Awakening Compassion at Work.....

0
Awakening Compassion at Work

Monica C. Worline and Jane E. Dutton

वो छिपी हुई ताकत जो लोगों को और संस्थाओं को ऊपर उठाती है।


दो लफ्जों में
अवेकनिंग कंपैशन ऐट वर्क ( Awakening Compassion at Work ) में हम देखेंगे कि किस तरह से संस्थाएं सहानुभूति को अपना कर खुद को आगे लेकर जा सकती हैं। यह किताब बताती है कि संस्थाओं में अगर उनके कर्मचारियों के लिए सहानुभूति ना हो, तो किस तरह से उन्हें नुकसान हो सकता है। साथ ही यह किताब बताती है कि एक संस्था किस तरह से सहानुभूति को अपना सकती है।

यह किसके लिए है 
-वे जो एक बिजनेसमैन या एक मैनेजर हैं।
-वे जो अपने कर्मचारियों से बेहतर रिश्ते बनाना चाहते हैं। 
-वे जो बिजनेस में सहानुभूति की ताकत को समझना चाहते हैं।

लेखिका के बारे में 
मोनिका वोर्लाइन ( Monica C. Worline ) एनलिवेनवर्क की सीईओ हैं। वे स्टैन्फोर्ड यूनिवर्सिटी सेंटर में सहानुभूति के ऊपर रीसर्च करने वाली साइंटिस्ट हैं। वे कंपैशनलैब की एक्सेक्युटिव डाइरेक्टर भी हैं।
जेन डट्टन ( Jane E. Dutton ) संस्थाओं को पाजिटिव साइकोलाजी सिखाती हैं। वे सेंटर फार पाजिटिव आर्गनाइजेशन की को-फाउंडर हैं और पाजिटिव  आर्गनाइजेशनल स्कालरशिप नाम की एक संस्था में अपना योगदान देती हैं। उनका मकसद है कंपनियों के कल्चर में सहानुभूति लेकर आना।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
आज के वक्त में ज्यादातर कंपनियों का फोकस होता है ज्यादा से ज्यादा फायदा कमाना। वे अपने कर्मचारियों पर ध्यान नहीं देती, जिसकी वजह से उनके कर्मचारी सिर्फ उतना काम करते हैं जितने से उन्हें काम से निकाला ना जाए। वे सिर्फ सैलरी के लिए काम करने लग जाते हैं और उन्हें कंपनी से कोई लगाव नहीं रह जाता।

यह किताब बताती है कि किस तरह से आप अपने कर्मचारियों को ऐसा बनने से रोक सकते हैं। यह किताब बताती है कि किस तरह से आप अपनी कंपनी के कल्चर में सहानुभूति पैदा कर सकते हैं। चाहे आप एक संस्था चलाते हैं या फिर सिर्फ एक कर्मचारी हैं, यह किताब बताती है कि किस तरह से हर कोई सहानुभूति जताकर अपनी कंपनी को पहले से बेहतर बना सकता है।

 

-सहानुभूति जताने के क्या फायदे होते हैं।

-किस तरह से आप सहानुभूति जता सकते हैं।

-एक लीडर किस तरह से अपनी कंपनी के कल्चर में सहानुभूति पैदा कर सकता है।

काम में तनाव तो हमेशा होता है, लेकिन हम इसे सहानुभूति से आसान बना सकते हैं।
आजकल तनाव हमारे काम का हिस्सा बन गया है। यह हमारे साथ इतना जुड़ गया है कि हम अब इसे समस्या की तरह देखते ही नहीं हैं। लेकिन अगर कंपनी अपने कर्मचारियों का ध्यान दे, तो इस तनाव को कम किया जा सकता है। 

बहुत सी कंपनियां यह सोचती हैं कि अगर वे कर्मचारी को पैसे दे रही हैं, तो कर्मचारी हर वो काम करेगा जो वे उनसे करवाना चाहती हैं। इसलिए वे जब भी कुछ बदलाव करती हैं, तो वे यह नहीं सोचती कि उनके कर्मचारियों पर इसका क्या असर होगा। लेकिन अगर कंपनी के लीडर्स अपने कर्मचारियों के साथ सहानुभूति जताएँ, तो वे उनके दर्द को कम कर सकते हैं और उन्हें कंपनी से जोड़ सकते हैं।

अपने रीसर्च के दौरान लेखिका एक कंपनी के लीडर से मिलीं जिसका नाम एंडी था। एंडी ने एक दिन देखा कि उसका एक कर्मचारी जियान कुछ उदास दिख रहा था। जब एंडी ने जियान से पूछा कि वो उदास क्यों है, तो जियान ने कहा कि चाइना में रहने वाली उसकी बहन की दुर्घटना में मौत हो गई है और वो समय निकाल कर वहाँ पर नहीं जा पा रहा है।

इसपर एंडी ने कहा कि वो जितना चाहे उतना समय लेकर चाइना जा सकता है। उसने कहा कि अगर उसे किसी भी चीज की जरूरत हो तो वो उससे आकर मिल सकता है। साथ ही, एंडी ने जियान को अपने घर खाने पर भी बुलाया। 

इस तरह से जियान अपने दुख से बाहर निकल पाया। सहानुभूति जताने से जियान को मदद मिली जिससे वो फिर से अपने काम पर ध्यान लगा पाया।

अगर एक कंपनी अपने कर्मचारियों से और ग्राहकों से सहानुभूति दिखाए तो वो अपनी पर्फार्मेंस को सुधार सकती है।
बिजनेसमैन अक्सर बहुत सख्त स्वभाव के होते हैं। लेकिन कभी कभी सहानुभूति दिखाना उनके और उनके बिजनेस, दोनों के लिए अच्छा हो सकता है। जिन कंपनियों में सहानुभूति दिखाई जाती है, वहाँ के कर्मचारी ज्यादा अच्छा काम करते हैं और उनके ग्राहक ज्यादा खुश रहते हैं।

2004 में किम कैमेरान नाम के एक एडमिनिस्ट्रेटिव साइंस एक्सपर्ट ने एक रीसर्च किया जिसमें उन्होंने दिखाया कि अच्छे बर्ताव का बिजनेस के रेवेन्यु पर क्या असर होता है। उन्होंने यह देखा कि जिस कंपनी में कर्मचारियों के साथ अच्छा बर्ताव किया जाता है, उसमें के कर्मचारी ज्यादा अच्छे से काम करते हैं और वहाँ का रेवेन्यु भी ज्यादा होता है। 

एक गैलप पोल में यह देखा गया कि 9/11 के हमले के बाद जिन कंपनियों में कर्मचारियों के साथ सहानुभूति जताई जाती थी, वहाँ के कर्मचारी इस सदमे से जल्दी उभर पाए। लेकिन जिन कंपनियों के मैनजर यह चाह रहे थे कि कर्मचारी सब कुछ भुला कर पहले की तरह काम करें, वहाँ के कर्मचारियों का मन काम में नहीं लग रहा था। यहाँ तक कि उनके काम की पर्फार्मेंस भी घट गई जिससे कंपनी को नुकसान होने लगा।

इसके अलावा जिन कंपनियों में कर्मचारियों के साथ साथ ग्राहकों  से भी सहानुभूति जताई जाती है, वो कंपनी और भी कामयाब होती है। इसके एक्साम्पल हैं अरविंद आई हास्पिटल, जिसकी शुरुआत 1977 में डाक्टर गोविंदप्पा वेंकटस्वामी ने साउथ इंडिया में की थी। 

उनके अस्पताल में मरीजों की आँखों का बहुत अच्छा इलाज किया जाता है। उनके अस्पताल में कोई भी फिक्स फीस नहीं ली जाती। उनके मरीज जितना पैसा दे सकते हैं, उनसे उतना पैसा ही लिया जाता है। इस तरह से उनके यहाँ बहुत से अमीर लोग आते हैं जो कि उन्हें बहुत सारा पैसा देते हैं और बहुत से गरीब लोग भी आते हैं, जिनका इलाज मुफ्त में किया जाता है।

इस तरह से बहुत से गरीब लोगों का इलाज मुफ्त में करने के बाद भी यह अस्पताल फायदे में चलता है। अपने इस बिजनेस माडल की वजह से वे बहुत फेमस भी हैं और बहुत सी कंपनियां उनके इस काम से प्रेरित भी होती हैं। 

किसी की परेशानी को देखकर उससे उस बारे में बात करने से आप उसकी तकलीफ को कम कर सकते हैं।
कर्मचारी अक्सर अपनी समस्याओं के बारे में अपने एंप्लायर से बात नहीं करते। परेशान होने पर उनकी पर्फार्मेंस खराब होने लगती है, लेकिन फिर भी वे इस बारे में किसी से बात नहीं करना चाहते। ऐसे में एक एंप्लायर की जिम्मेदारी है कि वो अपने कर्मचारियों से उनकी परेशानी के बारे में पूछे।

लेकिन आपको पता कैसे लगेगा कि कोई कर्मचारी परेशान है या नहीं? इसके लिए आपको अपने कर्मचारियों पर ध्यान देना होगा। आपको यह देखना होगा कि कौन बिना बताए ज्यादा छुट्टी ले रहा है और किसका पर्फार्मेंस खराब हो रहा है। जब भी आपको लगे कि एक कर्मचारी पहले की तरह पर्फार्म नहीं कर रहा है, तो आप उससे पूछिए कि उसे क्या समस्या है।

लेकिन बहुत बार जब हम किसी कर्मचारी को इस तरह से बर्ताव करते हुए देखते हैं, तो हम सोचते हैं कि वो आलस की वजह से काम नहीं कर रहा। हम अक्सर उसे जज करने लगते हैं, ना कि उसकी समस्या को समझने की कोशिश करते हैं। इसलिए आपको हमेशा अपने कर्मचारियों पर ध्यान देते रहना चाहिए और जब भी आपको किसी कर्मचारी का ग्राफ नीचे जाता हुआ दिखे, तो आपको उससे बात करनी चाहिए।

र्यूट लिवटरैंडैच संस्थाओं पर रीसर्च करती हैं। उन्होंने एक कैंप की स्टडी की जहाँ पर वो बच्चे रह रहे थे जिनके माता-पिता को कैंसर था। इन बच्चों का खयाल रखने के लिए बहुत से काउंसलर्स को काम पर रखा गया था। उनका काम था इन बच्चों की भावनाओं के बारे में उनसे लगातार पूछते रहना।

र्यूट ने देखा कि जिस कैंप के काउंसलर्स बच्चों से विनम्रता से बात करते थे, वहाँ के बच्चे शांत रहते थे और ज्यादा झगड़ा नहीं करते थे। इस तरह से अगर एक मैनेजर भी अपने कर्मचारियों से विनम्रता से बात करे, तो वो भी उन्हें अच्छा महसूस करा कर उनकी पर्फार्मेंस को सुधार सकते हैं।

बहुत बार हम किसी की तकलीफ को कुछ इस तरह से देखते हैं जिससे हम उनसे सहानुभूति नहीं जता पाते।
अक्सर लोग कहते हैं कि जब आप काम पर जाते हैं, तो वहाँ पर आपको अपने घर की समस्या नहीं लेकर जानी चाहिए और जब आप अपने घर पर होते हैं, तो वहाँ पर आपको काम की समस्याओं के बारे में नहीं सोचना चाहिए। इस तरह के खयाल अक्सर हमें सहानुभूति जताने से रोक देते हैं।

अक्सर हम लोग किसी की तकलीफ को इस तरह से देखते हैं जिससे हमें लगने लगता है कि उनकी तकलीफ जायज़ है। इस तरह के नजरिए को रीसर्चर्स ने एप्रेज़ल का नाम दिया है। यह तीन तरह का हो सकता है।

पहली तरह का एप्रेज़ल तब होता है जब हमें यह लगता है कि कोई व्यक्ति अपनी ही गलती की वजह से परेशानी में है। हम सोचते हैं कि वो अपने करतूतों का फल भुगत रहा है। इस तरह से हम उससे सहानुभूति जताने के खयाल को अपने दिमाग में नहीं आने देते। 

दूसरी तरह का एप्रेज़ल तब होता है जब हमें लगता है कि सामने वाला व्यक्ति तकलीफ में रहने के लायक है। बहुत से लोग सोचते हैं कि अगर किसी को शराब या सिगरेट पीने की वजह से कैंसर है, तो वो उसी के लायक है। 

तीसरी तरह का एप्रेज़ल तब होता है जब हमें लगता है कि हम सामने वाले को तकलीफ से बाहर निकालने के लिए कुछ भी नहीं कर सकते। 

एप्रेज़ल से बचने के लिए आपको सबसे पहले लोगों को तुरंत जज करना बंद करना होगा। अगर आप किसी को तकलीफ में देखकर उससे बात किए बिना ही यह अंदाजा लगा लेते हैं कि वो अपने ही किए गए कामों की वजह से परेशान है, तो आप कभी उससे सहानुभूति नहीं जता पाएंगे।

अगर किसी व्यक्ति से कोई गलती होती है तो आप उसे जज मत कीजिए बल्कि यह पता करने की कोशिश कीजिए कि इस गलती की वजह क्या थी। क्या वो किसी बात से परेशान है? क्या उसका ध्यान कहीं दूसरी जगह पर था? क्या उसे वो काम अच्छे से करना नहीं आता? इस तरह के सवालों से आप दुनिया को उसकी नजर से देख सकेंगे और उसे अच्छे से समझ पाएंगे। साथ ही, एक बार जब आपको गलती की वजह पता लग जाएगी, तो आप उसे फिर से होने से रोक भी पाएंगे।

सहानुभूति हम सभी के अंदर होती है, लेकिन अगर हम दूसरों की नजर से देखना शुरू नहीं करेंगे, तो हम सहानुभूति की ताकत का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे।
इंसान सिर्फ अपने फायदे के लिए ही काम नहीं करते, बल्कि वे दूसरों का दर्द भी समझ सकते हैं और उनकी मदद भी कर सकते हैं। हम सामने वाले की आवाज या उसके चेहरे के भाव को देखकर यह समझ जाते हैं कि वो परेशान है। लेकिन फिर भी बहुत बार हम सहानुभूति नहीं जाता पाते, और इसके पीछे बहुत सी वजहें हो सकती हैं।

हम सहानुभूति तब नहीं जता पाते जब हम लगता है कि ऐसा करने से हमारा कुछ नुकसान होगा। एक्साम्पल के लिए, अगर आप देखते हैं कि आफिस में किसी के ऊपर इल्जाम लगाया जा रहा है और उसे डाँटा जा रहा है, तो आप अपनी आवाज नहीं उठाते क्योंकि आपको लगता है कि ऐसा करने पर आपको भी डाँट सुनने को मिल सकता है। 

साथ ही, जब हम दूसरों के दर्द को उनकी नजर से नहीं देख पाते, तो हमें यह नहीं समझ में आता कि उन्हें कैसा लग रहा है और हम सहानुभूति नहीं जता पाते। जब तक आप सामने वाले के हालात को उनकी आँखों से नहीं देखेंगे, तब तक आपको नहीं समझ में आएगा कि वो क्या महसूस कर रहा है। इसके लिए आप यह सोचिए कि अगर आप खुद उस हालात में होते तो आपको कैसा लग रहा होता।

इस तरह की सहानुभूति को काग्निटिव एंपैथी कहा जाता है, और यह इमोशनल एंपैथी से अलग है। इसमें आप सिर्फ दूसरों की भावनाओं को ही नहीं समझते बल्कि यह भी जानने की कोशिश करते हैं कि किस तरह से आप उसकी मदद कर के उसे उस हालात से निकाल सकते हैं। 

सिर्फ सहानुभूति जताना ही काफी नहीं होता, आपको सामने वाले की मदद करने के लिए कुछ काम भी करना होगा।
बहुत बार हम सोचते हैं कि सामने वाले के दर्द को समझना ही काफी होता है। लेकिन अगर आप उसके दर्द को समझ कर उसके लिए कुछ करेंगे नहीं, तो आपके समझने या न समझने का कोई फायदा नहीं होगा। जब आपको यह पता लग जाए कि सामने वाले को किसी तरह की तकलीफ है, तो आपको जल्दी से जल्दी सही समय खोजकर सहानुभूति जताना होगा और उसकी मदद के लिए कुछ करना होगा।

एक्साम्पल के लिए नज़ीमा को ले लीजिए जो अपनी बहन चेन्नि और उसकी बेटी फेथ से बहुत प्यार करती थी। फेथ को डाउन्स सिन्ड्रोम था, जिस वजह से एक दिन उसकी मौत हो जाती है।

नज़ीमा अपनी कंपनी की बहुत अहम कर्मचारी थी और वो एक प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी। लेकिन जब उसने फेथ की मौत की खबर सुनी तो वो सदमे में चली गई। वो काम पर ध्यान नहीं दे पा रही थी जिससे उसके साथ काम करने वाले लोगों के ऊपर बहुत प्रेशर आने लगा। 

लेकिन इसी बीच, एड नाम के एक व्यक्ति ने नज़ीमा के काम की जिम्मेदारी ली। 

एड ने नज़ीमा के ना रहने पर उसका काम देखा और साथ ही वो समय समय पर फोन लगाकर नज़ीमा से उसका हाल भी पूछता रहता था। इससे नज़ीमा को लगने लगा कि कोई है जो उसकी परवाह करता है। एड की मदद से नज़ीमा इस सदमे से जल्दी बाहर निकल आई।

तो इस तरह से अगर आप किसी से सहानुभूति जता रहे हैं , तो साथ में उनकी मदद के लिए हाथ भी बढ़ाइए। यह जरूरी नहीं है कि आप बार बार उन्हें फोन लगाते रहिए, क्योंकि कुछ लोग दुखी होने पर अकेला रहना पसंद करते हैं। अगर आप उन्हें बार बार फोन लगाएंगे, तो इससे उन्हें लगेगा कि आप उनपर लौटने के लिए प्रेशर डाल रहे हैं।  इसलिए सामने वाले को समझ कर उसके साथ बर्ताव करना जरूरी है।

एक कंपनी कुछ आसान से तरीकों को अपना कर अपने कल्चर में सहानुभूति पैदा कर सकती है।
अब तक हमने देखा कि किस तरह से आप अपने अंदर छिपी सहानुभूति को बाहर ला सकते हैं। अब हम यह देखेंगे कि एक कंपनी किस तरह से अपने कल्चर में सहानुभूति पैदा कर सकती है। इसके समझने के लिए हम मिडवेस्ट बिलिंग नाम की एक कंपनी का एक्साम्पल लेंगे।

लेखिका अपने ट्रिप के दौरान मिडवेस्ट बिलिंग में गईं थीं, जहाँ पर उनकी मुलाकात एक डोरोथी नाम की कर्मचारी से हुई। मिडवेस्ट बिलिंग का काम था उस एरिया के अस्पतालों का पेपरवर्क करना। लेखिका से देखा कि डोरोथी के टेबल पर कागजों का पहाड़ पड़ा हुआ है और उतने सारे डाक्युमेंट्स पर काम करना आसान नहीं था।

लेकिन तभी कुछ दूसरी महिलाएं वहाँ पर आईं और वे डोरोथी के साथ मिलकर काम करने लगीं। देखते ही देखते सिर्फ 30 मिनट में सारे डाक्युमेंट्स का काम हो गया। 

मजेदार बात यह है कि मिडवेस्ट बिलिंग में ज्यादातर महिलाएं काम करती हैं और वहाँ पर प्रमोशन की संभावना बहुत कम है। लेकिन फिर भी वो कंपनी प्राफिट कमा रही है और वहाँ के कर्मचारी मिल जुल कर अपने काम को बहुत अच्छे से करते हैं। इसके पीछे का राज़ है वहाँ का कल्चर।

मिडवेस्ट बिलिंग में बहुत से सबयुनिट्स बनाए गए हैं जिसमें कुछ कर्मचारी मिलकर एक खास तरह के काम को करते हैं। छोटे ग्रुप्स में काम करने की वजह से वे अपने काम को और एक दूसरे को बहुत अच्छे से समझ जाते हैं, जिससे उनमें एकता आ जाती है।

साथ ही जब कोई नया व्यक्ति काम पर रखा जाता है, तो कंपनी यह पता करने में बहुत समय बिताती है कि वो व्यक्ति किस सबयुनिट में अच्छे से काम कर पाएगा। यह पता करने के लिए कंपनी यह देखती है कि किस सबयुनिट में काम करना कर्मचारी को सबसे ज्यादा अच्छा लगता है। इसके लिए वे नए कर्मचारियों को सपोर्ट पाड्स में डाल देते हैं।

सपोर्ट पाड्स एक खास तरह का ग्रुप होता है जो कि उस सबयुनिट की मदद करने का काम करता है जिसके पास काम ज्यादा होता है। इस तरह से सपोर्ट पाड्स के कर्मचारियों को हर ग्रुप के साथ काम करने का मौका मिलता है, जिस वजह से वे यह समझ पाते हैं कि हर सबयुनिट का क्या काम है। इस तरह से वे कंपनी के काम करने के तरीके को समझ पाते हैं। इसमें काम करने के बाद कर्मचारी जिस सबयुनिट में काम करने की इच्छा जताता है, उसे उसमें काम करने के लिए भेज दिया जाता है।

अच्छे लीडर्स सहानुभूति की मदद से लोगों को अपने साथ लेकर चलते हैं।
बहुत से लोग मुश्किल वक्त में लीडर्स सहारा लेते हैं, क्योंकि लीडर्स का काम होता है हमें रास्ता दिखाना। दूसरे शब्दों में, लोग अच्छे लीडर्स की नकल करते हैं और उनकी तरह बनने की कोशिश करते हैं।इसका मतलब अगर आप चाहते हैं कि आपकी कंपनी के कल्चर में सहानुभूति पैदा हो, तो सबसे पहले आपको सहानुभूति जताना सीखना होगा।

इसके लिए आपको अपने कर्मचारियों को अच्छे से समझना होगा और मुश्किल वक्त में उनका साथ देना होगा। आपको उनके साथ अच्छा कनेक्शन बनाकर उन्हें यह दिखाना होगा कि आप उनकी परवाह करते हैं। बिना इसके आप कभी अपने कल्चर में सहानुभूति को पैदा नहीं कर सकते। 

इसके लिए आप बहुत से छोटे छोटे तरीके अपना सकते हैं। आप अपनी कंपनी में एक एमर्जेंसी फंड रख सकते हैं, ताकि अगर किसी कर्मचारी को पैसे की जरूरत हो तो वो इस फंड में से पैसे निकाल सकें। इस तरह से आप अपने कर्मचारियों को कुछ राहत दे सकते हैं। 

लेकिन सिर्फ खुद सहानुभूति जताना काफी नहीं है, आपको दूसरों को भी इस तरह से काम करने के लिए प्रेरित करना होगा। इसके लिए आप अपने कर्मचारियों से सहानुभूति के ऊपर बात कर सकते हैं। आप उन्हें बता सकते हैं कि किस तरह से सहानुभूति को अपना कर वे कल्चर को पहले से बेहतर और कंपनी को पहले से कामयाब बना सकते हैं।

लिंक्डइन के सीईओ जेफ वीनर ने एक एस्से लुखा है जिसका नाम है - लीडिंग कंपैशनेट्ली। इसमें उन्होंने बताया कि लिंक्डइन को कामयाब बनाने में सहानुभूति का बहुत बड़ा योगदान था। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कंपनी में सहानुभूति का कल्चर बनाना कितना मुश्किल है।

सहानुभूति पैदा करना वाकई एक मुश्किल काम है। इसके लिए हमें रुक कर यह देखना होगा कि कौन तकलीफ में है और किस तरह से हम उसकी मदद कर सकते हैं। यह तब तक नहीं होगा जब तक आप खुद इसे करना नहीं चाहेंगे। और इतने सारे लोगों को सहानुभूति जताने के लिए प्रेरित करना कोई आसान काम नहीं है। लेकिन एक अच्छा लीडर अपना एक्साम्पल देकर यह मुश्किल काम कर सकता है। ऐसा करना जरूरी भी है क्योंकि बिना इसके कोई भी कंपनी ज्यादा कामयाब नहीं हो सकती।

कुल मिलाकर
सहानुभूति  जताने का मतलब सिर्फ यह नहीं है कि आप दूसरे की तकलीफ को समझें। इसका मतलब यह है कि आप उसे तकलीफ से बाहर निकालने के लिए कुछ करें। जिस कंपनी के कर्मचारी एक दूसरे से सहानुभूति जता पाते हैं, वो कंपनी ज्यादा कामयाब होती है और वहाँ के कर्मचारी एक दूसरे को मुश्किल वक्त से आसानी से बाहर निकाल पाते हैं। एक अच्छा लीडर अपने एक्साम्पल के जरिए अपनी कंपनी में सहानुभूति का कल्चर पैदा कर सकता है।

 

हर दिन यह सोचिए कि किस तरह से आप ज्यादा सहानुभूति जता सकते हैं।

कभी कभी हालात कुछ इस तरह के होते हैं कि हम उसमें सहानुभूति नहीं जता पाते। इसलिए अगर आप हर दिन सिर्फ 1 घंटे बैठ कर यह सोचेंगे कि किस तरह से उस दिन आप ज्यादा सहानुभूति जता सकते थे, तो आप अपने आफिस में सहानुभूति को बढ़ा सकते हैं।

अगर आप एक मैनेजर हैं, तो यह देखिए कि किस लीडर की सहानुभूति जताने की काबिलियत से आपको प्रेरणा मिलती है। इसके बाद खुद से यह सवाल पूछिए कि किस तरह से आप उनकी तरह बन सकते हैं। अगर आप एक कर्मचारी हैं, तो आप खुद से यह पूछ सकते हैं कि किस तरह से आप आज के दिन ज्यादा सहानुभूति जता सकते थे। किस तरह से आप अपने आफिस के कल्चर को पहले से बेहतर बनाने के लिए काम कर सकते थे?


Tags

Post a Comment

0Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

YEAR WISE BOOKS

Indeals

BAMS PDFS

How to download

Adsterra referal

Top post

marrow

Adsterra banner

Facebook

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Accept !