The Brand Gap

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The Brand Gap

Marty Neumeier
गुमनामी से ब्रांड बनने तक का सफर

दो लफ्जों में
ये किताब आपको समझाती है कि कैसे खुद को एक ब्रांड बनाकर कोई कंपनी मार्केट में छा सकती है। इसमें ब्रांडिंग के पांच ऐसे नियम बताए गए हैं जिनकी मदद से आप स्ट्रेटेजी और क्रिएटिविटी का बेहतर तालमेल करके अपने बिजनेस को ऐसा ब्रांड नेम बना देंगे जो सबके दिलो दिमाग पर छा जाए। 

ये किताब किनको पढ़नी चाहिए
- जो व्यक्ति अपने काम या बिजनेस को बड़ा नाम और पहचान देना चाहता है ताकि ग्राहक उसे नोटिस करें
- जो व्यक्ति एक सफल मार्केटिंग प्लान डेवलप करना चाहता है
- हर वह व्यक्ति जो किसी कंपनी की स्ट्रैटेजी या क्रिएटिव टीम से जुड़ा है 

लेखक के बारे में
मार्टी न्यूमियर एक ब्रांडिंग विशेषज्ञ हैं। उन्होंने एप्पल, नेटस्केप, ईस्टमैन कोडक और दूसरी बहुत सी जानीमानी कंपनियों के साथ काम किया है।

  ये किताब मुझे क्यों पढ़नी चाहिए?
सबसे पहले ब्रांड का मतलब समझिए। ब्रांड बस एक लोगो या सुंदर सा डिजाइन नहीं है। ये आपका कोई "कॉर्पोरेट आइडेंटिटी सिस्टम" या प्रोडक्ट भी नहीं है। ब्रांड एक पर्सेप्शन है। एक फीलिंग है, एक विचार है। यानि आप इसे कंट्रोल नहीं कर सकते। हालांकि आप ये जरूर कर सकते हैं कि आपकी कंपनी जो भी प्रोडक्ट बनाती है वो कस्टमर को अच्छी तरह समझ भी आए और पसंद भी। ऐसा करने पर ग्राहक आपकी कंपनी के बारे में अच्छा सोचने लगते हैं और ये अच्छी सोच ही आपका ब्रांड बनाती है। इस समरी में आप उन पांच ब्रांडिंग नियमों के बारे में डीटेल में पढ़ेंगे जिनको अपनाकर आप ग्राहकों में अपनी कंपनी के बारे में वो पॉजिटिव फीलिंग डेवलप करा सकेंगे जैसी आप उम्मीद करते हैं। इस समरी को पढ़कर आप जानेंगे कि जॉन डीरे रीयल इस्टेट के बिजनेस में क्यों नहीं है? आपको अपना मूल स्वभाव क्यों नहीं बदलना चाहिए और कोका-कोला का ब्रांड इतना पावरफुल क्यों है?

एक बेहतरीन ब्रांड बनने के लिए स्ट्रैटेजी और क्रिएटिविटी को मिलाकर ब्रांड गैप कम करना पड़ता है।
क्या आप सोच सकते हैं कि कोका कोला ब्रांड की वैल्यू $70 बिलियन है यानि कंपनी की टोटल वैल्यू का 60 परसेंट। कोका-कोला ऐसी अकेली कंपनी नहीं है। आज की तारीख में किसी भी कंपनी की वैल्यू उसके ब्रांड से ही बनती है। अब कोई ब्रांड आखिर इतना बड़ा बनता कैसे है? इसकी शुरुआत होती है ब्रांड गैप को बंद करके। वो गैप जो स्ट्रैटेजी और क्रिएटिविटी के बीच होता है। बिजनेस में दो बातें बहुत मायने रखती हैं। मार्केटिंग और प्रेजेंटेशन। स्ट्रैटेजी बनाने वाले लोग आम तौर पर मार्केटिंग डिपार्टमेंट से जुड़े होते हैं। ये लोग एनालिटिकल और लॉजिकल होते हैं। यानि हम ये कह सकते हैं कि इनके दिमाग की लेफ्ट साइड ज्यादा एक्टिव होती है। क्रिएटिविटी से जुड़े लोग डिजाइनिंग और प्रेजेंटेशन जैसी चीजें देखते हैं। ये लोग इमेजिनेशन, इन्ट्यूशन और विजुअल स्किल के माहिर होते हैं। यानि इनका राइट ब्रेन ज्यादा एक्टिव होता है। और जब भी इन दो बिल्कुल अलग स्वभाव की टीमों के बीच तनाव या मतभेद होता है ब्रांड गैप बनने और बढ़ने लगता है। शायद आपने भी अपने वर्कप्लेस में इसका अनुभव किया होगा। ये भी हो सकता है कि आप कागज पर तो बहुत अच्छा बिजनेस प्लान डेवलप कर लें पर हकीकत में वो ग्राहकों के आगे फेल हो जाए। इसके पीछे ब्रांड गैप का हाथ हो सकता है। इस तरह की बातें आज बड़ी समस्या बनती जा रही हैं क्योंकि अगर आपका ब्रांड ही बिखरा होगा तो आप मार्केट में कितने दिन टिक पाएंगे? इसे इस तरह से समझ सकते हैं- ब्रांड गैप वाली कंपनियां अपनी पहचान नहीं बना पाती इसलिए वे ग्राहकों को खुद से जोड़ नहीं पातीं और जब ग्राहक कंपनी से जुड़ते ही नहीं तो वो कंपनी के प्रोडक्ट्स भी क्यों खरीदेंगे। एक दो बार ले भी लें पर परमानेंट ग्राहक तो नहीं बन पाएंगे। लेकिन जाने माने ब्रांड्स के मामले में ऐसा नहीं होता। यहां ग्राहकों और कंपनियों के बीच ऐसी कोई दूरी ना के बराबर होती है। आसान शब्दों में कहें तो ग्राहकों का उस कंपनी के साथ एक मजबूत कनेक्शन होता है। वे जानते हैं कि कंपनी के प्रोडक्ट्स उनकी कौन सी उम्मीदों पर खरे उतरते हैं। उदाहरण के लिए कोका-कोला, एप्पल और नाइकी जैसी कंपनियों ने ऐसे ब्रांड की तरह लोगों के दिल और दिमाग में जगह बनाई है कि लोग इनको खुशी, ब्यूटी और स्टाइल का दूसरा नाम मानते हैं। यानि वो सब जो लोग अपने लिए चाहते हैं। किसी भी ब्रांड का मकसद यही होता है कि वो अपनी आकर्षक और अलग पहचान बनाए और इसे मेंटेन रखे। ऐसे हर बड़े ब्रांड ने इसके लिए ब्रांडिंग के पांच नियमों में महारत हासिल की है। इनके बारे में आप आने वाले लेसन्स में सीखेंगे। 

लोग हर अनयूजुअल या अनएक्सपेक्टेड चीज पर गौर करते हैं। आदिम समाज के लिए ये आदत उनके सर्वाइवल में काम आई और उनको खतरों से बचाया। आज की तारीख में आपका ब्रांड इस आदत का इस्तेमाल अपनी ग्रोथ के लिए कर सकता है। इसलिए दूसरों से अलग होना किसी भी ब्रांड की सफलता का पहला नियम है। आपका ब्रांड दूसरों से अलग है या नहीं इसे तीन सवालों से समझा जा सकता है। अगर आप इनके जवाब प्रभावशाली ढंग से नहीं दे सकते तो आपमें और दूसरों में कोई फर्क नहीं है। पहला सवाल आपकी कंपनी का नाम क्या है? ये सवाल तो तो बड़ा आसान है। आप जॉन डीरे हैं। यानि आपकी कंपनी का नाम है जॉन डीरे। अगला सवाल आपकी कंपनी क्या करती है? हमारी कंपनी ट्रैक्टर और इसके पार्ट्स बनाती है। तीसरा सवाल आपके प्रोडक्ट आपके जैसी बाकी कंपनियों से क्यों अलग है? अब ये हुआ मुश्किल सवाल। अगर आप इसके जवाब में ये बोल दें कि हम अच्छे ट्रैक्टर बनाते हैं या बहुत काम आने वाली चीज बनाते हैं तो इसका मतलब हुआ आपका खेल खत्म। यानि ये जवाब यूजलेस है। क्योंकि हर कंपनी अच्छे और काम के प्रोडक्ट्स बनाती है। अगर आप ये बोलते हैं कि आपके प्रोडक्ट्स इन सबसे अच्छे हैं तो फिर से ये यूजलेस जवाब होगा। क्योंकि सब यही बोलते हैं। इसका कोई अच्छा और वजनदार जवाब ढूंढने के लिए जॉन डीरे के उदाहरण पर वापस चलते हैं। इनका कहना है कि ये ऐसे प्रोडक्ट्स बनाते हैं जिन पर किसान पीढ़ियों से भरोसा जता रहे हैं। यानि जॉन डीरे के तीनों जवाब बड़े सरल हैं पर एक दूसरे को कॉम्प्लिमेंट करते हैं। ये जवाब दूसरों से अलग होने के उस बड़े रास्ते की तरफ ले जाता है जो है "फोकस्ड रहना।" ऐसा ब्रांड अपनी ताकत जानता है। इसे पता होता है कि ये दूसरों से अलग क्यों है और लोगों के दिलों पर क्यों छाया हुआ है। अगर जॉन डीरे आगे चलकर घर बेचने लगे तो ये भी बाकी रीयल एस्टेट कंपनियों की तरह होगी और अपनी खासियत खो देगी। कुछ लोगों का सोचना ये होता है कि फोकस्ड होने का मतलब है बस एक ही चीज पर ध्यान लगा देना। यानि अपने आप को बांध देना। क्योंकि इसके बाद हमारे पास गिने चुने रास्ते ही बचते हैं। लेकिन सच तो ये है कि यही एक तरीका है जो आपको सबसे अलग बनाता है।

वॉल्वो का उदाहरण लीजिए। इस ब्रांड की खासियत ये थी कि उनकी कारें मजबूत थीं और मार्केट की बाकी कारों से ज्यादा सेफ थीं। यही उनकी पहचान थी। इसके बावजूद उन्होंने हल्की और फैशनेबल कारें डिजाइन कीं जो काफी ज्यादा अनसेफ थीं। उनके ब्रांड को इसका नुकसान उठाना पड़ा। जब आपने ब्रांड को बनाने में इतनी मेहनत की हो तो अपना एक्स फैक्टर छोड़ने का क्या मतलब बनता है? अगर आपका ब्रांड दूसरों से अलग नहीं है तो फिर ये कुछ भी नहीं है। यानि आप जो हैं वो बने रहिए। अपना रास्ता और मूल स्वभाव मत बदलिए।

सही कोलैबोरेशन किसी ब्रांड को बड़ा बनाने के लिए बहुत जरूरी है।
ब्रांड डेवलप करना किसी एक इंसान के बस की बात नहीं है। इसके लिए तरह-तरह की स्किल वाले बहुत से लोगों को साथ मिलकर काम करना पड़ता है। इसलिए कोलैबोरेशन, ब्रांडिंग का दूसरा महत्वपूर्ण नियम है। आपके पास ब्रांड कोलैबोरेशन के तीन प्रमुख तरीके हैं। पहला ये कि आप किसी दूसरी कंपनी को ब्रांडिंग का काम आउटसोर्स कर सकते हैं। ये "वन-स्टॉप शॉप्स" की तरह A to Z सॉल्यूशन देती हैं। जैसे इवेंट और पीआर से लेकर प्रोडक्ट डिजाइन और पैकेजिंग तक सब काम देखती हैं। ये तरीका बड़ा आसान है लेकिन इसमें कुछ कमियां भी हैं। जरूरी नहीं कि कोई कंपनी हर उस फील्ड में एक्सपर्ट हो जिस पर आप काम कर रहे हैं। ऊपर से बाहरी लोगों को अपने ब्रांड का पूरा कंट्रोल दे देना रिस्की भी तो है। ब्रांड कोलैबोरेशन का दूसरा तरीका है कि आप किसी एजेंसी के साथ काम करें। ब्रांडिंग एजेंसी आपके ब्रांड की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक्सपर्ट्स की एक टीम तैयार कर देगी। यहां आपकी हर जरूरत के लिए सही तालमेल तो बन जाएगा पर फिर भी बाहरी हाथों में कंट्रोल देने का रिस्क तो रहेगा। तीसरा तरीका है कि आप ऐसी एक टीम खुद अपनी कंपनी में बनाएं। ये टीम विज्ञापन, ब्रांड आइडेंटिटी, प्रोडक्ट डिजाइन, स्ट्रैटेजी जैसी जरूरतों पर फोकस करेगी। यानि मार्केटिंग से लेकर डिजाइन तक के काम ये सब लोग एक "सुपरटीम" के रूप में एक साथ मिलकर करेंगे। लेकिन एक सुपरटीम की भी बहुत सी जरूरतें होती हैं। इसे मेंटेन करना काफी महंगा भी पड़ता है। लेकिन इसका फायदा ये है कि आपका अपनी मर्जी के मालिक होते हैं और आपका सीक्रेट कंपनी के अंदर ही रहता है। यहां इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि आने वाले समय में नेटवर्क ऑर्गनाइजेशन के बढ़ते चलन के साथ कोलैबोरेशन मॉडल भी बदल सकते हैं। इसका मतलब है कि अलग-अलग कंपनियां मिलकर ग्राहकों के लिए कोई एक प्रोडक्ट या सर्विस तैयार करते हैं। फिल्म इंडस्ट्री इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। जहां निर्देशक, कलाकार, संगीतकार और ऐसे बहुत से एक्सपर्ट्स मिलकर एक फिल्म बनाते हैं। जब इस फिल्म का प्रोजेक्ट पूरा हो जाता है तो ये फिर अलग-अलग होकर दूसरे किसी प्रोजेक्ट की तरफ चल देते हैं। 

अपने ब्रांड को दूसरों से अलग बनाने के लिए नए आइडियाज और नए रास्ते तलाश करें। लॉजिक किसी बात को सही साबित करने का सबसे अच्छा तरीका है। लेकिन जब बात ग्राहकों की आती है तो जरूरी नहीं कि इस सवाल के जवाब में भी लॉजिक हर बार काम करे कि आपका प्रोडक्ट सबसे अच्छा क्यों है। आपको ग्राहकों का दिल जीतना होगा। उनको लुभाना होगा। यहां पर तीसरा नियम आता है। यानि मार्केट लीडर बनने के लिए दूसरों से हटकर कुछ करना होगा। आप बाकी लोगों को कॉपी करके अपनी पहचान नहीं बना सकते। क्योंकि इस तरह आप ग्राहकों का ध्यान आकर्षित कैसे कर पाएंगे? इतना ही नहीं अपने नए आइडियाज को अमल में लाने के लिए भी नए तरीके ढूंढने होंगे। इसका मतलब ये भी नहीं है कि अगर दुनिया गोल पहिए बनाती है तो आप उनका आकार ही बदल दें। उनकी मजबूती, कीमत और रंग पर काम किया जा सकता है। इंडस्ट्रियल डिजाइनर रेमंड लोवी ने इसे MAYA ढूंढना कहा है। यानि "Most Advanced Yet Acceptable Solution." 

बीटल्स इसका एक बढ़िया उदाहरण है। इस ब्रिटिश पॉप बैंड ने लंबे समय तक अपने हर रिकॉर्ड में कुछ न कुछ नया किया है। उन्होंने अपने शुरुआती दौर यानि 1960 के दशक में धूम धड़ाके और मौज मस्ती वाले गीत बनाए जो ज्यादातर लोग सुनना चाहते थे। लेकिन समय के साथ नई आवाजों और इंडियन इंस्ट्रूमेंट्स पर काम करके वो अपने म्यूजिक में बदलाव लाते रहे। इस तरह के बदलाव का स्कोप हर जगह है। आप अपना लोगो बदल सकते हैं। आप अपनी वेबसाइट या पैकेजिंग को फिर से डिजाइन कर सकते हैं। आप नाम भी बदल सकते हैं। बात बस इतनी है कि अपने ब्रांड को नया करने के लिए मौजूद हर रास्ते से लाभ उठाना चाहिए। ये भी सच है कि बदलाव के साथ रिस्क जुड़ा है। अमेरिका में कहा जाता है "नाव को हिलाओ मत" जबकि जापानी कहते हैं कि "जो कील दीवार से बाहर निकलने लगती है एक दिन उस पर हथौड़ा चल ही जाता है।" इन बातों का सार ये निकलता है कि जो जैसा है उसे वैसा रहने दो। क्योंकि जब आप दूसरों से अलग होते हैं तो लोग आपको पसंद नहीं करते। आमतौर पर लोग इनोवेशन से डरते हैं। लेकिन जब आपका उठाया कदम दूसरों में डर पैदा करने लगे तो समझ जाइए कि आपने लीक से हटकर कुछ किया है और लोगों को अपनी तरफ खींचने के लिए सही ट्रैक पर चल रहे हैं। फॉक्सवेगन ने रिस्क और इनोवेशन के बीच इस डर को VW बग ऑटोमोबाइल के साथ बड़ी अच्छी तरह मैनेज किया।

आपके आइडियाज काम कर रहे हैं या नहीं इसको चेक करते रहिए।
पुराने समय में ब्रांड और ग्राहकों के बीच कम्युनिकेशन न के बराबर होता था। लेकिन आज की तारीख में इन दोनों के बीच कम्युनिकेशन बहुत जरूरी है। ये एक फीडबैक की तरह काम करता है। जब कंपनी अपनी बात रखती है तो जवाब में ग्राहक भी अपनी बात रखता है। यानि अपना रिस्पांस देता है। इसलिए चौथा नियम जिसे वैलिडेशन कहा जाता है इतना महत्वपूर्ण है। आपको ये तय करना होगा कि आपके ब्रांड की आवाज हकीकत में दुनिया में भी गूंजे। न कि ये बस कंपनी की मीटिंग्स में चर्चा का विषय बनकर रह जाए। इसलिए अपने ब्रांड को लगातार वैलिडेट करते रहना जरूरी है। इसके कई तरीके हैं। इनमें से एक है कॉन्सेप्ट टेस्ट। इसमें अपनी कंपनी से बाहर के कम से कम दस लोगों को शामिल करना चाहिए। उनसे अपने ब्रांड का प्रोटोटाइप दिखाकर कोई सवाल पूछें। जैसे ब्रांड के नाम को लेकर सवाल किया जा सकता है। इसमें ग्रुप की जगह अलग-अलग व्यक्ति से जुड़ने में मदद मिल जाती है। आपका टार्गेट है ये समझना है कि क्या ज्यादा लोग एक प्रोटोटाइप को दूसरे से ज्यादा पसंद करते हैं? इसलिए जानकारी लेने वाले सवाल पूछें जैसे "इस नाम से आपको किस तरह की कंपनी का ख्याल आता है?" या "इनमें से कौन सा नाम आपको ज्यादा अच्छा लगता है?" उनके जवाब देने के बाद हमेशा उनसे इसकी वजह पूछें। स्वैप टेस्ट एक और बढ़िया तरीका है। इसमें अपने ब्रांड की कोई एक क्वालिटी जैसे नाम या लोगो किसी दूसरे कॉम्पिटीटर ब्रांड से बदलें। अगर रिजल्ट आपके ब्रांड से बेहतर या उसके बराबर हैं तो आपको पता चल जाएगा कि आपको ब्रांड पर अभी और मेहनत करने की जरूरत है। ऐसे किसी भी वैलिडेशन टेस्ट में पांच महत्वपूर्ण बातें ढूंढी जाती हैं। 

• सबसे अलग नजर आना- आपका ब्रांड सबसे अलग नजर आना चाहिए।

• कनेक्शन- यानि ब्रांड और प्रोडक्ट्स एक दूसरे को कॉम्प्लिमेंट करें। जैसे नाइकी अगर नहाने का साबुन बनाने लगे तो काफी अजीब होगा।

• यादगार होना- अगर आप चाहते हैं कि लोग आपके ब्रांड को याद रखें तो उनके किसी इमोशन के साथ इसे जोड़ना होगा। जैसे चॉकलेट और रोमांस या फिर आइस्क्रीम और बचपन की यादें।

• फ्लेक्सिबिलिटी- ये देखिए कि क्या आपका ब्रांड बदलाव के लिए तैयार है

• बड़े स्केल पर कनेक्टिविटी- क्या आपका ब्रांड अलग-अलग ग्राहकों को टार्गेट कर सकता है जैसे बच्चे, युवा। क्या ये एक से ज्यादा इमोशन्स के साथ खुद को जोड़ सकता है?

ब्रांड को हमेशा नया बनाकर रखिए।
ब्रांड खुद को किस तरह नया बनाए रखते हैं? आपने चार नियम पढ़ लिए। उन पर अच्छी तरह काम भी करना सीख लिया। अब बारी है ब्रांड को नए जैसा बनाए रखने की। दुनिया की बड़ी से बड़ी कंपनी के लिए जरूरी है कि उनका ब्रांड लाइव बना रहे। हम भी तो रोज बदलते रहते हैं। हममें से शायद ही कोई ऐसा हो जो लगातार दो दिन एक ही कपड़े पहने। ये बात ब्रांड पर भी लागू होती है। जरूरत होने पर ब्रांड क्यों नहीं बदलता रह सकता? असल में जो ब्रांड हमेशा एक जैसे लगते हैं उन पर लोगों का भरोसा कम होने लगता है। इसलिए ब्रांड में बदलाव करते रहिए। गल्तियां हों तो भी कोई बात नहीं। गल्ती करना इंसानी स्वभाव है। इसलिए जब तक ब्रांड अपना महत्व बनाए हुए है छोटी-मोटी गल्तियां नजरअंदाज की जा सकती हैं। ब्रांड कितना अपडेटेड है इसका पता लगाने का एक तरीका है। आप इसकी कोलैबोरेटिव परफार्मेंस देखिए। यानि हर टीम के सदस्य के बीच कितना तालमेल और सहयोग है। आपका लक्ष्य अंत में यही होना चाहिए कि ब्रांड बाहरी दुनिया में और कंपनी के अंदर एक सा बना रहे। ये क्वालिटी आपके ब्रांड को और ज्यादा भरोसेमंद बना देगी। ग्राहक भी इसे समझेंगे और अपना प्यार देंगे। बदलाव जरूरी है पर इसका ध्यान रखें कि ब्रांड का बेसिक एसेंस बना रहे। ये आपकी जिम्मेदारी है। ब्रांड को बनाए रखने के लिए मार्केटिंग डिपार्टमेंट नहीं बल्कि हर डिपार्टमेंट की जिम्मेदारी तय करें। ब्रांड आइडेंटिटी पैदा करने का एक तरीका है कि ब्रांड से जुड़ी वर्कशॉप और सेमिनार आयोजित किए जाएं। ताकि कर्मचारी हमेशा इस बात को ध्यान में रखें कि उनका उठाया कदम ब्रांड के लिए अच्छा है या बुरा? आप एक चीफ ब्रांडिंग ऑफिसर भी अपाइंट कर सकते हैं। इस तरह से भी ब्रांड को मेंटेन रखा जा सकता है। ये बहुत अनुभव वाले लोग होते हैं। ये ब्रांडिंग के पांच तत्वों को मिलाकर आसानी से स्ट्रैटेजी और क्रिएटिविटी के गैप को भर सकते हैं।

कुल मिलाकर
एक बेहतरीन ब्रांड बनाने का इकलौता तरीका है कि आप ऐसा वर्कप्लेस तैयार करें जहां सब मिलजुलकर ब्रांड को तैयार करने में एक दूसरे का साथ दें। जहां स्ट्रैटेजी और क्रिएटिविटी के बीच कोई गैप न रहे। आप ब्रांडिंग के पांच नियमों का अच्छी तरह पालन करके आसानी से ऐसा कर सकते हैं। यानि आपको दूसरों से अलग बनना होगा, नए आइडियाज लगाने होंगे, टीम की तरह काम करना होगा, अपने काम को समय-समय पर टेस्ट करते रहना होगा और ब्रांड को नया बनाए रखना होगा। एक बार जब आप ऐसा कर लेते हैं, तो आपको ग्राहकों से जुड़ने और मार्केट लीडर बनने में कोई परेशानी नहीं होगी। 

 

क्या करें

ढेर सारे फीचर्स को अवॉइड करें। वेब डिजाइन करते हुए बहुत से फीचर्स बनाए जा सकते हैं। आपके पास एनीमेशन, विजेट और ऐसे बहुत से ऑप्शन होते हैं जिनको आसानी से तैयार किया जा सकता है। लेकिन आपको ये ध्यान रखना होगा कि इनमें से कितने ऐसे हैं जो आपके ब्रांड से मेल खाते हैं और कौन से बस ढेर लगा देते हैं। इसलिए वेब डिजाइन को सरल से सरल रखें। 

 

येबुक एप पर आप सुन रहे थे The Brand Gap By Marty Neumeier. 

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