब वो पहले एक्शन लेते हैं..फिर सोचते हैं. इस तरह की पर्सनालिटी के लोगों को हमेशा ये उम्मीद रहती है कि कोई दूसरा इनकी मदद करने ज़रूर आगे आएगा. और इसी के साथ ये अपनी प्रॉब्लम के लिए दूसरों को ज़िम्मेदार भी घोषित कर देते हैं. 

वहीं दूसरी तरफ internalizers का ध्यान सॉल्यूशन ढूँढने में लगा रहता है. ये highly sensitive और naturally perceptive होते हैं. इनका अपने पैरेंट्स के साथ genuine emotional connection नहीं बन पाता है. 

Internalizers’ को सीखने की ज़रूरत है कि वो दूसरों की मदद से कैसे अपनी लाइफ को आसान बना सकते हैं? उन्हें पता होना चाहिए कि दूसरों से मदद लेना भी एक तरह की आर्ट है. और इस आर्ट में सभी को माहिर होना चाहिए. 

emotionally immature parents के बच्चों का समय ज्यादातर यही सोचने में गुज़र जाता है कि एक दिन उनका समय अच्छा हो जाएगा. एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब उनकी लाइफ की सारी दिक्कतें खत्म हो जाएंगी. 

लोग गलती से यह समझते हैं कि अपने बच्चों को प्यार करने का मतलब है उनकी हर मांग पूरी करना.. अगर आप उनकी मांगी हुई हर चीज उनको देते हैं तो बड़ी बेवकूफी करते हैं. अगर आप अपने बच्चे से प्यार करते हैं तो उसे वही दें  जो जरूरी है. जब आप किसी से सचमुच प्यार करते हैं तो उसका दुलारा होने की फिक्र किए बिना आप वही करते हैं जो उसके लिए बिलकुल सही है.

दोस्तों, अगले चैप्टर में हम healthier approach के बारे में चर्चा करेंगे. जिसकी मदद से emotionally immature parent के साथ शान्ति से डील किया जा सकता है.

अब समय ‘maturity awareness approach’ के बारे में चर्चा करने का आ गया है
एक बच्चे के लिए अपने पैरेंट्स को objectively देखना काफी मुश्किल है. इसके पीछे का सबसे बड़ा रीज़न ये भी है कि हमें बचपन से ही बताया जाता है कि पैरेंट्स भगवान की तरह होते हैं? पैरेंट्स ही सबसे बड़े हीरो होते हैं? 

लेकिन जब हम बड़े हो जाते हैं तो हमें समझ में आता है कि नहीं.. बचपन में सबकुछ हमारे साथ सही नहीं हुआ था. आज हम इमोशनली तौर पर कमजोर हो चुके हैं? क्योंकि बचपन में किसी ने हमें इमोशन्स के बारे में बताया ही नहीं था. बचपन का पूरा खेल तो बद क्लास को टॉप करने की रेस में ही निकल गया. क्या वाकई पड़ोस के शर्मा जी के लड़के से 2 परसेंट ज्यादा लाना ज़रूरी था? आखिर क्या हुआ उन टॉप करने वालों बच्चों का? 

इसलिए अगर आप पैरेंट्स बनने वाले हैं? तो ये ज़रूरी सवाल खुद से ज़रूर करिएगा. एक पैरेंट्स के तौर पर हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम “कोटा फैक्ट्री” नहीं बल्कि अच्छे इंसान तैयार करें. हमारे बच्चें को दूसरों के प्रति प्रेम का भाव होना चाहिए. उसे इमोशन्स के बारे में पता होना चाहिए. और उसे पढ़ाई का असली मतलब भी पता होना चाहिए. 

यही सब बातें maturity awareness approach के अंदर आती हैं. यह बेहद जरूरी है कि बच्चे को बच्चा ही रहने दें; उसे बड़ा बनाने की जल्दी न मचाएं क्योंकि आप बड़े को बच्चा तो बना नहीं सकते. बच्चा जब बच्चे की तरह बर्ताव करता है तो खुशियां फैलाता है. बड़ा होने के बावजूद बच्चे जैसा बर्ताव करता है तो बहुत बुरा लगता है. आराम से बड़ा होने दीजिए, जल्दी क्या है? याद रखिएगा कि बिना दिमाग के जल्दबाजी में किया गया कोई भी काम अच्छा और सफल नहीं हो सकता है. 

इसलिए साइंटिफिक अप्रोच की मदद से बच्चों से प्रेम करिए, उन्हें प्रेम करना सिखाइए जब आपकी जिंदगी में एक बच्चा आता है तो यह सीखने का वक्त होता है, सिखाने का नहीं आपकी जिंदगी में उसके आने के बाद अनजाने ही आप हंसते हैं, खेलते हैं, गाते-बजाते हैं, सोफे के नीचे दुबकते हैं और वह सब-कुछ करते हैं जो आप भूल चुके थे। इसलिए यह जिंदगी के बारे में सीखने का वक्त है.

हम इतने भी ज्ञानी नहीं हैं, जितना हम खुद को पैरेंट्स के तौर पर समझ लेते हैं
क्या आपने कभी खुद से सवाल किया है कि आप लाइफ के बारे में जानते ही क्या हैं? कि आप अपने बच्चों को सिखा सकें? बस आप उनको जीवन बसर करने के कुछ गुण सिखा सकते हैं? आप खुद को अपने बच्चे के साथ तौल कर देखें कि खुशी और उल्लास की काबिलियत किसमें ज्यादा है? आपके बच्चे में है न? अगर वह आपसे ज्यादा खुश रहना जानता है तो जिंदगी के बारे में सलाह देने के कौन ज्यादा काबिल है? 

ये छोटा सा सवाल है, लेकिन इस सवाल के अंदर आपके नज़रिए को बदलकर रख देने की काबिलियत है. अगर बच्चों के साथ दखलंदाजी न की जाए तो वे सहज रूप से सरल होते हैं. आम तौर पर मां-बाप, शिक्षक, समाज, टेलिविजन वगैरह में से कोई-न-कोई उनके साथ दखलंदाजी करता रहता है. ऐसा माहौल बनाइए जहां बाहरी दखलंदाजी कम से कम हो और बच्चे को अपनी बुद्धि बढ़ाने का मौका मिले.

इसी के साथ अगर आप डरे-सहमे और चिंतित दिखाई देंगे तो आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि आपके बच्चे खुश हो कर जिएंगे? वे भी वही बात सीखेंगे... सबसे अच्छी चीज जो आप उनके लिए कर सकते हैं वह यह कि आप एक प्यार-भरा खुशनुमा माहौल बनाएं.

याद रखिए कि ख़ुशी वाले माहौल की मदद से ही अच्छे रिश्तों का निर्माण होता है. और किसी भी घर में ख़ुशी के लिए अच्छे रिश्तों का होना बहुत ज़रूरी है. इसलिए अपने बच्चे पर खुद को थोपना छोड़ दें और उसका बॉस बनने की बजाय उससे गहरी दोस्ती करें... अपने को उससे उपर रख कर उस पर शासन ना चलाएं, बल्कि खुद को उससे नीचे रखें ताकि वह आपसे आसानी से बात कर सके.

आप अपने बच्चों से प्यार चाहते हैं न? लेकिन कई मां-बाप कहते हैं, “मेरी इज्जत करना सीखो.” सिवाय इसके कि आप इस दुनिया में उससे कुछ साल पहले आए, आपका शरीर बड़ा है और आप गुजर बसर करने के कुछ गुण जानते हैं, किस मामले में आप उनसे बेहतर प्राणी हैं?

इन सवालों की मदद से आप अपने रिश्तों को बेहतर कर सकते हैं. लाइफ में ख़ुशी का पूरा राज़ ही अच्छे रिश्तों की नींव पर टिका हुआ है. जिसके पास जितने प्यारे रिश्ते हैं. वो उतना ही खुश है. 

बच्चे पर बहुत-सी चीजों का असर होता है – टीवी, पड़ोसी, स्कूल और लाखों दूसरी चीजें.. उसको जो सबसे ज्यादा दिलकश लगेगा वह उसी की तरफ खिंचेगा... मां-बाप के रूप में आपको कुछ यूं बनना होगा कि उसको आपके साथ रहना, घूमना-फिरना, बातें करना बाकी सब चीजों से ज्यादा दिलकश लगे.. अगर आप एक खुशहाल, अक्लमंद और दिलकश इंसान हैं तो वह किसी और की तरफ नहीं खिंचेगा वह हर चीज के बारे में आपके ही पास आ कर पूछेगा.

कुल मिलाकर
emotionally immature parent के साथ बड़ा होना किसी भी बच्चे के लिए बहुत बुरा है. इसका असर उसकी जवानी में देखने को मिलता है. इसलिए अपने बच्चे के लिए आपको बेहतर इंसान बनना पड़ेगा. इसलिए emotionally mature behavior को अपनाने की कोशिश करिए. समझिए कि इस दुनिया को बेहतर इंसान की अब सख्त ज़रूरत है. 

येबुक एप पर आप सुन रहे थे Adult Children of Emotionally Immature Parents by Lindsay C. Gibson, PsyD  ये समरी आप को कैसी लगी हमें drchetancreation@gmail.com  पर ईमेल करके ज़रूर बताइये.

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