Benjamin Hardy
बिना अपनी विलपावर और एनर्जी ख़त्म किए, अपनी पूरी एबिलिटी तक पहुँचो।
दो लफ़्ज़ों में
'Willpower Doesn’t Work’ (2018), ये किताब हमें प्रोडक्टिविटी और ख़ुद की मदद ख़ुद ही करने के लिए प्रेरित करती है तथा रूढ़िवादी राय के खिलाफ है। यह किताब मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों (साइकोलॉजिकल थियरीज), सफल बिज़नेसमेनस की कहानियों की एक डिटेल्ड सीरीज पर आधारित है। इन किताब का तर्क यह है कि जब बात आपकी ज़िन्दगी को बदलने की आती है, तो विलपावर कोई ज़रिया नही है।
यह किताब किन लोगों के लिये है?
- काम टालने वाले लोग या यूँ कहें कि प्रोक्रेस्टिनेट करने वाले लोग जो ज़िन्दगी में कुछ करना चाहते हैं।
- वो बिज़नेस मेन जो अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।
- प्रोडक्टिविटी की सायकोलोजी में रुचि रखने वाले औरगनाइजेशनल लीडर्स।
लेखक के बारे में
बेंजामिन हार्डी एक ऑर्गनाइजेसनल साइकोलॉजिस्ट हैं, उन्होंने क्लेम्सन विश्वविद्यालय से पीएचडी की है और साथ ही वो एक सबसे बेस्ट सेलिंग लेखक हैं। उनके काम को फोर्ब्स, फॉर्च्यून और साइकोलॉजी टुडे में प्रकाशित किया गया है। वे 'पर्सनैलिटी इज़ नॉट परमानेंट’ के लेखक भी हैं।
अपने गोल्स को हासिल करने की कोशिश करते समय, विलपॉवर आपके एनवायरनमेंट से कम इम्पोर्टेन्ट है।
फिर से सोचिए कि आख़िरी बार आपने कब किसी गोल को हासिल किया था। वो कोई छोटी सी चीज़ हो सकती है, जैसे कि अपनी कमर कम करने के लिए अपनी फेवरेट मिठाई छोड़ देना या सुब्ह 6 बजे उठ जाना ताकि आप काम से पहले एक्सरसाइज कर सकें। या जब आपने अंत में अपनी सारी ताक़त जुटा कर किसी काम को समय पर पूरा किया हो।
वो कुछ भी हो जो आपने किया हो, शायद उसमें बहुत विलपावर लगी हो। विलपावर काम करने की वो पावर है जो करने का आपका बिल्कुल मन न हो। लेकिन क्या हो अगर आप बिना विल पावर के भी सभी काम कर सकें।
ये इस किताब में बताई गई स्ट्रेटजीस आम लोगों के एक्सपीरियंस के आधार पर बनाई गई हैं, जिनसे आप बिना अपनी विलपावर को ख़त्म किए अपने काम कर सकते हैं। आप अपने एनवायरमेंट को ऐसे क्रिएट कर सकते हैं, जिससे आपके दिमाग़ में सबसे ऊपर वही बात रहे। यह आपके सभी कामों को चुटकियों में ख़त्म करेगा।
इस समरी में आप सीखेंगे कि आपको एक टेंशन फ्री लाइफ की इच्छा क्यों नहीं करनी चाहिए? किस तरह असफलता या फेल्योर पर ध्यान देने से आप को सक्सेस मिल सकती हैं?
लोग अक्सर कहते हैं कि विल पॉवर एक मसल की तरह है; जितना ज्यादा आप इसका इस्तेमाल करते हैं, वह उतनी ही मज़बूत होती है और बिल्कुल मसल की तरह ही, आप समय के साथ अपनी विलपावर को मजबूत कर सकते हैं – इसलिए आज सेल्फ कंट्रोल करना कल को थोड़ा आसान बना देगा।
तो सेल्फ इंप्रूवमेंट आसान है, है ना? अपने जीवन को बदलने के लिए, हमें अपने आप को हर दिन थोड़ा टफ बनाने की जरूरत है – और इससे हम दुनिया के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकेंगे! नहीं! ऐसा बिल्कुल नहीं है।
विल पॉवर के साथ प्रॉब्लम यह है कि यह एक बहुत कमजोर मसल की तरह है। सेल्फ कंट्रोल करना आज के समय में बहुत कठिन है और इसमें हमारी गलती नहीं है।
आईए मोटापे जैसी महामारी पर विचार करें। फैक्ट्स बहुत साफ़ हैं: 2025 तक, यह भविष्यवाणी की गई कि दुनिया में ज़्यादातर लोग अधिक वजन वाले या मोटे होंगे। क्या यह विल पॉवर की विफलता के कारण है? क्या वह ज्यादा सेल्फ कंट्रोल था जिसने हमारे पूर्वजों को पतला रखा? बिलकूल नहीं!
अतीत में, लोगों को स्लिम रहने के लिए विल पावर पर भरोसा करने की ज़रूरत नहीं थी। तब से कुछ बदला है तो वो है हमारा एनवायरनमेंट। आजकल हम लोग आउटडोर काम करने के बजाय, ऑफिस में काम करते हैं और पूरे दिन अपने डेस्क पर बैठे रहते हैं। और जिस खाने को हम हेल्थी कहते हैं वो पैक्ड फ़ूड होता है।
जैसा कि लेखक कहते हैं, हमारे इस एनवायरनमेंट ने हमारे वजन बढ़ाने को इनकरेज किया है। पर अच्छी बात ये कि आपके एनवायरनमेंट की पॉवर आपके भले के लिए हो सकती है। ऐसा कैसे? प्राकृतिक विकास और घरेलू विकास के बीच डार्विन की थ्योरी पर विचार करें।
प्राकृतिक विकास में, जीव अपने आप को जिस भी स्थिति में पाते हैं उसके अनुकूल होते हैं। इसलिए अगर यह छोटा होने में भलाई है, तो एक प्रजाति सिकुड़ना शुरू हो सकती है। अनिवार्य रूप से, वे अपने एनवायरनमेंट के अनुकूल होने के लिए मजबूर हैं।
इसके विपरीत घरेलु विकास, जिसमें इंसान के अनुसार जानवरों और पौधों का विकास होता है। क्योंकि हम इन जीवों के वातावरण को नियंत्रित करते हैं, हम डीजाइरेबल ट्रेट पैदा कर सकते हैं जो जंगल में नहीं होते हैं – जैसे बड़े फल और मोटे जानवर।
जब लोगों की बात आती है, तो हममें से कई नेचुरल एवोल्यूशन के दौर से गुजर रहे जानवरों की तरह हैं। हम अक्सर अपने वातावरण को बदलने में असमर्थ होते हैं, इसलिए हम इसके बजाय उनके अनुकूल हो जाते हैं – भले ही इससे हमें लंबे समय में फायदा हो। पर कुछ लोग इसका उल्टा करते हैं। हम अपने पालतू जानवरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, उनके समान, वे अपने वातावरण को डिजाइन करते हैं ताकि कोई भी एडाप्टेशन एक सुधार हो, जिससे उन्हें अपने लक्ष्यों के करीब आने में मदद मिलती है।
ट्रिक आपके एक ऐसे एनवायरमेंट को डिजाइन करने की है जो आपको अपने आइडियल सेल्फ में एडेप्ट करने के अलावा कोई और चारा न छोड़े। आगे के चैप्टर्स में हम ऐसा करने के लिए कुछ तरीकों पर ध्यान देंगे।
अपने एनवायरमेंट को अलग-अलग तरीके के साथ डिज़ाइन करें – एक काम के हिसाब से और एक खेलने के हिसाब से।
क्या आपने कभी घर से काम किया है? अगर किया है, तो आप शायद कुछ ख़ास समस्याओं का एक्सपीरियंस कर सकते हैं। अगर घर में छोटे बच्चे हों तो पेरेंट्स घर से काम करने की प्रोब्लम को बखूबी समझते हैं। लेकिन हम सब लोगों के लिए भी ये कहीं न कहीं चुनौती भरा है क्योंकि जिस जगह हम आराम करते हैं वहां काम करना थोड़ा मुश्किल तो होगा ही।
तो हो सकता है कि “वर्क हार्ड एंड प्ले हार्ड” फ्रेज को एक अपडेट की जरूरत है। “वर्क हार्ड एंड प्ले हार्ड” हां ठीक तो है पर पहले ये डिसाइड करें कि आप प्ले और वर्क अलग अलग जगह पर करते हों! असल में, लोगों को अपना बेस्ट करते देखा गया है जब वे दो बहुत अलग एनवायरमेंट का सही उपयोग कर पाते हैं – एक है हाई स्ट्रेस और दूसरा है हाई रिकवरी।
इन दिनों हम अक्सर “स्ट्रेस फ्री” लाइफ़ के फायदों के बारे में सुनते हैं, लेकिन ऐसी सोच उस पॉजिटिविटी को इग्नोर कर देती है जो स्ट्रेस का एक हेल्थी लेवल ला सकती है। इस तरह के मैनेजेबल स्ट्रेस के लिए एक शब्द है। इसे यूस्ट्रेस कहा जाता है, और ये असल में हमें अपनी पूरी क्षमता यानी फुल पोटेंशियल तक पहुंचने में मदद करता है। इससे हम डिस्ट्रैक्ट और सुस्त नहीं होते, ये सुनिश्चित करते हुए कि हम अपना सारा ध्यान काम पर ही दें। और यूस्ट्रेस का यूज कर के दिमाग़ में ही एक एनवायरमेंट डिजाइन करना अपनी प्रोडक्टिविटी बढ़ाने का एक शानदार तरीका है।
कोर्टनी रेनॉल्ड्स के केस को देखें , जो एक युवा बिज़नेस वूमेन हैं जो की डेनवर और लास वेगास के बीच अपना टाइम स्पिल्ट करती हैं। डेनवर में रहते हुए, रेनॉल्ड्स यूस्ट्रेस मोड में है, ये उनके एनवायरमेंट से शो होता है। इसका मतलब है कि वह अपने डेनवर अपार्टमेंट में कम सामान और जो काम के लिए ज़रूरी हो बस वही सामान रखकर , डिस्ट्रैक्शन फ्री रखती हैं ।
लास वेगास की एक अलग कहानी को देखें तो यहां रेनॉल्ड्स का रिकवरी एनवायरमेंट है। उनका वेगास वाला घर बड़े पैमाने पर शानदार फर्नीचर और एक वॉर्म कलर पैलेट से सजाया गया है। यहाँ तक कि उनकी सोशल लाइफ़ भी उनके रिकवरी एनवायरमेंट में बदल जाती है। डेनवर में, रेनॉल्ड्स सुबह से रात तक काम करती हैं, जबकि वेगास में, वे अपना समय दोस्तों के साथ बिताना पसंद करती हैं।
मानो या न मानो, जब आप आराम कर रहे होते हो तो आप क्रिएटिव और अच्छे विचारों से घिरे होते हो । न्यूरोसाइंटिस्ट्स के अनुसार जब हम कोई काम करते हैं तो सिर्फ 16 प्रतिशत मेंटल ब्रेकथ्रू होते हैं। जब आप रिलेक्स हो जाते हैं और अपने दिमाग को भटकने देते हैं, जिससे आपका दिमाग नए कनेक्शन बनाता है और उससे नए आइडिया पैदा होते हैं।
इस जीवनशैली के साथ, रेनॉल्ड्स ने ह्यूमन साइकोलॉजी के एक मूलभूत पहलू को जागृत किया है। जब हम बस काम या केवल खेल के बीच में स्विच करते हैं तो हम सबसे अच्छा काम करते हैं। हर स्टेट के लिए अलग-अलग एनवायरमेंट तैयार करके, आप अपने दिमाग को कड़ी मेहनत करने करने के लिए तैयार कर लेते हैं।
ट्श ऑक्सेंडर एक आदत में फंस गई थीं। कुछ समय से उनकी जिंदगी सही दिशा में नही जा रही थी। उनके जिंदगी में कई गोल्स थे, प्लांस थे, कई काम थे लेकिन वो खुद उन्हें पूरा करने के लिए कमिटेड नही हो पा रही थीं।
एक दिन अचानक से उनके पति और उन्होंने यह डिसाइड किया कि वे अपने बच्चो के साथ दुनिया के अलग अलग जगह घूमने जायेंगे । ट्श पर इसका काफी गहरा असर पड़ा । जैसे जैसे उनका परिवार नए नए जगहों में घूम रहे थे उन्होंने यह महसूस किया की अब वो बेहतर काम कर पा रही हैं और उन्हे नए नए ख़्याल भी आ रहे है ।
आखिर ट्श को क्या हुआ ? क्या उनके एनवायरनमेंट में कुछ ऐसा था या वहा की हवाओं में कुछ ऐसा था जो उन्हे काम करने से रोक रहा था ? हरगिज़ नही.
महज़ अपने एनवायरनमेंट में कुछ बदलाव करने मात्र से ही ट्श को नए एक्सपीरियंस का एहसास हुआ जोकि काफी अच्छा और रेयर होता है । एक जगह से निकल कर दूसरे जगह घूमने से ट्श को यह एहसास हुआ की उनकी जिंदगी में किन चीजों की कमी थी।
आमतौर पर हमे इन सभी चीजों से इंस्पिरेशन मिलती है और जिंदगी के ‘अनमोल पल’ मिलते हैं जब हम आराम या रिलैक्स्ड अवस्था में रहते है। अच्छी बात यह है की आपको इस प्रकार के एक्सपेरिसेस का इंतजार नहीं करना पड़ता बल्कि आप इसे रोज अपनी जिंदगी का हिस्सा बना सकते है।
कैसे? इसका आंसर बहुत ही आसान है । सबसे पहले खुद को डिस्कनेक्ट कर लें और एक अनजान जगह पर जाए। जरूरी नहीं है यह कोई बहुत हीं अनोखी जगह हो, आप अपने घर से कुछ दूर ड्राइव करके किसी शांत जगह पर भी जा सकते है । वहा जा कर आप अपना जर्नल निकाले और लिखना शुरू करे । सबसे पहले अपने जिंदगी में ग्रेटिट्यूड के बारे में लिखे जिसके लिए आप शुक्रगुजार हों। सच्चाई और ईमानदारी से घबराए नहीं हर वो चीज लिख डालिए जो आपका दिल कहता है । क्या आप अपने गोल्स के प्रति काम कर रहे है? अपने हर जज़्बात लिख डालिए।
इन सब के बाद आप अपने ‘बड़े सपनो ’ के बारे में सोचिए और लिखिए। आप आने वाले महीनों में क्या हासिल करना चाहते है? आप अपने आने वाले साल में क्या हासिल करना चाहते है ? आपके जिंदगी में क्या गोल्स है?
डेडीकेटेड होकर काम करे और डेड वेट हटाए
गैरी बी सबीन, एक सफल कॉरपोरेट सी ई ओ, एक काफी फनी घटना की कहानी सुनाते हैं। एक बार वो कुछ बॉय स्काउट को कैंपिंग के लिए एक रेगिस्तान ले गए और एक जगह पर अपना पडाव डाला।
बीच रात में जब उनकी नींद खुली तो उन्होंने देखा की एक लड़का नींद में है लेकिन काफी बेचैन सा लग रहा है । वजह यह थी की उसने अपना स्लीपिंग बेड नही निकाला ,क्योंकि वो सुबह उठकर उसे वापस पैक करने की मशकत नही करना चाहता था । आसान शब्दों में कहें तो उसे ठंड में कापन मंजूर था मगर थोड़ी मेहनत करना नही।
जब भी जिंदगी में कठिन समय आता है तो कई बार हम बुरे निर्णय ले लेते है। हम काफी जल्दी डिसीजंस ले लेते है और लंबे समय तक उसके कारण पछताते है। इस समस्या से बचने का एक सिंपल तरीका है अपने जिंदगी को अपने गोल्स के प्रति ऑर्गेनाइज करे।
एक और उदाहरण है जिससे की हम अपने लॉन्ग टर्म गोल्स से डगमगा जाते है और वो है इंटरनेट पे अपना वक्त बर्बाद करना। हम सब कहीं न कहीं यह करते है। जब हमे कोई मुश्किल काम पूरा करना हो और उसे करते करते हम थक गए हों तो तुरंत हमारा हाथ फोन की ओर बढ़ता है और हम सोशल मीडिया देखना शुरू कर देते है। अपने काम पर फोकस करने के बजाए हम इंटरनेट के सुपरफिशियल अट्रैक्शन की ओर खींचे चले जाते है।
इससे निपटने का एक रास्ता यह है की आप वो सारे ऐप्स डिलीट कर दें जो आपको डिस्ट्रैक्ट करते हैं। नो इफ नो बट : बस आगे बढ़े और डिलीट करे। जब आप अपने डिस्ट्रैक्शन को हटा देते है तब विलपवर की बात तो आती ही ही नहीं।
एक बार जब आपने अपना फोन “टेम्पटेशन प्रूफ” कर लिया हो तो इसी प्रिंसिपल को अपने जिंदगी में भी आजमायें। जैसे अगर आपके फ्रिज में कुछ ऐसा है जो आपको नही खाना चाइए तो उसे फौरन हटा दें वो एक तरह का बोझ है। आप ऐसा करके काफी सरप्राईज हो जायेंगे की आखीर डिसीजन मेकिंग इतना आसान कैसे हो गया?
जैसा कि डॉक्टर बेरी श्वात्ज ने अपने किताब ‘ द पैराडॉक्स ऑफ़ चॉइस’ में कहा था कि जिंदगी में ज्यादा ऑप्शंस रखना भी हानिकारक होता है । इन चीजों पर हम अपना विचार देकर अपना वक्त जाया करते है और अपने गोल के प्रति हाफ हार्टेड तरीके से काम करते है । अपने काम में कॉन्फिडेंस से काम करने के बजाए हम हर एक छोटी चीज पर विचार करते रहते है।
इससे निपटने का एक और रास्ता है – अपने जिंदगी में डेड वेट को पहचाने और उसे जाने दे और जब एक बार आपने अपने गोल्स को सेट कर लिया तो हर डिस्ट्रैक्शन को हटाते चले जाएँ।
हमने अक्सर ‘पावर ऑफ पॉजिटिव थिंकिंग’ के बारे में सुना है , इस थ्योरी के मुताबिक अगर आपने यह सोच लिया है की आपको क्या पाना है तो आप पहले से ही उसे पाने के लिए एक स्टेप आगे बढ़ चुके है। आपको बस इस विचार से दूर रहना है की आप उसमे फेल हो जाएंगे।
यह एक जाना माना नोशन है – लेकिन क्या हो अगर यह सब गलत हो? क्या पता फेल करने के तरीके आपको अपने टारगेट्स की ओर ले जाए ?
चलिए शुरुआत करते है यह जानने से कि इंप्लीमेंटेशन इंटेंशन होता क्या है? यह उन परिस्थितियों से लड़ने के लिए इस बात पर विचार और प्लान करना होता है कि किन कारणों से हम फेल हो जाएंगे।
यह स्ट्रेटजी आगे चल कर ‘अगर - तो’ का रिस्पॉन्स ले लेती है। जैसे आपका खुदसे यह कहना जी ‘अगर अगली बार मुझे सोडा पीने का मन करे, तो मैं पानी पीलूंगा।’ इसमें आपने पहले हीं इंप्लीमेंटेशन इंटेंशन का इस्तेमाल कर लिया है। आपका सोडा के प्रति डिजायर ‘अगर’ ,पानी के प्रति ‘तो’ के डिजायर से सब्स्टीट्यूट हो गया है ।
यहा तक कि मनोवैज्ञानिक यह मानते है की इंप्लीमेंटेशन इंटेंशन विद्यार्थियों के लिए काफी जरूरी होता है। जब उन्हे उनसे यह पूछा गया की वह कैसे अपने गोल्स में फ़ैल होने से बाख सकते हैं तो तो उनके ग्रेड्स, अटेंडेंस, बिहेवियर सब में इजाफा हुआ।
यह तकनीक आपके टेम्पटेशन को दूर करने में भी काफी मददगार होगी। अगर आप अपने काम पर ‘अगर’ लगा कर करे तो आपका टेम्पटेशन से लड़ना काफी आसान हो जता है ।
जो जरूरी है वो यह है की आप ‘अगर’ का मार्क जरूर लगाए ताकि आप अपने ट्रैक पर बने रहे।
खुद को अपने गोल्स के प्रति मजबूर करने के लिए फोर्सिंग फंक्शन का इस्तेमाल करे।
किसी काम को करने के लिए जबरदस्ती करना हमे अच्छा नहीं लगता है, है ना? अगर हमें लगता है कि कोई काम जरूरी है तो बस उठकर उसे अपने मन से करना काफी अच्छा लगता है। लेकिन जैसा की आपने देखा होगा, हर बार ऐसा नहीं होता। हमे पता है की हमें एक्सरसाइज करनी चाइए लेकिन फिर भी हम नहीं करते। हमे पता है की हमें काम करना चाइए फिर भी हम वो नही करते।
इस बिहेवियर के कई कारण हो सकते है जैसे कि – आलस, दर्द और डर और एंड रिजल्ट हमेशा एक ही होता है जो होता है अपने किए पर पछतावा और निराशा। विलपावर हमेशा काम नहीं आता तो हम कैसे खुद को बेहतर बना सकते है ?
इसे करने का एक तरीका यह है की आप खुद पर प्रतिबंध लगाए जैसे की अगर आप चाहते है की आप अपने परिवार को समय दे तो आप अपना फोन कार में हीं छोड़ दे। यह सब करने से कॉल लेना और टेक्स्ट करना आपके पहुंच से थोड़ा दूर हो जाएंगे और आप अपने परिवार को और समय दे पाएंगे ।
डान मार्टेल जो की एक इंटरप्रेन्योर है वो बस एक फोर्सिग फंक्शन का इस्तेमाल करते हैं। जब उन्हे सच में कुछ करना होता है तो वह अपना लैपटॉप एक कॉफी शॉप में ले जाते है और चार्जर घर पर छोड़ देते हैं। उन्हे पता रहता है कि उनके पास कुछ घंटे की हीं बैटरी है और वो अपना काम जल्दी से निपटा ने लगते है और इस तरह वो अपने फुल कैपेसिटी का प्रयोग करते है।
फोर्सिंग फंक्शन का एक और अच्छा तरीका है और वो है सोशल प्रेशर। कोई भी अपने दोस्तों के सामने असफल नहीं होना चाहता है और लोग इससे बचने के लिए काफी कुछ कर गुजरते है। तो अगर आपको भी आगे बढ़ना हो तो आप भी अपना गोल लोगो को बता दीजिए।
यह सोचना कि आपके दोस्त आपके असफल होने पर आपका मजाक बनाएंगे, आपके अंदर डर पैदा करेगा और यह डर आपको सफल बनाएगा।
कुल मिलाकर
किसी भी काम को पूरा करने के लिए की विल पॉवर पर भरोसा करना पेनफुल ही नहीं ,बल्कि एक इफेक्टिव स्ट्रेटेजी नहीं है। अपनी जिंदगी को बदलने का सबसे अच्छा तरीका एक ऐसा एनवायरनमेंट बनाना है जो आपको अपने एम्स के अनुसार जीने के लिए मजबूर करे। फॉर्सिंग फंक्शन्स और इंप्लीमेंटेशन इंटेंशन का इस्तेमाल कर के आप अपनी ज़िन्दगी से ये भार हल्का कर सकते हैं।
क्रिएटिव सोच के लिए नौ से पांच का बेसिक शेड्यूल छोड़ दीजिए।
आठ-घंटे का शेड्यूल तब काम का था जब ज्यादातर लोग मैनुअल और घिसा पिटा काम करते थे या फिर बिना दिमाग़ से सोचे-समझे कार्यों में लगे हुए थे। लेकिन आज के नॉलेज बेस्ड माहौल में, वो शेड्यूल एक्सपायर हो चुका है। जब आप हर दिन नौ से पांच तक मेंटल फोकस बनाए रखने की कोशिश करते हैं, तो आपके काम की गुणवत्ता घट जाती है। इसलिए अपने काम को छोटे छोटे वर्किंग हॉर्स में तोड़ने से नहीं डरना चाहिए।
येबुक एप पर आप सुन रहे थे Willpower Doesn’t Work by Benjamin Hardy
ये समरी आप को कैसी लगी हमें yebook.in@gmail.comपर ईमेल करके ज़रूर बताइये.
आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे.
अगर आप का कोई सवाल, सुझाव या समस्या हो तो वो भी हमें ईमेल करके ज़रूर बताएं.
और गूगल प्ले स्टोर पर ५ स्टार रेटिंग दे कर अपना प्यार बनाएं रखें.
Keep reading, keep learning, keep growing.
