Peter F. Drucker
इन पाँच सवालों से अपने बिजनेस को एक नई ताकत दें।
दो लफ्जों में
द फाइव मोस्ट इंम्पार्टेंट क्वेश्चन्स यू विल एवर आस्क अबाउट योर आर्गनाइज़ेशन ( The Five Most Important Questions You Will Ever Ask About Your Organization ) में हम उन पाँच सवालों के बारे में जानेंगे जिसे पूछकर आप अपने बिजनेस को पूरी तरह से बदल देंगे। इन सवालों के जवाब से आपको अपने आर्गनाइज़ेशन के मिशन के बारे में क्लैरिटी मिलेगी और आप उसे बेहतर तरह से चला पाएंगे। यह सवाल हर तरह के आर्गनाइज़ेशन में एक नई जान डाल सकते हैं।
यह किसके लिए है
-वे जो एक आन्त्रप्रिन्योर हैं।
-वे जो एक नान-प्राफिट संस्था चलाते हैं।
-वे जो यह जानना चाहते हैं कि कुछ बिजनेस कामयाब क्यों हो जाते हैं।
लेखक के बारे में
पीटर ड्रकर ( Peter F. Drucker ) आस्ट्रिया में पैदा हुए थे। वे एक अमेरिकी मैनेजमेंट कंसल्टेंट थे। वे एक एजुकेटर और एक लेखक थे जो कि बिजनेस फिलासफी पर लिखा करते थे। उनकी फिलासफी पर ही नए जमाने के बिजनेस बने हैं।
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
ज्यादातर बिजनेस एक "मैं भी" बिजनेस होते हैं। उनमें और उनके काम्पटीटर्स में कोई भी अंतर नहीं होता। हर कोई मोबाइल फोन बेच रहा है, तो "मैं भी" फोन बेचुंगा। हर कोई इंतरनेट से बिजनेस कर रहा है, तो "मैं भी" इंतरनेट से बिजनेस करुँगा। इस तरह के बिजनेस कुछ बड़ा करने के लिए नहीं बल्कि सिर्फ फायदा कमाने के लिए निकलते हैं। लेकिन अगर आप यह किताब पढ़ रहे हैं, तो आप एक "मैं भी" बिजनेस नहीं करना चाहते।
यह किताब बताती है कि किस तरह से आप अपने बिजनेस के गोल्स को फतह कर सकते हैं और एक खास मकसद के लिए काम कर सकते हैं। यह किताब आपको उन पाँच सवालों के बारे में बताती है जिसे पूछकर आप अपनी कंपनी की दशा और दिशा दोनों बदल सकते हैं और खुद को एक अलग बिजनेस के रूप में उभार सकते हैं।
-अपने ग्राहकों को जानना जरूरी क्यों है।
-मिशन होने से किस तरह से एक संस्था बेहतर तरीके से काम कर सकती है।
-आप नतीजों तक पहुंचने के लिए किस तरह से प्लान बना सकते हैं।
एक क्लीयर मिशन होने से आप यह तय कर पाएंगे कि आपकी कंपनी को क्या काम करना है।
पाँच सवालों में से सबसे पहला सवाल है - हमारी कंपनी का मिशन क्या है? हम क्या हासिल करने के लिए काम कर रहे हैं? यही आपके आर्गनाइज़ेशन के होने की वजह है और यही मिशन यह तय करेगा कि आपको किस तरह से कौन से काम करने हैं। आपका मिशन स्टेटमेंट इतना छोटा होना चाहिए कि वो एक टी-शर्ट पर आराम से प्रिंट किया जा सके।
एक्ज़ाम्पल के लिए साउथवेस्ट एयरलाइन्स को ले लीजिए, जिसका मिशन है - दुनिया का सबसे सस्ता एयरलाइन बनना। साउथवेस्ट काफी समय से प्राफिट में है और इसकी वजह यह है कि उसके हर एक कर्मचारी को पता है कि उन्हें किस चीज़ को हासिल करने के लिए काम करना है। उन्हें हर वो काम करना है जिससे कि वे अपनी कीमतों को कम रख सकें। वे दूसरी एयरलाइन्स के मुकाबले बहुत कम सर्विस देते हैं, जिससे कि उनकी कीमतें भी कम होती हैं।
जब भी उनके किसी मैनेजर को कोई फैसला लेने में परेशानी होती है, वो खुद से सिर्फ एक सवाल पूछते हैं - क्या इस काम को करने से हम दुनिया के सबसे सस्ते एयरलाइन बन सकते हैं? अगर इसका जवाब हाँ में मिला, तो वे उस काम को करते हैं।
इस तरह से मिशन के क्लीयर होने से आपके हर कर्मचारी को यह पता होता है कि उन्हें कौन से फैसले लेने हैं और कौन से नहीं। उन्हें यह पता होता है कि किस मौके का फायदा उठाना उनकी कंपनी के लिए अच्छा होगा और कौन से मौके उनके लिए नहीं हैं। वे यह तय कर पाते हैं कि कौन से काम पर उन्हें ज्यादा ध्यान देना है और कौन से काम उन्हें नहीं करने हैं।
लेकिन यह जरूरी नहीं है कि आपके मिशन को हमेशा के लिए एक ही होना पड़े। समय और जरूरत के हिसाब से आप इसे बदल भी सकते हैं। इसलिए आपको यह खोजना होगा कि आप अपने आर्गनाइज़ेशन के किन उसूलों से समझौता कर सकते हैं और किन उसूलों से नहीं कर सकते।
एक्ज़ाम्पल के लिए धर्म को ले लीजिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि जमाना कितना बदल जाए, हर धर्म के कुछ अपने नियम हैं जो कभी भी नहीं बदल सकते। हाँ, उन्होंने कुछ नियमों के साथ समझौता कर लिया है, जैसे कि अब वे सारा दिन खुद पूजा ना कर के स्पीकर पर गाने और घंटियां बजाते हैं। लेकिन उनके अब भी कुछ ऐसे उसूल हैं जो हजार साल से नहीं बदले। यही उनके वो उसूल हैं जिससे वे समझौता नहीं कर सकते।
अपने ग्राहकों को समझ कर आप उन्हें एक बेहतर सर्विस दे पाएंगे।
दूसरा सवाल जो आपको पूछना है वो यह है कि मेरा ग्राहक कौन है?
इस सवाल के जवाब में आपको दो तरह के ग्राहकों को खोजना है - आपके प्राइमरी ग्राहक और सपोर्टिंग ग्राहक। प्राइमरी ग्राहक वो होता है जिसे आपके प्रोडक्ट से सीधा फायदा मिलता है और सपोर्टिंग ग्राहक वो होता है जिसे आप संतुष्ट तो करना चाहते हैं, लेकिन वो आपके फोकस में नहीं है। इन दोनों को पहचानने के बाद ही आप अपने प्रोडक्ट को इस तरह से डिजाइन कर पाएंगे जिससे आपके प्राइमरी ग्राहक को फायदा मिले और साथ ही सपोर्टिंग ग्राहक भी खुश रहे।
एक्ज़ाम्पल के लिए एसर प्रिडेटर के लैपटॉप को ले लीजिए, जो कि गेमिंग लैपटॉप बनाता है। उसका प्राइमरी ग्राहक वो है जो सिर्फ लैपटॉप में गेम खेलना चाहता है, जबकि उसका सपोर्टिंग ग्राहक हर लैपटॉप को इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति हो सकता है। इस तरह से ले अपने लैपटॉप को कुछ इस तरह से डिजाइन कर के उसकी मार्केटिंग करते हैं जिससे वो गेमर्स को अपनी तरफ खींच सकें। साथ ही वे अपने लैपटॉप को इस तरह से डिज़ाइन करते हैं कि उससे एक आम व्यक्ति की भी जरूरतें पूरी हो सकें।
जब आपको यह पता होता है कि आपके ग्राहक कौन हैं, तो आप एक दूसरे मार्केट में उतरने से पहले अच्छी तैयारी कर पाते हैं। आप यह देख पाते हैं कि क्या यह मार्केट आपके प्रोडक्ट के लिए तैयार है। एक्ज़ाम्पल के लिए भारत में बहुत से ऐसे प्रोडक्ट आए जिससे एक प्रेग्नेंट महिला या एक महिला जो अभी अभी माँ बनी है, वो अपनी सेहत का खयाल रख सके। लेकिन यहां की महिलाओं ने उस प्रोडक्ट को नहीं खरीदा, क्योंकि वे अपने से ज्यादा अपने बच्चों की सेहत की फिक्र करती हैं। फिर बच्चों की सेहत के प्रोडक्ट जैसे काम्प्लान, बार्न वीटा और हार्लिक्स भारत में आए और वे कामयाब भी हैं। अगर आपको अपने ग्राहकों के बारे में पता होगा तो आप पहले ही यह पता लगा पाएंगे कि इस नए मार्कट में आपका सामान कितना बिकेगा। इसके बाद आप यह फैसला कर पाएंगे कि आपको उसमें उतरना चाहिए या नहीं।
लेकिन साथ ही आपको बदलते वक्त पर भी ध्यान देते रहना चाहिए। अगर आपके अपने ग्राहक ही समय के साथ बदल रहे हैं या फिर खत्म हो रहे हैं, तो आपको अपनी कंपनी का फोकस भी शिफ्ट करने के बारे में सोचना चाहिए।
एक कामयाब आर्गनाइज़ेशन यह जानता है कि उसके ग्राहकों को क्या पसंद है।
इसके बाद जो तीसरा सवाल आपको पूछना है वो है - मेरे ग्राहकों को क्या पसंद है? यह जानकर आप पता कर पाएंगे कि आपको अपने प्रोडक्ट के किन फीचर्स पर ज्यादा ध्यान देना है और किन्हें अनदेखा करना है।
एक्ज़ाम्पल के लिए बहुत सी कंपनियां हैं जो अपनी वेबसाइट बनाते वक्त ग्राफिक्स पर बहुत ज्यादा ध्यान देती हैं। उन्हें यह लगता कि ग्राहकों को बहुत अच्छे ग्राफिक्स वाली साइट पसंद होती है। लेकिन जब उन्हें यह पता लगा कि उनके ग्राहक फास्ट और स्मूथ चलने वाली साइट को ज्यादा पसंद करते हैं, तो वे चौंक गए। ग्राहकों को चाहिए कि जब वे एक पेज को लोड करें, तो उन्हें बिलकुल इंतजार न करना पड़े और जब वे उस पेज पर कहीं भी क्लिक करें, तो उन्हें तुरंत रेस्पांस मिले। यह जानने के बाद उन्होंने अपनी वेबसाइट को अलग तरह से डिजाइन किया।
बहुत बार हम ग्राहकों की जरूरतों को जानने के बजाय खुद से यह तुक्का मारने लगते हैं कि उन्हें किस चीज़ की जरूरत होगी। बहुत बार हमें लगता है कि हमारा अंदाजा गलत नहीं हो सकता और यही गलत फहमी हमें ले डूबती हैं। जब आपको यह पता होगा कि आपके ग्राहक किस चीज़ को ज्यादा पसंद करते हैं, तो आप उस चीज़ पर ज्यादा फोकस देकर उन्हें खुश कर पाएंगे। ऐसे में आपको हवा में तीर नहीं मारना चाहिए बल्कि अपने ग्राहकों से जाकर यह पूछना चाहिए कि उन्हें किस चीज़ की जरूरत है।
एक्ज़ाम्पल के लिए आइएमवीयू नाम के एक सोशल मीडिया को ले लीजिए, जहाँ पर आप अपने अवतार बना सकते हैं और एक वर्चुअल दुनिया में जा सकते हैं। जब यह सोशल मीडिया लाँच हुआ था, तो इसके क्रीएटर्स को लग रहा था कि उनके ग्राहक इस सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपने दोस्तों से बात करने के लिए करेंगे। इसलिए वे अपने ग्राहकों से बार बार यह कह रहे थे कि वे अपने दोस्तों को भी आइएमवीयू पर लेकर आएं। लेकिन जब वे हार गए, तो उन्होंने सर्वे किया।
सर्वे से उन्हें पता लगा कि उनके ग्राहक इस वर्चुअल दुनिया में आकर अपने दोस्तों से बात नहीं करना चाहते थे। यह काम तो वे अपनी दुनिया में भी कर सकते हैं। वे वहाँ पर अजनबी लोगों से दोस्ती करने आते थे। जब क्रीएटर्स को यह बात पता लगी, तो उन्होंने अलग तरह से काम करना शुरू किया, जिससे आज आइएमवीयू एक कामयाब कंपनी है।
लेकिन अपने प्राइमरी ग्राहकों की जरूरतों के साथ साथ अपने सपोर्टिंग ग्राहकों की भी जरूरतों पर ध्यान देना मत भूलिए। उनके लिए भी कुछ काम करते रहिए।
एक कामयाब आर्गनाइज़ेशन वो होता है जो कि अच्छे नतीजे पैदा कर सके।
चौथा सवाल जो आपको खुद से पूछना है वो है - हमारे नतीजे क्या हैं? अलग अलग कंपनियों के लिए अलग अलग नतीजे मायने रख सकते हैं। ज्यादातर कंपनियां सिर्फ प्राफिट पर फोकस करती हैं और उनके लिए सिर्फ पैसा मायने रखता है। जबकि कुछ नान-प्राफिट कंपनियों के लिए यह मायने रख सकता है कि उनके काम से कितने लोगों को फायदा हुआ। आपको सबसे पहले यह पता करना होगा कि आपकी कंपनी किस तरह के नतीजों को हासिल करने के लिए काम कर रही है।
जब आपको यह पता लगेगा कि आपकी कंपनी सही रिजल्ट नहीं पैदा कर पा रही, तो आप अपने काम करने के तरीके को बदल सकेंगे। छोटे छोटे नतीजे ही आपको बड़े बड़े नतीजों तक लेकर जाएंगे, इसलिए यह जरूरी है कि आप उन छोटी बातों पर भी ध्यान दीजिए। लेकिन छोटे नतीजों के चक्कर कभी भी यह मत भूलिए कि लम्बे समय में आपको किस तरह के नतीजे चाहिए।
हर कंपनी दो तरह के नतीजों को हासिल करने के लिए काम कर सकती है - क्वैलिटेटिव और क्वान्टिटेटिव। क्वैलिटेटिव नतीजों का मतलब उन नतीजों से है जिसे आप नाप नहीं सकते। एक्ज़ाम्पल के लिए, आपका प्रोडक्ट इस्तेमाल करने से आपके ग्राहकों की जिन्दगी किस तरह से बेहतर बन गई, यह एक क्वैलिटेटिव नतीजा है। हर ग्राहक आपके प्रोडक्ट को अलग काम के लिए इस्तेमाल कर सकता है और उसके हिसाब से उसे अपनी जिन्दगी में अलग नतीजे देखने को मिल सकते हैं। क्योंकि यह सबके लिए अलग होता है, आप इसे नाप नहीं सकते। लेकिन फिर भी आपको यह देखना होगा कि किस तरह से आपका आर्गनाइज़ेशन दुनिया में बदलाव ला रहा है और किस तरह से आप उस बदलाव को बढ़ावा दे सकते हैं।
दूसरे तरह के नतीजे क्वान्टिटेटिव होते हैं, जिन्हें आप नप सकते हैं। कितने सेल्स आए, कितने कंप्लेन्स आए, कितना प्राफिट हुआ, कितने पैसे खर्च हुए। यह सारी बातें भी जरूरी होती हैं क्योंकि इससे ही आपकी कंपनी चलती रहेगी। जब आप इन नतीजों को बेहतर बना पाएंगे, तो आप अपनी कंपनी को आसानी से चला पाएंगे।
एक अच्छा प्लान बनाने से आप यह पता कर पाएंगे कि आपको अपनी मंजिल किस तरह से हासिल करना है।
आखिरी सवाल जो हर आर्गनाइज़ेशन को पूछना चाहिए वो है - मेरा प्लान क्या है? जब आपको यह पता नहीं होगा कि आपका प्लान क्या है, तब तक आप नतीजों तक कभी नहीं पहुंच पाएंगे। अपने मिशन को पूरा करने के और अपने गोल्स को हासिल करने के लिए आपको अपना बजट बनाना चाहिए और उस बजट के हिसाब से काम करना चाहिए।
प्लान बनाते वक्त आप यह भी देखिए कि रास्ते में क्या मुश्किलें आ सकती हैं। यह देखिए कि आने वाले वक्त में माहौल किस तरह से बदल सकता है। इसके बाद यह भी प्लान कीजिए कि आप किस तरह से उन परेशानियों से बाहर निकलेंगे।
प्लान बनाते वक्त आपको उसे स्टेप्स में बाँटना चाहिए। आपका प्लान ऐसा होना चाहिए जिसे पढ़ने के बाद हर किसी को यह समझ में आ जाए कि करना क्या है। इस तरह से आप सभी कर्मचारियों को यह समझा पाएंगे कि उन्हें क्या करना है। आपका प्लान ऐसा होना चाहिए जो कि आपके लम्बे समय के गोल्स तक आपको लेकर जा सके।
बहुत से लोग अपने एक प्लान में बहुत सी चीजों को हासिल करने के बारे में सोचने लगते हैं। ऐसा करने से आप अपने फोकस को खत्म कर देंगे और किसी भी काम को करने में अपनी पूरी एनर्जी नहीं लगा पाएंगे। इसलिए आपके प्लान में सिर्फ 5 गोल्स होने चाहिए।
समय और जरूरत पड़ने पर अपने प्लान को बदलने से पीछे मत हटिए। अगर आपका प्लान काम नहीं कर रहा है या फिर अचानक से कुछ परेशानियां सामने आ जाएं, तो अपने प्लान को बदलने से पीछे मत हटिए। आपका प्लान आपके लिए जरूरी नहीं हैं, बल्कि आपके गोल्स आपके लिए जरूरी हैं। इसलिए अगर प्लान गोल्स तक नहीं लेकर जाएगा, तो उसे बदल दीजिए।
यह भी हो सकता है कि रास्ते में आपको कुछ ऐसी बातें पता लग जाएं जो शुरुआत में पता नहीं थी। हो सकता है कि बीच में आपके पास एक ऐसा आइडिया आ जाए जिससे आप अपनी मंजिल को पहले से जल्दी हासिल कर सकें। ऐसे में भी आपको नई जानकारी का इस्तेमाल करके अपने प्लान को बदलना चाहिए।
तो यह थे वो पाँच सवाल जिनकी मदद से आप अपने बिजनेस में एक नई जान डाल सकते हैं। इनका इस्तेमाल कीजिए और अपने बिजनेस को आगे लेकर जाइए।
कुल मिलाकर
किसी भी आर्गनाइज़ेशन को कामयाब बनने के लिए खुद से यह पाँच सवाल पूछने चाहिए। इन्हीं सवालों के जवाब जानकर आप अपने ग्राहकों के लिए वो प्रोडक्ट बना पाएंगे जिससे कि वे संतुष्ट हो सकेंगे।
मेरा मिशन क्या है?
मेरे ग्राहक कौन हैं?
मेरे ग्राहकों को क्या पसंद है?
मेरे नतीजे क्या हैं?
मेरा प्लान क्या है?
दूसरे कामयाब आर्गनाइज़ेशन को देखिए।
अगली बार जब भी आप किसी कामयाब आर्गनाइज़ेशन के बारे में सुनें, तो खुद से पूछिए कि उन्हें कौन सी चीज़ कामयाब बनाती है। उनका मिशन क्या है? वे किस तरह से अपने ग्राहकों के जरूरतों का पता लगाकर उसे पूरा करते हैं? उनके नतीजे क्या हैं और वे किस तरह से उसे बढ़ाने पर काम कर रहे हैं। इस तरह से आप उनसे कुछ बातें सीख कर उसे अपनी जिन्दगी में लागू कर पाएंगे।
