Rashmi Bansal
भारत के युवा एंटरप्रेन्योरस् की प्रभावित करने वाली कहानियां।
दो लफ़ज़ों में
2015 में आई इस किताब के जरिये हम उन युवा एंटरप्रेन्योर के बारे में जानेंगे जिन्होंने अपने नए नए आइडियाज से जरिये आज भारत के आने वाले युवा वर्ग को एक नई दिशा दी है। हम जानेंगे कि अलग अलग बैक ग्राउंड से आये इन लोगों को कैसे खुद को अलग अलग इंडस्ट्रीज में स्थापित किया। आखिर इन सब लोगों में कॉमन क्या था? इन लोगों ने सही समय का इंतजार करने की बजाय अपने पास मौजूद समय को ही सही बना दिया।
यह किसके लिए है?
- व्यक्तियों के लिए जो ड्रीमर्स और इन्नोवटर है।
- उन छात्रों के लिए जो अपनी पढ़ाई से परेशान हो चुके हैं।
- एंटरप्रेन्योर बनने की ख्वाईश रखने वाले लोगों के लिए।
लेखक का परिचय
रश्मि बंसल भारतीय एंटरप्रेन्योर होने के साथ साथ एक नॉन फिक्शन लेखक भी हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट से MBA करने के अलावा उन्होंने अभी तक 8 किताबें लिखी हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में शामिल है स्टे हंगरी स्टे फूलिश, पुअर लिटल रिच सन और गोड्स ओन किचन।
यह किताब आप को क्यों पढ़नी चाहिए?
दुनिया की अर्थव्यवस्था का केंद्र धीरे-धीरे पूर्व की तरफ बढ़ रहा है। कई लोग इसकी वजह भारत को मानते हैं क्योंकि 135 करोड़ आबादी होने के बावजूद पिछले कई सालों से भारत लगातार पांच से अधिक की जीडीपी के साथ तरक्की कर रहा है। और भारत की इस ग्रोथ की वजह युवा एंटरप्रेन्योर ही हैं।
लेकिन फैक्ट और फिगर की मदद से हमें आधी जानकारी ही प्राप्त होती है। अगर आपको इन युवाओं के बारे में पूरी तरह से जानना है तो आपको इनके निजी जीवन और उनकी बीते हुए कल को भी अच्छे से जानना होगा कि आखिर किन कठिनाइयों का सामान करके ये लोग आज इस मुकाम पर पहूंचे हैं।
और अपनी इस किताब के जरिए रश्मि बंसल ने वही किया है। उन्होंने भारत के उन 6 युवा एंटरप्रेन्योर से हमें वाकिफ करवाया है जिन्होंने, भारत में बिजनेस करने की तरीके को ही बदल कर रख दिया।
- कैसे असफल व्यक्ति ने एक टॉप ब्रांड की रचना करी।
- आखिर वो बिजनेस क्यों सफल होते हैं जो घर के करीब समस्याओं को सॉल्व करते हैं।
- कैसे एक भारत के युवा एंटरप्रेन्योर ने सिलिकॉन वैली के बड़े बिजनेसमैन को आकर्षित किया।
प्रैक्टो टेक्नोलॉजी की शुरुआत एंटरप्रेन्योरशिप की राजधानी कहे जाने वाले कर्नाटक में हुई।
2000 के दशक में एंटरप्रेन्योरशिप को इतना महत्व नहीं दिया जाता था। लेकिन भारत के एक विश्वविद्यालय ने इस धारणा को बदलने की ठान ली थी। वो विश्वविद्यालय था नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कर्नाटक। इस कॉलेज ने अपने कैंपस में एक एंटरप्रेन्योरशिप सेल की शुरुआत की जिसका नाम था इफोरेया। इफोरेया का उद्देश्य था कि युवा वर्ग को एंटरप्रेन्योरशिप के बारे में बताया जाए और उनके आइडियाज को बड़े स्तर पर लाया जाए।
शशांक नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ कर्नाटक में दूसरे वर्ष के छात्र थे उन्होंने भी इफोरेया को ज्वाइन किया। उस समय तक वो काफी एवरेज स्टूडेंट थे और एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में ज्यादा हिस्सा नहीं लेते थे। लेकिन इफोरेया ज्वाइन करने के बाद उनका जीवन बदल गया। रेडिफ के संस्थापक अजित बालकृष्ण जैसे बड़े बड़े बिजनेसमैन की बातें सुनकर उनके मन में भी नए नए आईडिया आने लगे।
शशांक की मुलाकात इफोरेया सेल में अभिनव लाल से हुई जोकि आगे चलकर शशांक के बिजनेस पार्टनर बने।
उन दोनों ने प्लान बनाया की वो डॉक्टर्स के लिए एक सॉफ्टवेयर तैयार करेंगे। उसके लिए उन दोनों ने शशांक की मां से दस हज़ार रुपये उधार लिए और प्रैक्टो टेक्नोलॉजी के नाम से अपनी कम्पनी का रेजिस्ट्रेशन करवा दिया। अपनी कम्पनी को लोगों तक पहुंचाने के लिए उन दोनों में एक प्रेजेंटेशन का आयोजन किया जिसमें उन्होंने 25 लोकल डॉक्टर को भी बुलाया। लेकिन उनकी प्रेजेंटेशन बहुत ही खराब गयी।
उस मीटिंग में आये एक डॉक्टर में से एक मोहम्मद अली को इन दोनों लड़को के अंदर कुछ अलग दिखा इसलिए उन्होंने इन दोनों को सलाह दी। उन्होंने कहा कि आप दोनों ऐसे सॉफ्टवेयर का निर्माण करें जो लोगों को उनके रेगुलर चेकउप की डेट याद दिलाये क्योंकि भारत में बहुत से लोग डेट भूल जाते हैं जिससे कि उनका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। शशांक और अभिनव को ये आईडिया बहुत पसंद आया।
उन दोनों ने एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया जो मैसेज के जरिये लोगों को उनके चेकउप की डेट याद दिलाता था। उनकी इस शानदार सोच और इन्वेंशन से सिलिकॉनवैली की सिक्विओ कैपिटल ने उनकी कम्पनी प्रैक्टो टेक्नोलॉजी में इन्वेस्ट करने का फैसला लिया। सिक्विओ वही कम्पनी थी जिसने एप्पल और गूगल के शुरुआती दिनों में उनका साथ दिया था। असल में यही शशांक और अभिनव की जीत थी।
2015 में प्रैक्टो टेक्नोलॉजी की कीमत 3 मिलियन डॉलर थी और भारत के दस हज़ार डॉक्टर इसका इस्तेमाल कर रहे थे।
सौरभ बंसल ने भारत में चूना उद्योग को एक नई दिशा दी।
ये उस रात की बात है जब सौरभ बंसल के होस्टल में छात्रों के बीच यह बात चल रही थी कि वो आगे अपने जीवन में क्या करेंगे जब सौरभ बंसल खड़े हुए और मारकर उठाकर बोर्ड पर लिखा 50 बिलयन और बोले कि एक दिन उनके कम्पनी की कीमत होगी 50 बिलयन। उन छात्रों ने उनकी बात का मज़ाक बनाया लेकिन सौरभ ने यह बात बहुत सोच समझ कर कही थी।
दरअसल सौरभ के पिता की चूने की फैक्ट्री थी। सौरभ भी कभी कभी फैक्ट्री में जाया करते थे। एक दिन उन्होंने एक बहुत ही असमान्य बात नोटिस की। उन्होंने देखा कि एक आदमी बहुत बड़ा आर्डर दे कर गया है। असल में उस आदमी को चूने की मदद से Autoclaved Aerated Concrete या फिर हम कह सकते हैं AAC blocks का निर्माण करना था।
AAC ब्लॉक नार्मल ब्लॉक के कंपेयर में काफी हल्के और काफी मजबूत होते हैं। परन्तु जब सौरभ ने इस बात की पूरी जांच की तब उनको पता चला कि इन ब्लॉक्स को बनाने के लिए जो मटेरियल का इस्तेमाल किया जाता है वो महंगा होता है। यही सौरभ के किए लाइफ चेंजिंग मोमेंट था। उसको समझ में आ गया था कि अगर वो ये पता कर लें कि किस तरह AAC ब्लॉक्स को सस्ते में बनाया जाता है तो जरूर ही अपना वह सपना पूरा कर सकते हैं।
सौरभ ने उसी दिन से इस बात की तलाश में लग गए कि कैसे AAC ब्लॉक्स को सस्ता बनाया जाए। सौरभ को बस किसी की मदद की आवश्यकता थी जो उनके आईडिया को जमीनी स्तर तक ले जा सके। ऐसे में उसकी सहायता की उसके अंकल राजेश पोद्दार ने। 70 परसेंट प्रॉफिट के बदले राजेश ने सौरभ की कम्पनी में एक करोड़ का इन्वेस्टमेंट किया।
अंत में सौरभ ने यह पता लगा कि आखिर किस तरह AAC ब्लॉक्स बनाने की लागत को कम किया जा सकता है। उन्होंने पता किया कि अगर भट्टी में गैस की जगह कोयले का इस्तेमाल किया जाए तो AAC ब्लॉक्स 60 परसेंट कम दाम में बनकर तैयार हो जाएंगे। साल 2009 में सौरभ की कम्पनी को उसका
पहला आर्डर मिला और उस आर्डर के बाद तो ऑर्डर्स की लाइन लग गई।
2015 में सौरभ की कम्पनी हर साल लगभग 1.6 बिलयन यानि 160 करोड़ रूपये का प्रॉफिट कमाती थी और तेजी से 50 बिलयन कि तरह बढ़ रही है।
सेक्रेड मोमेंट्स ने अपने बिजनेस को सफल बनाने के लिए टीवी कॉन्टेस्ट में हिस्सा लिया।
सिंबायोसिस सेंटर फॉर मैनेजमेंट एंड ह्यूमन रिसोर्सेस डेवलपमन्ट भारत में मानव संसाधन पढ़ने के लिए सबसे अच्छी जगह मानी जाती है। प्रकाश मंधुरा का भी मन हुआ कि वो इस यूनिवर्सिटी में जा कर पढ़ाई करें। वहां जाने के बाद उनको बहुत कुछ सीखने को मिला और जल्द ही उनको एहसास हुआ कि आने वाले समय में एंटरप्रेन्योरशिप का बहुत महत्व है और इसलिए तो एंटरप्रेन्योरशिप की तरफ बढ़ गए।
एंटरप्रेन्योरशिप की दुनिया से इंस्पिरेशन लेकर प्रकाश ने अपने आइडिया पर काम किया। तब प्रकाश को एक टीवी शो, बिज़नस बाज़ीगर के बारे में पता चला। इसमें लोग अपने बिजनेस प्लान को सबमिट करते थे और जिसका प्लान सबसे अलग और अच्छा होता था उस को पुरस्कार के तौर पर पैसे दिए जाते थे जिससे कि वह अपने सपने पूरे कर सकें। प्रकाश पूजा किट्स के आईडिया पर काम कर रहे थे और उन्हें लगा कि यह टीवी शो उनके आईडिया को कामयाब करने के लिए बहुत सही जगह है।
शो में लगभग २ लाख बिजनेस प्लान सब्मिट किए गए थे। प्रकाश टॉप 20 में आने में कामयाब हो गए। उन्हें प्रोटोटाइप बनाने के लिए पचास हज़ार रूपये दिए गए, जो उन्हें शो में पेश करना था। हालांकी प्रकाश फाइनल राउंड तक नहीं जा सके लेकिन शो के दौरान प्रकाश को काफी कुछ सीखने को मिला जो उनके कैरियर में बहुत काम आया। उन्हें शो के लिए सैंपल बनाने की चुनौती ने रॉ मैटेरियल को समझने में मदद की, मार्केट का आकर समझने में मदद की और कम्पटीशन्स को भी समझने में मदद की।
उससे भी जरूरी यह इससे अब प्रकाश को उनके बिजनेस आइडिया को लेकर बहुत कॉन्फिडेंस आ गया था। अब प्रकाश कॉलेज में आ गए थे लेकिन कॉलेज में उनका मन नहीं लग रहा था, वह अपना बिजनेस शुरू करना चाहते थे। फिर वो पूरे देश में स्कूल में होने वाले बिजनेस प्लान कांटेस्ट में हिस्सा लेने लगे और वे 6 में से 5 प्रतियोगिता में विजेता बने। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने अपनी कंपनी शुरू की जिसका नाम सैक्रेड मोमेंट्स रखा, जो कि दीवाली पूजा किट बनाती थी। यह सामान मार्केट में तेजी से बिकना शुरू हुआ। ये वही समय था जब प्रकाश का जीवन एकदम से बदल गया।
आज, सैक्रड मोमेंट्स के पास 7 परमानेंट एंप्लॉय और कई सीज़नल काम करने वाले लोग हैं। बेशक प्रकाश को ज्यादा काम करना पड़ता है लेकिन उन्हें इससे कोई दिक्कत नहीं है, वो अपने काम को एंज्वॉय करते हैं। और प्रकाश इस बात पे गर्व है कि वह अपने और अपने आइडिया पर काम करने में सफल रहे।
एक बिजनेस की असफलता से प्रभकिरण सिंह ने बहुत कुछ सीखा।
बहुत से एंटरप्रेन्योर की तरह, एक हैं प्रभकिरण सिंह जिन्हें कि पता ही नहीं था कि उन्हें जिंदगी में क्या करना है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे में उनका एडमिशन हुआ था और वो पढ़ाई में अच्छे थे, लेकिन उन्हें पता था कि उनको जीवन में जो काम करना है उस काम में IIT में पढ़ाये जाने वाले विषय बिल्कुल काम नहीं आएंगे।
प्रभकिरण हमेशा से यही चाहते थे की वो कोई ऐसा काम करें जिसमे उन्हें किसी से मदद न लेनी पड़ी, परन्तु वो कोई बिजनेस आइडिया नहीं सोच पा रहे थे। आखिरकार 2009 में उन्होंने फ्लेवर्ड लस्सी का बिजनेस शुरू किया। उन्होंने फिर स्ट्रवाबेरी फ्लेवर लस्सी बनाने के बारे में सोचा, जो कि काफी अलग आईडिया था। इसके लिए उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर मिक्सर और रसोई का सामान खरीद लिया।
उन्होंने अपना बिजनेस शुरू करने के किए एक दुकान किराए पर ले ली। फ़रवरी 2010 में प्रभकिरण ने खड़के ग्लासी नाम से लस्सी का बिजनेस शुरू किया। उन्होंने फेसबुक पर अपने बिजनेस का प्रचार किया साथ ही साथ माउथ पब्लिसिटी से लोगो को इसके बारे में पता चलता गया। बहुत जल्द ही, प्रभकिरण की दुकान पर ग्राहकों की लाइन लग गई। जून तक यह काम बहुत सही चल रहा था, यहां तक कि प्रभकिरण सिंह ने इसकी एक और ब्रांच खोलने की सोची। लेकिन मौसम बदलने के साथ चीजें भी बदली,एक समय पे खड़के ग्लासी की बिक्री दिन की 50 गिलास तक सीमित हो गई, जो कि किसी प्रकार से अच्छा नहीं था और सितंबर में उन्हें इसे बंद करना पड़ा।
अपने इस बिजनेस के असफ़लता से प्रभकिरण ने काफी कुछ सीखा था। लस्सी का काम बंद हो गया था और उनको अब कोई नए आईडिया की तलाश थी। तब उन्होंने देखा कि उनका दोस्त सिद्धार्थ वेबसाइट बनाने की कोशिश में लगा हुआ था। उनके दोस्त की समस्या यह थी कि वो अपनी वेबसाइट को प्रोमोट नहीं कर पा रहा था। प्रभकिरण के दिमाग नें एक आईडिया आया और उन्होंने अपने दोस्त के साथ मिलकर उसकी बेवकूफ डॉट कॉम नामक वेबसाइट पर काम करना शुरू किया। प्रभकिरण अपने दोस्त के टीशर्ट बेचने वाली वेबसाइट बेवक़ूफ़ डॉट कॉम से जुड़ गए । लेकिन इसके लिए फंड की आवश्यकता थी और उनको फंड उनके कॉलेज के लोगों के दोस्त द्वारा मिला।
उन्होंने टी शर्ट लांच की और बेवकूफ डॉट कॉम का प्रोमोशन किया। आज बेवकूफ ब्रांड भारत का एक्साइटिंग यूथ ब्रांड बन गया है जिसकी दिन में कम से कम 200 टी शर्ट बिक जाती है। 2014 तक इसमें 150 लोग काम कर रहे थे और यह कम्पनी हर साल लगभग 5 करोड़ का प्रॉफिट कमाती है।
घर के पास की एक समस्या सुलझाने में भुक्कड़ नेचुरल फास्ट फूड की शुरुआत हुई।
नेशनल लॉ कॉलेज बंगलोर इतना परसिद्ध और अच्छा है कि हर लॉ के छात्र के सपना होता है कि वो उसी कॉलेज में जाकर अपनी लॉ की पढ़ाई खत्म करे। अरूज गर्ग का भी यही सपना था और उन्होंने अपनी मेहनत और लग्न से अपने इस सपने को साकार भी किया। लेकिन कुछ समय के बाद उनका मन बदल गया, उनकी रुचि लॉ में नहीं बल्कि एंटरप्रेन्योरशिप में थी।
अरूज को शुरू से प्रॉब्लम को सॉल्व करने में बड़ा मजा आता था और उन्होंने भारत में बिजनेस की समस्याओं सुलझाने के लिए एंटरप्रेन्योरशिप में हांथ आजमाने की कोशिश की। उन्हें इस बात का भी ज्ञान था कि कॉलेज और स्कूल में कैंटीन में मिलने वाले सामान छात्रों को बहुत कम ही पसंद आते हैं और वो जानते थे कि आज कल के छात्रों की रुचि फ़ास्ट फ़ूड में ज्यादा है। इसलिए उन्होंने एक स्पेशल मेनू तैयार किया जिसमें पिज्जा बर्गर जैसे फ़ास्ट फ़ूड शामिल थे। अरूज़ ने मई 2011 में ₹1000 में एक छोटी सी जगह किराए पर ली और उसका नाम "भुक्कड़" रखा जिसका हिंदी मतलब है "बहुत अधिक खाने वाला"। उनका यह आईडिया हिट हुआ और एक महीने के अंदर ही अरुज 2000-3000 एक दिन में कमाने लगे।
अरूज़ का बिजनेस तो अच्छा चल रहा था लेकिन उनकी खुद की खाने की आदत खराब हो गई थी। 2013 में उन्होंने नोटिस किया कि उनका कोलेस्ट्रॉल लेवल काफी बढ़ गया है,और उन्हें अपने फेवरेट खाने जैसे चिप्स और आइसक्रीम को अब कम करना पड़ेगा। जब उन्होंने इन सब अनहेल्थी चीजों को मेनू से हटाया तो मेनू तो काफी छोटी हो गई। अब वह सोचने लगे कि क्या किया जाए जो कि भुक्कड़ को अच्छा रिजल्ट मिले, उसके कस्टमर उसे छोड़कर कहीं और न जाए। उन्हें ऐसा मेनू तैयार करना था जिसमें खाना स्वादिष्ट और स्वस्थ हो।
अब आरूज नेचुरल और फ्रेश खाने को मेनू में रखने लगे, उन्होंने एक नया "भुक्कड़ कोड" बनाया जिसमें उन्होंने कंपनी के मेनू से मांस,व्हाइट ब्रेड और सॉस जैसी चीजों को बाहर कर दिया। और उसके स्थान पर ग्रीन सलाद को शामिल किया जो बीन्स, गोभी, पालक, शहद और पीनट से बना होता है। उनका ये हाई क्वालिटी खाना पहले से भी ज्यादा हिट हुआ और इनका बिजनेस 30 परसेंट ज्यादा प्रॉफिट देने लगा।
अनुराग अरोड़ा ने विद्यार्थियों के रहने की प्रॉब्लम को दूर करने के लिए गणपति फैसिलिटीज बनाई।
यह तो साफ़ है की विद्यार्थियों की भूख मिटा कर काफी पैसा बनाया जा सकता है, लेकिन उनके रहने की समस्या भी खाने की समस्या की तरह ही है।
कुछ स्टूडेंट ज्यादा की लालच में काफी कुछ त्याग कर देते हैं। और ऐसे ही एक स्टूडेंट थे अनुराग अरोड़ा। जब उन्होंने अपनी पढ़ाई ICFAI Buissness School में शुरू की जो कि महाराष्ट्र के शहर पुणे में स्थित है, तो वहां यूनिवर्सिटी का खुद का हॉस्टल न होने के कारण प्राइवेट हॉस्टल में रहने के लिए उनसे 48 हज़ार रूपये मांगे गए। इतने पैसे देने के बावजूद उन्हें एक पुरानी सी बिल्डिंग में जर्जर कमरा मिला, जहां पर गरम पानी की भी व्यवस्था नहीं थी। अनुराग 3 दिन तक वहां रहे और फिर अपने दोस्त के साथ प्राइवेट रूम लेने का निर्णय किया। उन्होंने होस्टल को दिया हुआ सिक्योरटी डिपाजिट भी वापस नहीं लिया।
अनुराग ने 2013 की गर्मियों में ध्यान दिया कि नए विद्यार्थियों ने यूनिवर्सिटी के फेसबुक पेज पर रहने को लेकर काफी सवाल किए थे। कैंपस भी पुणे में दूसरी जगह शिफ्ट हो गया था जहां पर ज्यादा प्राइवेट हॉस्टल भी नहीं थे। तब अनुराग ने अपना खुद का हॉस्टल खोलने का सोचा और इस बारे में उन्होंने कॉलेज से बातचीत की और उनके एक अच्छे विद्यार्थी होने के कारण कॉलेज ने उनकी इस बात को गंभीरता से लिया।
उन्होंने अपने इस आईडिया को सफल बनाने की ठान ली थी। वह अपार्टमेंट ब्रोकर्स के पास गए और जानकारी लेने लगे। अनुराग के सामने एक दिक्कत थी उनके पास इसे शुरू करने के लिए पैसे नहीं थे। तो उन्होंने ने अपने ही रूम को सैंपल रूम बना दिया। वो स्टूडेंट को अपना ही रूम और उसकी सेवाएँ दिखाकर कहते थे कि आपका रूम इससे भी ज्यादा अच्छा और साफ सुथरा होगा।
अनुराग के पहले क्लाइंट ने उन्हें 56 हज़ार रूपये दिए, जो कि पहले पांच अपार्टमेंट के डिपॉजिट के तौर पर पर्याप्त थे। उनमे से एक रुम को तैयार करके अनुराग ने उसे शो पीस के तौर पर उपयोग किया। धीरे धीरे चीजें बहुत अच्छी हुई,नए क्लाइंट उन्हें जो भी एडवांस देते थे वो उसे नए अपार्टमेंट के लिए डिपोजिट कर देते थे। अनुराग की कंपनी "गणपति फैसिलिटीज" जल्दी ही हर महीने लगभग 25 लाख का प्रॉफिट देने लगी।
यह एक उदाहरण है कि आप सही सोच और एक अच्छा आईडिया होने से जीवन में बहुत कुछ कर सकते हैं। आपको कभी भी सही समय का इंतजार नहीं करना चाहिए बल्कि जो समय आपके पास से उसे ही सही बनाने की कोशिश करना चाहिए।
कुल मिलाकर।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या पढ़ाई कर रहे हैं अगर आपके दिमाग में कोई बिजनेस आईडिया है तो तुरंत ही उसको जमीनी स्तर पर लाने की कोशिश कीजिए और उसे सफल बनाने में जुट जाइए। जैसा कि हमने इस समरी में 6 बिजनेसमैन के बारे में पढ़ा कि उन्होंने कभी इस बात की फिक्र नहीं की कि उनका आईडीया सफल होगा या नहीं बल्कि मेहनत की और अपने उस आईडिया को सफल बनाया।
आइडियाज बहुत अच्छी चीज़ है, लेकिन सिर्फ आईडिया होने से कुछ नहीं होता। अगर आपके दिमाग में कोई आईडिया आया है तुरन्त उठिए और उसके बारे में गूगल करके सारी जानकारी प्राप्त करिए। ढूँढिये की आपका प्रोडक्ट बनाने के लिए रॉ मटेरियल कहाँ मिलेगा और जल्द से जल्द अपना प्रोडक्ट तैयार करिए। उसके बाद आपको इस टेस्ट करना होगा। और ग्राहक के अलावा कोई नहीं बता सकता कि आपका प्रोडक्ट कामयाब होगा या नहीं।