Napolean The Great..... ❤️

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Napolean The Great
नैपोलियन जिसने यूरोप को जीत कर दुनिया को बदल दिया।

दो लफ्जों में
नैपोलियन द ग्रेट (Napolean The Great) हमें इतिहास के उस लीडर के बारे में बताती है जिसकी बहादुरी और काबिलियत की मिसाल आज भी दी जाती है। यह किताब हमें नैपोलियन की रोमांचित करने देने वाली जिन्दगी की कहानी बताती है। इस किताब की मदद से हम जानेंगे कि नैपोलियन ने किस तरह से इतनी सारी लड़ाइयाँ जीत कर दुनिया में शांति लाने की कोशिश की।



यह किसके लिए है? 

-वे जो नैपोलियन के बारे में जानना चाहते हैं।
-वे जो इतिहास पढ़ना पसंद करते हैं।
-वे जो नैपोलियन के बनाए गए उन नियमों के बारे में जानना चाहते हैं जिनका इस्तेमाल आज भी किया जाता है।
एंड्र्यु रोबर्ट्स ( Andrew Roberts ) ब्रिटेन के एक जर्नलिस्ट और एक इतिहासकार हैं। वे किंग्स कालेज लंदन में वार स्टडीज़ डिपार्टमेंट के प्रोफेसर हैं। इसके अलावा वे न्यूयॉर्क हिस्टोरिकल सोसाइटी में एक लेक्चरर भी हैं।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए?
इतिहास बहुत से महान लोगों से भरा पड़ा है। हर महान व्यक्ति या तो समाज के लिए कुछ अच्छा कर के जाता है या फिर हमें कुछ ऐसा सिखा जाता है जिसके लिए हम हजारों साल तक उसकी मिसालें देते रहते हैं। यह किताब उस महान व्यक्ति के ऊपर है जिसने हमें बताया कि कुछ भी असंभव नहीं है। यह किताब हमें उस महान व्यक्ति के बारे में बताती है जिसने हमें बताया कि असंभव नाम का शब्द सिर्फ बेवकूफों की डिक्शनरी में पाया जाता है। उसने हमें सिर्फ यह बताया ही नहीं, बल्कि इसे साबित कर के दिखाया।

आने वाले सबक में हम बात करने वाले हैं नैपोलियन बोनापार्ट की, जो कि फ्रांस के सबसे महान शासक माने जाते हैं। यह किताब हमें उनके पैदा होने से लेकर उनके मरने तक की हर घटना के बारे में बताती है। यह किताब हमें बताती है कि उन्होंने कितनी लड़ाइयाँ लड़ी और किस तरह से उन्होंने दुनिया में शांति लाने की कोशिश की।

- नैपोलियन असल में कौन थे?

- नैपोलियन ने किस तरह से दुनिया को एक अच्छी जगह बनाने की कोशिश की।

- नैपोलियन की मौत किस तरह से हुई।



नैपोलियन शुरुआत से ही एक मेहनती व्यक्ति थे।
नैपोलियन बोनापार्ट का जन्म कोर्सिका के एक आइलैंड पर 1769 में हुआ था। हालांकि बहुत ने लोग यह जानते हैं कि नैपोलियन फ्रांस के रहने वाले थे, लेकिन ऐसा नहीं है। कोर्सिका 1755 में इटली के राज से मुक्त हुआ था और 1768 में फ्रांस का एक हिस्सा बना था। इसका मतलब यह है कि नैपोलियन असल में इटली से संबंधित हैं, ना कि फ्रांस से।

नैपोलियन के माता पिता का नाम कार्लो और लीतिज़िया बोनापार्ट था। कार्लो ने, जो कि नैपोलियन के पिता थे, एक सरकारी नौकरी हासिल कर ली थी जिसकी मदद से वे बाद में अपने परिवार का पालन पोषण कर पाए और नैपोलियन को पढ़ा पाए। उन्होंने लुइस 15 की सेवा की।

कार्लो का परिवार समय के साथ बड़ा होता गया। उनके 13 बच्चे हो गए लेकिन उन में से सिर्फ 8 ही जिन्दा बच पाए। 

वे इतने सारे लोगों का खयाल रखने में सक्षम नहीं थे इसलिए उन्होंने एक अर्जी दी कि सरकार इसमें उनकी मदद करे। उनकी अर्जी मान ली गई और नैपोलियन को फ्राँस के आर्मी स्कूल में भर्ती कर लिया गया।

नैपोलियन कोर्सिका के पहले व्यक्ति थे जो फ्रांस के आर्मी स्कूल में गए थे। इस वजह से बहुत से बच्चे उनका मजाक उड़ाया करते थे। इससे नैपोलियन का उत्साह और बढ़ गया और वे खुद को साबित करने के लिए अपना पूरा जोर लगाने लगे। वे एक दिन में 8 घंटे पढ़ा करते थे और बहुत छोटी उम्र में उन्होंने मैथ्स, लैटिन, हथियारों की जानकारी और युद्ध की जानकारी हासिल कर ली। वहाँ पर ही उन्होंने फ्रेंच भाषा सीखी और फिर उसे जिन्दगी भर बोलते रहे।

उनकी मेहनत का नतीजा यह हुआ कि 16 साल की उम्र में वे फ्रांस की सेना के आफिसर बन गए।  वे अपने समय के सबसे छोटे व्यक्ति थे जिन्होंने इस उपाधि को हासिल किया था साथ ही वे ऐसा करने वाले पहले कोर्सिकन थे।

नैपोलियन ने खुद को साबित कर के दिखाया और बहुत जल्दी आगे बढ़ने लगे।
जब नैपोलियन अपने मिलिट्री की ट्रेनिंग ले रहे थे उस समय फ्रांस में बहुत हलचल मची हुई थी। 1789 में लुइस 16 के राज में फ्रांस में उनके खिलाफ एक बहुत प्रसिद्ध क्रांति हुई। नैपोलियन ने इस क्रांति में क्रांतिकारियों को सही मानकर उनका साथ दिया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे राजतंत्र से नफरत करते थे। उन्हें यह नहीं पसंद था कि एक राजा अकेले सारे फैसले ले। वे जागरुकता और आजादी को सही मानते थे इसलिए राजा की सुरक्षा करने के बजाय वे उनके खिलाफ चले गए।

इसका नतीजा यह हुआ कि लुइस 16 को राजगद्दी से हटा दिया गया। नैपोलियन जैकोबिन्स में जा कर शामिल हो गए जो कि राजा का विरोध करने वाले लोगों का एक ग्रुप था। इसके बाद 1791 में नैपोलियन मिलिट्री के रैंक में ऊपर उठने लगे। वे जैकोबिन्स का भरोसा जीत गए और उनकी मदद से उन्होंने ब्रिटेन , प्रुसिया और आस्ट्रिया की सेना को हरा दिया जो टोउलन पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे थे।

अगर हम युद्ध की खबरों को माने तो वो बताते हैं कि नैपोलियन एक बहुत समझदार आफिसर थे और उसकी चिठ्ठियों में एक लीडर की परछाईं नजर आती थी। वो जान की बाजी लगाकर लड़ते थे और फ्रांस की जीत के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार थे। इन सभी खूबियों की वजह से उसे जनरल के रैंक पर प्रमोट कर दिया गया। इस समय वो सिर्फ 24 साल के थे।

नैपोलियन ने इटली, आस्ट्रिया जैसे देशों को जीत कर एक हीरो का खिताब हासिल किया।
जब नैपोलियन जनरल बना दिए गए तो 1795 में पैरिस में एक क्रांति उभर कर सामने आने लगी। नैपोलियन उस क्रांति को दबाने में सफल रहे जिससे कि एक गृह युद्ध रुक गया और उनका स्टेटस और ऊपर हो गया। इसके अलावा इससे उन्होंने इटली की सेना के एक हिस्से पर कब्जा भी कर लिया।

नैपोलियन को 1796 में फिर से प्रमोट किया गया और अब उन्हें वो करने का मौका मिल गया जिसकी तैयारी वे काफी समय से कर रहे थे। वे बहुत समय से पीडमोन्ट के उत्तरी इलाकों को समझने की कोशिश कर के यह जानने की कोशिश कर रहे थे कि किस तरह से वे उन पर हमला कर सकते हैं और साथ ही आस्ट्रिया के किले पर कैसे कब्जा कर रहे हैं।

इसके बाद नैपोलियन अपने 50000 सैनिकों को लेकर पीडमोन्ट और आस्ट्रिया की 80000 की सेना से लड़ने के लिए निकल पड़े। उनके दुश्मनों के पास बात चीत करने के अच्छे साधन नहीं थे। फ्रांस ने अपने सारे सामान को लिगुरिया के पहाड़ पर भेजा और अपने दुश्मन की कमजोरी का फायदा उठा कर उसे हरा दिया।

जब मिलान शहर से उनकी लड़ाई हुई तो उन्होंने अपने 3500 सैनिकों के साथ उनके 9500 सैनिकों को हरा दिया। इसके एक महीने के बाद 1796 के जून में सीज आफ मंटुआ नाम का युद्ध शुरू हुआ जो अगले 8 महीने तक चला। नैपोलियन इसमें भी जीत गए और उनकी जीत की खबर पूरे पैरिस में फैल गई।

इसके बाद मार्च 1797 में उन्होंने वीन्ना को चेतावनी दी और आस्ट्रिया के साथ एक शांति का समझौता कर के उन्हें अपने में शामिल कर लिया। इसके बाद वे एक हीरो के नाम से जाने जाने लगे।

इजिप्ट के एक अभियान में नैपोलियन ने अपने बहुत से सैनिक खो दिए
नैपोलियन जब बहुत सी लड़ाइयाँ जीतने लगे तो उनकी तारीफ करने वालों के साथ ही उन से डलने वाले लोग भी बढ़ने लगे। कुछ लोगों को यह पसंद नहीं आ रहा था कि कोई इतनी कम उम्र में इतना कुछ हासिल कर ले जाए। इसलिए उन लोगों ने नैपोलियन को ब्रिटिश सेना को कमजोर करने के लिए उन्हें इजिप्ट के एक अभियान में भेज दिया। वे अपने 38000 सैनिकों को लेकर निकल गए लेकिन यह सफर उनके लिए अच्छा साबित नहीं हुआ।

जब वे इजिप्ट में दाखिल हुए तो उन्होंने एलेक्जैंड्रिया पर आसानी से कब्जा कर लिया।  लेकिन जैसे ही वे अगले शहर कैरो के लिए जून 1798 में रवाना हुए, उनके सैनिकों को रेगिस्तान से हो कर गुजरना पड़ा। उनके 200 लोगों को तो तेज धूप की वजह से कुछ दिख ही नहीं रहा था। कुछ लोगों को मलेरिया हो गया और कुछ लोग आत्महत्या करने लगे। जो सैनिक पीछे रह जा रहे थे वे इजिप्ट के घुड़सवार ममलूकों द्वारा मार दिए जा रहे थे। ममलूकों के लीडर का नाम इब्राहिम बे और मुराद बे था।

वैसे तो नैपोलियन को वहीं से लौट जाना चाहिए था, लेकिन वे आगे बढ़ते गए और जफ्फा पर हमला बोल दिया। जफ्फा इस समय इजराइल के नाम से जाना जाता है। वहाँ पहुँच कर नैपोलियन ने वहाँ के गवर्नर से कहा कि वे हार मान लें। लेकिन गवर्नर ने इनकार कर दिया और नैपोलियन की सेना ने शहर पर बेरहमी से हमला कर दिया जिसमें उन्होंने हजारों लोगों की जान ली। इसके अलकलि नैपोलियन के कुछ सैनिकों को प्लेग नाम की बीमारी होने लगी जिससे वे भी भयंकर मौत से मरने लगे।

इसके बाद नैपोलियन ने एक्र पर हमला कर के तुर्क, ममलूक, अफ्गान और ब्रिटिश की सेनाओं से लड़ाई की। यह लड़ाई दो महीने तक चली।
इसके बाद 1799 की मई में नैपोलियन के बहुत से सैनिक मर गए और नैपोलियनको यह एहसास हुआ कि वो आगे नहीं बढ़ सकता। इसलिए वो अभियान खत्म कर के लौट गया।

नैपोलियन की शादी जोसेफीन से हुई, लेकिन उनके रिश्ते की शुरुआत अच्छी नहीं थी।
जैसा कि हम ने दूसरे सबक में देखक कि नैपोलियन चिठ्ठियाँ लिखने में एक्सपर्ट थे और उनकी चिठ्ठियों में एक पैदाइशी लीडर का भाव झलकता था। मजे की बात यह है कि वे सिर्फ युद्ध में ही नहीं, अपनी होने वाली पत्नी जोसेफीन को भी बहुत चिठ्ठियाँ लिखा करते थे। 

जोसेफीन एक विधवा थीं जिनका पहले से एक बच्चा था। वो नैपोलियन से 6 साल बड़ी थी। नैपोलियन उनसे बहुत प्यार करते थे और वे उसके बच्चे को भी बहुत मानते थे। उनके बच्चे का नाम यूजीन था जो कि बाद में नैपोलियन के साथ उनकी सेना में शामिल हो गया। उनकी शादी 1796 में उस वक्त हुई जब वे इटली के लिए निकलने वाले थे।

जोसेफीन नैपोलियन से प्यार नहीं करती थी लेकिन फिर भी उन्होंने उन से शादी कर ली क्योंकि उन्होंने इसमें अपना बहुत फायदा देखा। वे प्यार करती थी लेफ्टेनेंट हिप्पोलाइट चार्ल्स से और उनका उनसे काफी समय तक अफेयर चला। नैपोलियन को इस बात का पता उस वक्त चला जब वे इजिप्ट के रेगिस्तान में अपनी सेना के साथ थे। यह सुनकर उन्हें बहुत सदमा लगा लेकिन उन्होंने खुद को संभाला और अपने काम पर ध्यान दिया।

इजिप्ट के सफर में जोसेफीन का बेटा यूपीन भी नैपोलियन के साथ था। इस समय नैपोलियन ने अपने सौतेले बेटे, 38000 सैनिक और 167 साइंटिस्ट, आर्टिस्ट,बोटैनिस्ट, जूलोजिस्ट और जीओग्राफर्स केसाथ मिलकर कैरो शहर पर हमला करने की तैयारी कर रहे थे। कैरो शहर में नैपोलियन ने इंस्टिट्यूट इजिप्ट की स्थापना की ताकि वे दुनिया में जागरुकता और ज्ञान फैला सकें। 1799 में वहाँ के साइंटिस्ट ने एक कीमती पत्थर- रोज़ेटा स्टोन की खोज की।

नैपोलियन ने फ्रांस की सरकार का विरोध किया जिससे उनकी ताकत बढ़ गई।
जब नैपोलियन अपने सारे युद्ध खत्म कर के लौटे तो फ्रांस के लोगों ने उनका खूब स्वागत किया। यहाँ पर फ्रांस के लोग उन्हें एक हीरो की तरह देखने लगे थे क्योंकि उन्हें एक हीरो की जरूरत थी। काफी समय से यहाँ के हालात अच्छे नहीं थे। सरकार भ्रष्ट हो चुकी थी, महंगाई बढ़ रही थी और जगह जगह पर दंगे हो रहे थे। इसके अलावा यहां की मिलिट्री हर जगह से हार रही थी।

नैपोलियन ने अपने लोगों के साथ मिलकर फ्रांस की सरकार को उखाड़ फेकने का फैसला किया। उन्होंने अपने कुछ खास साथियों जैसे जोसेफ फोश, चार्ल्स मौरीस दी तैलेरैंद और ल्यूशन बोनापार्ट के को साथ लिया। यह लोग फ्रांस की सरकार में बहुत ऊँचे दर्जे पर थे।

10 नवंबर 1799 में नैपोलियन ने अपना काम शुरू किया। नैपोलियन भरी सभा में गए और उन्होंने लोगों को मनाने की कोशिश की कि वे सरकार को हटाने में उनकी मदद करें। लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि सभा के लोगों ने उन्हें तानाशाह घोषित कर दिया और उन्हें सभा से निकाल दिया।

इसके बाद नैपोलियन अपने भाई ल्यूशन को साथ लेकर सभा  के सिपाहियों के पास जा कर उनसे यह कहने लगे कि सभा के लोग अब अंग्रेजों की बातों में आने लगे हैं और भ्रष्ट हो गए हैं। उन्होंने किसी तरह से सारे सिपाहियों को मनाया और उनका भरोसा जीता। सिपाहियों ने इनपर भरोसा कर लिया और उन्होंने सभा के सारे सदस्यों को सभा से निकाल फेका। साथ ही उन्होंने रास्ते में आने वाले हर व्यक्ति को रास्ते से हटा दिया। इसके बाद पुराने संविधान को हटा कर नया संविधान बनाया गया जिसमें नैपोलियन को सबसे ताकतवर दर्जा दिया गया।

नैपोलियन आस्ट्रिया से लड़कर इटली के बड़े बड़े हिस्सों को जीतने लगे।
जब नैपोलियन को सबसे ऊँचा दर्जा दिया गया तब उन्होंने अपने देश में बहुत सुधार के काम किए। उन्होंने लोगों को उनके अधिकार और सुरक्षा दी और साथ ही सारे व्यापारियों को सहारा दिया। उन्होंने महंगाई कम की। एक बार के लिए सब कुछ ठीक था लेकिन तभी 1800 में आस्ट्रिया ने हमला कर दिया और जीनोआ में फ्रांस की सेना को बंदी बना लिया जिससे नैपोलियन को फिर से युद्ध में उतना पड़ा।

नैपोलियन पार से एल्प्स की चोटी पार करने के लिए निकल पड़े। उन्होंने इस बार अपने साथ 51000 लोगों को लिया। उनके साथ बहुत सारे घोड़े, हाथी, बारूद, तोप और हथियार थे। 11 दिन के सफर के बाद वे वहां पल पहुँच गए। लेकिन पीछे इनकी बंदी सेना को बहुत परेशानियाँ झेलनी पड़ रही थी।

आस्ट्रिया के लोगों ने फ्रांस की सेना के सप्लाई चेन को बंद कर दिया जिससे अंदर फँसी सेना को कुत्ते और बिल्लियों को खाना पड़ा। इधर नैपोलियन ने आस्ट्रिया पर सीधा हमला ना कर के उन्हें पश्चिम की तरफ ले गए और वहाँ पर उन्हें ले जा कर फँसा दिया। लेकिन यहां पर नैपोलियन से एक गलती हो गई।

नैपोलियन ने अपनी सेना को एक साथ ले आने की बजाय उन्हें हिस्सों में बाँट दिया। जैसे ही मारेंगू का युद्ध शुरू हुआ, नैपोलियन को यह एहसास हुआ कि आस्ट्रिया के 30000 आदमी छिप कर बैठे हुए थे और अब उनके आ जाने से फ्रांस की सेना उनकी सेना से आधी हो गई है।

इसके बाद आस्ट्रिया ने हमला करना शुरू कर दिया जिनसे कि नैपोलियन को पीछे हटना पड़ा। नैपोलियन को कुछ वक्त तक इंतजार करना पड़ा ताकि उनके बचे हुए 11000 लोग उनके पास दुबारा से आ जाएं। जैसे ही वे आ गए,नैपोलियन ने फिर से हमला किया और इस बार उन्होंने आस्ट्रिया को मार के एलेसैंड्रिया में भगा दिया।

वहाँ पर उन्होंने उनसे शांति का एक समझौता किया। इस समझौते में उन्होंने पीडमोंट और जीनोआ को अपने कब्जे में ले लिया जो कि इटली का उत्तरी इलाका हुआ करता था।

नैपोलियन ने इतिहास के कुछ सबसे बड़े शांति के समझौते किए।
1800 के शुरू होते ही मारेंगू, फ्रांस और आस्ट्रिया के बीच शांति की बातें होने लगी। नैपोलियन इधर अपने कोड नैपोलियन पर काम कर रहे थे जो कि एक प्रोजेक्ट था। इस प्रोजेक्ट के हिसाब से लोगों को बराबरी का दर्जा देकर, चर्च को समाज से अलग कर कर शिक्षा को फैलाया जाएगा।

शांति के समझौतों में एक समझौता था लूनविले की संधि जानने फ्रांस और आस्ट्रिया के बीच चल रहे 9 साल के युद्ध पर फुलस्टाप लगा। इससे। फ्रांस को बेल्जियम और राइनलैंड जैसे शहर मिल गए। अब फ्रांस का सिर्फ एक दुश्मन बचा था और वे था - ब्रिटेन, जिसने अब अपने साथ कुछ और देशों को मिला लिया था।

ब्रिटेन ने रशिया, डेनमार्क, स्विडेन और प्रुशिया को अपने साथ लिया। इसकी वजह से फ्रांस को ब्रिटेन के साथ 1802 में अमीन्स की संधि करनी पड़ी जो कि एक और शांति का समझौता था। लेकिन इस संधि में बहुत सी समस्याएँ थी जैसे कि दोनों देशों के बीच हो रहे व्यापार की परेशानी और साथ ही कुछ खास शहरों को अपने में शामिल करने की परेशानी। इसका नतीजा यह हुआ कि ब्रिटेन ने फ्रांस पर एक साल के बाद हमला बोल दिया।

लेकिन यह युद्ध बहुत जल्दी खत्म हो गया। अमीन्स की संधि नैपोलियन की सबसे बड़ी जीत में से एक थी क्योंकि इससे सारे यूरोप में शांति आ गई। इससे नैपोलियन बहुत फेमस हो गए और 2 दिसंबर 1804 को उन्हें और जोसेफीन को फ्रांस का शासक और शासिका घोषित कर दिया गया।

लेकिन उसी महीने ब्रिटेन ने थर्ड कोलिशन बनाया जिसमें उसने स्विडेन, रशिया और आस्ट्रिया को अपने साथ लेकर 1805 में फ्रांस पर फिर से हमला किया। आस्ट्रिया ने बैवेराया के बोर्डर को क्रास कर के उल्म शहर पर कब्जा कर लिया। इसके बाद नैपोलियन ने अपने 170000 सैनिकों को राइन से होकर उनके लड़ने के लिए भेजा, यह अभियान अपने समय का सबसे बड़ा अभियान था।

नैपोलियन ने बहुत सी दूसरी लड़ाइयों के बाद ब्रिटेन को हरा दिया।
1805 के सितंबर में नैपोलियन की सेना ने राइन को पार किया और वे दक्षिण की तरफ निकल पड़े ताकि वे आस्ट्रिया की सेना को कमजोर कर सकें। यह तरीका नैपोलियन के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुआ क्योंकि इससे उन्होंने उल्म शहर को फिर से हासिल कर के आस्ट्रिया को हरा दिया। इसके बाद नैपोलियन ने आस्टरलिट्स और जीना पर जीत हासिल की।

जब नैपोलियन की सेना वीन्ना से हो कर गुजर रही थी तो उन्हें सार एलेक्जैंडर की सेना का सामना करना पड़ा। लेकिन यहां पर सार एलेक्जैंडर ने एक गलती कर दी। उसने अपनी सेना को एक जगह पर इकठ्ठा रखने की बजाय पूरे मैदान में फैला दिया जिसका फायदा उठाकर नैपोलियन की सेना जीत गई।

इसके बाद 2 दिसंबर 1805 को नैपोलियन ने कुछ इस तरह से हमला कि या कि उसने रशिया की सेना को दो भागों में बाँट दिया और उन्हें हंगरी में वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया। इसके बाद नैपोलियन ने प्रुशिया के राजा फ्रेडरिक विलियम को अपना निशाना बनाया जिसने फ्रांस के खिलाफ युद्ध की घोषणा की थी। 

इस मामले को सुलझाने के लिए नैपोलियन और फ्रेडरिक की सेना जीना के मैदान में 14 अक्टूबर 1806 को मिलते हैं जहां पर दोनों में बहुत भयंकर युद्ध होता है। नैपोलियन ने एक जोरदार हमला किया जिससे फ्रेडरिक की सेन को 6 मील पीछे हटना पड़ा।

नैपोलियन असल में प्रुशिया, रशिया या आस्ट्रिया से लड़ना नहीं चाहते थे। वे चाहते थे कि बटरिटेन उनके आगे घुटने टेक दे। ब्रिटेन सी इन राज्यों को फ्रांस के खिलाफ भड़का कर उन्हें फ्रांस पर हमला करने के सारे साधन दे रहा था। नैपोलियन ने सोचा कि अगर वो किसी तरह से ब्रिटेन को इन राज्यों से हटा कर अकेला कर दे तो वो उसे आसानी से गिरा सकता है।

एक शांति के समझौते से पहले नैपोलियन और रशिया के बीच बहुत युद्ध हुआ।
हालांकि नैपोलियन ने फ्रेडरिक को हरा दिया, लेकिन फ्रेडरिक अभी हार मानने वाला नहीं था। उसने वापस जा कर रशिया से मदद मांगी और फिर से लड़ने के लिए वापस आ गया।

1806 के दिसंबर में रशिया की सेना पीछे जा रही थी और नैपोलियन उन्हें हराते हुए वारसा से होकर गुजर रहा था। लेकिन जैसे ही वे पूरब की तरफ रवाना हुए, मौसम बहुत ठंडा होने लगा। सैनिक घुटने तक के बर्फ में चल रहे थे, ना ही उन्हें कुछ खाने को मिल रहा था और ना ही आराम करने को। बहुत से लोगों ने आत्महत्या कर ली। फिर 7 फरवरी 1807 में फ्रांस के सैनिकों ने प्रुशिया और रशिया की सेना को पकड़ लिया और उनके बीच 2 दिन तक युद्ध हुआ। इस युद्ध में दोनों तरफ को बहुत नुकसान हुआ। एक दिन के खत्म होने तक नैपोलियन के बहुत से लोग मारे गए लेकिन दूसरे दिन उसने पूरे जोर के साथ युद्ध किया और जीत गया। उसका हमला उतना जोरदार था कि रशिया को भागना पड़ा।

लेकिन बात यहां पर खत्म नहीं हुई। नैपोलियन और रशिया के बीच फ्रीडलैंड में एक और युद्ध हुआ और इस युद्ध में रशिया ने अपने 40% सैनिकों को खो दिया। इसके बाद वे शांति के समझौते के लिए मान गए।

इस समझौते का नाम टिलसिट पीस ट्रीटी था जिससे नैपोलियन और सार एलेक्जैंडर में दोस्ती हो गई। साथ ही इससे कान्टिनेंटल सिस्टम को अपना लिया गया जो कि नैपोलियन का वो प्लान था जिससे ब्रिटेन में हो रहा व्यापार बंद हो जाएगा और वो कमजोर पड़ने लगेगा। रशिया और प्रुशिया ने इस समझौते को मान लिया।

कान्टिनेंटल सिस्टम के लागू होने से कुछ खास फायदा नहीं हुआ, बल्कि उससे और युद्ध होने लगे।
नैपोलियन ने सोचा कि वो पुर्तगाल को जीतकर ब्रिटेन को और कमजोर बना देगा। लेकिन इस लड़ाई से स्पेन में एक पेनिनसुलर युद्ध छिड़ गया। नैपोलियन इस समय यूरोप में हो रहे दूसरे मसलों को संभाल रहा था और वो युद्ध पर सही से ध्यान नहीं दे पा रहा था। इस वजह से इस युद्ध का नतीजा अच्छा नहीं हुआ।

अगर कान्टिनेंटल सिस्टम को कामयाब बनाना था तो रशिया और प्रुशिया को गैरकानूनी ब्रिटिश ट्रेड से फायदे कमाने से खुद को रोकना पड़ता। लेकिन वे ऐसा करने को तैयार नहीं थे। इसी बीच नैपोलियन ने जोसेफीन को तलाक दे दिया और आस्ट्रिया की शहजादी मैरी लुइस के साथ शादी कर ली। लेकिन इस रिश्ते के बाद भी आस्ट्रिया मानने को तैयार नहीं था। वो रशिया के साथ मिलकर कान्टिनेंटल सिस्टम को मानने से इनकार कर रहा था। इसका नतीजा यह हुआ कि एलेक्जैंडर फ्रांस के खिलाफ जा कर ब्रिटेन से मिल गया और  नैपोलियन को रशिया से फिर से युद्ध करना पड़ा।

इस युद्ध के शुरू होते ही, एलेक्जैंडर की सेना रशिया के अंदर भागने लगी और नैपोलियन अपने 6 लाख सैनिकों के साथ उनके पीछे भागने लगा। इसके बाद नैपोलियन के बहुत से सैनिक बीमारियों से मरने लगे और 1812 के सितंबर में उसके पास सिर्फ 1 लाख सैनिक रह गए।

युद्ध के वक्त फ्रांस के 28000 सैनिक और मारे गए और रशिया के 43000। नैपोलियन जीत तो गया लेकिन जैसे ही वो मास्को पहुंचा, रशिया के लोग अपना पूरा शहर जला कर भाग चुके थे। नैपोलियन के हाथ सिर्फ राख आई और उसे घर लौटना पड़ा।

जब फ्रांस के सैनिक वापस लौट रहे थे तो रशिया के सैनिक उन लोगों को मार दे रहे थे जो भूख या ठंड की वजह से पीछे छूट जा रहे थे। भूख की वजह से फ्रांस के सैनिक अपने घोड़ों को खाने लगे और कुछ लोग तो इंसानों को मार कर खाने लगे।

नैपोलियन बहुत नुकसान सह चुका था और अब हारने की बारी उसकी थी।
पिछले युद्ध में नैपोलियन अपने 5 लाख 24 हजार सैनिकों को खो चुका था। उसके ज्यादातर सैनिक भूख और मौसम की मार की वजह से मर गए थे। अब रशिया, आस्ट्रिया और प्रुशिया की सेना मिलकर फ्रांस पर हमला करने वाली थी और नैपोलियन के पास बहुत कम सैनिक बचे थे। उसने नए सैनिकों को इकठ्ठा करना शुरू किया और लगभग 151000 सैनिकों को इकठ्ठा कर लिया। लेकिन इन में से कुछ लोग सिर्फ 15 और 16 साल के थे। नैपोलियन को उम्मीद थी कि इतने लोगों से वो फ्रांस को बचा लेगा।

नैपोलियन ने सैक्सोनी और ड्रेसडेन के युद्ध को तो संभाल लिया, लेकिन उसके बाद उसके पास लोग कम पड़ने लगे और लीपसिग के युद्ध में उसे बुरी तरह से हारना पड़ा। 1813 में नैपोलियन जब हारने लगा तो रशिया, आस्ट्रिया और प्रुशिया की सेना हमला करने के लिए पैरिस में घुसने लगी। लेकिन तभी नैपोलियन उनके सामने आ टपका और उसने सिर्फ 30000 आदमी से फ्रांस के बार्डर से होते हुए उनकी सेनाओं से 13 युद्ध किए और सब में जीत गया।

वो इतनी तेजी से सारे युद्ध जीत रहा था कि आने वाली फरवरी में वो फिर से 4 युद्ध जीत गया और वो भी सिर्फ 5 दिन में। लेकिन इस जीत की उम्र बहुत छोटी थी। दुश्मन की सेनाएं अपने 60 हजार सैनिकों के साथ 30 मार्च 1813 को पैरिश पर हमला करने के लिए निकल पड़ी। नैपोलियन अपने कैपिटल को बचाने के लिए भागा लेकिन जब वो वहाँ पहुँचता, उसके एक मार्शल ने सरेंडर कर दिया था। दुश्मन सेनाओं ने पैरिस पर पूरा अधिकार जमा लिया।

इनके बाद नैपोलियन को फ्रांस से भागना पड़ा। वो इल्बा के मेडिटेरियन आइलैंड पर भाग गया और वहाँ पर अगले 9 महीने तक रहा और वहाँ पर सुधार के काम करता रहा। उसे अपनी पत्नी और अपने बच्चे से बिछड़ने का दुख हो रहा था जो कि आस्ट्रिया लौट गए थे। फ्रांस में लुइस 18 को राजा बना दिया था।

इल्बा से निकल कर नैपोलियन ने फ्रांस को एक राजा का गुलाम होने से बचाया।
जब नैपोलियन इल्बा पर रह रहे थे तो उनकी दोस्ती एक ब्रिटिश कर्नर सर नील कैंपबेल से हो गई जो कि उनपर एक नजर रख रहा था। कैंपबेल नैपोलियन को उनकी काबिलियत के लिए बहुत पसंद किया करते थे। 1814 की फरवरी में कैंपबेल के छोटे सफर के लिए चले गए और नैपोलियन मौका देखकर वहाँ से भाग गया। 

उसे यह खबर सुनने में आ  रही थी कि अब फ्रांस में फिर से एक राजा का राज होगा। साथ ही उसके खर्चे बंद कर दिए गए थे और यह अफवाह फैल रही थी कि वे लोग नैपोलियन को या तो आस्ट्रेलिया के पेलन कालोनी में या फिर ब्रिटेन के सेंट हेलीना आइलैंड पर भेजने वाले हैं।

नैपोलियन अपने तीन जनरल , 607 आदमियों और एक प्लान के साथ वहाँ से निकले। 1 मार्च 1815 को नैपोलियन फ्रांस पहुंचा और उत्तर की तरफ बढ़ने लगा। उसने 190 मील का सफर सिर्फ 6 दिन में किया। रास्ते में उसे अपने कुछ पुराने सैनिक भी मिले जो कि उसके साथ चल दिए।

जब नैपोलियन वहाँ पहुँचा तो किसी ने भी उसका रास्ता नहीं रोका। लुइस 18 ने खुशी खुशी नैपोलियन को गद्दी दे दी। अगले दिन नैपोलियन अपने काम पर गया और उसने एक नया संविधान बनाया जिससे राजा के परिवार के किसी भी सदस्य का फिर से राजा बनना और मुश्किल हो जाता। उसने हर तरह की गुलामी को खत्म कर दिया और ताकत को सरकार और देश के लोगों में बाँट दिया। उसने एक लोकतंत्र की स्थापना कर दी।

वाटरलू में हारने के बाद नैपोलियन को सेंट हेलीना के आइलैंड पर भेज दिया गया।
जैसे ही नैपोलियन फ्रांस में वापस आए, रशिया, प्रुशिया और आस्ट्रिया की सेनाओं ने फ्रांस के साथ फिर से युद्ध का ऐलान कर दिया। नैपोलियन ने अपने साथ कुछ 280000 लोगों की सेना तैयार की लेकिन उन्होंने एक भारी गलती कर दी। उन्होंने अपनी सेना को एक जगह पर इकठ्ठा कर के रखने की बजाए एक टुकड़ी को प्रुशिया के पीछे लगा दिया। फिर 1815 की जून को वे उनसे युद्ध करने के लिए पड़े। उनके सेना को वेलिंगटन के ड्यूक संभाल रहे थे।

लेकिन नैपोलियन का हमला थोड़ी देर से हुआ जिससे वेलिंगटन को अपनी सेना को सही जगह पर लगाने का समय मिल गया जिससे वे प्रुशिया की सेना का स्वागत करने के लिए तैयार हो गए। इसलिए नैपोलियन ने अपनी दूसरी टुकड़ियों को आने का आदेश नहीं दिया था।

यह युद्ध बहुत अलग था। नैपोलियन के सारे युद्ध में वे हमेशा अच्छे से तैयार रहते थे लेकिन यह युद्ध अच्छे से नहीं लड़ा गया। सैनिकों को फैला दिया गया था और रथ को संभालने के लिए कोई नहीं था। आपस में बात चीत करने का कोई अच्छा साधन नहीं था जिससे जब रात हुई तो सैनिक एक दिशा में भागने की बजाय हर जगह भागने लगे। इस युद्ध में 25 से 31 हजार फ्रांस के सैनिक और 26 जनरल मारे गए।

ब्रिटेन की नेवी ने नैपोलियन को फिर से भागने से रोकने का हर इंतजाम किया हुआ था। 15 जून को नैपोलियन को हिरासत में लिया गया और उन्हें सेंट हेलीना आइलैंड पर भेज दिया गया जहाँ पर नैपोलियन ने अपनी जिन्दगी के बाकी दिन बिताए।

नैपोलियन को वहां रहते हुए पेट का कैंसर हो गया था जिससे 15 मई 1821 को उनकी मौत हो गई। वे इस समय 51 साल के थे । उनका अंतिम संस्कार इसके 19 साल बाद 2 दिसंबर 1840 में किया गया था। इसी दिन आस्टरलिट्स का युद्ध लड़ा गया था और इसी दिन नैपोलियन का अंतिम संस्कार किया गया। उनके अंतिम संस्कार में लाखों लोग शामिल हुए थे।

कुल मिलाकर
नैपोलियन बोनापार्ट दुनिया के महान लीडर्स में से एक थे। उन्होंने बहुत सी लड़ाइयाँ जीती और कम उम्र में बहुत कामयाबी हासिल की। वे दुनिया में शांति लेकर आए और उन्होंने हमें वो नियम दिए जिनसे हम आज भी अपने समाज में शांति कायम करने में कामयाब हैं। वाटरलू की लड़ाई उनकी जिन्दगी की आखिरी लड़ाई थी। उनका नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है।




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