A Really Good Day...... ___🗓️__🙃

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A Really Good Day

Ayelet Waldman
किस तरह माइक्रोडोसिंग ने एक महिला के मूड और जिन्दगी में भारी बदलाव लाए।

दो लफ्जों में 
अ रियली गुड डे (A Really Good Day) में हम एलएसडी नाम के एक गैरकानूनी ड्रग्स के बारे में जानेंगे। हम यह जानेंगे कि क्यों यह फायदेमंद और काम करने की क्षमता को बढ़ाने वाला ड्रग कानून की नजरों में गलत है और साथ ही हम यह देखेंगे कि किस तरह से इस ड्रग ने लेखिका की जिन्दगी में अच्छे बदलाव लाए।

यह किसके लिए है 
-वे जो डिप्रेशन या खराब मूड की समस्याओं से गुजर रहे हैं।
-वे जो ड्रग की असलियत के बारे में जानना चाहते हैं।
-वे जो सोचते हैं कि ड्रग्स का गैरकानूनी होना ठीक है।

लेखिका के बारे में 
आएलेट वाल्डमैन( Ayelet Waldman ) एक इसराईली - अमेरिकी लेखिका हैं जिन्होंने अब तक बहुत सारे उपन्यास लिखे हैं। वे ज्यादातर रहस्यमयी नावेल लिखा करती हैं। वे अपने सात नावेल के सीरीस- द मम्मी ट्रैक मिस्ट्री के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने बहुत सारे निबंध भी लिखे हैं। वे एक वकील रह चुकी हैं।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
ड्रग्स! यह एक ऐसा शब्द है जिसका नाम सुनकर आम आदमी के दिमाग में पागल कर देने वाली नशीली चीज का चित्र बनता है जिसके जाल से निकल पाना बहुत मुश्किल है। लेकिन क्या सारे ड्रग्स नुकसानदायक ही होते हैं? क्या ऐसा एक भी ड्रग नहीं है जो हमारे दिमाग के लिए फायदेमंद साबित हो सके? इसका जवाब हम इस किताब में जानने की कोशिश करेंगे।

इस किताब में हम एलएसडी नाम के एक ड्रग के बारे में चर्चा करेंगे और देखेंगे कि किस तरह से यह नुकसानदायक ना होते हुए भी बैन है। हम ड्रग्स के खिलाफ बनाए गए कानूनों के इतिहास के बारे जानेंगे। यह किताब हमें बताती है कि किस तरह से लेखिका ने इस ड्रग के इस्तेमाल से अपने मूड को ठीक किया जिसका उनपर कोई असर नहीं हुआ।

 

-माइक्रोडोसिंग क्या है और इसके क्या फायदे हैं।

-एलएसडी के इतने फायदे होने के बाद भी वह गैरकानूनी क्यों है।

-ड्रग्स के संबंधित कानून का इतिहास।

लेखिका काफी समय से अपने मूड को लेकर परेशान थी।
आएलेट वाल्डमैन कभी कभी बहुत खुश रहती थी तो कभी कभी उनका मूड बिल्कुल खराब रहता था। जब उनका मूड सही रहता था तो वे सब कुछ अच्छे से कर पाती थी। वो एक कामयाब लेखिका थी।  लेकिन जब उनका मूड खराब होता था तो वे सब पर गुस्सा करने लगती थी। वो अपने पति से बिना बात के नाराज हो जाती थीं और अपने साथ काम करने वाले लोगों पर भी गुस्सा हो जाती थीं। इस वजह से कभी कभी वे खुद को बहुत छोटा महसूस करने लगती थीं।

इन सब से परेशान होकर, उन्होंने अलग अलग तरह की थेरपी अपनाई। वे अलग अलग तरह के थेरपिस्ट से मिले लगी और उन्हें अपनी समस्याओं के बारे में बताने लगी। किसी ने उन्हें दवाइयाँ दी, तो किसी ने ध्यान करने की सलाह। दवाइयों का कुछ खास असर नहीं हो रहा था और ध्यान करने से लेखिका को नफरत थी।

जब एक दिन उनके दिमाग में आत्महत्या का खयाल आया, तब उन्होंने डाक्टर की मदद लेने के बारे में सोचा। जाँच करने के बाद यह बात सामने आई कि वे एक मानसिक रोग से गुजर रही हैं जिसका नाम बाइपेलर II डिसआर्डर है। इसके बाद वे तमाम तरह की दवाइयाँ खाने लगी, जिसका कोई असर नहीं होता था। इनसे कभी कभी उनका मूड ठीक रहता था लेकिन इससे उनका वजन और चिड़चिड़ापन बढ़ने लगा।

बाद में उन्हें यह पता लगा कि उनकी बीमारी इतनी दवाइयों को खाने के के बाद भी ठीक नहीं हुई है। 

समय के साथ लेखिका ने देखा कि उनका मूड उनके पीरियड्स के हिसाब से खराब होता रहता है। जब भी उनके पीरियड्स शुरू होने वाले होते थे उनका मूड कुछ ज्यादा खराब लगने लगता था। उन्हें पता लगा कि उन्हें प्रीमेंस्ट्रुअल डाइस्फोरिक सिंड्रोम नाम की एक और बीमारी है।

इसके बाद वे अपने पीरियड्स पर ध्यान देने लगी और तभी दवाइयाँ खाने लगी जब उनके पीरियड्स शुरू होने वाले होते थे। लेकिन जब उम्र के साथ लेखिका के पीरियड्स में बदलाव होने लगे तब वे यह पता नहीं कर पा रही थी कि उन्हें कब दवाइयां लेनी है।

इसके बाद उन्हें जेम्स फैडिमैन नाम के एक साइकोलाजिस्ट की रीसर्च पढ़ने का मौका मिला जो एलएसडी के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की बात कहते थे। वे इससे पहले एलएसडी पर रीसर्च कर चुके थे और उनके हिसाब से यह मूड को ठीक करने के लिए बहुत अच्छी दवा साबित हो सकती है। लेखिका को इस बात से कुछ राहत मिलने वाली थी।

माइक्रोडोसिंग खराब मूड को ठीक करने का एक बहुत ही अच्छा तरीका बनकर सामने आ रहा है।
सबसे पहले यह जानते हैं कि माइक्रोडोसिंग क्या होता है। इस तरीके में आप हर तीन दिन पर एलएसडी ( LSD ) लेते हैं। पहले दिन आप इसे लेने के बाद अपना मूड, काम करने की क्षमता और अपनी सेहत की जाँच करते हैं। फिर दूसरे और तीसरे दिन आप एलएसडी ना लेकर  सिर्फ सेहत की और मूड की जाँच करते हैं। चौथे दिन आप फिर से एलएसडी लेते हैं।

एक नार्मल ड्रग्स लेने वाला व्यक्ति एक बार में 100 से 150 माइक्रोग्राम एलएसडी लेता है जिसकी वजह से उसे अजीबोग़रीब चीजें दिखने लगती हैं और चक्कर आने लगता है। लेकिन अगर आप हर तीन दिन पर सिर्फ 10 से 15 माइक्रोग्राम एलएसडी लेंगे तो इससे आपका मूड अच्छा रहेगा और आपको अजीबोग़रीब चीजें नहीं दिखेंगी और ना ही आपकी सेहत खराब होगी।

इन सब बातों के बारे में जानने के बाद लेखिका यह जानने के लिए उत्सुक थी कि उन्हें यह काम करना चाहिए या नहीं। वे उन लोगों की हालत देख चुकी थीं जिन्हें इसकी लत लग चुकी थी और वे चाह कर भी इससे बाहर नहीं निकल पा रहे थे। साथ साथ वे एक वकील के रूप में ड्रग्स के खिलाफ लड़ भी चुकी थी।

एक तरफ उनकी हालत हर दिन खराब होती जा रही थी और दूसरी तरफ उन्हें यह बात परेशान कर रही थी कि उन्हें इस इलाज की तरफ कदम बढ़ाना चाहिए या नहीं। अंत में उन्होंने फैसला किया कि वे एलएसडी को एक मौका देकर देखेंगी क्योंकि अब उनकी हालत इससे ज्यादा खराब नहीं हो सकती। इससे उनका मूड वाकई ठीक हो गया और उनका दिन काफी अच्छा बीता।

समय के साथ लेखिका को माइक्रोडोसिंग के बहुत से फायदों के बारे में पता लगा।
जिस दिन लेखिका ने अपना पहला माइक्रोडोस लिया था उस दिन दुनिया उन्हें हरी-भरी और खूबसूरत दिखने लगी। उनके काम करने की क्षमता बढ़ गई और साथ ही उन्होंने देखा कि उनका मूड अब बिल्कुल ठीक हो गया है। साथ ही वे अपनी भावनाओं को महसूस कर पा रही थी।

दूसरे दिन भी लेखिका को अच्छा महसूस हो रहा था लेकिन अब उनका मूड कुछ कुछ खराब होने लगा था। हालांकि अभी वे अपने गुस्से और खराब मूड को अनदेखा कर कर अपना काम अच्छे से कर पा रही थी।

तीसरे दिन वे पहले जैसी हो गई। अब वे फिर से यह सोच सकती थी कि उन्हें यह माइक्रोडोस फिर से लेना चाहिए या नहीं। उनके काम करने की क्षमता कम हो गई और उनका मूड पहले जैसा होने लगा। उनके अंदर अब शांति नहीं थी।

लेखिका माइक्रोडोस लेती रही और समय के साथ उन्होंने यह देखा कि उनके अंदर अपने गुस्से को काबू करने की क्षमता आ गई थी और वे अपने चिड़चिड़ेपन पर भी काफी हद तक काबू पा रही थी। अपने बच्चों की गलतियों पर या अपने कुत्ते की शरारतों पर अब उन्हें गुस्सा तो आ रहा था लेकिन वे उसे काबू कर पा रही थी।

इस तरह का असर देखने के बाद लेखिका ने यह जानने की कोशिश की कि इस तरह के ड्रग्स आपके साथ क्या करते हैं। वे आपके दिमाग के सेरोटोनिन, ग्लुटामेट और दूसरी चीजों के बीच के कनेक्शन को बढ़ा देते हैं जिससे आप चीजों को एक नए नजरिए से देखने लगते हैं। यूसीएलए ( UCLA ) और एनवाईयू ( NYU ) के रीसर्चर्स। ने पाया कि यह आपके तनाव और बेचैनी को कम कर देता है। यह जानने के बाद लेखिका माइक्रोडोस लेती रही और कुछ समय के बाद उन्हें लगने लगा कि अब वे अपने खराब मूड पर काबू पा ले रही हैं।

एलएसडी नुकसानदायक नहीं है लेकिन फिर भी लोग इसके इस्तेमाल को गलत समझते हैं।
शायद आपने यह कहानियाँ सुनी होंगी कि लोग ड्रग्स लेने के बाद बिल्डिंग से यह सोच कर कूद जाते हैं कि वे उड़ सकते हैं या फिर शायद आप ने उनकी हालत देखी होगी जिन्हें ड्रग्स की लत लग गई थी और वे दिन ब दिन इसके शिकार होते जा रहे थे। आपकी जानकारी के लिए कि या तो ये लोग दूसरे तरह के खतरनाक ड्रग्स का इस्तेमाल कर रहे थे या फिर यह सिर्फ एक कहानी है। एलएसडी आपके लिए बिल्कुल नुकसानदायक नहीं है।

एक्ज़ाम्पल के लिए आप डाक्टर एल्बर्ट हाफमैन को ले लीजिए जिन्होंने एलएसडी की खोज की थी। वे इसे जिन्दगी भर लेते रहे और 102 साल तक जीये। 

लेकिन फिर इस तरह की कहानियाँ क्यों बनने लगती है कि एलएसडी नुकसानदायक है? 1960 के दशक में लोगों को लगने लगा कि यह ड्रग्स उनकी सभ्यता को खराब कर रहा है। इसलिए उन्होंने इसका इस्तेमाल करना छोड़ दिया। तब से इसका नाम बदनाम है।

लेकिन अगर हम डाटा पर ध्यान दें तो अब तक एलएसडी के कोई भी नुकसान सामने नहीं आए हैं। 2008 के सीएनएस ( CNS ) नाम के एक जर्नल ने यह रिपोर्ट छापी की एलएसडी से अब तक एक भी मौत नहीं हुई है। अगर आप 200 से 300 माइक्रोग्राम एलएसडी एक बार में लेते हैं तो इससे भी आपकी सेहत पर कुछ खास असर नहीं पड़ेगा।

अगर हम एलएसडी के नुकसान के बारे में बात करें तो 1978 में 8 लड़कों ने इसे कोकेन समझ कर इसकी भारी मात्रा नाक से खींच ली थी। उसका असर यह हुआ कि उन में से पाँच लोग कोमा में चले गए और 3 को लगातार उल्टियाँ आने लगी। लेकिन एक हफ्ते के बाद वे बिल्कुल ठीक हो गए।

जिन लोगों को पहले से कोई मानसिक बीमारी है अगर वे एलएसडी का इस्तेमाल करें तो उनके ऊपर इसका खराब असर हो सकता है। एलएसडी के इस्तेमाल से आत्महत्या 36% तक कम हो गई है। इन सब बातों से हम यह कह सकते हैं कि इसके इस्तेमाल से कोई नुकसान नहीं है।

एलएसडी का इस्तेमाल गैरकानूनी है लेकिन इनसे दिमाग के अलग अलग हिस्से जुड़ने लगते हैं।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि स्टीव जाब्स एलएसडी लिया करते थे और उनके हिसाब से उनके जरूरी कामों में से एक था। इसके अलावा बहुत से कामयाब लोग या प्रोफेशनल लोग अपने काम करने की क्षमता को बढ़ाने के लिए एलएसडी का इस्तेमाल करते हैं।

कैरी मुलिस ने पालीमेरेज़ चेन रिएक्शन नाम की टेक्निक की खोज की थी। उनका मानना है कि अगर वे एलएसडी ना ले रही होती तो वह यह खोज कभी नहीं कर पाती। उनकी इस खोज के मदद से हम आज डीएनए सिक्वेंसिंग, जीन क्लोनिंग जैसे काम कर पा रहे हैं।

जेम्स फैडिमैन नाम के एक साइंटिस्ट ने कुछ लोगों के दिमाग का एमआरआई स्कैन कर के यह जानने की कोशिश की कि क्या एलएसडी की मदद से हमें नई चीज़ों को खोज सकने में मदद मिल सकती है। उन्होंने अलग अलग जगह से साइंटिस्ट और इंवेंटर को बुलाया जिनकी कोई एक समस्या नहीं सुलझ पा रही थी। उन्होंने उन्हें 100 ग्राम एलएसडी दिया और फिर नतीजों का इंतजार किया।

जिन लोगों पर यह एक्सपेरिमेंट किया गया था उन्होंने कहा कि इनसे उन्हें अपना काम करने में बहुत मदद मिली है। उन्होंने बताया कि उनके सोचने और समस्याओं को सुलझाने की क्षमता बढ़ गई है और वे पहले से ज्यादा अच्छा काम कर पा रहे हैं। इसके बाद उन लोगों ने अलग अलग तरह की खोज की।

लेकिन एलएसडी की बदनामियाँ फिर से उभरने लगी और फैडिमैन की रीसर्च को बंद कर दिया गया। आज भी सिलिकन वैली के बहुत से कामयाब लोग अपने काम करने की क्षमता को बढ़ाने के लिए एलएसडी का इस्तेमाल करते हैं लेकिन इसका इस्तेमाल गैरकानूनी है।

अमेरिका के इतिहास में ड्रग्स के खिलाफ नियम सिर्फ गरीब या काले लोगों के लिए बनाए गए हैं।
क्या आपको पता है कि अमेरिका के जितने काले लोग ड्रग्स लेते हैं उनसे पाँच गुना ज्यादा गोरे लोग ड्रग्स लेते हैं? लेकिन फिर भी अगर एक गोरे व्यक्ति को ड्रग्स के लिए गिरफ्तार किया जा रहा है तो उसके साथ 10 काले लोगों को उसी अपराध के लिए गिरफ्तार किया जाएगा। ऐसा लगता है कि कानून सिर्फ काले लोगों के लिए ही बनाए गए हैं।

ज्यादातर लोग जो ड्रग्स के लिए गिरफ्तार किए जाते हैं वे सिर्फ कुछ हफ्तों से ही ड्रग्स की सप्लाई कर रहे होते हैं और वे एलएसडी या फिर मैरिजुआना जैसे कम नुकसान पहुंचाने वाले ड्रग्स की सप्लाई करते थे। जितने भी लोगों को ड्रग्स के लिए गिरफ्तार किया गया है उन में से आधे लोगों का जुर्म बहुत छोटा है। दूसरी तरफ जो लोग कोकेन और हिरोइन का पूरा बिजनेस खोलकर बैठे हैं उन पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। इस तरह के खतरनाक ड्रग्स हर दिन सस्ते होते जा रहे हैं।

लेखिका खुद सिर्फ एक महीने से एलएसडी ले रही थी लेकिन इसके लिए उन्हें तीन साल की कैद सुनाई गई। हालांकि उन्हें कड़ी सजा नहीं दी जाती क्योंकि वे गोरी और अमीर थी।

अमेरिका में जो सबसे पहला ड्रग्स के खिलाफ कानून बनाया गया था वो चाइना के गरीब लोगों को रोकने के लिए अफीम के खिलाफ बनाया गया था जबकि बहुत से अमीर और गोरे लोग पहले से लौडनम नाम का ड्रग्स ले रहे थे। इस तरह से ड्रग्स के खिलाफ बनाए गए कानून सिर्फ गरीबों के लिए ही बनाए गए हैं।

एलएसडी के इस्तेमाल से बहुत सारे फायदे हो सकते हैं।
जब फैडिमैन की रीसर्च को बंद कर दिया गया तब उन्होंने अपनी रीसर्च को चोरी छुपे जारी रखा। वे यह जानने के लिए बेताब थे कि माइक्रोडोसिंग के क्या फायदे हो सकते हैं। उनकी मुलाकात एक महिला हे हुई जिसने उन्हें बताया कि माइक्रोडोसिंग से उसे क्या फायदा और क्या नुकसान हुआ है। उस महिला की बात से उत्सुक होकर फैडिमैन ने एक नेटवर्क तैयार किया जिसमें उन्होंने 250 लोगों को शामिल किया।

इन 250 लोगों ने माइक्रोडोसिंग की थी और फैडिमैन चाहते थे कि वे अपना अनुभव बांटें। 50 लोगों ने उन्हें जवाब लिख कर भेजा जिसमें से सिर्फ दो लोगों ने कहा कि माइक्रोडोसिंग से उन्हें नुकसान हुआ है। बाकी के लोगों के हिसाब से इससे उन्हें फायदा हुआ था। जिन्हें इससे नुकसान हुआ था उन्होंने कहा कि इसे लेने के बाद वे बहुत थका हुआ महसूस करते थे। 

लेकिन जिन लोगों ने उन्हें जवाब लिख कर भेजा था उन में ने बहुत सारे लोगों को इससे फायदा हुआ था। उनके हिसाब से इनसे उनके दिमाग की और शरीर की क्षमता बढ़ गई और वे पहले के मुकाबले ज्यादा और बेहतर काम कर पा रहे थे। उन्होंने कहा कि इसके इस्तेमाल से उनके रिश्ते काफी हद तक सुधर गए। वे अब अपनी जिन्दगी की समस्याओं को अपना पा रहे थे और अपना ध्यान सही जगह पर लगा कर अपने तनाव को कम कर पा रहे थे।

एक व्यक्ति बात करते वक्त हकलाया करता था। उसने कहा कि इसके इस्तेमाल से उसका हकलाना बढ़ गया। कुछ लोगों ने कहा कि इसके इस्तेमाल से उनके सिगरेट पीने की या मैरिजुआना की लत छूट गई।

इस तरह के बहुत तरह के जवाब फैडिमैन को मिले। इस ड्रग के गैरकानूनी होने की वजह से अब तक इस पर अच्छे से रीसर्च नहीं की जा सकी है इसलिए हम यह पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि इसके इस्तेमाल से हमारे दिमाग पर क्या असर पड़ता है।

एक महीने तक माइक्रोडोसिंग करने के बाद लेखिका ने अपनी जिन्दगी में बहुत से बदलाव देखे।
इस आखिरी सबक में हम देखेंगे कि लेखिका का इस ड्रग को लेकर कैसा अनुभव रहा।

जिस दिन लेखिका माइक्रोडोसिंग करती थीं, उन दिन उन्हें अजीब चीजें महसूस होती थी। सो कर उठने के बाद उन्हें चक्कर आता था और सिर भारी लगता था। बाकि के दिन वे बहुत अच्छा महसूस करती थी।

एक दिन जब उन्होंने माइक्रोडोस लिया था तब उनका अपने पति के साथ बहुत झगड़ा हुआ था। लेकिन उन्होंने कहा कि अब झगड़े के बाद वे खुद को गिरा हुआ या फिर शर्मसार नहीं महसूस कर रही थी, वे खुद को अपनाने लगी थी और अब उन्हें ज्यादा पछतावा नहीं हो रहा था।

उनके परिवार वालों ने कहा कि जब वे माइक्रोडोस ले रही थी तब गुस्सा आने पर भी वे अपना आपा खोने से बचा ले रही थी। ऐसा लग रहा था कि अब वे अपनी भावनाओं को काबू कर पा रही थी। उनका मूड अब पहले की तरह खराब नहीं रहता था।

कुलमिला कर लेखिका ने कहा कि इस ड्रग को लेने के बाद उन्हें बहुत अच्छा लगता था और इससे उन्हें फायदा होता था। लेकिन वे अब भी नहीं समझ पा रही थीं कि यह ड्रग गैरकानूनी क्यों है। उनके देश में बहुत से लोग तनाव के शिकार हैं और इससे बचने के लिए वे तरह तरह की दवाइयां लेते हैं। उन दवाओं के बहुत से साइड इफेक्ट होते हैं। लेकिन फिर भी उन्हें खुले आम इस्तेमाल किया जाता है।

दूसरी तरफ एलएसडी जिसके कोई जाने माने नुकसानदायक लक्षण अब तक जानने को नहीं मिले हैं, उसे गैरकानूनी बना दिया गया है। शायद इस किताब की मदद से सरकार इस बात को समझ पाए और इस ड्रग के ऊपर एक रीसर्च करने के बारे में विचार करे।

कुल मिलाकर
एलएसडी एक बहुत ही फायदेमंद ड्रग है लेकिन क्योंकि यह एक ड्रग है इसलिए इसे नुकसानदायक समझ कर बैन कर दिया गया है। इससे दिमाग के अलग अलग हिस्सों के बीच में संबंध बनने लगते हैं और हमारे सोचने और काम करने की क्षमता बढ़ जाती है। साथ ही यह डिप्रेशन से लड़ने का एक बहुत अच्छा तरीका हो सकता है। सरकार को चाहिए कि वो इस पर एक कानूनी रीसर्च करने की इजाजत दे ताकि लोग इसके फायदों को जानकर इसका इस्तेमाल कर सकें।


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