Pedram Shojai
बिजी लोगों के लिए प्रैक्टिकल माइंडफुलनेस
दो लफ़्ज़ों में
ये किताब, द आर्ट ऑफ़ स्टॉपिंग टाइम (2017) उन सवालों के जवाब देती है जो हममे से कई लोगों के दिमाग में आजकल उठते होंगे: हमारा पूरा वक़्त जाता कहां है? और हम इसे वापस कैसे पा सकते हैं? प्रैक्टिकल टाइम-मैनेजमेंट प्रिंसिपल्स को माइंडफुलनेस के फिलॉसफिकल आइडियाज के साथ मिलाकर, लेखक पेड्राम शोजोई हमें ये बताते हैं कि इस दुनिया में हमारे लिमिटेड टाइम का हम किस तरह बखूबी इस्तेमाल कर सकते हैं।
किसके लिए है
- उन बिजी लोगों के लिए जो सोचते हैं, काश उनके पास थोड़ा और वक़्त होता
- मेडिटेशन के फैंस के लिए जो जानना चाहते हैं कि माइंडफुलनेस को और प्रैक्टिकल तरीके से कैसे इस्तेमाल किया जाए
- कोई भी जो अपने वक़्त का बखूबी इस्तेमाल करना चाहता हो
लेखक के बारे में
पेड्राम शोजोई चाइना की येलो ड्रैगन मोनेस्टरी के पुजारी हैं, कीगोंग मास्टर और ओरिएंटल मेडिसिन के डॉक्टर हैं। उनकी पिछली किताबों में द अर्बन मॉन्क शामिल है जिसे न्यू यॉर्क टाइम्स ने बेस्ट सेलर घोषित किया था। वे इसी नाम से एक पॉडकास्ट भी होस्ट करते हैं।
आपको अपने वक़्त से क्या मिलता है ये इसपर डिपेंड करता है कि आप उसे कैसे गुज़ारते हैं, आपके पास कितनी एनर्जी है और आप कितने माइंडफुल हैं।
इस दुनिया का सबसे कीमती रिसोर्स क्या है? सोना तो नहीं। प्लैटिनम और रोडियम जो बहुत कीमती ज़रूर हैं लेकिन यहां उनकी बात भी नहीं हो रही। और दौलत भी इसका जवाब नहीं है।
इसका जवाब है वक़्त। आप कुछ अनदेखे मेटल्स खोदना चाहते हैं या पैसा कमानाचाहते हैं? आपको इसके लिए वक़्त की ज़रूरत है। यहां तक कि कुछ भी करने के लिए आपको वक़्त की ज़रूरत है। इसलिए ये अल्टीमेट रिसोर्स है।
बदकिस्मती से, इसकी सप्लाई भी बहुत कम है - खासकर आजकल। हमारी डिमांडिंग जॉब्स और सोशल मीडिया की मौजूदगी के बीच, ऐसा लगता है कि हर चीज़ और हर कोई हमसे हमारा लिमिटेड टाइम छीनने की कोशिश कर रहा है। काश वक़्त को रोकने का कोई तरीका होता। वैसे एक तरीका है - कम से कम मेटाफोरिकली ऐसा कहा जा सकता है। और आप जाननेवाले हैं कि ये कौनसा तरीका है। इस समरी मे आप जानेंगे कि आपके पास जितना आप सोचते हैं, उससे ज़्यादा वक़्त है, आपको जितना खर्च करना चाहिए, आप उससे ज़्यादा वक़्त खर्च कर रहे हैं; और आप इस बारे में क्या कर सकते हैं?
तो चलिए शुरू करते हैं!
सोचिये आप वक़्त को रोक सकते हैं - सिर्फ कहने के लिए नहीं, बल्कि सच में। चुटकी बजाते ही घड़ी की सुइयां रुक जाएं। मुबारक हो, अब आपके पास अपना वर्क प्रोजेक्ट खत्म करने के लिए वक़्त ही वक़्त है, या अपनी किताब लिखने के लिए, या वो सबकुछ करने के लिए जो आप करना चाहते हैं।
लेकिन क्या हो अगर इसके बावजूद आप सिर्फ अपने फ़ोन को स्क्रॉल करते पाए जाएं? और क्या हो अगर आप किसी काम की चीज़ पर फोकस करने के लिए बहुत थके हुए हों या आपका दिमाग कहीं और ही हो? अगर ये हालात हों, तो आप अपने ईजाद किये हुए नए वक़्त को गटर में बहा सकते हैं। एक लेवल पर वक़्त बहुत तयशुदा और सीमित है। एक दिन, एक हफ्ते और एक पूरी ज़िंदगी में आपको गिने-चुने घंटे ही मिलेंगे। और एक घंटा, एक घंटा ही होता है। इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप उसे 60 मिनट में बांटते हैं या 3600 सेकंड्स में - वो उतना ही रहता है। और आप एक घंटे में उतना ही कर सकते हैं जितना उतनी देर किया जा सकता है। एक अच्छा वर्कआउट सेशन? ज़रूर। एक शानदार वेकेशन? बिलकुल नहीं।
लेकिन दूसरे लेवल पे वक़्त काफी हद तक फ्लूइड की तरह है। आप इससे क्या हासिल कर सकते हैं, ये तीन फैक्टर्स पर डिपेंड करता है।
पहला फैक्टर है, आप इसे किस तरह बिता रहे हैं? क्या आप अपने वक़्त के साथ कुछ दिलचस्प, काम का, मीनिंगफुल या मज़ेदार कर रहे हैं? अगर हां, तो उस एक घंटे में आपको बहुत कुछ मिल सकता है, अगर नहीं तो आप कुछ खास हासिल नहीं कर पाएंगे। जैसे कि अगर आप दौड़ने जा रहे हैं, तो आपको सेहत मिलेगी, कोई साइड प्रोजेक्ट कर रहे हैं तो ज़्यादा पैसे मिलेंगे। किताब पढ़ रहे हैं तो ज्ञान मिलेगा। लेकिन अगर आप एक जगह बैठकर सोशल मीडिया पर दूसरों की तस्वीरें देख रहे हैं, तो आपके पास खुद कुछ दिखाने के लिए नहीं होगा।
अब दूसरे फैक्टर की बात की जाए: आपके पास कितनी एनर्जी है? अगर आप कहीं जाने के लिए बहुत एक्साइटेड हैं और एकदम तैयार बैठे हैं, तो आप अपना वो घंटा बहुत मज़े में और प्रोडक्टिवली गुज़ार सकते हैं। लेकिन अगर आप थके हुए हैं, तो आप कुछ भी करने की हालत में नहीं हैं, मज़े करना तो भूल ही जाइये। हो सकता है आप बस टीवी के सामने सोफे पर पसर जाएं।
और आखिर में तीसरा फैक्टर: आप कितने माइंडफुल हैं? क्या आप जो अनुभव कर रहे हैं, उसपर ध्यान दे रहे हैं? अगर जवाब ना है, तो तय बात है कि आप अपना एक घंटा गंवाने जा कर रहे हैं। यहां तक कि अगर आप कुछ शानदार भी कर रहे हों, जैसे किसी खूबसूरत जंगल में हाईकिंग, लेकिन अगर आपने उस अनुभव का आनंद नहीं लिया तो वो वक़्त बेकार हो जाएगा।
तो हां, हम वक़्त को असल में नहीं रोक सकते। और ना ही ये सच बदल सकते हैं कि टाइम लिमिटेड है। लेकिन हम उस वक़्त का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल ज़रूर कर सकते हैं। और उसे खोने से रोक सकते हैं।
आप अपनी ज़िंदगी से क्या चाहते हैं, वो पाने के लिए आपको अपना टाइम, एनर्जी और अटेंशन तीनो ही बचाकर रखना होगा।
सोचिये आपकी ज़िंदगी एक बगीचे की तरह है। इस बगीचे में आप कुछ पौधे लगाना चाहते हैं। हर पौधा उस चीज़ से जुड़ा हुआ है, जो आपको अपनी ज़िंदगी में चाहिए - आपका करियर, सेहत, रिश्ते, शौक और इसके अलावा कुछ भी जो आपके लिए बहुत इम्पॉर्टेंट हो।
लेकिन दिक्कत ये है कि आपकी "ज़िंदगी के बगीचे" में जगह लिमिटेड है - सिर्फ पांच या दस पौधे लगाने लायक जगह। और आपके पास उतना ही "पानी" है इन पौधों के लिए। ये "पानी" आपका टाइम, एनर्जी और अटेंशन है। तो अब आप अपने बागीचे को किस तरह संवारेंगे? आपको पता है कामयाबी का राज़ सिर्फ दो लफ़्ज़ों में छिपा हुआ है: रिसोर्स मैनेजमेंट।
आपके लाइफ गार्डन के अंदर, आपका "पानी" आपके "पौधों" के लिए सबसे ज़रूरी रिसोर्स है। हालांकि ये बहुत लिमिटेड भी है, इसीलिए आपको बहुत ही सावधानी से इसे बांटना होगा। अगर आप अपने करियर में टाइम, एनर्जी और अटेंशन नहीं देंगे, तो उसमें सफल नहीं हो पाएंगे। लेकिन अगर आप इस एक "पौधे" में ज़्यादा टाइम, एनर्जी और अटेंशन देंगे, तो ये तो बढ़ जाएगा, लेकिन बाकी के पौधों पर इसका बुरा असर होगा। आप करियर में ऊंचाई छू लेंगे, लेकिन आपके रिश्ते मुरझा जाएंगे।
आपको अपने गार्डन में नए पौधे लगाते वक़्त भी काफी सोचना होगा, क्योंकि ये आपके पुराने पौधों को निकाल बाहर कर सकते हैं। मान लीजिये, आपके स्कूल का पुराना दोस्त आपसे फिर से मिलना-जुलना चाहता है - लेकिन अब आप दोनों के बीच ज़्यादा कुछ कॉमन नहीं बचा है। ऐसे में अगर आप सिर्फ उसका दिल रखने के लिए उसके साथ वक़्त गुज़ारेंगे, तो आपके पास उन लोगों के लिए वक़्त नहीं बचेगा, जिनके साथ आप सच में जुड़ना चाहते हैं।
यही बात बाकी चीज़ों पर भी लागू होती है, जैसे कोई बोरिंग बुक महीनों तक सिर्फ इसलिए पढ़ना क्योंकि किसी ने कहा है, या कोई ऑनलाइन क्लास अटेंड करना जिसमें आपकी दिलचस्पी नहीं है, या ऐसा कुछ भी करना जो आपके टाइम, एनर्जी और अटेंशन के लायक नहीं है। आपकी "ज़िंदगी के बगीचे" में बहुत से ऐसे "पौधे" हैं जिनको आपके "पानी" की ज़रूरत है - और वो उन्हें सिर्फ इसलिए नहीं मिल रहा क्योंकि आप अपने रिसोर्स को बेकार के पौधों में बर्बाद कर रहे हैं। ये ऐसे फालतू पौधे हैं जो आप असल में उगाना ही नहीं चाहते - ऐसे पौधे जो उन पौधों से आपका ध्यान और रिसोर्स हटा रहे हैं, जो आपको सच में अपनी ज़िंदगी में चाहिए।
ऐसा मुमकिन है कि आपके बगीचे में पहले से ही बेकार पौधे मौजूद हों। और ये सुनने में बुरा लग सकता है, लेकिन आपको इन्हें हटाना होगा - और उसके बाद आपको इस बात का ख्याल रखना होगा कि कोई भी बेकार पौधा आपके बगीचे में पनप ना पाए।
आपको ये बहुत सावधानी से सोचना होगा कि आप अपना वक़्त कैसे इन्वेस्ट कर रहे हैं।
क्या आपने कभी भी बिज़नेस वर्ल्ड में काम किया है या स्टॉक मार्किट में दांव खेला है? अगर हां, तो आपने शायद रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट या ‘ROI’पहले शायद सुना हो। ये एक तरीका या माप है ये जानने का कि आप कितना प्रॉफिट कमाएंगे, जब आप किसी स्टॉक ऑप्शन या बिज़नेस में पैसा लगाएंगे। ज़ाहिर सी बात है यहां पर लक्ष्य, जितना इन्वेस्ट किया है, उससे ज़्यादा पैसा कमाने का है। जितना बड़ा रिटर्न होगा, उतना बेहतर ROI होगा।
यही लॉजिक इस बात पर भी लगता है कि हम अपना वक़्त कैसे इन्वेस्ट कर रहे हैं। और यहां आते हैं सबसे अहम सवाल: आप अपना वक़्त कैसे इन्वेस्ट करते हैं, इसका ROI क्या है? और आपकी टाइम इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजी क्या है? क्या आपके पास कोई स्ट्रेटेजी है भी? अगर आपका जवाब ना है, तो वक़्त आ गया है कि आप इस बारे में कुछ करें।
मान लीजिए आपके पास बिताने के लिए आधा घंटा है। आप उस वक़्त का चाहे कुछ भी करें, आपको बदले में कुछ न कुछ आउटकम मिलने ही वाला है। आप टहलने जाएंगे, तो आप अपनी फिटनेस में थोड़ा सुधार लाएंगे। हाई-इंटेंसिटी वर्कआउट करेंगे तो फिटनेस में काफी सुधार होगा। लेकिन अगर आप कुछ सिगरेट पिएंगे तो सेहत को नुकसान पहुंचाएंगे।
चॉइस आपकी है - और यही तो बात है। आपको ही ये तय करना है कि आप अपने वक़्त का कैसे इस्तेमाल करेंगे। और ये फैसला दरअसल एक इन्वेस्टमेंट डिसीज़न है। आप किसी भी काम में एक तयशुदा वक़्त दे रहे हैं और बदले में आपको कुछ और मिल रहा है - या एक बेहतर सेहत या फिर स्मोकिंग से मिलने वाली खांसी।
बेशक, आपके चुनाव अक्सर इतने साफ़ नहीं होते। तो आप आम हालातों में अपना इन्वेस्टमेंट डिसीज़न कैसे लेंगे? आपको अपने इन्वेस्टमेंट ऑप्शंस की तुलना उनके आउटकम के आधार पर करनी चाहिए। क्या वे आपकी सेहत में सुधार लाएंगे, ख़ुशी बढ़ाएंगे, आर्थिक तौर पर आपको मज़बूत करेंगे या ओवरऑल क्वालिटी ऑफ़ लाइफ सुधारेंगे? और अगर हां, तो कितना?
अगर आप इन मापदंडों पर अपने ऑप्शंस को तौलेंगे, तो आप देखेंगे कि इनमें से कुछ आपको दूसरे ऑप्शंस से बेहतर ROI दे रहे हैं। लेकिन ये सब इस बात पर निर्भर करता है कि आखिर आपको क्या चाहिए। अगर आप खुद को शेप में लाना चाहते हैं, तो इंटेंस वर्कआउट एक बेहतरीन इन्वेस्टमेंट का अवसर है। ये बहुत सारी एक्सरसाइज को कम वक़्त में करने की सहूलियत देता है। यहां पर वॉकिंग एक अच्छा ऑप्शन साबित नहीं होता। लेकिन अगर आप किसी दोस्त या प्रकृति के साथ वक़्त गुज़ारना चाहते हैं, तो वॉकिंग ज़्यादा बेहतर ऑप्शन है।
किसी भी सूरत में, आप आप अपने ऑप्शंस को तौले बिना और अपनी इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजी पर विचार किये बिना स्टॉक मार्किट में अपना पैसा नहीं डालेंगे, है ना? तो ऐसा ही आपको अपना टाइम इन्वेस्ट करने से पहले भी करना चाहिए, जो कि आपका सबसे कीमती रिसोर्स है।
आप जितना सोचते हैं, उससे कहीं ज़्यादा आपको इस बात की आज़ादी है कि आप अपना वक़्त कैसे बिताएंगे।
आप शायद सोच रहे होंगे, क्या वाकई हमारे पास बहुत चॉइस होती है कि हम अपना वक़्त कैसे बिताएं?
आखिरकार, हममें से ज़्यादातर लोगों के पास अपने दिनभर के कामों को पूरा करने की ज़िम्मेदारी होती है। काम पर जाना, डेडलाइन पूरी करना, सब्ज़ी खरीदना, फ़ोन का जवाब देना - और ये लिस्ट लंबी होती चली जाती है। यहां तक कि हमारे "खाली-वक़्त" में भी हमें वो करने की आज़ादी नहीं होती, जो हम करना चाहते हैं। अब कुछ हद तक ये सही है। लेकिन इसमें से भी एक ज़रूरी बात गायब है।
हां, असलियत हमपर कुछ ज़िम्मेदारियां थोपती है जैसे टैक्स भरना ही है, पालतू कुत्ते को घुमाना ही है। लेकिन अगर आप टाइम को लेकर अपने कमिटमेंट्स की लिस्ट को ठीक से देखेंगे जो आप दूसरे लोगों, इवेंट्स और एक्टिविटीज को दे रहे हैं, आपको नज़र आएगा कि इनमें से ज़्यादातर सिर्फ वही हैं: कमिटमेंट्स जो आप पूरा कर रहे हैं।
अगर आपका कोई कोवर्कर, बेकार की बातचीत के लिए आपको रोके, तो उसके साथ लंबी बातचीत करने की कोई ज़रूरत नहीं है। अगर कोई दोस्त आपको स्कीइंग ट्रिप पर बुलाता है, तो ज़रूरी नहीं कि आप जाएं ही। अगर आपने कोई बुक ग्रुप ज्वाइन कर लिया है, तो ज़रूरी नहीं कि आप उसमें रुके हीं। इन चीज़ों को करना या ना करना आपके ऊपर है - और अच्छी बात है अगर आपको इनसे कुछ हासिल हो रहा हो। लेकिन अक्सर ऐसा नहीं होता। बल्कि, आप ऐसी जगहों पर अक्सर ना नहीं कह पाने की वजह से या ज़िम्मेदारी के एहसास के चलते चले जाते हैं।
हमें ऐसा करने से खुद को रोकना होगा। ये सारे गैरज़रूरी, बेमतलब के कमिटमेंट्स शायद अपने आप में बहुत वक़्त ना ले रहे हों, लेकिन अगर आप इन्हें हफ्ते भर तक जोड़ें, तो देखेंगे कि आपने कई घंटे बर्बाद कर दिए हैं।
इसका मतलब ये नहीं कि आप लोगों के साथ ख़राब बर्ताव करें। बातचीत को छोटा करने के, ट्रिप के लिए मना करने के या बुक ग्रुप छोड़ने के कई पोलाइट तरीके हैं। बात बस इतनी है कि अगर आप अपना वक़्त कहीं और बिताना चाहते हैं, तो आपको इन ऑप्शंस का इस्तेमाल करना चाहिए।
आप अपने कमिटमेंट्स में भी कुछ एडजस्टमेंट कर सकते हैं। फ़ोन कॉल्स को ही लीजिए। हममें से कई लोग फ़ोन पर बहुत वक़्त देते हैं, काम के लिए भी और यूँ भी। लेकिन हो सकता है कि आप अपनी क्लाइंट कॉल 30 की जगह 15 मिनट में ही ख़त्म कर सकते हैं। और हो सकता है कि मां को किये जाने वाले साप्ताहिक कॉल के लिए भी आप एक वक़्त तय कर दें, ताकि आप उनसे अच्छे से बात कर सकें, ना कि जल्दबाज़ी में।
किसी भी सूरत में, आपके पास उससे ज़्यादा ऑप्शंस होते हैं, जितना आपको लगता है।
अगर कुछ ऐसा है जो आपको करना ही है, फिर भी आपके पास इस बात की आज़ादी होती है कि आप उसे कैसे करें।
हो सकता है आप कहें, ठीक है। शायद मैं अपना कुछ वक़्त बचा सकता हूं। लेकिन इसमें से ज़्यादातर वक़्त तो मेरे दिन के आखिर में कहीं या टुकड़ों में बिखरा हुआ है। दिन का ज़्यादातर हिस्सा तो मेरी ज़िम्मेदारियों से भरा हुआ है, जिनसे ना मैं बाहर आ सकता हूं और ना ही उन्हें बदल सकता हूं।
हममें से ज़्यादातर लोगों के लिए, काम पर जाना एक ज़रूरी बात है। घर से काम करने, बिज़नेस शुरू करने या लॉटरी जीतने जैसा कोई ऑप्शन नहीं है। ये ऐसी चीज़ है जिसे आपको करना ही है, ठीक है? ये सही भी है और गलत भी।
मान लीजिए कि निजी कारणों की वजह से आपको अपनी फ़िलहाल की नौकरी और घर दोनों ही रखने हैं। और मान लीजिए कि इन दोनों ही में जिसे हम पॉइंट ए और बी मान लेते हैं, में काफी दूरी है, तो आपको सफर करना होगा। इसमें कोई चॉइस नहीं है। लेकिन आप ये सफर कैसे करेंगे? पैदल, पब्लिक ट्रांसपोर्ट से या अपनी कार में? अक्सर ये चॉइस आपकी होती है और कुछ ऑप्शंस आपके शरीर और एनवायरनमेंट के लिए दूसरों से बेहतर होते हैं।
और अगर इसमें भी आपके पास सिर्फ कार से ही जाने का ऑप्शन हो, तो भी इसमें और ऑप्शन है। आप खुद ड्राइव करके जायेंगे या कारपूल ज्वाइन कर लेंगे?
और अगर कारपूल भी ऑप्शन नहीं है, तो भी आपके पास बहुत से ऑप्शन हैं। आप अकेले कार चलाते वक़्त क्या करेंगे? आप गाना सुनेंगे, पॉडकास्ट या ऑडियोबुक? या फ़ोन पर बात करेंगे? या सिर्फ सामने आने वाले बंपर्स को घूरेंगे और ट्रैफिक के बारे में बड़बड़ करेंगे?
ये चीज़ें भले ही कितनी भी छोटी क्यों न दिखें, ये चुनाव ही आपके हर हफ्ते ड्राइविंग में खर्च होने वाले घंटों को सार्थक कर सकते हैं। अपनी पसंद का शांत करने वाला संगीत सुनकर आप अपने सफर को रिलैक्सेशन टाइम में बदल सकते हैं। ऑडियोबुक लगाकर आप इन घंटों के दौरान कुछ सीख सकते हैं। और फ़ोन पर बात करके आप इसे वर्क टाइम या सोशल टाइम में बदल सकते हैं। हालांकि ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप फ़ोन क्लाइंट को कर रहे हैं या दोस्त को।
किसी भी सूरत में, चाहे आप नॉवेल सुनना चुनें या अपने पापा से बात करना, आपके चॉइस यहां ख़त्म नहीं होते। उदहारण के लिए आप इस दौरान अपने शरीर के साथ क्या कर रहे हैं? आप झुककर बैठे हैं या एक अच्छे पॉस्चर की प्रैक्टिस कर रहे हैं।
आप इस दौरान केगल एक्सरसाइज भी कर सकते हैं, जिसमें कूल्हे की प्यूबोकॉसीजस मसल्स को टाइट करके ढीला छोड़ा जाता है। इससे ना केवल आपका कोर मज़बूत होगा बल्कि सेक्स लाइफ भी सुधरेगी। और ये सब आप अपने पसंदीदा गाने सुनते हुए, हिस्ट्री को जानते हुए या जो भी आपने विकल्प चुना है उसे करते हुए कर सकते हैं।
आपकोटेक्नॉजिकल डिस्ट्रैक्शंस पर वक़्त बर्बाद करने से खुद को रोकना होगा।
अब हो सकता है कि आप उन खुशकिस्मत लोगों में से हों जिन्हें सुबह सफर नहीं करना है। लेकिन अगर आपको आराम से अपने घर के कपड़ों में वर्क फ्रॉम होम करना है, फिर भी आप कई बार ऐसे हालात का सामना करते होंगे जहां आप कुछ होने का इंतज़ार कर रहे हैं। भले वो क्लाइंट के फ़ोन उठाने का इंतज़ार हो या लिफ्ट खुलने का या वेटर के बिल लाने का या माइक्रोवेव का सेट टाइम ख़त्म होने का। इनमें से कई अनुभव सिर्फ कुछ सेकंड्स या मिनटों तक रहते हैं, लेकिन ये सब मिलकर एक सवाल खड़ा करते हैं: हमने उस खाली वक़्त का क्या किया?
अगर हम ईमानदारी से जवाब दें तो कई लोगों का जवाब होगा, "कुछ खास नहीं"। और इसका कारण भी दो शब्दों में बयां किया जा सकता है, टेक्नॉलजी का इस्तेमाल।
सोचिये आप कॉफ़ी शॉप की लाइन में खड़े हैं। अब आप वक़्त बिताने के लिए क्या करेंगे? किसी भी हाल में, जब भी हमें वक़्त काटना होता है, फ़ोन की ओर देखना ज़्यादातर लोगों के लिए आम और गो-टू-एक्टिविटी हो चुका है। तो फिर इसमें हैरत की क्या बात है कि हमारा उतना सारा वक़्त डेड टाइम की तरह महसूस हो? हम अपने वक़्त का काफी हिस्सा ऐसे खर्च कर रहे हैं, जैसे हम ज़ॉम्बीज़ हों, जो अलग अलग स्क्रीन देखकर खुश हो रहे हों। अगर ये स्क्रीन फ़ोन का ना हुआ तो लैपटॉप या टीवी का होता है।
लेकिन हमें इस तरह अपना टाइम वेस्ट करने के लिए कोई मजबूर नहीं कर रहा है। हम इसे खोने से बचा सकते हैं और इसका बेहतर इस्तेमाल कर सकते हैं।
ऐसा करने के लिए सबसे पहले इस आदत को छोड़ना होगा। अगली बार आप कहीं इंतज़ार कर रहे हों और फ़ोन देखने का दिल करे तो खुद को रोकिये और चंद गहरी साँसें लीजिये। अब खुद से पूछिए, कुछ ज़रूरी इन्फॉर्मेशन आनी है या आप बस फ़ोन देखने के लिए देखना चाहते हैं? या आपको अपने ख्यालों के साथ वक़्त बिताने में या अपने आसपास की दुनिया को देखने में परेशानी हो रही है?
आप इस खाली वक़्त में आसपास के लोगों को देख सकते हैं, या कोई स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज कर सकते हैं। या वहां खड़े होकर कुछ ऐसा सोच सकते हैं जो आपको अपने शरीर, दिमाग या अपने आसपास के माहौल से तालमेल बिठाने में मदद करे। अगर यह काम आपको जाना पहचाना लग रहा हो, तो इसकी एक वजह है। यह एक मिनी-माइंडफुलनेस एक्सरसाइज है।
लेकिन ये तो पिक्चर का सिर्फ ट्रेलर था। और भी कई रास्ते हैं जिनसे माइंडफुलनेस हमें अभी में फोकस करने में मदद कर सकता है और उससे हम बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं। इस लेसन में, हम उनमें से एक तरीके के बारे में देखेंगे। ये एक बहुत ही ताकतवर टेक्नीक है जिसे शायद आपने पहले ना आज़माया हो, अगर आप माइंडफुलनेस की प्रैक्टिस करते हैं, तब भी।
हम जैसे अपने दिन गुज़ार रहे हैं, हम में से कई लोग अक्सर अपनी व्यस्तताओं में इतने खो जाते हैं कि हम मुश्किल से अपने आसपास की दुनिया पर ध्यान दे पाते हैं। अब अगर आप माइंडफुलनेस के बारे में जानते हैं, तो आपको पता होगा कि इसका एक हिस्सा हमारे दिमाग को डिस्ट्रैक्टेड स्टेट से बाहर निकाल कर "अभी" में ले आता है। लेकिन आप ऐसा कैसे करेंगे?
तो अगली बार जब आप किसी ऐसी जगह पर हों, जहां आप पहले कभी न गए हों, ये ट्राई करके देखिएगा। ये एक खूबसूरत ट्रॉपिकल जगह हो सकती है जहां आप छुट्टी मनाने पहुंचे हों, या फिर आपके शहर में ही कोई ऐसी जगह जहां आप पहली बार आए हों। इस एक्सरसाइज के लिए जगह मायने नहीं रखती। जो आपको करना है वो ये कि रुकिए, आसपास देखिये और सोचिये, ये शायद आखिरी बार है जब मैं यहां पर हूं।
नोटिस कीजिये कि कैसे आपका नजरिया अचानक बदलता है। अब आप उस इलाके में सिर्फ टहल नहीं रहे होंगे। आप नज़ारे देख रहे होंगे, वहां की खुशबू महसूस कर रहे होंगे, ये देख रहे होंगे कि वहां के लोग कैसे हैं, गलियां कैसी हैं और आसपास की इमारतें कैसी हैं। अब आप हर चीज़ बहुत नज़दीक से ऑब्ज़र्व कर रहे होंगे। और इन सबके जादू को नोटिस कर रहे होंगे। कुल मिलाकर ये कि आप अपने इस पल को महज़ गुज़ारने की जगह, पूरी तरह से जी रहे होंगे।
अब एक सच सुनने के लिए तैयार हैं? ये सिर्फ एक थॉट एक्सपेरिमेंट नहीं है। ऐसा सच में हो सकता है कि जहां आप ये अनुभव कर रहे हों, वहां आप सच में शायद दोबारा कभी ना आ पाएं।
अगर सीधे तौर पे कहा जाए, तो पलक झपकते ही भयानक चीज़ें घट सकती हैं, कभी कभी तो बिना किसी चेतावनी के। हम पक्के तौर पर सिर्फ एक बात जानते हैं, वो ये कि किसी दिन हम मरने वाले हैं। ये दिन आज हो सकता है, कल हो सकता है या आज से बीस साल बाद। ये हमें नहीं पता।
और यही तो बात है। हमें अपने हर पल को पूरी तरह जीने की कोशिश करनी चाहिए, जैसे कि ये आखिरी बार हमें मिलें हों - क्योंकि बहुत मुमकिन है कि ऐसा हो।
माइंडफुलनेस आपके वक़्त के तजुर्बे को धीमा कर सकता है, जिससे आप इसे लंबा सकते हैं और इसे रोक भी सकते हैं।
ठीक है, मरने की गंभीर बातों के बाद, चलिए इस चैप्टर को थोड़ी हलकी-फुलकी बातों से शुरू करते हैं। क्या ऐसा कभी आपके साथ हुआ है? आप कुछ खाने बैठे हों - मान लीजिये पिज़्ज़ा, और आप बिना सोचे समझे जल्दी जल्दी बस खा रहे हों। हो सकता है खाते वक़्त आप फ़ोन पर कुछ कर रहे हों। अचानक आप अपनी प्लेट की तरफ देखते हैं और आपको एहसास होता है कि पिज़्ज़ा का आखिरी स्लाइस ख़त्म हो चुका है। आखिर वो गया कहां? खैर, आप जानते ही कि आप ही के पेट में गया है - लेकिन आपको शायद ही उसे खाना याद हो। ये ऐसा है, जैसे कि उसे खाने का तजुर्बा आपके दिमाग में रजिस्टर ही ना हुआ हो। ठीक है, आप शायद समझ गए होंगे कि हमारा इशारा किस तरफ है। जी हां - एक बार फिर, माइंडफुलनेस हमें बचाने के लिए यहां मौजूद है।
अब बारी है एक और माइंडफुलनेस एक्सरसाइज की: अगली बार आप जब भी खाना खाएं, उसके अलावा और कुछ भी ना करें, और अपना पूरा ध्यान इस बात पर लगाएं कि खाते वक़्त आपको क्या अनुभव हो रहा है। खाने के स्वाद, खुशबू, उसकी बनावट का पूरा आनंद लें। हर निवाले को पूरी इज़्ज़त दें। अगले निवाले को तोड़ने से पहले मुंह के निवाले को अच्छी तरह से चबाकर निगलें। इस प्रोसेस के दौरान अपने चेहरे की मांसपेशियों में हो रही हरकतों को ऑब्ज़र्व करें।
यहां पर करने के लिए बहुत कुछ है। आपको सिर्फ अपना अटेंशन उस ओर देना है।
और अगर आप ये एक्सरसाइज करते हैं, इससे ना सिर्फ आपके खाने का अनुभव बेहतरीन रहेगा और ये पल आपके दिमाग में रजिस्टर होंगे। इससे आप उन पलों को लंबा कर सकते हैं, ताकि उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा महसूस कर सकें।
ऐसा इसलिए नहीं कि आप धीरे खा रहे हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि आप माइंडफुली खा रहे हैं। जब आप उसपर ध्यान दें जो आप कर रहे हैं, ऐसा लगता है कि वक़्त धीरे बीत रहा हो - अच्छे सेंस में, उस तरह नहीं जब आपको कोई उबाऊ काम करना पड़ रहा हो और लगे जैसे वक़्त खिंच रहा है। यह न केवल खाने पर लागू होता है बल्कि आप जो कुछ भी कर रहे हैं उस पर भी लागू होता है। आप कार में सुन रहे म्यूज़िक , सड़कों से आ रही आवाज़ों, नहाते वक़्त शरीर में महसूस हो रहे सेंसेशन के साथ माइंडफुलनेस की एक्सरसाइज कर सकते हैं। यानी आप किसी भी अनुभव के साथ माइंडफुल हो सकते हैं।
और अगर आप सचमुच माइंडफुल हैं, आप इम्पॉसिबल लगने वाली चीज़ को भी हासिल कर सकते हैं: आप समय का बहाव रोक सकते हैं - एक तरीके से, अगर सच में ना हो तब भी। जब आप "अभी" के साथ पूरी तरह जुड़ जाते हैं, तो वो पल खुद में इटरनल महसूस हो सकता है। उसमें डूब जाएं, उसे महसूस करें और इन पलों को अनंत तक फ़ैल जाने दें।
आपको खुद के लिए बेहतर वक़्त बनाना होगा।
आपने अपनी आज की सुबह कैसे गुज़ारी? अगर आप और लोगों की तरह हैं, तो आपने नहाने में बहुत वक़्त लगाया होगा। कई लोग नहाने में इतना वक़्त लगाते हैं कि नहाकर निकलने के बाद बाथरूम, स्टीम रूम नज़र आने लगता है।
आपको पता होना चाहिए, गर्म पानी से रोज़ इतने लंबे वक़्त तक नहाना, प्रकृति के लिए भी नुकसानदायक है। अगर आपके वाटर सप्लाई में क्लोरीन होता है, तो ये आपके शरीर के लिए भी अच्छा नहीं है, क्योंकि उतनी देर आपकी स्किन भी केमिकल अब्सॉर्ब कर सकती है। लेकिन यहां इन सबसे भी गहरी एक और परेशानी है, और ये एक बहुत ही आम बात उठाती है जो हमें इन सभी लेसंस को बांधकर रखने में मदद करने वाली है।
हां, गर्म पानी से लंबे वक़्त तक नहाना अच्छा लगता है। लेकिन अगर हम प्रकृति और शरीर को होने वाले नुकसान को अलग भी करें, तो क्या ये हमारे वक़्त का बेहतर इस्तेमाल है? ज़्यादातर लोग उस गर्म पानी के एहसास और प्राइवेसी पाने के लिए नहाने के वक़्त को चुनते हैं।
खैर जैसा कि कार मैकेनिक कभी कभी कहते हैं, आपकी परेशानी ठीक यही है। हममें से ज़्यादातर लोगों के लिए, बाथरूम उन चंद जगहों में से एक है, जहां हमें प्राइवेसी मिलती है। और नहाना दिन भर के उन चुनिंदा पलों में से है, जब हम अपने शरीर के लिए कुछ अच्छा और रिलैक्सिंग कर रहे होते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हमारे पास "मी टाइम" की कमी है और हम नहाने को इसकी भरपाई के तौर पर इस्तेमाल करते हैं।
इसका बहुत ही आसान हल है, खुद के लिए थोड़ा वक़्त निकालें। शायद खुद को रिलैक्स और एनर्जाइज करने के दूसरे बेहतर तरीके मौजूद हैं। आप हफ्ते में एक बार मसाज करवा सकते हैं या हर सुबह स्ट्रेचिंग कर सकते हैं। या आप हफ्ते में एक या दो बार ऐसा शानदार स्नान कर सकते हैं।
सिर्फ आप जानते हैं कि आपके शरीर को क्या चाहिए, तो ये माइंडफुलनेस की एक और एक्सरसाइज है। आपको खुद से थोड़ा और ट्यून मिलाना होगा और पता करना होगा कि आपको रिलैक्स होने के लिए क्या चाहिए।
ये टाइम मैनेजमेंट की भी एक और एक्सरसाइज है। आपको अपना "मी टाइम" वक़्त के हिसाब से शेड्यूल करना होगा। यही बात उन सभी चीज़ों पर लागू होती है जिनसे आप एनर्जाइज महसूस करते हैं और जो करने से आपको लगता है कि आपने अपने वक़्त का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल किया है। जिम में वर्कआउट करना हो, दोस्त के साथ वॉक पर जाना हो, अपने परिवार के साथ वक़्त बिताना या अपने पार्टनर के साथ रोमांटिक वक़्त गुज़ारना - इनमें से कुछ भी नहीं हो पायेगा, जब तक आप इनके लिए वक़्त नहीं निकालेंगे। तो आप किसलिए इंतज़ार कर रहे हैं? आपकी ज़िंदगी आपके हाथ में है!
कुल मिलाकर
शायद आप सचमुच वक़्त को नहीं रोक सकते, लेकिन आप माइंडफुल होकर और खुद को एनर्जाइज करते हुए अगर इसका समझदारी से इस्तेमाल करते हैं, तो इसे धीमा कर सकते हैं ताकि इससे ज़्यादा से ज़्यादा हासिल हो सके। ऐसा करने के लिए आपको माइंडफुलनेस की प्रैक्टिस के लिए वक़्त निकालना होगा और ऐसी चीज़ें भी करनी होंगी जिससे आपको एनर्जी मिलती है। और इसके लिए टाइम मैनेजमेंट की ज़रूरत है। ज़्यादा माइंडफुल और एनर्जेटिक होने के बाद आप अपने वक़्त को भी बेहतर तरीके से मैनेज कर पाएंगे - उसका ज़्यादा प्रोडक्टिव, मज़ेदार और अर्थपूर्ण तरीके से इस्तेमाल कर पाएंगे। आखिर में जो रिजल्ट मिलेगा उसे टाइम प्रोस्पेरिटी कहा जा सकता है, जहां इस दुनिया में आपके सीमित वक़्त से आपको ज़्यादा से ज़्यादा हासिल होता है।
क्या करें?
कुछ घंटे प्रैक्टिस करें।
अपने वक़्त के सही इस्तेमाल की अच्छी आदतों को बनाने के लिए लगभग 90 दिन के प्रैक्टिस की ज़रूरत होती है। इसमें आपकी मदद करने के लिए लेखक आपको कुछ ऐसा करने की सलाह दे रहे हैं जिसे वे 100-डे गोंग कहते हैं। हर रोज़ आप एक तयशुदा वक़्त के लिए एक "टाइम-स्टॉपिंग" तकनीक की प्रैक्टिस करें, जिसे वो गोंग कहते हैं। इन लेसंस में हमने लगभग 7 गोंग्स की बात की है, तो आप पूरे हफ्ते रोज़ एक गोंग की प्रैक्टिस कर सकते हैं। उदहारण के लिए, सोमवार को: अपनी ज़िंदगी के लाइफ गार्डन के पौधों और खरपतवार को पहचानें। मंगलवार को: किसी भी एक खाने के वक़्त मेडिटेशन एक्सरसाइज करें। बुधवार को: सफर करते वक़्त ऑडियोबुक या पसंद का गाना सुनें। गुरुवार को: बेकार के कमिटमेंट्स को नरमी से मना करें। शुक्रवार को: एक शानदार बाथ लें। शनिवार को: परिवार के लिए थोड़ा वक़्त निकालें। और रविवार को: आप जिस तरह से अपना वक़्त बिता रहे हैं, उसके ROI के बारे में सोचें।
येबुक एप पर आप सुन रहे थे The Art of Stopping Time by Pedram Shojai
ये समरी आप को कैसी लगी हमें yebook.in@gmail.comपर ईमेल करके ज़रूर बताइये.
आप और कौनसी समरी सुनना चाहते हैं ये भी बताएं. हम आप की बताई गई समरी एड करने की पूरी कोशिश करेंगे.
अगर आप का कोई सवाल, सुझाव या समस्या हो तो वो भी हमें ईमेल करके ज़रूर बताएं.
और गूगल प्ले स्टोर पर ५ स्टार रेटिंग दे कर अपना प्यार बनाएं रखें.
Keep reading, keep learning, keep growing.
