ब्लाक से बाहर निकलकर अपने अन्दर की क्रिएटिव लडाई को कैसे जीतें?
दो लफ्जों में
‘द वार ऑफ़ आर्ट’ नाम की इस किताब में लेखक स्टीवन प्रेसफील्ड नें डर और सेल्फ डाउट के खिलाफ हमारे अन्दर चल रही क्रिएटिव लड़ाई को पहचानने और उसे जीतने की कला सीखाई है. ये किताब उन सभी लोगों के लिए एक इंस्पिरेशन की तरह है जिन्हें अपने पैशन को पहचानने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इस किताब के जरिये आप उन सभी नेगेटिव ताकतों से मिलेंगे जो आज तक आपको अपने सपनों की उड़ान भरने से रोकते आये हैं और जानेंगे कि कैसे आप उन ताकतों को हरा कर अपने क्रिएटिव सपने सच कर सकते हैं.ये
किताब किसके लिए है?
-वो लोग जो एक आर्टिस्ट या किसी फील्ड में प्रोफेशनल बनना चाहते हैं.
-जो अपना बिज़नस स्टार्ट करना करना चाहते हैं.
-जो लोग डर और सेल्फ-डाउट पर जीत हासिल कर अपने क्रिएटिव सपने पुरे करना चाहते है.
लेखक के बारे में
स्टीवन प्रेसफील्ड हिस्टोरिकल फिक्शन और नॉनफिक्शन बुक्स के एक बेस्ट सेलिंग ऑथर हैं, जिसमें गेट्स ऑफ फायर, टाइड्स ऑफ वॉर, द लीजेंड ऑफ बैगर वेंस और डू द वर्क शामिल हैं.
रेजिस्टेंस एक ऐसा मेंटल फ़ोर्स है जो हमारी हर कोशिश नाकाम कर देता है.
क्या आपको भी ऐसा लगता है कि आप कुछ बड़ा करने के लिए बने हैं, जैसे कोई बेस्ट सेलिंग किताब लिखने के लिए या कोई सुपरहिट फिल्म डायरेक्ट करने के लिए? लेकिन हर सुबह आप चाहकर भी अपने सपने की तरफ कोई कदम नहीं बढ़ा पाते और शाम को उस सपनों को दुबारा अपनी आँखों में समेट कर कल के लिए रख देते हैं?
अगर ऐसा आपके साथ भी हो रहा है तो खुद को दोष देना छोड़ दीजिये इसमें आपकी कोई गलती नहीं, ये तो आपके मन का डर है जो रेजिस्टेंस बन कर आपको कुछ क्रिएटिव से रोक रहा है.
इस किताब के जरिये आप जानेंगे कि कैसे ये रेजिस्टेंस आपको अपने सपनों तक पहुँचने से रोक रहा है और कैसे आप इसे हरा कर अपने सारे सपने सच कर सकते हैं और कुछ ऐसा कर सकते हैं जो हर सपने देखने वाले के लिए एक इंस्पिरेशन का बन जाए.
क्या आपके सपने भी बहुत बड़े हैं, लेकिन अपने सपनों की मंजिल के रास्तों पर चलने से आपको डर लगता है या हिचकिचाहट होती है? अगर हाँ तो घबराइए मत क्यूंकि, ये सबके साथ होता है.
इस हिचकिचाहट को रेजिस्टेंस कहते हैं जो कि एक नार्मल मेंटल प्रोसेस है. जब भी हम कुछ नया करना चाहते हैं या अपने रूटीन में कुछ बदलाव लाना चाहते हैं तो ये रेजिस्टेंस सामने आकर हमें रोकने की कोशिश करता है.
जैसे अगर आपके पास कोई बिज़नस प्लान है और आप अपनी जॉब छोड़ कर अपना स्टार्ट-अप शुरू करना चाहते हैं तो तुरंत आपके मन में ख्याल आने लगेगा कि इसमें बहुत रिस्क है शायद जॉब ही सही है कम से कम हर महीने सैलरी तो आएगी. अगर आप डाइटिंग शुरू करने जायेंगे तो आपके मन में आएगा आज खा लेते हैं कल से कर लेंगे. अगर आप कुछ लिखने की कोशिश करेंगे तो आपके मन में आएगा कि पता नहीं लोगों को पसंद आएगा या नहीं.
ये सब बातें जो आपका मन आपको रोकने के लिए कर रहा है यही रेजिस्टेंस है. और ये रेजिस्टेंस हर एक के जीवन में आता है इसलिए इससे बचने के लिए सबसे पहले तो आप ये सोचना छोड़ दें कि ऐसा बस आपके साथ ही हो रहा है और ये मानना शुरू करें कि रेजिस्टेंस एक नार्मल प्रोसेस है.
रतन टाटा और अंबानी जैसे मंझे हुए बिज़नस भी जब किसी नए प्रोजेक्ट के बारे में सोचते हैं तो उन्हें भी रेजिस्टेंस का सामना करना पड़ता है. रेजिस्टेंस कई तरह से हमारे सामने आता है जैसे फेलियर से डर लगना, खुद पर डाउट होना या अपने काम को टालते जाना. लेकिन अगर हम अपना फोकस अपने सपनों पर रखें और ये मान कर चलें की रेजिस्टेंस एक नार्मल प्रोसेस है तो हम इस चैलेंज को जीत सकते हैं.
रेजिस्टेंस हमें तब तक अपने सपनों को पूरा करने से रोकता रहेगा जब तक हम इसका फायेदा उठाना ना सीख जायें.
असल में हम एक दोहरी ज़िन्दगी जी रहे हैं, एक हमारी रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी जिसे हम जीते आ रहे हैं और एक उन अधूरे सपनों की ज़िन्दगी जिसे हम जीना चाहते हैं लेकिन जी नहीं पाते. हमारा वो पैशन जिसे हम आज तक पूरा नहीं कर पाए.
हम सेल्फ डाउट और फेलियर के डर से अपने अधूरे सपनों को पूरा करने की हिम्मत कभी कर हीं नही पाते और उसे बस कल पर टालते रहते हैं. जैसे आप एक डांसर बनना तो चाहते है लेकिन डरते हैं कि घरवाले मानेंगे या नहीं, किसी को मेरा डांस पसंद आएगा या नहीं,मैं कभी एक बड़ा डांसर बन पायूँगा या नही. ये सब बातें जो आपके मन में चल रही हैं वो रेजिस्टेंस के हीं अलग-अलग रूप हैं और ये कभी आपको डांसर नहीं बनने देंगे.
इसलिए इससे पहले कि रेजिस्टेंस आपको रोके आप इसका फायेदा उठाना शुरू कर दें. कैसे? ऐसे कि अगर किसी काम को शुरू करते हुए आपको डर लग रहा है या खुद पर डाउट हो रहा है तो इसमें कुछ गलत नहीं है उल्टा ये तो इस बात का इंडिकेशन है कि आपको वो काम कितना पसंद है. आपके लिए वो इतना मीनिंगफुल हैं कि आप उसे खोने से डरते हैं. यानी यही आपका पैशन है.
जब बड़े-बड़े एक्टरों से पूछा जाता है कि वो किसी चैलेंजिंग रोल को क्यूँ साईन करते हैं, तो उनका जवाब होता है कि क्यूंकि उन्हें उस रोल को करने से डर लगता है यानी कहीं न कहीं वो रोल उनका पैशन है. हमें डर उसी को खोने से लगता है जो हमें प्यारा होता है. तो रेजिस्टेंस से डरें नहीं बल्कि उसे अपने पैशन को पहचानने का एक जरिया बना लें. फिर देखिये कैसे आपका रेजिस्टेंस हीं आपका मोटिवेशन बन जाएगा.
रेजिस्टेंस से लड़ने के लिए खुद को एक प्रोफेशनल समझें और अपने सपनें को एक फुल टाइम जॉब की तरह देखें.
आप अपने सपने को कैसे पूरा करने वाले हैं? क्या दिन में बस कुछ घंटे उस पर काम करके आप सोच रहे है कि आप उसे पूरा कर सकते हैं? अगर ऐसा है तो आप गलती कर रहे है. क्यूंकि आपको अपने सपने को एक फुल टाइम जॉब की तरह जीना है.
और आप ये सब अपने रेगुलर जॉब या पढाई के साथ-साथ भी कर सकते हैं, जैसे अक्षय कुमार एक होटल में जॉब के साथ-साथ डांस और मार्शल आर्ट्स सीखते थे और शाहरुख़ खान अपनी इकोनॉमिक्स की डिग्री के दौरान अपना ज्यादातर समय थिएटर में बिताते थे.
कुल मिलाकर बात इतनी सी है कि अगर आपमें हर सेटबैक को भुलाकर कर हर समय बस अपने सपने के बारे में सोचने का जज़्बा है तो इसका मतलब आपमें एक प्रोफेशनल बनने के सभी गुण हैं.
अपने रेगुलर जॉब में भी आप बहुत सी स्किल्स सीखते हैं. फिर चाहे आपकी रेगुलर जॉब आपके ड्रीम जॉब से कितनी हीं अलग क्यूँ ना हो, बहुत सी ऐसी कॉमन स्किल्स हैं जिनका इस्तेमाल आप कहीं भी कर सकते हैं जैसे डिसिप्लिन की स्किल, बिना ध्यान भटकाए काम करते रहने का स्किल. अपनी रेगुलर जॉब में सीखी गयी स्किल्स को अपनी ड्रीम जॉब में अप्लाई कर के आप अपना काम आसान कर सकते हैं.
जिस तरह आपका रेगुलर जॉब कभी-कभी फ्रसट्रेटिंग भी हो सकता है उसी तरह आपके सपनों के ऊपर काम करना भी हमेशा मजेदार नहीं होता. लेकिन, चाहे जितना फ्रसट्रेशन हो आप फिर भी अपनी रेगुलर जॉब करते हैं उसी तरह चाहे कितने भी चैलेंज हो आपको अपने सपनों पर भी काम करते रहना है.
अमेरिका के महान लेखक सॉमरसेट मौघम (Somerset Maugham) से जब पूछा गया कि क्या वो एक फिक्स्ड शिड्यूल के हिसाब से लिख सकते हैं तो उनका जवाब था कि मैं बस तभी लिखता हूँ जब कोई इंस्पिरेशन मिलती है और ख़ुशी की बात ये है कि वो इंस्पिरेशन मुझे रोज़ सुबह 9 बजे मिल जाती है.
इसका सीधा मतलब बस इतना है कि प्रोफेशनल लोग बैठकर घंटों किसी इंस्पिरेशन का इंतज़ार नहीं करते बल्कि दिनभर अपने प्रोजेक्ट पर कड़ी मेहनत कर उसे सक्सेसफुल बनाते हैं.
प्रोफेशनल होने का मतलब है खुद को और अपनी कला को अच्छे से पहचानना.
डर सबको लगता है, खुद पर डाउट भी सबको होता, ये नार्मल है. आप बार-बार अपने डर से मुँह नहीं मोड़ सकते इसलिए बेहतर यही कि आप इसका सामना करें. आप अपने डर का सामना तभी कर पाएंगे जब आप अपने आपको और अपने पैशन को अच्छे से समझ लेंगे.
अपने आप को समझने के लिए सबसे पहले अपनी लिमिटेशंस को समझना जरुरी है. हम अपना हर काम खुद नहीं कर सकते. अपने सपने को पूरा करने के लिए कई बार हमें ऐसी चीज़ों और ऐसे कामों की जरुरत पड़ती है जिसके लिए हमें दूसरों पर डिपेंड होना पड़ता है. यानी कई बार आपको अपने पैशन तक पहुँचने के लिए पूरी की पूरी टीम जरुरत पड़ती है.
अगर इस बात को हम एक उदाहरण से समझें तो मान लीजिये आप एक फिल्म डायरेक्टर बनना चाहते हैं और बन भी जाते हैं लेकिन क्या आप पूरी फिल्म खुद हीं बना सकते हैं? नहीं ना. आपको जरुरत होगी एक्टर्स की, कैमरामैन की, मेकअप आर्टिस्ट और भी बहुत से प्रोफेशनल्स की.
अगर आप अपनी फील्ड के एक कामयाब प्रोफेशनल बनना चाहते हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि आपको कब दूसरों से एडवाइस लेनी है और कितनी लेनी उस एडवाइस को अपने आईडिया के साथ कैसे जोड़ना है. अगर आप एडवाइस लेना बंद कर देंगे तो आपकी ग्रोथ रुक जाएगी जैसे खेल के ऊँचे शिखर पर पहुँचने के वाबजूद भी खिलाडियों को एक कोच की जरुरत पड़ती है. कोच उनके खेल में निखार लता है उनकी गलतियों को पॉइंट आउट करके उन्हें दोहराने से रोकता है और उनकी खुबीयों को एक नया नजरिया देता है.
आर्ट एक कांस्टेंट लर्निंग प्रोसेस है यानि आपको हर दम कुछ नया करना पड़ेगा कुछ नया सीखना पड़ेगा वरना आपका काम प्रेडिक्टेबल और बोरिंग हो जायेगा. जैसे एक फेमस पॉप स्टार होते हुए भी मडोना अपने हर नए एल्बम में कुछ नया करने की कोशिश करती है और इसके लिए उसे कुछ नया सीखना पड़ता है ताकि लोग उसे पसंद करते रहें.
क्रिएटिविटी में सीखने की कोई लिमिट नहीं है यही एक सच्चे प्रोफेशनल की निशानी है.
एक प्रोफेशनल अगर आर्गनाइज्ड रहकर, सब्र रखते हुए मुश्किलों को बोल्डली फेस करता है तो वो रेजिस्टेंस को हरा सकता है.
मान लीजिये आपका सपना एक लेखक बनने का है और आप लिखना चाहते है आपने अपने लिए एक रूटीन सेट किया और रोज़ बैठ कर लिखना शुरू कर दिया. आप सोच रहे होंगे कि ऐसा करने से आपका रेजिस्टेंस चला जायेगा पर दुःख की बात ये हैं कि वो और बढेगा. जैसे-जैसे आप लिखेंगे आपको खुद पर अपने पैशन पर डाउट होने लगेगा. लेकिन, अगर आप परसिस्टेंट और आर्गनाइज्ड रहेंगे तो आप इस रेजिस्टेंस को कमजोर कर सकते हैं.
जाने-माने लेखक चेतन भगत का कहना है कि कुछ लिखते समय वो रिजल्ट के बारे में सोचने के बजाये प्रोसेस पर फोकस कर उसका मजा लिया करते हैं. इसलिए अगर आप खुद को परसिस्टेंट रखना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको रिजल्ट की चिंता छोड़कर प्रोसेस का मजा लेना सीखना होगा. उसके लिए सबसे जरुरी है कि आपके गोल्स रीयलिस्टिक हों. अगर आप एक हफ्ते में पूरी नॉवेल लिखने का सोचेंगे तो वो गोल तो पूरा होने से रहा, उल्टा आप निराश होंगे और रेजिस्टेंस आपके ऊपर हावी होकर आपको फिर से कोशिश करने से रोक देगा.
अगर आपको अपने गोल तक पहुँचने में थोडा समय लग रहा है तो कोई बात नहीं आपको सब्र से काम लेना चाहिए. असल में तो बिना सब्र के क्रिएटिविटी पॉसिबल हीं नहीं है.
अब बात आती है मुश्किलों को बोल्डली फेस करने की इसके लिए हम ओप्राह विनफ्रे (Oprah winfrey) की ज़िन्दगी का उदाहरण लेते हैं. जब ओप्राह (Oprah) पहली बार टीवी पर आने वाली थी तो ज्यादातर लोग यही सोच रहे थे कि एक ब्लैक लेडी टीवी शो की होस्ट के रूप में कैसे सक्सेसफुल होगी जबकि पूरी इंडस्ट्री में ज्यादातर गोरों का राज है. लेकिन, उन्होंने इस क्रिटीसिज्म को चैलेंज की तरह लिया और कुछ हीं महीनों में उनका शो अमेरिका का सबसे ज्यादा देखे जाने वाला मॉर्निंग शो बन गया.
आप रेजिस्टेंस से लड़ने के लिए पॉजिटिव मेंटल फोर्सेज का इस्तेमाल कर सकते हैं.
हम में से हर किसी को लाइफ में कभी न कभी रेजिस्टेंस जैसे नेगेटिव फोर्सेज का सामना करना हीं पड़ता है. लेकिन अच्छी खबर ये है कि कुछ ऐसी पॉजिटिव ताकतें भी है जो रेजिस्टेंस से लड़ने में हमारी मदद कर सकती है.
ऐसी ही एक ताकत है ‘द म्युसेज’ (the muses) यानी ग्रीक माइथोलॉजी की वो नौ देवियाँ जिन्हें आर्ट और साइंस की जन्मदाता माना जाता है. हर देवी एक अलग आर्ट फॉर्म की जन्मदाता है. द म्युसेज उन सभी कलाकारों के लिए इंस्पिरेशन हैं जो अपनी कला को भी एक पूजा की तरह मानते हैं. ऐसा माना जाता है कि ये नौ देवियाँ कलाकरों को आइडियाज देती है और उन्हें रेजिस्टेंस से लड़ने की शक्ति देती हैं. इंग्लिश के प्रसिद्ध कवी होमर को अपनी महान कविता ‘द ओडीसी’ का आईडिया भी द म्युसेज से हीं मिला था.
हम भी अपने अन्दर इस दैविक शक्ति को जगाकर अपने आस-पास की एनर्जी का इस्तेमाल रेजिस्टेंस को हराकर अपने गोल तक पहुँचने के लिए कर सकते हैं. ऐसा करने का बस एक हीं रास्ता है वो है मेहनत और लगन का रास्ता.
जब एक कलाकार पूरी लगन से मेहनत करता है तो आस-पास की सारी ताकतें जो अभी तक उसके बस में नहीं थीं वो भी उसका सपोर्ट करने लगती है. उसके अन्दर एक जूनून सा पैदा हो जाता है जिसके बाद उसे अपनी कला के अलावा कुछ नही दिखता. ये जूनून उसे सुपर चार्ज कर देता है और वो रेजिस्टेंस को पीछे छोड़कर कुछ ऐसा कर गुजरता हैं जो उसनें खुद भी कभी ना सोचा हो.
प्रोफेशनल्स हायरार्की (hierarchy ) के बंधनों को तोड़ कर सक्सेस हासिल करते हैं.
चाहे हमारा ऑफिस हो, स्कूल कॉलेज हो यहाँ तक कि हमारे घर में भी हमें सोशल स्ट्रक्चर के हायरार्की को फेस करना पड़ता है. हायरार्की हर जगह है. हर हायरार्की कि एक कॉमन बात है कि इसमें हर एक मेम्बर की जगह फिक्स्ड है और वो अपने औदे के हिसाब से हीं काम कर सकता है. हायरार्की में किसी भी तरह के बदलाव की कोई जगह नहीं होती है.
हममें से ज्यादातर लोग अब खुद को इस हायरार्की के हिसाब ढाल चुके हैं. लेकिन, ये हायरार्की सिस्टम हमारी सोच पर रेस्ट्रिक्शन लगा देता है. जैसे, ऑफिस में हायरार्की के कारण केवल कुछ चुनिंदा लोगों को हीं कुछ क्रिएटिव सोचनें की आज़ादी मिलती है और बाकियों को बताया गया काम हीं करना पड़ता है. ऐसे में कुछ आउट ऑफ़ द बॉक्स सोच पाना तो लगभग नामुमकिन है.
जब हम किसी हायरार्की के मुताबिक काम करते हैं तो हमें दूसरों के हिसाब से अपने हर एक्शन को डिजाईन करना पड़ता है, कभी बॉस की सुनो तो कभी ऑडियंस की. हमारी सक्सेस उनकी तारीफों और उसी हायरार्कीयल स्ट्रक्चर में प्रमोशन की मोहताज़ बन जाती है.
लेकिन जो अपनी कला के सच्चे प्रोफेशनल होते हैं वो इस हायरार्की को नहीं मानते. वो खुद के लिए और कला के लिए काम करते है किसी बॉस की तारीफ या ऑडियंस की तालियों के लिए नहीं.
उदाहरण के लिए स्टीव जॉब्स को हीं ले लेते हैं जो कि अपने फील्ड के जाने माने प्रोफेशनल हैं. वो चाहते थे कि वो अपने विज़न से जुडी हर चीज़ खुद डिजाईन करें इसलिए उन्होंने प्रोडक्ट डिजाईन से लेकर कस्टमर सपोर्ट तक को खुद मैनेज किया. वो हमेशा अपने विज़न के हिसाब से काम करते थे ना कि दूसरों को खुश करने के लिए. उनकी इसी मेहनत और आउट ऑफ़ द बॉक्स थिंकिंग का नतीजा है एप्पल.
जर्मन लेखक रेनर मारिया का कहना था कि अगर आप बेहतरीन काम करना चाहते हैं तो आपका गोल होना चाहिए कि आपको अपने काम पर प्राउड फील हो.
प्रोफेशनल्स खुद को एक ऐसी टेरिटरी को समर्पित कर देते हैं, जहाँ वो मेहनत कर अपने गोल को हासिल कर सकते हैं.
चाहे कोई सुपर हिट गाना लिखना हो या एक अवार्ड विनिंग फिल्म डायरेक्ट करना हो हम सबकी एक अलग इंस्पिरेशन है और अपना अलग गोल. अपने गोल को पाने के लिए प्रोफेशनल्स जिस जगह पर मेहनत करते हैं उसे उनकी टेरिटरी कहते हैं.
जैसे मशहूर एक्टर ऋतिक रोशन की टेरिटरी हैं उनका जिम, कोरियोग्राफर गणेश आचार्य की टेरिटरी है उनका डांस फ्लोर और क्रिकेटर विरत कोहली की टेरिटरी है उनका क्रिकेट ग्राउंड. इसी तरह आपकी भी कोई न कोई टेरिटरी होगी. कैसे पता लगायें कि आपकी टेरिटरी क्या है?
सबसे पहले तो आपकी टेरिटरी वो जगह है जहाँ मेहनत कर के आप अपनी रोजीरोटी चला सकें. जहाँ काम करके आप सैटिसफाईड और चैलेंजड दोनों महसूस करें. जहाँ टाइम बिता कर के आप खुद को बेहतर बना सकें. जैसे मेरी कॉम का कहना हैं कि जब वो बॉक्सिंग रिंग से बाहर निकलती हैं तो वो खुद को एक बेहतर इंसान के रूप में महसूस करती है यानी वो बॉक्सिंग रिंग हीं उनकी टेरिटरी है.
दूसरी बात ये हैं कि आप अपनी टेरिटरी पर सिर्फ और सिर्फ मेहनत करके ही दावा कर सकते हैं. जैसे यूँ तो कई लोग मुंबई के उस क्रिकेट ग्राउंड पर क्रिकेट खेलते थे पर सचिन तेंदुलकर नें वहाँ कड़ी मेहनत कर उसपर अपना हक़ जमा लिया.
तीसरी बात ये कि आपकी टेरिटरी एक कभी न ख़त्म होने वाले रिसोर्स की तरह है, जहाँ आप जितना मेहनत करोगे बदले में उतना हीं पाओगे. जैसे ऋतिक रोशन और सचिन तेंदुलकर की तरह लेखक गुलज़ार की टेरिटरी दिखती नहीं है, क्यूंकि उनकी टेरिटरी है गानों की दुनिया. उन्होंने बॉलीवुड के लिए सैंकड़ों गाने लिखे है, जिनके बिना हम हिंदी फिल्मों को इमेजिन भी नहीं कर सकते. गुलज़ार साहब का कहना है कि जैसे-जैसे वो लिखते जाते हैं वैसे-वैसे उनकी क्रिएटिविटी और बढती जाती है.
इन महान प्रोफेशनल्स की तरह आप भी हार्ड वर्क और डेडिकेशन से अपनी टेरिटरी क्लेम कर उसे मनचाहा आकार दे सकते हैं.
जो प्रोफेशनल्स सच्चे मन से अपनी टेरिटरी में काम करते हैं वो कभी कभी कुछ ऐसा कर जाते हैं कि उस क्षेत्र का पूरा नक्शा हीं बदल जाता है. जैसे बिल गेट्स और स्टीव जॉब्स नें पर्सनल कंप्यूटर को एक कॉम्प्लीकेटेड और कॉस्टली मशीन की जगह आज एक आसान और अफोर्डेबल चीज़ में बदल दिया.
कुल मिलाकर
चाहे आपका गोल क्रिएटिव हो जैसे कोई फेमस पेंटिंग बनाना या नॉवेल लिखना या फिर बिज़नस ओरिएंटेड हो जैसे किसी स्टार्टअप को सक्सेसफुल बनाना, हर केस में आपको कुछ न कुछ नेगेटिव फोर्सेज का सामना पड़ेगा जो आपको अपने रास्ते से भटका सकते हैं. अपने गोल को पाने के लिए आपको इन फोर्सेज को हराना पड़ेगा और आप ये कर सकते हैं. सबसे पहले इन फोर्सेज को पहचानें और फिर अपने हार्ड वर्क और जिद्द से इन्हें हरा दें.
अगर आपको डर लग रहा है तो मतलब आप सही दिशा में जा रहे हैं.
एक नया क्रिएटिव प्रोजेक्ट स्टार्ट करते समय बहुत से लोगों को डर लगता है और इस डर के कारण वो उस प्रोजेक्ट को छोड़ देते हैं. लेकिन डर एक नेगेटिव नहीं बल्कि पॉजिटिव साईन है क्यूंकि हमें डर उन्ही चीज़ों को खोने से लगता है जिन्हें हम प्यार करते हैं. तो अगर आप इस प्रोजेक्ट को लेने से डर रहे हैं यानी आपको ये काम पसंद है इसलिए डर को नेगेटिव तरीके से देखना बंद कीजिये, खुद को धीरे-धीरे आगे बढ़ाते रहिए और आप अपनी मंजिल तक पहुँच जायेंगे.
येबुक एप पर आप सुन रहे थे The War of Art By Steven Pressfield
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