Geoff Colvin
दुनिया के सबसे काबिल लोग बाकी लोगों से किस तरह अलग होते हैं।
दो लफ्जों में
टैलेंट इज़ ओवररेटेड (Talent is Overrated )हमें प्रैक्टिस के महत्व के बारे में बताती है। यह किताब हमें बताती है कि किस तरह से कामयाब होने के पीछे हुनर या अनुभव का नहीं बल्कि कड़ी मेहनत का हाथ होता है। इसे पढ़कर आप किसी काम में महारत हासिल करने के तरीकों के बारे में जानेंगे।
यह किसके लिए है
-वे जो मानते हैं कि कामयाब होने के लिए हुनर का होना जरूरी है।
-वे जो किसी काम में महारत हासिल करने के राज के बारे में जानना चाहते हैं।
-वे जो खुद को किसी काम में बेहतर बनाना चाहते हैं।
लेखक के बारे में
ज्योफ कोल्विन (Geoff Colvin )फार्च्यून मैगज़ीन के सीनियर एडिटर और जर्नलिस्ट हैं। वे एक लेखक भी हैं जो अपनी किताब - ह्यूमन्स आर अंडररेटेड, टैलेंट इज़ ओवररेटेड और द अपसाइड आफ द डाउनटर्न के लिए जानें जाते हैंl
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
कामयाब कौन नहीं बनना चाहता। लेकिन बहुत कम लोग हैं जो वो करने के लिए तैयार हैं जो एक कामयाब व्यक्ति को करना पड़ता है। जब वे उस तरह से काम नहीं कर पाते , तो वे अपने दर्द को कम करने के लिए कहते हैं कि या तो कामयाब व्यक्ति के अंदर किसी तरह का पैदाइशी हुनर था, या फिर उसकी किस्मत अच्छी थी। यह किताब बताती है कि दोनों ही बातें किस तरह से गलत हैं।
यह किताब हमें अलग अलग स्टडीज़ और रीसर्च की मदद से बताती है कि किस तरह से एक व्यक्ति किसी काम में महारत हासिल करता है। यह किताब हमें बताती है कि किस तरह से आप भी किसी काम को करने के काबिल बन सकते हैं।
-कामयाब होने के लिए किस चीज़ की जरूरत पड़ती है।
-जल्दी शुरुआत करने के क्या फायदे हैं।
-किस तरह से प्रैक्टिस करना सबसे फायदेमंद होता है।
अनुभव या हुनर के होने से कोई भी व्यक्ति अपने काम में माहिर नहीं बनता।
हम में से ज्यादातर लोग अपने काम को बहुत समय से कर रहे हैं। एक्ज़ाम्पल के लिए दुनिया में बहुत से डाक्टर हैं जो 30 साल से मरीजों को देख रहे हैं और बहुत से इंजीनियर हैं जो कई सालों से अपनी इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब यह लोग इतने सालों से एक ही काम कर रहे हैं, तो इनमें से सिर्फ कुछ लोग ही अपने फील्ड में टाप पर क्यों पहुंचते हैं? अगर अनुभव से कामयाबी मिलती तो इन सभी लोगों को कामयाब होना चाहिए था।
अगर हम स्टडीज़ की मानें तो बहुत से लोग जैसे जैसे अपने काम में अनुभव पाते हैं, वे पहले से ज्यादा खराब होने लगते हैं। जब बहुत से डाक्टरों का टेस्ट लिया गया तो यह देखा गया कि जिन डाक्टरों को बहुत ज्यादा अनुभव था, उनके मार्क्स कम आए। यह बात लगभग सभी तरह के लोगों पर लागू होती है। स्टाकब्रोकर, पुलिस, अकाउंटेंट और एक आम कर्मचारी। ऐसा लगता है कि जैसे जैसे यह लोग अपने काम में ज्यादा अनुभवी होते जाते हैं, वे लापरवाही से काम करना शुरू कर देते हैं क्योंकि वे अपने काम से ऊब चुके होते हैं।
यही बात हुनर पर भी लागू होती है। जरूरी नहीं है कि वही व्यक्ति कामयाब हो जिसके पास हुनर हो। 1990 के दशक में की गई एक स्टडी में यह देखा गया कि जब तक एक व्यक्ति खूब मन लगा कर मेहनत नहीं करता, तब तक वो कामयाब नहीं होता, अब चाहे उसमें हुनर हो या ना हो। 257 लोगों पर यह स्टडी की गई जो कि म्यूज़िक सीख रहे थे और यह देखा गया कि जो लोग ज्यादा कामयाब हुए उनमें किसी भी तरह का हुनर नहीं था।
इस स्टडी में यह देखा गया कि जो लोग ज्यादा कामयाब हुए, वो कम प्रैक्टिस में ज्यादा नहीं सीखते थे। जब तक वे अच्छे से प्रैक्टिस करना नहीं शुरू करते तब तक उनका हुनर नहीं दिखता था।
कामयाबी का आइक्यू से कोई लेना देना नहीं है।
बहुत से लोगों को लगता है कि जो लोग अच्छा मैथ लगा पाते हैं या चीज़ों को ज्यादा अच्छे से याद रख पाते हैं वे ज्यादा कामयाब होते हैं। अगर हम चार सेल्समैन को आपके सामने लाकर खड़ा कर दें और कहें कि उनमें से एक का आइक्यू बाकियों से ज्यादा है तो शायद आप मन ही मन यह सोच लेंगे कि वो कुछ ज्यादा अच्छा काम करता होगा।
यह सिर्फ आपको ही नहीं लगता, जब उनके बॅास को बता कर उनसे यह पूछा गया कि कौन ज्यादा सेल्स कंपनी के लिए लाता है, तो उनके बॅास ने भी उनकी तरफदारी की जिनका आइक्यू ज्यादा बताया गया। लेकिन जब रीसर्चर्स ने उनके पर्फार्मेंस को देखा तो उन्होंने पाया कि वे कुछ ज्यादा अच्छा काम नहीं कर रहे थे।
लोगों को लगता है कि जिनका आइक्यू ज्यादा होता है वे मुश्किल कामों को ज्यादा अच्छे से कर पाते हैं और इसलिए ज्यादा कामयाब होते हैं। पर असल जिन्दगी में यह देखा कि जिनका आइक्यू ज्यादा होता है वे स्कूलों में तो ज्यादा अच्छा करते हैं, लेकिन असल जिन्दगी में दूसरों की तरह ही काम करते हैं। इसका एक एक्ज़ाम्पल हमें हैंडिकैपर्स।
हैंडिकैपर्स वे होते हैं जो घोड़ों की रेस में उनके ऊपर पैसे लगाते हैं। यहाँ पर जिनका आइक्यू ज्यादा होता है कम आइक्यू वालों के मुकाबले घोड़ों को ज्यादा अच्छे से नहीं समझ पाते। यहाँ तक कि जो सबसे अच्छा हैंडिकैपर था उसका आइक्यू 85 था और वो एक मजदूर की तरह काम करता था और जो सबसे खराब हैंडिकैपर था उसका आइक्यू 118 था और वो एक वकील था।
यहाँ तक की चेस में भी यह देखा गया है कि जो ग्रैंडमास्टर होते हैं, उनका आइक्यू औसत के मुकाबले कम होता है। इन सभी बातों से एक बात साफ है कि ज्यादा आइक्यू होने का मतलब यह नहीं है कि वह व्यक्ति ज्यादा कामयाब होगा।
ज्यादातर कामयाब लोग कामयाबी पाने पहले लगभग 10 साल तक प्रैक्टिस करते हैं।
बहुत से लोगों को लगता है कि कामयाब लोगों को अचानक से लेटे हुए एक अच्छा आइडिया आ जाता है और वे उसपर काम करने लगते हैं जिससे उन्हें कामयाबी मिलती है। अगर आप खुद को ले लीजिए, तो आपको कितनी बार इस तरह के आइडियाज़ आते हैं? बहुत कम। ठीक इसी तरह से हर एक व्यक्ति को उसका पहला सबसे कामयाब आइडिया बहुत समय तक काम करने के बाद मिलता है।
अगर ऐसा है, तो लोगों के अंदर यह भ्रम कहाँ से पैदा होता है कि कामयाब लोग अचानक से कामयाब हो जाते हैं? ऐसा इसलिए क्योंकि लोग सुनी सुनाई कहानियों पर यकीन कर लेते हैं और कभी बात की गहराई तक नहीं जाते। वे सिर्फ कामयाबी की चमक देखते हैं, उसके पीछे की तकलीफों को नहीं। आप में से बहुत से लोगों ने आर्केमिडीस की कहानी सुनी होगी कि उन्हें नहाते वक्त यह आइडिया आया था कि वे किस तरह से किसी भी चीज़ का वाल्यूम निकाल सकते हैं और यह पता लगा सकते हैं कि राजा का सोने का मुकुट शुद्ध सोने का था या फिर उसमें मिलावट की गई थी। लेकिन क्या आप ने कभी इसके पीछे की कहानी जानने की कोशिश की?
रीसर्च में यह बात देखने को मिली कि इस तरह के आइडिया हमेशा उसी के पास आते हैं जो पहले से अपने काम में माहिर होते हैं, एक स्टडी में लगभग 76 कंपोसर्स के काम को देखा गया और यह पाया गया कि अपना पहला सबसे कामयाब काम करने से पहले वे लगभग 10 साल तक उसकी प्रैक्टिस किया करते हैं। कलाकारों और कवियों के साथ भी यही देखने को मिला। वे 10 साल तक प्रैक्टिस करते हैं और इसके बाद अपना वो काम निकालते हैं जिससे उन्हें दुनिया जानने लगती है।
यह दस साल का नियम लगभग हर जगह पर लागू होता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या काम करते हैं, पहली शानदार कामयाबी से पहले आपको 10 साल तक काम करना होगा। आर्कमिडीस को नहाते वक्त वह आइडिया आया था, यह उन्होंने अपनी किसी भी किताब में नहीं लिखा है, तो हो सकता है कि यह कहानी झूठ हो। वे इसे खोजने से पहले राजा के लिए बहुत से अच्छे काम कर चुके थे। वे अपने काम में माहिर थे और इसलिए उन्हें यह आइडिया आया था।
लगातार प्रैक्टिस करने से ही आप सबसे ऊपर पहुंच सकते हैं।
चाहे आप कोई भी काम सीख रहे हों, अगर आपको उसमें कामयाब होना है तो आपको खुद को उस काम में डुबो कर हर दिन प्रैक्टिस करना होगा। काफी स्टडीज़ में यह पाया गया कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं, क्या काम करते हैं, आपके टीचर कौन हैं या फिर आप में कितना हुनर है, किसी काम में वही व्यक्ति सबसे उपर पहुंचता है जो सबसे ज्यादा प्रैक्टिस करता है।
यह स्टडी कुछ वायलिनिस्ट्स पर की गई थी। इसका मकसद था यह पता लगाना कि क्यों कुछ वायलिनिस्ट्स दूसरों के मुकाबले अच्छा वायलिन बजाते हैं। इनके बारे में बहुत सारी जानकारी इकट्ठा की गई, जैसे कि ये कितना प्रैक्टिस करते हैं, उनके टीचर कौन हैं, उन्होंने किस उम्र से म्यूजिक सीखना शुरू किया था। उनके बहुत सारे टेस्ट लिए गए और साथ ही उनका इंटरव्यू भी लिया गया।
इतने सारे पहलुओं को परखने के बात जो बात सामने आई वह यह थी कि जो लोग सबसे अच्छा वायलिन बजाते हैं वे उनमें और बाकी सब में सिर्फ इतने का अंतर होता है कि वे कितना और किस तरह से प्रैक्टिस करते हैं। सबसे जरूरी बात यह है कि वे किस तरह से प्रक्टिस कर रहे हैं। वे हर बार प्रैक्टिस करते वक्त पहले से कुछ ज्यादा अच्छा करने की कोशिश करते हैं और लगभग हर दिन प्रैक्टिस किया करते हैं।
अच्छे से प्रैक्टिस करने का मतलब यह है कि अपने पिछले काम को देखना की उसमे क्या कमी थी और किस तरह से उसे सुधारा जाता सकता है। साथ ही अपने पर्फार्मेंस को लेकर समय समय पर दूसरों से राय लेते रहना ताकि आपको उन कमियों के बारे में पता लगे जो आप नहीं देख पा रहे हैं।
इस बात को साबित करने के लिए लास्लो पोल्गार नाम के एक साइकोलाजिस्ट ने अपनी तीन बेटियों को चेस चैंपियन बनाने का फैसला किया। वे और उनकी पत्नी क्लारा, दोनों ही चेस में अच्छे नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपनी तीनों बेटियों को बचपन से ही चेस सिखाना शुरू किया और उसका नतीजा यह निकला कि वे तीनों दुनिया की सबसे बेहतरीन खिलाड़ियों में से एक बनी।
लगातार प्रैक्टिस करने से आप अपने काम को अच्छे से समझ पाते हैं और उससे संबंधित जानकारी को ज्यादा अच्छे से याद रख पाते हैं।
अगर आप कुछ खिलाड़ियों को खेलते हुए देखें तो आप पाएंगे कि वे जिस तरह से खेलते हैं, उसे देखकर ऐसा लगता है कि उन्हें किसी तरह का वरदान मिला है। हाँ, उन्हें वरदान तो मिला है, लेकिन उसे पाने के लिए उन्होंने बहुत तपस्या भी की है। जैसे जैसे आप ज्यादा प्रैक्टिस करने लगते हैं, वो काम आपके शरीर और आपके दिमाग में उतरने लगता है। कैसे ? आइए देखते हैं।
सबसे पहला तो यह कि बार बार प्रैक्टिस करने से आप कुछ हद तक भविष्य में झाँक पाते हैं। एक्ज़ाम्पल के लिए टेनिस के खिलाड़ियों को ले लीजिए। इससे पहले कि उनका प्रतियोगी बॅाल को मारकर उनके पास भेजे, वे अपने प्रतियोगी के पोजीशन को देखकर समझ जाते हैं कि बॅाल किस तरफ जाने वाली है। एक आम आदमी बॅाल को देखकर यह समझ पाता है कि वो कहाँ जा रही है, लेकिन एक काबिल खिलाड़ी अपने प्रतियोगी के मारने से पहले ही उसके हाव भाव को देखकर यह समझ जाता है कि वो किस तरह से मारने वाला है और उसे इसका जवाब कैसे देना है।
दूसरा यह कि जब आप किसी काम में माहिर हो जाते हैं तो आप उससे संबंधित जानकारी को बहुत आसानी से याद रख पाते हैं। अगर आपको इसे समझना है तो आप शर्लाक होम्स नाम की मूवी देखिए। इस फिल्म में शर्लाक होम्स एक जासूस रहता है कि जो कमरे में बिखरी हुई चीजों को देखकर यह बता देता है कि उस कमरे में उसके आने से पहले क्या क्या हुआ था। छोटी छोटी जानकारियों को देखकर और उन्हें लम्बे समय तक याद रखकर वो अंत में सारी गुत्थी सुलझा लेता है।
ऐसा सिर्फ फिल्मों में ही नहीं, असल जिन्दगी में भी बहुत होता है। चेस ग्रैंडमास्टर्स जब कंप्यूटर के साथ खेलते हैं तो वे लगभग 8 दाँव तक का अंदाजा लगा लेते हैं। उन्हें पता लग जाता है कि एक दाँव के चलने पर सामने वाला क्या चलने वाला है, उसके बाद उन्हें क्या चलना है और फिर से उसके बाद उनके सामने वाला क्या चलेगा। इस तरह से वे सारी चाल समझ जाते हैं और जीत जाते हैं।
अंत में यह देखने को मिलता है कि जैसे जैसे हम अपने काम को प्रैक्टिस करते रहते हैं, हमारा शरीर उसी हिसाब से खुद को ढ़ालने लगता है। जो लोग रेस में दौड़ते हैं, समय के साथ उनका दिल थोड़ा बड़ा हो जाता है। उनकी माँसपेशियाँ बदल जाती हैं और उनके दिमाग में नए कनेक्शन बनने लगते हैं। इस तरह के नए कनेक्शन उनकी आदतों को दिखाते हैं। बार बार प्रैक्टिस करने से वो काम उनके दिमाग के ढ़ाँचे में उतर जाता है, जिससे हमें ऊपर से देखने में लगता है कि उन्हें किसी तरह का वरदान मिला है।
आप जितनी जल्दी शुरुआत करेंगे, आपके कामयाब होने की संभावना उतनी ज्यादा हो जाएगी।
तो हमने देखा कि किसी काम में माहिर बनने के लिए आपको काफी समय तक प्रैक्टिस करना होगा। इसका मतलब अगर आप जल्दी कामयाबी हासिल करना चाहते हैं, तो आपको जल्दी शुरुआत करनी होगी। इसके पीछे बहुत सी वजह है। आइए उन्हें जानते हैं।
अगर हम वैज्ञानिकों की बात करें, तो आप ने देखा होगा कि वे हमेशा बूढ़े होते हैं। इसकी एक वजह यह है कि इससे पहले आप कोई खोज करें, आपको वह सब कुछ सीखना होगा जो अब तक बनाया गया है। एक वैज्ञानिक को किसी तरह की नई खोज करने से पहले वो सब कुछ जानना होता है जो उसके फील्ड में अब तक खोजा गया है। अब क्योंकि हर दिन कुछ ना कुछ नई खोज हुई जा रही है, उन्हें सब कुछ सीखने में बहुत समय लग जाता है। इसका मतलब अगर वे जल्दी शुरू करेंगे, तो जल्दी कामयाब होंगे।
आज के वक्त में जो वैज्ञानिक नोबल प्राइज़ पाते हैं, उनकी उम्र 100 साल पहले के वैज्ञानिकों के मुकाबले 6 साल ज्यादा होती है। इसकी वजह यही है कि 100 साल में जो कुछ भी खोजा गया, उसे सीखने में उन्हें 6 साल का ज्यादा समय लगता है और इतना सीखने के बाद ही वे कुछ खोज कर पाते हैं।
इसके बाद जब आप कम उम्र में शुरुआत करते हैं तो आपके सिर पर किसी तरह की जिम्मेदारी नहीं होती। आपको अपना परिवार नहीं देखना होता, बल्कि आपका परिवार आपको देख रहा होता है। इस वक्त आप अपना ज्यादा से ज्यादा समय प्रैक्टिस करने पर लगा सकते हैं।
यह जरूरी नहीं है कि आपका परिवार हमेशा आपको आपके काम के लिए सहारा दे, लेकिन यह देखा गया है कि जो लोग बहुत ऊपर उठते हैं, उनके परिवार में उनका बहुत खयाल रखा गया होता है और उन्हें बहुत सहारा दिया गया होता है। अब यह भी जरूरी नहीं है कि अगर आपका परिवार आपको सहारा नहीं दे रहा है, तो आप कामयाब नहीं होंगे। कम उम्र में आपके ऊपर कम जिम्मेदारी रहती है जिससे आप ज्यादा काम कर पाते हैं।
इसके अलावा सबसे अच्छी बात यह कि कम उम्र में आपके सीखने की क्षमता बहुत ज्यादा होती है और आप मुश्किल हालात का सामना आसानी से कर लेते हैं। इसलिए अगर कोई परेशानी आती है तो आप उसे कम समय में सुलझा कर ज्यादा आगे बढ़ सकते हैं।
किसी काम की प्रैक्टिस लगातार करने के लिए आपको प्रेरणा की जरूरत पड़ेगी।
जब तक आपके अंदर किसी काम को करने की लगन पैदा नहीं होगी, तब तक आप उस काम को मन लगाकर नहीं कर पाएंगे। इसलिए सबसे जरूरी है कि आपके पीछे कोई ऐसा फोर्स हो जो कि आपको हमेशा आगे बढ़ने के लिए ढ़केलता रहे। आपके अंदर बेहतर बनने के लिए एक प्रेरणा होनी चाहिए।
प्रेरणा कई तरह से पैदा हो सकती है। कभी कभी जब व्यक्ति को लगता है कि वो अपने उम्र के दूसरे लोगों के मुकाबले ज्यादा बेहतर है, तो वो खुद को और ज्यादा बेहतर बनाने में लग जाता है। जब हमें लगता है कि हम दूसरों के मुकाबले बेहतर हैं तो हमें एक सुकून मिलता है और उस सुकून को बरकरार रखने के लिए हम ज्यादा मेहनत करने लगते हैं। साथ ही इसके कुछ दूसरे फायदे भी हैं।
अगर आप दूसरों के मुकाबले कुछ ज्यादा बेहतर हैं, तो हो सकता है कि आपके टीचर्स आपके ऊपर खास ध्यान देने लगें या फिर वे आपको कुछ ज्यादा काबिल लोगों के साथ बैठने के लिए भेज दें, जहाँ पर आप ज्यादा अच्छा काम करना सीख जाते हैं। इसे मल्टिप्लायर एफेक्ट कहते हैं। एक छोटा सा फायदा समय के साथ खुद को बहुत बड़ी कामयाबी में बदल लेता है।
कामयाब होने के लिए प्रेरणा आपके अंदर होनी चाहिए। अगर आपको अपना काम करने के लिए बार बार मोटिवेशन की जरूरत पड़ती है तो आपको दूसरा काम खोज लेना चाहिए, क्योंकि उस काम में आपका मन नहीं लग रहा है। हर वक्त बाहर से आपको प्रेरित करने के लिए कोई नहीं आएगा। इसलिए आपको अपने अंदर उस भावना को पैदा करना होगा।
लेकिन बहुत बार यह देखने को मिलता है कि कभी कभी लोगों को शुरुआत में काम करने के लिए ढ़केलना पड़ता है। 24 पियानिस्ट पर की गई एक स्टडी में यह पाया गया कि जब वे बच्चे थे तो उनपर पियानो बजाने के लिए जोर दिया गया था। लेकिन कुछ समय के बाद जब वे अच्छा करने लगे तो उन्हें खुद ही पियानो अच्छा लगने लगा। इसके बाद उन्हें प्रैक्टिस करने के लिए किसी बाहरी दबाव की जरूरत नहीं पड़ती थी। पहली बार जब उनपर दबाव डाला जाता है तो उन्हें यह समझ में आ जाता था कि इस मेहनत के बाद जो नतीजा उन्हें मिलेगा, उसके सुकून में कुछ अलग मजा है। उसे पाने के लिए वे खुद प्रैक्टिस करने लगते हैं।
किसी भी काम में कामयाब बनने के लिए आपको खुद में सुधार करते हुए आगे बढ़ना होगा।
तो हमने देखा कि कामयाब होने के लिए अगर जिन्दगी में हम जल्दी शुरुआत कर दें या फिर शुरू करते वक्त हमें किसी तरह का छोटा सा फायदा मिल जाए, तो हम ज्यादा कामयाब हो जाते हैं। लेकिन हम अब पीछे जाकर फिर से उन सारी चीजों का फायदा नहीं उठा सकते। चाइना में एक कहावत है - पेड़ लगाने का सबसे अच्छा समय 20 साल पहले था, और दूसरा सबसे अच्छा समय अब है। तो अगर आप 20 साल पहले पेड़ नहीं लगा पाए थे, तो अब लगाइए। आइए देखते हैं कि इसके लिए आपको क्या करना होगा।
सबसे पहले खुद को अपनी मंजिल के लिए समर्पित कर दीजिए। उसे पाने के लिए अपना पूरा जोर लगा दीजिए, भले ही आपके हालात कुछ भी कहें। उस काम को हर रोज प्रैक्टिस कीजिए और जितना ज्यादा हो सके, उतना ज्यादा प्रैक्टिस कीजिए। आपके अंदर उस चीज़ को पाने की अनंत चाहत होनी चाहिए।
अगर आपको कोई चीज़ सिर्फ पसंद है, तो आप उसमें कामयाब नहीं बनेंगे। आपको वो नहीं मिलेगी जो आपको चाहिए, आपको वो मिलेगी जो आपको चाहिए ही चाहिए। उन लोगों की आत्मकथा पढ़िए जो किसी ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीत कर आए हों और यह देखने की कोशिश कीजिए कि वे कैसे प्रैक्टिस करते थे। उनकी जिन्दगी प्रैक्टिस से भरी नहीं थी, बल्कि वो प्रैक्टिस को ही अपनी जिन्दगी मानते थे।
इसके बाद आपको यह देखना होगा कि आपके काम को कहाँ पर सुधार की जरूरत है। सिर्फ प्रैक्टिस करना ही काफी नहीं है, यह देखिए कि कहाँ पर आप गलती कर रहे हैं और कहाँ पर आपको सुधार की जरूरत है। अगर आप अच्छा बोलने की प्रैक्टिस कर रहे हैं, तो खुद को बोलते वक्त रिकॉर्ड कीजिए और यह देखिए कि आप कहाँ पर फँस रहे हैं। अगर अच्छा लिखने की प्रैक्टिस कर रहे हैं तो अपनी पिछली राइटिंग को देखकर उसमें कमियां निकालने की कोशिश कीजिए।
कुल मिलाकर
आप किसी काम को जितना ज्यादा प्रैक्टिस करेंगे, उस काम में उतने माहिर बन जाएंगे। कामयाबी का हुनर, अनुभव या फिर हालात से कोई लेना देना नहीं है। बार बार प्रैक्टिस करते रहने से हमारा शरीर खुद को उस काम के हिसाब से ढ़ालने लगता है और हम उस काम को ज्यादा पसंद अच्छे से कर पाते हैं।
अच्छे नतीजे पाने के लिए हर दिन प्रैक्टिस कीजिए।
अगर आप अपने काम में बेहतर बनना चाहते हैं तो यह मत देखिए कि आप कितने घंटे प्रैक्टिस कर रहे हैं, बल्कि यह देखिए कि आप किस तरह से प्रैक्टिस कर रहे हैं। ज्यादा सुधार करने के लिए अपनी पर्फार्मेंस को परखिए और उसमें कमियां निकालने की कोशिश कीजिए। जरूरत पड़ने पर एक्सपर्ट की राय लीजिए और यह पता कीजिए कि कहाँ पर आप बेहतर कर सकते हैं।