Drunk..... 🍾

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Drunk

Edward Slingerland
क्या आप जानते हैं कि हम शराब क्यों पीते हैं?..जानिए कुछ रोचक फैक्ट्स

दो लफ्ज़ों में
साल 2021 में रिलीज़ हुई किताब “ड्रंक” एक साइंटिफिक और हिस्टोरिकल इन्क्वायरी है. जो कि ये बताती है कि इंसान शराब पीने की शुरुआत क्यों करता है? इस किताब में ये रिसर्च के साथ बताया गया है कि किस तरह से मदिरापान ने हमारे पूर्वज़ों के विकसित होने में मदद की थी. इसी के साथ-साथ इस किताब में इस सवाल के जवाब को तलाश करने की भी कोशिश की गई है कि क्या आज के समय में ये मॉडर्न टूल है या नहीं? 


ये किताब किसके लिए है? 
- ऐसा कोई भी जो ड्रिंक करता हो 
- ऐसा कोई भी जिसे ह्यूमन बिहेवियर में इंटरेस्ट हो 
- ऐसा कोई भी जिसे साइकोलॉजी में इंटरेस्ट हो 
- ऐसा कोई भी इवोल्यूशन में इंटरेस्ट हो 

लेखक के बारे में
आपको बता दें कि इस किताब का लेखन Edward Slingerlandने किया है. वो लेखन के साथ-साथ पेशे से फिलॉसफर भी हैं. इन सबके साथ ये ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाते भी हैं.

 इनकी पिछली किताब “Trying Not To Try: The Art and Science of Spontaneity”को भी पाठकों के द्वारा काफी ज्यादा पसंद किया गया था.

हम क्यों ड्रिंक करते हैं? ये कोई एक्सीडेंट नहीं है
ऑथर Edward Slingerland, वैज्ञानिकों के दावों पर सवाल खड़े करते हुए कहते हैं कि “शराब पीना किसी भी तरह का एक्सीडेंट नहीं है. और ना ही ये हाइजैक या फिर हैंगओवर है. जैसा कि वैज्ञानिक मानते हैं.” 

तो फिर अब ज़रूरी है कि हम ये समझने की कोशिश करें कि आखिर वैज्ञानिक ऐसा क्यों मानते हैं? और मैं ऐसा क्यों नहीं मानता हूँ? आपके सामने दोनों बातें फैक्ट्स के साथ रखी जाएंगी, इसके बाद आपको फैसला करना है कि आपके नज़रिए के लिए सही बात कौन सी है? 

चलिए शुरू करते हैं और हाईजैक आग्र्युमेंट के लूप होल पर नज़र डालते हैं. इस आर्ग्युमेंट के हिसाब से अल्कोहल हमारे दिमाग के केमिकल रिलीज़ सिस्टम को हाईजैक कर लेता है. जिसकी वजह से हमें रिवार्ड मिलता है और हम उसी रिवार्ड की वजह से शराब की लत को नहीं छोड़ पाते हैं. 

अब आप खुद ही सोचिए कि ये आर्ग्युमेंट सुनने में ही कितना बचकाना लगता है? जैसे कि किसी बच्चे से टॉफ़ी की लालच में कोई काम करवा लेना हो. आखिर वैज्ञानिक ऐसा कैसे सोच सकते हैं? 

हम सभी को मालुम होना चाहिए कि सेक्स के दौरान इंसान के दिमाग से केमिकल रिलीज़ होते हैं, जिसका रिवार्ड orgasm के तौर पर मिलता है. और उसी केमिकल की वजह से हमें प्लेज़र मिलता है. वैज्ञानिकों ने इसी सिस्टम को हाईजैक बताया है और इसे अल्कोहल से जोड़ने की कोशिश की है. 

और ज्यादा आसान शब्दों में कहें तो उन्होंने ड्रिंकिंग हैबिट को मास्टरबेशन से जोड़ने की कोशिश की है. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि दोनों ही चीज़ों के बाद रिवार्ड्स मिलते हैं. इंसानी दिमाग को अच्छा लगता है. लेकिन दोनों ही प्रोसेस पूरी तरह से अलग हैं. 

मास्टरबेशन की शुरुआत करने वाले को ज्यादा नुकसान नहीं हो सकता है. इसलिए मास्टरबेशन को हार्मलेस भी कहा गया है. लेकिन क्या अल्कोहल का सेवन करना हार्मलेस है? 

आप मास्टरबेशन को वेस्ट ऑफ़ टाइम या एनर्जी कह सकते हैं, लेकिन उसकी वजह से किसी भी तरह से नुकसान नहीं होता है. इसलिए मास्टरबेशन हार्मलेस हाईजेक में आता है. लेकिन शराब का सेवन करना इंसान के दिमाग और शरीर को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है. इसलिए कोई भी ड्रिंकिंग को हार्मलेस नहीं कह सकता है. 

हम लोगों ने अभी तक काफी हाईजैक थ्योरी के ऊपर बात कर ली है, अब थोड़ी चर्चा हैंगओवर थ्योरी के ऊपर भी कर लेते हैं. 

ऑथर बताते हैं कि सबसे पॉपुलर हैंग ओवर थ्योरी को “drunken monkey” थ्योरी कहा जाता है. इस थ्योरी के हिसाब से इंसान ने शराब पीने की शुरुआत कैलरी की तलाश में की थी. जंगलों में रहते वक्त, इंसान को ज्यादा कैलरीज की ज़रूरत पड़ती थी. जिसके लिए उसनें फलों को फर्मेंट करने की शुरुआत कर दी थी. और उसी प्रोसेस से उसनें अल्कोहल पीने की शुरुआत भी की थी. 

लेकिन अब सच्चाई ये है कि जंगलों में रहने वाले लोग फलों को ताजा खाने में भरोसा करते हैं. उन्हें कैलरीज़ के लिए शराब की ज़रूरत नहीं पड़ती है. 

तो पूरी बात का मतलब साफ़ सा है कि इंसान हाईजैक की वजह से नहीं पीता है, ना ही हैंगओवर की वजह से पीता है. ना ही शराब पीना कोई एक्सीडेंट है. तो फिर आखिर इंसान शराब पीता क्यों है? 

क्या आपको इस सवाल का जवाब मिल गया है? अगर नहीं तो आगे के चैप्टर्स में हम इस सवाल के जवाब की तलाश करने की कोशिश करते रहेंगे. लेकिन उससे पहले आपको खुद से भी सवाल करना होगा कि आपने शराब पीने की शुरुआत क्यों की थी? और एक बार पीने के बाद, आप दोबारा उसके पास क्यों गए थे? याद रखिए कि कई लोगों को इन सवालों के जवाब खुद के अंदर ही तलाश करने होंगे.

हम नशे में क्यों हैं? हाईजैक या हैंगओवर?
ऐसा आज से नहीं हो रहा है, कई शताब्दियों से हो रहा है. अगर ये कहा जाए कि ऐसा आदि-अनादी काल से भी हो रहा है. तो गलत नहीं होगा, इंसान ने बहुत पैसा शराब के ऊपर खर्च किया है. आज तो लोग थोड़े हिसाब से भी पैसे खर्च करते हैं. पहले के समय में तो लोगों ने शराब के लिए अपने घर ज़मीन तक बेच डालीं थीं. इसलिए संक्षेप में कहा जाए तो लोगों को शराब की लत आज से नहीं बल्कि कई शताब्दियों से लगी हुई है. 

लेकिन ऐसा क्यों है? हो सकता है कि कॉकटेल के बाद आपको बहुत अच्छा लगता हो, या फिर पीने के बाद आपको अंजाने भी अपने से लगते हों. ऐसा भी हो सकता हो कि आप खुद की टेंशन को भूलने के लिए शराब पीते हों. अलग-अलग लोगों के अलग-अलग कारण भी हो सकते हैं. शराब के बुरे प्रभाव भी सभी को मालुम होते हैं. हमें पता होता है कि इसकी बुरी लत से हमें लीवर की बीमारी  भी हो सकती है. हम ज्यादा पीने के बाद गाड़ी चलाते हैं. जिससे हमारा बुरा एक्सीडेंट भी हो सकता है. फिर भी हम पीना नहीं छोड़ पाते हैं. 

इन चैप्टर्स में हमें यही पता लगेगा कि आखिर इंसान पीने की शुरुआत क्यों करता है? ऐसा क्या राज़ है कि पीने वाला आदमी मौत तो चुन लेता है लेकिन शराब की लत नहीं छोड़ पाता है. आने वाले चैप्टर्स में आपको ह्यूमन बिहेवियर के बारे में बहुत कुछ जानने को मिलने वाला है. इन चैप्टर्स में आपको और भी कुछ नया जानने को मिलेगा 

- स्पेन और इटली के लोग अल्कोहल कम क्यों पीते हैं? 

- हमने शायद कृषि से पहले शराब की खोज क्यों की?

तो चलिए शुरू करते हैं!

इतना तो करीब-करीब सभी को पता है कि अल्कोहल सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकती है. यही वजह है कि वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं और कहते भी हैं कि इंसान के लिए शराब का स्वाद एक इवोल्यूशनरी एक्सीडेंट है.

 वैज्ञानिकों के अनुसार शराब एक ऐसी लत बन जाती है. जो कि इंसानी दिमाग जानता है कि इसका कोई फायदा नहीं है. लेकिन फिर भी हम उसे छोड़ नहीं पाते हैं. 

लेकिन सवाल भी यही उठता है कि आखिर ऐसा व्यवहार एक्सिस्ट क्यों कर रहा है? इस तरह के और भी कई बिहेवियर हैं, जिनके बारे में इंसान को मालुम होता है कि इनका कोई पर्पस नहीं है? लेकिन फिर भी उसे वो छोड़ नहीं पाता है. 

ऐसी इंसानी आदतों को दो कैटगरी में बांटा जा सकता है. 

पहला- हाईजैक और दूसरा- हैंग-ओवर 

सबसे पहले हाईजैक को समझने की कोशिश करते हैं. इस बिहेवियर के बाद इंसान को कुछ ना कुछ रिवॉर्ड मिलता है. इसका सबसे बड़ा एग्जाम्पल masturbation और पॉर्न की लत है. 

इसे बारीकी से समझने की कोशिश करते हैं, लेकिन उससे पहले एक सवाल ये है कि क्या हो अगर बड़ी स्क्रीन पर पब्लिक प्लेस में PORN चलने लगे? ऐसा ही कुछ थाईलैंड में हुआ है. वो भी पब्लिक प्लेस नहीं बल्कि संसद में. 

थाईलैंड में संसद में चल रही बहस को इसलिए रोक देना पड़ा था क्योंकि बहस के दौरान सामने लगी बड़ी स्क्रीन पर एक PORN वाली पिक्चर लाइव हो गई थी. हालाँकि, ऐसी चीज़ें गलती से होती हैं. लेकिन ये ग़लती ईशारा करती हैं PORN  की लत कहाँ तक पहुँच रही है?

इसी के साथ अब आपको वो जनप्रतिनिधि यानि विधायक भी याद आ रहे होंगे, जिन्होंने विधानसभा में मोबाइल पर PORN  वीडियो देखा था. 

अब आप खुद सोचिए कि क्या सेक्स और PORN  का नशा हो सकता है? और अगर हो सकता है तो ये ऑरगेज़्म की तरफ भागने वाला नशा इंसान को कहाँ लेकर जा रहा है? 

ये सब कुछ बुनियादी सवाल हैं, हमें जिनके बारे में सोचना चाहिए. 

Masturbation एक ऐसा टॉपिक है जिसके बारे में फैक्ट्स से ज्यादा अफवाहों का बाज़ार गर्म रहता है. ऑथर कहते हैं कि ऐसी ही एक अफवाह का सामना उन्हें भी करना पड़ा था. बात कुछ ऐसी है कि-

“जब वो 11वीं क्लास में पहुंचे थे, तब अचानक से एक उनके बारे में एक अफवाह उड़ी थी. उस अफवाह की वजह से क्लास के लड़कियों के सामने भी उनका मज़ाक बन गया था. वो अफवाह कुछ ऐसी थी कि ऑथर Tim Challiesहफ्ते में कई बार “Masturbate”करते हैं. हालाँकि, इस अफवाह में सच्चाई नहीं थी. लेकिन इस बात से उन्हें काफी परेशानी हुई थी.” 

लेकिन बाद में उन्हें JamesDobson नाम के मेंटर ने बताया कि “इस दुनिया में 95 टू 98 परसेंट लड़के “Masturbate” करते हैं. और जो लोग ये बोलते हैं कि वो “Masturbate” नहीं करते, समझ लो कि वो झूठ बोलते हैं.” 

अब सवाल ये उठता है कि आखिर लोग “Masturbate” क्यों करते हैं? इसके पीछे की सीधी सी वजह हाईजैक है. “Masturbate” के तुरंत बाद इंसान को सेंसेशन और orgasm के रूप में रिवार्ड मिलता है. 

हमें समझना चाहिए कि मास्टरबेशन का कोई पर्पज नहीं होता है, इससे सिर्फ और सिर्फ प्लेज़र मिलता है. इसलिए इंसान इस प्लेज़र के पीछे भागता रहता है. इंसानी दिमाग किसी भी तरह से प्लेज़र का पीछा करना चाहता है. 

उसी प्लेज़र की चाहत की वजह से इंसानी दिमाग हाईजैक होता रहता है. अब फैसला आपको करना है कि क्या आपको अपने दिमाग के ऊपर सही कंट्रोल चाहिए? या फिर आप अपने दिमाग को हाईजैक मोड में रखना चाहते हैं? 

अब बात हैंगओवर की करते हैं, ऑथर समझाते हुए कहते हैं कि हैंगओवर एक ऐसा बिहेवियर है, जो कि किसी ना किसी ड्राइव से पैदा होता है. उदाहरण के लिए हमें जंक फूड्स काफी ज्यादा पसंद होते हैं. उसके लिए हमारे अंदर क्रेविंग्स होती हैं. कई बार जंक फूड्स से हमारी भूख तो मिट जाती है. लेकिन लंबे समय तक इनका सेवन करने से हमें कई तरह की बीमारियाँ भी हो सकती हैं. 

लेकिन आज के समय में दिक्कत इस बात की है कि हमें पता होता है कि जंक फ़ूड से दिक्कत होने वाली है? लेकिन फिर भी हम खुद को उन्हें खाने से रोक नहीं पाते हैं. ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि जंक फ़ूड भी एडिक्टिव होते हैं. 

हमें ये कभी नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया में हर नुकसान करने वाली चीज़ की लत लग सकती है. और लत किसी भी चीज़ की कभी अच्छी नहीं होती है. इसलिए हमें खुद के दिमाग को इतना मज़बूत बनाना चाहिए कि हमें किसी भी चीज़ की लत लगना बंद हो जाए. 

अब तक आप समझ चुके होंगे कि शराब की लत के लिए भी हाईजैक और हैंगओवर कांसेप्ट काम करते हैं. इससे जुड़े और भी रोचक पहलू को हम आगे के चैप्टर्स में समझने की कोशिश करेंगे.

“Why do we get drunk?” क्या इसके पीछे समाज ज़िम्मेदार है?
ऐसा हो सकता है कि आपने ‘prefrontal cortex’ के बारे में सुन रखा हो, ऐसा भी हो सकता है कि आपको इसके बारे में कुछ भी नहीं मालुम हो. बात कुछ भी हो लेकिन आपको इस चैप्टर में काफी कुछ नया जानने को ज़रूर मिलेगा. 

prefrontal cortex’ इंसानी दिमाग का हिस्सा होता है, इसका यूज़ rational thinking के लिए किया जाता है. मतलब जब भी तर्क की बात होती है तो इस हिस्से का उपयोग होता है. इसका सीधा सा मतलब ये भी है कि ‘prefrontal cortex’ की वजह से ही इंसान बाकी लिविंग थिंग्स से अलग है. 

वैज्ञानिकों का मानना है कि ‘prefrontal cortex’ अच्छी चीज़ है लेकिन ज्यादा तर्क संगत होने की वजह से ये collaboration और creativity के लिए बेहतर नहीं है. इसलिए अगर किसी को क्रिएटिव होना है तो उसे ‘prefrontal cortex’ को अच्छे से हैंडल करना होगा. 

इस कांसेप्ट को थोड़ा और बेहतर से समझने के लिए और ये देखने के लिए कि इसका कनेक्शन अल्कोहल से कैसे जुड़ रहा है? हमें दो ग्रीक गॉड की ओर रुख करना होगा. इनका नाम Apollo और Dionysus है.

सबसे पहले अपोलो की बात करते हैं, अपोलो को सूर्य का देवता भी कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि ये ‘prefrontal cortex’ को रूल करते हैं. वहीं दूसरी ओर Dionysus को गॉड ऑफ़ वाइन माना जाता है. ये दोनों ही ग्रीक के देवता के रूप में प्रचलित हैं. Dionysus को ‘prefrontal cortex’ के विरोध में देखा जाता है. इन्हें गॉड ऑफ़ इमोशन के तौर पर याद किया जाता है. 

ग्रीक में ऐसा माना जाता है कि क्रिएटिव होने के लिए Dionysus को मानना होगा. अब सवाल ये उठता है कि कोई भी इमोशनल साइड को कैसे अपना सकता है? इस साइड को अपनाने के लिए लोग अल्कोहल का सहारा लेते हैं. मतलब साफ़ है कि तर्क की बातों को आसानी से अल्कोहल की मदद से भुलाया जा सकता है. 

ऐसा कहा जाता है कि ‘prefrontal cortex’ को अवॉयड करने के लिए लोग शराब का सहारा लेते हैं. लोगों को लाइफ में तर्क की बातें अच्छी नहीं लगती हैं. उन्हें अधिकत्तर इमोशनल फूल बनकर रहना अच्छा लगता है. और इसके लिए शराब से बेहतर क्या ही हो सकता है? 

लेकिन अब एक बड़ा सवाल यही खड़ा होता है कि क्या ड्रिंकिंग और Dionysian अप्रोच से वाकई इंसान की लाइफ बेहतर हो जाती है? अगर आप शराब पीते हैं तो आपको अपने आपसे खुद पूछना चाहिए कि शराब से आपकी लाइफ कितनी बेहतर हुई है? अब हमें समझ लेना चाहिए कि शराब का कनेक्शन हमारे दिमाग से भी है. 

अगर कोई भी शराब छोड़ना चाहता है तो उसे अपने दिमाग के ऊपर काम करना होगा. उसे खुद के दिमाग को मज़बूत बनाना होगा कि शराब की मदद से किसी भी प्रॉब्लम का हल नहीं ढूंढा जा सकता है. हमे समझना चाहिए कि शराब एक समस्या है और इसका समाधान हमे ही ढूँढना होगा.

हम शराब क्यों पीते हैं? क्या इसके पीछे इकोलॉजिकल नीड्स ज़िम्मेदार हैं
जब ये सवाल पूछा जाता है कि इंसान शराब क्यों पीता है? तो शराब के शौक़ीन ये कहते हुए मिल जाते हैं कि शराब से इंसान को कई तरह के फायदे होते हैं. कई लोग तो कई बीमारियों का नाम भी बताने लगते हैं कि शराब पीने से ये बीमारियाँ नहीं होती हैं. 

हो सकता है कि उनकी बातों में कुछ सच्चाई हो, लेकिन इस बात को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि शराब की वजह से इंसान को नुकसान भी बहुत होता है. इसलिए अगर आप फायदे की  बात कर रहे हैं? तो आपको सोचना चाहिए कि क्या जितना नुकसान हो सकता है, उसके बराबर फायदा भी होता है? 

ये सवाल खुद से पूछिए कि शराब से नुकसान ज्यादा होता है? या फिर फायदा? .. 

अब फिर से जवाब तलाशने के सफर की शुरुआत करते हैं. सबसे पहले हम ये समझने की कोशिश करते हैं कि हम सभी एक स्पेसीज़ की तरह ही हैं. हमें इस दुनिया में ज़िन्दा रहने के लिए सर्वाइवल के चैलेंज को पूरा करना ही होगा. उसी चैलेंज को पूरा करने के लिए लोग अपने लिए रहने और खाने का इंतज़ाम करते हैं. इसलिए कहा भी गया है कि इस दुनिया में कमज़ोर लोगों के लिए कोई दया नहीं दिखाता है. 

इंसानों की भी एक इकोलॉजी है और इस इकोलॉजी को कल्चर या फिर सभ्यता कहा जाता है. बिना इस कल्चर के इंसान सर्वाइव नहीं कर सकता है. जिस तरह से मछली पानी के बिना मर जाती है. उसी तरह से इंसान भी बिना कल्चर के खत्म हो सकता है . 

इसे और अच्छे से समझने के लिए, हमें एक एग्जाम्पल पर नज़र डालनी चाहिए. ये एग्जाम्पल बेसिक कल्चरल टेक्नोलॉजी का है. इसका मतलब साफ़ है कि हम समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर इंसानी सभ्यता की शुरुआत कैसे हुई थी? कैसे हम लोगों ने इंसान के तौर पर प्रगति की है. इसकी सबसे छोटी ईकाई आग यानि फायर है, फायर की डिस्कवरी के पहले, इंसान के बड़े-बड़े दांत और जबड़े हुआ करते थे. उसका डायजेस्टिव सिस्टम भी काफी काम्प्लेक्स हुआ करता था. जो कि आसानी से रफ डाइट और रॉ मीट को भी डायजेस्ट कर लेता था. 

लेकिन जैसे-जैसे इंसान प्रोग्रेस करने लगा, और खाने को कुक करने लगा, हमारे दिमाग की प्रोसेस अलग तरीके से होने लगी. हमारा नज़रिया बदल गया और हमारी बॉडी भी पहले से नाज़ुक होने लगी. 

इस तरह हम ज्यादा स्मार्ट हो गए लेकिन हम फायर के ऊपर पूरी तरह से डिपेंडेंट भी हो गए. अब आज के दौर में एक ऐसा समय आ गया है कि हम लोग बहुत सारी cultural technologies पर पूरी तरह से निर्भर हो गए हैं. ये कहना भी गलत नहीं होगा कि अब हमारा काम ही इन cultural technologies के बिना नहीं चल सकता है. 

agriculture, refrigeration, clothes,computers, इस तरह की कई सारी तकनीक हैं, जिनकी वजह से ही हमारी ज़िन्दगी आगे बढ़ पा रही है. इन्हीं तकनीक की वजह से इंसान के दिमाग में प्रेशर का जन्म भी होता है. 

ऐसा देखा गया है कि कई लोग दिमागी प्रेशर को कम करने के लिए शराब से दोस्ती करते हैं. और धीरे-धीरे उनकी दोस्ती कब उनकी जान की दुश्मन बन जाती है? उन्हें पता भी नहीं चल पाता है. इसलिए ये तर्क देना कि शराब की वजह से दिमाग की टेंशन कम होती है. पूरी तरह से गलत है. और ये तर्क भी ग़लत है कि दिमागी टेंशन की वजह से शराब पीना पड़ जाता है. 

अगर आपको इंसानी ज़रूरतों की वजह से टेंशन हो रही है, तो आपको अपनी ज़रूरतों को कम करने की कोशिश शुरू कर देनी चाहिए.

Why do we get drunk? क्या इस चैप्टर में कुछ नए फैक्ट्स के बारे में पता चलेगा?
इस चैप्टर से पहले हम लोगों ने इस बात को समझने की कोशिश की है कि क्या शराब पीने से क्रिएटिविटी बढ़ती है? और लोग क्रिएटिविटी के लिए शराब क्यों पीते हैं? लेकिन हमें ये पता चल चुका है कि शराब का इन डाइरेक्ट कनेक्शन क्रिएटिविटी से ज़रूर है. क्योंकि शराब की मदद से ‘prefrontal cortex’ को अवॉयड करने में मदद मिल सकती है. 

इस बात की ख़ुशी पीने वाले मना सकते हैं, लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि शराब की वजह से उनके शरीर और दिमाग को कितना ज्यादा नुकसान होता है? 

हम सभी व्हाट्सएप पर फॉरवर्ड किए गए उन अजीब से मैसेजिस परिचित होंगे जिनमें सीमित मात्रा में शराब पीने से हार्ट और किडनी को फायदा पहुंचने की बात लिखी होती है. लेकिन एक नई स्टडी ने इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए ये खुलासा किया है कि हल्के से मध्यम शराब पीने से भी ब्रेन को नुकसान होता है.

अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया (University of Pennsylvania) के रिसर्चर्स द्वारा की गई इस स्टडी में 36 हजार से अधिक वयस्कों के आंकड़ों का उपयोग करते हुए दावा किया है कि रोजाना एक या दो पैग शराब पीने से भी व्यक्ति के दिमाग में दो साल के बराबर का परिवर्तन होता है. रिसर्चर्स का कहना है कि अधिक शराब पीने वालों के दिमाग की संरचना और आकार यानी स्ट्रक्चर और साइज में भी बदलाव होता है, जिससे उनकी मेमोरी पावर कमजोर हो जाती है.

इसी के साथ-साथ आपको बता दें कि साल 2020 में  दुनिया भर में शराब पीने के बाद हुई हिंसा या दुर्घटना में 33 लाख लोगों की मौत हुई, यानी हर 10 सेकेंड में एक मौत.

क्या इंसान को क्रिएटिविटी बढ़ाने के नाम पर इतना बड़ा नुकसान झेलना चाहिए? इस सवाल के जवाब के लिए आपको खुद की आत्मा को झकझोड़ना होगा.

कुल मिलाकर
आपको खुद से सवाल करना होगा कि क्रिएटिविटी के नाम पर आप शराब का सेवन क्यों कर रहे हैं? 

इसी के साथ आपको बता दें कि कई लोग आपको शराब पीने के लिए मोटिवेशन देने का काम करेंगे. वो आपको “beer-before-bread theory” से रूबरू करवाएंगे. इसके पक्ष में आपसे कहेंगे कि बियर का जन्म आज से नहीं हुआ है? बल्कि इसका जन्म आज से 10 हज़ार साल पहले एग्रीकल्चर से ही हुआ था. इसलिए इंसान को अल्कोहल पीनी चाहिए. लेकिन आपको याद रखना है कि खुद को इस तरह की बातों से बचाना भी एक चैलेंज है. 

अगर आप इस चैलेंज को सफलता के साथ कम्प्लीट कर लेंगे, तो आप खुद को शराब से दूर भी रख पाएंगे. 

यही सबसे बड़ा सवाल आपके सामने खड़ा हुआ है कि जब 10 में से 7 लोग शराब का सेवन कर रहे हैं? तो आप खुद को कैसे बचा सकते हैं? इस सवाल का जवाब तलाश करने की ज़िम्मेदारी आपकी ही है. 

हिम्मत करिए, आगे बढ़िए और शराब से दूरी बनाने की कोशिश शुरू करिए. 

 

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