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Mindset

Carol Dweck
सफलता के सफर में सही सोच की जरूरत होती है।

दो लफ्जों में 
माइंडसेट (Mindset) में हम देखेंगे कि कामयाबी हासिल करने के लिए आपको किस तरह की सोच रखनी चाहिए। यह किताब हमें दो अलग अलग माइंडसेट के बारे में बताती है और साथ ही यह भी बताती है कि सफल लोगों के पास कौन सा माइंडसेट होता है। इस किताब से हम सफल होने के माइंडसेट के बारे में जानेंगे।

यह किसके लिए है 
•वे जो यह सोचते हैं कि सफलता हासिल करना सबके बस की बात नहीं होती।
•वे जो अलग अलग लोगों की अलग अलग सोच के बारे में जानना चाहते हैं।
•वे जो गलतियों के महत्व के बारे में जानना चाहते हैं।

लेखक के बारे में 
कैरोल ड्वेक ( Carol Dweck ) स्टैनफार्ड यूनिवर्सिटी में साइकोलॅाजी की प्रोफेसर हैं। वे अपने माइंडसेट साइकोलॅाजिकल ट्रेट के काम के लिए जानी जाती हैं। वे बार्नैर्ड कालेज ( Barnard College ) से 1967 में ग्रैजुएट हुई और उन्होंने येल यूनिवर्सिटी से 1972 में पीएचडी की।

ग्रोथ माइंडसेट के साथ आप बढ़ सकते हैं और फिक्स्ड माइंडसेट के साथ आप एक सीमा में कैद हो जाते हैं।
शायद आप कुछ ऐसे लोगों से मिले हों जो यह मानते हैं कि सफलता हासिल करने वाले लोग अपने हुनर के साथ पैदा हुए थे। वे ये मानते हैं कि अगर उनके पास पैदाइशी हुनर नहीं है तो वे कभी सफलता नहीं पा सकते हैं। ऐसे लोग अक्सर वे होते हैं जो सफल नहीं हो पाते।

जब लोग सफलता हासिल ना करने पर निराश हो जाते हैं तब वे दूसरों को दोष देने लगते हैं। अगर उन्हें कोई नहीं मिलता तो वे किस्मत या भगवान को दोष देते हैं। उनके हिसाब से भगवान ने उन्हें कोई हुनर नहीं दिया या दूसरों के मुकाबले कम हुनर दिया। ऐसे लोग फिक्स्ड माइंडसेट के होते हैं।

दूसरी तरफ आप ऐसे भी लोगों से मिले होंगे जो यह सोचते हैं कि अगर वे चाहें तो कुछ भी कर सकते हैं। ऐसे लोगों का मानना है कि वे ज्यादा मेहनत कर के और अपने काम को ज्यादा वक्त दे कर किसी भी मुश्किल पर जीत हासिल कर सकते हैं। ऐसे लोग जिन्दगी भर कुछ ना कुछ सीखते रहते हैं और एक बेहतर इंसान में बदलते रहते हैं। इस माइंडसेट को ग्रोथ माइंडसेट कहा जाता है।

एक सही माइंडसेट ही हमारे भविष्य का फैसला करता है। अगर हम सोचें कि हम यह काम कर लेंगे तो हम बिल्कुल सही सोच रहे हैं और अगर हम सोचें कि हम यह काम नहीं कर पाएंगे तो भी हम बिल्कुल सही सोच रहे हैं।

हमारा माइंडसेट ही यह फैसला करता है कि क्या हम समय के साथ खुद को बदल सकते हैं और आगे बढ़ सकते हैं या नहीं। अगर आपको अपने हालात बदलने हैं तो आप सबसे पहले अपना माइंडसेट बदलिए।

फिक्स्ड माइंडसेट के लोग एक फिक्स सोच रखते हैं और उसके ऊपर नहीं उठते।
फिक्स्ड माइंडसेट के लोगों का मानना होता है कि टैलेंट किसी इंसान में पैदाइशी ही होता है। उनका मानना है कि अगर वे बचपन से खेल कूद में या लिखने पढ़ने में तेज नहीं हैं तो उसकी सिर्फ एक ही वजह है कि वे उस काम के लिए नहीं बनाए गए। किसी नई चीज को सीखने के बजाय वे हमेशा अपनी सीमाओं में ही रहने के बारे में सोचते हैं और सिर्फ उसी काम पर ज्यादा ध्यान देते हैं जो वे पहले से कर रहे हैं।

फिक्स्ड माइंडसेट के लोगों का मानना होता है कि आदमी अपने आप को बदल नहीं सकता। उनके हिसाब से अगर आप बचपन से ही पढ़ने लिखने में कमजोर हैं तो आप चाहे कितनी भी कोशिश कर लें आप जिन्दगी भर ऐसे ही रहेंगे। क्योंकि ये लोग कुछ अलग करने की कोशिश नहीं करते इसलिए ये गलती करने से बहुत डरते हैं।

उनके हिसाब से अगर आप अपनी पूरी जिन्दगी में एक भी गलती करते हैं तो आप हमेशा के लिए एक बेवकूफ इंसान माने जाएंगे। अगर उनसे कोई गलती हो भी जाए तो वे उसे छुपाने की पूरी कोशिश करते हैं जिससे कोई उनकी बुराई ना कर पाए। दे हमेशा अपने आप में और दूसरों में कमियां ढूंढते रहते हैं और सोचते हैं कि दूसरे भी उनके अन्दर कमी ढूंढ रहे होंगे। 

फिक्स्ड माइंडसेट के लोग हमेशा दूसरों से अपनी पर्फार्मेंस के बारे में पूछते रहते हैं जिससे वे अपने ईगो को शांत कर के यह सोच सकें कि लोग उनके बारे में अच्छा सोचते हैं।

फिक्स्ड माइंडसेट के लोग जब भी किसी नए काम को शुरू करने की कोशिश करते हैं और उसे सही से नहीं कर पाते तो वे सोचने लगते हैं कि वे जिन्दगी भर उस काम को नहीं कर पाएंगे और निराश हो कर काम छोड़ देते हैं। अपने नए काम को मेहनत और समय देने के बजाय वे पहले दिन की प्रैक्टिस में गोल्ड मेडल जीतने के बारे में सोचते हैं और अगर वे गोल्ड ना जीत पाएँ तो सोचने लगते हैं कि यह काम उनके लिए नहीं है।

ग्रोथ माइंडसेट रखने वाले लोग मेहनत कर किसी भी काम में माहिर बन जाते हैं।
कुछ लोग यह सोचते हैं कि अगर वे मेहनत करें, काम में एक बार फेल हो जाने पर फिर से कोशिश करें और बार बार प्रैक्टिस करें तो वे कुछ भी कर सकते हैं। ऐसे लोग सही मायनों में एक स्टूडेंट होते हैं और जिन्दगी भर एक स्टूडेंट ही रहते हैं।

अगर आप एक महीने के लिए एक टीचर की नौकरी कर लें तो आपको एक क्लास में ही दोनों माइंडसेट के बच्चे मिलेंगे। अगर आप कोई नया सवाल पूछें तो कुछ बच्चे तुरंत उसका जवाब देने की कोशिश करते हैं भले ही वे गलत जवाब दे रहे हों। वे फेल होने से नहीं डरते और हर नए सवाल का जवाब देने की कोशिश करते हैं। दूसरी तरफ आपको कुछ ऐसे भी बच्चे मिलेंगे जो बस तभी हाथ उठाते हैं जब उन्हें सवाल का जवाब पूरी तरह से पता हो। ये बच्चे फिक्स्ड माइंडसेट के होते हैं।

ग्रोथ माइंडसेटके बच्चे किसी भी नए सवाल को एक चैलेंज की तरह देखते हैं। वे मानते हैं कि प्रैक्टिस से वे हर कामकर सकते हैं। वे हमेशा अपने आप को बेहतर बनाने के नए नए रास्ते खोजते रहते हैं और अपने अंदर कमियों को ढूंढते रहते हैं। वे पुराने तरीकों को छोड़कर नए तरीके खोजते रहते हैं और हर तरह से अपने आप को सुधारने की कोशिश करते हैं।

जिन लोगों के पास ग्रोथ माइंडसेट होता है वे हमेशा परेशानियों का स्वागत करते हैं। अपने रिश्ते में वे अपने पार्टनर को सुधारने की कोशिश करते हैं, टीम में खेलते वक्त वे टीम के लिए ही खेलते हैं, अपने कर्मचारियों से समय समय पर राय लेते रहते हैं और अगर कोई उनकी बुराई करे तो वे बुरा ना मान कर उस बुराई पर विचार करते हैं और उसे सुधारने की कोशिश करते हैं।

फिक्स्ड माइंडसेट के लोग अपने आप को बेहतर साबित करने की कोशिश करते हैं जबकि ग्रोथ माइंडसेट के लोग अपने आप को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं।
आइए हम फिक्स्ड माइंडसेट और ग्रोथ माइंडसेट के एक्ज़ाम्पल पर एक नज़र डालें।

ली लकोका ( Lee Lacocca ) जब क्रिस्लर मोटर्स के सीईओ बने तब वह कंपनी डूबने वाली थी। लेकिन लकोका के आ जाने के बाद वह कंपनी एक बार फिर से पानी के ऊपर आ गई। लकोका को तुरंत फैसले लेने की आदत थी जिससे उसने कंपनी डूबने से बचाया।

लेकिन इसके बाद लकोका अपनी जीत के गुण-गान गाने लगा। वह अपने आप को महान बड़ा समझने लगा और अपनी इमेज बनाने पर ध्यान देने लगा। वो हमेशा दूसरों से अपने बारे में राय लेता रहता था।

लकोका फिक्स्ड माइंडसेट का व्यक्ति था। वह हमेशा अपनी इमेज बनाने के बारे में सोचता था और दूसरों से अपने बारे में राय लेता रहता था। उसका यह व्यवहार ये दिखाता है कि वह हमेशा अपने आप को बेहतर साबित करने की कोशिश करता है।

इसके अलावा जो लोग ग्रोथ माइंडसेट के होता है वे हमेशा बेहतर बनने की कोशिश करते हैं ना कि अपने आप को बेहतर साबित करने की। इसका एक्ज़ाम्पल हैं लोउ जर्न्सटर ( Lou Gerstner )।

जब आइबीएम ( IBM ) कंपनी बहुत घाटे में जाने लगी तब उन्होंने उसकी जिम्मेदारी ली। उन्होंने देखा कि यहाँ के कर्मचारी आपस में ही एक दूसरे से सहमती नहीं रहते हैं और अपने आप को सही साबित करने की कोशिश करते हैं। वे सब अपना काम तो कर रहे थे पर एक साथ काम नहीं कर रह थे जिससे कंपनी ठीक से नहीं चल पा रही थी।

उन्होंने कंपनी में टीम वर्क को बढ़ावा दिया। वे उन कर्मचारियों को ईनाम देने लगे जो दूसरों की मदद करते थे। उन्होंने बातचीत करने के साधन बढ़ा दिए जिससे कंपनी के हर हिस्से के लोग आपस में बात कर सकें। इसके अलावा वे खुद कर्मचारियों के साथ मिलकर काम करने लगे जिससे वे उनके करीब आ सकें और उनके विचारों के बारे में जान सकें।

जर्न्सटर के इस काम की वजह से कंपनी को सफलता मिली। उनकी कंपनी के कर्मचारी आपस में मिल जुलकर काम करने लगे जिससे कंपनी एक बार फिर से ऊँचाइयों को छूने लगी।

फिक्स्ड माइंडसेट के लोगों का हारना बिल्कुल पसंद नहीं है।
फिक्स्ड माइंडसेट के लोग यह सोचते हैं कि उन्हें जो बनना था वे बन चुके हैं और अब इससे बेहतर नहीं बन सकते। इसलिए अगर उनसे कोई गलती होती है तो वे उसे सुधारने की बजाए उसपर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं। वे हमेशा अपनी गलती के लिए दूसरों को दोष देते हैं और कभी खुद को बेहतर बनाने के बारे में नहीं सोचते। वे गलतियों से सीखने की कोशिश नहीं करते हैं।

दूसरी तरफ ग्रोथ माइंडसेट वाले लोगों का मानना होता है कि उनकी नाकामयाबी के लिए सिर्फ वे ही जिम्मेदार हैं और अगर उन्हें कामयाब होना है तो उन्हें दूसरों में गलतियाँ और कमियां निकालना छोड़कर खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करनी होगी। वे हर बार अपनी गलतियों से सीखने की कोशिश करते रहते हैं और इस दौड़ में बेहतर बनते रहते हैं। ऐसे लोग अपनी जिन्दगी में कामयाबी हासिल करते हैं। अगर वे हार जाएँ तो वे बेईमानी नहीं करते और ना ही अपनी गलती पर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं।

इतिहास का हर सफल व्यक्ति ग्रोथ माइंडसेट का था। कामयाबी एक रात में कभी हासिल नहीं की जा सकती। जैसे जैसे आप खुद में बदलाव और सुधार करते रहते हैं यह धीरे धीरे आपके पास आती रहती है और एक दिन जब आप पूरी तरह से इसके काबिल हो जाते हैं तब यह आपके साथ हमेशा के लिए रहने लगती है।

फिक्स्ड माइंडसेट के लोग अच्छी और बुरी किस्मत पर विश्वास करते हैं और ग्रोथ माइंडसेट के लोग अपनी किस्मत खुद से लिखते हैं।
फिक्स्ड माइंडसेट के लोगों को किसी भी मुश्किल हालात का सामना करने में हमेशा परेशानी होती है। वे उस मुश्किल हालात से निकलने की कोशिश करने के बजाय यह मान लेते हैं कि यही उनकी किस्मत है। जब वे किसी दूसरे को अपने जैसे हालात में फँसे रहने के बाद उससे निकलता हुआ देखते हैं तो वे सोचते हैं कि उसकी किस्मत में निकलना लिखा था इसलिए वह निकल रहा है।

इस तरह की सोच रखने वाले लोग अच्छी किस्मत के काबिल नहीं हैं इसलिए उनकी किस्मत अच्छी नहीं होती। अगर वे उस मुश्किल हालात से निकलने की कोशिश करेंगे तो वे अच्छी किस्मत के काबिल बन जाएंगे और सफल हो जाएंगे। लेकिन अगर वे मुश्किल हालात का सामना ही नहीं करेंगे तो अच्छी किस्मत खुद उनसे दूर भाग जाएगी।

ग्रोथ माइंडसेट के लोग अपनी किस्मत खुद लिखने की जिम्मेदारी उठाते हैं। एक्ज़ाम्पल के लिए आप विल्मा रुडोल्फ ( Wilma Rudolph )  को ले लीजिए। छोटी उम्र में ही उन्हें पोलियो की बीमारी हो गई थी और डाक्टर ने कहा था कि वे कभी चल नहीं पाएगी। लेकिन उनकी माँ ने उनका हौसला बढ़ाया और कहा कि वे एक दिन जरूर चलेंगी।

फिर विल्मा ने 1960 की ओलम्पिक की रेस में तीन गोल्ड मेडल जीते। उन्होंने अपनी किस्मत को चुप चाप स्वीकार नहीं किया बल्कि उसे बदलने की पूरी कोशिश की और वो कर दिखाया जो सुनने में असंभव सा लगता है।

इसके अलावा सुधा चंद्रन एक ऐसी नृत्यांगना थी जिनका एक पैर नहीं था। छोटी उम्र में ही उनका एक पैर कट गया था लेकिन उन्हें नाचने का इतना शौक था कि कटे हुए पैर ने उनका हौसला नहीं तोड़ा। वे अपने समय की सबसे अच्छी नृत्यांगना थी।

किस्मत हमारी लकीरों में है तो लकीरें हमारे हाथों में है। अगर आप उसे बदलना चाहते हैं तो आपको ग्रोथ माइंडसेट को अपनाना होगा।

पैरेंट्स और टीचर्स बच्चों के फिक्स्ड या ग्रोथ माइंडसेट के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होते हैं।
ज्यादातर पैरेंट्स अपने बच्चे को हमेशा जज करते रहते हैं। इसके बजाए कि वे उन्हें सीखने के लिए आगे बढ़ाएँ वे उनसे साफ साफ कह देते हैं कि -"यह गलत है" या फिर "तुमने यह ठीक नहीं किया"। जब पैरेंट्स अपने बच्चे से इस तरह के शब्द कहते हैं तब उनका बच्चा हमेशा सही करने की कोशिश करने लगता है। उसे लगने लगता है कि अगर वो कुछ गलत करता है तो इसके लिए उसे मार या डाँट खानी होगी।

जब बच्चे के मन में ऐसी मानसिकता बनने लगती है तो वह अपनी गलती को छुपाने या गलती करने से दूर भागता है। वो हमेशा लोगों में अपनी इमेज बनाने लगता है और कोई नया काम सिर्फ इसलिए नहीं करता क्योंकि उसे पता होता है कि इसमें उससे गलती होगी जिसके लिए उसे डाँट खानी होगी।

पैरेंट्स के अलावा बच्चे के टीचर भी उसका माइंडसेट बनाने के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होते हैं। जब वे अपने बच्चों को सीखने के लिए या कुछ अलग करने के लिए बढ़ावा देते हैं तब उनके बच्चे ये सोचने लगते हैं कि गलतियों से ही हम कुछ नया सीखते हैं और बार बार कोशिश कर के हम उन्हें कम कर सकते हैं।

लेकिन जब टीचर अपने बच्चों को बेवकूफ कहने लगें या फिर कमजोर बच्चों की तुलना तेज बच्चों से करने लगें तो कमजोर बच्चों के अंदर यह मानसिकता बनने लगती है कि जिन लोगों के पास पैदाइशी हुनर है बस वही सफल हो सकते हैं। वे इस बात को मानने लगते हैं कि वे चाहे कितनी भी कोशिश कर लें वे कभी बेहतर नहीं बन पाएंगे। इससे उनके अन्दर फिक्स्ड माइंडसेट बनने लगता है।

अगर आप एक पैरेंट या टीचर हैं तो यह बातें आपके बच्चे के भविष्य के लिए बहुत जरूरी हैं।

कामयाबी हासिल करने के लिए ग्रोथ माइंडसेट का होना बहुत जरूरी है।
अब आपके दिमाग में शायद यह सवाल उठ रहा हो कि क्या हम फिक्स्ड माइंडसेट से छुटकारा पा सकते हैं? अगर हाँ तो कैसे? अच्छी बात यह है कि हाँ, आप फिक्स्ड माइंडसेट से छुटकारा पा कर कामयाबी हासिल कर सकते हैं। आइए देखें कैसे।

सबसे पहले आप किसी भी चीज को अच्छा या बुरा मत समझिए। अगर आप से कोई गलती हो जाती है तो आप अपने आप के बारे में या गलती करने वाले के बारे में बुरा मत सोचिए। आप सोचिए कि गलतियाँ हो जाती हैं और उन्हें सुधारा जा सकता है। आप अपनी गलतियों को अपनी बेवकूफी की निशानी ना समझ कर उन्हें सीखने का एक जरिया समझिए।

फिक्स्ड माइंडसेट को छोड़ना इतना आसान नहीं होता। क्योंकि आपको गलती करने से डर लगता है और आप यह सोचते हैं कि इसके लिए लोग आपको बेवकूफ समझेंगे या आपकी बुराई करेंगे इसलिए आप कुछ नया करने की कोशिश ही नहीं करेंगे। 

इससे छुटकारा पाने के लिए आपको सबसे पहले लोगों को अन्देखा करना सीखना होगा। आपको यह सोचना होगा कि लोगों के कुछ भी कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि आपकी जिन्दगी लोगों की मेहरबानी की वजह से नहीं चल रही। आपको अपने अन्दर से "लोग क्या कहेंगे" वाली सोच को निकालना होगा।

फिक्स्ड माइंडसेट को पूरी तरह से छोड़ने की कोशिश मत कीजिए। कोई भी पूरी तरह से पर्फेक्ट नहीं होता। आप बस एकएक कर के अपने अन्दर की कमी को पहचान कर उससे निपटने की कोशिश कीजिए।

ग्रोथ माइंडसेट के साथ आप कोई भी काम कर सकते हैं। यह आपके अंदर छुपी हुई वो ताकत है जिसके बारे में आप नहीं जानते थे। आपको बस इस ताकत को अपने अन्दर से बाहर लाना होगा और इस पर काम करना होगा।

कुल मिला कर
कामयाबी हासिल करने के लिए ग्रोथ माइंडसेट का होना बहुत जरूरी है। फिक्स्ड माइंडसेट हमें गलतियाँ करने से रोकता है जिससे हम कोई भी नया काम नहीं करते और जहां हैं वहीं पर हमेशा के लिए रह जाते हैं। इस माइंडसेट के साथ हम हमेशा अपने आप को बेहतर साबित करने की कोशिश करते हैं और अपनी कमियों पर ध्यान नहीं दे पाते। कामयाबी हासिल करने के लिए हमें इससे छुटकारा पाना होगा।


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