A Life Decoded....... ❤️🌈🎋😇🥰

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A Life Decoded

सदी के सबसे महान वैज्ञानिकों में से एक की कहानी जानिये।


दो लफ्जों में 
अ लाइफ डिकोडेड (A Life Decoded) में हम क्रेग वेंटर के कैरियर के सफर के बारे में देखेंगे। यह किताब हमें इस सदी के सबसे महान वैज्ञानिकों में से एक की कहानी के बारे में बताती है। इस किताब के जरिए हम इस सदी की सबसे महान खोजों में से एक के बारे में जानेंगे। साथ ही हम यह भी जानेंगे कि वेंटर को इस खोज में किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा और उन्होंने कैसे उनसे छुटकारा पाया।यह किसके लिए है 
- वे जो जे क्रेग वेंटर के बारे में जानना चाहते हैं।
- वे जो विज्ञान की नई और अनोखी खोज के बारे में जानना चाहते हैं।
- वे जो जेनेटिक्स की पढ़ाई कर रहे हैं।

लेखक के बारे में 
जे क्रेग वेंटर (J. Craig Venter) सैन फ्रांसिस्को के पास बसे एक छोटे शहर में पले बढ़े। बचपन से ही उन्हें कुछ अलग करने का और रिस्क लेने का शौक था। वे इस सदी के सबसे महान वैज्ञानिकों में से एक हैं जिन्होंने इंसान के जीनोम को डिकोड करने के ऐतिहासिक काम को अंजाम दिया। अब वे जेनेटिक्स की मदद से प्रदूषण की समस्याओं से निपटने का काम करते हैं।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए? सदी के सबसे महान वैज्ञानिकों में से एक की कहानी जानिये।
सभी इंसानों के पास एक ही जैसा शरीर है और एक ही जैसे दिमाग की बनावट है, लेकिन फिर भी वे एक दूसरे से इतने अलग क्यों हैं? यह सवाल सुन कर आपके मन में जिज्ञासा पैदा हुई होगी। जिज्ञासा इंसान की बहुत पुरानी साथी है जो उसके साथ हमेशा से रहती आई है। इसी जिज्ञासा की मदद से आज हम अपने आस पास की चीज़ों को समझ पाए हैं। 

इस सवाल का जवाब है- हमारा डीएनए। डीएनए की वजह से ही हम सभी के अंदर अलग अलग काबिलियत है। डीएनए के अन्दर बहुत सारे जीन्स पाए जाते हैं जो आपके बारे में कुछ जानकारी रखते हैं और आपकी बनावट के लिए जिम्मेदार होते हैं। 

इस किताब में हम देखेंगे कि किस तरह इंसान ने डीएनए को समझने की कोशिश की और कैसे इसमें सफलता हासिल की। यह किताब हमें जे क्रेग वेंटर के बारे में बताती है जिन्होंने इस काम को अंजाम दिया।

इसे पढ़कर आप सीखेंगे कि

- वेंटर ने अपने वैज्ञानिक कैरियर की शुरुआत कैसे की।

- वेंटर को अपने सफर में किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

- वेंटर अब अपना समय किस काम को दे रहे हैं।

 

बचपन में वेंटर को रिस्क लेना और कुछ अलग करना पसंद था।
वेंटर का जन्म 1946 में हुआ था और उन्होंने अपना बचपन मिलब्रे नाम के एक छोटे शहर में गुजारा। बचपन में उन्हें स्कूल के काम में ज्यादा रुचि नहीं थी। वे हमेशा कुछ प्रैक्टिकल करने के बारे में सोचते रहते थे। इसका नतीजा यह हुआ कि जब वे 7वीं क्लास में थे तब उन्होंने अपने स्कूल के बास्केटबॉल टीम के लिए एक इलेक्ट्रानिक स्कोरबोर्ड बनाया था।

इसके अलावा अपने वूड कार्पेंट्री की क्लास में वेंटर ने दूसरों की तरह लकड़ी से चीजें ना बना कर पानी में चलने वाला जहाज बनाया। यह जहाज बहुत ही जटिल था और उस समय पानी में इसकी स्पीड 60 मील प्रति घंटा थी, जो कि अपने आप में एक बड़ी बात थी। वेंटर हमेशा कुछ नया और कुछ अलग करने की कोशिश किया करते थे।

इसके अलावा उन्हें रिस्क लेना और चुनौतियों का सामना करना पसंद था। जब वे छोटे थे तो वे अपने दोस्तों के साथ एयरपोर्ट पर चले जाते और वहाँ उड़ते हुए प्लेन्स को देखते थे। उस समय एयरपोर्ट में उतनी सुरक्षा नहीं थी जितनी आज देखने को मिलती है।

वे अपने दोस्तों के साथ एयरपोर्ट पर जाते थे। एक दिन उनके दिमाग में एक प्लान आया। उन्होंने अपने दोस्तों से कहा कि वो लोग ट्रैक पर दौड़ रहे प्लेन से रेस लगाएंगे। वे अपनी बाइक ले कर प्लेन के ट्रैक पर उतर जाते और रेस लगाने लगते थे।

प्लेन के पाइलट जब उन्हें देखते तो वे कंट्रोल टावर में सबको सूचना दे देते थे। लेकिन टावर से ट्रैक बहुत दूरी पर था जिसका फायदा उठा कर वेंटर और उनके दोस्त भाग जाया करते थे।

दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि वेंटर को बचपन से ही रिस्क लेना, चीजें बनाना और कुछ अलग करने का शौक था। उनकी यही खूबी आगे चल कर उनके फेमस होने की वजह बनी।

वियतनाम के युद्ध देखने के बाद वेंटर ने फैसला किया कि वे जिन्दगी को समझने की कोशिश करेंगे।
1960 के दशक में अमेरिका और वियतनाम में युद्ध हो रहे थे। वेंटर को इस युद्ध के लिए जाना पड़ा। IQ टेस्ट में उनका IQ 142 निकला जो कि बहुत अच्छा स्कोर था। तेज दिमाग के होने की वजह से उन्हें एक डाक्र का काम दे दिया गया। उनके तेज दिमाग की वजह से उन्हें मेडिकल युनिट में भर्ती कर लिया गया।

वे दा नांग में अपनी मेडिकल प्रैक्टिस कर हे थे जहां उन्हें अलग अलग घायल लोगों को देखना पड़ता था। पहले वे कार्प्स युनिट में थे जहां उन्हें मुर्दों को झेलना पड़ता था लेकिन बाद में वे डर्मैटोलॅाजी और इन्फेक्शन वाले क्लिनिक से जुड़े जहाँ उन्हें मलेरिया, ट्यूमर और दूसरी बीमारियों से पीड़ित सैनिकों को देखना पड़ता था।

वेंटर अनाथ आश्रम में बच्चों की देखभाल भी करते थे। कीड़ों से फैले इंफेक्शन, गहरे घाव, प्रेग्नेंसी और टूटी हुई हड्डियाँ देखना उनका रोज का काम था। वो हर रोज किसी सैनिक को मरते देखते थे। वो हर रोज अपने चारों तरफ दुख, तकलीफ और दर्द का माहौल देखते थे। वे बुरी तरह घायल लोगों को बचाने की कोशिश किया करते थे।

अपने चारों तरफ इतनी तकलीफ देखने के बाद उन्होंने फैसला किया कि अब वे जीना नहीं चाहते। युद्ध के माहौल से भागने के लिए वे समुद्र में कूद पड़े। वे डूब कर मरना चाहते थे लेकिन तभी एक शार्क ने उनके ऊपर हमला कर दिया और उन्हें फिर से किनारे पर आना पड़ा। इस घटना के बाद वेंटर ने फैसला किया कि वे जिन्दगी को समझने की कोशिश करेंगे।

वेंटर ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से बायोकेमिस्ट्री में पीएचडी हासिल की।
वियतनाम से लौटने के बाद वेंटर ने अपना पूरा जोर अपनी पढ़ाई में लगा दिया। उन्होंने 1969 में सैन मैटिओ नाम के कालेज में अपना नाम लिखाया।

वेंटर को बचपन में स्कूल नहीं पसंद था। इसलिए उन्हें शुरुआत में थोड़ी परेशानी हुई। लेकिन बाद में उनकी मेहनत रंग लाई। उन्हें तीन केमिस्ट्री में A ग्रेड मिला जिससे वे यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के लिए चुन लिए गए जहाँ उन्होंने बायोकेमिस्ट्री की पढ़ाई की और अपने साइंटिफिक जर्नल को पब्लिश किया।

वेंटर दिमाग से तेज थे। इसके अलावा वे मेहनत भी बहुत कर रहे थे जिससे वे नथान ओ कैप्लान (Nathan O. Kaplan) की नजरों में आ गए। कैप्लान एक जाने माने बायोकेमिस्ट थे जिन्होंने वेंटर को प्रोजेक्ट के लिए किसी आइडिया के बारे में सोचने के लिए कहा।

वेंटर एड्रेनलीन हार्मोन के बारे में पढ़ना चाहते थे। उस समय एक थ्योरी के हिसाब से एड्रेनलीन सेल्स के अन्दर काम करता है। लेकिन वेंटर ने उसे गलत साबित कर दिया और दिखाया कि एड्रेनलीन असल में सेल्स के ऊपर काम करता है। उन्होंने अपने ग्रैजुएशन के समय में कुल मिला कर 11 पेपर पब्लिश किये थे जो कि अपने आप में बड़ी बात थी। 1975 में वेंटर ने पीएचडी हासिल कर ली जिससे उन्हें वैज्ञानिक समुदाय से मिलने का मौका मिला।

यूनिवर्सिटी में पढ़ते वक्त वेंटर कैप्लान की मदद से बहुत सारे जाने माने साइंटिस्ट से मिले। इनमें नोबेल पुरस्कार हासिल करने वाले कार्ल और गर्टी कोरी थे, इसराइल के पूर्व राष्ट्रपति और बायोकेमिस्ट एफ्राइम कत्ज़ीर थे और यूनिवर्सिटी के चांसेलर विलियम मैकेलरॅाय थे।

 

NIH में काम करते वक्त वेंटर के दिमाग में वे आइडिया आया जो उनकी जिन्दगी को हमेशा के लिए बदलने वाला था।
अपने कैरियर को आगे ले जाने के लिए वेंटर ने स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू यॉर्क में एक स्थायी पद हासिल करने के बारे में सोचा। लेकिन जब उन्हें स्थायी पद नहीं दिया गया तो उन्होंने उसे छोड़ दिया। इसके बाद 1983 में वेंटर को नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) में अपनी खोज को जारी रखने का मौका दिया गया।

NIH वेंटर के लिए स्वर्ग से कम नहीं था। वहाँ पर अमेरिका के सबसे बेहतरीन खोजकर्ता थे जिनके साथ वेंटर का उठना बैठना हुआ। वहाँ वेंटर ने मालेक्यूलर बायोलॅाजी में जाने का फैसला किया और जिनोमाक्स को चुना।

वेंटर को अपनी खोज करने के लिए सारी सुविधाएं दी गईं। उन्हें साल में १० लाख डॉलर दिए जाते थे। वहाँ वेंटर ने मालेक्यूलर बायोलॅाजी पर अपना पहला पेपर लिखा और एक ऐसे जीन की खोज की जो एड्रेनलीन को पहचानने में मदद करता है। इसी दौरान उनके दिमाग में यह आइडिया आया कि वे पूरे जीनोम को समझने की कोशिश करेंगे।

यह कोई आसान काम नहीं था। कुछ साइंटिस्ट के हिसाब से यह असंभव काम था। वेंटर को एड्रेनलीन पहचानने वाले जीनोम की खोज करने और उसे समझने में 10 साल लगे थे। उस जीनोम में 1 लाख जीन्स थे। ऐसे में पूरे जीनोम के बारे में जानना कोई आसान काम नहीं था।

लेकिन वेंटर फैसला कर चुके थे कि वे हर एक जीन के बारे में जानकारी हासिल करेंगे।

 

अपने काम की वजह से वेंटर को बहुत से लोगों की नफरत को झेलना पड़ा।
सफलता के रास्तों में रुकावटें हर जगह होती हैं। वेंटर के साथ भी कुछ ऐसा हुआ। जब उन्होंने यह घोषणा की कि वे पूरे जीनोम को डीकोड करेंगे तब बहुत से लोग उनके खिलाफ खड़े हो गए। 

NIH में वेंटर ने एक ऐसी तकनीक बनाई जो एक्सप्रेस्ड सिक्वेंस टैग्स (ESTs) जिससे वे डीएनए के छोटे हिस्सों को पढ़कर उनके बारे में बहुत सी बातें पता लगा सकते हैं। वेंटर जब भी किसी नए जीन की खोज करते, वे उसे अपने नाम पर पेटेंट करा लेते। वेंटर का मानना था कि उनकी यह तकनीक इंसान के जीनोम को समझने के बहुत काम आ सकती है। NIH के साथ मिलकर वेंटर ने जिन्स को पहचानना और उन्हें पेटेंट करना शुरू किया।

उनका जींस को पेटेंट करना कुछ लोगों को पसंद नहीं आया। उनके हिसाब से जीन्स की खोज को पेटेंट करना गलत है। उनके हिसाब से अगर वे इसे पेटेंट करा लेते हैं तो यह उनकी प्रापर्टी हो जाएगी। फिर वे इसे किसी को भी बेच सकते हैं और इसका गलत इस्तेमाल हो सकता है। उनका मानना था कि प्राइवेट इंवेस्टर इसे खरीद सकते हैं।

न्यु यार्क टाइम्स में एक रिसर्चर ने वेंटर की बुराई की। धीरे धीरे NIH ने भी उन्हें सपोर्ट करना बंद कर दिया। इसलिए उन्होंने 1992 में NIH छोड़ दिया।

वेंटर नहीं चाहते थे कि कोई भी उनके और उनके काम के बीच आए। NIH छोड़ देने के बाद ह्यूमन जीनोम साइंस (HGS) ने उन्हें अपने यहाँ काम करने का आफर दिया जहाँ पर रहकर वे अपने रिसर्च की मार्केटिंग कर सकते थे।  वहीं पर रह कर वेंभर ने खुद के एक रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्थापना की जिसका नाम द इंस्टिट्यूट ऑफ जीनोमिक रिसर्च (TIGR)  था।

वेंटर ने सबसे पहले इंसान के जीनोम को डिकोड किया।
वेंटर ने जीनोम को डिकोड करने का एक नया तरीका खोज निकाला। इस तरीके का नाम उन्होंने शाटगन सिक्वेंसिंग रखा। इस तरीके की मदद से वे जीनोम को बहुत सारे छोटे छोटे टुकड़े में बाँट देते थे फिर आसानी से उसे समझने की कोशिश करते थे। वेंटर ने अब तक किसी जिन्दा जीव पर इसका प्रयोग नहीं किया था। अब वक्त आ गया था कि वे कुछ अलग करते।

1995 में वेंटर ने एक बैक्टीरिया के जीनोम को डिकोड किया। इस बैक्टीरिया का नाम एच इंफ्युएन्साई था। इसमें उन्हें सफलता मिली। उनकी शाटगन सिक्वेंसिंग तकनीक अच्छे से काम कर गई और उन्होंने एक बहुत बड़ी सफलता हासिल की।

लेकिन इसके साथ ही कुछ परेशानियाँ भी खड़ी हो गई। वेंटर को रिसर्च करने के लिए जिन पैसों की ज़रूरत पड़ती थी वे ह्यूमन जीनोम साइंस (HGS) देता था। वेंटर अपने खोज को प्रकाशित कराना चाहते थे लेकिन HGS उससे पैसे कमाना चाहता था। इस मतभेद की वजह से वेंटर को HGS से अपना नाता तोड़ना पड़ा। 

लेकिन जल्दी ही वेंटर को अपना काम जारी रखने के लिए एक और मौका मिला। अमेरिका की एक बायोटेक कंपनी पर्किनएल्मर (PerkinElmer) ने वेंटर से कहा कि वे एक सेलेरा नाम की कंपनी बनाएँ जहाँ वे अपने खोज के काम को जारी रख सकते हैं।

सेलेरा में वेंटर को जीनोम के बारे में सारी जानकारी सुरक्षित रखने की सुविधा दी गई। उन्हें इस बात की आज्ञा दी गई कि वे अपना डाटाबेस तैयार कर सकते हैं। लेकिन बाद में एक पब्लिकली फाइनैंस्ड कंपनी ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट ने सेलेरा से प्रतियोगिता करना शुरू किया।

2000 में वेंटर ने अपनी मंजिल हासिल कर ही ली। वे ह्यूमन जीनोम को पूरी तरह से डिकोड करने में कामयाब हुए। सेलेरा और ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट ने एक साथ इस महान सफलता की घोषणा की।

 

अपनी खोज के लिए वेंटर को अलग अलग देशों से अलग अलग पुरस्कार मिले।
26 जून 2000 को वेंटर वाइट हाउस पर जा कर अपने इस महान खोज के बारे में दुनिया को बताया। उस दिन उनके अलावा फ्रांसिस कोलिंन्स को भी वाइट हाउस पर बुलाया गया था। फ्रांसिस कोलिंन्स ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट की तरफ से आए थे और उन्होंने वेंटर के साथ ही इस खोज को अंजाम दिया था।

वेंटर के अलावा ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट जीनोम को डिकोड करने का काम कर रही थी। वेंटर और ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट के बीच कई सालों से चल रही रेस आज खत्म हो गई और दोनों लोग विजेता घोषित हुए।

ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट और वेंटर के बीच बहुत से मतभेद थे। ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट की मानें तो वेंटर का शाटगन सिक्वेंसिंग का तरीका गलत था और उससे नतीजे सही नहीं आने चाहिए थे। लेकिन जब यह प्रतियोगिता खत्म हुई तो दोनों तरफ के लोगों ने चैन की साँस ली।

वेंटर को अपनी इस खोज के लिए बहुत से पुरस्कार मिले। 

- सउदी अरब के किंग फैज़ल ने उन्हें इंटरनेशनल प्राइज़ फार साइंस दिया।

- विएना में उन्हें पूर्व सोवियत राष्ट्रपति माइकल गोरबचेव की तरफ से वर्ल्ड हेल्थ अवार्ड मिला।

- दुनिया की बहुत सारी यूनिवर्सिटी से उन्हें होनोररी अवार्ड मिला।

- उन्हें पाउल एर्हलिच और लुडविग डार्मस्टैडेटर प्राइज़ (Paul Ehrlich and Ludwig Darmstaedter Prize) मिला।

- जापान की तरफ से वेंटर को तकेडा अवार्ड मिला।

- कैनेडा की तरफ से उन्हें गाइर्नडर अवार्ड मिला।

 

वेंटर अब भी अलग अलग साइंटिफिक रिसर्च करते हैं।
अपनी जिन्दगी में इतनी बड़ी सफलता हासिल करने के बाद वेंटर अब समुद्र में रहने वाले जीवों के जीनोम को पढ़ने की कोशिश करते हैं। उनके हिसाब से हम अलग अलग जीनोम को पढ़कर बहुत से ऐसे काम कर सकते हैं जिससे वातावरण का प्रदूषण कम किया जा सके।

आज हम बहुत सारा कार्बन डाई आक्साइड वातावरण में फैला रहे हैं जिससे हमारी जिन्दगी हर रोज खराब होती जा रही है। वेंटर चाहते हैं कि वे बायोलॅाजी की मदद से कुछ ऐसा बनाएँ जिससे वे इसे कम कर सकें।

वेंटर ऐसे जीव बनाने में लगे हैं जिनकी मदद से हम वातावरण के प्रदूषण को कम कर सकते हैं। उनका मानना है कि शायद हम ऐसे जीव बना सकें जो वातावरण के कार्बन डाई आक्साइड को सोख कर उससे कुछ फायदेमंद बना सके जो हमारे काम आ सके। या फिर कुछ ऐसा जिसकी मदद से हम बदलते वातावरण को काबू कर सकते हैं।

वेंटर इस समय ऐसे जीवों को बनाने में लगे हैं जिनसे हम वातावरण के प्रदूषण को कम कर सकते हैं। 2006 में उन्होंने जे क्रेग वेंटर इंस्टिट्यूट की स्थापना की जो कि दुनिया के सबसे बड़े साइंटिफिक रिसर्च सेंटर में से एक है। उसके एक साल का बजट ७ करोड़ डॉलर है।

वे समुद्र के बारे में पढ़ रहे हैं जिससे वह यह पता लगा सकें कि बदलते मौसम का समुद्र पर और उसके जीवों पर क्या असर पड़ता है। उन्होंने समु्द्र के पानी में रहने वाले सूक्ष्म जीवों के जीनोम को पढ़ना शुरू किया।

वेंटर ने अब तक हजारों अलग अलग सूक्ष्म जीवों की खोज की है जिनमें उन्हें अब तक 13 लाख अलग अलग जीन्स मिले हैं। यह 13 लाख जीन उन्होंने समुद्र के सिर्फ 200 लीटर पानी से खोजे निकाले हैं।

 

कुल मिला कर
वेंटर बचपन से ही होनहार थे। उन्हें बचपन से ही रिसटक लेना पसंद था। शुरू में उन्हें स्कूल पसंद नहीं था लेकिन वियतनाम से लौटने के बाद उनकी जिन्दगी ने एक नया मोड़ ले लिया। उन्होंने बायोकेमिस्ट्री की पढ़ाई की और इस दौरान बहुत सारे अलग अलग वैज्ञानिकों से मिले। उन्होंने बहुत सी रिसर्च कंपनी में अपनी खोज को जारी रखा जिसमें उन्हें बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। लेकिन अंत में वे कामयाब हुए।

अपनी जिज्ञासा को हमेशा ज़िन्दा रखें।

वेंटर के अन्दर बचपन से ही जिज्ञासा भरी हुई थी। इसी की वजह से वे अपनी खोज में कामयाब हो सके। वे हर एक चीज के बारे में जानने की कोशिश किया करते थे और उसे समझने की कोशिश किया करते थे। आप भी अपनी जिज्ञासा को जिन्दा रखिए। आप उन लोगों से दूर रहिए जो आप से कहते हैं कि ऐसा कर पाना असंभव है। आप हमेशा आगे बढ़ने की कोशिश कीजिए और खुद को कभी भी रुकने मत दीजिए।


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