Raising Leaders.... ____🏃

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Raising Leaders


Wendy Born
Using The Principles of Parenting At Work to Become A Great Leader And Create Great Leaders

दो लफ्ज़ों में
साल 2020 में रिलीज़ हुई किताब “Raising Leaders” बताती है कि आम इंसान के अंदर लीडरशिप की क्वालिटी कैसे आ सकती है? इस किताब को पढ़ने के बाद आपको पता चलेगा कि बच्चों की परवरिश और लीडरशिप में क्या समानताएं हैं?

ये किताब किसके लिए है? 
- न्यू पैरेंट्स के लिए जिन्हें पॉजिटिव सलाह की ज़रूरत हो 
- बिजनेस लीडर्स के लिए 
- ऐसा कोई भी जिसे लीडरशिप में इंटरेस्ट हो 

लेखक के बारे में
आपको बता दें कि इस किताब का लेखन ‘Wendy Born’ ने किया है. ये बिजनेस डेवलपमेंट और मैनेजमेंट स्पेशलिस्ट हैं. इनको अपनी फील्ड में 25 सालों से भी ज्यादा का अनुभव है. इन्होंने ‘The Languages of Leadership’ नाम की किताब का लेखन भी किया है.

पैरेंटिंग और मैनेजमेंट के बीच में कई समानताएं होती हैं
बच्चें अपना ज्यादातर समय क्लास रूम और प्ले रूम के बीच में बिताते हैं. कर्मचारी बातचीत ब्रेक रूम में करते हैं और मौज़ूद बोर्ड रूम में होते हैं. ये लोकेशन काफी अलग-अलग लग रही होंगी. लेकिन ग्रेट लीडर्स को पता होता है कि वर्क और पैरेंटिंग के बीच में सामंजस्य कैसे बैठाना है?

लेखक बताते हैं कि ऐसा करना कुछ ज्यादा मुश्किल भी नहीं है. कुछ सिम्पल स्ट्रेटजीस होती हैं जिनके बारे में आपको पता होना चाहिए. इस किताब के चैप्टर्स को पढ़ने के बाद आपको उन स्ट्रेटजीस के बारे में पता चल जाएगा. आज के दौर में पैरेंट्स और मैनेजर्स को उस तरह की स्किल्स की ज़रूरत है. इस किताब की समरी एक फ्रैंडली गाइड की तरह है. जिसकी मदद से आप लीडरशिप के गुण को अच्छे से सीख सकते हैं. इस समरी में आप सीखेंगे किऑफिस को क्लासरूम की तरह कैसे बनाया जा सकता है? और प्रतिभाशाली लीडर बनने के गुण।

तो चलिए शुरू करते हैं!

ऐसा हर रात होता है. आप काफ़ी थका देने वाले दिन के बाद घर आते हैं. थोड़ी देर में रात हो जाती है. अब आपका शरीर नींद मांग रहा होता है. आप बिस्तर पर लेटते ही सो जाते हैं. काफी सुकून से भरी हुई नींद आपको आ रही होती है. लेकिन करीब एक घंटे बाद ही आपको बगल वाले कमरे से आपके बच्चे के रोने की आवाज़ आती है. ये आवाज़ बताती है कि अब समय उठने का आ गया है. अब आपके पैरेंटिंग करने का वक्त आ चुका है. 

आपको बता दें कि नए-नए पैरेंट्स को ऐसी सिचुएशन का सामना ज़रूर करना पड़ता है. लीडरशिप एक्सपर्ट ‘Wendy Born’ को भी इस सिचुएशन का सामना करना पड़ा था. उनके पहले बच्चे के बाद उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था. कई बार उन्हें काफी अज़ीब महसूस होता था. कई बार वो खुद से ही परेशान हो जाया करती थीं. 

उस तरह की फीलिंग अन कम्फर्टेबल तो ज़रूर थी लेकिन नई नहीं थी. कई नए मैनेजर्स को वर्क प्लेस में भी ऐसा महसूस होता है. 

शुरूआती दौर में बच्चों को बड़ा करना कोई आसान काम नहीं है. बच्चों को बड़ा करना बहुत कठिन है. बच्चें टेम्परामेंटल के साथ-साथ अन प्रेडिक्टेबल भी होते हैं. लेकिन मैनेजर्स को पता होता है कि उनके वर्क प्लेस में इस नेचर के भी कर्मचारी होते हैं. लेकिन पैरेंटिंग फुल टाइम जॉब से भी बड़ी चीज़ होती है. इसमें कभी भी 8 घंटे का वर्किंग कल्चर नहीं होता है. ‘Australian Bureau’ ऑफ़ स्टेटिक्स में बताया गया है कि इस दौरान 8 में से एक पैरेंट्स काफी ज्यादा प्रेशर में आ जाते हैं. 

लेकिन दोनों ही जिंदगियों में चाहे हम पैरेंटिंग की बात करें या फिर प्रोफेशनल लाइफ की. दोनों ही लाइफ में ख़ुशी और रीवार्ड्स भी काफी मिलते हैं. फर्क बस इस बात का पड़ता है कि आप अपनी लाइफ को अप्रोच कैसे करते हैं? लाइफ को हैंडल करने का आपका एटीट्यूड कैसा है? सही एटीट्यूड सही कम्पैशन की वजह से आता है. हार्वर्ड बिजनेस रिव्यु ने 84 कम्पनियों के मैनेजमेंट स्टाइल के ऊपर स्टडी की थी. उस स्टडी में उन्होंने पाया कि जिन सी.ई.ओ ने अपने काम में हाई लेवल ऑफ़ कम्पैशन दिखाया था. उन्होंने बाकी लोगों से 500 गुना बेहतर काम किया था. 

कम्पैशन को विकसित करने के लिए नज़रिए के तीन रूपों की ज़रूरत होती है. अंतर्दृष्टि, स्पष्ट दृष्टि और दूरदर्शिता. अंतदृष्टि का मतलब होता है कि आपको ज्ञान होना चाहिए कि आप क्या कर रहे हैं? और क्यों कर रहे हैं? स्पष्ट दृष्टि का मतलब होता है कि आपको पता हो कि कौन से एक्शन और सिचुएशन आपके कंट्रोल में हैं? इसके बाद दूरदर्शिता का नंबर आता है. उसका मतलब होता है कि आपको लॉन्ग टर्म गोल्स के बारे में भी पता होना चाहिए. आपको पता होना चाहिए कि आपके वर्क का पर्पस क्या है? 

मोमेंट्स ऑफ़ रिफ्लेकशन के ऊपर काम करते हुए आप इन खूबियों के ऊपर काम कर सकते हैं. दिन में 15 मिनट ज़रूर निकालने की कोशिश करिएगा. इन 15 मिनटों में आपको खुद के प्लान्स और एक्शन के बारे में विचार करने की ज़रूरत है. आपको पता चलेगा कि लाइफ में कौन से पहलू महत्वपूर्ण हैं और कौन से पहलू महत्वपूर्ण नहीं हैं. इस तरह की एक्सरसाइज और प्रैक्टिस से आपको काफी ज्यादा मदद मिलेगी. 

आने वाले चैप्टर्स में हम इन पहलुओं को और बेह्तर तरीके से समझने की कोशिश करेंगे.

पैरेंट्स और लीडर्स को 5 खूबियों को सीखने की कोशिश करनी ही चाहिए
महारानी एलिजाबेथ सेकंड के लिए 2019 एक कठिन वर्ष था. सबसे पहले, उनके पति ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग का दुखद कार एक्सीडेंट हुआ था. उसके बाद उनकी पोती रिश्वत कांड में फंस गई थी. इन सबके बाद उनके बेटे ने प्रिंस एंड्रयू ने अपने रिश्ते के बारे में सार्वजनिक किया जो कि बदनाम फाइनेंसर जेफरी एपस्टीन के साथ था. 

इतनी कठिन सिचुएशन के साथ भी महारानी ने काफी समझदारी के साथ डील किया था. महारानी का जीवन काफी लंबे समय से सामाज की सेवा के लिए ही लगा हुआ था. इतने लंबे करियर में उन्हें पता चल गया था कि परिवार और करियर के बीच में ताल मेल कैसे बैठाया जाता है? महारानी के एग्जाम्पल से आप समझ सकते हैं कि बढ़ियां लीडरशिप और पैरेंटिंग में कई समानताएं होती हैं. दोनों ही चीज़ों में बोल्डनेस और उदारता की ज़रूरत पड़ती है. 

इसलिए लेखक बताते हैं कि लीडरशिप और पैरेंटिंग में कई एक तरह के गुणों की ज़रूरत पड़ती है. इन दोनों फील्ड में आने वाले चैलेंज भी एक ही तरह के होते हैं. उन संघर्षों से आपके अंदर कई तरह की स्किल्स का निर्माण हो सकता है. अब सवाल ये उठता है कि दोनों में चीज़ों में आप मास्टर कैसे बन सकते हैं? क्या इसका कोई एक फ़ॉर्मूला है? 

इसके जवाब के तौर पर लेखक बता देना चाहते हैं कि इसका कोई एक फ़ॉर्मूला नहीं है. लेकिन अगर आपको ग्रेट पैरेंट या ग्रेट लीडर बनना है. तो फिर आपको 5 खूबियों को तो सीखना ही पड़ेगा. 

अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि हमें इन 5 खूबियों के बारे में कैसे पता चलेगा? 

इन खूबियों में पहली खूबी को ‘लव’ यानी प्यार कहते हैं. भले ही आप लीडर हों या फिर पैरेंट्स हों, आपको अपने आस-पास के लोगों के साथ प्यार, कम्पैशन, वार्म्थ और दरिया दिल के साथ रहना चाहिए. आपको अपनी ज़िम्मेदारी के लिए त्याग करने के लिए भी हमेशा तैयार रहना चाहिए. आपको हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहना चाहिए. 

दूसरे कोर एरिया का नाम इनवायरमेंट होता है. बच्चें हों या फिर कर्मचारी हों, दोनों को ही ऐसे माहौल की तलाश होती है. जहाँ पर उन्हें उड़ान की भी जगह मिल सकें. कोई भी इंसान दबाव के माहौल में काम नहीं करना चाहता है. हर किसी को पर्याप्त फ्रीडम की ज़रूरत होती है. लीडर्स और पैरेंट्स को इस माहौल के बारे में समझने की ज़रूरत है. आपको पता होना चाहिए कि ऐसे स्पेस का निर्माण करें जहाँ पर आपका बच्चा आज़ाद महसूस कर सके. अगर ऐसा नहीं होगा तो फिर उसे घुटन महसूस होने लगेगी. इस तरह की घुटन का फिर कोई इलाज नहीं निकल पाता है. इसी के साथ ही साथ आपको ये भी पता होना चाहिए कि सक्सेस का मतलब क्या होता है? 

हेल्थ को कभी भी नज़रंअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. इसलिए ये तीसरा महत्वपूर्ण एरिया है. घर हो या फिर ऑफिस हो, दोनों ही जगह लोग मेंटली और फिजिकली फिट रहना चाहते हैं. ये पहलू काफी ज्यादा ज़रूरी भी है. पैरेंट्स की ये ज़िम्मेदारी होती है कि वो अपने बच्चों की हेल्थ का ख्याल रख सकें. इसी तरह ऑफिस के मालिक होने के नाते ये लीडर की भी ज़िम्मेदारी होती है कि वो इस पहलू का ख्याल रखे कि किसी भी कर्मचारी के ऊपर काम का अतिरिक्त बोझ नहीं आना चाहिए. 

भाषा और व्यवहार से आपके आचरण का पता चलता है. यही वजह है कि ये चौथी खूबी भी है. जिसे आपको सीखने की ज़रूरत है. लीडर हों या पैरेंट हों आपको बात करने का लहज़ा पता होना चाहिए. आपको पता होना चाहिए कि बच्चों के दिमाग में भाषा का असर बहुत अधिक होता है. 

अब बारी पांचवें कोर एरिया की आती है. इसे विज़न के रूप में जाना जाता है. भले ही ये पांचवां कोर एरिया है. लेकिन इसका महत्त्व बहुत अधिक है. परिवार और ऑफिस का स्पेस ऐसा होना चाहिए जहाँ पर सभी लोग अपने गोल्स और सपने एक दूसरे के साथ बाँट सकें. 

अब सवाल ये भी उठता है कि लीडर और पैरेंट्स इन खूबियों को प्रैक्टिस में लेकर कैसे आएंगे? इसके लिए आपको आने वाले चैप्टर्स की समरी को सुनना या पढ़ना होगा.

प्यार और सपोर्ट के माहौल में लोग अपना बेस्ट करते हैं
अब लेखक आपकी मुलाक़ात एक बच्चे से करवाने वाले हैं. उस बच्चे का नाम गेराल्ड है. ये एक जवान लड़का है जो कि स्मार्ट, एनरजेटिक और एडवंचर है. लेकिन शुरुआत से वो ऐसा नहीं था. वो काफी गुसैल स्वभाव का हुआ करता था. उसे काफी ज्यादा एंगर इशू हुआ करते थे. 

शुरूआती दौर में उसके स्वभाव की वजह से उसे और उसके परिवार को कई दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा था. स्कूल के दिनों में कई बार उसे निकाला भी जा चुका था. कोई स्कूल उसके ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए दाखिला देने को तैयार नहीं हुआ करता था. 

लेकिन गेराल्ड के पैरेंट्स ने कभी हार नहीं मानी थी. उन्होंने उसका काफी ज्यादा साथ भी दिया था. उन्होंने उसे प्यार से हैंडल किया और उसे सपोर्ट किया था. 

रिजल्ट भी अच्छे आने शुरू हो गए थे. गेराल्ड के स्वभाव में काफी ज्यादा पॉजिटिव बदलाव देखने को मिल रहे थे. 

गेराल्ड की कहानी बताती है कि अच्छे पैरेंट्स हमेशा अपने बच्चों का साथ देते हैं. वो उन्हें सपोर्ट करते हैं. उनके ऊपर भरोसा करते हैं. इसी भरोसे के दम पर बच्चे भी अपने करियर में बेहतर से बेहतर करते जाते हैं. 

यही नियम लीडरशिप पर भी लागु होता है. एक लीडर को अपनी टीम का साथ देते रहना चाहिए. उसे पता होना चाहिए कि उसकी टीम में क्या पोटेंशियल है? 

प्यार की क्वालिटी को पैरेंट्स के साथ-साथ लीडर्स को भी सीखने की ज़रूरत है. इस क्वालिटी के दम पर आप पूरी तस्वीर बदल सकते हैं.

ओपन माइंडेड होने के कई फायदे हैं इसलिए ऐसे ही माहौल को क्रिएट करने की कोशिश करिएगा
चलिए एक बिल्डिंग को घूमने चलते हैं. इस बिल्डिंग का माहौल काफी ज्यादा पॉजिटिव है. वीक डे पर भी लोग काफी ज्यादा खुश नज़र आ रहे हैं. 

सभी लोग एक दूसरे की मदद करते हुए क्रिएटिव प्रोजेक्ट के ऊपर काम कर रहे हैं. 

ये कोई महंगा को-वर्किंग स्पेस नहीं है. ये पार्कहिल पब्लिक स्कूल का कैम्पस है. इसे इस तरह से बनाया गया है कि बच्चों के साथ टीचर भी अपने काम को एन्जॉय कर सकें. 

इस स्कूल की दीवारों में अच्छी-अच्छी पेंटिंग्स लगी हुई हैं. उन पेंटिंग्स में पॉजिटिव थॉट्स लिखे हुए हैं. बैठने के लिए खुली जगह है. जहाँ पर लोग क्रिएटिविटी के बारे में डिस्कस करते हैं. 

मॉडर्न वर्क प्लेस को इस एग्जाम्पल को फॉलो करना ही चाहिए. आपको पता होना चाहिए कि वर्क प्लेस का माहौल बहुत खुश नमा होना ज़रूरी है. 

लेखक बताते हैं कि आपको पता होना चाहिए कि अच्छे से अच्छा दिमाग सही माहौल ना मिलने पर खराब हो जाता है. 

इसलिए ओपन माइंडेड होना बहुत ज़रूरी है. आइडियल वर्क स्पेस कैसा होना चाहिए? इस सवाल के जवाब में लेखक बताते हैं कि जिस वर्क स्पेस में हंसी-हंसी में भी आईडिया का डिस्कशन होता है. जहाँ पर लोग मेंटली फिट रहते हैं. वही आइडियल वर्क स्पेस है. 

कई रिसर्च में ये बात निकलकर सामने आई है कि हेल्दी वर्किंग स्टाइल के लिए आपका साइकोलॉजिकल फिट होना बहुत ज़रूरी है.

इफेक्टिव लीडर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के मूल्य पर जोर देते हैं
बोर्न के बेटे हैरी के लिए स्कूल में पढ़ाई करना काफी मुश्किल हो रहा था. उसका स्कूल में मन ही नहीं लगता था. किसी भी क्लास की पढ़ाई में उसका इंटरेस्ट ही नहीं रहता था. 

सिचुएशन होपलेस होती जा रही थी. तभी हैरी जुडो के बारे में पता चला, उसने जुडो के लिए मेन स्ट्रीम स्कूल को ही छोड़ दिया था. 

हैरी ने 11 साल की उम्र में फ्रैंक स्पोर्ट्स अकादमी में एडमिशन ले लिया था. उस अकादमी को डिजाईन ही ऐसे किया गया था कि वो बच्चों को उनके इंटरेस्ट के हिसाब से कुछ सिखा सके. 

हैरी की हर सुबह की शुरुआत जुडो के साथ होती थी. उसके बाद वो दिन भर अलग-अलग एक्सरसाइज में लगा रहता था. 

हैरी के लिए ये अन कन्वेंशनल अप्रोच काफी इफेक्टिव साबित हो रहा था. स्पोर्ट्स अकादमी से बच्चों को फायदा हो रहा था. इसके पीछे का रीजन यही था कि यहाँ बच्चों के ओवर ऑल डेवलपमेंट पर ध्यान दिया जा रहा था. 

अगर वर्क प्लेस में भी इसी अप्रोच के साथ काम किया जाए तो वहां का माहौल भी बेहतर और ज्यादा प्रोडक्टिव हो सकता है. इसलिए लेखक कहते हैं कि इफेक्टिव लीडर का ध्यान फिजिकल और मेंटल हेल्थ की तरफ होना ही चाहिए. 

कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी की रिसर्च में ये निकलकर सामने आ चुका है कि जिन संस्थानों में मेंटल और फिजिकल हेल्थ पर ध्यान दिया जाता है. वहां के कर्मचारी की प्रोडक्टिविटी भी बाकी संस्थानों के कर्मचारी के अपेक्षा में बहुत ज्यादा होती है. 

इसलिए एक लीडर के तौर पर ये आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप वर्कर्स के फिजिकल और मेंटल हेल्थ का ध्यान रखें.

ग्रेट लीडर्स की भाषा भी दूसरों को प्रेरित करती है, इसलिए उन्हें अच्छा ओरेटर भी बोला जाता है
क्या आपको Jacinda Ardern के बारे में पता है? अगर नहीं पता है तो हम बता देते हैं. ये न्यूज़ीलैंड की यंगेस्ट फिमेल प्राइम मिनिस्टर बनी थीं. इन्होने वो ज़िम्मेदारी 37 साल की उम्र में संभाली थी. तब उन्हें पता था कि उनके सामने कई मुश्किलें आने वालीं हैं. 

लेकिन फिर भी उनका हौसला बहुत बड़ा था. उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारी को बाखूबी निभाया था. उन्होंने अपने पद की गरिमा का भी पूरा ख्याल रखा था. 

अपने कार्यकाल में उन्होंने वातावरण के लिए और जॉब्स सेक्टर के लिए काबिले तारीफ़ काम किया था. ‘Jacinda Ardern’ की पर्सनालिटी से आने वाले लीडर्स काफी कुछ सीख सकते हैं. वो सीख सकते हैं कि मुश्किल दौर में भी कैसे शब्दों के जादू से सबकुछ ठीक किया जा सकता है. 

भले ही आप घर पर हों या फिर पब्लिक स्पेस में हों, लीडरशिप में लैंग्वेज का रोल बहुत अधिक होता है. आप लोगों से संवाद कैसे करते हैं? ये बताता है कि आपके अंदर लीडरशिप क्वालिटी है भी या नहीं है. 

लीडर और ग्रेट लीडर में जो सबसे बड़ा फर्क होता है. वो उसके लैंग्वेज का होता है. बोलते तो सबसे आता है. लेकिन आपके बोलने का स्टाइल तय करता है कि लोग आपकी सुनेंगे या नहीं सुनेंगे. 

अगर आप भी भविष्य में लीडर बनना चाहते हैं तो फिर लैंग्वेज की काबिलियत खुद के अंदर लाने की कोशिश करिए. इस काबिलियत के बिना आप लीडर के तौर पर मुकम्मल स्थान नहीं बना पाएंगे. 

लैंग्वेज ऑफ़ लीडरशिप में मास्टरी करने में कितना समय लगेगा? अगर आपके मन में भी ऐसा ही सवाल आ रहा है. तो फिर आपको पता होना चाहिए कि ये एक लाइफ टाइम प्रोसेस है. इसके लिए पूरी लाइफ मेहनत करनी पड़ती है. 

लेकिन इस तकनीक को सीखने के लिए भी कई सारे तरीके मौजूद हैं. उन्ही में से एक तरीका रोल प्ले का भी है. इस तकनीक में आपको कठिन परिस्थिति के बारे में सोचना है. फिर किसी दोस्त की मदद लेकर उस परिस्थति के लिए बोलने की प्रैक्टिस करनी है. यकीन मानिए, धीरे-धीरे ही सही लेकिन आपके अंदर काफी अच्छे बदलाव देखने को मिलेंगे.

हर लीडर को विज़न के महत्त्व को समझना बहुत ज़रूरी है
आप भविष्य के बारे में अंदाज़ा नहीं लगा सकते हैं. लेकिन आप भविष्य की प्लानिंग ज़रूर कर सकते हैं. कुछ ऐसा ही वादा एंड्रू ने खुद से किया था. जब वो पहली बार पिता बना था. ऐसा वादा उसने खुद से इसलिए किया था क्योंकि बचपन से ही उसने गरीबी और मुश्किलों का सामना किया था. 

वो चाहता था कि उसकी बेटी को कभी भी पैसों की दिक्कत का सामना ना करना पड़े. 

इसके बाद एंड्रू ने प्लान बनाया, उन्होंने फैसला किया कि वो अपनी बेटी को कम उम्र से ही फाइनेंसियल प्लानिंग सिखाएगा. 

इसका रिजल्ट ये हुआ कि 20 साल की होते-होते उसकी बच्ची के पास काफी ज्यादा सेविंग हो चुकी थी. वो टीनेज से ही काम करने की शुरुआत कर दी थी. जिसकी वजह से 20 साल की उम्र तक उसने घर खरीदने तक के पैसों की व्यवस्था कर ली थी. 

एक पैरेंट के तौर पर एंड्रू इतना सफल क्यों था? इसके पीछे की वजह ये थी कि उसके पास विज़न था. उसके पास फैमिली को लेकर प्लानिंग थी. इसी के साथ उसने गोल्स को पूरा करने के लिए स्ट्रेटजी भी बनाई थी. 

बेसिक लेवल में विज़न के लिए दो चीज़ों की ज़रूरत होती है. पहली गोल और दूसरी स्ट्रेटजी. इसी स्ट्रेटजी की मदद से आप अपने गोल तक पहुंचेंगे. 

एंड्रू को पता था कि उसे अपने परिवार को फाइनेंसियल सेक्योर करना है. इसके लिए उसने स्ट्रेटजी बनाई और अपने बच्चों को उसी अनुसार बड़ा भी किया था. 

लेकिन अफ़सोस की बात है कि अधिकत्तर पैरेंट्स और बिजनेस लीडर्स यहीं पर मात खा जाते हैं. उनके पास क्लियर विज़न ही नहीं होता है. जब उनके पास कोई लक्ष्य नहीं होता है. तब वो सामने वाले के पास भी अपने बात को नहीं पहुंचा पाते हैं. 

इसलिए इस चैप्टर की मदद से लेखक ने कहा है कि एक लीडर के पास विज़न होना बहुत ज़रूरी है. बिना विज़न के आप लक्ष्य हासिल ही नहीं कर सकते हैं. लक्ष्य बनाइए फिर उस लक्ष्य तक कैसे पहुंचना है? इसका रास्ता बनाइए. 

पर्पस होना बहुत ज़रूरी है. लेकिन कई बार इसी पर्पस की तलाश काफी ज्यादा मुश्किल हो जाती है. कई लोग अपने पर्पस की तलाश ही नहीं कर पाते हैं. इसे तलाश करने के लिए कई मेथड का उपयोग किया जा सकता है. इसके लिए आप खुद से सवाल भी पूछ सकते हैं. खुद से सवाल करिए कि आप कोई काम क्यों करना चाहते हैं? कई बार ये क्यों आपके लिए काफी मददगार साबित हो सकता है. आपको पता चलेगा कि आपकी लाइफ में लूप होल कहाँ है? इसलिए उस लूप होल की तलाश करिए और उसकी मरम्मत की शुरुआत कर दीजिए. 

लाइफ में आगे बढ़ने के लिए विज़न का होना बहुत ज़रूरी है.

कुल मिलाकर
बच्चे को बड़ा करना और वर्क प्लेस को संभालने में कई चीज़ें काफी कॉमन है. दोनों ही चीज़ों में एक चीज़ की ज़रूर ज़रूरत होती है. वो है लीडरशिप स्किल, इसके बिना आप अधूरे-अधूरे से रह जाएंगे. इसलिए लाइफ में हमेशा इस स्किल को सीखने की कोशिश करिएगा. 

क्या करें?

हमेशा हर चीज़ अकेले ही करने की कोशिश ना करें. एकता में बहुत शक्ति होती है. आपको पता होना चाहिए कि लाइफ में आगे बढ़ने के लिए कई अच्छे लोगों का साथ होना बहुत ज़रूरी होता है. इसलिए सभी का ख्याल रखिए और लोगों के साथ आगे बढ़ते रहिए. 

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