Thinking in New Boxes

0
Thinking in New Boxes

Luc de Brabandere and Alan Iny
बिजनेस क्रिएटिविटी का फार्मूला

दो लफ़्ज़ों में
क्या आपने कभी सोचा है कि क्रिएटिव प्रोसेस की शुरुआत कैसे की जाती है? अगर नहीं जानते हैं तो साल 2013 में रिलीज हुई किताब “Thinking in New Boxes” आपके दिमाग को उसी से रूबरू करवाएगी. इनोवेशन के बॉक्सेस को खोलने का टूल आपको इसी किताब से मिलने वाला है. 

ये किताब किसके लिए हैं? 
- व्यवसायी के लिए
- मैनेजर्स के लिए
- इंजीनियर के लिए
- राजनेता के लिए
- ऐसा कोई भी जिसे क्रिएटिविटी से प्यार हो 

लेखक के बारे में
“Luc de Brabandere” लेखक होने साथ ही साथ रिसर्च फेलो और “The Boston Consulting Group” के सीनियर एडवाईजर भी हैं.  इन्होनें 12 किताबें लिखी हैं.

लाइक इट ओर नॉट” लेकिन आप थिंकिंग इन बॉक्स को इग्नोर नहीं कर सकते हैं
क्या आपको पता है कि आपका दिमाग लगातार आपको धोखा देने की कोशिश करता रहता है. भले ही वो कोई जल्दबाजी में फैसला लेना हो जिसको लेकर आपको कुछ देर में आपको पछताना ही क्यों ना पड़े?

लेकिन हमें शुक्रगुजार होना चाहिए कि हम अपने दिमाग को कंट्रोल कर सकते हैं. ऐसा कंट्रोल कि हम इसे अपने फायदे के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं. 

इस किताब के अध्यायों से आपको पता चलेगा कि इनसाइड द बॉक्स सोचने का क्या मतलब होता है? इसी के साथ क्रिएटिविटी को आप अपने बिजनेस की बढ़ोतरी के लिए कैसे इस्तेमाल में ला सकते हैं? 

एक सेंचुरी से भी ज्यादा समय से एक एडवाइस सबको दी जा रही है. वो सलाह है कि आप आउट ऑफ़ द बॉक्स सोचा करिए. क्या आपको भी कभी ऐसी सलाह मिली है? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सामान्य लोग ऐसा ही सोचते हैं. 

मेंटल मॉडल्स कहें या फिर बॉक्सेस कहें लेकिन इसी के कारण हमारे अंदर उस प्रोसेस का जन्म होता है. जिससे हमको काम्प्लेक्स रियलिटी नज़र आती है. 

हमारे दिमाग की ही बनावट ऐसी होती है कि वो सिम्पलीफाईड मॉडल के ऊपर काम करता है. वो कैटेगरी और पैटर्न्स में इनफार्मेशन को छांटने का काम करता है. फिर उसे हमारे सामने पेश करता है. बिना इस मॉडल से हमारे सोचने की क्षमता खत्म हो जायेगी. यहाँ तक की बिना बॉक्सेस के आपका दिमाग किसी भी चीज़ का कारण ही नहीं बता सकता है. सिम्पल कहा जाए तो हमारा दिमाग काम ही कुछ ऐसे करता है.

लेखक बताते हैं कि बॉक्सेस इंसान के दिमाग का अटूट हिस्सा होते हैं. इन्ही की मदद से हमारे दिमाग में सोचने की प्रक्रिया होती है.

रीवोलुशनरी आइडियाज भी न्यू बॉक्सेस से ही आते हैं
अगर आपका दिमाग एक बॉक्स को छोड़ता है तो वहीं दूसरी तरफ वो दूसरे बॉक्स में एंटर भी करता है. अब सवाल यही उठता है कि आप आउट ऑफ़ द बॉक्स कैसे सोचेंगे? लेकिन आपको इतना पता होना चाहिए कि न्यू बॉक्स को डेवलप करने के लिए आपके अंदर इनोवेशन तो होना ही चाहिए. 

अगर आप न्यू बॉक्स को डेवलप नहीं करेंगे तो फिर आपको पुराने बॉक्स के साइड इफेक्ट्स को भी झेलना पड़ेगा. जिसको टनल विजन भी कहा जाता है. 

टनल विजन यही होता है जब आपको ये पता होना बंद हो जाता है कि दुनिया में आपको जो कुछ भी नज़र आ रहा है वो इनफार्मेशन के आधार पर होता है. वो सब एक परसेप्शन होता है जो इन्फोर्मेशन के आधार पर आपके सामने आता है. 

अगर हम अपने अन्दर इतनी काबिलियत लेकर आ जाएँ कि हम टनल विजन से खुद को बाहर कर सकें. तो फिर हमारे सामने न्यू बॉक्सेस के अवसर खुलेंगे.

इसकी शुरुआत आप ऐसे कर सकते हैं. आप फ़्लैट अर्थ बॉक्स को ग्लोब बॉक्स से रिप्लेस करने की कोशिश करिए. इसका मतलब है कि आप हर जगह एक नए अवसर को देखने की कोशिश करिए. ये मत सोचिये कि इस अर्थ में ही सब कुछ है बल्कि आपका एटीट्यूड ऐसा होना चाहिए कि आपके सामने पूरा ब्रह्माण्ड पड़ा हुआ है.

आपकी नज़र ना सिर्फ इस एक अर्थ में होनी चाहिए बल्कि आपको अपने सामने पूरा ब्रह्माण्ड नज़र आना चाहिए.

अब यहाँ सवाल ये उठता है कि हम कन्वेंशनल थिंकिंग से खुद को आज़ाद कैसे करेंगे? क्योंकि जब तक हम आज़ाद नहीं होंगे. तब तक हम न्यू बॉक्स में एंटर नहीं हो पायेंगे. 

स्टेप-1 “डोंट ट्रस्ट योर गट फीलिंग”
हर किसी के दिमाग में थॉट्स की ट्रेन चलती है. अब आप सोचिये कि अगर वो सच में ट्रेन ही होती तो फिर आप पैसेंजर होते या फिर कन्डक्टर?

ये आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप अपने थॉट्स के ऊपर कंट्रोल लेना भी चाहते हैं या फिर नहीं लेना चाहते हैं.

एक सिम्पल सी समझ अपने अंदर स्थापित करने की कोशिश करिए. वो ये है कि कोशिश करिए कि आप फैमिलियर से कनेक्ट रहें. ऐसा करने से आपको अच्छा महसूस होगा.

इंसानी मन की रूप रेखा ही ऐसी होती है कि वो मौजूदा सेट ऑफ़ बॉक्स से चिपकना चाहता है. उसे ज्यादा बदलाव पसंद नहीं होते हैं. इसको दूसरे तरीके से ऐसा भी कहा जा सकता है कि मन को हमेशा ही सरल की तलाश रहती है. वो संघर्ष करने से हमेशा ही पीछे हटने की कोशिश करता रहता है. इंसान के लिए सबसे बड़ी कठिनाई यहीं आती है कि वो आपने मन को कैसे काबू में कर सके? काबू का मतलब है कि सही दिशा में दौड़ा सके. आपने ये ओब्सर्व किया ही होगा कि सही लक्ष्य की तरफ भागने से मन हमेशा ही डरता रहता है. उसे पता होता है कि कौन सी राह सही है? लेकिन फिर भी वो पीछे हटता है. 

उदाहरण के लिए, जब डिक फ़ॉस्बरी ने 1968 में ऊंची कूद के लिए एक नया ओलंपिक रिकॉर्ड बनाया था. तब लोगों ने उनकी अन कन्वेंशनल टेकनिक के लिए उनका मज़ाक बनाया था. कई लोगों को लगा था कि उन्होंने गलत किया है. 

यहाँ पर हमें ये समझना चाहिए कि ह्यूमन माइंड में एक डिफ़ॉल्ट सेटिंग हैं. जिसे कॉगनीटिव बायस कहा जाता है. हमारा दिमाग पुरानी सभ्यताओं के जड़ में ही फंसा हुआ है. इसलिए जब कभी हमें कुछ अलग देखने को मिलता है तो हमारा दिमाग उसे एक्सेप्ट नहीं कर पता है. जिसका वो विरोध करने की कोशिश करता है. 

बहुत कम आपने देखा होगा कि किसी भी अन कन्वेंशनल चीज़ को पहली बार में लोगों से सहमती मिल गयी हो. इसके पीछे का रीजन यही है कि इंसानी दिमाग की बनावट ही कुछ ऐसी है. 

उदाहरण के लिए आप एक फ्रोजेन पौंड की कल्पना कीजिये. ये भी कल्पना कीजिये कि लोग उसमे स्केटिंग कर रहे हैं. लेकिन आप देखेंगे कि लोग उसमे कभी भी अकेले स्केटिंग करने नहीं जायेंगे. वो तभी जायेंगे जब कुछ और लोग स्केटिंग कर रहे होंगे. बल्कि गौर करने वाली बात ये है कि अकेले स्केटिंग करना ज्यादा सेफ है. फिर भी लोग ऐसा नहीं करते हैं. 

बिहेवियर इकोनॉमिक्स में हुई रिसर्च ये साबित करती है कि कॉगनीटिव बायस आपके फाइनेंसियल और बिजनेस से जुड़े हुए फैसलों को भी प्रभावित करता है. 

जैसा कि आपने समझा कि हमारे बॉक्सेस हमारी थिंकिंग को कंट्रोल भी करते हैं और प्रभावित भी करते हैं. लेकिन एक बार जब आप इनसे अवेयर हो जाते हैं. तब आप इनको और बेहतर से समझ पाते हैं. इसी के साथ कलेक्टिव मॉडल ऑफ़ वर्ल्ड को भी आप समझ पाते हैं. इसका मतलब साफ़ है कि जब तक आप अपने बॉक्स को समझ नहीं पायेंगे वो अधूरा ही रहेगा. 

अगर आपको खुद का एक नया बॉक्स बनाना है तो सबसे पहले पुराने वाले को पहचानिए और चैलेन्ज करने की कोशिश करते रहिये. खुद से और अपने चाहने वालों से बातें करते रहिये. अपने साथ काम करने वालों से भी कुछ सवाल करिए. उनसे ऑब्जेक्टिव के बारे में पूछिए. उनसे डर के बारे में पूछिए. उनसे सपनों के बारे में पूछने की कोशिश करिए. अब आप सोचते होंगे कि ये सब करने से क्या ही फायदा होगा? तो फिर लेखक आपको बता देना चाहते हैं कि ऐसा करने से गज़ब का फायदा होगा. आपको पता चलेगा कि आप कहाँ पर रुक रहें हैं. ऐसा कौन सा बॉक्स है जो आपको लगातार पीछे खींचने की कोशिश कर रहा है. इस एक्सरसाइज से आप खुद को और बेहतर पहचान पायेंगे. 

एक बात और आपको बता दें कि कोई भी सही या गलत  बॉक्स नहीं है. ये डिपेंड हमारे ऊपर करता है कि हम कौन सा बॉक्स चुनते हैं? हमको खुद से सवाल करना होगा कि हमारे लिए कौन सा बॉक्स सही है और कौन सा बॉक्स सही नहीं है? इसी के साथ ही साथ हमें खुद से ये भी पूछना पड़ेगा कि क्या ये बॉक्स हमारे को कल काम आएगा? 

अब हम एक धारणा को एक एग्जाम्पल से समझने की कोशिश करते हैं. वीडियो गेम्स का एक बहुत बड़ा मार्केट है. लेकिन यही देखा जाता है कि सभी कम्पनियों के टार्गेट टीनेज बच्चे या फिर युवा होते हैं. ऐसा क्यों है? और इसे किसी ने चैलेन्ज क्यों नहीं किया है? आखिर कोई क्यों ही विनिंग सूत्र को बदलने की कोशिश करेगा. 

लेकिन इसका दूसरा पहलु भी समझने की कोशिश करनी चाहिए. अगर कोई कंपनी नये बॉक्स को डेवलप करे. और अपने टार्गेट ऑडियंस में औरतों और एडल्ट्स को भी शामिल करने की कोशिश करे तो उसका सेल्स डबल-ट्रिपल बढ़ सकता है. 

इसलिए कहा गया है कि नए बॉक्स को डेवलप करने के लिए आपके अंदर इनोवेशन भी होना ही चाहिए. 

स्टेप-2- फ्रेश इनपुट से खुद को ताकतवर बनाइए
आपने कई लोगों को ये कहते भी सुना होगा कि ग्रेट इनोवेशन ग्रेट जीनियस के पास से ही आते हैं. अगर आपको इन बातों पर भरोसा है तो फिर आपने गलत ट्रेन पकड़ ली है. आपको जल्द से जल्द अपनी ट्रेन बदलनी पड़ेगी. 

अगर हम अपने दिमाग को ऑटो पायलट मोड से बाहर ले आयें और अपने कंट्रोल में रखें तो फिर ये मुमकिन है कि हमारे पास भी कोई गेम चेंजिंग आईडिया होगा. 

इसके लिए हमें बस अपने दिमाग को थोड़ा सा सजग रखना पड़ेगा. हमें इन्फोर्मेशन को लेते आना चाहिए. हमें पुराने बॉक्स को चैलेन्ज करते भी आना चाहिए. 

ये जानना बहुत इंट्रेस्टिंग है कि ख़ुशी आपकी सक्सेस की बाय प्रोडक्ट हो सकती है, लेकिन सिर्फ सक्सेस से ही ख़ुशी आए इसका कोई ठोस सबूत नहीं है.

पूरा सार ये है कि पूरी गणित आकर अटक जाती है आपके पॉजिटिव एक्सपीरियंस पर, अगर आपके पास पॉजिटिव एक्सपीरियंस है तो उससे आपको ख़ुशी मिलेगी और उस ख़ुशी से सक्सेस, इसलिए सक्सेस तक जाने का रास्ता है पॉजिटिव एक्सपीरियंस. अब यहां जबर सवाल ये उठता है कि ये पॉजिटिव एक्सपीरियंस आखिर किस चिड़िया का नाम है? और इसे पाया कैसे जाता है, इसी सवाल का जवाब लेखक आपको आगे के अध्याय में देंगे.

सबसे पहले ऐसा करिए कि खुद से सवाल करना शुरू करिए, जब आप खुद से सवाल करने की शुरुआत कर देंगे तो साफ़ है कि आप पहला कदम ख़ुशी की तरफ बढ़ा देंगे,आप खुद को एक लेखक समझिये अपनी ज़िन्दगी की कहानी का, अब इस कहानी का आप कुछ भी कर सकते हैं, अपने एक्सपीरियंस से सवाल करिए कि क्या आपको ये एक्सपीरियंस ख़ुशी तक लेकर जाने वाले हैं? जवाब आपके सामने आ जाएगा. 

इस किताब में लेखक ने ये भी बताया है कि बहुत ज़रूरी हो जाता है कि आप इन्फोर्मेशन को इकट्ठा करना शुरू कर दें. उन्होंने ऐसी कई फील्ड भी सजेस्ट की है. जिसके बारे में आपको ज्ञान होना चाहिए. 

वो फील्ड हैं- सोसाइटी, समाज, वातावरण, कस्टमर, कम्पटीशन, इंडस्ट्री. लेखक बताते हैं कि कोशिश करिए कि इन सब चीज़ों के बारे में आप पढ़ते रहें. 

इस प्रोसेस को समझने के लिए हम अल्ट्रा गेम कंपनी का एग्जाम्पल लेते हैं.

ये कंपनी ये समझती थी कि उनके गेम्स मोस्टली टीनेज बॉयज और यंग लड़के ही खेलते हैं. लेकिन फिर उन्होंने एक सर्वे करवाया. जिसके नतीजों ने इनकी आँखे ही खोल दी थी. नतीजों में ये निकलकर सामने आया था कि इंटरनेट के बूम के कारण गेम की तरफ बड़ों का भी काफी ज्यादा रुझान आ गया है.

अगर परसेंटेज की बात करें तो ये निकलकर सामने आया था कि गेम खेलने वालों की एवरेज एज 37 है. इसमें महिलाओं की 42 प्रतीशत की हिस्सेदारी भी है. 

इसी के साथ उन्हें सर्वे में ये भी पता चला था कि जो लोग गेम खेलते हैं. उन्हें नो सेक्स नो वोइलेंस के गेम पसंद हैं. 

अब जब कंपनी के सामने डेटा था. तो फिर उनके सामने कुछ सवालों के जवाब की तलाश करने का समय भी आ गया था. एक सबसे बड़ा सवाल उनके सामने ये था कि वो ऐसा प्रोडक्ट कैसे लेकर आयें जो कि सभी एज ग्रुप के लोगों के लिए हो? 

इसीलिए इस अध्याय में कहा गया है कि इंसान को हमेशा नए बॉक्स की तलाश करते रहना चाहिए. आपको पता ही नहीं है कि कब कौन सी चाभी आपकी किस्मत को खोल देगी.

स्टेप थ्री और फोर भी हैं कुछ ख़ास
अगर आपको नए इनोवेटिव आईडिया की तलाश है तो फिर आपकी नज़र भी वैसी ही होनी चाहिए. हमेशा एक सूत्र को याद रखिये कि जैसी तलाश हो, वैसी नज़र भी पैदा करने की कोशिश करिए. 

यही रुल इनोवेटिव आईडिया के लिए चलता है. अगर आपको इनोवेटिव आईडिया की तलाश करनी है. तो फिर आपको नए बॉक्सेस पर भी ध्यान देना पड़ेगा. ये भी ज़रूरी है कि अपनी क्रिएटिविटी की लिमिटेशन को तय मत करिए. कई बार ऐसा देखा जाता है कि लोग क्रिएटिव आईडिया को फलने-फूलने का समय ही नहीं देते हैं. 

एक बार जब आपके पास कोई आईडिया आ जाये तो फिर आपकी ज़िम्मेदारी बनती है कि आप उसकी क्राइटेरिया को तय करें. आपका आंकलन इन्टयूशन के बेसिस पर नहीं होना चाहिए. इसी के साथ आपको अपने सपनों को कॉगनिटिव बायस होकर जज भी नहीं करना है. 

अब तक आप ये सीख चुके हैं कि उन बॉक्सेस से बाहर कैसे आना है, जो आपको पीछे की तरफ खींच रहे हैं. अब आगे के फाइनल अध्याय में आप सीखने वाले हैं कि अपने बिजनेस के लिए इनोवेटिव आईडिया की तलाश कैसे करें? 

आप सोचिये कि आपका बिजनेस ताश के पत्तों का घर है. जिसको आप सुधारना चाहते हैं. लेकिन उसे आप बस ऊपर के हिस्सों से ही छू रहें हैं. क्योंकि आपको डर है कि कहीं नींव को छूने से आपका पूरा बिजनेस ही ढह ना जाए. बस आपको अपनी इसी सोच को चैलेन्ज करना है. 

अब जब आप चैलेन्ज करेंगे तो आपको सबसे ज्यादा क्रिएटिव पोटेंशियल की तलाश भी करनी है. 

अब यहाँ ये भी बता देना चाहिए कि बिग बॉक्स का मतलब क्या होता है? बिग बॉक्स का मतलब आपकी सोच से होता है. मतलब साफ़ है कि अवसर को पहचानिए और नज़र सोच को बड़ा रखने की कोशिश करिए. 

आपकी सोच जितनी बड़ी होगी. आपको अपने अवसर उतने ही साफ़-साफ़ नज़र भी आयेंगे. मान लीजिये कि आपको बॉल पेन की कंपनी की शुरुआत करनी है. तो फिर आपको खुद से सवाल करना चाहिए कि क्या आप सभी तरह के पेन का निर्माण नहीं कर सकते हैं? और अगर नहीं कर सकते हैं तो आखिर उसके पीछे कारण क्या है? उन कारण की समीक्षा करना भी आपका ही काम है. 

इसी के साथ अगर आप सभी तरह के पेन का निर्माण कर रहे हैं. तो फिर खुद से पूछिए कि आप प्लास्टिक का भी निर्माण क्यों नहीं कर रहे हैं? आपको अपने पोटेंशियल के ऊपर लगातार सवाल उठाते रहना चाहिए. जितनी दफा आप अपनी क्षमता के ऊपर सवाल करेंगे. उतनी ही दफा आपको नए अवसर नज़र आयेंगे. 

बड़ा सोचो लेकिन क्या बड़ा सोचना इतना ही आसान है? अगर है तो सभी क्यों नहीं कुछ ख़ास कर जाते हैं? अगर आप नए बॉक्स का निर्माण करते हैं तो बड़ा सोचना इतना भी आसान नहीं है. याद रखिये कि जितना बड़ा बॉक्स होगा, अवसर भी उतने ही बड़े होने वाले हैं. इसलिए इंसान को हमेशा ही बड़े अवसरों का चुनाव करना चाहिए.

फ्यूचर बड़ा ही अन सर्टेन है
आपने दो तरह के बिजनेस या फिर कम्पनियों को देखा होगा. एक कम्पनियों में काफी अच्छे बदलाव होते हैं और वो कुछ बढ़िया कर जाती हैं. दूसरी कम्पनियां होती हैं जो कहीं पीछे छूट जाती हैं. क्या आपको इन दोनों तरह की कम्पनियों के बीच का अंतर मालुम है? 

अगर बिजनेस में आपको लॉन्ग टर्म सक्सेस चाहिए तो फिर आपको भविष्य के लिए अपने दिमाग को खोलकर रखना चाहिए. फ्यूचर कुछ भी हो सकता है. लेकिन आपकी ये ज़िम्मेदारी है कि उसके लिए खुद को तैयार रखिये. 

फ्यूचर की तैयारी के लिए अपनी पुरानी सोच को आज ही खत्म कर दीजिये. 

एक कहानी में आते हैं एक आदमी है, जिसका नाम है लेकोमटे, इसके ऊपर इल्जाम है कि इसने फ्रेंच किंग की हत्या की है, इसे कोर्ट से मौत की सजा सुना दी जाती है. सजा इसे साल 1846 में सुनाई जाती है. जब तक केस चल रहा था, ये हमेशा इसी टेंशन में रहा कि सोसाइटी में इसकी इज्जत का क्या होगा?

उम्र कैद के समय भी उसे टेंशन रही कि उसके पास अच्छे कपड़े नही हैं, अंतिम घंटो में भी कुछ सही सोचने के बजाए वो उन लोगों के बारे में सोचता रहा जो उससे अंजान थे. 

अगर आप हमेशा यही सोचते रहेंगे कि आपके बारे में लोग क्या सोचते हैं, तो फिर आप कभी भी अपने दिमाग के उस शांति के अवस्था में नहीं पहुंच पायेंगे, जहाँ आपको पहुंचना चाहिए, आधी जिन्दगी दूसरों के बारे में सोचने में ही लोगों की जिन्दगी खत्म हो जाती है. 

अब सवाल उठता है कि हमें क्या करना चाहिए? सबसे पहले तो खुद को एक टास्क दीजिये कि मुझे अब दूसरों की बात से इफेक्ट नहीं होना है, मुझे अब इसलिए जिन्दगी को नहीं जीना है कि दुनिया मेरे बारे में क्या सोचती है, बल्कि मुझे अपने ख़ुशी के लिए जीना है, जब आप ये पहला टास्क खुद को दे देंगे तब आप आधी जंग जीत चुके होंगे और ख़ुशी के करीब आ जायेंगे.

इसलिए इस किताब में लेखक ने बताया है कि हमे प्रोसपेक्टिव थिंकिंग को अपनाना चाहिए. हमेश हमें खुद से पूछना चाहिए कि आगे क्या हो सकता है? मैं उसे कैसे बदल सकता हूँ? मैं क्या-क्या कर सकता हूँ? 

अपने बिजनेस के लिए कई सारे सीनेरियो के ऊपर ध्यान रखना भी आपका ही काम है. हमेशा अच्छा और बुरा दोनों सिचुएशन को अपने दिमाग में रखकर काम की शुरुआत कीजियेगा.

कुल मिलाकर
अपने लिमिटेड पर्सपेक्टिव को बड़ा करने की कोशिश करिए. जिंदगी के अनुभव को समझने की कोशिश करिए. अवसर को पहचानिए और उसके ऊपर काम करने की कोशिश करिए. 

 

फियर ऑफ़ फेलर आपको पीछे खींचने का काम करेगा. इसलिए निर्भीक रहिये, निडर रहिये और आगे का रास्ता खुद बनाने का प्रयास भी करते रहिये. जिनके सपनें बड़े होते हैं, सफलता भी उनके आगे सर झुकाती है.

 

येबुक एप पर आप सुन रहे थे Thinking in New Boxes By Luc de Brabandere and Alan Iny

ये समरी आप को कैसी लगी हमें yebook.in@gmail.com पर ईमेल करके ज़रूर बताइये.

आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे.

अगर आप का कोई सवाल, सुझाव या समस्या हो तो वो भी हमें ईमेल करके ज़रूर बताएं.

और गूगल प्ले स्टोर पर ५ स्टार रेटिंग दे कर अपना प्यार बनाएं रखें.

Keep reading, keep learning, keep growing.


Post a Comment

0Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

YEAR WISE BOOKS

Indeals

BAMS PDFS

How to download

Adsterra referal

Top post

marrow

Adsterra banner

Facebook

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Accept !