Rolf Dobelli
अपनी ज़िन्दगी पर एक अलग तरह से नज़र डालें
दो लफ्जों में
द आर्ट ऑफ थिंकिंग क्लीयर्ली (The Art Of Thinking Clearly) में हम अपनी हर रोज की जिन्दगी पर एक अलग तरह से नज़र डाल कर उसे समझने की कोशिश करेंगे। हम अपनी मानसिकता और अपनी हरकतों के बारे में जानेंगे और देखेंगे कि किस तरह से हम अनजाने में वो काम करते हैं जो हमें नहीं करना चाहिए। साथ ही यह किताब हमें इस तरह की समस्याओं से निपटने का रास्ता भी बताती है।
यह किसके लिए है
-वे जो खुद को ज्यादा काबिल मानते हैं।
-वे जो हमारी हर रोज की मानसिकता को समझना चाहते हैं।
-वे जो एक सेल्समैन हैं और मार्केटिंग करने के अलग अलग तरीके जानना चाहते हैं।
लेखक के बारे में
रोल्फ डोबेली (Rolf Dobelli) स्विट्जरलैंड के एक लेखक हैं जो 2002 से उपन्यास लिख रहे हैं। वे अपनी किताब द आर्ट ऑफ थिंकिंग क्लीयर्ली के लिए जानें जाते हैं जो कि पूरी दुनिया में एक बेस्ट सेलिंग किताब है। इसके लिए द टाइम्स ने उनकी तारीफ की है।
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए?
क्या आपको लगता है कि आप सोच समझ कर काम करते हैं? क्या आपको लगता है कि इंसान वाकई एक समझदार जानवर है जिसके पास सबसे ज्यादा सूझ बूझ है? अगर हाँ, तो यह किताब पढ़ने के बाद आपको ऐसा बिलकुल नहीं लगेगा।
जिस तरह से एक रोबोट के अंदर कुछ प्रोग्राम डाले जाते हैं और वो उस प्रोग्राम के अलावा कोई भी काम नहीं कर पाता, ठीक उसी तरह कभी कभी हम भी काम करने लगते हैं। हम लोगों को लगता है कि हम सोच समझ कर काम कर रहे हैं पर असल में जो हमारी मानसिकता है, हम उसके हिसाब से काम करते हैं। हमारी मानसिकता ही हमारे वो प्रोग्राम हैं जिनके अलावा हम कोई दूसरा काम नहीं कर सकते।
इस किताब की मदद से आप एक रोबोट की जिन्दगी छोड़कर एक इंसान की तरह सोचना समझना सीख सकते हैं। यह किताब हमें बताती है कि किस तरह से हम अपनी हर रोज की जिन्दगी में बेहतर फैसले लेना सीख सकते हैं और किस तरह से हम अपनी मानसिकता से बाहर निकल सकते हैं।
-किस तरह हम वही मानते हैं जो हम मानना चाहते हैं।
-किस तरह हम अनजाने में उसे काबू करने की कोशिश करते हैं जो हमारे बस में नहीं है।
-सेल्समैन और बिजनेस मैन किस तरह से हमारी मानसिकता का फायदा उठाते हैं।
हम खुद को बहुत काबिल समझने की गलती करते रहते हैं।
याद कीजिए जब आप आखिरी बार किसी काम में नाकाम हुए थे? आपके नाकाम होने की वजह क्या थी? अब याद कीजिए जब आप आखिरी बार किसी काम में कामयाब हुए थे? आपके कामयाब होने की वजह क्या देंगे? आप इन दो सवालों का जवाब कुछ भी दें, लेकिन ज्यादातर लोगों को कामयाब होने पर लगता है कि वे खुद की मेहनत और खूबियों की वजह से कामयाब हुए हैं और अगर वे नाकाम हो जाएं, तो वे सारा इल्जाम दूसरों के ऊपर डाल दिया करते हैं। उन्हें लगता कि अगर हालात अच्छे रहे होते तो वे कामयाब हो जाते, इसमें उनका नहीं बल्कि हालात का दोष है।
अगर हम स्टैटिक्स पर देखें, तो फ्रांस के 84% लोगों को लगता है कि वे औसत से अच्छे प्रेमी हैं। अमेरिका के 93% लोगों को लगता है कि वे औसत से अच्छे ड्राइवर हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ नेब्राका के 63% लोगों को लगता है कि उनके पढ़ाने की काबिलियत औसत से ज्यादा है। इन सभी बातों में एक बात ध्यान देने की है कि अगर हम औसत की बात करें, तो 50% लोगों को औसत के ऊपर होना चाहिए था और 50% को उसके नीचे। अगर 93% लोग वाकई औसत से अच्छे ड्राइवर होते, तो औसत खुद औसत से ज्यादा होता।
एक रीसर्च में जब लोगों का पर्सनैलिटी टेस्ट लिया गया और उनकी अलग अलग पर्सनैलिटी को नंबर दिए गए, तो जिन चीज़ों में उन्हें अच्छे नंबर मिले, उन्होंने कहा कि वे उस काम में वाकई अच्छे हैं और जिनमें खराब नंबर मिले, उसके लिए उन्होंने कहा कि यह टेस्ट गलत नतीजे दे रहा है।
इन सभी बातों से एक बात सामने आती है कि हम सभी लोग खुद को ज्यादा काबिल समझते हैं। अगर आप वाकई अपनी काबिलियत जानना चाहते हैं तो एक अच्छे दोस्त से अपने बारे में राय लीजिए। तभी आपको असल में पता लग पाएगा कि आप कितने कमजोर हैं।
आप अपनी जिन्दगी की बहुत से पहलुओं को काबू नहीं कर सकते।
जब आपका इंटरनेट धीरे चल रहा होता है तो क्या आप भी सबकी तरह बार बार उस लिंक पर क्लिक करने लगते हैं? क्या आपने कभी सोचा है कि किसी भारी चीज़ को उठाते वक्त आप जोर से चीखते क्यों हैं? क्या आपको लगता है कि एक ही लिंक को बार बार क्लिक करने से वो लिंक जल्दी खुल जाएगा या फिर चिल्लाने से आपकी ताकत बढ़ जाएगी? जी हाँ, आपको लगता है, लेकिन ऐसा असल में नहीं होता।
हम चाहते हैं कि हम हर एक चीज़ को अपने काबू में रख सकें। हमें लगता भी है कि हम ऐसा कर सकते हैं। लेकिन असल में हम अपनी जिन्दगी की बहुत कम चीजों को काबू कर सकते हैं। एक्साम्पल के लिए, ट्रैफिक में फँसे होने पर हम जोर जोर से अपने हार्न को दबाने लगते हैं। लेकिन क्या हमारे हार्न दबाने से ट्रैफिक साफ हो जाएगा? अगर ऐसा होता, तो सड़कों पर ट्रैफिक लाइट की जगह हार्न या स्पीकर लगे होते।
बहुत से लोग खुद को एक एक्सपर्ट बताते हैं और उनके हिसाब से वे अनुभव के हिसाब से भविष्य को बता सकते हैं। लेकिन जब 284 एक्सपर्ट की की गई भविष्यवाणी को 10 साल के समय में जाँचा गया तो यह बात सामने आई कि वे एक मशीन द्वारा की गई भविष्यवाणी से सिर्फ थोड़े से बेहतर हैं।
इस तरह से आप इस बात को समझ लीजिए कि आप हर चीज़ को काबू नहीं कर सकते। उनपर ध्यान देना छोड़कर उनके बारे में सोचिए जो वाकई आपके हाथ में हैं।
हम भीड़ में रहना पसंद करते हैं और उसकी नकल करने की हमें आदत होती है।
इस लाइन को आप ने ना जाने कितनी बार सुना होगा कि भीड़ में रहने से हम सुरक्षित महसूस करते हैं। लेकिन क्या आप ने कभी ऐसा सोचा है कि अकेले रहने में क्यों हम असुरक्षित महसूस करते हैं? इसकी वजह हैं हमारे पूर्वज, जो कि बहुत सी चीजें अपने झुंड की नकल कर के सीखा करते थे या फिर खुद की सुरक्षा झुंड में रहकर किया करते थे।
एक्साम्पल के लिए अगर आपका सामना किसी खतरनाक जानवर से हो जाए और आपको ना पता हो कि वो खतरनाक है। लेकिन आप देखते हैं कि आपके साथी भाग रहे हैं तो आप भी उनके साथ भागने लगते हैं और इस तरह से आप जिंदा रहते हैं।
जब सड़क पर कहीं एक्सिडेंट हो गया होता है तो बहुत से लोग उसके आस पास खड़े हो जाते हैं। धीरे धीरे वो भीड़ बढ़ती जाती है और जब आप वहाँ से होकर गुजरते हैं तो आपका भी मन करता है कि आप रुक कर देखें कि क्या हुआ। देखा जाए तो वो आपके काम की चीज नहीं है और ना ही कुछ ऐसा है जिसे देखकर मजा आए। लेकिन आप सबको वहाँ जाते देखते हैं और अनजाने में खुद भी वहाँ पर चले जाते हैं।
इसी तरह से हम मानते हैं कि अगर किसी काम को बहुत सारे लोग कर रहे हैं या फिर किसी आइडिया को बहुत से लोग मानते हैं तो हमें लगता है कि वे सही हैं। किसी एक खास तरह के फैशन को, या फिर किसी एक वेबसाइट को अगर हमारे सारे दोस्त पसंद करने लगते हैं, तो हम भी धीरे धीरे उसे पसंद करने लगते हैं। इसका इस्तेमाल मार्केटिंग के लोग आपको आकर्षित करने के लिए करते हैं।
इसके अलावा हम उस तरह से सोचना पसंद करते हैं जिस तरह से सब लोग सोच रहे हैं। जब एक क्लास में कोई बच्चा शरारत कर दे और टीचर आकर पूछे कि वो काम किसने किया है, तो कोई भी नहीं बोलता। जो बोलना चाहते हैं वे बाकी को देखकर चुप हो जाते हैं।
हम किसी जानकारी को उस तरह से देखते हैं जिस तरह से देखना हम पसंद करते हैं।
यह बात हम सभी में देखने को मिलती है। हम उस चीज़ को पसंद करते हैं जो पहले से हमारे विचारों पर आधारित हो। उस व्यक्ति से हमारी अच्छी दोस्ती हो जाती है जिसकी सोच हमारी सोच से मिलती है। यहाँ तक कि अगर आप और आपका दोस्त एक पालिटिकल पार्टी के समर्थक हैं, तो आपकी दोस्ती बहुत ज्यादा मजबूत हो सकती है और अगर नहीं है, तो आपकी दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चलने वाली।
हम अक्सर उस तरह के चैनल देखते हैं या उस न्यूज़ को देखना पसंद करते हैं जिसमें हमारे विचार दिखाए जाएं। अगर आपको लगता है कि सेहतमंद होना हमारे जीन्स में होता है और हर कोई सेहतमंद नहीं बन सकता, तो आप इंटरनेट पर इसे तब तक सर्च करते रहेंगे जब तक एक वेबसाइट पर आपको यह बात देखने को ना मिल जाए। आप सिर्फ वही देखते हैं जो आप देखना चाहते हैं।
हम बहुत सी जानकारी को अपने अंदर डालते हैं और फिर अनजाने में उस जानकारी को निकाल देते हैं जिसे हम सही नहीं मानते। बहुत से लोग कुंडली या नक्षत्र में विश्वास रखते हैं। अक्सर उसमें वो बातें लिखी गई होती हैं जो आम होती हैं और हमारी जिन्दगी में एक ना एक बार उस घटना के होने की संभावना होती है। लोग उसे मानते हैं और जब वे देखते हैं कि उनके साथ वही होता है जो उनके नक्षत्र में लिखा होता है , तो उनका विश्वास और बढ़ जाता है।
इस तरह की समस्याओं से बचने के लिए आप उन चीज़ों को देखना या सुनना शुरू कीजिए जो आपके विचारों से ना मिलती हों और यह समझने की कोशिश कीजिए कि वे किस हद तक सही हैं।
हम उस चीज़ को पसंद करते हैं जो कम होती है या फिर कम समय के लिए मिल रही होती है।
क्या आपको पता है कि सोना या हीरा इतना महंगा क्यों है? क्योंकि वो बहुत कम पाया जाता है। जब चीजें कम हो जाती हैं तो सिर्फ कुछ लोग ही उसे इस्तेमाल कर पाते हैं और ऐसे में वो कुछ लोग बाकी लोगों से अलग लगने लगते हैं। ऐसे लोगों को हम खास समझते हैं और ये लोग जहाँ जाते हैं, इनकी तरफ हर कोई देखने लगता है, क्योंकि इनके पास वो है जो हर किसी के पास नहीं है।
इसका इस्तेमाल लोग अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग करने के लिए किया करते है। आपने देखा होगा - आफर सीमित समय के लिए उपलब्ध, जल्दी कीजिए। इस तरह से हमें लगने लगता है कि कहीं हम उसे खो ना दें और हम उनके पास भागे भागे जाते हैं।
इसके अलावा हम चीजों की तुलना कर के उनके अच्छे या खराब होने का फैसला करते हैं। आप ने शायद वो कहावत सुनी हो - अंधों में काना राजा। इसका मतलब होता है कि वो व्यक्ति जो बेवकूफों में रहकर थोड़ी सी जानकारी रखता है, वो बहुत समझदार माना जाता है।
यह एक एक्सपेरिमेंट में कर के दिखाया गया था। एक बाल्टी में गुनगुना पानी भरा गया और एक में बहुत ठंडा पानी। फिर लोगों से कहा गया कि वे अपना एक हाथ ठंडे पानी में डालें और फिर दोनों हाथ गुनगुने पानी में डालें। जब लोगों ने यह किया तो उन्होंने कहा कि जो हाथ उन्होंने पहले ठंडे पानी में डाला था, वो गुनगुने पानी में डालने पर ज्यादा गर्म लग रहा था।
इसका इस्तेमाल हमारी रोज की जिन्दगी में होता है। जब हम एक दुकान में एक ही प्रोडक्ट दो दाम पर देखते हैं, तो हम यह अंदाजा लगा लेते हैं कि जो महंगा है वो अच्छा होगा। लेकिन असल में उसकी कीमत का उसकी क्वालिटी से कोई संबंध हो ऐसा जरूरी नहीं ।
हम वो चीजें देखना पसंद करते हैं जो चटपटी हों।
फिल्में किसे नहीं पसंद हैं। बहुत से लोग हर रोज एक मूवी देखते हैं, जो कि उनके किसी का क नहीं होती, और उससे कभी नहीं ऊबते।,लेकिन अगर हम उनसे हर रोज सिर्फ 30 मिनट तक किताबें पढ़ने के लिए कह दें, तो ज्यादातर लोग इस काम को नहीं करेंगे। उन्हें पता है कि किताबें पढ़ने से वे खुद में बहुत सुधार ला सकते हैं, लेकिन फिर भी वे इस काम को नहीं करेंगे।
इसकी वजह यह है कि हम लोग चटपटी और मजेदार चीजों को देखना या सुनना पसंद करेंगे। अगर कभी कहीं पर किसी क हत्या हो जाए तो हम अखबारों में यह नहीं देखेंगे कि पुलिस उस समय क्या कर रही थी या फिर कानून के होते हुए भी लोग किस तरह से बिना खौफ के ऐसे काम कर रहे हैं। हम यह कम ही सुनने को पाएंगे कि हम किस तरह से इन हालातों को सुधार सकते हैं।
अखबार के लोग इस बात को जानते हैं और वे इस तरह की खबरों को कहानी की तरह बना कर सुनाते हैं। इस तरह से उनका अखबार पढ़ने वाले हर रोज चटपटी कहानियाँ पढ़ने के लिए उनका अखबार खरीदते हैं।
इसके अलावा हम उन बातों पर ज्यादा भरोसा करते हैं जिनके होने की संभावना कम होती है। एक्साम्पल के लिए अगर आप कोई एक्साम देने जा रहे हैं और आप से कोई कहे कि - शायद पेपर लीक हो गया है। आप यह कभी नहीं सोचेंगे कि शायद लीक नहीं हुआ है। आप इस बात को मान लेंगे क्योंकि पेपर लीक होने की संभावना कम है और ना लीक होने की ज्यादा।
इस तरह से सोचना डाक्टरों के लिए खतरनाक हो सकता है। कुछ खतरनाक बीमारियों के लक्षण एक आम बुखार के लक्षण से मिलते जुलते हैं।ऐसे में जब डाक्टर उन लक्षणों को देखता है तो उसके दिमाग में वो बीमारियां आती हैं जिनके होने की संभावना कम है। इसलिए उन्हें सिखाया जाता है कि लक्षण कुछ भी हों, पहले आम बीमारियों का टेस्ट किया जाए।
हम एक बार में बहुत कम चीजों पर ध्यान दे सकते हैं।
क्या आपको लगता है कि आप एक साथ कई काम सकते हैं? अगर हाँ, तो आपको गलत लगता है।हम एक बार में सिर्फ एक चीज़ पर ही अपना पूरा ध्यान लगा सकते हैं। आप एक साथ दो लोगों को नहीं सुन सकते और ना ही एक साथ दो चीजों को दे सकते हैं।
यह बात एक हार्वर्ड की स्टडी में साबित हो गई। कुछ स्टुडेंट्स को एक वीडियो दिखाया गया जिसमें कुछ लोग बास्केटबॉल को एक दूसरे की तरफ कैच करने के लिए फेक रहे थे। उनसे कहा गया कि वे गिने कि सफेद टी-शर्ट पहने हुए लोग कितनी बार बास्केटबॉल फेकते हैं। वे इस काम में व्यस्त हो गए और इसी बीच एक गोरिल्ले जैसी दिखने वाली चीज़ उनके सामने आती है, अपना सीना पीटती है और रूम से निकल जाती है। स्टुडेंट्स को इसके बारे में कुछ पता नहीं चलता।
इसके अलावा हमारा ध्यान बहुत सी चीजों पर निर्भर करता है। हम किसी लम्बी सी स्पीच को सुनने के बाद या किसी किताब को पढ़ने के बाद उसके शुरुआत और अंत की चीजों को ज्यादा याद रखते हैं, ना कि बीच की चीजों को। इसे आप खुद पर अभी आजमा सकते हैं। इस किताब को पढ़ने के बाद आप यह याद करने की कोशिश कीजिए कि आपने इसमें क्या पढ़ा और देखिए कि इसका कौन सा हिस्सा आपको ज्यादा याद रहता है।
लेकिन यह बात हर जगह पर सही नहीं होती है। अगर आपको किसी चीज़ को पढ़े, सुने या देखे काफी वक्त हो गया है तो आपको उसका अंत ज्यादा अच्छे से याद रहेगा। हम उन चीजों को ज्यादा याद रख पाते हैं जो हमने जल्दी में सुना है। इसलिए कुछ वक्त बीतने के बाद आपको इस किताब का आखिरी हिस्सा ज्यादा अच्छे से याद रहेगा।
जब हमारे पास बहुत से आप्शन होते हैं तो हम फैसले नहीं ले पाते।
बहुत से आप्शन हो जाने से हम यह फैसला नहीं कर पाते कि हमें क्या चुनना चाहिए। यह भावना इसलिए पैदा होती हैं क्योंकि हम खुद को गलत साबित होता हुआ नहीं देखना चाहते। हमें इस बात का डर होता है कि क्या हो अगर हमारे दोस्त हम से ज्यादा अच्छा मॅाडल खरीद लें? इसलिए हम घंटों तक उन सारे आप्शन्स में से उसे खोजते रहते हैं जो सबसे अच्छा होता है और हमें उन में से कोई भी अच्छा नहीं लगता।
एक एक्सपेरिमेंट में एक दुकान में कुछ अलग अलग रंगों के नेल पॅालिश रखे गए।यह देखा गया कि कम आप्शन होने पर बहुत से लोग अपने साथ नेल पॅालिश लेकर गए। जब नेल पॅालिश के शेड्स बढ़ा दिए गए जिससे ग्राहकों के पास बहुत सारे आप्शन हो गए तो यह देखा गया कि उन में से बहुत से लोग बिना नेल पॅालिश लिए दुकान से बाहर निकल गए।
हमारा दिमाग हमेशा सबसे अच्छे की तलाश करता है। ऐसे में जब उसे बहुत सारे आप्शन मिल जाते हैं तो वह उन सब में अलग अलग तरह की खूबियों को देखता है और यह फैसला नहीं कर पाता कि उसे किसे चुनना चाहिए। इसके अलावा फैसले लेना तनाव पैदा करता है।
एक एक्सपेरिमेंट में दो ग्रुप्स बनाए गए। एक ग्रुप को कुछ प्रोडक्ट दिखाए गए और कहा गया कि वे उन में से किसी एक को चुनें और दूसरे से कहा गया कि वे उन प्रोडक्ट्स के बारे में क्या सोचते हैं उसे लिखें। इसके बाद उन दोनों ग्रुप्स को गया कि वे अपना हाथ ठंडे पानी में डालें। यह देखा गया कि जिन लोगों ने चुनने का काम किया वे पानी में अपना हाथ बहुत कम समय तक रख पाए क्योंकि उनकी इच्छा शक्ति फैसले लेने में खर्च हो गई थी।
इससे बचने के लिए आप इस बात को अपने दिमाग से निकाल दीजिए कि इस दुनिया में सबसे अच्छी नाम की कोई चीज होती है। आप अपनी जरूरतों को देखिए और उसके हिसाब से फैसले लीजिए।
हम उन लोगों को पसंद करते हैं जो अच्छे दिखते हैं या फिर हमारी तारीफ करते हैं।
क्या आपको पता है कि फिल्मों का हीरो हमेशा स्मार्ट क्यों दिखता है? या फिर एक विलन हमेशा बदसूरत क्यों दिखता है? ऐसा इसलिए क्योंकि फिल्म बनाने वाले इस बात को जानते हैं कि हम उन्हें देखना पसंद करते हैं जो अच्छे दिखते हैं। हम दूसरों की शकल देखकर यह फैसला करते हैं कि वो असल में कैसा होगा।
हम अनजाने में उन लोगों को पसंद करने लगते हैं जो खूबसूरत दिखते हैं। या फिर एक बार में जिस व्यक्ति में हमें कुछ खास दिखने लगता है, अब चाहे वो उसकी समझदारी हो, उसकी उम्र हो या फिर उनकी अच्छी पर्सनैलिटी, हम उसे पसंद करते हैं।
एक इंटरव्यू में अक्सर उन्हें काम पर रखा जाता है जो अच्छे दिखते हैं। स्कूल में उन बच्चों को ज्यादा नंबर मिलते हैं जो अच्छे दिखते हैं। यहाँ तक कि पहले के वक्त के लोग नस्लवाद भी रंग और रूप के हिसाब से किया करते थे। गोरे लोग खुद को ऊपर रखते थे और काले लोगों को नीचे। यह मानसिकता हमारे अंदर बहुत पहले से बसी हुई है।
इसके अलावा हम उन लोगों को पसंद करने लगते हैं जो हमारी तारीफ करते हैं या फिर हमारी तरह हरकतें करते हैं। इसका इस्तेमाल सेल्समैन किया करते हैं। वे आप से कहते हैं - वाह सर! क्या लग रहे हैं आप इस ड्रेस में। आपको इसे ही खरीदना चाहिए।
सेल्समैन अक्सर हमारी नकल करते हैं। वे हमारी तरह बोलने की या फिर हाथ पांव हिलाने की कोशिश करते हैं। इससे हमें लगता है कि वो व्यक्ति तो हमारी तरह ही है और इस। तरह हम उसपर भरोसा कर लेते हैं।
हम अपनी भावनाओं के हिसाब से फैसले लेते हैं, ना कि अपनी समझ से।
बहुत से लोग इस वहम में होते हैं कि इंसान ही एक ऐसे जानवर है जो सोचने समझने की क्षमता रखता है। हालांकि उसके पास यह काबिलियत होती तो है, लेकिन वो इसका इस्तेमाल बहुत कम करता है। किसी चीज़ के बारे में अच्छा या बुरा बोलते वक्त हम सिर्फ यह देखते हैं कि उस चीज़ को लेकर हमारा अनुभव कैसा रहा। अगर हमारा अनुभव खराब होता है, तो हम बिना कुछ सोचे समझे उसके बारे में बुरा बोल देते हैं।
कोई भी फैसला लेने से पहले हमें उस चीज़ की अच्छाइयों और बुराइयों की लिस्ट बना कर देखना चाहिए कि वो चीज़ हमारे लिए या हमारे समाज के लिए अच्छी है या बुरी। लेकिन अगर हम से पूछा जाए कि हमें पैकेट का खाना खाना चाहिए या नहीं, तो हम में से बहुत से लोग इतना सोचे बिना ही फैसला कर देंगे।
जब हम सुनते हैं - पैकेट का खाना, तो हमारे दिमाग में अच्छे या बुरे खयाल आने लगते हैं। शायद आप ने सोचा होगा कि पैकेट का खाना कंपनियों में केमिकल से बनाया जाता है और उसे जल्दी एक्सपायर होने से बचाने के लिए उसमें बहुत से दूसरे केमिकल मिलाए जाते हैं। शायद आप ने सोचा होगा कि उसे खाने से नुकसान ही नुकसान होता है। लेकिन आप ने यह नहीं सोचा होा कि आज बहुत सी कंपनियाँ पैकेट के खाने को टेस्ट कर के मार्केट में लेकर आती हैं। उनके पास क्वालिटी का सर्टीफिकेट होता है और उनका प्रोडक्ट इस्तेमाल करने से हमें फायदा होगा। आप ने भावनाओं पर फैसला किया।
किसी चीज़ के बारे में सोचते वक्त उसके बारे में जो पहला खयाल हमारे दिमाग में आता है वही हमारा फैसला होता है। इस तरह से सोचना एक कोर्ट जज के लिए मुश्किल की बात हो सकती है। इसलिए सबसे पहले दोनों तरह के लोग अपने वकीलों के जरिए अपनी अपनी बात को सामने रखते हैं। एक जज उनकी बातें सुनने के बाद फैसला करता है।
कुल मिलाकर
हम खुद को ज्यादा काबिल समझते हैं ।हम अपनी भावनाओं के हिसाब से काम करते हैं ना कि अपनी सोच समझ से। हम एक बार में सिर्फ एक चीज़ पर ध्यान लगा सकते हैं। भीड़ में रहना, लोगों की नकल करना, अपनी तारीफ सुनना हमें पसंद है और हम ज्यादातर उस बात को पसंद करते हैं जो पहले से हमारी सोच से मिलती हो।
अपने बारे में अपने दोस्तों से राय लें।
आप खुद को ज्यादा काबिल समझते हैं। अगर आप वाकई जानना चाहते हैं कि आप असल में अपनी काबिलियत जानना चाहते हैं तो अपने एक अच्छे दोस्त को खाने पर बुलाइए और उससे अपने बारे में राय लीजिए। इस तरह से आपको अपनी ताकत और कमजोरी के बारे में पता लग सकता है
आफर सीमित समय के लिए उपलब्ध, जल्दी कीजिए।
इस तरह के बोर्ड देखकर हमारे दिमाग में आता है कि अगर हमने उसे जल्दी नहीं खरीदा तो वो आफर हाथ से निकल जाएगा। लेकिन आज के वक्त में इंटरनेट पर आप कुछ भी पा सकते हैं। यहाँ से कुछ भी हमेशा के लिए गायब नहीं हो सकता। इसलिए इन बोर्डों पर ध्यान मत दीजिए।

