Robert Poynton
You Are Not a To Do List
दो लफ्ज़ों में
साल 2019 में रिलीज हुई किताब “Do Pause” बताती है कि मॉडर्न लाइफ में कभी-कभी पॉज लगाने से कितने ज्यादा फायदे हो सकते हैं? प्रोडक्टिविटी और अचीवमेंट को लेकर इस दुनिया में फैले मिथ को ये किताब नकारते हुए एक नया पर्सपेक्टिव पेश करती है. इस किताब को पढ़ने के बाद आपको पता चलेगा कि कब आपको ब्रेक लेने की ज़रूरत होती है?
ये किताब किसके लिए है?
- सभी फील्ड के प्रोफेशनल्स के लिए
- स्टूडेंट्स के लिए
- क्रिएटिव लोगों के लिए
- ऐसे लोगों के लिए जिन्हें नई चीज़ों के बारे में जानने में अच्छा लगता है
लेखक के बारे में
आपको बता दें कि इस किताब के लेखक ‘Robert Poynton’ हैं. ये लेखक होने के साथ-साथ यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड में एसोसिएट फेलो भी हैं. इन्होने साल 2013 में हैण्डबुक ‘Do Improvise’ का लेखन भी किया था. इन सबके अलावा ये बीच-बीच में बिज़ी प्रोफेशनल्स को ट्रेंड भी करते रहते हैं.
मशीन्स को ब्लेम करना बंद कर दीजिए
आज का समय काफी ज्यादा तेज हो चुका है. इस दौड़ते भागते समय में लोग काफी ज्यादा बिज़ी भी रहने लगे हैं. आज के समय में बिज़ी रहने को लोग ‘बैज ऑफ़ ऑनर’ की तरह पेश करते हैं. इस बात को साबित करना इतना भी मुश्किल नहीं है. इसके लिए आप आज के समय में छपने वाली मोटिवेशनल किताबों को पढ़ सकते हैं. सभी किताबों में आपको लिखा हुआ मिल जाएगा कि “समय ही पैसा है”... रत्तीभर भी समय को बर्बाद मत करिए, खाली मत बैठिए. इसका नतीजा क्या हुआ है? हम अपने खाली समय को भी काम से भर देते हैं. आज कल लोग 20 घंटे काम करना चाहते हैं. इसलिए किसी से बात करना हो, या फिर किसी को कॉल करना हो, या फिर यूं ही कहीं घूमने जाना हो, हमें ये सब काम वेस्ट ऑफ़ टाइम लगता है. क्या व्यस्त रहने का कोई पॉजिटिव आउट पुट निकल रहा है? इसका एक ही आउटपुट निकल रहा है. वो ये है कि हमारी लाइफ में स्ट्रेस और एंग्जायटी बढ़ती जा रही है. इसलिए अब ये समय आ गया है कि हमें कम व्यस्त रहने के फायदों के बारे में भी पता होना चाहिए. इस किताब के चैप्टर्स टाइम को लेकर आपके माइंड को रिफ्रेम कर देंगे. आपकी सोच समय, रिलेशनशिप और फ्यूचर को लेकर बेहतर होती जाएगी. लेकिन कैसे? उसका एक सिम्पल सा तरीका है. वो ये है कि आपको अपने टाइम को पॉज करना होगा. उस पॉज के टाइम में आपका दिमाग स्वतंत्र होकर घूम सकेगा. इसलिए अभी तक आपको प्रोडक्टिविटी के बारे में जो कुछ भी पता था. सब कुछ भूल जाइए और अपने टाइम को पॉज कर दीजिए. इस समरी में आप जानेंगे कि लेज़ी लोग हमेशा बिज़ी क्यों रहते हैं? स्पैनिश लोगों से हम हैप्पीनेस के बारे में क्या सीख सकते हैं? और किसी भी आदत को आप पॉज कैसे कर सकते हैं?
क्या आपको याद है कि आखिरी बार कब आप रूककर अपने चारों तरफ देखें थें? हाल ही में ऑथर स्पैनिश पहाड़ों की चढ़ाई के लिए गए हुए थे. वहां उन्होंने ओब्सर्व किया था कि उनके दोस्त चढ़ाई में उनसे काफी पीछे चल रहे थे. इसके पीछे की वजह ये थी कि उनके दोस्तों का ध्यान व्यू को एन्जॉय करने में ज्यादा था.
ऑथर पहाड़ों में अकेले ही चले जा रहे थे. इसके पीछे की वजह क्या थी? उस समय ऑथर का पूरा ध्यान चढ़ाई को पूरा करने में था. उनका ध्यान टारगेट को अचीव करने में था. जिसकी वजह से उन्होंने सुनहरी दोपहर को भी एन्जॉय नहीं किया था.
यही होता है जब हम अचीवमेंट ओरिएंटेड माइंडसेट से आगे बढ़ने लगते हैं. इस माइंडसेट की वजह से हम डेली लाइफ को एन्जॉय करना बंद कर देते हैं. भले ही उस समिट में ऑथर ने जल्दी टारगेट अचीव कर लिया था. लेकिन उनके दोस्तों ने उस सफर के एक्सपीरियंस को ज्यादा एन्जॉय किया था.
हैरान करने वाली बात तो ये है कि हम अपने बच्चों को भी कुछ ऐसे ही ट्रीट करने लगते हैं. हम उनकी जिंदगी को भी ऐसे टास्क से भर देते हैं. जो कभी भी खत्म नहीं होते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि हम अपने बच्चों का अच्छे से अच्छा ख्याल रखने की कोशिश करते हैं. लेकिन फिर भी हम जाने-अंजाने अपने बच्चों की जिंदगी में टास्क भरते रहते हैं.
हमें सोचना चाहिए कि सालभर में हम कितना समय अपने परिवार के लिए पॉज करते हैं? इसी के साथ हमें ये भी सोचना चाहिए कि कितना टाइम हम अपने बच्चों के साथ एन्जॉय करने के लिए निकालते हैं?
दुःख की बात ये है कि हम सभी चीज़ों को छोड़कर अपनी टू-डू लिस्ट के ऊपर ध्यान लगाने की कोशिश करते रहते हैं. टू-डू लिस्ट के बीच में आने वाली चीज़ों को हम “नेगेटिव स्पेस” का नाम भी देते हैं. लेकिन ऑथर कहते हैं कि हमें पता होना चाहिए कि इन्हीं स्पेस की वजह से हमारी लाइफ में ये फ्लेवर मौजूद हैं. अगर हमें अपनी लाइफ को खुशहाल करना है तो फिर हमें इन स्पेस का भी ख्याल रखना होगा.
यहाँ एक सवाल ये भी उठता है कि हम टू-डू लिस्ट को कम्प्लीट करने के लिए मज़बूर क्यों होते जा रहे हैं? इसके जवाब में ज्यादातर लोग इसका ठीकरा टेक्नोलॉजी के ऊपर फोड़ देते हैं. या फिर मशीन्स को इसका ज़िम्मेदार ठहरा देते हैं.
हमें पता होना चाहिए कि मशीन्स को तेज से तेज काम करने के लिए ही डिजाईन किया गया है. उन्हें इसलिए बनाया ही गया है कि वो मैन पॉवर से तेज काम कर सकें. लेकिन इंसान खुद की तुलना मशीन से करने लगा है. आज के समय में हम चाहते हैं कि हमारे लिए काम करने वाले कर्मचारी भी मशीन की ही तरह काम करें. लेकिन ये पॉसिबल नहीं है.
इसलिए ऑथर कहते हैं कि आज की भागती हुई लाइफ में ज़रूरी है कि हम थोड़ा सा रुकने की कोशिश करें. हमें समझना चाहिए कि बस दूसरे को देखकर भागते रहना ही जिंदगी नहीं है. जिंदगी का असली मतलब है कि हमें अपने आस-पास के माहौल का आनंद लेना चाहिए.
‘पॉज’ एक अवसर की तरह है
आप पॉज को कैसे परिभाषित (डिफाइन) करेंगे? इसे कई तरह से डिफाइन किया जा सकता है. जैसे कि ये 5 सेकंड किसी भी सवाल के बारे में सोचना हो सकता है. या फिर एक घंटा अपने दोस्तों से बात करना भी हो सकता है. या फिर कुछ नहीं करना भी हो सकता है. सिम्पल सी बात ये है कि पॉज का मतलब ब्रेक है. एक ऐसा ब्रेक जिसकी आपको ज़रूरत है.
पॉज कई तरीकों से आपकी जिंदगी में आ सकता है. लेकिन ये एक खाली स्पेस तो बिल्कुल भी नहीं है. जब भी आपकी लाइफ में पॉज लगता है. इसका मतलब ये नहीं है कि तब आपके थॉट्स रुक जाते हैं. तब आप खुद को समय देते हैं कि आप दूसरी चीज़ों के बारे में सोच सकें.
खुद के लिए समय निकालना भी पॉज कहलाता है.
एग्जाम्पल के लिए ऑथर खुद का किस्सा शेयर करते हैं. वो बताते हैं कि एक वीकेंड उन्होंने अपने दोस्त को बुलाया था. किसी ख़ास काम से नहीं बल्कि बस ऐसे ही बातचीत करने के लिए, उसकी लाइफ में पॉज लगाने के लिए. शुरुआत में उनके दोस्त को ऐसा लग रहा था कि जैसे ये समय की बर्बादी है.
लेकिन जैसे-जैसे टाइम बीतता जा रहा था. उसके माइंड सेट में शिफ्ट भी देखने को मिल रहा था. वीकेंड खत्म होने के बाद उनके दोस्त को एहसास हुआ कि उनकी लाइफ में इस पॉज की बहुत ज्यादा ज़रूरत थी. उन्होंने इन 48 घंटों में बहुत सी ऐसी चीज़ों को नोटिस किया था. जिन्हें वो अभी तक इग्नोर करते जा रहे थे.
बस इस तरह के वीकेंड पॉज ही आपके लिए हेल्पफुल नहीं होने वाले हैं. बल्कि पॉज कैसा भी हो? वो आपके लिए मददगार ही साबित होगा. इसलिए लाइफ के व्यस्त स्केड्यूल से खुद के लिए समय निकालिए और खुद की लाइफ को बेहतरीन बनाइए.
अपने गोल्स से समय निकालने बस को पॉज नहीं कहते हैं. बल्कि पॉज आपको गोल्स की तरफ बढ़ने में मदद भी करने वाले हैं. लाइफ में पॉज लगाने से हमारी क्रिएटिविटी भी बढ़ती है.
कई एविडेंस बताते हैं कि क्रिएटिव प्रोसेस के लिए लाइफ में पॉज लगाने की ज़रूरत होती है.
एक किताब है, जिसका नाम- ‘How to Get Ideas’ है. इस किताब के ऑथर ने कन्क्लूजन में लिखा है कि “सक्सेसफुल लोग अपने क्रिएटिव प्रोसेस के दौरान पॉज लगाते रहते हैं.” कई आर्टिस्ट इस पीरियड को मेंटल डाईजेशन भी कहते हैं. लोग इस तरह के पॉज को अलग-अलग नामों से जानते हैं. लेकिन इनका फायदा यही होता है कि इससे इंसान की क्रिएटिविटी में निखार आता है.
क्रिएटिव पॉज इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं?
नए आइडियाज सिम्पल और नाज़ुक होते हैं. वो लाइफ के डेली प्रेशर से खत्म हो सकते हैं.
ऑथर ‘Steve Johnson’ ने अपनी किताब ‘Where Good Ideas Come From’ में कहा है कि नए आइडियाज खेत में बोई जाने वाली फसल की तरह होते हैं. उन्हें प्रॉपर केयर की ज़रूरत होती है. उनकी केयर आप क्रिएटिव पॉज की मदद से कर सकते हैं.
क्रिएटिविटी की ही तरह किसी भी रिलेशनशिप को भी आगे बढ़ाने के लिए पॉज की ज़रूरत पड़ती है.
किसी भी रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए ज़रूरी रहता है कि हम सामने वाले के विचारों को समझें. लेकिन कई बार ये पॉसिबल नहीं हो पाता है. इसमें आपकी मदद पॉज कर सकता है.
लेकिन कैसे?
ऐसा देखा गया है कि दो लोगों की बातचीत के बीच में साइलेंस आ जाता है. ये चुप्पी किसी भी रिश्ते के लिए अच्छी नहीं है. ऐसी सिचुएशन में सामने वाला अपने दिल की बात शेयर नहीं करता है. ऐसा अगर आपके साथ हो तो फिर आप बीच में कुछ और बताओ? बोलकर थोड़ा सा पॉज दे सकते हैं. ऐसा करने से आप दोनों के बीच में बातचीत फिर से शुरू हो जाएगी.
इसलिए कहा गया है कि अगर आप अपने रिश्ते को बेहतर करना चाहते हैं तो बात थोड़ा करिए और पॉज ज्यादा देने की कोशिश करिए.
कुछ सेकंड्स के पॉज के कई फायदें हैं, लेकिन इसकी प्रैक्टिस में समय लगता है
‘पॉज’ की सबसे अच्छी बात ये है कि इसे करने में योग और ध्यान की तरह ट्रेनिंग की ज़रूरत नहीं पड़ती है. इसका रिजल्ट भी तुरंत ही दिखने लगता है. हम तुरंत इसे अपनी डेली रूटीन में शामिल कर सकते हैं. डेली पॉज का ये मतलब नहीं है कि इसमें बहुत ज्यादा समय लगने वाला है. ये 5 मिनट या फिर 2 सेकंड का भी हो सकता है. इसके फायदे भी आपको तुरंत ही दिखने लगेंगे. इसलिए दौड़-भाग वाली लाइफ में थोड़ा सा समय अपने इस पॉज के लिए निकालना ज़रूरी हो गया है. फिल्ममेकर ‘David Keating’ शूटिंग के दौरान किसी भी सीन में एक्शन बोलने से पहले थोड़ा सा पॉज लेना पसंद करते हैं. वो मानते हैं कि ये एक मैजिक की तरह है. इसके इफ़ेक्ट बहुत ही ज्यादा पॉजिटिव हैं. किसी भी जजमेंट कॉल से पहले थोड़ा सा पॉज ले लेने के कई सारे फायदे हो सकते हैं. इसके फायदों को आप पैसों से तौल भी नहीं पाएंगे.
ऑथर की फ्रेंड लोगों की मदद करती हैं. वो कहती हैं कि जब भी कोई उनके सेशन में उनसे सवाल पूछता है. तो वो जवाब देने से पहले थोड़ा सा पॉज लेना पसंद करती हैं. ऐसा वो इसलिए करती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि पॉज लेने से वो अपनी बात सामने वाले को बेहतर ढ़ंग से समझा पाती हैं. उनकी लाइफ में पॉज के बहुत से फायदे हुए हैं. वो इस प्रक्रिया को किसी भी मैजिक से कम नहीं समझती हैं. ऑथर कहते हैं कि आज के समय में हम खुद को बिज़ी दिखाना पसंद करते हैं. यही वजह है कि हमारी लाइफ से क्वालिटी बाहर होती जा रही है. लेकिन अब टाइम आ गया है कि हम अपनी लाइफ को थोड़ा सा स्लो करने की कोशिश करें. ऐसा करने के लिए हम पॉज इफ़ेक्ट का यूज़ कर सकते हैं. इससे हमारी जिंदगी की क्वालिटी सुधर जाएगी.
हमारी लाइफ में कई बार ऐसा समय आ जाता है. जब हमें लंबे पॉज की ज़रूरत होती है. माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर “Bill Gates” हर दो सालों में लंबे पॉज लिया करते हैं. उस पॉज के दौरान वो अपने सारे प्रोफेशनल काम को डिले कर देते हैं. ‘Bill Gates’ का लॉन्ग पॉज पूरे एक हफ्ते का होता है. इस पूरे हफ्ते वो कुछ भी नहीं करते हैं. इसे वो थिंक वीक कहा करते हैं. उनके हिसाब से इनोवेटिव माइंडसेट के लिए थिंक वीक का होना बहुत जरूरी है.
इसलिए ऑथर कहते हैं कि लॉन्गर पॉज को समझदारी से डिजाईन करना चाहिए. ये पॉज आपके फ्यूचर के लिए टूल की तरह होता है. इस पॉज से आपको कुछ अलग सोचने में मदद मिलेगी. इसलिए इसे डिजाईन करना बहुत ज़रूरी है. दुःख की बात ये है कि हम कुछ ना करने को लेज़ीनेस मानते हैं. लेकिन ऑथर कहते हैं कि हमेशा बिज़ी रहना ही लेज़ी होना है. ऐसा इसलिए क्योंकि जब आप खुद के दिमाग को हमेशा व्यस्त रखते हैं. तब आप चीज़ों की बड़ी तस्वीर को नहीं देख पाते हैं.
बिज़ी रहने की वजह से आप अपनी लाइफ में ज़रूरी बदलावों को नहीं कर पाते हैं. अगर अब आप पॉज के लिए तैयार हैं तो सबसे पहले उसके लिए तैयारी शुरू करिए. इसके लिए आप अच्छी लोकेशन की तलाश भी कर सकते हैं. एक ऐसी लोकेशन जो नेचर के ज्यादा करीब हो, वहां समय बिताने से आपको अंदर से ख़ुशी मिलेगी. इस पॉज के लिए आप अपने सेल फ़ोन से भी दूरी बना सकते हैं. बिल गेट्स भी थिंक वीक में सेल फोन यूज नहीं करते हैं. उनका मानना है कि ऐसा करने से इंसान की क्रिएटिविटी भी बढ़ती है.
इसलिए ऑथर में कहा है कि अगर आप लॉन्ग पॉज का प्लान बना रहे हैं तो उसके लिए पूरी तैयारी करिएगा.
कुछ संस्कृतियां दूसरों की तुलना में ‘पॉज’ को आसान बनाती हैं
ऑथर कुछ साल सेंट्रल स्पेन के एक छोटे से गांव में रहा करते थे. वहां की लाइफ शहर की अपेक्षा ज्यादा शान्ति भरी हुआ करती थी. इसके पीछे की वजह यही थी कि वहां के लोगों को किसी भी चीज़ की जल्दी नहीं हुआ करती थी. वहाँ के लोग अपनी लाइफ को टाइम को पॉज करने की परमिशन दिए हुए थे. इस छोटी सी परमिशन से वहां के लोगों की जिंदगी में एक दूसरे से बात करने के लिए काफी समय भी हुआ करता था. लोग एक दूसरे के सुख-दुःख में तसल्ली से शामिल हुआ करते थे. इसलिए ऑथर सलाह देते हैं कि अगर आप भी पॉज को अपनी लाइफ का हिस्सा बनाना चाहते हैं. तो आपको अपने आस-पास के माहौल को बदलने की ज़रूरत है. मेट्रो शहर में भविष्य की ईमारतें बन रही हैं. देखते ही देखते कंक्रीट के जंगल तैयार किए जा रहे हैं. इन सब चीज़ों से सुविधाएं बढ़ रही हैं. लेकिन इसकी कास्ट क्या है?
इसकी कॉस्ट बहुत ज्यादा है, इन सब में इंसानी जिंदगी बिना खुशियों के खर्च हो रही हैं. वहां लोग तरक्की के लिए कब अपनी जिंदगी ही जीना भूल जाते हैं. उन्हें पता भी नहीं चलता है. इसलिए अगर आप ये समरी सुन रहें हैं. तो आपको पता होना चाहिए कि लाइफ में पॉज लगाना कितना ज़रूरी है?
आज के समय में स्ट्रेस, डिप्रेशन जैसी बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं. इन सबसे हम पीछा छुड़ा सकते हैं. ये हमारे ही हांथों में है. बस हमें बैक टू बेसिक्स की तरफ लौटने की कोशिश करनी चाहिए. हमें अपनी लाइफ को स्लो करने की ज़रूरत है. नेचर के पास बहुत कुछ है, उसके पास बैठने से आपकी कई दिक्कतें खत्म हो सकती हैं. इसलिए लाइफ को एक अच्छा पॉज दीजिए और नेचर के पास वापस लौटने की कोशिश करिए. अगर आप सोच रहें हों कि स्लो लाइफ बोरिंग होती है. तो आपको ऑथर के एक्सपीरियंस को देखना चाहिए. उन्होंने कई साल गांव में बिताए हैं. जहाँ उन्हें लाइफ को एन्जॉय करने का एक अलग ही नज़रिया मिला था. उन्हें पता चला था कि लाइफ में दौड़ के चक्कर में उन्होंने कितना कुछ मिस कर दिया था? लाइफ स्टाइल का मतलब बस पैसों से खेलना ही नहीं होता है. लाइफ कुछ और ही चिड़िया का नाम है. जिसे हम लोगों ने अभी तक पहचाना ही नहीं है.
जिंदगी को पहचानने के लिए बहुत ज़रूरी है कि हम जिंदगी देने वाले के पास में लौटकर कुछ नया एक्सपीरियंस करने की कोशिश करें. इसलिए अगली बार कहीं घूमने जाएँ तो उस सफर का आनंद लेने की कोशिश करिएगा. वही जिंदगी है और वही लाइफ का सुख भी है.
कुल मिलाकर
मॉडर्न जिंदगी में लोग बिज़ी रहना चाहते हैं. लेकिन ये एक नशे की तरह है. जिसकी लत छूटना बहुत ज़रूरी है. ब्रेक लेने से आपको पता चलेगा कि क्रिएटिविटी का असली मतलब क्या होता है? अपने परिवार के साथ टाइम स्पेंड करने का मतलब क्या होता है? जिंदगी का नाम बिज़ी रहना नहीं है.
क्या करें?
पॉज की तलाश करिए, अगर ये नहीं मिल पा रहा है तो इसे किसी दूसरे कल्चर से उधार लेने की कोशिश करिए. लेकिन किसी भी दौड़ में बिना मतलब के भागना बंद कर दीजिए. 5 मिनट के पॉज से भी आपका माइंडसेट बदल सकता है.
येबुक एप पर आप सुन रहे थे Do Pause By Robert Poynton
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