David Richo
Rishton Me Mindfulness Ki Ahmiyat!
दो लफ्जों में
साल 2002 में आई ये किताब इस बात पर रोशनी डालती है कि रिश्तों में मजबूती कैसे लाई जाए। हर रिश्ते की बुनियाद प्यार पर टिकी होती है। चाहे लोग हों या दुनिया एक अच्छा और प्यार भरा रिश्ता सबको जोड़कर रखने का काम करता है। इस किताब के लेखक डेविड रिचो, माइंडफुलनेस वाले बुद्धिस्ट कॉन्सेप्ट को आधार बनाकर ऐसे पांच तरीके बताते हैं जिनको जिंदगी के किसी भी मोड़ पर अपनाकर आप हर रिश्ते को बेहतर बना सकते हैं।
ये किताब किनको पढ़नी चाहिए?
- ऐसे कपल्स जो अपना रिश्ता मजबूत करना चाहते हैं
- जो लोग एक अच्छा रिलेशनशिप बनाना चाहते हैं
- जो लोग किसी रिश्ते को समझदारी और शांति से खत्म करना चाहते हैं
लेखक के बारे में
डेविड रिचो एक साइकोथेरेपिस्ट, टीचर और लेखक हैं। वे बहुत सी वर्कशॉप को लीड भी करते रहते हैं। उनका मानना है कि हमारी पर्सनल ग्रोथ और इमोशनल स्टेबिलिटी के लिए प्यार और करुणा जैसी भावनाएं सबसे जरूरी हैं। वो अपना काम भी इन्हीं बातों पर फोकस रखते हुए करते है।
प्यार में पांच बातों का ध्यान जरूर रखें।
इस दुनिया में शायद ही कोई ऐसा इंसान हो जिसका प्यार से वास्ता न पड़ा हो। किताबें, फिल्में, किस्से, कहानियां सब प्यार के इर्द-गिर्द ही घूमते रहे हैं। इसलिए आपको पढ़कर अजीब लगेगा पर प्यार किसी अबूझ पहेली या रहस्य की तरह है। क्योंकि प्यार में डूबे हुए लोग किसी दीवाने की तरह हो जाते हैं फिर भी प्यार करने से बाज नहीं आते। हम किससे प्यार करते हैं या कितने समय तक प्यार करते हैं इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन प्यार एक ऐसी चीज है जो कभी हमारी समझ में नहीं आती है। ज्यादातर लोग मानते हैं कि बहुत गहरा लगाव ही प्यार होता है पर डेविड का नजरिया अलग है। डेविड के हिसाब से प्यार, जिंदगी जीने का एक तरीका है। प्यार की वजह से हम एक-दूसरे को और इस दुनिया को गहराई से समझ पाते हैं। हम सब प्यार का एहसास अपने साथ लेकर पैदा हुए हैं पर जिन लोगों ने बचपन या जिंदगी के किसी मोड़ पर एब्यूज, धोखा या दिल टूटने जैसी चीजों का सामना किया है उनके लिए प्यार करना या नया रिलेशन बनाना मुश्किल हो जाता है। इस किताब में ये बताया गया है कि अगर जिंदगी में कभी आपने इन सबका सामना किया है तो इससे बाहर कैसे आना है। आप अपने दिल को इतना बड़ा कैसे बना सकते हैं कि उसमें सारी दुनिया का प्यार समा जाए या फिर आप खुद को ऐसा बना दें कि पूरी दुनिया पर अपना प्यार लुटा दें। आप ये भी सीखेंगे कि एक अच्छा रिलेशनशिप कैसे बनाया और मेंटेन किया जाता है। इसके अलावा आप यह 3 बातें और जानेंगे।
1. माइंडफुल लविंग के पांच नियम
2. बुरी यादों से पीछा कैसे छुड़ाएं? और,
3. किसी रिश्ते को खत्म करने का सही तरीका।
तो चलिए शुरू करते हैं!
आपके बचपन की पहली याद क्या है? अपने माता-पिता से सुनी कोई कहानी या कोई चोट लगना? बचपन में हम हर बात के लिए अपने माता-पिता पर निर्भर रहते हैं। खास तौर पर इमोशनल जरूरतों के लिए। रोना आया तो माँ के पल्लू में छिप गए, डर लगा तो पिता के सीने से लग गए। इस तरह हमें सिक्योर फील होता है। जब वो हमें प्यार और दुलार करते हैं तो हमें समझ आता है कि हम उनके लिए कितना मायने रखते हैं। इस तरह के सपोर्ट को डेविड 5 A's में बांटते हैं। अटेंशन, एक्सेप्टेंस, अप्रिसिएशन, अफेक्शन और अलाउंस। आपकी पर्सनालिटी अच्छी तरह निखरकर आए इसके लिए जरूरी है कि आपको बचपन में ये पांचों तरह के सपोर्ट भरपूर मिलें। बड़े होने पर अपने पार्टनर के साथ मजबूत रिश्ता बनाने में भी इनका बड़ा रोल होता है। जैसे शरीर को न्यूट्रीशन चाहिए वैसे ही हमारे दिल को भी न्यूट्रीशन की जरूरत होती है जो जिंदगी के हर मोड़ पर काम आता है। यानि ऐसे लोगों का होना जो हमारे हर सुख दुख को समझें और हमारा साथ निभाएं। जब हम कमजोर पड़ने लगें तो हमें सहारा दें। हमारी उलझन में हमें राह दिखाएं ताकि हम हर तरह की चुनौती का सामना मजबूती से करें और अपने आप को निखारते रहें। इन पांच चीजों में ये सारी बातें आ जाती हैं। अब इन पाचों को अच्छी तरह समझते हैं। सबसे पहले आता है अटेंशन। यानि रिश्तों पर ध्यान देना। आपका पार्टनर क्या कहता है उसे ध्यान से सुनें। वो क्या सोचता है उसे समझने की कोशिश करें। इसके लिए ज्यादा कुछ नहीं करना बस माइंडफुल रहना है। हो सकता है उनके साथ अतीत में कुछ बहुत बुरा हुआ हो। वो किसी चोट या सदमे से गुजरे हों। दिल पर चोट खाई हो। एब्यूज झेला हो। एक पार्टनर के तौर पर हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम उनकी बातों को आराम से सुनें। दूसरा है एक्सेप्टेंस जो दूसरों को भी दें और खुद को भी। आप जैसे हैं, दूसरे जैसे हैं उसे उसी तरह एक्सेप्ट करें। एक्सेप्टेंस एक हेल्दी रिलेशनशिप की बुनियाद बनती है। जब हमें अपने पार्टनर के सामने मुखौटा लगाकर जाने की पाबंदी नहीं होती तो हमारी लाइफ आसान हो जाती है। क्योंकि हम जैसे भी हैं उसे पसंद हैं। हमें मेकअप करके चेहरे के दाग-धब्बे छिपाने की जरूरत नहीं है। हमें स्मोक या ड्रिंक करने की बात छिपाने की जरूरत नहीं है। ऑफिस में बॉस से पड़ी डांट छिपाने की जरूरत नहीं है। क्योंकि हम जानते हैं हमारा पार्टनर हर हाल में हमारे साथ है। इस तरह हम किसी बोझ या घुटन से आजाद रहते हैं। तीसरी बात है अप्रिसिएशन यानी तारीफ। पार्टनर की बातों, उनके काम, उनकी भावनाओं की तारीफ कीजिए। हो सकता है वो बहुत महंगे या बड़े गिफ्ट न दे पाए, फाइव स्टार में खाना न खिला पाए। तो क्या हुआ? अगर वो फूल, चॉकलेट या अपनी हैसियत के मुताबिक जो भी देता है उसकी तारीफ कीजिए। उनके सपनों और इच्छाओं को पूरा करने में उनको सपोर्ट कीजिए। चौथे नंबर पर आता है अफेक्शन। इसमें एक जेंटल टच की मदद से प्यार जताया जाता है। हाथ पकड़ना, गले लगाना, चूमना और यहां तक कि मुस्कुराकर देख लेना भी जादू सा असर करता है। सामने वाले को अपनी अहमियत पता चलती है। हमारे दिल में छिपा बैठा बच्चा इस तरह से सेफ और सिक्योर महसूस करता है। आखिरी बात है अलाउंस यानि हम जिंदगी को वही रहने दें जैसी वो है। हमें अच्छा, बुरा, कड़वा, मीठा हर तरह का जायका मिलेगा। सुख और दुख मिलेंगे। इनको कंट्रोल करने की बात सोचना बेकार है। बस प्यार देते और लेते रहिए। आपने ये गाना सुना भी होगा- "प्यार बांटते चलो।"
बचपन की बुरी यादें बड़े होने पर भी पीछा नहीं छोड़तीं।
डेविड बचपन में गर्मी की छुट्टियां बिताने अपनी मौसी के घर जाया करते थे। उनका फ्रिज तरह-तरह की चीजों से ठसाठस भरा रहता था जबकि डेविड के घर हमेशा खाने की कमी रहती थी। डेविड आज भी ये बात भूले नहीं हैं। लेकिन आज डेविड को एहसास होता है कि वो हमेशा भूख महसूस करते थे। पेट से ही नहीं बल्कि दिल से भी। वो भले ही खुद को लाख समझा लें कि उनके माता-पिता अपनी हैसियत के मुताबिक अच्छे से अच्छा करने की कोशिश करते थे पर प्यार की कमी का उनके पास कोई जवाब नहीं है। हम बचपन में किन चीजों से गुजरे हैं उनका हम पर बहुत असर पड़ता है। बड़े होने पर ये अनुभव हमारे रिश्तों को प्रभावित करते हैं। जिन्होंने बचपन में एब्यूज का सामना किया है उनमें बड़े होकर भी एब्यूसिव रिलेशनशिप को बर्दाश्त करने की संभावना ज्यादा होती है। क्योंकि बचपन में उनकी वही पांच बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं हुई जिनको आपने अभी ऊपर पढ़ा। पर ऐसे बर्ताव वजह क्या हो सकती है? बच्चों को घर में प्यार और अपनेपन की कमी महसूस होती है पर वो घूम फिरकर अपने माता-पिता के पास ही वापस जाते हैं। हालांकि उनकी हर कोशिश बेकार जाती है। बच्चे सोचते हैं कि भले ही मेरे माता-पिता मुझे दुत्कार दें पर मैं उनसे दूर नहीं हो सकता। शायद मुझमें ही कोई कमी है। यही सोच बड़े होने पर मजबूत हो जाती है। जब उनका पार्टनर उनके साथ बुरा करता है तो वो बजाए उसका विरोध करने के सब कुछ सहते हैं और इसके लिए खुद को जिम्मेदार मानते हैं। वो प्यार की तलाश में बार-बार उसी पार्टनर की तरफ देखते हैं पर उनको दुख और चोट के सिवा कुछ नहीं मिलता। ऐसे बहुत से बच्चे तो किसी से अपनी परेशानी बांट भी नहीं पाते। इसकी जगह वो अतीत को दोहराने लग जाते हैं। जिन बच्चों ने घरों में लड़ाई झगड़ा और अशांति देखी है उनके लिए ऐसा माहौल बहुत आम बात बन जाता है। अगर उनका रिलेशनशिप ठीक भी चल रहा हो तो वो कुछ न कुछ करके फसाद पैदा कर देते हैं। आप इस जाल से कैसे निकल सकते हैं? सबसे पहले अपनी पुरानी चोट ठीक करनी होगी। किसी भरोसेमंद इंसान के सामने अपने दिल को खोलना पड़ेगा। वो कोई दोस्त या परिवार का सदस्य हो सकता है या फिर आपका डॉक्टर या थेरेपिस्ट भी हो सकता है। आप अपने आप से भी बात कर सकते हैं। जो कुछ हुआ उसे जोर-जोर से बोल दीजिए। डेविड इसे मिररिंग कहते हैं। इसका मतलब बनता है कि जो कुछ भी हुआ आपने उसे समझा, एक्सेप्ट किया और अपनी फीलिंग्स को जाहिर कर दिया। जब हम न्यूट्रल होकर पर ध्यान से ये सब सुन लेते हैं तो हमारे दिल पर कोई बोझ नहीं रह जाता। हम खुद में इतना प्यार और विश्वास भर लेते हैं जिसे सारी दुनिया में बांट सकें और इसके लिए भी तैयार रहते हैं कि कोई हमें प्यार करे तो हमारे दिल का दरवाजा खुला रहे।
जिंदगी आगे बढ़ते रहने का नाम है।
अगर आपने कभी ब्रेड बेक की होगी तो इसकी पूरी प्रोसेस अच्छी तरह समझते होंगे। पहले आपको आटा गूंधना पड़ता है। फिर तब तक इंतजार करना पड़ता है जब तक ये अच्छी तरह फर्मेन्ट न हो जाए। उसके बाद ही आप इसे ओवन में डाल सकते हैं। डेविड इसी तरीके से अपनी परेशानियों से निपटने की सलाह देते हैं। इसमें आप खुद को समय देते हैं और शांति से अपने अंदर बसी निगेटिव फीलिंग्स या बुरी यादों के चले जाने का इंतजार करते हैं। अपने क्लाइंट्स के साथ भी डेविड साइकोलॉजिकल थेरेपी और माइंडफुलनेस को जोड़कर काम करते हैं। ये सब सुनने में बहुत भारी भरकम शब्द लगते होंगे। जरा इनको समझते हैं। साइकोथेरेपी के दौरान डेविड क्लाइंट्स को कहते हैं कि वे अपनी परेशानियों को पहचानें और ये समझने की कोशिश करें कि इनकी वजह से वो मन में किस तरह की भावनाएं महसूस करते हैं। इसके बाद वे कहते हैं कि इन भावनाओं को तब तक थामकर रखें जब तक वो बदल न जाएं या जब तक आपको खुद में कुछ नयापन महसूस न हो। इसके बाद वे माइंडफुलनेस पर आते हैं। ये एक बुद्धिस्ट प्रेक्टिस है जिसमें हम अपनी रोजमर्रा की बातों को लेकर ज्यादा अटेंटिव और अवेयर बन जाते हैं। इस तरह आप ये तो गहराई से समझते हैं कि मन में क्या चल रहा है पर उनको खुद पर राज नहीं करने देते या दिल में बसा नहीं लेते। बस यूं समझते हैं कि एक लहर आई और चली गई। माइंडफुलनेस में आप उन्हीं पांच चीजों को अपने ऊपर लागू करते हैं जिनको डेविड ने 5 A's कहा है। अपनी लिमिटेशन और जिंदगी की हकीकत को समझते हुए आप कदम बढ़ाते हैं। माइंडफुलनेस को अपने जीवन में उतारने का एक तरीका है मेडिटेशन। आप कुछ मिनटों के मेडिटेशन से शुरुआत करके धीरे-धीरे इसे बढ़ा सकते हैं। किसी शांत जगह पर बैठ जाएं। आंखें खुली या बंद जैसी चाहें वैसी रखें। पीठ सीधी रखें और हाथ अपनी गोद में रखें। अपनी सांसों पर ध्यान दें। जब आपके मन में कोई विचार या चिंता आने लगे तो उन्हें नोटिस करें और फिर अपनी सांसों पर ध्यान लगा लें। इस अभ्यास को सीखने में समय लगता है। कुछ समय बाद ध्यान भटकना और विचार आना ही बंद हो जाएगा। जिस तरह ब्रेड पकाने में समय और मेहनत लगती है वैसे ही मन के सुकून तक पहुंचने के लिए समय, मेहनत और धैर्य की जरूरत होती है।
खुद की वेल्यू करना हेल्दी रिलेशनशिप की तरफ पहला कदम होता है।
प्यार को फिल्मों में बड़े लाइट नोट पर दिखाया जाता है। लड़का और लड़की टकरा जाते हैं। एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं। आंखों-आंखों में बातें होती हैं और अपने नंबर शेयर करते हैं। फिल्म खत्म होते हुए दोनों की शादी दिखा दी जाती है। सुनने में तो अनरियलिस्टिक सा लगता है। पर हकीकत में भी ऐसा होना मुमकिन है। खास तौर पर तब जब हम प्यार की तलाश में नहीं होते और अपनी जिंदगी से संतुष्ट होकर जी रहे होते हैं तब अजनबी कदमों की आहट के लिए अनजाने में ही जगह बना देते हैं। किसी नए इंसान से मेलजोल बढ़ाना मुश्किल हो सकता है। खासकर उन लोगों के लिए जिनका अतीत बुरा था। इसलिए किसी को डेट करते हुए सावधानी जरूरी है। इसके कुछ तरीके हैं। सबसे पहले आप खुद से एक वादा करिए कि आप किसी और के लिए खुद को नहीं बदलेंगे। क्योंकि ऐसा करने से आपके स्वाभिमान को चोट पहुंचेगी। अगली बार डेट पर जाने से पहले खुद को याद दिलाएं "मुझे एक पार्टनर चाहिए और मैं अपना पूरा ध्यान रखूंगा ताकि मेरे दिल को कोई चोट न पहुंचे।"
एक पार्टनर के तौर पर किसी ऐसे इंसान को चुनना अच्छा है जो रिश्तों को लेकर आपकी तरह सोचता हो। जैसे कुछ लोग सिर्फ दोस्ती करना और साथ में घूमना फिरना चाहते हैं। कुछ लोग ऐसा पक्का रिश्ता बनाना चाहते हैं जो शादी तक जाए। उनको कमिटमेंट चाहिए होता है। रिश्ते की शुरुआत करने से पहले एक लिस्ट बनाएं कि आप इस रिश्ते में क्या चाहते हैं। अब इसे अपने होने वाले पार्टनर को बताएं। अगर आप दोनों इन बातों के लिए तैयार हैं तो बहुत अच्छा है। इस तरह आप एक दूसरे की जरूरतों को सही तरह पूरा कर पाएंगे। एक अच्छा पार्टनर तभी मिल सकता है जब आपने अपने चारों तरफ जगह बना रखी हो। अगर आप खुद को किसी दरवाजे के पीछे या किले में बंद कर देंगे तो भला कोई आप तक कैसे पहुंचेगा? लेकिन सबसे जरूरी बात ये है कि आप खुद से प्यार करें और अपनी वेल्यू समझें। तभी आप मजबूती से सामने वाले तक अपनी बात रख पाएंगे।
एक रिश्ता तीन चरणों से गुजरकर बेहतर बनता है।
अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक बार कहा था कि नेचर के पास हमारे हर सवाल का जवाब है। जरा इस बात को गहराई से समझते हैं। नेचर में हर चीज का एक साइकल चलता है। पौधे पर कली आती है। वो खिलकर फूल बनती है। फूल मुरझा जाता है और फिर एक नई कली बन जाती है। रिश्ते भी ऐसे होते हैं। इनकी शुरुआत प्यार से होती है। फिर खटपट होती है और आखिर में एक मजबूत और पक्का रिश्ता बन जाता है। ये एक साइकल की तरह चलता रहता है। सच्चा प्यार वही होता है जो इन सभी चरणों को पार कर लेता है। इसमें पहला है रोमांस। इस स्टेज में दिलो दिमाग पर एक नशा छाया रहता है। हम सातवें आसमान पर होते हैं और बस खुशियां ही खुशियां नजर आती हैं। सामने वाले का जादू सर चढ़कर बोलता है। पार्टनर में अच्छाई ही अच्छाई दिखती है। लेकिन रोमांस ज्यादा समय तक टिकने वाली चीज नहीं है। नेचर में रोमांस की भूमिका सिर्फ जोड़ों को पास लाने और नई जेनरेशन बनाने तक की है। इसे टिकाऊ नहीं बनाया गया है। इसलिए कुछ जोड़े इस स्टेप के बाद टूट जाते हैं। उन पर रोमांस का नशा इतना गहरा छाया होता है कि इसके उतरने का यकीन ही नहीं कर पाते। रोमांस के बाद कॉन्फ्लिक्ट की स्टेज आती है। इस समय आप एक दूसरे की सच्चाई देखने लगते हैं। बुराइयां और कमियां नजर आने लगती हैं जो आपने पहले नहीं देखी होतीं। ऐसा होना बिल्कुल सामान्य बात है और एक मजबूत रिश्ते के लिए ये जरूरी भी है। वरना हम बस सिक्के का एक ही पहलू देखते रह जाएंगे। इसके बिना हम रिश्ते की गहराई तक पहुंच भी नहीं सकते। अगर इस चुनौती को पार कर लिया तो आप तीसरी स्टेज पर पहुंच जाते हैं। ये है कमिटमेंट की स्टेज। इस स्टेज में कपल्स उन्हीं 5 A's का लेनदेन करते हैं। अब उनके लिए किसी बहस को जीतना या खुद को सही साबित करना उतना जरूरी नहीं रह जाता। उनको समझौते की राह सही लगती है। ऐसा नहीं है कि वे अब लड़ते नहीं हैं पर उनके बीच प्यार फिर भी बना रहता है। यानि अगर आपको लगता है कि आपका रिश्ता रोमांस से कॉन्फ्लिक्ट में बदल रहा है तो उसमें बने रहें। इस तरह का बदलाव रिश्ते की बुनियाद मजबूत करता है।
डर को दूर करके आप अपने पार्टनर के साथ एक मजबूत बॉन्ड बना सकते हैं।
जैसा आपने अभी पढ़ा शुरुआत में तो हम रोमांस की नदी में गोते लगा रहे होते हैं तब ये ख्याल आता ही नहीं कि हम इसमें डूब भी सकते हैं। लेकिन समय बीतने के साथ बहुत सी चिंताएं हमें घेर लेती हैं। हमें इस बात का डर सताने लगता है कि कहीं वो हमें धोखा तो नहीं देगा, कहीं हम अकेले तो नहीं रह जाएंगे। पर आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। ये सबके साथ होता है। डर भी हमारे रिश्ते को पक्का करने में मदद कर सकता है अगर हम इसे खुद पर हावी न होने दें तो। डेविड के मुताबिक अपनी आजादी खो देना और अकेलापन ये दो ऐसे बड़े डर हैं जिनसे निपटना कपल्स के लिए जरूरी है। अगर कोई हमारे बहुत नजदीक आ जाता है वो हम पर हक जमाने लगता है। ऐसे में हमें डर होता है कि कहीं हमारी आजादी खत्म न हो जाए। यहां पांच चीजों का बैलेंस बिगड़ जाता है। हमें जरूरत से ज्यादा अटेंशन या अफेक्शन तो मिल जाता है पर उतनी एक्सेप्टेंस या अलाउंस नहीं जितनी मिलनी चाहिए। दूसरा डर ये कि अगर पार्टनर हमें छोड़ देगा तो हम उसके बिना कैसे जी पाएंगे। ऐसे में हमें अटेंशन, अप्रिसिएशन या अफेक्शन तो मिलेगा ही नहीं।
दोनों तरह के डर के पीछे हमारी कमजोरी छिपी होती है। हमें लगता है कि हम फंस गए हैं, किसी से दब रहे हैं या किसी के सहारे पर जी रहे हैं। इनको दूर करने के लिए डेविड तीन बातों पर जोर देते हैं। स्वीकार करना, इजाजत देना और एक्ट करना। सबसे पहले आपको अपने डर को अपने और पार्टनर के सामने स्वीकार करना होगा। इसमें किसी को दोष दिए बिना साफ-साफ बात करनी होगी। जैसे आप अपने पार्टनर से कह सकते हैं, "मुझे तुम्हारे करीब आने में डर लगता है कि कहीं तुम मुझे छोड़ न दो" और फिर इसकी वजह बता दीजिए। या बोलिए कि "जब कभी ऐसा होता है तो मुझे लगता है कि कहीं हमारा रिश्ता टूट न जाए।" अब इस डर को जज किए बिना अच्छी तरह महसूस करिए। इसमें माइंडफुलनेस आपके काम आती है। अपने डर को उभरने की इजाजत दीजिए। उसे पहचानिए और फिर गुजर जाने दीजिए। अगला कदम है एक्ट करने का। अब ऐसे एक्ट करिए जैसे आपको किसी बात का डर ही नहीं है। जैसे अगर आपको पार्टनर के छोड़कर चले जाने का डर है तो रोज उससे थोड़ी देर के लिए दूर होने का एक्ट करें और इस समय को बढ़ाते जाएं। आपको उस जगह पहुंचना है जहां आप अकेले रह जाने पर भी नॉर्मल रह पाएं। अगर आपको ये डर है कि आपकी आजादी चली जाएगी तो अपने पार्टनर के ज्यादा से ज्यादा करीब रहने की कोशिश करें। डर को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि उसे महसूस कर लिया जाए। हम डर पर तभी काबू पा सकते हैं जब हम उससे होने वाली परेशानी और बेचैनी को सहना सीख लें।
रिश्तों को खत्म करने का भी एक तरीका होता है।
अगर कभी आपका ब्रेक अप हुआ होगा तो इससे होने वाली तकलीफ को अच्छी तरह जानते होंगे। दो लोगों के बीच का बॉन्ड तो टूटता ही है पर उनकी उम्मीदें और रिश्ता निभाने में की गई मेहनत भी खत्म हो जाती है। ऐसी किसी चीज को बनाए रखने के लिए स्ट्रगल करना जो पहले ही खत्म हो चुकी है ज्यादा तकलीफ देता है। अगर आपको लगता है कि आपके और आपके साथी के बीच का बंधन कमजोर हो रहा है तो उस रिश्ते को खत्म करना और आगे बढ़ जाना ही सही कदम हो सकता है। जब कोई रिश्ता खत्म होने की कगार पर होता है तो कुछ इशारे देने लगता है। आप अब एक-दूसरे के साथ खुश और सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं। आप एक-दूसरे के लिए समय नहीं निकाल पा रहे हैं। फिजिकल इन्टिमेसी का पैटर्न बिगड़ रहा है। ये सब बातें इस तरफ इशारा करती हैं कि आपका इमोशनल बॉन्ड खत्म हो रहा है। एक और कंडीशन ये हो सकती है कि अब आप अपने पार्टनर पर भरोसा नहीं करते हैं। उसका फोन चेक करने लगे हैं। उसकी वफादारी पर सवाल उठाने लगे हैं। आप इस चिंता में घिर गए हैं कि वो किसी भी दिन आपको छोड़कर चला जाएगा। इन सबसे ये पता चलता है कि आपकी पांचों भावनात्मक जरूरतें पूरी नहीं हो रही हैं।
अगर आपको ये लगता है कि आप अपने पार्टनर को प्यार, सम्मान और सपोर्ट नहीं दे पा रहे हैं या वो आपको ये सब नहीं दे पा रहा है तो इस रिश्ते को खत्म करने का समय आ गया है। ये कदम शांति से भी लिया जा सकता हैं। सबसे पहले अपने पार्टनर के साथ इस बारे में बात करें कि आप ये रिश्ता क्यों खत्म करना चाहते हैं। आप दोनों को अपने रिश्ते से जुड़े हर पहलू पर बात करनी है ताकि आप दोनों एक-दूसरे की भावनाओं और परेशानियों को पूरी तरह समझ सकें और उनका हल निकाल सकें। खुद को थोड़ा समय दें ताकि आप इस दुख से अच्छी तरह गुजर पाएं। कुछ दिन अकेले रहकर दिल का बोझ हल्का लें। ये सोचकर नया रिश्ता बनाने की जल्दबाजी न करें कि इससे आपके जख्म जल्दी भर जाएंगे। आपको इस घटना से उबरने और सबक सीखने के लिए खुद को समय देने की जरूरत है। सबसे जरूरी ये है कि किसी रिश्ते को कड़वाहट के साथ खत्म मत कीजिए। इसे एक नई शुरुआत के रूप में देखिए। हर अंधेरे के बाद उजाला होता है और हर दुख के बाद सुख की घड़ी आती है। ऐसे अनुभव आपको मजबूत बनाते हैं। उठिए और खुद को फिर से नई सुबह के लिए तैयार करिए।
एक इंसान को प्यार करने से आप पूरी दुनिया को प्यार करना सीख जाते हैं।
दादी से मिला हुआ प्यार डेविड की सबसे पुरानी यादों में से एक है। जब कभी डेविड की माँ बाहर होती तो दादी डेविड को संभालती। डेविड को इससे सुरक्षित होने का एहसास मिलता था। डेविड को आज भी दादी की मौजूदगी और उनका प्यार याद आता है। प्यार क्या होता है और कैसे किया जाता है ये डेविड ने इसी तरह सीखा। इतना ही नहीं डेविड ये भी मानते हैं कि इस तरह आप सारी दुनिया में प्यार बांटना सीख जाते हैं। आप कहेंगे भला ये कैसे होता है? ये होता है कमिटमेंट की मदद से। वही पांच A's का लेनदेन, परेशानियों से निपटना और वादे निभाना जो हम किसी एक के साथ करते हैं उसे ही बाकी लोगों के साथ भी करना है बस। रिश्ते निभाते हुए हमारे मन में दया और करुणा की भावना भी आ जाती है। जब हम किसी रिश्ते में होते हैं तो ये बात अच्छी तरह जानते हैं कि सामने वाला परफेक्ट नहीं है। लेकिन हम इस बात पर राजी होते हैं कि वो जैसा भी है हमारे लिए बेस्ट है और हमें उसे जी भर कर प्यार देना है।
प्यार और करुणा जैसी भावनाएं असल जिंदगी में बहुत कुछ कर जाती हैं। मान लीजिए आप किसी बड़ी कंपनी में मैनेजर हैं। आप एम्प्लॉयीज के बीच सहयोग और तालमेल को बढ़ावा देना चाहते हैं। पर आप ये सब करेंगे कैसे? उन्हीं पांच A's की मदद से जो आप अपने पार्टनर को देते हैं। एम्प्लॉयीज की फीलिंग्स और चिंताओं पर ध्यान दें। उनकी ताकत और कमजोरियों को स्वीकार करें। उनके अच्छे काम और अचीवमेंट की तारीफ करें। ये एक मैनेजर की जगह पर्सनल लेवल पर भी किया जा सकता है। उनको आगे बढ़ने के लिए मोटिवेट करिए। उनको डिसीजन लेने दें। करुणा दिखाने का मतलब है सामने वाले के सुख-दुख को, उनकी कमियों और ताकत को समझना। अपने एम्प्लॉयीज को नई स्किल सीखने के लिए मौके दें। उनकी ग्रोथ में हिस्सेदार बनें। जब कभी जरूरत हो उनके सपोर्ट के लिए तैयार रहें। ये सब वही बर्ताव है जो एक हेल्दी रिलेशनशिप में हम अपने पार्टनर के साथ करते हैं। हम सब ढेर सारा प्यार लुटाने की ताकत के साथ इस दुनिया में आए हैं। हम खुद को और दूसरों को इसका तरीका सिखा सकते हैं।
कुल मिलाकर
प्यार के पांच पहलू हैं जो एक हेल्दी रिलेशनशिप की बुनियाद बनते हैं। इन पांचों चीजें के मिलने से हमें प्यार का एहसास होता है। इनसे एक रिश्ता गहरा और ज्यादा बेहतर बनता है। ये पांच बातें यानि अटेंशन, एक्सेप्टेंस, अप्रिसिएशन, अफेक्शन और अलाउंस अगर हम सब अपना लें तो ये दुनिया और भी बेहतर बन सकती हैं।
क्या करें
अपने गुस्से का सही इस्तेमाल करें।
हम सबको गुस्सा करने का हक है पर सिर्फ तब तक जब तक इससे कोई नुकसान न हो। अगर अपनों से लड़ाई या मतभेद हो जाए तो उस जगह से हट जाएं। खुद को किसी दूसरे काम में लगा लें। इस तरह गुस्से वाली एनर्जी किसी दूसरी जगह काम आ जाएगी। अगर चाहें तो कुछ बोलते हुए कदमताल करें जैसे, "तुम मेरी बात नहीं सुनते हो।" इस तरह आप खुद को शांत कर लेंगे और बाद में ठंडे दिमाग से पार्टनर के साथ बात करके परेशानी को सुलझा लेंगे।
येबुक एप पर आप सुन रहे थे How to Be an Adult in Relationships By David Richo.
ये समरी आप को कैसी लगी हमें yebook.in@gmail.com पर ईमेल करके ज़रूर बताइये.
आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे.
अगर आप का कोई सवाल, सुझाव या समस्या हो तो वो भी हमें ईमेल करके ज़रूर बताएं.
और गूगल प्ले स्टोर पर ५ स्टार रेटिंग दे कर अपना प्यार बनाएं रखें.
Keep reading, keep learning, keep growing.

